Sansar डेली करंट अफेयर्स, 30 August 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 30 August 2019


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : Talking trade with the EU

संदर्भ

अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध के कारण आज यह आवश्यक हो गया है कि भारत यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement – FTA) कर ले.

यह मुक्त व्यापार समझौता अत्यावश्यक क्यों?

  • आज वैश्विक व्यापार का ढाँचा ध्वस्त हो रहा है और संरक्षणवाद उभार पर है. इसलिए यह आवश्यक प्रतीत होता है कि द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों पर नए सिरे से ध्यान दिया जाए.
  • बड़ी आर्थिक शक्तियों में से भारत ही एक ऐसा देश बचा है जिसका अपने किसी बड़े व्यापार प्रतिभागी के साथ मुक्त व्यापार समझौता हो. भारत का इस विषय में यूरोपीय संघ, अमेरिका, चीन और खाड़ी देशों के साथ कोई समझौता नहीं है. यह स्थिति ठीक नहीं है. यदि भारत यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर लेता है तो उसके जोखिम में कमी आ सकती है.
  • यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापार प्रतिभागी है जहाँ इस देश का 20% निर्यात होता है. यदि इसे अपने निर्यात की मात्रा बनाए रखना है तो मुक्त व्यापार जैसे समझौते आवश्यक हो जाएँगे.
  • अटलांटिक महासागर के दोनों ओर होने वाले व्यापार की व्यवस्था ध्वस्त हो रही है और यूरोपीय संघ चीन पर आर्थिक रूप से अतिशय निर्भर हो चला है. इन कारणों से यूरोपीय संघ अन्य देशों के साथ मिलकर मुक्त व्यापार करने को इच्छुक हो सकता है. भारत को इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिए.
  • यूरोपीय संघ की व्यापार और राजनीतिक व्यवस्थाएँ भारत की ऐसी व्यवस्थाओं से मिलती-जुलती है. दोनों के यहाँ वृद्धि, निजता और मानकों में संतुलन रखा जाता है और प्रजातांत्रिक पारदर्शिता भी है. नई तकनीकों जैसे 5G, कृत्रिम बुद्धि आदि के विषय में दोनों जगह अनेक हितधारकों की प्रतिभागिता देखी जाती है. इसलिए यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता करना सरल और लाभदायक होगा.

भारत का दृष्टिकोण क्या होना चाहिए?

यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता करते समय भारत को आर्थिक लागत-लाभ विश्लेषण (economic cost-benefit analysis) से ऊपर उठाना चाहिए और इसके दीर्घकालिक रणनीतिक लाभों को समझना चाहिए.

इस विषय में भारत को सुरक्षा से आगे की सोचना चाहिए और इस दिशा में प्रथम पहल व्यापार एवं तकनीक के व्यवसाय से करनी चाहिए.


GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Giving wings to better air connectivity

संदर्भ

भारत सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) की प्रगति पूर्णतया संतोषजनक नहीं रही है.

ऐसा क्यों हो रहा है?

  • नगर विमानान केंद्र का विषय है. कुछ ही राज्यों में नगर विमानन विभाग काम कर रहे हैं. इसलिए राज्यों की इस योजना के अंतर्गत सक्रिय भूमिका नहीं होती है. चाहे हवाई अड्डे बनाने हों अथवा हवाई सम्पर्क को बढ़ाना हो, इन सब के लिए राज्य केंद्र सरकार का मुँह देखते हैं.
  • विमान ईंधन (Aviation Turbine Fuel – ATF) किसी भी हवाई सेवा पर लगने वाले व्यय का 40% होता है. राज्य ऊपर से इसपर मूल संवर्धित कर (VAT) लगाते हैं जो 25% तक होता है. इस प्रकार उड़ान योजना की प्रगति कुंठित हो जाती है.
  • हवाई अड्डों के निर्माण के लिए भूमि के अधिग्रहण की आवश्यकता होती है. ऐसी भूमि या तो कम होती है या इसमें बहुत अधिक पूँजी लगती है.

उड़ान योजना की सफलता के लिए क्या करना चाहिए?

  • ATI पर राहत : ATF पर हवाई सेवा उद्योग को राहत मिलनी चाहिए क्योंकि इस उद्योग में लाभ का मार्जिन बहुत कम होता है. राज्य इस पर अपना VAT कम कर दे तो उनको राजस्व की क्षति हो सकती है, परन्तु यह क्षति क्षेत्र में वायुयानों के आने-जाने से उत्पन्न बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधियों से पूरी हो सकती है.
  • राज्यों द्वारा हवाई अड्डों का निर्माण और प्रबंधन : राज्य चाहें तो भारतीय वायुपत्तन प्राधिकरण (Airports Authority Of India – AAI) के सहयोग से अथवा अपने दम पर उन क्षेत्रीय हवाई अड्डों को विकसित कर सकते हैं जो पहले से अस्तित्व में हैं.
  • PPP मॉडल : हवाई अड्डों के निर्माण में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के मॉडल अपनाए जा सकते हैं.
  • बिना तामझाम वाले हवाई अड्डों का निर्माण : बिना तामझाम वाले हवाई अड्डे का नवाचार मॉडलों के आधार पर निर्माण करने से सम्बन्धित क्षेत्र की सम्पर्कशीलता बढ़ेगी और लोग विमानयात्रा की ओर झुकेंगे.
  • सुदूर क्षेत्रों में हवाई सेवा : राज्य और केंद्र सरकार हवाई सेवा देने वाली कम्पनियों को सुदूर क्षेत्रों को अपने नेटवर्क में लाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है.
  • छोटे विमान संचालकों को प्रोत्साहन : निर्माण से जुड़ी कमियों और उपयुक्त धरातल के अभाव में छोटे-मोटे जहाज चलाने वालों को अपनी सेवा देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है.
  • जिन क्षेत्रों में सड़क या रेल पहुँचाना कठिन है उन्हें वायु मार्ग से जोड़ा जाना चाहिए.
  • हवाई सम्पर्क बढ़ाने के लिए राज्य अपनी सम्बंधित योजनाओं, जैसे – पर्यटन, स्वास्थ्य और बीमा को इससे समेकित कर सकते हैं.
  • मध्यम श्रेणी का भारतीय वर्ष में कम से कम एक बार हवाई जहाज पर चढ़े, यह सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को चाहिए कि वे इसके लिए अनुकूल व्यावसायिक वातावरण का निर्माण करें.

उड़ान योजना क्या है?

UDAN भारत सरकार की एक मूर्धन्य योजना है जिसका अनावरण अप्रैल, 2017 में किया गया था. यह योजना जून, 2016 में लागू राष्ट्रीय नागर विमानन नीति (National Civil Aviation Policy – NCAP) का एक प्रमुख अवयव है. UDAN क्षेत्रीय विमानन बाजार को विकसित करने के लिए एक नवोन्मेषी योजना (innovative scheme) है. यह योजना बाजार तंत्र पर आधारित है जिसके अंतर्गत वायुयान सेवादाताओं के द्वारा सीटों के लिए सब्सिडी हेतु बोली लगाई जाएगी. यह योजना इस प्रकार की अभी तक की पहली योजना है जो आर्थिक रूप से आम नागरिकों के लिए व्यवहार्य और लाभदायक है. इससे विश्व स्तर पर क्षेत्रीय मार्गों पर सस्ती उड़ानें भरी जा सकेंगी.

चुने गए एयरलाइन ऑपरेटरों को सामान्य जहाज़ों में न्यूनतम 9 और अधिकतम 40 उड़ान सीटें रियायती दरों पर देनी होंगी तथा हेलीकाप्टरों में न्यूनतम 5 और अधिकतम 13 सीटों का प्रावधान करना होगा. सामान्य जहाज़ों और हेलिकोप्टरों में क्रमशः लगभग एक घंटे और आधे घंटे की यात्रा के लिए आरक्षित सीटों का अधिकतम किराया 2,500 रु. तय किया गया है.

उड़ान योजना के लाभ

  • इस योजना के द्वारा नागरिकों को वायुयात्रा की कनेक्टिविटी मिलेगी
  • यह सभी हितधारकों के लिए एक स्पर्द्धा की स्थिति प्रदान करेगा
  • रोजगार के अवसर प्रदान करेगा
  • क्षेत्रीय हवाई संपर्क और बाजार का विस्तार होगा
  • राज्य सरकारों को दूरदराज के क्षेत्रों के विकास, व्यापार और वाणिज्य के विस्तार और पर्यटन की वृद्धि का लाभ प्राप्त होगा.

GS Paper 3 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Conservation related issues.

Topic : Draft National Resource Efficiency Policy

संदर्भ

राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता नीति (Draft National Resource Efficiency Policy – NREP) प्रारूप को लागू करने में हुई प्रगति को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस पर मन्तव्य मानने की समय-सीमा को एक महीना बढ़ा दिया है.

इस नीति का उद्देश्य संसाधनों के उपयोग को इस प्रकार कार्यक्षम बनाना है कि पर्यावरण पर न्यूनतम दुष्प्रभाव पड़े.

राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता नीति के मुख्य तथ्य

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अन्दर एक राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता प्राधिकरण (National Resource Efficiency Authority – NREA) का गठन किया जाएगा.
  • इस प्राधिकरण को सहयोग देने के लिए एक अन्तर-मंत्रालयी राष्ट्रीय संशोधन कार्यक्षमता बोर्ड (Inter-Ministerial National Resource Efficiency Board) बनाया जाएगा.
  • प्रारूप में प्रस्ताव है कि पुनः चक्रित सामग्रियों (recycled materials), लघु एवं मध्यम उद्यमों को दिए जाने वाले हरित ऋणों एवं कचरा निपटाने संयंत्रों के लिए दिए जाने वाले कम ब्याज वाले ऋणों के लिए कर का लाभ दिया जाएगा.
  • नई नीति में Material Recovery Facilities (MRF) स्थापित करने का प्रावधान है.
  • निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं को कहा जाएगा कि वे पुनः चक्रित अथवा नवीकरणीय सामग्रियों का अधिक से अधिक प्रयोग करें.
  • राष्ट्रीय नीति के पीछे मूलभूत विचार यह है कि देश की अर्थव्यवस्था को चक्रीय अर्थव्यवस्था (circular economy) के रूप में ढाला जाए जहाँ उपलब्ध संसाधनों का उपयोग अधिक सक्षमतापूर्वक होवे.
  • इसके लिए प्रारूप में 6R के सिद्धांत को अपनाने की बात कही गई है. यहाँ पर 6R का अभिप्राय है – Reduce (घटाना), Reuse (फिर से प्रयोग करना), Recycle (पुनः चक्रित करना), Redesign (नए सिरे से रूपांकित करना), Re-manufacture (दुबारा बनाना) और Refurbish (नया रूप देना).
  • नीति में ‘green public procurement’ पर बल दिया गया है. इसका अभिप्राय है कि ऐसे उत्पाद ख़रीदे जाएँ जिनसे पर्यावरण को कम क्षति पहुँचती हो, जैसे – पहले से उपयोग किये गये कच्चे माल और स्थानीय स्तर से प्राप्त माल.
  • प्रस्तावित नीति में देश को Zero Landfill दृष्टिकोण अपनाने को कहा गया है. इसका अर्थ यह हुआ कि बड़ी मात्रा में कचरा उत्पन्न करने वालों को सामग्रियों का आदर्शतम उपयोग करने के साथ-साथ कचरे का बेहतर प्रबंधन भी करना चाहिए.

राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता प्राधिकरण (NREA) के कार्य

  • विभिन्न प्रक्षेत्रों के द्वारा सामग्रियों के पुनः चक्रण, फिर से प्रयोग और कम से कम कचरा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यक्षम रणनीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन करना.
  • पुराने कच्चा माल को फिर से उपयोग करते समय गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए मानक तैयार करना.
  • विभिन्न प्रक्षेत्रों और अलग-अलग क्षेत्रों में हो रहे सामग्रियों के उपयोग, उत्पन्न हो रहे कचरे, पुनः चक्रित वस्तुओं और कचरा फेके जाने के बारे में डेटाबेस संधारित करना और कार्यान्वयन पर नजर रखना.

संसाधन कार्यक्षमता (Resource Efficiency) किसे कहते हैं?

थोड़ी से थोड़ी सामग्री से अधिक से अधिक बनाना ही संसाधन कार्यक्षमता कहलाता है. व्यवहार में इस नीति को अपनाने से पर्यावरण पर कम दुष्प्रभाव पड़ता है और समाज पर इसका बोझ कम होता है.

इसमें कचरे को संसाधन के रूप में ढाल दिया जाता है और अर्थव्यवस्था को चक्रीय रूप दिया जाता है. वस्तुतः संसाधन कार्यक्षमता और चक्रीय अर्थव्यवस्था दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. साथ ही ये सतत विकास के प्रधान सिद्धांत भी हैं.

भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  • भारत में प्रति एकड़ 1,580 टन संसाधनों का दोहन होता है जबकि विश्व के लिए यह औसत 450 टन/एकड़ है. फिर भी भारत में उत्पादकता कम ही रहती है.
  • देश में पानी तेजी से घट रहा है और वायु की गुणवत्ता भी बिगड़ रही है जिस कारण मानव जीवन के समक्ष खतरा उत्पन्न हो गया है.
  • भारत में 147 मिलियन हेक्टेयर भूभाग में व्यापक मृदा क्षरण देखा जाता है.
  • कुछ सर्वाधिक आवश्यक सामग्रियों में से लगभग 100% के लिए भारत आयात पर निर्भर है, जैसे – कोबाल्ट, तांबा, लिथियम आदि जो उन्नत तकनीक से जुड़े उद्योगों के लिए आवश्यक हैं.
  • देश में प्रसंस्कृत होने वाले कच्चे तेल का 80% विदेश से आता है. कोकीन कोयला का 85% ही आयात पर निर्भर है.
  • अधात्विक खनिजों का खनन भी चुनौतियों से भरा हुआ है.
  • देश में रिसायकिलिंग की दर 20-25% है जबकि यूरोप के विकासशील देशों में यह प्रतिशत 70 है. 2030 तक भारत में भौतिक वस्तुओं की खपत दुगुनी हो जायेगी. उस समय रिसायकिलिंग की दशा और भी बुरी हो सकती है.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian Economy and issues relating to planning, mobilization of resources, growth, development and employment.

Topic : RBI Panel on Economic Capital Framework

संदर्भ

रिज़र्व बैंक में पूँजी भंडार कितना हो इस विषय में भूतपूर्व रिज़र्व बैंक गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में गठित पैनल द्वारा दिए गये सुझाव को दृष्टि में रखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने सरकार को 1.76 लाख करोड़ रु. का लाभांश एवं अधिकाई भंडार हस्तांतरित करने का निर्णय लिया है.

RBI Panel on Economic Capital Framework

मामला क्या है?

राजस्व संग्रह में गिरावट को देखते हुए भारत सरकार इस बात पर बल देती रही है कि रिज़र्व बैंक को चाहिए कि वह सरकार को अपना अधिकाई भण्डार सौंप दे. सरकार का उद्देश्य है कि वह इस पैसे से अपने राजस्व घाटा के लक्ष्य को पूरा करे और कमजोर बैंकों को इससे पूँजी देकर अधिक ऋण देने में समर्थ बनाए. इसके अतिरिक्त इस पैसे को सरकार कल्याण कार्यक्रमों में भी लगाना चाहती है.

आर्थिक पूँजी ढाँचा क्या है?

  • आर्थिक पूँजी ढाँचा उस पूँजी को कहते हैं जिसकी आवश्यकता किसी केन्द्रीय बैंक को जोखिम से बचने के लिए रहती है.
  • यह पूँजी ऐसे जोखिमों अथवा घटनाओं अथवा क्षतियों से निबटने के लिए रखी जाती है जिनका पूर्वानुमान वर्तमान में नहीं होता है.

पूँजी माँगने के पूछे सरकार के तर्क

  • सरकार का कहना है कि भारतीय रिज़र्व बैंक की पूँजीगत आवश्यकता का निर्धारण पारम्परिक रूप से जोखिम के आकलन के आधार पर किया जाता है और यदि इसकी नए सिरे से समीक्षा की जाए तो उसके पास आवश्यकता से अतिरिक्त पूँजी मिलेगी. यदि RBI इस अतिरिक्त पूँजी को मुक्त कर दे तो सरकार उसका अपने ढंग से सदुपयोग कर पाएगी. भारत सरकार का कहना है कि RBI 27% आरक्षित पूँजी भंडार अपने पास रखती है, दूसरी ओर कई ऐसे देश है जहाँ यह प्रतिशत 13 या 14 है, जैसे अमेरिका और इंग्लैंड में.
  • कुछ अर्थशास्त्री पहले से कहते आ रहे हैं कि RBI को अपनी अतिरिक्त पूँजी सरकार को दे देनी चाहिए जिससे वह उस राशि का फलदायी उपयोग कर सके. विदित हो कि 2013 में मालेगम समितिने यह अनुमान लगाया था कि भारतीय रिज़र्व बैंक के पास 40 लाख करोड़ रू. की अधिकाई है.
  • यदि सरकार को RBI की अधिकाई पूंजी एकमुश्त मिल जाए तो वह इसका उपयोग राजस्व घाटे से सम्बंधित लक्ष्य को प्राप्त करने, कमजोर बैंकों kको ऋण देने हेतु पूँजी उपलब्ध कराने और कल्याणकारी कार्यक्रमों में धनराशि उपलब्ध कराने में करेगी.

क्या RBI अपनी अधिकाई आय अथवा लाभ पर कर देता है?

नहीं. इसका कानून यह प्रावधान करता है कि इसे आयकर अथवा सम्पत्ति कर समेत किसी अन्य कर के भुगतान से छूट मिली हुई है.


Prelims Vishesh

Mars solar conjunction :-

  • अगस्त 28 और सितम्बर 7, 2019 के बीच मंगल और पृथ्वी सूर्य के विपरीत दिशा में होंगे. इस स्थिति को मंगल सूर्य सहयोग (Mars solar conjunction) कहा जाता है.
  • यह सहयोग हर दूसरे वर्ष होता है.
  • NASA का अनुमान है कि उसके द्वारा छोड़े गये Curiosity rover और InSight lander की गतिविधियों पर इस सहयोग का असर होगा क्योंकि इस समय सूर्य से निकलने वाले गर्म और आयनीकृत गैस से रेडियो सिग्नल प्रभावित हो जाते हैं.

Community Radio Sammelan :-

  • सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय नई दिल्ली में 7वाँ सामुदायिक रेडियो सम्मलेन करने जा रहा है जिसमें देश भर के सामुदायिक रेडियो केंद्र के प्रतिनिधि शामिल होंगे.
  • इस बार की थीम है – सतत विकास लक्ष्य के लिए सामुदायिक रेडियो.

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