शेल तेल (Shale Oil) – भारत में ऊर्जा के विकल्प के रूप में इनका प्रयोग एवं चुनौतियाँ

Sansar LochanEnergy, Environment and Biodiversity, Sansar Editorial 2018

कल Rajya Sabha TV के RSTV Vishesh कार्यक्रम में शेल तेल (shale oil) और शेल गैस (shale gas) के विषय में चर्चा की गई. उसी TV discussion को हम यहाँ Hindi रूपांतरण में लिखित रूप में आपके सामने परोस रहे हैं. सरकार ने तेल और गैस उत्पादकों को मौजूदा अनुबंधों के तहत शेल तेल/गैस (shale oil and shale gas) और कोल बेड मिथेन के अन्वेषण की नई नीति को स्वीकृति दे दी है. इससे देश में गैर-पारम्परिक हाइड्रोकार्बन उत्पादन को बढ़ाने और तेल और गैस ब्लॉकों के दोहन के लिए एक नई नीति और रुपरेखा का मार्ग प्रशस्त हो गया है. सरकार को उम्मीद है कि इस नई नीति से आयातित तेल पर भारत की निर्भरता कम होगी और विदेशी मुद्रा को बचाने में भी मदद मिलेगी.

ऊर्जा स्रोतों के मामले में अमेरिका समेत दुनिया की कई देश अब शेल गैस और शेल तेल (shale oil) के खोज और उत्पादन में सक्रिय हो गये हैं. अमेरिका के शेल अन्वेषण ने तो खाड़ी देशों के भविष्य में ही एक सवालिया निशान लगा दिया है. ऐसे में शेल गैस और शेल तेल (shale oil) को लेकर कई तरह की चर्चाएँ हो रही हैं. चलिए जानते हैं क्या है शेल तेल और शेल गैस….ये कैसे ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत बन कर उभरे रहे हैं, विश्व में इसकी क्या स्थिति है और भारत में इसकी क्या संभावनाएँ हैं?

शेल तेल और शेल गैस का इस्तेमाल क्यों?

बढ़ती जनसंख्या और प्रौद्योगिकीकरण का दबाव जीवन के हर क्षेत्र पर पड़ रहा है. इसमें ऊर्जा भी शामिल है. दरअसल धरती पर ऊर्जा के स्रोत सीमित हैं और जिस तरह से इन का दोहन किया जा रहा है और उपभोग हो रहा है, उससे इनके उपलब्ध सीमित भंडार में लगातार कमी आ रही है और यही कारण है कि शेल गैस और शेल तेल के इस्तेमाल की बात सम्पूर्ण विश्व में जोर-शोर से होने लगी है. हाँलाकि शेल तेल/गैस की खोज कोई नई बात नहीं है पर इसका उत्पादन काफी जटिल और महँगा होने के कारण अब तक इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है.

Background

1970 के दशक में जब कच्चे तेल के उत्पादन में क्रान्ति आई तो पूरी दुनिया में अरब सहित सभी खाड़ी देशों की पहचान ऊर्जा केंद्र के तौर पर हुई. बीते 6 दशकों से तेल की उपलब्धता के चलते ही इन इलाकों का महत्त्व कभी कम नहीं हुआ. अमेरिका समेत दुनिया के सभी देशों ने इन इलाकों को तेल के कारण ख़ास महत्त्व दिया. लेकिन यहाँ तेल के सीमित भंडार की कम होती क्षमता ने सभी देशों की चिंताएँ बढ़ा दी हैं और यही कारण है कि अमेरिका और भारत समेत अन्य देश भी शेल तेल और गैस का पता लगाने, उनका इस्तेमाल करने की कोशिश में लगे हुए हैं.

शेल गैस और तेल क्या है?

तकनीकी तौर पर शेल गैस चट्टानी संरचनाओं से उत्पादित एक प्राकृतिक गैस है जो बालू, लाइमस्टोन और दूसरी संरचना से पैदा होने वाली प्राकृतिक गैस से बिल्कुल अलग है. शेल दरअसल पेट्रोलियम की चट्टाने हैं यानी ऐसी चट्टानें जो पेट्रोलियम का स्रोत हैं. इन चट्टानों पर दबाव और उच्च ताप पड़ने से एक प्राकृतिक गैस पैदा होती है जो LPG की तुलना में कहीं ज्यादा साफ़ है.

दरअसल “शेल” शब्द आमतौर पर किसी तलछट चट्टान के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें ठोस पदार्थ होते हैं जिन्हें केरोजिन कहा जाता है. जब इन चट्टानों को पायरोलिसिस रासायनिक प्रक्रिया से गर्म किया जाता है तब इसमें से केरोजिन पेट्रोलियम जैसे तरल पदार्थ के रूप में बाहर आता है. इसे ही शेल तेल (shale oil) कहा जाता है.  शेल तेल का निर्माण लाखों सालों तक कीचड़, गाद और जैविक मलबे के जमाव से होता है. लम्बे वक्त तक गर्मी और दबाव के चलते ये जैविक पदार्थ शेल तेल में बदल जाते हैं.

आमतौर पर ये शेल तेल निकालने की तकनीक बहुत महँगी और जटिल होती है. साथ ही साथ इन चट्टानों में तेल की मात्रा भी बहुत ही कम होती है इसलिए शेल तेल (shale oil) को light tight oil भी कहा जाता है. शेल तेल जिन चट्टानों से निकाला जाता है, उनके आस-पास पाई जाने वाली गैस को शेल गैस कहते हैं.

शेल तेल निकालने की प्रक्रिया

पहली प्रक्रिया

  • शेल चट्टानों को खनन कर बाहर निकाला जाता है.
  • फिर इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर प्रसंस्करण संयत्र में ले जाया जाता है जहाँ उन्हें लगभग 500 degree celsius तापमान पर गर्म किया जाता है.
  • गर्म होने के बाद चट्टान पिघलकर तरल और गैस के रूप में बाहर आता है.

दूसरी प्रक्रिया (सीटू)

शेल चट्टानों को विस्फोट करके तोड़ा जाता है जिसके बाद हवा और गैस इस चट्टान के भीतर प्रवेश कर जाती हैं. इसके बाद इस चट्टान को गर्म किया जाता है. इसके लिए इलेक्ट्रिकल हीटिंग जैसी तकनीक का भी प्रयोग किया जाता है. गर्म होने के बाद शेल चट्टान से केरोजेन कच्चे तेल की तरह बाहर निकलता है. शेल तेल निकालने की इस प्रक्रिया को सीटू प्रक्रिया कहते हैं.

20वीं सदी तक शेल तेल और गैस निकालने की तकनीक काफी मुश्किल और महँगी थी पर आज की तिथि में इस तकनीक में काफी सुधार हुआ है. मौजूदा तकनीकों का उपयोग करने से अमेरिका में एक बैरेल शेल तेल की उत्पादन लागत $40 के आस-पास आ रही है.

और भी डिटेल में यहाँ पढ़ें > Shale Gas

विश्व में शेल गैस का भंडार

विश्व में शेल गैस का भंडार लगभग 7,576 ट्रिलियन घन फीट (TCF) है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ वर्ष 2013 से 2015 के बीच दुनिया की शीर्ष 11 देशों में शेल गैस का भण्डार कुछ इस प्रकार था –

  1. चीन – 1,115 TCF
  2. अर्जेंटीना – 802 TCF
  3. अल्जीरिया – 707 TCF
  4. अमेरिका – 623 TCF
  5. कनाडा – 573 TCF
  6. मैक्सिको – 545 TCF
  7. ऑस्ट्रेलिया – 429 TCF
  8. दक्षिणी अफ्रीका – 390 TCF
  9. रूस – 285 TCF
  10. ब्राजील – 245 TCF
  11. भारत – 95 TCF

भारत के लिए चुनौती

ऊर्जा खपत के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. इस लिस्ट में पहले पायदान पर चीन है और दूसरे पर अमेरिका है. भारत में ऊर्जा के पर्याप्त संसाधनों की कमी है. 8-9% GDP वाले देश को अपनी विशाल आबादी के लिए सस्ते और सुलभ ऊर्जा संसाधनों को उपलब्ध कराना भी एक बड़ी चुनौती है. पेट्रोलियम पदार्थों के मामले में भारत कच्चे तेल और गैस की कुल आवश्यकता का 80% आयात कर रहा है यानी हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती देश की ऊर्जा दक्षता को बढ़ाने के साथ-साथ घरेलू  उत्पादन को बढ़ावा देने की भी है. ऐसे में शेल गैस भारत के लिए ऊर्जा के बेहतर विकल्प के तौर पर उभर सकती है.

भारत में शेल तेल और गैस के भंडार

ONGC ने पाँच बेसिनों – खम्भात बेसिन, केजी बेसिन, कावेरी बेसिन, गंगा बेसिन और असम बेसिन के लिए 187.5 ट्रिलियन घन फीट (TCF) शेल गैस संसाधनों का अनुमान लगाया है.

वहीं केंद्रीय खान योजना एवं अभिकल्पन संस्थान (CMPDI) ने गोंडवाना बेसिन में 45.8 TCF शेल गैस संसाधनों का अनुमान लगाया है.

अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की बात करें तो United States Geological Survey ने भारत के तीन बेसिनों – खम्भात, केजी और कावेरी – के लिए तकनीकी रूप से निकासी लायक 6.1 TCF शेल गैस का अनुमान लगाया है.

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