[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Society GS Paper 1/Part 10

Dr. SajivaGS Paper 1

सामान्य अध्ययन पेपर – 1

सौरा चित्रकला की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए इसके बनावट की विधि की सविस्तार चर्चा करें. (250 words)

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य, वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल…..”.

उत्तर :-

सौरा चित्रकारी (Saura painting) ओडिशा राज्य के लाउदा आदिवासियों के द्वारा घरों की दीवारों पर बनाई जाने वाली चित्रकारी को कहा जाता है. यह चित्रकारी, जिसे ईकोन या इडिताल भी कहते हैं, बहुत हद तक उत्तरी सह्याद्री श्रेणी में रहने वाले लोगों के वेरली चित्रकला के समान ही दिखती है. सौरा चित्रकला लाउदा जनजातियों के लिए धार्मिक महत्त्व भी रखती है. लाउदा जनजाति रामायण में भगवान राम की भक्त शबरी को स्वयं से जोड़ती है. इस चित्रकला के अंतर्गत प्रत्येक चित्र में एक आयताकार फ्रेम बनाया जाता है जिसके अन्दर विभिन्न देवताओं के प्रतीक-चिन्ह होते हैं. (Source : Sansar DCA, 24-25 March)

सौर चित्रकला की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • इसका चित्रांकन प्रतीकात्मक प्रारूपों और चित्रों के रूप में किया जाता है, जिन्हें शैलीबद्ध रूप में अंकित किया जाता है.
  • प्रत्येक चित्रांकन में एक आयताकार फ्रेम होता है और प्रकृति से सम्बंधित देवताओं एवं प्रतीकों के चित्र होते हैं.
  • चित्रकारी का उद्देश्य : देवताओं और पूर्वजों को प्रसन्न करना, बीमारियों को दूर रखना, उर्वरता में वृद्धि, मृतकों का सम्मान इत्यादि.
  • केन्द्रीय विषय : वस्तुतः इडिताल एक घर होता है जिसे एक वृत्त द्वारा प्रदर्शित किया जाता है. इन चित्रों को वृत्तों जैसे एक पैनलों में बनाया जाता है, जो त्रिकोणीय रूप में इडिताल के चारों ओर निर्मित होते हैं.

सौर चित्रकला के बनावट की विधि :-

  • दीवारों पर चित्रकारी करने से पूर्व दीवारों को साफ़ किया जाता है, स्थानीय रूप से उपलब्ध लाल मिट्टी से इसकी पुताई की जाती है तथा सफ़ेद रंग के रूप में पिसे हुए चावल के लेप का प्रयोग किया जाता है. इडितालमार, चित्रकारी पूर्ण होते तक 10 से 15 दिनों के लिए मात्र एक समय का भोजन ग्रहण करने सम्बन्धी अनुष्ठान का पालन करते हैं.
  • चित्रकारी के लिए, बाँस की लकड़ी की एक कूची (ब्रश) बनाई जाती है. दिए से उत्पन्न कालिख को काले रंग के लिए तथा धूप में सुखाये गए चावल के पाउडर को सफ़ेद रंग के लिए प्रयुक्त किया जाता है. इन सभी को जल तथा औषधियों एवं जड़ों के रस के साथ मिश्रित कर एक पेस्ट तैयार कर लिया जाता है.

सामान्य अध्ययन पेपर – 1

हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत के बीच मुख्य अंतरों को संक्षेप में बताएँ. (250 words)

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य, वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल…..”.

उत्तर :-

हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत के मध्य मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं –

1. हिन्दुस्तानी संगीत में गायिकी के मुख्य रूप ध्रुपद, खयाल, तराना, ठुमरी, टप्पा और गजल होते हैं जबकि कर्नाटक संगीत में आलापन, निरावल, कल्पनास्वरम, रागम थान पल्लवी होते हैं.

2. हिन्दुस्तानी संगीत पर तुर्की-फारसी (खयाल, कव्वाली) संगीत के तत्त्वों का प्रभाव है जबकि कर्नाटक संगीत पर कोई तुर्की-फारसी प्रभाव नहीं है.

3. हिन्दुस्तानी संगीत में राग को समय के अनुसार गाने की एक व्यवस्था है जो कि कर्नाटक संगीत में दिखाई नहीं देती है.

4. हिन्दुस्तानी संगीत में एक से अधिक गायन शैलियाँ हैं जिन्हें घरानों के नाम से जाना जाता है जबकि कर्नाटक संगीत में एक ही शैली होती है.

5. तबला, सारंगी, सितार, संतूर, सरोद, शहनाई, वायलिन और बाँसुरी का उपयोग हिन्दुस्तानी संगीत में देखा जा सकता है जबकि कर्नाटक संगीत में वीणा, मृदंगम, मैन्डोलिन, जलतरंग, वायलिन और बाँसुरी का प्रयोग अधिक देखा जाता है.

6. कर्नाटक संगीत में कंपित स्वर का प्रयोग होता है जो हिन्दुस्तानी संगीत में नहीं मिलता है.

7. हिन्दुस्तानी संगीत का क्षेत्र व्यापक है क्योंकि इसका प्रभाव नेपाल और अफगानिस्तान सहित पूरे उत्तर भारत एवं दक्कन तक है. जबकि कर्नाटक संगीत का विस्तार दक्षिण भारतीय राज्यों तक ही सीमित है.

8. कर्नाटक संगीत में 72 राग हैं जबकि हिन्दुस्तानी संगीत में 6 मुख्य राग और अनेक रागिनियाँ हैं.

9. हिन्दुस्तानी संगीत में विविधता उत्पन्न करने की छूट होती है जबकि ऐसी स्वतंत्रता कर्नाटक संगीत में नहीं होती है.

10. कर्नाटक संगीत में गायन और वादन दोनों का बराबर महत्त्व होता है परन्तु हिन्दुस्तानी संगीत में गायन सर्वोपरि होता है और वादन गायन का साथ देने के लिए होता है.

सामान्य अध्ययन पेपर – 1

आधुनिक युग में भारतीय चित्रकला की विभिन्न शैलियों का संक्षेप में वर्णन करें. (250 words)

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य, वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल…..”.

उत्तर :-

भारतीय कला का आधुनिक काल लगभग 1857 के आसपास आरम्भ हुआ. आधुनिक युग में पेटिंग की विभिन्न शैलियाँ इस प्रकार हैं :-

चित्रकला की कंपनी शैली (Company style of painting)

यह चित्रकला की एक संकर (hybrid) शैली है. यह औपनिवेशिक काल में उभरी. यह राजपूत, मुग़ल और पेंटिंग की अन्य भारतीय शैलियों को यूरोपीय तत्त्वों के साथ मिश्रित करती है.

बाजार चित्रकला (Bazar painting)

कंपनी चित्रकला के विपरीत, इसने यूरोपीय तकनीक के साथ भारतीय शैली को मिश्रित नहीं किया. इन्होंने सिर्फ ग्रीक और रोमन शैली की नक़ल की. यह शैली बंगाल और बिहार में प्रचलित थी. इन चित्रों में भारतीय बाजारों को यूरोपीय पृष्ठभूमि के साथ प्रदर्शित किया जाता था.

कालीघाट चित्रकला (Kalighat painting)

इसे कपड़ों या पटों पर किया जाता है जो कि बंगाल में कालीघाट के मंदिर के आस-पास विकसित होना शुरू हुई जहाँ स्थानीय ग्रामीण स्क्रॉल पैन्टर्स (जिन्हें पटुआ कहा जाता था) और कुम्हारों ने परम्परागत चित्रकला में नई विशिष्टताओं को प्रयुक्त करना शुरू किया था, जैसे –

  • चित्र को घेरेदार (rounded) रूप देने (3D प्रभाव) के लिए छायांकन का प्रयोग.
  • एक सुस्पष्ट, सुविचारित गैर-यथार्थवादी शैली का प्रयोग, जहाँ चित्र न्यूनतम लाइनों, विवरणों और रंगों के संयोजन से बड़े और प्रभावशाली बनकर उभरे.
  • पूर्व काल के केवल धार्मिक विषयों के विपरीत सामाजिक और राजनीतिक विषयों की चित्रकलाएँ.

आधुनिक चित्रकला के प्रमुख प्रतिपादक राजा रवि वर्मा थे. उनके जीवंत चित्रकारी के करण उन्हें “पूर्व का राफेल” कहा जाता है.

“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >>Sansar Manthan

Spread the love
Read them too :
[related_posts_by_tax]