Sansar डेली करंट अफेयर्स, 24 May 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 24 May 2019


GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : The dispute between Britain and Mauritius over Chagos islands

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nation General Assembly – UNGA) ने हाल ही में एक अबाध्यकारी संकल्प (a non-binding resolution) पारित किया है जिसमें इंग्लैंड को कहा गया है कि वह हिन्द महासागर में स्थित चागोस द्वीपसमूह को मॉरिशस को लौटा दे.

विदित हो कि यह मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गया था. वहाँ भी कहा गया था कि इंग्लैंड को चाहिए कि वह चागोस द्वीपों पर अपना नियंत्रण यथाशीघ्र समाप्त कर दे क्योंकि ये द्वीप इंग्लैंड के पुराने मॉरिशस उपनिवेश से विधिसम्मत रूप से अलग नहीं हुए हैं.

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विवाद क्या है?

मॉरिशस के स्वतंत्र होने के तीन वर्ष पहले ब्रिटेन ने चागोस द्वीपों को 1965 में मॉरिशस से अलग कर दिया था. 1967 से 1973 तक इन द्वीपों के 1,500 निवासियों को धीरे-धीरे अपना घर छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया था जिससे कि इनमें सबसे बड़े द्वीप डिएगो गार्सिया को अमेरिका को सामरिक हवाई अड्डा बनाने के लिए लीज पर दिया जा सके. विदित हो कि आज डिएगो गार्सिया अमेरिका का एक प्रमुख सैन्य अड्डा है.

2016 में कई मुकदमों के बाद डिएगो गार्सिया की लीज को 2036 तक बढ़ा दिया और यह घोषणा की कि जो द्वीपवासी बाहर कर दिए गये हैं, उनको वापस नहीं आने दिया जाएगा. 2017 में मॉरिशस ने संयुक्त राष्ट्र को प्रार्थना पत्र देकर इस बात में सफलता पाई कि मॉरिशस से चागोस द्वीपों को अलग करने के कार्य की वैधता पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय से परमर्श मन्तव्य माँगा जाए.

मॉरिशस का दावा है कि ब्रिटेन ने चागोस द्वीपों को छोड़ने के लिए उसे इस शर्त पर विवश किया था कि वह मॉरिशस को स्वतंत्रता दे देगा.

मॉरिशस के दावे का आधार

मॉरिशस का चागोस द्वीपों पर दावा मूलत: आत्म निर्धारण के अधिकार से सम्बंधित है. उसने न्यायालय को स्पष्ट कहा है कि इन द्वीपों का पृथक्करण 1960 में पारित संयुक्त राष्ट्र संकल्प संख्या 1514 (औपनिवेशक घोषणा) का सीधा उल्लंघन है क्योंकि इसमें कहा गया है कि औपनिवेशिक लोगों को आत्म-निर्धारण का अधिकार है और किसी भी स्थिति में स्वतंत्रता देने के पहले किसी उपनिवेश को बाँटा नहीं जा सकता है.

निर्णय का निहितार्थ

यह सच है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के द्वारा दिए गये परामर्श मंतव्य बाध्यकारी नहीं होते हैं, परन्तु ऐसे मन्तव्य के कई मायने भी होते हैं. इस मन्तव्य से भविष्य में होने वाले समझौतों के समय मॉरिशस की स्थिति सशक्त होगी और साथ ही ब्रिटेन पर चागोस द्वीपों को छोड़ने का अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनेगा.


GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : WHO strategy on antivenoms

संदर्भ

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सर्पदंश से होने वाली मृत्यु और घाव में कमी लाने के लिए एक नई रणनीति का अनावरण किया है और साथ ही यह चेतावनी दी है कि प्रतिविष दवाओं की कमी से लोकस्वास्थ्य पर संकट आ सकता है.

यह रणनीति आवश्यक क्यों?

  • प्रत्येक वर्ष लगभग 3 मिलियन लोगों को विषैले साँप डंस लेते हैं जिस कारण अनुमानतः 81,000 लेकर 138,000 प्राण चले जाते हैं. जो 4 लाख लोग सर्पदंस के बाद बच जाते हैं उनमें स्थायी निःशक्तता उत्पन्न हो जाती है.
  • सांप के विष से लकवा हो जाता है जिससे साँस रुक जाती है और रक्तस्राव होने लगता है. फलतः प्राणघातक हेमरेज तथा किडनी में नहीं ठीक होने वाली क्षति पहुँचती है. साथ ही इससे ऊतकों को हानि पहुँचती है जिससे या तो अंग की हानि होती है अथवा कोई स्थायी निःशक्तता हो जाती है.
  • सर्पदंस के अधिकांश मामले उष्णकटिबंधीय एवं निर्धनतम क्षेत्रों में होते हैं जहाँ बच्चों पर सबसे अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है क्योंकि उनके शरीर का आकार छोटा होता है.
  • WHO ने पहले से ही सर्पदंस से विषग्रस्त होने को एक उपेक्षित उष्णकन्तिबंधीय रोग घोषित कर रखा है.

WHO की रणनीति क्या है?

  • इसका उद्देश्य 2030 तक सर्पदंस से होने वाली मृत्यु और निःशक्तता की संख्या घटाना है.
  • यह रणनीति उत्तम गुणवत्ता वाले प्रतिविष दवाओं के अधिक से अधिक उत्पादन पर बल देती है.
  • रणनीति के अनुसार प्रतिविष के बाजार को नए रूप में ढालना और नियामक नियंत्रण को सुदृढ़ करना आवश्यक है.
  • सर्पदंस के उपचार के लिए एक टिकाऊ बाजार की आवश्यकता है जिसके लिए 2030 तक प्रतिविष के निर्माताओं की संख्या को 25% बढ़ाने का लक्ष्य है.
  • इस रणनीति में स्वास्थ्यकर्मियों को बेहतर प्रशिक्षण देने और समुदायों में जागरूकता फैलाने पर ध्यान दिया गया है.

चुनौतियाँ

  • प्रतिविष तैयार करने के लिए सही इम्यूनोजेन (साँप का विष) उपलब्ध होना परमावश्यक है. वर्तमान में ऐसे देश बहुत कम हैं जिनके पास उचित गुणवत्ता वाले सर्पविष का उत्पादन करने की क्षमता है. अधिकांश दवा निर्माता साधारण वाणिज्यिक स्रोतों पर निर्भर रहते हैं. वे इस बात का ध्यान नहीं रख पाते कि विश्व में अलग-अलग स्थानों में जहर अलग-अलग हो सकते हैं.
  • कई देशों में प्रतिविष की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए उचित नियामक व्यवस्था नहीं है.
  • दवा निर्माताओं को सर्पदंस के विभिन्न प्रकारों और उसकी संख्या के बारे में ठीक-ठाक पता नहीं होता जिस कारण या तो वे उत्पादन घटा देते हैं अथवा उत्पादन बंद ही कर देते हैं. बहुधा वे प्रतिविष का दाम बहुत बढ़ा देते हैं.

GS Paper  3 Source: Down to Earth

down to earth

Topic :  Coral bleaching

संदर्भ

शोधकर्ताओं ने पाया है कि मन्नार खाड़ी क्षेत्र में स्थित मंडपम, किज्झक्कराई और पाक खाड़ी की प्रवाल भित्तियाँ बहुत तेजी से सफ़ेद होती जा रही हैं.

Coral-bleaching

मुख्य तथ्य

  • समुद्र तल का तामपान अगस्त, 2018 और फरवरी, 2019 के बीच 28.7°C से लेकर 31°C तक रहा और इस अवधि में प्रवाल भित्ति की सफ़ेद होने की घटना नहीं देखी गई.
  • परन्तु जब मार्च, 2019 से मई, 2019 के बीच यह तापमान बढ़कर 32°C-36°C हो गया तो प्रवाल सफ़ेद होने का ढंग समुद्र के अन्दर अलग-अलग परतों में अलग-अलग देखा गया.

प्रवाल भित्तियाँ क्या हैं?

  • प्रवाल भित्तियाँ महासागरों में जैव-विविधता के महत्त्वपूर्ण हॉटस्पॉट हैं. वस्तुतः प्रवाल जेलीफिश और एनिमोन की भाँति Cnidaria श्रेणी के जानवर होते हैं. इनमें व्यक्तिगत पोलिप (polyps) होते हैं जो आपस में मिलकर भित्ति का निर्माण करते हैं. प्रवाल भित्तियों में अनेक प्रकार की प्रजातियों को आश्रय मिलता है.
  • ये भित्तियाँ तटीय जैवमंडल की गुणवत्ता को बनाए रखती हैं.
  • कार्बन डाइऑक्साइड को चूना पत्थर शेल में बदलकर प्रवाल उसके स्तर को नियंत्रित करते हैं. यदि ऐसा नहीं हो तो महासागर के जल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा इतनी बढ़ जायेगी कि उससे पर्यावरण को संकट हो जाएगा.

प्रवाल श्वेतीकरण किसे कहते हैं?

  • मूलतः श्वेतीकरण तब होता है जब प्रवालों से प्राकृतिक रूप से जुड़ी जूक्सेनथेले (zooxanthellae) नामक काई बाहर आने लगती है. ऐसा जल के तापमान बढ़ने से होता है. वस्तुतः यह काई प्रवाल की ऊर्जा का 90% मुहैया करती है. इस काई में क्लोरोफील और कई अन्य रंजक होते हैं. इन तत्त्वों के कारण प्रवालों का रंग कहीं पीला तो कहीं लाल मिश्रित भूरा होता है.
  • जब प्रवाल सफ़ेद होने लगता है तो उसकी मृत्यु तो नहीं होती, परन्तु लगभग मृत ही हो जाता है. कुछ प्रवाल इस प्रकार की घटना से बच निकते हैं और जैसे ही समुद्र तल का तापमान सामान्य होता है तो यह फिर से पुराने रूप में आ जाते हैं.
  • 2016-17 में विशाल प्रवाल भित्ति के उत्तरी भागों में दोनों वर्ष अभूतवर्ष श्वेतीकरण देखा गया, जिस कारण उन्हें ऐसी क्षति पहुँची कि उसकी भरपाई होना कठिन है.

विशाल प्रवाल भित्ति क्या है?

विशाल प्रवाल भित्ति विश्व की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति है जो ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड के समुद्री तट के निकट प्रवाल सागर में अवस्थित है. इसमें 2,900 से अधिक अलग-अलग भित्तियाँ हैं और 900 प्रवाल द्वीप हैं जो लगभग 344,400 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं.

विशाल प्रवाल भित्ति को बाह्य अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है. हम कह सकते हैं कि यह विश्व की वह सबसे बड़ी संरचना है जो जीवों द्वारा बनाई गई है. यह भित्ति करोड़ों सूक्ष्म जीवों से बनी हुई है जिन्हें प्रवाल पोलिप (coral polyps) कहते हैं.


GS Paper  3 Source: The Hindu

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Topic : Currency chest

संदर्भ

भारतीय रिज़र्व बैंक बड़े-बड़े आधुनिक करेंसी चेस्टों को यह अनुमति देने की योजना बना रहा है कि वे गैर-चेस्ट वाले बैंकों की शाखाओं के द्वारा जमा किये गये नकद पर सेवा शुल्क को वर्तमान 5 रू. प्रति 100 नोटों के पैकेट से बढ़ा कर 8 रू. प्रति पैकेट तक कर सकते हैं. इस वृद्धि के लिए वही करेंसी चेस्ट पात्र होंगे जो एक बड़े आधुनिक करेंसी चेस्ट के रूप में वर्गीकृत होने के लिए आवश्यक न्यूनतम मानकों को पूरा करते हैं.

Currency-chest

RBI is located only in 18 places for currency operations. Distribution of notes and coins throughout the country is done through designated bank branches, called chests. Chest is a receptacle in a commercial bank to store notes and coins on behalf of the Reserve Bank. Deposit into chest leads to credit of the commercial bank’s account and withdrawal, debit. Reserve Bank of India.

करेंसी चेस्ट क्या है?

केन्द्रीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का सबसे प्रमुख काम देश में नई-पुरानी करेंसी का संचार करना है. इसमें नई करेंसी और नए सिक्कों का देशभर में वितरण, पुरानी करेंसी को रिसाइकल करना और सभी बैंकों में एकत्र हुए अत्यधिक कैश को अपने पास रखने का काम किया जाता है. इन सभी काम को करने के लिए रिजर्व बैंक को देशभर में कई खजाना बनाना पड़ता है जिसे वह करेंसी चेस्ट कहता है. इस करेंसी चेस्ट या कुबेर के खजाने को देशभर कई जगहों पर बनाया जाता है जिससे रिजर्व बैंक का करेंसी वितरण काम आसानी से किया जा सके.

करेंसी चेस्ट की भूमिका

  • देशभर में करेंसी के संचार को बनाए रखने के लिए मौजूदा समय में रिजर्व बैंक के पास लगभग 4,075 करेंसी चेस्ट हैं. इसके अतिरिक्त सिक्कों का संचालन करने के लिए उसके पास 3,746  बैंक शाखाएँ हैं जो छोटे सिक्कों के लिए डिपो का काम करते हैं.
  • ये चेस्ट देशभर में फैले हुए हैं क्योंकि संचार के साथ-साथ इन खजानों में किसी भी सामान्य बैंक में जमा कराए गए रुपयों (कैश रिजर्व रेशियो) को भी रखा जाता है.
  • करेंसी चेस्ट को देशभर में स्थापित करने के लिए रिजर्व बैंक प्रमुख सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का सहयोग लेता है. इसके अलावा इस काम में 6 सहयोगी बैंकों, सभी नैशनलाइज्ड बैंक, प्राइवेट सेक्टर के कुछ चुने हुए बैंक, 1 विदेशी बैंक, 1 कोऑपरेटिव बैंक और ग्रामीण बैंक को भी शामिल किया जाता है. इस काम को करने के रिजर्व बैंक अपने देशभर में फैले 18 ब्रांच या इशू ऑफिस के जरिए करता है.

नए करेंसी चेस्ट के लिए निर्गत निर्देश

  • करेंसी चेस्ट के लिए वज्रगृह का क्षेत्रफल 1,500 वर्गफुट होगा. जो शाखाएँ पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र में हैं, वहाँ के वज्रगृह का क्षेत्रफल न्यूनतम 600 वर्गफुट होगा.
  • नए चेस्ट में प्रत्येक दिन 6 लाख नोटों के प्रसंस्करण की क्षमता होनी चाहिए. जो चेस्ट पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र में हैं, उनके लिए यह क्षमता 2.1 लाख नोट प्रतिदिन की होगी.
  • करेंसी चेस्ट में 1,000 करोड़ अधिशेष की सीमा होगी. इस सीमा में स्थानीय वास्तविकताओं और तर्कसंगत सीमाओं के आधार पर रिज़र्व बैंक विवेकानुसार कमी-बेसी कर सकता है.

GS Paper  3 Source: The Hindu

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Topic : China continues to use ozone depleting CFC-11 in violation of Montreal Protocol

संदर्भ

ट्राइक्लोरोफ्लूरोमीथेन अथवा CFC – 11 ओजोन की परत को घटाने वाला रसायन है, अतः इसके उत्सर्जन पर प्रतिबंध लगा हुआ है. परन्तु चीन अभी भी अवैध रूप से इस रसायन का उत्सर्जन कर रहा है.

मुख्य तथ्य

  • 1987 की मोंट्रियल संधि में ओजोन घटाने वाले रसायनों को धीरे-धीरे समाप्त करने की योजना बनाई गई थी. इन रसायनों में CFC – 11 एक प्रमुख रसायन है. मोंट्रियल संधि में यह तय हुआ था कि इस रसायन को 2010 तक बनाना बंद कर दिया जाएगा. इस संधि पर चीन ने भी हस्ताक्षर किये थे, परन्तु वह अभी भी इस प्रदूषणकारी गैस को उत्सर्जित करता जा रहा है.
  • वास्तविकता यह है कि 2012 के बाद CFC – 11 का उत्सर्जन 25% बढ़ गया है. 2008 और 2012 के बीच पूर्वी चीन ने प्रत्येक वर्ष औसतन 6,400 मेट्रिक टन CFC – 11 उत्सर्जित किया. 2014 से 2017 के बीच यह मात्रा बढ़कर 13,400 मेट्रिक टन प्रतिवर्ष हो गई.

उत्सर्जन में वृद्धि का कारण

  • चीन में सबसे अधिक पोलीयूरेथेन फोम (polyurethane foam) बनता है. विश्व में होने वाली फोम की खपत का 40% चीन से ही आता है.
  • उत्पादन की लागत बचाने के लिए चीनी फोम निर्माता अवैध रूप से CFC – 11 का प्रयोग करते हैं.

मोंट्रियल संधि (Montreal Protocol)

  • मोंट्रियल संधि (Montreal Protocol) उन पदार्थों का उत्पादन और खपत घटाने के विषय में हुई थी जिनके कारण ओजोन परत में कमी आती है. इस संधि पर सभी देशों की सहमति 16 सितम्बर, 1987 को प्राप्त हुई और इसे 1 जनवरी, 1989 से लागू किया गया.
  • इस संधि में कई रसायनों को ओजोन परत को क्षति पहुँचाने के लिए उत्तरदाई माना गया. इसमें यह व्यवस्था भी की गई कि यदि भविष्य में किसी नए हानिकारक रसायन की जानकारी मिलती है तो वह स्वतः ही इस संधि के अन्दर आ जाएगा.
  • मोंट्रियल संधि (Montreal Protocol) में यह कहा गया था कि ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले रसायनों – Chlorofluorocarbons (CFCs), halons, carbon tetrachloride और methyl chloroform – का उत्पादन धीरे-धीरे 2000 तक बंद कर दिया जाए (methyl chloroform के लिए 2005 तक का समय दिया गया था).

 ओजोन परत क्या होता है?

ओजोन गैस पूरे पृथ्वी के ऊपर एक परत के रूप में छाया रहता है और क्षतिकारक UV किरणों के विकिरण को धरातल पर रहने वाले प्राणियों तक पहुँचने से रोकता है. इस परत को ओजोन परत कहते हैं. यह परत मुख्य रूप से समताप मंडल में होती है. इस परत की मोटाई 10-50 किलोमीटर तक होती है. इसे जीवन सहायक इसलिए माना जाता है कि इसमें कम तरंग दैर्ध्य (wave length) का प्रकाश, जो कि 300 नैनोमीटर से कम हो, को अपने में अवशोषित करने की विलक्षण क्षमता है. जहाँ पर वातावरण में ओजोन उपस्थित नहीं होगी, वहाँ सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें (UV rays) पृथ्वी पर पहुँचने लगेंगी. ये किरणें मनुष्य के साथ-साथ जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों के लिए भी बहुत खतरनाक है. ध्रुवों के ऊपर इसकी परत की मोटाई 8 km है और विषुवत् रेखा (equator line) के ऊपर इसकी मोटाई 17 km है.

ओजोन छिद्र क्या होता है?

ओजोन छिद्र उस ओजोन परत के उस भाग को कहते हैं जहाँ वह परत झीनी पड़ गई है. यह छिद्र ध्रुवीय प्रदेशों के ऊपर स्थित है. अगर ओजोन की यह चादर और पतली हो गई तो धरती में गर्मी बढ़ेगी और पराबैंगनी किरण (ultraviolet rays/UV) समस्त प्राणियों और वनस्पतियों को मुश्किल में डाल देगी. ध्रुवों की बर्फ पिघल जाएगी, जिसके चलते समुद्र के पानी का स्तर ऊपर आएगा और फलतः तटवर्ती क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ जायेंगे. चर्म कैंसर के मामले ओजोन छिद्र के कारण बढ़ें हैं.

CFC क्या है?

क्लोरोफ्लूरो कार्बन (CFC) एक यौगिक गैस है जिसमें क्लोरीन, फ्लोरीन और कार्बन के तत्त्व होते हैं. हमारे एरोसोलों, वातानुकूलन पदार्थों (refrigerants) और प्लास्टिक फ़ोम (foams) में CFC होता है. जब यह CFC हवा में प्रवेश करता है तो यह उड़ते-उड़ते ओजोन परत तक पहुँच कर ओजोन कणों को नष्ट करने लगता है. CFC 50 से 100 वर्षों तक सक्रिय रहता है.

हमारे सामने चुनौती

CFC यौगिकों का घरेलू और औद्योगिकों क्षेत्रों में इतना ज्यादा प्रयोग हो रहा है कि उनकी जगह दूसरे रसायन को इस्तेमाल करना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. अभी तक कोई विकल्प नहीं खोजा जा सका है. इन यौगिकों का प्रयोग वातानुकूलन उपकरणों में, पैकेजिंग उद्योग में, इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में, बिजली पैदा करने में, आग को बुझाने के उपकरणों में होता है. CFC विकल्प खोजते समय हमें यह बात दिमाग में रखनी होगी कि जिस तरह CFC यौगिकों में आग नहीं लग सकती, कोई विष नहीं फैल सकता और किसी दूसरे रसायन से वे क्रिया भी नहीं करते – – ये खूबियाँ उसके वैकल्पिक यौगिकों में भी होनी चाहिएँ. इसके साथ ही वैकल्पिक यौगिकों में ओजोन में कमी लाने का दुर्गुण या तो बिल्कुल नहीं या न के बराबर होना चाहिए.

CFC का विकल्प

अनुसंधानों से पता चला है कि ओजोन की परत (ozone layer) नष्ट करने में दो बातें मुख्य रूप से असर डालती हैं-

  • यौगिक में मौजूद क्लोरिन का अनुपात
  • वायुमंडल में तरल यौगिक के सक्रिय बने रहने का समय

इस आधार पर जो मूल CFC खोजे गए थे उनका ओजोन विनाशक अंक एक (1) था और आग बुझाने वाले उपकरणों में विद्यमान CFC में 3 से 10 था. इस आधार पर ऐसे यौगिक खोजे जा रहे हैं जो वायुमंडल में बहुत तेजी से फैल जाएँ और ज्यादा देर तक टिके रहें.

ऐसे यौगिकों की खोज करते हुए वैज्ञानिक हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) यौगिकों तक पहुँचे. ये टिकाऊ हैं और वायुमंडल की ऊपरी सतह तक पहुँचते-पहुँचते लगभग इनका विनाश हो जाता है. पर्यावरण की दृष्टि से यदि देखें तो CFC यौगिकों की अपेक्षा HFC यौगिक अधिक स्वीकार्य हैं इनका ओजोन विनाशक अंक शून्य से 0.05 तक है जो CFC की तुलना में बहुत कम है. लेकिन अभी नए HFC यौगिकों पर ज्यादा खोज नहीं हुई है. इस विषय में बहुत कम आँकड़े उपलब्ध हैं और इनकी सत्यता के बारे में शकाएँ उठाई गई हैं.

परन्तु जब तक हम सुरक्षित रसायनों और नई तकनीकों को पूरी तरह से विकसित न कर लें तब तक हमारा कर्तव्य है कि हम पृथ्वी के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की सुरक्षा के लिए ऐसे रसायनों का प्रयोग कम करें जो ओजोन के सुरक्षा कवच को कमजोर बना रहे हैं.

इसी बात को ध्यान में रखते हुए CFC पर पूरे विश्व में प्रतिबंध लगाया जा चुका है.


GS Paper  3 Source: Times of India

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Topic : Artemis Mission

संदर्भ

हाल ही में नासा ने आर्टेमिस अभियान के लिए एक कैलंडर प्रकाशित कर दिया है. विदित हो कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत 50 वर्षों के बाद मनुष्य को चाँद पर भेजा जाना है और इसके लिए आठ प्रक्षेपण होंगे तथा 2024 तक चंद्रमा की कक्षा में एक छोटा स्टेशन स्थापित किया जायेगा.

Artemis-Mission

आर्टेमिस अभियान क्या है?

  • ARTEMIS का पूरा नाम है – Acceleration, Reconnection, Turbulence and Electrodynamics of the Moon’s Interaction with the Sun. इसका नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रमा की देवी, आर्टेमिस, अपोलो की जुड़वाँ बहन पर पड़ा है.
  • इस अभियान में दो अन्तरिक्षयान छोड़े गये थे – P1 और शुरू-शुरू में ये दोनों अन्तरिक्षयान पृथ्वी के प्रकाशपुंज (aurora) का अध्ययन करने के लिए पृथ्वी की कक्षा में छोड़े गये थे. उस समय इस अभियान का नाम थेमिस था. बाद में इन दोनों अन्तरिक्षयानों को चंद्रमा की ओर मोड़ दिया गया जिससे कि ये अपनी शक्ति खोने से बच सकें.
  • नए अभियान से वैज्ञानिक यह आशा करते हैं कि वे इन विषयों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे – चंद्रमा और पृथ्वी के लेग्रेंज बिंदु, सौर पवन, चंद्रमा का प्लाज्मा वेक और पृथ्वी के चुम्बकीय पुच्छ तथा चंद्रमा की अपनी दुर्बल चुम्बकीयता पर सौर पवन का प्रभाव.
  • आर्टेमिस (ARTEMIS) अभियान का उपयोग कर NASA के वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि चंद्रमा के घूर्णन में जो गाढ़े रंग के और हल्के रंग के विशिष्ट पैटर्न बनते हैं, वे सौर पवन और चंद्रमा की पर्पटी के चुम्बकीय क्षेत्रों के कारण होते हैं.

Prelims Vishesh

‘Shaheen-II’ :-

हाल ही में पाकिस्तान ने जमीन पर आधारित एक बैलिस्टिक मिसाइल (शाहीन II) छोड़ा है जिसका नाम पाकिस्तानी पहाड़ों में पाई जाने वाली बाज की एक प्रजाति शाहीन पर रखा गया है.

The white-throated rail :-

white-throated-rail

  • नए शोध से पता चला है कि एक समय विलुप्त हो जाने वाला उजले गले वाला रेल पक्षी फिर से उत्पन्न हो गया.
  • विदित हो कि यह उड़ने में अशक्त हिन्द महासागर का एकमात्र पक्षी है जिसका आकार मुर्गे के जितना होता है और यह पक्षी मूलतः मेडागास्कर का रहने वाला है.

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