भारत में कुल GI टैग की संख्या अब 432

Sansar LochanCurrent Affairs1 Comment

भारत के जीआई टैग की संख्या बढ़कर 432 तक पहुँच गई है। भारत के जीआई टैग की संख्या बढ़कर 432 तक पहुँच गई है। जीआई की अधिकतम संख्या वाले शीर्ष पांच राज्य हैं – कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र।

ज्ञातव्य है कि असम के विख्यात गमोसा (तौलिया), तेलंगाना के तंदूर तूर दाल (रेडग्राम), लद्दाख के रक्तसे कारपो खुबानी, महाराष्ट्र के अलीबाग सफेद प्याज को प्रतिष्ठित जीआई टैग प्रदान किया गया है।

भौगोलिक संकेतक (GI) टैग

यह विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निर्दिष्ट संकेतक है, इसका उपयोग कृषि, प्राकृतिक और विनिर्मित वस्तुओं, जिनकी एक विशिष्ट गुणवत्ता और स्थापित प्रतिष्ठा होती है, को संरक्षण प्रदान करने के लिए किया जाता है। यह एक सामूहिक अधिकार है।

किसी उत्पाद को GI टैग प्राप्त करने के लिए उसका संबंधित क्षेत्र में उत्पादन, प्रसंस्करण या निर्माण आवश्यक है। एक GI पंजीकरण 10 वर्षों के लिए वैध होता है, इसके बाद उसका नवीनीकरण कराया जा सकता है।

  • GI का full-form है – Geographical Indicator
  • भौगोलिक संकेतक के रूप में GI tag किसी उत्पाद को दिया जाने वाला एक विशेष टैग है.
  • नाम से स्पष्ट है कि यह टैग केवल उन उत्पादों को दिया जाता है जो किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित किये गए हों.
  • यदि आपको कुछ उदाहरण दूँ तो शायद आप इसे और अच्छे से समझोगे….जैसे – बनारसी साड़ी, कांचीपुरम की साड़ी, मालदा आम, मुजफ्फरपुर की लीची, बीकानेरी भुजिया, कोल्हापुरी चप्पल, अलीगढ़ का ताला आदि.
  • इस tag के कारण उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिल जाता है.
  • यह टैग ग्राहकों को उस उत्पाद की प्रामाणिकता के विषय में आश्वस्त करता है.
  • WTO समझौते के तहत अनुच्छेद 22 (1) के तहत GI को परिभाषित किया जाता है.

भौगोलिक संकेतक पंजीयक

  • भौगोलिक वस्तु संकेतक (पंजीकरण एवं सुरक्षा) अधिनयम, 1999 के अनुभाग 3 के उप-अनुभाग (1) के अंतर्गत पेटेंट, रूपांकन एवं व्यापार चिन्ह महानिदेशक की नियुक्ति GI पंजीयक के रूप में की जाती है.
  • पंजीयक को उसके काम में सहयोग करने के लिए केंद्र सरकार समय-समय पर अधिकारियों को उपयुक्त पदनाम के साथ नियुक्त करती है.

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

Namma Kolhapuri Slippers :-

  • नम्मा कोल्हापुरी चप्पल को पिछले दिनों GI टैग मिल गया.
  • इन चप्पलों को बनाने के लिए यह टैग संयुक्त रूप से कर्नाटक और महाराष्ट्र को दिया गया. ऐसी धारणा रही है ये चप्पलें केवल महाराष्ट्र के कारीगर ही बनाते हैं, परन्तु सच्चाई है कि इनके बनाने का काम शताब्दियों से कर्नाटक के भी कारीगर करते रहे हैं.
  • कोल्हापुरी चप्पलें चमड़े की बनी होती हैं. इन्हें हाथ से बनाया जाता है और वानस्पतिक रंगों से रंगा जाता है. इनके बनाने की कला पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आती है.
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