[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – History GS Paper 1/Part 3

Sansar LochanGS Paper 1, Sansar Manthan

सामान्य अध्ययन पेपर – 1

साइमन कमीशन की नियुक्ति क्यों हुई थी? भारतीयों द्वारा इसका बहिष्कार क्यों किया गया? इसकी सिफारिशें क्या थीं? (250 words) 

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“स्वतंत्रता संग्राम – इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान.

सवाल का मूलतत्त्व

ऐसे सवाल UPSC मुख्य परीक्षा में कभी-कभी ही पूछे जाते हैं. सवाल तो एक है पर जवाब आपको तीन सवालों के देने हैं. हमने इस सवाल को ऐसा इसलिए बना दिया क्योंकि आपको साइमन कमीशन के हर पहलू का पता चल जाए. 250 शब्दों में उत्तर देना मुश्किल है पर ऐसा सवाल यदि परीक्षा में आ जाता है तो निम्नलिखित रूप से भूमिका देते हुए क्रम से सारे सवालों को अलग-अलग paragraph में उत्तर देने का प्रयास करना चाहिए.

प्रश्न में दिए गये “नियुक्ति” शब्द का अर्थ ही हो जाता है कि सवाल पूछने वाला साइमन कमीशन की आवश्यकता क्यों पड़ी और साथ-साथ इस कमीशन के कार्य क्या थे, आपसे यह भी जानना चाहता है. इसलिए आपको शुरूआती पंक्तियों में इसकी नियुक्ति के कारण, इसके सदस्य और फिर इसके कार्य क्या थे आदि तथ्यों से शुरुआत करनी चाहिए.

फिर हम लोग बहिष्कार एवं सिफारिशों के विषय में चर्चा करेंगे.

मैं जो-जो highlight करता हूँ…वह आप अपने उत्तर में भी जरुर डालें क्योंकि reference और dates ये सारी चीजें परीक्षक को प्रभावित करती हैं. आप अपनी उत्तर-पुस्तिका में इस तरह के वाक्यों को underline करने की आदत डाल लें ताकि परीक्षक का ध्यान सीध उसपर पड़े.

उत्तर

1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम की धारा 84 में कहा गया था कि संवैधानिक सुधारों का कार्यान्वयन किस प्रकार हो रहा, इसको देखने के लिए हर दसवें साल एक आयोग की नियुक्ति होगी. इस धारा के अनुसार 1929 ई. में एक आयोग की नियुक्ति होनी चाहिए थी. परन्तु, भारत की राजनीति स्तिथि के गंभीर हो जाने के कारण और शासन में सुधार की माँग हेतु राष्ट्रीय आन्दोलन तेज हो जाने के कारण ब्रिटिश सरकार को 1927 ई. में ही एक कमीशन नियुक्त करनी पड़ी. यह कमीशन साइमन कमीशन के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

कमीशन के सदस्य

इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन एल्सब्रुक साइमन थे.उन्हीं के नाम पर इस कमीशन का नाम पड़ा. इसके सात सदस्य थे. सातों सदस्य अंग्रेज़ थे. कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था.

कमीशन के कार्य

साइमन कमीशन के जिम्मे यह कार्य सौंपा गया था कि वह 1919 ई. के संविधान की सफलता की जाँच करे और भारत में भविष्य में किस तरह का संवैधानिक सुधार हो, इसपर विचार दे. इस प्रकार, कमीशन को यह सुझाव देना था कि भारत में उत्तरदायी सरकार के सिद्धांत को कहाँ तक बढ़ाया जाए.

भारतियों द्वारा साइमन कमीशन का बहिष्कार

कमीशन में भारतीयों को स्थान नहीं देने के निर्णय से भारतीय नेता बहुत क्षुब्ध हुए. वस्तुतः, भारतीयों को नहीं सम्मिलित करने के सम्बन्ध में जो सरकार द्वारा तर्क प्रस्तुत किये गये थे, वे हास्यास्पद ही नहीं अपितु भारतीय प्रतिष्ठा के प्रतिकूल थे. आयोग की रचना भारत के मान और प्रतिष्ठा पर करारी चपत थी. अतः, भारतीयों ने इस कमीशन के बहिष्कार का निश्चय किया. सभी भारतीय दलों – हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग, उदारदलीय संघ तथा कांग्रेस – ने कमीशन की रचना की घोर निंदा की. भारतीय समाचारपत्रों तथा राजनीतिक विचारों ने इस कमीशन को भारतीय राष्ट्र के लिए अपमानजनक बताया. दिसम्बर 1927 के मद्रास अधिवेशन में कांग्रेस ने यह घोषणा की कि “चूँकि आज सरकार ने भारत के स्वराज की माँग की पूर्ण उपेक्षा करके एक शाही कमीशन नियुक्त किया; अतः, यह कांग्रेस निश्चय करती है कि भारत के लिए आत्मसम्मानपूर्ण एक मार्ग यही है कि वह कमीशन का हर हालत में और हर स्थान पर बहिष्कार करे.”

कमीशन की सिफारिशें –

विषम परिस्थिति में भी कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशें की –

  1. प्रान्तों में द्वैध शासन का अंत कर दिया जाए. समस्त प्रांतीय शासन उत्तरदायी मंत्रियों को सौंप दिया जाए.
  2. व्यस्क मताधिकार अव्यावहरिक है. साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को जारी रखा जाए.
  3. शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार की स्थापना पर बल दिया जाए.
  4. केन्द्रीय विधानमंडल के दोनों सदनों के लिए प्रांतीय परिषदों द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन किया जाए.

सामान्य अध्ययन पेपर – 1

भारत में राष्ट्रीय जागरण के विकास में सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान का वर्णन करें.

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“स्वतंत्रता संग्राम – इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान.”

सवाल का मूलतत्त्व

सरदार पटेल के योगदान के बारे में तो पूछा ही गया है पर आपको पटेल जी के बारे में भी शुरुआत की पंक्तियों में लिखना होगा. आप सीधे योगदान से शुरुआत नहीं कर सकते. यह बहुत सटीक प्रश्न है. यदि कोई सरदार पटेल के बारे में कुछ नहीं जानता तो उनके योगदान के बारे में जानना तो दूर की कौड़ी है.

उत्तर

लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल के व्यक्तित्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और नवभारत निर्माण के अनेक महत्त्वपूर्ण मोर्चों की शौर्यकथा अंतनिर्हित है. उनका जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद गाँव में हुआ था. बाल्यावस्था से ही सरदार देशभक्ति थे और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अन्त को ही भारत का कल्याण समझते थे. आरम्भ में सरदार राजनीतिक कार्यों से उदासीन रहते थे, लेकिन महात्मा गांधी के सम्पर्क में आने से उनमें राजनीतिक कार्य में भाग लेने की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई. 1918 में जब महात्मा गाँधी ने खेड़ा सत्याग्रह की तैयारी की, तब सरदार ने उसमें सक्रिय भाग लेकर उसे सफल बनाया. फिर पटेल महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े. 1923 ई. में नागपुर में राष्ट्रीय ध्वज की रक्षा के लिए उन्होंने आन्दोलन का नेतृत्व किया और 1928 ई. में बारदोली सत्याग्रह का सफलतापूर्वक सञ्चालन किया. इसी समय उन्हें “सरदार” की उपाधि दी गई और उनकी गणना कांग्रेस के महारथी नेताओं में होने लगी. 1930 ई. के आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन्हें कारागृह की सजा दी गई. उनकी योग्यता, त्याग और कार्यकुशलता से मुग्ध होकर उन्हें कराची अधिवेशन में कांग्रेस का सभापति चुना गया. 1937 ई. में जब 1935 ई. के भारत शासन अधिनियम के अधीन कांग्रेस ने निर्वाचन में भाग लेने का निश्चय किया, तब सरदार की अध्यक्षता में एक संसदीय समिति (parliamentary board) की स्थापना की गई. सरदार पटेल ने बड़ी कुशलता से निर्वाचन का सञ्चालन किया.

विद्याप्रेमी होने के करण सरदार ने गुजरात विद्यापीठ के लिए सतत परिश्रम द्वारा लगभग 10 लाख रु. एकत्र किये. सरदार में अनुपम संगठनशक्ति, कार्यकुशलता और दबंग सैनिक प्रवृत्ति थी. विपत्ति से वे घबराते नहीं थे. इसी कारण उन्हें “लौहपुरुष” कहा गया है. कांग्रेस में प्रवेश करने के समय से सदा वे कांग्रेस के प्राण बने रहे.

1942 ई. के “भारत छोड़ो आन्दोलन” में उन्होंने सक्रिय भाग लिया. उन्हें अन्य नेताओं के साथ बंदी बनाया गया. 1945 ई. में उन्होंने शिमला सम्मलेन में भाग लिया. 1946 ई. में अंतरिम सरकार के अंतर्गत सरदार को भारत का उपप्रधानमन्त्री बनाया गया. विभाजन के उपरान्त उनके जिम्मे गृह विभाग रखा गया. इस पद पर रहकर उन्होंने भारत की एक विकट समस्या का समाधान किया और भारत को कई टुकड़ों से बँटने से बचाया. 562 देशी राज्यों पर ब्रिटिश सार्वभौमिकता का अंत कर दिया गया था और उन्हें भारत  या पाकिस्तान में मिलने या स्वतंत्र रहने का अधिकार दिया गया था. इन देशी रियासतों का भारत संघ में विलय करके सरदार ने अपनी कार्यकुशलता तथा दूरदर्शिता का परिचय दिया.

“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan

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