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GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: वैधानिक, नियामक और विभिन्न अर्ध-न्यायिक निकाय।
Topic: Juvenile Justice Act
संदर्भ
हाल ही में तीन राज्यों (बंगाल, राजस्थान और पंजाब) की “बाल अधिकार समितियों” ने ‘दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (DCPCR) के साथ मिलकर संयुक्त रूप से केंद्र सरकार से वर्ष 2021 में “किशोर न्याय अधिनियम” में किए गए एक संशोधन को वापस लेने की अपील की है। इस संसोधन में बच्चों के खिलाफ कुछ अपराधों को “गैर-संज्ञेय” (Non-cognisable) बनाया गया है।
यह अपराधों की रिपोर्टिंग को हतोत्साहित करता है, क्योंकि इस संशोधन के बाद यदि कोई व्यक्ति शिकायत दर्ज करने के लिए पुलिस स्टेशन जाता है, तो पुलिस उसको पहले अनुमति लेने के लिए मजिस्ट्रेट के पास भेज देगी। “दंड प्रक्रिया संहिता” के अनुसार, एक बार जब अपराध “गैर-संज्ञेय” हो जाते हैं, तो पुलिस मजिस्ट्रेट के निर्देश पर ही प्राथमिकी दर्ज कर सकेगी और शिकायतकर्ता को प्रक्रिया शुरू करने से पहले संबंधित मजिस्ट्रेट से संपर्क करना होगा।
नये संशोधनों के बारे में
- जिलाधिकारियों को “किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम” के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए अधिक अधिकार दिए गए हैं।
- संशोधन के अनुसार, गोद लेने के आदेश, अब अदालत के स्थान पर अब जिलाधिकारी (अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट समेत) द्वारा जारी किए जाएंगे।
- अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (ADM) सहित जिला मजिस्ट्रेट (DM) अधिनियम के तहत, स्वतंत्र रूप से जिला बाल संरक्षण इकाइयों, बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्डों, विशेष किशोर पुलिस इकाइयों, बाल देखभाल संस्थानों आदि के कामकाज का मूल्यांकन करेंगे।
- जिन आपराधों में सजा के रूप में अधिकतम 7 वर्ष से अधिक कारावास तय है, उन्हें गंभीर श्रेणी के अपराध माना जायेगा जबकि संशोधन के अनुसार, विशेष कानून के तहत 3 से 7 साल की सजा वाले अपराधों को “गैर-संज्ञेय” के रूप में पुनर्वगीकृत किया गया है।
- जिलाधिकारी द्वारा अब “बाल कल्याण समिति” के सदस्यों की संभावित आपराधिक पृष्ठभूमि की भी जांच करने को कहा गया है।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख ओर संरक्षण) अधिनियम के बारे में
- इस अधिनियम के द्वारा किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 प्रतिस्थापित किया गया है।
- अधिनियम के तहत, प्रत्येक जिले में “किशोर न्याय बोर्ड” और “बाल कल्याण समितियाँ स्थापित करने का आदेश दिया गया है। इन संस्थाओं में कम से कम एक महिला सदस्य होनी अनिवार्य है।
- इस अधिनियम में बालकों के खिलाफ होने वाले कई नए अपराधों (जैसे, अवैध रूप से गोद लेना, आतंकवादी समूहों द्वारा बालकों का उपयोग, विकलांग बालकों के खिलाफ अपराध, आदि), जो किसी अन्य कानून के तहत शामिल नहीं है, को भी शामिल किया गया है।
- अधिनियम के तहत “केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण” (CARA) को वैधानिक निकाय का दर्जा दिया गया है, जिससे यह प्राधिकरण अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने में सक्षम होगा।
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: स्वास्थ्य से सम्बंधित।
Topic: National Doctor’s Day
संदर्भ
हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है, इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य समाज के प्रति चिकित्सकों के योगदान और उनकी प्रतिबद्धता के लिये उनका आभार व्यक्त करना है। इस दिवस का आयोजन प्रतिष्ठित चिकित्सक एवं पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधानचंद्र रॉय के सम्मान में किया जाता है।
डॉ. बिधानचंद्र रॉय
- डॉ. बिधानचंद्र रॉय का जन्म 01 जुलाई, 1882 को हुआ था और संयोगवश उनकी मृत्यु भी 01 जुलाई 1962 को ही हुई थी।
- उन्होंने 1928 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IM) के गठन और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- उन्होंने पश्चिम बंगाल दुर्गापुर, बिधाननगर, अशोकनगर, कल्याणी और हाबरा के पांच शहरों की स्थापना की थी।
- डॉ रॉय को 1961 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रतन से सम्मानित किया गया था।
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UPSC Syllabus: स्वास्थ्य से सम्बंधित।
Topic: International Co-operative Day
संदर्भ
2 जुलाई 2022 को 100वां “अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस” मनाया गया। सहकारिता मंत्रालय और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई) द्वारा 100वें अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस के उपलक्ष्य में नई दिल्ली में आयोजित समारोह का मुख्य बिषय सहकारिता से एक आत्मनिर्भर भारत और बेहतर विश्व का निर्माण था।
सहकारिता की परिभाषा
अनेक व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा किसी समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिये मिलकर प्रयास करना सहकार कहलाता है। भारत के संविधान के भाग 9 (ख) के अनुच्छेद 243 में सहकारिता का प्रावधान किया गया है। सहकारी समितियाँ ऐसे व्यक्तियों की स्वयंसेवी संस्थाएँ हैं, जो अपने आर्थिक हितों के लिये कार्य करते हैं। इसके सभी सदस्य अपने-अपने संसाधनों को एकत्र कर उनका अधिकतम उपयोग कर कुछ लाभ प्राप्त करते हैं, जिसे वह आपस में बांट लेते हैं। सहकारी समिति का नियंत्रण लोकतांत्रिक तरीके से होता है तथा इनमे मध्यस्थों की कोई भूमिका नही होती है।
सहकारिता के क्षेत्र का महत्व
- भारत के ग्रामीण क्षेत्रों तक सरकारी योजनाओ का लाभ पहुँचाने में सहकारी संस्थाओं ने उल्लेखनीय कार्य किया है।
- भारत में लगभग 8,55,000 सहकारी समितियाँ हैं और लगभग 13 करोड़ लोग सीधे इनसे जुड़े हैं। देश के 91 प्रतिशत गांव ऐसे हैं जिनमें कोई ना कोई सहकारी समिति है।
- देश में 86% छोटे किसान है, जो खुद खेती में निवेश नहीं कर सकते है, उनके लिए कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाएं विकसित करने में सहकारिता की अहम भूमिका होगी।
- केंद्र सरकार द्वारा 6,850 करोड़ के कोष के साथ किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) स्कीम भी शुरू की गई है। इसमें एफपीओ 2 करोड़ तक का लोन ले सकते हैं, जिस पर उन्हें ब्याज सब्सिडी भी दी जाएगी। इसे लागू करने में भी सहकारी संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
- केंद्र सरकार ने देश की 65,000 प्राथमिक कृषि क्रेडिट समितियों (PACS) के कम्प्यूटरीकरण का निर्णय किया है जिससे PACS ज़िला सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक और नाबार्ड ऑनलाइन हो जाएंगे जिससे व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी।
- केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में बदलावों के तहत एक नये मंत्रालय “सहकारिता मंत्रालय” का गठन किया गया है। यह मंत्रालय देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इस नये मंत्रालय का प्रभार भी सौंपा गया है।
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC)
- NCDC वर्ष 1963 में गठित एक शीर्ष स्तरीय सांविधिक स्वायत्त संस्था है।
- इसका उद्देश्य कृषि उत्पादों, औद्योगिक वस्तुओं, पशुधन तथा कुछ अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन, भंडारण तथा आयात-निर्यात के लिये कार्यक्रमों की योजना बनाना और इन्हें बढ़ावा देना है।
- यह सहकारी समितियों को तीनों स्तरों (प्राथमिक, ज़िला और राज्य) पर वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
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UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
Topic: G20
संदर्भ
हाल ही में भारत सरकार द्वारा नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत को G20 के लिए भारत का नया शेरपा चुना गया है। वह G20 शेरपा के रूप में पीयूष गोयल की जगह लेंगे। उन्हें सितंबर 2021 में G20 शेरपा के रूप में नियुक्त किया गया था। उल्लेखनीय है कि भारत 1 दिसंबर 2022 से लेकर 30 नवंबर 2023 तक G20 की अध्यक्षता करेगा। अध्यक्षता के इस कार्यकाल का समापन 2023 में भारत में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के साथ होगा।
भारत द्वारा G20 की अध्यक्षता से संबंधित मौलिक/ज्ञान/सामग्री, तकनीकी, मीडिया, सुरक्षा और लॉजिस्टिक संबंधी पहलुओं से जुड़े कार्यों को संभालने के लिए G20 के एक सचिवालय की स्थापना की जा रही है। यह सचिवालय विदेश मंत्रालय, वित्त मंत्रालय तथा अन्य संबंधित मंत्रालयों/विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों और कार्यक्षेत्र से संबंधित विशेषज्ञों द्वारा संचालित किया जाएगा। यह सचिवालय फरवरी 2024 तक कार्य करेगा।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक शीर्ष समिति इस सचिवालय का मार्गदर्शन करेगी। इस शीर्ष समिति में वित्त मंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री, और G20 शेरपा शामिल होंगे, जोकि भारत की G20 की अध्यक्षता को समग्र मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।
इसके अलावा, G20 से संबंधित सभी तैयारियों की निगरानी के लिए एक समन्वय समिति भी गठित की जाएगी जोकि इस शीर्ष समिति को रिपोर्ट करेगी। G20 का यह सचिवालय बहुपक्षीय मंचों पर विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर भारत के नेतृत्व को ज्ञान और विशेषज्ञता सहित दीर्घकालिक क्षमता निर्माण की दृष्टि से समर्थ बनाएगा।
G20 क्या है?
- G 20 1999 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है जिसमें20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सरकारें और केन्द्रीय बैंक गवर्नर प्रतिभागिता करते हैं.
- G 20 की अर्थव्यवस्थाएँ सकल विश्व उत्पादन (Gross World Product – GWP) में 85% तथा वैश्विक व्यापार में 80% योगदान करती है.
- G20 शिखर बैठक का औपचारिक नाम है – वित्तीय बाजारों एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था विषयक शिकार सम्मलेन.
- G 20 सम्मेलन में विश्व के द्वारा सामना की जा रही समस्याओं पर विचार किया जाता है जिसमें इन सरकारों के प्रमुख शामिल होते हैं. साथ ही उन देशों के वित्त और विदेश मंत्री भी अलग से बैठक करते हैं.
- G 20 के पासअपना कोई स्थायी कर्मचारी-वृन्द (permanent staff) नहीं होता और इसकी अध्यक्षता प्रतिवर्ष विभिन्न देशों के प्रमुख बदल-बदल कर करते हैं.
- जिस देश को अध्यक्षता मिलती है वह देश अगले शिखर बैठक के साथ-साथ अन्य छोटी-छोटी बैठकों को आयोजित करने का उत्तरदाई होता है.
- वे चाहें तो उन देशों को भी उन देशों को भी बैठक में अतिथि के रूप में आमंत्रित कर सकते हैं, जो G20 के सदस्य नहीं हैं.
- पहला G 20 सम्मेलन बर्लिन में दिसम्बर 1999 को हुआ था जिसके आतिथेय जर्मनी और कनाडा के वित्त मंत्री थे.
- G-20 के अन्दर ये देश आते हैं –अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका.
- इसमें यूरोपीय संघ की ओर से यूरोपीय आयोग तथा यूरोपीय केन्द्रीय बैंक प्रतिनिधित्व करते हैं.
G-20 व्युत्पत्ति
1999 में सात देशों के समूह G-7 के वित्त मंत्रियों तथा केन्द्रीय बैंक गवर्नरों की एक बैठक हुई थी. उस बैठक में अनुभव किया गया था कि विश्व की वित्तीय चुनौतियों का सामना करने के लिए एक बड़ा मंच होना चाहिए जिसमें विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देशों के मंत्रियों का प्रतिनिधित्व हो. इस प्रकार G-20 का निर्माण हुआ.
इसकी प्रासंगिकता क्या है?
बढ़ते हुए वैश्वीकरण और कई अन्य विषयों के उभरने के साथ-साथ हाल में हुई G20 बैठकों में अब न केवल मैक्रो इकॉनमी और व्यापार पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है, अपितु ऐसे कई वैश्विक विषयों पर भी विचार होता है जिनका विश्व की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जैसे – विकास, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आतंकवाद की रोकथाम, प्रव्रजन एवं शरणार्थी समस्या.
G-20 के कार्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
- वित्तीय भाग (Finance Track)– वित्तीय भाग के अन्दर G 20 देश समूहों के वित्तीय मंत्री, केंद्रीय बैंक गवर्नर तथा उनके प्रतिनिधि शामिल होते हैं. यह बैठकें वर्ष भर में कई बार होती हैं.
- शेरपा भाग (Sherpa Track)– शेरपा भाग में G-20 के सम्बंधित मंत्रियों के अतिरिक्त एक शेरपा अथवा दूत भी सम्मिलित होता है. शेरपा का काम है G20 की प्रगति के अनुसार अपने मंत्री और देश प्रमुख अथवा सरकार को कार्योन्मुख करना.
G-20 का विश्व पर प्रभाव
- G-20 में शामिल देश विश्व के उन सभी महादेशों से आते हैं जहाँ मनुष्य रहते हैं.
- विश्व के आर्थिक उत्पादन का 85% इन्हीं देशों में होता है.
- इन देशों में विश्व की जनसंख्या का 2/3 भाग रहता है.
- यूरोपीय संघ तथा 19 अन्य देशों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 75% हिस्सा है.
- G 20 कि बैठक में नीति निर्माण के लिए मुख्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को भी बुलाया जाता है. साथ ही अध्यक्ष के विवेकानुसार कुछ G20 के बाहर के देश भी आमंत्रित किये जाते हैं.
- इसके अतिरिक्त सिविल सोसाइटी के अलग-अलग क्षेत्रों के समूहों को नीति-निर्धारण की प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाता है.
निष्कर्ष
G-20 एक महत्त्वपूर्ण मंच है जिसमें ज्वलंत विषयों पर चर्चा की जा सकती है. मात्र एक अथवा दो सदस्यों पर अधिक ध्यान देकर इसके मूल उद्देश्य को खंडित करना उचित नहीं होगा. विदित हो कि इस बैठक का उद्देश्य सतत विकास वित्तीय स्थायित्व को बढ़ावा देना है. आज विश्व में कई ऐसी चुनौतियाँ उभर रही हैं जिनपर अधिक से अधिक ध्यान देना होगा और सरकारों को इनके विषय में अपना पक्ष रखना होगा. ये चुनौतियाँ हैं – जलवायु परिवर्तन और इसका दुष्प्रभाव, 5-G नेटवर्क के आ जाने से गति और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के बीच संतुलन निर्माण और तकनीक से संचालित आतंकवाद.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
Topic: Genocide Convention
संदर्भ
रोहिंग्या विद्रोही समूह के हमले के बाद म्यांमार की सेना ने 2017 में रखाइन राज्य में एक सफाया अभियान शुरू किया था। सेना के उत्पीड़न और अत्याचारों से बचने के लिए 700,000 से अधिक रोहिंग्या पड़ोसी देशों बांग्लादेश में पलायन कर गए। म्यांमार के सुरक्षा बलों पर सामूहिक बलात्कार, हत्याओं और हजारों रोहिंग्या घरों में आग लगाने का आरोप लगाया गया है।
- रोहिंग्याओं के साथ इस व्यवहार पर अंतरराष्ट्रीय आक्रोश के बीच, ‘गाम्बिया’ ने नवंबर 2019 में ‘विश्व अदालत’ में मामला दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि म्यांमार द्वारा ‘नरसंहार अभिसमय’ (Genocide Convention) का उल्लंघन किया जा रहा है।
- अब तक, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से दुनिया भर में ‘नरसंहार’ के केवल तीन मामलों – कंबोडिया (1970 के दशक के अंत में), रवांडा (1994), और सेरेब्रेनिका, बोस्निया (1995) – को मान्यता दी गई है।
‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (ICJ) के बारे में:
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (International Court of Justice– ICJ) की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र के एक चार्टर द्वारा की गई थी और इसके द्वारा अप्रैल 1946 में कार्य आरंभ किया गया था।
- यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है तथा हेग (नीदरलैंड) के ‘पीस पैलेस’ में स्थित है।
- यह, संयुक्त युक्त राष्ट्र के छह प्रमुख संस्थानों के विपरीत एकमात्र संस्थान है जो न्यूयॉर्क में स्थित नहीं है।
- यह राष्ट्रों के बीच कानूनी विवादों का निपटारा करता है और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों द्वारा इसके लिए निर्दिष्ट किये गए कानूनी प्रश्नों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार सलाह देता है।
‘नरसंहार अभिसमय’ (Genocide Convention):
नरसंहार के अपराध की रोकथाम और सजा पर अभिसमय (Convention on the Prevention and Punishment of the Crime of Genocide – Genocide Convention) अंतरराष्ट्रीय कानून की एक लखित या लेखपत्र (instrument) है जिसे पहली बार ‘नरसंहार के अपराध’ के लिए संहिताबद्ध किया गया था।
‘नरसंहार अभिसमय’ के अनुसार, नरसंहार एक ऐसा अपराध है, जो युद्ध के समय और साथ ही शांति के समय दोनों में हो सकता है।
- ‘नरसंहार अभिसमय’, 9 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई पहली ‘मानवाधिकार संधि’ थी और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान किए गए अत्याचारों के बाद ‘ऐसा फिर कभी नहीं’ के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- अभिसमय में निर्धारित ‘नरसंहार के अपराध’ की परिभाषा को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यापक रूप से अपनाया गया है, जिसमें 1998 में ‘अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ (International Criminal Court – ICC) की रोम संविधि भी शामिल है।
- रोम संविधि (Rome Statute) के तहत चार प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अपराधों – नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध और आक्रामकता का अपराध – को निर्धारित किया गया है। ये अपराध “सीमाओं के किसी क़ानून के अधीन नहीं होंगे”।
- महत्वपूर्ण रूप से, अभिसमय में नरसंहार के अपराध को रोकने और दंडित करने के लिए उपाय करने का दायित्व पक्षकार देशों पर निर्धारित किया गया है, जिसमें प्रासंगिक कानून बनाना और अपराधियों को दंडित करना शामिल है, “चाहे वे संवैधानिक रूप से जिम्मेदार शासक, सार्वजनिक अधिकारी या निजी व्यक्ति हों” (अनुच्छेद IV) ।
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UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
Topic: National Land Monetisation Corporation – NLMC
संदर्भ
हाल ही में, केंद्र सरकार ने सार्वजनिक उद्यम विभाग के लिए एक संयुक्त सचिव नियुक्त किया है। वह राष्ट्रीय भूमि प्रबंधन निगम (NLMC) के अंतरिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में काम करेंगे।
राष्ट्रीय भूमि प्रबंधन निगम (NLMC)
- NLMC 5000 करोड़ रुपये की प्रारंभिक अधिकृत शेयर पूंजी और 150 करोड़ रुपये की चुकता शेयर पूंजी के साथ भारत सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी होगी।
- इसके निदेशक मंडल में केन्द्र सरकार के अधिकारी और प्रमुख विशेषज्ञ होंगे जो कंपनी का बेहतर तरीके से परिचालन एवं प्रबंधन करेंगे।
- इसके द्वारा बंद हो चुके तथा रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया के अधीन “केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों” (CPSEs) के स्वामित्व वाली अतिरिक्त भूमि और भवनों का मुद्रीकरण किया जाएगा।
- इससे “केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों” को बंद करने की प्रक्रिया में तेजी आएगी, तथा सरकार की स्वामित्व वाले CPSE के रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया आसान हो जाएगी।
- NLMC भूमि मुद्रीकरण के बेहतर तौर-तरीकों को अपनाते हुए कार्य करेगा, तथा परिसंपत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम को लागू करने में सरकार की सहायता करने के साथ तकनीकी परामर्श भी देगा।
आवश्यकता/महत्व
- वर्तमान में, “केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों” (CPSEs) के पास बड़ी मात्रा में गैर-उपयोगी या आंशिक उपयोग वाली भूमि और परिसंपत्तियां मौजूद हैं। इन अतिरिक्त भूमि और गैर-प्रमुख परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण, उनके मूल्य निर्धारण के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- “राष्ट्रीय भूमि प्रबंधन निगम” इन परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करेगा और इस प्रक्रिया में सहयोग करेगा। इससे सरकार को अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा। इसके अलावा निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: मौलिक अधिकार, भारतीय संविधान।
Topic: World Press Freedom Index 2022
संदर्भ
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक, 2022 में भारत को 150वां स्थान प्राप्त हुआ है.
रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स (Reports Without Borders) द्वारा जारी “विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक”, 2022 में 180 देशों की सूची में भारत को 150वां स्थान दिया गया है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रैंकिंग एवं रिपोर्ट के बारे में
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002 से गैर-लाभकारी संगठन “रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स”, “विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक” में 180 देशों में मीडिया की स्वतंत्रता के स्तर का आकलन करता है.
रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स, 2022 में 180 देशों में से भारत 150वें स्थान पर है। भारत, इस सूची में ब्राजील, मेक्सिको और रूस जैसे ‘खराब’ देशों से साथ है। सूचकांक में “नॉर्वे” लगातार 6 वर्षों से शीर्ष स्थान पर बना हुआ है। दक्षिण एशिया में, नेपाल को 76, श्रीलंका को 146, म्यांपार को 140, पाकिस्तान को 157 और बांग्लादेश को 162वें स्थान पर रखा गया है।
रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट में कहा गया है, “सरकार समर्थक मीडिया ने प्रोपगंडा का एक तरीका पैदा किया है, (जबकि) सरकार की आलोचना करने की हिम्मत रखने वाले पत्रकारों को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों द्वारा “राष्ट्र विरोधी” और यहां तक कि “आतंक समर्थक” करार दिया जाता है। यह उन्हें बेहद हिंसक सोशल मीडिया हेट कैंपेन के रूप में सार्वजनिक निंदा के माहौल में खड़ा करता है, जिसमें उन्हें मारने के लिए आह्वान भी शामिल होते हैं, खासकर अगर वे महिलाएं हैं।” पिछले वर्ष दुनिया भर में मारे गए पत्रकारों के मामले में, भारत 5 सबसे खतरनाक देशों में शामिल है।
ध्यातव्य है कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है। प्रेस किसी भी सपाज का आईना होता है। प्रेस की आजादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है, लेकिन वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत का प्रदर्शन लगातार खराब होता जा रहा है।
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
Topic: Beti Bachao Beti Padhao
संदर्भ
‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ (BBBP) योजना का अब पूरे देश में विस्तार किया जाएगा।
- ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ (Beti Bachao, Beti Padhao – BBBP) योजना, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत बालिकाओं की शिक्षा और लिंगानुपात में सुधार पर केंद्रित केंद्र सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है।
- जनवरी 2015 में इस योजना का आरंभ, लिंग-चयनात्मक गर्भपात और बाल लैंगिक अनुपात में कमी से निपटने के उद्देश्य से किया गया था। वर्ष 2011 में बाल लैंगिक अनुपात 918 / 1,000 था।
- यह कार्यक्रम तीन केंद्रीय मंत्रालयों, महिलाओं और बाल विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और मानव संसाधन विकास मंत्रालयों की एक संयुक्त पहल है।
- 8 मार्च 2018 को राजस्थान के झुंझुनू जिले में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ कार्यक्रम को देश के सभी 640 जिलों (जनगणना 2011 के अनुसार) में शुरू किया गया।
हाल ही में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (WCD) द्वारा ‘मिशन शक्ति’ के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।
इन दिशानिर्देशों में शामिल प्रमुख बिंदु:
शून्य-बजट विज्ञापन का लक्ष्य (लगभग 80% फंड का उपयोग BBBP में विज्ञापन के लिए किया गया है)
जमीनी स्तर पर प्रभाव डालने वाली गतिविधियों पर अधिक खर्च को प्रोत्साहित करना जैसे:
- लड़कियों के बीच खेल को बढ़ावा देना;
- आत्मरक्षा शिविर;
- लड़कियों के शौचालय का निर्माण;
- विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन और सैनिटरी पैड उपलब्ध कराना;
- पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PCPNDT) अधिनियम, के बारे में जागरूकता।
नए लक्ष्य:
- जन्म के समय लिंगानुपात में हर साल 2 अंक सुधार करने तथा संस्थागत प्रसव के प्रतिशत में 95% या उससे अधिक सुधार करने का का लक्ष्य हासिल करना।
- स्कूल छोड़ने की दर पर रोक लगाने के लिए माध्यमिक शिक्षा स्तर पर नामांकन में प्रति वर्ष 1 प्रतिशत की वृद्धि और लड़कियों और महिलाओं के कौशल विकास का लक्ष्य हासिल करना।
वन-स्टॉप सेंटर (OSC) को मजबूत बनाना:
- यह घरेलू हिंसा और तस्करी सहित हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं की मदद करने के लिए स्थापित किया गया था।
- 300 वन-स्टॉप सेंटर उन जिलों में स्थापित किए जाएंगे, जहां या तो महिलाओं के खिलाफ अपराधों की उच्च दर है या भौगोलिक दृष्टि से बड़े हैं, जिनमे आकांक्षी जिलों को प्राथमिकता दी जाएगी।
- ‘वन-स्टॉप सेंटर’, निर्भया फंड के तहत अन्य पहलों- जैसे कि महिला हेल्पलाइन, मानव तस्करी रोधी इकाइयां, महिला हेल्प डेस्क, विशेष फास्ट-ट्रैक कोर्ट और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण, आदि- के साथ समन्वय और अभिसरण में मदद करते हैं।
- जरूरतमंद महिलाएं (सभी उम्र की लड़कियां और 12 साल तक के लड़के) – ‘वन-स्टॉप सेंटर’ में पांच दिनों तक अस्थायी आश्रय ले सकते हैं। दीर्घकालीन आश्रय के लिए ‘शक्ति सदन’ के समन्वय से ‘वन-स्टॉप सेंटर’ द्वारा व्यवस्था की जाएगी।
- सुरक्षित मासिक धर्म एवं स्वच्छता प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
- टोल-फ्री, 24 घंटे चलने वाली महिला हेल्पलाइन नंबर 181 की स्थापना।
- नारी अदालत – ग्राम पंचायत स्तर पर महिलाओं को क्षुद्र प्रकृति (उत्पीड़न, तोड़फोड़, अधिकारों में कटौती या अधिकार) के मामलों को हल करने के लिए एक वैकल्पिक शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करने के लिए ‘नारी अदालत’ की स्थापना करना।
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
Topic: I2U2 Summit
संदर्भ
संयुक्त अरब अमीरात ने I2U2 शिखर सम्मेलन में, दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में खाद्य असुरक्षा से निपटने में मदद करने हेतु लिए चार देशों के समूह ‘I2U2’ (भारत-इज़राइल- यूनाइटेड अरब अमीरात -यूएसए) के प्रयासों के हिस्से के रूप में भारत भर में ‘एकीकृत खाद्य पार्कों’ की एक श्रृंखला विकसित करने के लिए 2 बिलियन अमरीकी डालर के निवेश की घोषणा की।
शिखर सम्मलेन के प्रमुख बिंदु:
- यूनाइटेड अरब अमीरात द्वारा भारतीय फूड पार्कों में निवेश: I2U2 नेताओं के अनुसार- अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency – IRENA) का मूल-स्थान और वर्ष 2023 में COP28 का मेजबान ‘संयुक्त अरब अमीरात’ पूरे भारत में एकीकृत फूड पार्कों की एक श्रृंखला विकसित करने के लिए 2 बिलियन अमरीकी डालर का निवेश करेगा।
- अमेरिका और इज़राइल की विशेषज्ञता: अमेरिका और इज़राइली निजी क्षेत्रों को, अपनी विशेषज्ञता और परियोजना की समग्र स्थिरता में योगदान देने वाले अभिनव समाधान प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा।
- इन निवेशों से फसल की पैदावार को अधिकतम करने में मदद मिलेगी और बदले में, दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में खाद्य असुरक्षा से निपटने में मदद मिलेगी।
- गुजरात में हाइब्रिड अक्षय ऊर्जा परियोजना: इसके तहत बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली सहित 300 मेगावाट (मेगावाट) पवन और सौर क्षमता शामिल होगी।
- खाद्य सुरक्षा बढ़ाने हेतु विज्ञान आधारित समाधान: खाद्य सुरक्षा और संधारणीय खाद्य प्रणालियों को बढ़ाने के लिए अधिक नवीन, समावेशी और विज्ञान आधारित समाधान तैयार किए जाएंगे।
- जलवायु पहल के लिए ‘कृषि नवाचार मिशन’ (Agriculture Innovation Mission – AIM for Climate): भारत ने ‘जलवायु पहल के लिए कृषि नवाचार मिशन’ में संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल को शामिल करने में रुचि दिखाई है।
- अब्राहम समझौते के लिए समर्थन: I2U2 नेताओं ने “अब्राहम समझौते (Abraham Accord) के लिए समर्थन और इज़राइल के साथ अन्य शांति और सामान्यीकरण व्यवस्था” की पुष्टि की।
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UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
Topic: Code on Wages
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संसद द्वारा निम्नलिखित चार श्रम संहिताओं को पारित किया जा चुका है:
- मजदूरी संहिता (The Code on Wages)
- औद्योगिक संबंध संहिता (The Industrial Relations Code)
- सामाजिक सुरक्षा संहिता (Social Security Code)
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशाएं संहिता’ (Occupational Safety, Health & Working Conditions Code)
किंतु, इन सहिताओं को अभी तक लागू नहीं किया गया है।
- केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (central trade unions – CTUs) ने अब तक इन संहिताओं के खिलाफ तीन आम हड़तालें की जा चुकी हैं। इनका आरोप है, कि इन संहिताओं के परिणामस्वरूप रोजगार क्षेत्र में जो कुछ भी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा बची है, उसे छीन लिया जाएगा।
- किसान संगठनों द्वारा भी ट्रेड यूनियनों का उनके विरोध में समर्थन किया था।
- नियोक्ता संघों की भी इन संहिताओं के प्रति मिश्रित भावनाएँ हैं, लेकिन उन्होंने आम तौर पर इनका स्वागत किया था।
- सरकार का कहना है कि कार्यान्वयन में देरी राज्यों द्वारा नियम बनाने में देरी के कारण हुई है।
- चूंकि ‘श्रम’ (labour) संविधान की समवर्ती सूची का विषय है। इसलिए राज्यों और केंद्र दोनों को संहिताओं के लिए नियम तैयार करने होंगे।
कार्यान्वयन की प्रक्रिया:
इन कानूनों से संबंधित चिंताएं:
- भारतीय ट्रेड यूनियनों के केंद्र के अनुसार, ये संहिताएँ कार्यबल के एक बड़े हिस्से को सभी श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर देंगी।
- केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का पंजीकरण और कामकाज: भारतीय मजदूर संघ (BMS) औद्योगिक संबंधों संबंधी संहिता – विशेष रूप से केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के पंजीकरण और कामकाज के प्रावधानों पर- चिंता व्यक्त की है ।
- सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क का विस्तार: CII और FCII ने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने और नियोक्ताओं को भी शामिल करके सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क के विस्तार के प्रस्ताव के बारे में आपत्ति व्यक्त की है।
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
Topic: Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA
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हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका के निचने सदन अर्थात ‘यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव’ में एक विधायी संशोधन पारित किया गया है, जिसके तहत चीन जैसे हमलावरों को रोकने में मदद करने के लिए रूस से ‘एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली’ (S-400 missile defence system) की खरीद के लिए दंडात्मक CAATSA प्रतिबंधों से भारत को छूट को मंजूरी दी गयी है।
- कैलिफोर्निया के 17वें विधानमंडल जिले के अमेरिकी प्रतिनिधि ‘रो खन्ना’ ने कहा, “चीन की ओर से बढ़ती आक्रामकता का सामना करने के लिए अमेरिका को भारत के साथ खड़ा होना चाहिए।
- विदित हो कि, अमेरिका द्वारा रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणालियों के एक बैच की खरीद के लिए CAATSA के तहत ‘तुर्की’ पर पहले ही प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं।
CAATSA क्या है?
- CAATSA का पूरा रूप है – Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act अर्थात् प्रतिबंधों के माध्यम से अमेरिका के शत्रुओं से निबटने से सम्बंधित अधिनियम.
- यह अमेरिका का एक संघीय अधिनियम है जिसके द्वारा ईरान उत्तरी कोरिया और रूस पर प्रतिबंध लगाए गए हैं. इस अधिनियम में यह प्रावधान भी है की रूस के साथ रक्षा और गुप्त सूचना प्रक्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण लेनदेन करने वाले देशों पर भी प्रतिबंध लागू किये जा सकते हैं.
- परन्तु भारत के साथ अमेरिका की रक्षा भागीदारी को देखते हुए अमेरिका ने भारत के विरुद्ध CAATSA लगाने नहीं जा रहा है, ऐसा रूस के साथ हुए सौदे पर उसकी नरम प्रतिक्रिया से ज्ञात हो रहा है.
S-400 क्या है?
- यह एक हवाई प्रतिरक्षा प्रणाली है जो आकाश में शत्रु के विमान को धरती पर से ही भेद सकती है.
- यह रूस की सर्वाधिक उन्नत प्रणाली है जो 380 km. दूर स्थित बमवर्षकों, जेटों, मिसाइलों और ड्रोनों को भी नष्ट कर सकती है.
- यह प्रणाली रूस में 2007 से काम कर रही है.
- इस प्रणाली का निर्माण Almaz-Antey ने किया है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
Topic: Shanghai Cooperation Organization – SCO
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शीघ्र ही, चीन एवं रूस समर्थित ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (Shanghai Cooperation Organization – SCO) समूह में, ईरान और बेलारूस के दो नए सदस्यों के रूप में शामिल होने की संभावना है। अगले साल ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (SCO) शिखर सम्मेलन की मेजबानी भारत द्वारा की जाएगी, और वाराणसी को SCO क्षेत्र की पहली “पर्यटन और सांस्कृतिक राजधानी” के रूप में चुना गया है।
प्रमुख बिंदु:
- शीघ्र ही, संबंधित औपचारिकताएं पूरी करने के बाद ‘ईरान’, ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (SCO) एक पूर्ण सदस्य बन जाएगा।
- नए सदस्य देशों के संगठन में शामिल होने संबंधी निर्णय, ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (एससीओ) के सदस्य देशों द्वारा सर्वसम्मति से किया जाता है, ये देश शीघ्र ही ‘बेलारूस’ के SCO में शामिल होने के आवेदन पर निर्णय लेंगे। .
- 2017 के बाद पहला विस्तार: वर्ष 2017 में भारत और पाकिस्तान के समूह में शामिल होने के बाद SCO का यह पहला विस्तार है।
- पश्चिमी देशों के लिए प्रत्युत्तर (Counter to west): चीन और रूस, खासकर यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद–‘शंघाई सहयोग संगठन’ को पश्चिमी देशों के जबाव के रूप में तैयार करना चाहते हैं।
- SCO का बढ़ता अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: एससीओ के महासचिव झांग मिंग के अनुसार- इस दौर का समहू में विस्तार, SCO के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय प्रभाव, SCO चार्टर के सिद्धांतों की व्यापक रूप से स्वीकारोक्ति को दर्शाता है।
- NATO से भिन्नता: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ का विस्तार, NATO के विस्तार पूर्णतयः भिन्न है, क्योंकि NATO गुटनिरपेक्ष पर आधारित एक सहकारी संगठन है और किसी तीसरे पक्ष को लक्षित नहीं करता है, जबकि NATO शीत युद्ध की सोच पर आधारित है।
- अन्य देशों की कीमत पर सुरक्षा: SCO का मानना है कि किसी को अन्य देशों की कीमत पर अपनी सुरक्षा का निर्माण नहीं करना चाहिए, जबकि नाटो अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए नए दुश्मन बना रहा है।
- अधिक निष्पक्ष और उचित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था: SCO सदस्य देशों द्वारा इस बारे में विचार किया जा रहा है, कि अंतरराष्ट्रीय स्थितियों में हो रहे गहन परिवर्तनों के प्रति अनुकूलन किस प्रकार स्थापित किया जाए ताकि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को अधिक निष्पक्ष और उचित बनाया जा सके।
- कनेक्टिविटी और उच्च दक्षता वाले परिवहन गलियारों पर समझौते: ‘समरकंद शिखर सम्मेलन’ में कनेक्टिविटी और उच्च दक्षता वाले परिवहन गलियारों पर समझौते और सदस्य देशों के बीच ‘स्थानीय मुद्रा निपटान’ के लिए एक रोडमैप तैयार होने की उम्मीद है।
शंघाई सहयोग संगठन क्या है?
- शंघाई सहयोग संगठन एक राजनैतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग संगठन है जिसकी शुरुआत चीन और रूस के नेतृत्व में यूरेशियाई देशों ने की थी. दरअसल इसकी शुरुआत चीन के अतिरिक्त उन चार देशों से हुई थी जिनकी सीमाएँ चीन से मिलती थीं अर्थात् रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान. इसलिए इस संघठन का प्राथमिक उद्देश्य था कि चीन के अपने इन पड़ोसी देशों के साथ चल रहे सीमा-विवाद का हल निकालना. इन्होंने अप्रैल 1996 में शंघाई में एक बैठक की. इस बैठक में ये सभी देश एक-दूसरे के बीच नस्ली और धार्मिक तनावों को दूर करने के लिए आपस में सहयोग करने पर राजी हुए. इस सम्मेलन कोशंघाई 5 कहा गया.
- इसके बाद 2001 में शंघाई 5 में उज्बेकिस्तान भी शामिल हो गया. 15 जून 2001 को शंघाई सहयोग संगठन की औपचारिक स्थापना हुई.
शंघाई सहयोग संगठन के मुख्य उद्देश्य
शंघाई सहयोग संगठन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
- सदस्यों के बीच राजनैतिक, आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को बढ़ाना.
- तकनीकी और विज्ञान क्षेत्र, शिक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्र, ऊर्जा, यातायात और पर्यटन के क्षेत्र में आपसी सहयोग करना.
- पर्यावरण का संरक्षण करना.
- मध्य एशिया में सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए एक-दूसरे को सहयोग करना.
- आंतकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी और साइबर सुरक्षा के खतरों से निपटना.
SCO का विकास कैसे हुआ?
- 2005 में कजाकिस्तान के अस्ताना में हुए SCO के सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने पहली बार इसमें हिस्सा लिया.
- 2016 तक भारत SCO में एक पर्यवेक्षक देश के रूप में सम्मिलित था.
- भारत ने सितम्बर 2014 में शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता के लिए आवेदन किया.
- जून 2017 में अस्ताना में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को भी औपचारिक तौर पर पूर्ण सदस्यता प्रदान की गई.
- वर्तमान में SCO की स्थाईसदस्य देशों की संख्या 8 है – चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान.
- जबकि चार देश इसके पर्यवेक्षक (observer countries) हैं – अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया.
- इसके अलावा SCO में छह देश डायलॉग पार्टनर (dialogue partners) हैं – अजरबैजान, आर्मेनिया, कम्बोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका.
SCO क्यों महत्त्वपूर्ण है?
SCO ने संयुक्त राष्ट्र संघ से भी अपना सम्बन्ध कायम किया है. SCO संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पर्यवेक्षक है. इसने यूरोपियन संघ, आसियान, कॉमन वेल्थ और इस्लामिक सहयोग संगठन से भी अपने सम्बन्ध स्थापित किये हैं. सदस्य देशों के बीच समन्वय के लिए 15 जनवरी, 2004 को SCO सचिवालय की स्थापना की गई. शंघाई सहयोग संगठन के महत्त्व का पता इसी बात से चलता है कि इसके आठ सदस्य देशों में दुनिया की कुल आबादी का करीब आधा हिस्सा रहता है. इसके साथ-साथ SCO के सदस्य देश दुनिया की 1/3 GDP और यूरेशिया (यूरोप+एशिया) महाद्वीप के 80% भूभाग का प्रतिनिधित्व करते हैं.
इसके आठ सदस्य देश और 4 पर्यवेक्षक देश दुनिया के उन क्षेत्रों में आते हैं जहाँ की राजनीति विश्व राजनीति पर सबसे अधिक असर डालती हैं. श्रम या मानव संसाधन के लिहाज से भारत और चीन खुद को संयुक्त रूप से दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति कह सकते हैं. IT, इंजीनियरिंग, रेडी-मेड गारमेंट्स, मशीनरी, कृषि उत्पादन और रक्षा उपकरण बनाने के मामले में रूस, भारत और चीन दुनिया के कई विकसित देशों से आगे है. ऊर्जा और इंजीनियरिंग क्षेत्र में कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान जैसे मध्य-एशियाई देश काफी अहमियत रखते हैं. इस लिहाज से SCO वैश्विक व्यापार, अर्थव्यवस्था और राजनीति पर असर डालने की क्षमता रखता है. हालाँकि इन देशों के बीच आपसी खीचतान भी रही है. ये सभी देश आतंकवाद से पीड़ित भी रहे हैं. ये देश एक-दूसरे की जरूरतें पूर्ण करने में सक्षम हैं. SCO में शामिल देश रक्षा और कृषि उत्पादों के सबसे बड़ा बाजार हैं. IT, electronics और मशीनरी उत्पादन में इन देशों ने हाल के वर्षों में काफी प्रगति की है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
Topic: India Rankings 2022 of Higher Educational Institutes
संदर्भ
हाल ही में, केंद्रीय शिक्षा मंत्री द्वारा ‘उच्च शिक्षण संस्थानों की इंडिया रैंकिंग 2022’ (India Rankings 2022 of Higher Educational Institutes) जारी की गयी है।
- शिक्षा मंत्रालय के ‘राष्ट्रीय संस्थानिक रैंकिंग फ्रेमवर्क’ (National Institutional Ranking Framework – NIRF, 2022) के अनुसार, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), मद्रास ने लगातार चौथे वर्ष समग्र श्रेणी में और लगातार सातवें वर्ष इंजीनियरिंग में अपना पहला स्थान बरकरार रखा है।
- NIRF, 2022 के अनुसार- आईआईटी मद्रास, देश का शीर्ष उच्च शिक्षण संस्थान है, जिसके बाद भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु और आईआईटी बॉम्बे का स्थान हैं।
- यह NIRF का लगातार सातवां संस्करण है। यह कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों को रैंक करता है और उन सभी की समग्र रैंकिंग भी प्रदान करता है।
- इसके तहत, संस्थानों को इंजीनियरिंग, प्रबंधन, फार्मेसी, कानून, चिकित्सा, वास्तुकला और दंत चिकित्सा जैसे सात विषय डोमेन में भी रैंक दी गयी है।
संस्थानों की रैंकिंग हेतु निम्नलिखित मापदंडों का उपयोग किया जाता है:
- शिक्षण, अध्ययन एवं संसाधन (Teaching, Learning and Resources)
- अनुसंधान एवं व्यावसायिक क्रियाएं (Research and Professional Practices)
- स्नातक परिणाम (Graduation Outcomes)
- पहुँच एवं समावेशिता (Outreach and Inclusivity)
- धारणा (Peer Perception)
महत्वपूर्ण बिंदु:
- सरकार द्वारा संचालित संस्थानों के लिए अनिवार्य: शुरुआती वर्षों के दौरान NIRF में भागीदारी स्वैच्छिक रखी गयी थी, फिर वर्ष 2018 में इसे सभी सरकारी शिक्षण संस्थानों के लिए अनिवार्य कर दिया गया।
- सभी के लिए अनिवार्य: शिक्षा मंत्री के अनुसार, हर उच्च शिक्षा संस्थान का प्रत्यायन और मूल्यांकन अनिवार्य किया जाएगा और सभी संस्थानों को NIRF रैंकिंग प्रणाली का हिस्सा बनना होगा।
- NAAC और NBA का विलय: दो प्रत्यायन प्रणालियाँ – ‘संस्थागत प्रत्यायन के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद’ (National Assessment and Accreditation Council for institutional accreditation – NAAC) और ‘कार्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड’ (National Board of Accreditation – NBA) – का विलय किया जाएगा और सरकारी धन-राशि प्राप्त करने के पात्र होने के लिए संस्थानों के पास NAAC मान्यता या NIRF रैंक होना चाहिए।
- स्कूलों की प्रत्यायन व्यवस्था: देश में स्कूलों की प्रत्यायन की व्यवस्था होगी।
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: वैधानिक निकाय, अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दे.
Topic: Status of Minorities in India
संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि धार्मिक और भाषायी समुदायों की अल्पसंख्यक स्थिति “राज्य-निर्भर” है।
संबंधित याचिका
- याचिका में शिकायत की गई है कि लद्दाख, मिज़ोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, पंजाब और उत्तर-पूर्वी राज्यों मेंयहूदी, वहाबी तथा हिंदू धर्म के अनुयायी वास्तविक अल्पसंख्यक हैं।
- हालाँकिवे राज्य स्तर पर ‘अल्पसंख्यक’ की पहचान न होने के कारण अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना एवं उनका प्रशासन नहीं कर सकते हैं।
- यहाँहिंदू जैसे धार्मिक समुदाय सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप से गैर-प्रमुख और कई राज्यों में संख्या में न्यून हैं।
निर्णय
- भारत का प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी राज्य में अल्पसंख्यक हो सकता है।
- एक मराठी अपने गृह राज्य महाराष्ट्र के बाहर अल्पसंख्यक हो सकता है।
- इसी तरह एक कन्नड़ भाषी व्यक्ति कर्नाटक के अलावा अन्य राज्यों में अल्पसंख्यक हो सकता है।
- कोर्ट ने संकेत दिया किएक धार्मिक या भाषायी समुदाय जो किसी विशेष राज्य में अल्पसंख्यक है, संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थानों को संचालित करने के अधिकार का दावा कर सकता है।
भारत सरकार द्वारा अधिसूचित अल्पसंख्यक:
- वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (C) के तहत अधिसूचित समुदायों को ही अल्पसंख्यक माना जाता है। टीएमए पाई मामले में सर्वोच्च न्यायलय के 11 न्यायाधीशों की बेंच के फैसले, जिसने स्पष्ट रूप से निर्धारित किया कि भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यकों की पहचान राष्ट्रीय स्तर के बज़ाय राज्य स्तर पर की जानी चाहिये, के बावजूद राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) अधिनियम, 1992 की धारा 2 (C) ने अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने के लिये केंद्र को“बेलगाम शक्ति” दी।
- NCM अधिनियम, 1992 केअधिनियमन के साथ ही वर्ष 1992 में MC वैधानिक निकाय बन गया, जिसका नाम बदलकर NCM कर दिया गया।
- वर्ष 1993 में पहला सांविधिक राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया गया था औरपाँच धार्मिक समुदाय अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसी को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया था।
- वर्ष 2014 मेंजैनियों को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना
- वर्ष1978 में गृह मंत्रालय द्वारा पारित एक संकल्प में अल्पसंख्यक आयोग (Minorities Commission- MC) की स्थापना की परिकल्पना की गई थी.
- वर्ष1984 में, अल्पसंख्यक आयोग को गृह मंत्रालय से पृथक् कर दिया गया और इसे नव-निर्मित कल्याण मंत्रालय (Ministry of Welfare) के अधीन रखा गया, जिसने वर्ष 1988 में भाषाई अल्पसंख्यकों को आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया.
- वर्ष1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के अधिनियमन के साथ ही अल्पसंख्यक आयोग एक सांविधिक/वैधानिक (Statutory) निकाय बन गया और इसका नाम परिवर्तित कर के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) कर दिया गया.
- वर्ष1993 में पहले वैधानिक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया और पाँच धार्मिक समुदायों-मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया.
- वर्ष2014 में जैन धर्म मानने वालों को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप,नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे.
Topic: National Symbol of India
संदर्भ
भारत के प्रधानमंत्री ने हाल ही में निर्माणाधीन नए संसद भवन के शीर्ष पर 6.5 मीटर ऊँचे राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किया।
भारत का राष्ट्रीय चिह्न
- भारत का राज्य प्रतीक भारत गणराज्य का राष्ट्रीय प्रतीक है और इसका उपयोग केंद्र सरकार, कई राज्य सरकारों और अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
- भारत का राजचिह्न (राष्ट्रीय प्रतीक) सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तंभ की अनुकृति है।
- मूल रूप में इसमें चार शेर हैं जो चारों दिशाओं की ओर मुँह किये खड़े हैं। इसके नीचे एक गोल आधार है जिस पर हाथी, घोड़ा, एक बैल और एक सिंह बने हैं जो दौड़ती हुई मुद्रा में है। ये गोलाकार आधार खिले हुए उल्टे लटके कमल के रूप में है।
- इसे एकाश्म पत्थर को तराशकर बनाया गया है तथा इसके शीर्ष पर धम्म चक्र सुशोभित है।
- राष्ट्र के प्रतीक में इसे 26 जनवरी, 1950 में भारत सरकार द्वारा अपनाया गया था, इसमें केवल तीन सिंह दिखाई देते हैं और चौथा छिपा हुआ है जो दिखाई नहीं देता है।
भारत के राष्ट्रीय प्रतीक की मुख्य विशेषताएँ
- भारत का राज्य चिह्नभारत सरकार की आधिकारिक मुहर है।
- चारजानवरों को चार दिशाओं का प्रतिनिधित्त्व करते हुए दर्शाया गया है:
एक दौड़ता हुआ घोड़ा: पश्चिम दिशा में: घोड़ा कंठक घोड़े का प्रतिनिधित्त्व करता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि बुद्ध ने अपने राजसी जीवन को छोड़ने के लिये इसका इस्तेमाल किया था।
एक हाथी: पूर्व में: हाथी रानी माया के सपने को दर्शाता है, जहाँ एक सफेद हाथी उसके गर्भ में प्रवेश करता है।
एक बैल: दक्षिण में: बैल वृषभ राशि चक्र के संकेत को दर्शाता है, जिस महीने में बुध का जन्म हुआ था।
एक शेर: उत्तर में : सिंह ज्ञान की प्राप्ति को दर्शाता है।
ऐसा लगता है कि जानवर अनंत काल तक अस्तित्व का पहिया घुमाते हुए एक-दूसरे का अनुसरण करते हैं। मुंडक उपनिषद से सत्यमेव जयते शब्द जिसका अर्थ है ‘सत्य की ही जीत होती है (Truth Alone Triumphs)’, देवनागरी लिपि में शीर्ष फलक के नीचे अंकित हैं।
चार सिंह सभी दिशाओं में धर्म का प्रसार करने वाले बुद्ध के प्रतीक हैं। यह बुद्ध द्वारा पहले धर्मोपदेश की स्मृति में बनाया गया था जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन के नाम से जाना जाता है।
कानूनी प्रावधान:
भारत का राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम,2005 और भारत का राज्य प्रतीक (उपयोग का विनियमन) नियम, 2007:
इन नियमों के अनुसार, भारत के राष्ट्रीय प्रतीक का उपयोग केवल भारत के राज्य प्रतीक (अनुचित उपयोग का निषेध) अधिनियम,2005 के प्रावधानों के अनुसार किया जा सकता है और कोई भी अनधिकृत उपयोग कानून के तहत दंडनीय है।
कानून का उल्लंघन करने पर 2 साल तक की सज़ा या 2000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
उपयोग:
- केंद्र सरकार, राज्य सरकार और अन्य सरकारी एजेंसियों केलेटरहेड पर।
- भारत की मुद्रा पर।
- भारत के पासपोर्ट पर।
- राष्ट्रीयध्वज में अशोक चक्र राष्ट्रीय प्रतीक से लिया गया है।
इमारतों पर:
- राष्ट्रपति भवन
- संसद भवन
- सर्वोच्चन्यायालय
- उच्चन्यायालय
- केंद्रीय सचिवालय
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सचिवालय भवन
- राजभवन/राजनिवास
- राज्य विधानमंडल
- विदेशों में भारत के राजनयिक मिशन का परिसर
- उनकी मान्यता वाले देशों में मिशन प्रमुखों का निवास
- विदेशों में भारतीय वाणिज्य दूतावासों के भवनों के प्रवेश द्वार पर
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