Sansar डेली करंट अफेयर्स, 24 March 2021

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Sansar Daily Current Affairs, 24 March 2021


GS Paper 1 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Issues related to women.

Topic : Istanbul Convention

संदर्भ

हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्गोआन ने अपने देश को महिला सुरक्षा से जुड़े “इस्तांबुल कन्वेंशन” से बाहर कर लिया है. इसके बाद से तुर्की में आम महिलाओं से लेकर मानवाधिकार संगठनों के द्वारा विरोध प्रदर्शन प्रारम्भ हो गये हैं.

मुख्य तथ्य

  • इस्तांबुल कन्वेंशन से बाहर निकलने के पक्ष में तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्गोआन ने तर्क दिया है कि ऐसा समझौता घर तोड़ने और तलाक के मामले बढ़ाने वाला है. विदित हो कि बीते वर्ष में तुर्की में महिलाओं की हत्या और तलाक के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है.
  • तुर्की सरकार का कहना है कि उनके संविधान में विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों की गारंटी दी गई है और उनकी न्यायिक प्रणाली आवश्यकता पड़ने पर बनाए गए नियम-क़ानूनों को लागू करने के मामले में गतिशील और दृढ है.

फिर दिक्कत क्या है?

  • तुर्की के नागरिक समाज के द्वारा सरकार के इस निर्णय को कट्टरपंथी दबाव में झुकने के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि रूढ़िवादि कट्टरपंथीयों का मानना है कि यह समझौता पारिवारिक संरचनाओं को कमजोर करता है इसके साथ ही कट्टरपंथी लैंगिक समानता का विरोध करते हैं.
  • समाजिक कार्यकर्ता तुर्की में बढ़ती घरेलू हिंसा से निपटने के लिए इस समझौते को महत्त्वपूर्ण मान रहे है और इसके साथ बने रहने की माँग कर रहे है.
  • इसके अतिरिक्त इस्तांबुल कन्वेंशन LGBT समुदाय का समाज में समान अधिकारों और व्यापक स्वीकृति की माँग के लिए करता है, जिससे तुर्की रूढ़िवादी सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया था.

इस्तांबुल कन्वेंशन क्या है?

इसे, ‘महिलाओं और घरेलू हिंसा के विरुद्ध हिंसा की रोकथाम तथा उससे निपटने हेतु यूरोपीय समझौता परिषद्’ (Council of Europe Convention on preventing and combating violence against women and domestic violence) भी कहा जाता है.

  1. यह संधि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की रोकथाम करने और निपटने के लिए विश्व का पहला बाध्यकारी उपकरण है.
  2. इस व्यापक वैधानिक ढाँचे में महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा, घरेलू हिंसा, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, महिला जननांग अंगभंग (female genital mutilation- FGM), तथा सम्मान-आधारित हिंसा (honour-based violence) और बलात विवाह को रोकने के लिए प्रावधान किये गए है.
  3. इस अभिसमय के अंतर्गत, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से निपटने हेतु सरकारों के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित किये गए है.
  4. किसी देश की सरकार के द्वारा अभिसमय के पुष्टि किये जाने के पश्चात वह इस संधि का पालन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य होते हैं.
  5. मार्च 2019 तक, इस संधि पर 45 देशों तथा यूरोपीय संघ द्वारा हस्ताक्षर किये गए है.
  6. इस अभिसमय को अप्रैल 2011 को यूरोपीय परिषद की ‘कमेटी ऑफ़ मिनिस्टर्स’ द्वारा अपनाया गया था.

GS Paper 1 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Issues related to Women.

Topic : Corrective voice from Supreme Court against stereotyping women

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने एक हाल के लिए निर्णय में –

  1. न्यायाधीशों के लिए लैंगिक रूढि़वादी टिप्पणी करने से मना किया गया हैं.
  2. न्यायालयों के लिए किसी यौन अपराधी और पीड़ित के बीच समझौता कराने अथवा विवाह कराने के लिए कोशिशों पर रोक लगा दी गयी है.

पृष्ठभूमि

सर्वोच्च का यह निर्णय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा निर्गत एक आदेश के विरुद्ध एक अपील पर आधारित था. मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने छेड़छाड़ के आरोपी व्यक्ति को पीड़ित महिला से राखी बंधवाने का निर्देश दिया था.

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा 1 मार्च को आभासी सुनवाई के दौरान की गई एक टिप्पणी पर चारों ओर से होने वाली आलोचनाओं के बाद आया है. मुख्य न्यायाधीश ने बलात्कार के आरोपी के वकील से यह पूछा था कि क्या उसका मुवक्किल पीड़ित महिला से विवाह करेगा?

सर्वोच्च न्यायालय का तर्क

  1. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जाने वाली इस प्रकार लैंगिक रूढ़िवादी टिप्पणियाँ, यौन अपराधों की गंभीरता को कम करती है, तथा पीड़ित को महत्त्वहीन बनाती हैं.
  2. यहाँ तक ​​कि न्यायालय में इस प्रकार के आदेश या अभिव्यक्ति का अकेला उदाहरण, देश की पूरी न्यायिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, और सभी को, विशेष रूप से यौन हिंसा (गंभीर अपराधों से लेकर तथाकथित छोटे अपराध तक) के शिकार व्यक्ति को निष्पक्ष न्याय की गारंटी देने से सम्बंधित दावे को खोखला कर देता है .

लैंगिक रूढ़िवादिता के विरुद्ध पूर्व के निर्णय

  1. कामकाजी स्थानों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर विशाखा दिशानिर्देशों का निर्धारण हुआ था.
  2. सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के लिए स्थाई कमीशन प्राप्त करने के लिए समान अवसर देते हुए जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ का एक बहुत बड़ा निर्णय आया था. इसमें जस्टिस चंद्रचूड़ ने, संस्था द्वारा किये गए दावे, ‘महिलाएँ पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप से कमजोर होती है’ की आलोचना भी की थी.
  3. अनुज गर्ग वाद में, सुप्रीम कोर्ट ने ‘रूमानी पितृव्यवहार की धारणा’ को फटकार लगाई थी, जिसमें व्यावहारिक रूप से, महिलाओं को किसी पद-प्रतिष्ठा पर नहीं, बल्कि एक पिंजरे में रखा जाता है.

GS Paper 1 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Population and associated issues, poverty and developmental issues, urbanization, their problems and their remedies.

Topic : Global Hunger Index 2021

संदर्भ

हाल ही में वैश्विक भूख सूचकांक 2021 (Global hunger Index-2021) की रिपोर्ट जारी की गयी है. हालाँकि GHI  में भारत की रैंकिंग वर्ष 2019 में 102 से बढ़कर 94 (107 देशों में से) हो गई है, तथापि भारत नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों से पीछे है.

global hunger index

वैश्विक भूख सूचकांक 2021 से सम्बंधित मुख्य तथ्य

  • वर्तमान में, 27.2 स्कोर के साथ, भारत “गंभीर” भुखमरी की श्रेणी अंतर्गत है.
  • इसके अतिरिक्त, व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (Comprehensive National Nutrition Survey: CNNS) 2017-18 जैसे राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण के अनुसार भारत की स्थिति में सुधार हुआ है.

वैश्विक भूख सूचकांक

  • विदित हो कि यह सूचकांक प्रतिवर्ष Welthungerhilfe और Concern Worldwide नामक संस्थाओं द्वारा प्रकाशित किया जाता है. इस सूचकांक में विभिन्न देशों में भूख की स्थिति का तीन आयामों से पता लगाया जाता है – कम कैलोरी लेना, बाल कुपोषण तथा बाल मृत्यु दर.
  • इस सूचकांक में रैंकिंग अधिकतम 100 पॉइंट की होती है जिसमें शून्य का अर्थ सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग और 100 का अर्थ सबसे बुरी रैंकिंग होता है.
  • यदि किसी देश को 10 से कम पॉइंट मिलते हैं तो उसका तात्पर्य होगा कि वहाँ भूख की उपस्थिति कम है. इसी प्रकार 20 से 9 पॉइंट का अभिप्राय है कि भूख की उपस्थिति गंभीर है. पुनः 35 से 49.9 का अर्थ होता है कि स्थिति खतरनाक हो गई है तथा 50 से ऊपर पॉइंट होने पर उस देश में भूख की स्थिति अत्यंत खतरनाक मानी जायेगी.

कार्यप्रणाली

GHI स्कोर चार घटक संकेतकों के मूल्यों पर आधारित है:-

  1. अल्पपोषण (undernourishment) – जनसंख्या का वह हिस्सा, जो अपर्याप्त कैलरी ग्रहण कर रहा है.
  2. बाल दुबलापन (child wasting) – लंबाई की तुलना में अल्प वजन वाले 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों का जनसंख्या में हिस्सा.
  3. बाल ठिगनापन (child stunting) – आयु की तुलना में निम्न लंबाई वाले 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों का जनसंख्या में हिस्सा.
  4. बाल मृत्यु दर (child mortality) – 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : National Pharmaceutical Pricing Authority (NPPA)

संदर्भ

हाल ही में राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority – NPPA)  ने 80 से अधिक दवाओं पर मूल्य विनियमन लागू किया है.

दवाओं की अधिक वहनीयता सुनिश्चित करने के लिए, NPPA ने औषध मूल्य नियंत्रण आदेश (Drugs Prices Control Order – DPCO) 2013  के प्रावधानों के अनुसार इन दवाओं के मूल्य-विनियमन का निर्णय लिया है.

DPCO

  • DPCO, 2013 का अनुच्छेद 19, असाधारण परिस्थितियों में दवा की कीमतों में वृद्धि अथवा कमी से संबंधित है. हालाँकि, कीमतों की सीमा में सुधार के लिए कोई निश्चित पूर्व उदाहरण अथवा फॉर्मूला निर्धारित नहीं है.
  • DPCO, दवा की कीमतों को विनियमित करने के लिए रसायन और उर्वरक मंत्रालय (MoCF) के विशेषज्ञों का एक स्वतंत्र निकाय है.
  • DPCO, आवश्यक और जीवन रक्षक दवाओं की कीमतों के विनियमन के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अंतर्गत MoCF द्वारा जारी किया गया था.

मूल्य निर्धारण प्रणाली

  • DPCO एक बाजार आधारित मूल्य निर्धारण प्रणाली का अनुसरण करता है. सीलिंग प्राइस (अधिकतम मूल्य) किसी दवा के कुल बाजार कारोबार का कम से कम एक प्रतिशत बाजार हिस्सा रखने वाले सभी ब्रांड के एक साधारण औसत मूल्य और साथ ही साथ एक खुदरा विक्रेता के कल्पित 16 प्रतिशत लाभ के आधार पर निर्धारित किया जाता है.  
  • ये मूल्य नियंत्रण “अनुसूचित दवाओं” (Scheduled drugs) या “अनुसूचित सूत्रीकरण” (Scheduled formulations) पर लागू होते हैं (वे दवाएँ, जो DPCO की अनुसूची 1 में सूचीबद्ध हैं).
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, आवश्यक औषधियों की राष्ट्रीय सूची (National List of Essential Medicines: NLEM) तैयार करता है.
  • सामान्य स्थिति में उपचार के लिए आवश्यक मानी जाने वाली ये दवाएँ, स्वतः DPCO के अंतर्गत मूल्य नियंत्रणाधीन हो जाती हैं. हालाँकि, DPCO के अंतर्गत, सरकार को चिकित्सकीय आवश्यकता वाली किसी भी मद को मूल्य नियंत्रण के तहत सम्मिलित करने का विशेषाधिकार प्राप्त है.

NPPA

  • राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority) का गठन 29 अगस्त, 1997 को औषध विभाग (डीओपी), रसायन और उर्वरक मंत्रालय के एक संलग्न कार्यालय के रूप में किया गया था.
  • यह दवाओं के मूल्य निर्धारण और सस्ती कीमतों पर दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र नियामक के रूप में कार्य करता है.
  • यह औषधि कीमत नियंत्रण आदेश (Drugs Price Control Order: DPCO) के प्रावधानों को भी लागू करता है और उनका प्रवर्तन करता है.
  • यह रसायन और उर्वरक मंत्रालय के औषध विभाग का एक संलग्न कार्यालय है.
  • राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण का मुख्यालय दिल्ली में है.

आवश्यक औषधियों की राष्ट्रीय सूची (NLEM) के बारे में

औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश, 2013 के प्रावधानों के अंतर्गत, ‘राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) द्वारा मात्र आवश्यक औषधियों की राष्ट्रीय सूची (NLEM) में दर्ज दवाओं की कीमतों पर निगरानी और नियंत्रण द्वारा किया जाता है.

  1. आवश्यक दवाएँ (Essential medicines) वे होती हैं, जो जनसंख्या के अधिकांश लोगों की स्वास्थ्य संबंधी प्राथमिकता वाली आवश्यकताओं को पूरा करती हैं.
  2. NLEM का मुख्य उद्देश्य तीन महत्त्वपूर्ण पहलुओं, अर्थात् लागत, सुरक्षा और प्रभावकारिता पर विचार करते हुए दवाओं के तर्कसंगत उपयोग को प्रोत्साहन देना है.

Prelims Vishesh

Gandhi Peace Prize  :-

  • हाल ही में बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्हमान और ओमान के पूर्व सुल्तान काबूस बिन सैद अल सैयद को क्रमश: वर्ष 2020 और वर्ष 2019 के लिए गाँधी शांति पुरस्कार (Gandhi Peace Prize ) देने की घोषणा की गई है.
  • गाँधी शांति पुरस्कार भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वार्षिक पुरस्कार है जिसे 1995 से प्रदान किया जा रहा है.
  • इस पुरस्कार की स्थापना महात्मा गाँधी की 125वीं जयंती पर की गई थी.
  • पुरस्कार सभी व्यक्तियों के लिए खुला है चाहे उनकी राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग कोई भी हो.

Sinatra Doctrine :-

  • मध्य और पूर्वी यूरोप के देशों द्वारा चीनी प्रभाव के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए इस सिद्धांत का अंगीकरण किया गया है.
  • यह सिद्धांत दो स्तंभों पर आधारित है, जैसे – i) वैश्विक चुनौतियों जैसे जलवायु परिवर्तन आदि से निपटने के लिए चीन के साथ सहयोग जारी रखना और ii) न्यूज प्लेटफॉर्म ईयू रिपोर्टर के अनुसार, अपनी अर्थव्यवस्था के तकनीकी क्षेत्रों को संरक्षण प्रदान करके यूरोपीय संघ की रणनीतिक संप्रभुता को सुदृढ़ करना.
  • सिनात्रा सिद्धांत वस्तुत: सोवियत संघ (USSR) की नीति को भी संदर्भित करता है.
  • इसके अंतर्गत ईस्ट ब्लॉक सरकारों (पूर्वी यूरोप के देशों) को अधिक स्वायत्तता और स्वशासन की स्वीकृति प्रदान की गई थी.

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