Sansar डेली करंट अफेयर्स, 23 August 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 23 August 2019


GS Paper 2 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Issues relating to development and management of Social Sector/Services relating to Health, Education, Human Resources.

Topic : NISHTHA– National Initiative for School Heads and Teachers Holistic Advancement

संदर्भ

भारत सरकार के मानव विकास संसाधन मंत्री ने पिछले दिनों  पूरे देश के 42 लाख सरकारी शिक्षकों की क्षमता के संवर्धन के लिए निष्ठा (NISHTHA) नामक एक कार्यक्रम का अनावरण किया.

NISHTHA क्या है?

  • NISHTHA का पूरा नाम है – National Initiative for School Heads and Teachers Holistic Advancement.
  • यह पूरे विश्व में शिक्षकों के प्रशिक्षण का एक विशालतम कार्यक्रम है.
  • इसका उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर ज्ञानार्जन में सुधार लाना है.
  • यह कार्यक्रम छात्रों में आलोचनात्मक चिंतन को बढ़ावा देने और संपोषित करने के लिए शिक्षकों को प्रेरित करेगा.
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत सभी राज्यों और संघीय क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मानकीकृत प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाये जाएँगे. राज्य और संघीय क्षेत्र चाहें तो इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों को अपने-अपने क्षेत्र के सन्दर्भ में संशोधित कर सकते हैं और अपने-अपने प्रशिक्षकों और सामग्रियों का उपयोग कर सकते हैं.
  • इस समेकित कार्यक्रम में कई गतिविधियाँ शामिल होंगी, जैसे – शैक्षणिक खेल और पहेली, सामाजिक-भावनात्मक ज्ञानार्जन, प्रेरणादाई संवाद, दल निर्माण, विद्यालय-आधारित मूल्यांकन की तैयारी, फीडबैक की सतत व्यवस्था, ऑनलाइन अनुश्रवण, प्रशिक्षण की आवश्यकता और प्रभाव का प्रशिक्षण से पहले और बाद में विश्लेषण.

यह कार्यक्रम आवश्यक क्यों?

समय की माँग है कि आज हमारे शिक्षक इन प्रावधानों की जानकारी रखें – लैंगिक समानता , दिव्यांग अधिकार अधिनियम और यौन अपराधों से बाल संरक्षण अधिनियम (POCSO).

NISHTHA कार्यक्रम सभी शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों को ऐसा प्रशिक्षण देना चाहता है जिससे कि वे छात्रों की आवश्यकताओं के प्रति ध्यान दें और उन्हें उचित मंत्रणा दें. साथ ही वे ऐसा वातावरण बनाएँ कि बच्चे हँसते-हँसते ज्ञान अर्जित करें और निःशक्त बच्चों की आवश्यकताओं का विशेष ध्यान रखें.


GS Paper 2 Source: Indian Express

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : CITES — India demands removal of rosewood from CITES

संदर्भ

वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद् (EPCH) ने कहा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने CITES के अनुसूची- II से डालबर्गिया सिसो (शीशम) को सूची से हटाने के लिए CITES को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है.

पृष्ठभूमि

वर्ष 2016 में CITES के अनुसूची- II में डालबर्गिया जीनस (जिसमें शीशम और रोजवुड सहित करीब 200 प्रजातियां हैं) को सूचीबद्ध किया गया था. अनुसूची- II के तहत शीशम की लकड़ी से बनी वस्तुओं के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध है.

भारत सरकार का कहना है कि शीशम वृक्ष के अस्तित्व के लिए खतरा नहीं है और यह जंगलों और खेतों में बहुतायत में उपलब्ध है. भारत से लकड़ी की कलात्मक वस्तुओं का निर्यात वर्ष 2018-19 के दौरान 5,424.91 करोड़ रुपये का रहा जो एक साल पहले से 27.13 प्रतिशत अधिक है.

CITES क्या है?

  • CITES का पूरा नाम है – Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora.
  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो वन्यजीवों और पौधों के वाणिज्यिक व्यापार को विश्व-भर में नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया था.
  • यह पौधों और पशुओं से बनने वाले उत्पादों के व्यापार पर भी प्रतिबंध लगाता है, जैसे – खाद्य पदार्थ, कपड़े, औषधि और स्मृति-चिन्ह आदि.
  • यह संधि मार्च 3, 1973 में हस्ताक्षरित हुई थी और यह 35,000 से अधिक वन्यजीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के ऊपर नियंत्रण रखती है. इसलिए मार्च 3 को विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है.
  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय नियामक संधि है जिसपर 183 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं.
  • इस संधि का ध्यान-बिंदु मात्र प्रजातियों की रक्षा ही नहीं है. यह नियंत्रित ढंग से व्यापार को उन प्रजातियों के व्यापार को बढ़ावा भी देता है जिससे वन्य प्रजातियों की सततता को आँच नहीं आती है.
  • इस संधि का प्रशासन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme – UNEP) के अधीन होता है.
  • इसका सचिवालय जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में है.
  • CITES पर हस्ताक्षर करने वाले देश संधि के नियमों से कानूनी रूप से बंधे होते हैं.

पशुओं और पौधों का वर्गीकरण

CITES विभिन्न पशुओं और पौधों पर विलुप्ति के खतरे के मात्रा के अनुसार उन्हें तीन अनुसूचियों में बाँटता है, ये हैं –

अनुसूची I : इस सूची में वे प्रजातियाँ आती हैं जिनपर विलुप्ति का संकट होता है. इस सूची के प्रजातियों के वाणिज्यिक व्यापार पर प्रतिबंध होता है. मात्र वैज्ञानिक अथवा शैक्षणिक कारणों से असाधारण स्थिति में इनका व्यापार हो सकता है.

अनुसूची II : इसमें वे प्रजातियाँ आती हैं जो विलुप्ति के कगार पर तो नहीं हैं, परन्तु यदि इनका व्यापार प्रतिबंधित नहीं हो तो इनकी संख्या में भारी गिरावट आ जायेगी. इनके व्यापार को परमिट के द्वारा नियंत्रित किया जाता है.

अनुसूची III : इसमें वह प्रजाति आती है जो CITES के सदस्य देशों में किसी एक देश में सुरक्षित घोषित है और उस देश ने अन्य देशों से उस प्रजाति में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने में सहायता मांगी हो.

व्यापार की छूट देने की प्रक्रिया

राष्ट्रीय स्तर CITES का प्रबंधन करने वाले अधिकारी किसी वन्य प्रजाति के व्यापार के लिए तभी छूट देते हैं जब वैज्ञानिक यह सिद्ध कर देते हैं कि इससे वन्यजीवन को कोई हानि नहीं होगी. दूसरे शब्दों में यह वैज्ञानिक साक्ष्य आवश्यक होता है जिससे पता चले कि सम्बन्धित प्रजाति का व्यापार करने से उसकी सततता पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा. जहाँ इस विषय में आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, वहाँ सावधानी के सिद्धांत का पालन किया जाता है.

CITES के प्रावधान उस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों के लिए वैधानिक रूप से बाध्यकारी होते हैं.


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Issues related to health.

Topic : New anti-tuberculosis drug

संदर्भ

MDR-TB और XDR-TB के उपचार के लिए अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (U.S. Food & Drug Administration  – FDA) ने प्रेटोमेनिड (Pretomanid) नामक  एक नई औषधि को अपना अनुमोदन दे दिया है.

मुख्य तथ्य

  • प्रेटोमेनिड के पहले FDA ने विगत चालीस वर्षों में दो ही यक्ष्मा निरोधक नई औषधियों को अपनी स्वीकृति दी थी.
  • औषधि प्रतिरोधी यक्ष्मा के उपचार में डेढ़ से दो वर्ष लगते हैं. परन्तु प्रेटोमेनिड के प्रयोग से यह अवधि घटकर छह से लेकर नौ महीने हो जायेगी. परन्तु इसके लिए इसके साथ-साथ bedaquiline और linezolid भी दवाएँ भी चलानी होंगी.
  • ये तीनों दवाएँ मुंह से ली जाने वाली दवाएँ हैं.
  • इनके प्रयोग से यक्ष्मा से होने वाली मृत्यु की संख्या घटने की संभावना है.

MDR-TB और XDR-TB क्या है?

  • आज किसी को यक्ष्मा होती है तो चिकित्सक उसे सबसे पहले isoniazid और rifampicin दवाएँ देते हैं जिनसे रोगी ठीक हो जाया करता है. परन्तु यदि इन दवाओं से रोग ठीक नहीं होता है तो उस यक्ष्मा को MDR-TB कहते हैं.
  • जिस यक्ष्मा पर isoniazid और rifampicin के साथ-साथ fluoroquinolone एवं त्वचा के अन्दर सूई के माध्यम से दी जाने वाली तीन दवाओं यथा – amikacin, kanamycin, अथवा capreomycin, में से कम-से-कम एक दवा का असर नहीं होता तो इस यक्ष्मा को XDR-TB कहा जाता है.
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक यक्ष्मा प्रतिवेदन, 2018 के अनुसार विश्व-भर में 5 लाख लोग MDR-TB से और 37,500 लोग XDR-TB की चपेट में हैं.
  • विश्व-भर में MDR-TB के जितने मामले में हैं उनमें 24% भारत में ही हैं. जहाँ तक XDR-TB की बात है, इस यक्ष्मा के मामले 2017 के अंत में भारत सहित 127 देशों में पाए गये थे.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Conservation and pollution related issues.

Topic : World Bank report on water pollution

संदर्भ

विश्व बैंक ने जल प्रदूषण के विषय में एक प्रतिवेदन प्रकाशित किया है. यह प्रतिवेदन वैश्विक जल गुणवत्ता के सम्बन्ध में संग्रह किये गये अब तक के सबसे बड़े डाटाबेस पर आधारित है जिसका निर्माण अनुश्रवण केन्द्रों, उपग्रह डाटा और मशीन लर्निंग मॉडलों का प्रयोग कर के तैयार किया गया है.

प्रतिवेदन के मुख्य निष्कर्ष

  • आर्थिक वृद्धि के लिए स्वच्छ जल एक प्रमुख कारक है. जल की बिगड़ती हुई गुणवत्ता के कारण कई देशों में आर्थिक वृद्धि थम गई है और स्वास्थ्य की दशा बुरी हो गई है. इसके अतिरिक्त इसके चलते खाद्यान्न का उत्पादन घट गया है तथा दरिद्रता का बोलबाला हो गया है.
  • अत्यधिक प्रदूषित जल के कारण कुछ देशों में आर्थिक वृद्धि में एक तिहाई की कमी है.
  • प्रदूषण का संकेत करने वाले सूचकांक – जैव ऑक्सीजन माँग (Biological Oxygen Demand) – प्रति लीटर 8 मिलीग्राम की सीमा पार कर जाती है तो GDP की वृद्धि 83% घट जाती है.
  • जल के प्रदूषित होने का प्रमुख कारक नाइट्रोजन होता है. यह गैस खेती के लिए अत्यावश्यक होती है, परन्तु यह बहकर नदियों और समुद्रों तक पहुँच जाती है और वहाँ पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घटा देती है और फलतः मृत जोन बन जाते हैं. यही गैस वायु में नाइट्रस ऑक्साइड नामक एक ग्रीन हाउस गैस बनाती है.
  • नाइट्रेटों के सम्पर्क में आने पर बच्चों के शरीर और मस्तिष्क का विकास दुष्प्रभावित हो जाता है.
  • यह सच है कि खेती में एक किलोग्राम अतिरिक्त नाइट्रोजन खाद प्रति हेक्टेयर डाली जाती है तो उत्पादन 5% बढ़ जाता है. परन्तु इस खाद के कारण बच्चों का विकास 19% तक कुंठित हो जाता है और बड़े होकर ऐसे बच्चों की आय अन्य दुष्प्रभाव रहित लोगों की तुलना में 2% घटी हुई होती है.
  • प्रतिवेदन के अनुसार सिंचाई, तेज वर्षा जल के प्रवाह, खाद के बह जाने से और शहरों से आने वाले अपशिष्ट जल के कारण मिट्टी की लवणीयता बढ़ रही है और इस कारण कृषि उत्पादन घट रहा है.
  • लवणयुक्त जल के कारण प्रत्येक वर्ष जितने खाद्यान की मात्रा उत्पन्न नहीं हो रही है उससे 170 मिलियन लोगों को अर्थात् बांग्लादेश की सम्पूर्ण जनसंख्या को खाना दिया सकता था.

GS Paper 3 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Infrastructure- energy.

Topic : SARAL – ‘State Rooftop Solar Attractiveness Index’

संदर्भ

पिछले दिनों सरल (SARAL) अर्थात् छत के ऊपर लगाये जाने वाले सौर संयंत्रों की आकर्षकता सूचकांक (State Rooftop Solar Attractiveness Index) का अनावरण हुआ. यह सूचकांक छत पर लगने वाले सौर यंत्रों के विकास के क्षेत्र में हुए आकर्षक कार्य के अनुसार राज्यों को सूचीबद्ध करता है. दूसरे शब्दों में सरल यह बतलाता है कि राज्यों के स्तर पर ऐसे सौर यंत्रों के अधिष्ठापन की दिशा में क्या-क्या उपाय किये गये हैं.

सरल की रूपरेखा नवीन एवं नावीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, शक्ति सतत ऊर्जा फाउंडेशन, ASSOCHAM और Ernst & Young संस्था ने मिल-जुलकर तैयार की है.

यह सूचकांक इन पाँच पहलुओं के बारे में जानकारी देता है –

  1. नीतिगत सुदृढ़ता
  2. कार्यान्वयन का वातावरण
  3. निवेश का परिवेश
  4. ग्राहकों का अनुभव
  5. व्यवसाय तंत्र

मुख्य निष्कर्ष

  • इस सूचकांक में पहला स्थान कर्नाटक को मिला है.
  • तेलंगाना, गुजरात और आंध्र प्रदेश का स्थान क्रमशः दूसरा, तीसरा और चौथा रहा.

घरों के ऊपर लगने वाला सौर संयंत्र क्या है?

सौर ऊर्जा को बड़े पैमाने पर उत्पादित करने के लिए विशाल संयंत्र अधिष्ठापित किए जाते हैं. साथ ही साथ कुछ ऐसे छोटे-मोटे सौर संयंत्र भी होते हैं जिन्हें घर के छतों पर अथवा वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के भवनों के ऊपर लगाया जाता है. इन संयंत्रों को ही छतों पर लगने वाले सौर संयंत्र कहा जाता है. यदि ऐसा संयंत्र किसी वाणिज्यिक भवन के ऊपर लगा हो तो उसे वाणिज्यिक संयंत्र कहेंगे और यदि किसी निवास-स्थान के ऊपर लगा हो तो उसे रिहायसी संयंत्र कहा जाता है.

रूफटॉप सोलर कार्यक्रम

  • इस कार्यक्रम को 11,814 करोड़ रुपये की कुल केन्‍द्रीय वित्तीय सहायता के साथ कार्यान्वित किया जाएगा.
  • कार्यक्रम के दूसरे चरण में आवासीय क्षेत्र के लिए केन्‍द्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) का पुनर्गठन किया गया है.
  • इसके तहत 3 किलोवाट तक की क्षमता वाली आरटीएस प्रणालियों के लिए 40 प्रतिशत सीएफए और 3 किलोवाट से ज्‍यादा एवं 10 किलोवाट तक की क्षमता वाली आरटीएस प्रणालियों के लिए 20 प्रतिशत सीएफए उपलब्‍ध कराई जाएगी.
  • ग्रुप हाउसिंग सोसायटियों/आवासीय कल्‍याण संघों (जीएचएस/आरएडब्‍ल्‍यू) के मामले में साझा सुविधाओं को विद्युत आपूर्ति हेतु आरटीएस संयंत्रों के लिए सीएफए को 20 प्रतिशत तक सीमित रखा जाएगा. हालांकि, जीएचएस/आरएडब्‍ल्‍यू के लिए सीएफए हेतु मान्‍य क्षमता प्रति मकान 10 किलोवाट तक ही सीमित होगी.
  • इसके अंतर्गत अधिकतम कुल क्षमता 500 केडब्‍ल्‍यूपी तक होगी, जिसमें जीएचएस/आरएडब्‍ल्‍यू के अंतर्गत व्‍यक्तिगत मकानों में लगाए गए आरटीएस की क्षमता भी शामिल होगी.
  • आवासीय श्रेणी के तहत सीएफए 4000 मेगावाट की क्षमता के लिए मुहैया कराई जाएगी और यह मानक (बेंचमार्क) लागत या निविदा लागत, इनमें से जो भी कम हो, के आधार पर उपलब्‍ध कराई जाएगी.
  • केन्‍द्रीय वित्तीय सहायता अन्‍य श्रेणियों यथा संस्‍थागत, शैक्षणिक, सामाजिक, सरकारी, वाणिज्यिक, औद्योगिक इत्‍यादि के लिए उपलब्‍ध नहीं होगी.
  • कार्यक्रम के दूसरे चरण के अंतर्गत वितरण कंपनियों (डिस्‍कॉम) की ज्‍यादा सहभागिता पर फोकस किया जाएगा.

कार्यक्रम के लाभ

  • इस कार्यक्रम का कार्बन डाई ऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन में बचत की दृष्टि से व्‍यापक पर्यावरणीय प्रभाव पड़ेगा.
  • प्रति मेगावाट 5 मिलियन यूनिटों के औसत ऊर्जा उत्‍पादन को ध्‍यान में रखते हुए यह उम्‍मीद की जा रही है कि वर्ष 2022 तक कार्यक्रम के चरण-2 के तहत 38 गीगावाट (जीडब्‍ल्‍यू) की क्षमता वाले सोलर रूफटॉप संयंत्रों की स्‍थापना से प्रति वर्ष कार्बन डाई ऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन में लगभग 6 टन की कमी होगी.
  • इस कार्यक्रम में रोजगार सृजन की संभावनाएं भी निहित हैं.
  • इस कार्यक्रम के द्वारा स्‍व-रोजगार को बढ़ावा मिलने के अलावा वर्ष 2022 तक योजना के चरण-2 के अंतर्गत 38 जीडब्‍ल्‍यू की क्षमता वृद्धि हेतु कुशल एवं अकुशल कामगारों के लिए 39 लाख रोजगारों के समतुल्‍य रोजगार अवसर सृजित होने की संभावना है.
  • ऐसे छोटे सौर संयंत्रों का एक बड़ा लाभ यह है कि जिन दूरस्थ स्थानों में बिजली नहीं पहुँचती है वहाँ इनको लगाया जा सकता है.

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