Sansar डेली करंट अफेयर्स, 23 April 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 23 April 2020


GS Paper 1 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Population and associated issues, poverty and developmental issues, urbanization, their problems and their remedies.

Topic : Global Report on Food Crises

संदर्भ

खाद्य संकट पर वार्षिक वैश्विक रिपोर्ट का एक नया संस्करण ‘Global Network Against Food Crises’ द्वारा निर्गत किया गया है जिसमें वैश्विक खाद्य संकटों के मुख्य कारणों के संबंध में जानकारी दी गई है और बताया गया है कि कोविड-19 के कारण लाखों लोगों के लिए परिस्थिति और भी विकट हो सकती है.

प्रतिवेदन में व्यक्त की गई चिंताएँ

  • ग्लोबल नेटवर्क ने आशंका जताई है कि खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे लोगों की वास्तविक संख्या अध्ययन में अनुमानित संख्या से कहीं अधिक हो सकती है.
  • वहीं विश्व खाद्य कार्यक्रम ने एक चेतावनी जारी करके कहा है कि कोविड-19 के कारण वर्ष 2020 के अंत तक अस्थाई रूप से भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या दोगुनी, यानी 25 करोड़ से ज़्यादा होने की आशंका है.
  • इनमें 47 देशों में 18 करोड़ से अधिक अतिरिक्त लोग बहुत ही तनाव भरी परिस्थितियों में रहने के लिए विवश हैं और कोविड-19 के विकराल रूप के कारण खाद्य असुरक्षा का निवाला बनने के कगार पर हैं.
  • प्रतिवेदन के अनुसार, खाद्य संकट का सामना कर रहे इन लोगों में 55 देशों में साढ़े सात करोड़ बच्चे कम लम्बाई का शिकार हैं और डेढ़ करोड़ से अधिक बच्चों का पर्याप्त विकास नहीं हो पा रहा है. इनमें से 90 लाख बच्चे खाद्य संकट से सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में हैं.
  • अध्ययन में खाद्य संकट से पहले से पीड़ित लोगों के लिए भोजन सामग्री की आपूर्ति को जारी रखने की महत्ता पर बल दिया गया है.
  • इस प्रतिवेदन में जिन देशों का उल्लेख किया गया है वहाँ स्वास्थ्य प्रणाली या आर्थिक सुरक्षा का ताना-बाना कोविड-19 जैसी विकराल चुनौती के नज़रिए से बहुत ही कमज़ोर है इसलिए इन देशो को दी जाने वाली सहायता का स्तर बढ़ाने की गुहार लगाई गई है.
  • ग्लोबल नैटवर्क के अनुसार, अगर विश्वव्यापी महामारी के कारण लोगों की आजीविका के साधन चले गए तो फिर स्वास्थ्य संकट ख़त्म होने के पश्चात् एक और बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ेगा.

ग्लोबल नैटवर्क द्वारा लिए गए संकल्प

  • भुखमरी के मूल कारकों को दूर करने के लिए प्रयास तेज़ करना
  • कार्रवाई असरदार बनाने के लिए आंकड़ों की उपलब्धता बढ़ाना
  • देशीय व क्षेत्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा में रणनीतिक रूप से निवेश करना
  • मानवीय और विकास कार्यों में समन्वय को बेहतर बनाना  
  • खाद्य मामलों से परे जाकर लोगों की कमज़ोरियों को व्यापक स्तर पर दूर करना

Global Network Against Food Crises

  • ग्लोबल नेटवर्क अगेंस्ट फ़ूड क्राइसेज एक पहल है जिसे 2016 में सम्पन्न विश्व मानवतावादी शिखर सम्मेलन (World Humanitarian Summit – WHS) के समय यूरोपीय संघ, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) तथा विश्व खाद्य कार्यक्रम के द्वारा संयुक्त रूप से आरम्भ किया गया था.
  • इस पहल के मूल में WHS का वह आह्वान था जिसमें अनुशंसा की गई थी कि लम्बे समय तक चलने वाली खाद्य समस्याओं और बार-बार आने वाली आपदाओं के प्रति नया दृष्टिकोण अपनाया जाए तथा विकास एवं मानवतावादी प्रतिभागियों के बीच स्थित अंतराल को पाटते हुए इन समस्याओं से होने वाली क्षतियों में कमी लाया जाए और जोखिम को घटाया जाए.

आगे की राह

खाद्य संकट से पीड़ित देशों पर कोरोनावायरस का असर होने की भी आशंका मंडरा रही है. भुखमरी से पीड़ित लोगों का स्वास्थ्य पहले से ही कमज़ोर है और इससे वायरस का मुक़ाबला कर पाने की उनकी क्षमता कमज़ोर होती है. ऐसे में अगर इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं और खाद्य प्रणालियों पर महामारी के कारण असर पड़ता है तो वे उसे झेल पाने के लिए तैयार नहीं है. हमें अति-आवश्यक फ़ूड सप्लाई चेन को जारी रखना होगा ताकि लोगों की जीवन जीने के लिए आवश्यक भोजन तक पहुंच बनी रहे.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.

Topic : No 100% quota for tribal teachers: SC

संदर्भ

उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित क्षेत्रों के विद्यालयों में शिक्षकों के 100% पद अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित करने के जनवरी 2000 का अविभाजित आंध्र प्रदेश का आदेश निरस्त कर दिया. न्यायालय ने कहा कि यह ‘मनमाना’ है और संविधान के अंतर्गत इसकी अनुमति नहीं है.

ज्ञातव्य है कि आंध्र प्रदेश में अनुसूचित क्षेत्रों में चल रहे विद्यालयों में मात्र जनजातीय शिक्षकों को ही रखने का प्रावधान है जिसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी. संविधान पीठ का यह निर्णय उसी सन्दर्भ में दिया गया है.

सर्वोच्च न्यायालय का तर्क

  • न्यायालय का कहना है कि 100% आरक्षण प्रदान करना ‘अनुचित’ होगा और कोई भी कानून यह अनुमति नहीं देता है कि अनुसूचित इलाकों में मात्र आदिवासी शिक्षक ही पढ़ाएंगे.
  • संविधान पीठ ने अपने निर्णय में 1992 के इन्दिरा साहनी निर्णय का जिक्र किया जिसमें शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया था कि संविधान निर्माताओं ने कभी भी यह परिकल्पना नहीं की थी कि सभी स्थानों के लिए आरक्षण होगा.
  • न्यायालय ने कहा कि 1992 के फैसले के अनुसार विशेष मामले में ही 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण दिया जा सकता है लेकिन इसमें बहुत ही सतर्कता बरतनी होगी.
  • शत प्रतिशत आरक्षण प्रदान करके मेरिट को वंचित नहीं किया जा सकता. पीठ ने कहा कि 100 फीसदी आरक्षण प्रदान करने से सम्बंधित आदेश मनमाना, गैरकानूनी और असंवैधानिक है.
  • पीठ का मंतव्य है कि अनुसूचित क्षेत्रों में स्थित विद्यालयों में 100% जनजातीय शिक्षकों को आरक्षण देने से अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व संभव नहीं हो पायेगा.
  • संविधान नागरिकों को समान अधिकार देता है. 100% आरक्षण इस अधिकार का उल्लंघन है.

सांविधानिक प्रावधान

  • संविधान का अनुच्छेद 51(A) कहता है कि सभी को अवसर एवं अपनी पसंद की आजीविका चुनने का अधिकार है जिसको मनमाने ढंग से एवं अन्यायपूर्ण रीति से छीना नहीं जा सकता है.
  • शत-प्रतिशत आरक्षण संविधान के इन अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है – अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 15(1) (नागरिकों के प्रति भेदभाव) और 16 (समान अवसर).

विश्लेषण

अधिसूचित इलाकों में 100% आरक्षण का प्रावधान करने के लिए कोई असाधारण परिस्थितियां नहीं थीं. यह बेतुका विचार है कि आदिवासियों को सिर्फ आदिवासियों द्वारा ही पढ़ाया जाना चाहिए. यह समझ से परे है कि जब दूसरे स्थानीय निवासी हैं तो वे क्यों नहीं पढ़ा सकते.


GS Paper 2 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Welfare schemes for vulnerable sections of the population by the Centre and States and the performance of these schemes; mechanisms, laws, institutions and bodies constituted for the protection and betterment of these vulnerable sections.

Topic : Ordinance to amend the Epidemic Diseases Act, 1897

संदर्भ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महामारी के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों तथा संपत्ति की रक्षा के लिए महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश 2020 की उद्घोषणा को स्वीकृति दी.

विदित हो कि महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन करने वाले इस अध्यादेश में स्वास्थ्यकर्मियों को पहुंचे जख्म तथा संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या उसे नष्ट करने के लिए मुआवजे की व्यवस्था की गयी है.

अध्यादेश की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  • वर्तमान में कोविड-19 महामारी के दौरान, स्वास्थ्य सेवाओं के कर्मचारियों के साथ कई ऐसी घटनाएं घटीं जिसमें उन्हें निशाना बनाया गया और शरारती तत्वों द्वारा हमले भी हुए. ऐसा कर उन्हें उनके कर्तव्यों को पूरा करने से रोका गया.
  • चिकित्सा समुदाय के सदस्य लगातार चौबीसों घंटे लोगों की जान बचाने के लिए काम कर रहे हैं फिर भी दुर्भाग्यवश वे सबसे ज्यादा आसान शिकार बन गए क्योंकि कुछ लोग उन्हें वायरस के वाहक के तौर पर मानने लगे. इससे उन पर दोषारोपण के साथ उनका बहिष्कार करने के मामले सामने आए और यहाँ तक कि वे हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं का शिकार हुए.
  • अध्यादेश में ऐसी हिंसा की घटनाओं को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध घोषित करने के साथ ही स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को चोट लगने या नुकसान या संपत्ति को नुकसान, जिसमें महामारी के संबंध में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों का सीधा हित जुड़ा हो सकता है, के लिए जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

अध्यादेश के मुख्य बिंदु

  • वर्तमान अध्यादेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मौजूदा महामारी के दौरान किसी भी स्थिति में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा और संपत्ति को लेकर जीरो टॉलरेंस होगा.
  • अध्यादेश में हिंसा को उत्पीड़न, शारीरिक चोट और संपत्ति को नुकसान को सम्मिलित करते हुए परिभाषित किया गया है.
  • स्वास्थ्य सेवा कर्मियों, जिसमें पब्लिक और क्लीनिकल हेल्थकेयर सेवा प्रदाता जैसे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल वर्कर और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता; ऐक्ट के तहत बीमारी के प्रकोप या प्रसार को रोकने के लिए काम करने वाला अधिकार प्राप्त कोई अन्य व्यक्ति; और आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा राज्य सरकार द्वारा घोषित ऐसे व्यक्ति सम्मिलित हैं.
  • दंडात्मक प्रावधानों को संपत्ति के नुकसान के मामलों में लागू किया जा सकता है जिसमें क्लीनिक, क्वारंटीन और मरीजों के आइसोलेशन के लिए निर्धारित केंद्र, मोबाइल मेडिकल यूनिटें और कोई अन्य संपत्ति, जिसका महामारी के संबंध में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों से प्रत्यक्ष संबंध हो.
  • यह संशोधन हिंसा को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाता है. अध्यादेश के अनुसार ऐसी हिंसक कृत्य करने या उसमें सहयोग करने पर तीन महीने से पांच वर्ष तक कैद और 50 हजार से लेकर दो लाख रूपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है.
  • गंभीर चोट/जख्म पहुंचाने पर दोषी को छह माह से लेकर सात साल तक कैद की सजा होगी और एक लाख से लेकर पांच लाख रूपये तक उस पर जुर्माना लगेगा. इसके अलावा, पीड़ित की संपत्ति को हुए नुकसान पर अपराधी को बाजार मूल्य का दोगुना हर्जाना भी देना होगा.
  • 30 दिनों के भीतर इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी द्वारा अपराधों की जांच की जाएगी और सुनवाई एक साल में पूरी होनी चाहिए जबतक कि कोर्ट द्वारा लिखित रूप में कारण बताते हुए इसे आगे न बढ़ाया जाए.

महामारी अधिनियम, 1897 क्या है?

  • यह कानून ख़तरनाक महामारी के प्रसार की बेहतर रोकथाम के लिए बनाया गया है.
  • केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को धारा 2 को लागू करने के लिए कहा है.
  • धारा 2 में कहा गया है – जब राज्य सरकार को किसी समय ऐसा लगे कि उसके किसी भाग में किसी ख़तरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है या होने की आशंका हैतब अगर वो (राज्य सरकार) ये समझती है कि उस समय मौजूद क़ानून इस महामारी को रोकने के लिए काफ़ी नहीं हैंतो कुछ उपाय कर सकती है. ऐसे उपायजिससे लोगों को सार्वजनिक सूचना के जरिए रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम हो सके.
  • इस अधिनियम के धारा 2 के भी 2 उप-धारा हैं. इसमें कहा गया है कि जब केंद्रीय सरकार को ऐसा लगे कि भारत या उसके अधीन किसी भाग में महामारी फ़ैल चुकी है या फैलने का ख़तरा हैतो रेल या बंदरगाह या अन्य तरीके से यात्रा करने वालों कोजिनके बारे में ये शंका हो कि वो महामारी से ग्रस्त हैंउन्हें किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रखने का अधिकार होगा.
  • महामारी अधिनियम 1897 का धारा-जुर्माने के बारे में है. इसमें कहा गया है कि महामारी के संबंध में सरकारी आदेश न मानना अपराध होगा. इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता यानी इंडियन पीनल कोड की धारा 188 के तहत सज़ा मिल सकती है.
  • इस अधिनियम का धारा 4 क़ानूनी सुरक्षा के बारे में है. जो अधिकारी इस ऐक्ट को लागू कराते हैं, उनकी क़ानूनी सुरक्षा भी यही ऐक्ट सुनिश्चित करता है. ये धारा सरकारी अधिकारी को लीगल सिक्योरिटी दिलाता है. कि ऐक्ट लागू करने में अगर कुछ उन्नीस-बीस हो गया, तो अधिकारी की ज़िम्मेदारी नहीं होगी.

आगे की राह

ऐसे हालात चिकित्सा समुदाय को कर्तव्यों को पूरा करते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ देने और मनोबल बनाए रखने में बाधा बनते हैं, जो इस राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट की घड़ी में बेहद जरूरी है. स्वास्थ्य सेवा कर्मी बिना किसी भेदभाव के अपना काम कर रहे हैं तो समाज का सहयोग और समर्थन मिलना एक मूलभूत जरूरत है, जिससे वे पूरे विश्वास के साथ अपने कर्तव्यों को निभा सकें.

हेल्थ वर्कफोर्स (स्वास्थ्य कर्मी) कोविड-19 से लड़ने में हमारे अग्रिम पंक्ति के सिपाही हैं. वे दूसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. वे इस समय उत्पीड़न या हिंसा नहीं बल्कि हमारे सर्वोच्च सम्मान और प्रोत्साहन के पात्र हैं. यह आशा की जाती है कि इस अध्यादेश से स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के समुदाय में भरोसा बढ़ेगा जिससे वे मौजूदा कोविड-19 के प्रकोप के दौरान सामने आई विपरीत परिस्थितियों में अपनी अनवरत सेवाओं के माध्यम से मानव जाति की सेवा में अपना योगदान जारी रख सकें.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian diaspora.

Topic : World Bank report on remittances

संदर्भ

विश्व बैंक ने हाल ही में एक प्रतिवेदन जारी किया जो प्रवास और धन प्रेषण पर कोविड-19 के प्रभाव से सम्बंधित है.

भारत विशिष्ट अवलोकन

भारत में धन प्रेषण 2020 के दौरान लगभग 23 प्रतिशत घटकर 64 अरब अमेरिकी डॉलर रह जाने का अनुमान है, जबकि 2019 के दौरान यह 83 अरब डॉलर था.

प्रतिवेदन के मुख्य तथ्य

  • प्रतिवेदन में कहा गया कि कोविड-19 महामारी और इसके चलते लॉकडाउन के कारण इस साल पूरी दुनिया में धन प्रेषण में 20 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है.
  • प्रतिवेदन के अनुसार, यह गिरावट हाल के इतिहास में सबसे अधिक है और मोटेतौर पर प्रवासी श्रमिकों के वेतन और रोजगार में कमी के कारण ऐसा होगा.
  • विश्व बैंक का अनुमान है कि पाकिस्तान में घन प्रेषण में लगभग 23 प्रतिशत गिरावट होगी, जबकि बांग्लादेश में 22 प्रतिशत, नेपाल में 14 प्रतिशत और श्रीलंका में 19 प्रतिशत कमी हो सकती है.

विदेशों से भारत में धन प्रेषण

  • विदेशों में रोजगार करने वाले और वहाँ जाकर बसे प्रवासी भारतीय, भारत स्थित अपने परिवार, मित्र या सम्बन्धियों को पैसे (धन) भेजते रहते हैं.
  • वस्तुतः विदेशों से भेजे गए धन के मामले में भारत सबसे अग्रणी देशों में आता है.
  • 2015 में विश्व के विभिन्न देशों में प्रेषित कुल धन का 12% से अधिक धन भारत में आया जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4 प्रतिशत है.

अन्य देशों का स्थान

  • भारत के बाद सबसे ज्यादा धन प्राप्त करने वाले देशों में चीन (61 अरब डॉलर), फिलीपींस (33 अरब डॉलर), मैक्सिको (31 अरब डॉलर) तथा नाइजीरिया (22 अरब डॉलर) हैं.
  • सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में शीर्ष पांच प्राप्तकर्ता देश – किर्गिज गणराज्य, हैती, तजाकिस्तान, नेपाल और लाइबेरिया हैं.

चिंता का विषय

धन प्रेषण विकासशील देशों की आय का एक प्रमुख साधन है. धन प्रेषण से उन परिवारों को भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिलती है. परन्तु कोविड-19 के कारण जारी आर्थिक मंदी के चलते प्रवासी मजदूरों की घर पैसे भेजने की क्षमता पर भारी असर पड़ा है.

World Bank report on remittances


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : World Food Programme

संदर्भ

WFP क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत आने वाला विश्व खाद्य कार्यक्रम विश्व का सबसे बड़ा मानवीय संगठन है जिसका काम भूख का निवारण और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना है.
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम भूख और कुपोषण को मिटाने के लिए प्रतिबद्ध है.
  • यह कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र विकास समूह (United Nations Development Group) और उसकी कार्यकारिणी समिति का सदस्य भी है.
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम 1961 में शुरू हुआ था.
  • इसका प्रशासन एक कार्यकारी बोर्ड करता है जिसमें सदस्य-देशों के प्रतिनिधि होते हैं.
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम की गतिविधियों के लिए धनराशि विश्व की सरकारों, निगमों और निजी दाताओं से आती है.
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम के अन्य आनुषंगिक कार्य हैं – सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करना, बाल मृत्यु दर को घटाना, मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाना तथा HIV और AIDS समेत रोगों से लड़ना.

लक्ष्य

  • आपातकाल में जीवन और जीविका की रक्षा करना.
  • खाद्य सुरक्षा और पोषण को सहारा देना तथा आपातकाल के पश्चात् की परिस्थिति में लोगों की जीविका को फिर से सुदृढ़ करना.
  • लोगों, समुदायों और देशों को अपने भोजन और पोषण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समर्थ बनाना.
  • कुपोषण को घटाना और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली भूख के सिलसिले को बंद करना.
  • 2030 तक कोई भूखा न रहे, ऐसा प्रबंध करना.

वर्ल्ड हंगर मैप

अलीबाबा कम्पनी की क्लाउड कम्पयूटिंग शाखा – अलीबाबा क्लाउड – विश्व खाद्य कार्यक्रम के साथ मिलकर एक डिजिटल विश्व भूख मानचित्र तैयार करेगा जिससे 2030 तक विश्व-भर में भूख को समाप्त करने विषयक संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को पूरा करने में सहायता मिलेगी.


Prelims Vishesh

What is order books, inventories and capacity utilisation survey (OBICUS)? :-

  • OBICUS एक प्रकार का सर्वेक्षण है जिसका पूरा नाम है – Order books, inventories and capacity utilisation survey.
  • यह सर्वेक्षण मौद्रिक नीति के निर्माण के लिए एक मूल्यवान् अवयव के रूप में काम करता है.
  • 2018 से ही भारतीय रिज़र्व बैंक विनिर्माण क्षेत्र का OBICUS करता रहा है.

Various pandemics and how have they influenced the course of human history? :-

जस्टीनियन प्लेग – इस प्लेग का प्रकोप सबसे पहले छठी शती में मिस्र में हुआ था जो आगे चलकर पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी Constantinople तक फ़ैल गया था. उस समय इस साम्राज्य का सम्राट Justinian था इसलिए इस प्लेग को Justinian प्लेग कहा जाता है. इसमें 2.5 करोड़ से लेकर 10 करोड़ तक लोगों ने प्राण गँवाए थे.

ब्लैक डेथ – यह महामारी 14वीं शती में यूरोप और एशिया में हुई थी. इसमें साधे सात करोड़ से लेकर 20 करोड़ तक लोग मरे थे.

स्पेनिश फ्लू – यह फ्लू प्रथम विश्व युद्ध के अंतिम चरण में फैला था. कहा जाता है कि इसमें 5 से लेकर 10 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई थी.


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