Sansar डेली करंट अफेयर्स, 27 July 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 27 July 2019


GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : Why are parliamentary standing committees necessary?

संदर्भ

संसद के चालू सत्र में 22 विधेयक प्रस्तुत हुए थे जिनमें से 11 पारित हो चुके हैं और इस प्रकार यह सत्र अत्यंत ही फलदायी रहा. परन्तु यह भी शिकायत हुई है कि ये सारे विधेयक संसदीय स्थायी समितियों की जाँच के बिना ही पारित हुए, अतः अलग-अलग विधेयकों पर विस्तृत विचार नहीं हो सका. ऐसा इसलिए हुआ कि नई लोक सभा के लिए स्थाई समितियों के गठन का काम अभी पूरा नहीं हुआ है.

संसदीय स्थायी समितियाँ क्यों आवश्यक हैं?

  • संसदीय समितियाँ वे मंच हैं जहाँ किसी प्रस्तावित कानून के ऊपर विस्तृत विचार-विमर्श होता है.
  • ऐसी समितियों में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों की संख्या के अनुपात में सांसद लिए जाते हैं.
  • समितियों की बैठक बंद कमरे में होती है और सदस्यों पर दलीय व्हिप नहीं चलता है.
  • संसदीय समितियों में सदनों की तुलना में अधिक व्यापक ढंग से विचार होता है और सदस्य बिना झिझक के अपनी बात रखते हैं.
  • संसदीय समितियों से सांसदों को कार्यकारी प्रक्रिया को निकट से समझने का अवसर मिलता है.

स्थाई समितियों के प्रकार

  1. अधिकांश संसदीय समितियाँ स्थायी होती हैं क्योंकि ये अनवरत् अस्तित्व में रहती हैं और सामान्यतः प्रत्येक वर्ष पुनर्गठित होती हैं.
  2. कुछ समितियाँ किसी विशेष विधेयक पर विचार करने के लिए गठित होती हैं. अतः इन्हें “सिलेक्ट समितियाँ” कहा जाता है. सम्बंधित विधेयक के पारित होते ही यह समिति समाप्त हो जाती है.

संवैधानिक स्रोत

संसदीय समितियों की शक्ति का स्रोत दो धाराएँ हैं –

  1. पहली धारा 105 (Article 105) है जो सांसदों के विशेषाधिकार से सम्बंधित है.
  2. दूसरी धारा 118 (Article 118) है जिसमें संसद की प्रक्रिया और आचरण के विषय में संसद को नियम बनाने के लिए प्राधिकृत किया गया है.

भारतीय संसद की प्रमुख स्थायी समितियाँ निम्नलिखित हैं – 

याचिका समिति (The Committee on Petitions)

इस समिति में कम से कम 15 सदस्य होते हैं. लोकसभा अध्यक्ष समिति के सदस्यों का नाम-निर्देशन करता है और समिति का कार्यकाल एक वर्ष है. जनता द्वारा सदन के सम्मुख सामान्य हित से सम्बंधित जो याचिकाएँ प्रस्तुत की जाती हैं यह समिति उन याचिकाओं पर विचार कर सदन के सामने रिपोर्ट देती है.

लोक लेखा समिति (The Public Accounts Committee)

इस समिति का कार्य सरकार के सभी वित्तीय लेन-देन सम्बन्धी विषयों की जांच करना है. समिति में 22 सदस्य होते हैं, जिनमें 15 सदस्य लोकसभा से और 7 सदस्य राज्यसभा से होते हैं. समिति का कार्यकाल 1 वर्ष है और कोई मंत्री इस समिति का सदस्य नहीं होता है. इस समिति की सिफारिशों ने देश के वित्तीय प्रशासन को सुधारने में बहुत अधिक योगदान किया है.

प्राक्कलन समिति (Estimates Committee)

प्राक्कलन समिति कार्य भी शासन पर वित्तीय नियंत्रण करना है. इस समिति का कार्य विभिन्न विभागों के वित्तीय अनुमानों की जांच करना है और यह फिजूलखर्ची रोकने (to stop wasteful expenditure) के लिए सुझाव देती है. इसकी नियुक्ति प्रति वर्ष प्रथम सत्र के प्रारम्भ में की जाती है. समिति में लोकसभा के 30 सदस्य होते हैं और इसका कार्यकाल 1 वर्ष होता है. कोई मंत्री इसका सदस्य नहीं होता है.

विशेषाधिकार समिति (The Committee of Privileges)

इस समिति का कार्य सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करना है. इस उद्देश्य से यह समिति विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जांच करती है. इसमें 15 सदस्य होते हैं, जिन्हें सदन का अध्यक्ष मनोनीत करता है.

सरकारी आश्वासन समिति (The Committee on Govt. Assurances)

शासन और मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा समय-समय पर जो आश्वासन दिए जाते हैं, इन आश्वासनों को किस सीमा तक पूरा किया जाता है, इस बात की जाँच यह समिति करती है. इस समिति का कार्य सदन की प्रक्रिया तथा उसके कार्य-संचालन के नियमों पर विचार करना तथा आवश्यकतानुसार उनमें संशोधन की सिफारिश करना है.

सदन में अनुपस्थित रहने वाले सदस्यों सम्बन्धी समिति (The Committee on absence of members from sitting of the House)

यदि कोई सदस्य सदन की बैठक से 60 या उससे अधिक दिनों तक सदन की अनुमति के बिना अनुपस्थित रहता है, तो उसका मामला समिति के पास विचार के लिए भेजा जाता है. समिति को अधिकार है की सम्बंधित सदस्य की सदस्यता समाप्त कर दे अथवा अनुपस्थिति माफ़ कर दे. इस समिति में 15 सदस्य होते हैं, जिन्हें अध्यक्ष एक वर्ष के लिए मनोनीत करता है.


GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : Automated Facial Recognition System (AFRS)

संदर्भ

28 जून, 2019 को राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (NCRB) ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है जिसमें अनुरोध किया गया है कि देश-भर के पुलिस अधिकारीयों को एक स्वचालित मुखमंडल पहचान प्रणाली (Automated Facial Recognition System – AFRS) का उपयोग करने दिया जाए.

स्वचालित मुखमंडल पहचान प्रणाली क्या है?

  • इस प्रणाली में लोगों के मुखमंडलों के छायाचित्रों और विडियो का एक विशाल डेटाबेस संधारित किया जाता है.
  • तत्पश्चात् CCTV आदि से प्राप्त किसी अज्ञात व्यक्ति के चित्र को लेकर इस डेटाबेस से मिलाया जाता है और यह पता लगाया जाता है कि उसका चेहरा किससे मिलता है.
  • इस मिलान में कृत्रिम बुद्धि (AI) की “न्यूरल नेटवर्क्स” नामक तकनीक का प्रयोग होता है.

चिंताएँ

  • विश्व-भर साइबर विशेषज्ञों ने सावधान किया है कि सरकारें मुखमंडल पहचाने की इस तकनीक का दुरूपयोग कर सकती हैं.
  • इस तकनीक से जो परिणाम सामने आते हैं वे कभी-कभी गलत भी हो जाते हैं.
  • अमेरिका में इस विषय को लेकर निजता के हनन पर विवाद चल रहा है, अतः नई प्रणाली लागू करने के पहले इसपर भली-भाँति विचार कर लेना उपयुक्त होगा.
  • भारत में डाटा सुरक्षा से सम्बंधित कोई कानून नहीं है अतः भारतीय नागरिकों पर निजता के दुरूपयोग का खतरा अधिक है.
  • सर्वेक्षण कैमरों का उपयोग और चेहरों की पहचान करना कुछ विशेष श्रेणी के लोगों के अधिकारों को बाधित करते हैं.
  • अमेरिका में फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (FBI) और विदेश विभाग चेहरों की पहचान का एक बहुत बड़ा तंत्र संचालित करते हैं.
  • चीन में भी यह तन्त्र संचालित हो रहा है जिसकी कड़ी निंदा कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने इस आधार पर की है कि इससे उइगर नामक मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों का हनन हो रहा है.

GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : Indian Forest Act amendment

संदर्भ

भारत-भर में जनजातीय अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले व्यक्तियों का कहना है कि भारत सरकार द्वारा भारतीय वन अधिनियम में प्रस्तावित किये जा रहे संशोधन जनजातियों के लिए अनुकूल नहीं हैं. उनका विचार है कि जंगल की भूमि और संसाधनों पर जनजातियों और अन्य वनवासी समुदायों का अधिकार इन संशोधनों के कारण छिन जाएगा.

भारतीय वन अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन

  • संशोधन प्रारूप में वन अधिकारियों को बड़ी शक्तियाँ दी जा रही हैं. वे तलाशी का वारंट निकाल सकते हैं और अपने कार्यक्षेत्र के अन्दर पड़ने वाली भूमि में प्रवेश कर जाँच कर सकते हैं और वन से सम्बंधित अपराधों को रोकने के लिए हथियार का प्रयोग कर सकते हैं. संशोधन वन अधिकारियों को हथियार के प्रयोग करने पर उन्हें क्षमा देने का वादा करता है. ये अधिकारी रेंजर स्तर के नीचे के अधिकारी नहीं होंगे.
  • प्रस्तावित संशोधन में वन विकास के लिए सेस (cess) का प्रस्ताव है जो जंगल से बाहर ले जाए जाने वाले खनन उत्पादों और पानी के आकलित मूल्य का 10% तक होगा. यह राशि एक विशेष कोष में जमा की जायेगी और इसका उपयोग मात्र फिर से जंगल लगाने, जंगल की सुरक्षा करने और अन्य प्रासंगिक उद्देश्यों जैसे वृक्ष रोपण, वन विकास एवं संरक्षण पर खर्च की जायेगी.
  • प्रारूप में “समुदाय” को इस प्रकार परिभाषित किया गया है – सरकारी प्रलेखों के आधार पर लक्षित व्यक्तियों का वह समूह जो किसी विशेष स्थान में रहता है और जिसका सामान्य सम्पदा संसाधनों पर संयुक्त रूप से अधिकार होता है. इस परिभाषा में नस्ल, धर्म, जाति, भाषा और संस्कृति का कोई स्थान नहीं है.
  • प्रस्तावित संशोधन में वन की परिभाषा इस प्रकार है – किसी भी सरकारी प्रलेख में वन अथवा वनभूमि के रूप में अभिलिखित अथवा अधिसूचित कोई भी सरकारी अथवा निजी अथवा संस्थानगत भूमि तथा समुदाय द्वारा वन एवं मैन्ग्रोव के रूप में प्रबंधित भूमि तथा साथ ही ऐसी कोई भी भूमि जिसे केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार अधिसूचित कर अधिनियम के लिए वन के रूप में घोषित करे.
  • भारतीय वन अधिनियम, 1927 की प्रस्तावना में वर्णित था कि अधिनियम मुख्य रूप से उन कानूनों पर केन्द्रित है जो वन उत्पादों के परिवहन और उन पर लगने वाले कर से सम्बंधित हैं. परन्तु प्रस्तावित संशोधन में अधिनियम के लिए मुख्य विचारणीय विषय अब ये हो गये हैं – वन संसाधनों का संरक्षण, संवर्द्धन और सतत प्रबंधन तथा पारिस्थितिकी तन्त्र की सेवाओं की शाश्वत उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरणगत स्थिरता को सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन एवं अंतर्राष्ट्रीय वचनबद्धताओं से सम्बंधित चिंता.
  • संशोधन में राज्यों की भूमिका पहले से बड़ी कर दी गई है. अब यदि कोई राज्य यह अनुभव करता है कि वन अधिकार अधिनियम (FRA) के अंतर्गत प्रदत्त किसी अधिकार से संरक्षण के प्रयासों में अड़चन आती है तो वह राज्य ऐसे अधिकार में परिवर्तन कर सकता है और इसके लिए सम्बन्धित व्यक्ति को बदले में धनराशि दे सकता है अथवा भूमि दे सकता है अथवा ऐसा कोई भी कदम उठा सकता है जिससे वन में रहने वाले समुदायों का सामाजिक सन्गठन ज्यों का त्यों बना रहे अथवा ऐसे वन समुदायों को कोई ऐसा नया वन खंड दे सकता है जिसका आकार पर्याप्त हो और जहाँ वनवासी ठीक-ठाक सुविधाओं के साथ रह सकें.
  • संशोधन के प्रारूप में वनों की एक नई श्रेणी बनाई गई है – उत्पादन वन. ये वे वन होंगे जहाँ इन वस्तुओं का विशेष रूप से उत्पादन होता है – इमारती लकड़ी, पल्प, पल्प वुड, जलावन, गैर-इमारती वन उत्पाद, औषधीय पौधे अथवा अन्य वन प्रजातियाँ.

भारतीय वन अधिनियम, 1927

  • भारतीय वन अधिनियम, 1927 (Indian Forest Act, 1927) मुख्य रूप से ब्रिटिश काल में लागू पहले के कई भारतीय वन अधिनियमों पर आधारित है. इन पुराने अधिनियमों में सबसे प्रसिद्ध था – भारतीय वन अधिनियम, 1878.
  • 1878 और 1927 दोनों अधिनियमों में वनाच्छादित क्षेत्र अथवा वह क्षेत्र जहाँ बहुत से वन्य जीव रहते हैं. वहाँ आवाजाही एवं वन-उत्पादों के स्थानान्तरण को नियंत्रित किया गया था. साथ ही इमारती लकड़ी और अन्य वन उत्पादों पर चुंगी लगाए जाने का प्रावधान किया गया था.
  • 1927 के अधिनियम में किसी क्षेत्र को आरक्षित वन अथवा सुरक्षित वन अथवा ग्राम वन घोषित करने की प्रक्रिया बताई गई है. 1927 के अधिनियम में यह भी बताया गया है कि वन अपराध क्या है और किसी आरक्षित वन के भीतर कौन-कौन से कार्य वर्जित हैं और अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए कौन-कौन से दंड निर्धारित हैं.

संशोधनों के विषय में व्यक्त की जा रहीं चिंताएँ

  • इनसे जंगलों पर नौकरशाही का दबदबा बना रहेगा. उदाहरण के लिए किसी अपराध को रोकने के लिए सरकारी कर्मियों को गोली चलाने की छूट दी जा रही है.
  • संशोधन-प्रारूप में कथित अपराधी को बंदी बनाने और ले जाने का प्रावधान किया गया है जो जनजातियों के हित में नहीं है.
  • प्रारूप में यह कहा गया है कि यदि कोई एक व्यक्ति अपराध करता है तो पूरे समुदाय को जंगल में जाने से रोक दिया जाएगा. ऐसा करने से स्पष्तः वनों में रहने वाले निर्धन समुदायों को क्षति पहुँचेगी.
  • संशोधन में ग्रामीण वानिकी को वन अधिकार अधिनियम के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जा रहा है जिससे भ्रान्ति की स्थिति बनेगी क्योंकि ग्राम सभा पर वन विभाग के अधिकारियों का वर्चस्व हो जाएगा.

GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : What is the three-language formula?

संदर्भ

एक बार फिर तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा अपनी प्रारूप राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रस्तावित त्रि-भाषा समीकरण का विरोध किया है.

पृष्ठभूमि

हिंदी को लेकर 50 वर्ष से चला आ रहा विवाद फिर से पिछले दिनों उभर गया जब 2019 की नई शिक्षा नीति का प्रारूप प्रकाशित किया गया जिसमें उन राज्यों में हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य करने का प्रस्ताव है जहाँ हिंदी नहीं बोली जाती है.  यह प्रारूप केंद्र सरकार के पुराने त्रि-भाषा फोर्मुले के अनुसार ही है. परन्तु इसको लेकर तमिलनाडु में जम कर विरोध हो रहा है. तमिल भाषियों का कहना है कि उन पर हिंदी बलपूर्वक थोपी जा रही है. ऐसी उग्र प्रतिक्रिया को देखते हुए सरकार ने प्रारूप में से हिंदी के बारे में किए गये विवादास्पद प्रावधान को विलोपित कर दिया है.

त्रि-भाषा फोर्मुला क्या है?

त्रि-भाषा फोर्मुले के अंतर्गत प्रत्येक राज्य में क्षेत्रीय भाषा के अतिरिक्त हिंदी और अंग्रेजी की पढ़ाई का प्रावधान है. यह फार्मूला सबसे पहली बार 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में रूपांकित हुआ था. इस नीति के अनुसार क्षेत्रीय भाषाएँ प्राथमिक और माध्यमिक पढ़ाई के स्तर पर शिक्षा का माध्यम पहले से ही हैं, परन्तु राज्य सरकारों को चाहिए कि माध्यमिक पढ़ाई के स्तर पर त्रि-भाषा फोर्मुले को लागू करें. वांछनीय यह होगा कि उत्तर भारतीय राज्यों को दक्षिण की एक भाषा और अंग्रेजी और हिंदी पढ़ाई जाए. इसी प्रकार जहाँ हिंदी नहीं बोली जाती है, उन राज्यों में क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी भी पढ़ाई जाए.

NEP, 1968 हिंदी को सम्पर्क भाषा बनाने के बारे में क्या कहती है?

1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह कहा गया था कि हिंदी को देश की संपर्क भाषा बनाने की दिशा में कदम उठाये जाएँ और यह सुनिश्चित किया जाए कि वह भारत की मिश्रित संस्कृति के सभी अवयवों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम बन जाए जैसा कि संविधान की धारा 351 में प्रावधान किया गया है. गैर-हिंदी राज्यों में ऐसे महाविद्यालयों और उच्चतर शिक्षा के अन्य संस्थानों का निर्माण किया जाए जहाँ हिंदी की शिक्षा को प्रोत्साहन मिले.


GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic : Block Chain Technology

संदर्भ

ब्लॉक चैन क्या होता है?

  • ब्लॉक चैन तकनीक एक ऐसी तकनीक है जिसमें क्रेता विक्रेता के मध्य सीधा ही पैसे का स्थानान्तरण किया जाता है इस ट्रांजेक्‍शन में किसी भी बिचौलिए की आवश्यकता नहीं होती है.
  • ब्लॉक चैन वितरित डाटा बेस होती है इसमें लगातार कई रिकार्ड्स को संधारित किया जाता है जिन्हें ब्लॉक कहते हैं जिसमे प्रत्येक ब्लॉक अपने पूर्व के ब्लॉक से लिंक रहता है.
  • इस तकनीकी में हजारों कंप्यूटर पर इन्क्रिप्टेड अथवा गुप्त रूप से डाटा सुरक्षित रहता है इसे पब्लिक लेजर भी कहते हैं.
  • वर्तमान में दो लोगों के मध्य पैसों का स्थानान्तरण तीसरे पक्ष के माध्यम से ही होता है यह तीसरे पक्ष जैसे बैंक, पेपाल , मनी ट्रान्सफर आदि होती हैं और हमें इन लेनदेन के लिए सेवा शुल्क अधिक देना होता है, जबकि ब्लॉकचेन में तीसरे पक्ष की आवश्यकता नहीं होती है.
  • ब्लॉक चैन तकनीक में किये गये ट्रांजेक्‍शन में बहुत कम समय लगता है.
  • यह एक डिजिटल खाता है जिसमें लेनदेन और सूचनाओं का स्थायी रिकॉर्ड होता है, जिनको सत्यापित किया जा सकता है.
  • ब्लॉक चैन मुख्य रूप से बिटक्वाइनऔर इथेरियम जैसी क्रिप्टो करेंसी में इस्तेमाल किया जाता है. इसका प्रयोग दो पक्षों के बीच अन्य समझौतों की गारंटी देने वाले “स्मार्ट कांट्रैक्ट” बनाने में भी हो सकता है.

Block-Chain-Technology

लोक प्रशासन में ब्लॉक चेन का प्रयोग

  • ब्लॉक चेन से लोक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाने की प्रक्रिया में पर्याप्त सुधार आ सकता है. इस प्रकार यह प्रणाली भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत की लड़ाई को नई शक्ति प्रदान कर सकती है.
  • इस प्रणाली में सभी कार्यकलाप और फाइलों का समय के हिसाब से रिकॉर्ड रहता है जो बदला नहीं जा सकता. ये इस प्रकार के सभी रिकॉर्ड एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं और इनका डेटाबेस विकेंद्रीकृत होते हुए निम्नतम स्तर तक उपलब्ध रहता है. इस प्रकार ब्लॉक चेन एक कार्यकुशल और लागत की दृष्टि से ऐसा सुचारू डाटाबेस बनाते हैं जिससे छेड़-छाड़ लगभग असंभव होता है. अतः कह सकते हैं कि ब्लॉक चेन अपनाने से हमारी सरकारें अधिक पारदर्शी, उत्तरदाई और कार्यकुशल हो जाएँगी.
  • ब्लॉक चेन अपनाने से उत्तरदाई होने के साथ-साथ सरकारें अधिक ईमानदार भी हो सकती हैं. यदि बिटकॉइन की भाँति एक सार्वजनिक ब्लॉक चेन बनाया जाता है तो सारी सूचनाएँ और कार्यकलाप एक विकेंद्रीकृत डेटाबेस में सदा के लिए सुरक्षित होकर जमा हो जाएँगे. इसका फल यह होगा कि सरकारों को अपने द्वारा दी गई धनराशि से सम्बंधित गतिविधियों का पता लगता रहेगा और वे उन लोगों पर कार्रवाई कर सकेंगी जो धनराशि में हेरा-फेरी के दोषी पाए जाते हैं.
  • ब्लॉक चेन का एक बड़ा गुण यह है कि इसमें बिचौलिये का अस्तित्व नहीं होता है. इस वर्ष के आरम्भ में विश्व खाद्य कार्यक्रम ने पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में खाद्य पदार्थों एवं नकद लेन-देन को ब्लॉक चेन प्रणाली में डालते हुए एक परीक्षण किया था. इस परीक्षण में यह प्रणाली उपयोगी सिद्ध हुई. जॉर्डन के अज़राक शिविर में रह रहे शरणार्थी आजकल इसी तकनीक का प्रयोग खाद्य पदार्थों के भुगतान के लिए कर रहे हैं.
  • भारत में आधार कार्ड लगभग सभी को मिल चुके हैं. अतः डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते हुए इस देश के लिए अगला कदम ब्लॉक चेन को अपनाना होना चाहिए. इससे प्रत्येक व्यक्ति का स्थायी डाटा जमा करने में सुविधा होगी और सुरक्षित ढंग से लेन-देन किया जा सकेगा.

Prelims Vishesh

Bhabha Kavach :-

  • आयुध निर्माणी बोर्ड (Ordnance Factory Board) के द्वारा बनाए गये भारत के पहले सबसे हल्के और स्वदेशी बुलेट-प्रूफ जैकेट – भाभा कवच – को गृह मंत्रालय का अनुमोदन प्राप्त हो गया है.
  • 9.2 किलो का यह जैकेट AK-47 राइफल के द्वारा छोड़ी गई 7.62mm की स्टील की गोली को सह सकता है. यह कवच INSAS राइफल से चलाई गई है 5.56mm की गोली को भी झेल सकती है. यहाँ तक की हाल ही में उपयोग में आई SLR राइफल के द्वारा छोड़ी गई 7.65mm की गोली भी इसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगी.

JATAN- software for Digitization of Archaeological Museum :-

देश के संग्रहालयों में रखी हुई सामग्रियों के डाटा संग्रह को सुचारू बनाने के लिए भारत सरकार ने एक सॉफ्टवेर बनाया है जिसका नाम जतन रखा गया है.

Chrysomallon squamiferum :-

  • गहरे समुद्र में खनन के कारण संकटग्रस्त हो रही प्रजातियों में जिस पहली प्रजाति को आधिकारिक रूप से संकटग्रस्त घोषित किया गया है वह एक घोंघा है जिसका नाम Chrysomallon squamiferum है.
  • इस प्रकार के घोंघे हिन्द महासागर में मात्र तीन स्थानों में पाए जाते हैं.
  • जुलाई 18, 2019 को निर्गत IUCN की लाल सूची में इन घोंघों को “संकटग्रस्त प्रजातियों (Endangered Species)” के बीच रखा गया है.

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