Sansar Daily Current Affairs, 21 August 2018
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : Interlinking of Rivers
संदर्भ
हाल ही में नदी संयोजन के लिए गठित विशेष समिति की 15वीं बैठक नई दिल्ली में सम्पन्न हुई.
बैठक के परिणाम
- बैठक में नदियों के संयोजन के विषय में सम्बंधित राज्यों के बीच सहमति विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है जिससे कि पानी के बिना उपयोग में आये हुए समुद्र में जाने के पहले पानी का उन क्षेत्रों में उपयोग किया जा सके जहाँ इसकी आवश्यकता है.
- राज्यों से आह्वाहन किया गया कि परियोजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर कार्यान्वित करने के लिए वे सक्रिय परामर्श के द्वारा समस्याओं की पहचान और उनपर चर्चा करें.
अब तक की प्रगति
पाँच नदी संयोजन परियोजनाओं के शीघ्र कार्यान्वयन के लिए कदम उठाते हुए सम्बंधित राज्य सरकारों से विमर्श कर इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए समझौता पत्र को अंतिम रूप दिया जा रहा है.
ये पाँच परियोजनाएँ हैं – केन बेतवा परियोजना, दमनगंगा-पिंजाल परियोजना, पर-तापी-नर्मदा परियोजना, गोदावरी-कावेरी परियोजना एवं पार्वती-काली सिन्धु-चम्बल परियोजना.
नदी संयोजन के लाभ
- इससे सुखाड़-उन्मुख तथा जल की कमी वाले क्षेत्रों को पानी मिलेगा और फसल की पैदावार बढ़ेगी.
- नदी संयोजन परियोजनाओं को लागू करने से हिमालय से निकलने वाली नदियों में उपलब्ध अतिरिक्त पानी प्रायद्वीपीय भारत की ओर स्थानांतरित किया जायेगा, जहाँ पानी की कमी रहती है. प्रायद्वीपीय नदियों का भी बहुत सारा पानी समुद्र में चला जाता है और उसका कोई उपयोग नहीं होता है. ऐसे पानी को प्रायद्वीप के कम पानी वाले क्षेत्रों की ओर नदी संयोजन परियोजनाओं के माध्यम से ले जाया जायेगा.
- विदित हो कि गंगा घाटी और ब्रह्मपुत्र घाटी में लगभग हर वर्ष बाढ़ आती है. नदी संयोजन परियोजनाओं के माध्यम से इन घाटियों में बह रही नदियों के जल की दिशा दूसरे कम पानी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करने से बाढ़ की समस्या का समाधान सम्भव है.
- नदियों को जोड़ने से घरेलू जलमार्ग के रूप में इनका उपयोग हो सकता है. ऐसा करने से सार्वजनिक यातायात और माल ढुलाई पहले से तीव्र हो जायेगी.
- नदी संयोजन से यह लाभ होगा बनाई गई नई नहरों के आस-पास रहने वाले लोगों को रोजगार मिलेगा और मछली पालन का काम भी बड़े पैमाने पर हो सकेगा.
नदी संयोजन के संभावित दुष्प्रभाव
- नदियों को जोड़ने से वर्तमान पर्यावरण में बहुत बड़ी उथल-पुथल होगी. इसके लिए नहरें और जलाशय बनाए जायेंगे जिनके चलते बहुत बड़े पैमाने पर जंगलों की सफाई की जायेगी. इसका प्रभाव वर्षा पर पड़ेगा और अंततः सम्पूर्ण जीवन चक्र प्रभावित हो जायेगा.
- नदियों को जोड़ा भी जाए तो ऐसा अनुमान है कि 100 वर्ष के अन्दर ये अपना रास्ता और दिशा फिर से बदल सकते हैं.
- नदियों के संयोजन से एक हानि यह है कि समुद्र में प्रवेश करने वाले मीठे जल की मात्रा घट जाएगी जिसके कारण सामुद्रिक जीवन तंत्र पर गंभीर संकट उत्पन्न हो जाएगा और यह एक महान् पर्यावरणिक आपदा सिद्ध होंगे.
- बहुत सारी नहरों और जलाशयों के निर्माण से लोगों को विस्थापित करना आवश्यक हो जायेगा और इनका पुनर्वास करना एक समस्या हो जाएगी.
- नदी संयोजन के परियोजनाओं पर संभावित खर्च बहुत विशाल होगा और इसके लिए सरकार को विदेशी स्रोतों से ऋण लेना होगा. फलतः देश ऋण के जाल में फँस सकता है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Impact of the falling rupee on economy
संदर्भ
हाल ही में भारतीय रुपया कमजोर पड़ा है और इसकी दर प्रति डॉलर 70 रु. के आस-पास चल रही है. आर्थिक संकेतकों पर इसके दुष्प्रभाव को लेकर विद्वान् चिंता जता रहे हैं.
भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले क्यों गिर रहा है?
- तुर्की की मुद्रा में गिरावट के कारण वैश्विक मुद्रा बाजार में हलचल मच गयी है जिस कारण भारतीय मुद्रा प्रभावित हो रहा है.
- खनिज तेल के दाम में अचानक बड़ा उछाल आया है जिससे डॉलर की माँग बढ़ गयी है.
- अमेरिका और चीन एक दूसरे से प्रतिशोधात्मक कार्रवाई करते हुए आयात शुल्क बढ़ा रहे हैं जिस कारण रुपये और अन्य देशों की मुद्राओं की शक्ति घट रही है.
- पिछले कुछ सत्रों से चीन की युआन मुद्रा की शक्ति में अतिशय गिरावट आई है. इस कारण विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों से डॉलर बाहर निकल रहा है. इस कारण एशिया के अधिकांश मुद्राओं, रूपया सहित, की शक्ति नीचे आ रही है.
मुद्रा स्फीति और GDP पर इसका प्रभाव
- रूपये के गिरने से हमारे आयात पहले से महँगे हो जायेंगे और हमारे निर्यात पहले से सस्ते हो जायेंगे. इससे मुद्रा स्फीति की दर में उछाल आयेगा क्योंकि भारत आयात पर बहुत अधिक निर्भर है. विशेषकर खनिज तेल के आयात का खर्च बहुत बढ़ जायेगा जो अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा.
- महँगे आयात का GDP पर सामान्यतया एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है परन्तु इससे वस्तुओं की माँग घट भी जाती है.
कमजोर रूपये का लाभ
जहाँ कमजोर रूपये से कई हानियाँ हैं वहीं कुछ लाभ भी हैं. इससे भारत में आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ जायेगी और निर्यात से जुड़े हुए उद्योगों में तात्कालिक रूप से नए रोजगारों का सृजन होगा.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Chandrayaan- 1
संदर्भ
10 वर्ष पहले प्रक्षेपित चंद्रयान 1 नामक अंतिरक्ष यान से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि चन्द्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ विद्यमान हैं. इस खोज के लिए वैज्ञानिकों ने नासा के M3 उपकरण (Moon Mineralogy Mapper) का प्रयोग किया.
M3 उपकरण क्या है?
ज्ञातव्य है कि M3 उपकरण चंद्रयान 1 में लगाया गया वह उपकरण है जो तरल जल अथवा वाष्प एवं ठोस बर्फ की पहचान करने में सक्षम होता है.
मुख्य अन्वेषित तथ्य
- चंद्रमा के तल पर पर्याप्त मात्रा में बर्फ होने से बाद में चंद्रमा की खोज करने और वहाँ ठहरने में सुविधा होगी क्योंकि इससे जल की प्राप्ति हो सकेगी.
- चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में पाया जाने वाला बर्फ चंद्रमा के क्रेटरों में जमा है जबकि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फ व्यापक रूप से फैला हुआ है. यद्यपि इसकी परत उतनी मोटी नहीं है.
- अधिकांश बर्फ चंद्रमा के ध्रुवों पर है जहाँ का तापमान -156 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं जाता है क्योंकि वहाँ सूर्य की धूप नहीं पहुँच पाती है.
चन्द्रयान 1 से सम्बंधित तथ्य
- चन्द्रयान 1 अक्टूबर 22, 2008 को छोड़ा गया था पर एक साल के बाद ही अगस्त 29, 2009 को ISRO का इससे सम्पर्क टूट गया था.
- चंद्रयान 1 ने चंद्रमा के इन्फ्रारेड, कम ऊर्जा वाले X-ray तथा अधिक ऊर्जा वाले X-ray के पास स्थित द्रष्टव्य क्षेत्रों की high resolution रिमोट सेंसिंग की थी.
- Chandrayaan-1 का एक लक्ष्य चंद्रमा के निकटवर्ती और दूरवर्ती क्षेत्रों का त्रिआयामी (3D) मानचित्र तैयार करना था.
- चंद्रयान 1 मिशन का एक काम चंद्रमा में विभिन रासायनिक तत्त्वों और उच्च आणविक संख्या वाले तत्त्वों की खोज करना भी था.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Interior Exploration using Seismic Investigations, Geodesy and Heat Transport (InSight)
संदर्भ
NASA का मंगल की ओर 107 दिन पहले प्रक्षेपित InSight अन्तरिक्ष यान 277 मिलियन किलोमीटर की यात्रा पूरी करते हुए पृथ्वी और मंगल के मध्य बिंदु तक पहुँच गया है. अगले 98 दिनों में यह 208 मिलियन किलोमीटर और चलकर मंगल ग्रह के Elysium Planitia क्षेत्र पर उतर जाएगा और उस ग्रह के अत्यंत भीतरी भागों का अध्ययन करेगा.
नासा का InSight Mars Lander मिशन
नासा इस अभियान में एक रोबोटिक geologist भेजा है जो मंगल की खुदाई करके मंगल के तामपान को जानने की कोशिश करेगा. इस मिशन का मुख्य काम मंगल ग्रह की गहरी संरचना के विषय में जानकारी इकठ्ठा करना है. मंगल के सतह, वायुमंडल, आयनमंडल के बारे में वैज्ञानिक पहले से ही जान चुके हैं पर मंगल की सतह के नीचे क्या है, यह अभी भी जानना बाकी रह गया है.
क्या है तकनीक?
- इस मार्स लैंडर में एक सिस्मोमीटर लगा है जो भूकम्प की तीव्रता की जाँच करेगा.
- इसमें एक हीट फ्लो लगा है जो मंगल के सतह से 5 मीटर/16 ft. तक अन्दर जाकर तापमान जानने की कोशिश करेगा.
- इस अन्तरिक्ष यान में एक रेडियो विज्ञान यंत्र भी लगा हुआ है जो मंगल ग्रह की संरचना और बदलावों की जाँच करेगा.
- इस लैंडर में एक थर्मल शील्ड भी लगा है जिसका कार्य पर्यावरण से सिस्मोमीटर को बचाना है.
क्या-क्या खोज करेगा?
- यह Insight Mars Lander मंगल ग्रह की चट्टानों और इस ग्रह का निर्माण कैसे हुआ, यह पता लगाएगा.
- मंगल के rotation track और core के बारे में जानकारी जुटाएगा.
InSight Mars Lander Quick Facts
- इसकी लागत 82.88 करोड़ डॉलर है.
- इसकी भार 360 kg. है.
- NASA पहली बार InSight को अमेरिका के पश्चिमी तट से प्रक्षेपित कर रहा है. इससे पहले NASA के ज्यादातर मिशन अमेरिका के पूर्वी तट में स्थित फ्लोरिडा के Kennedy Space Center से छोड़े जाते हैं.
NASA के पहले के Mars Mission
मरीनर 3 and 4
मरीनर 3 प्रक्षेपण की तिथि: Nov. 5, 1964
मरीनर 4 प्रक्षेपण की तिथि: Nov. 28, 1964
मरीनर 6 and 7
मरीनर 6 प्रक्षेपण की तिथि: Feb. 24, 1969
मरीनर 7 प्रक्षेपण की तिथि: Mar. 27, 1969
मरीनर 8 and 9
मरीनर 8 प्रक्षेपण की तिथि: May 8, 1971
मरीनर 9 प्रक्षेपण की तिथि: May 30, 1971
Viking (विकिंग)
Viking (विकिंग) 1 प्रक्षेपण की तिथि: Aug. 20, 1975
Viking (विकिंग) 2 प्रक्षेपण की तिथि: Sept. 9, 1975
मार्स आब्जर्वर
प्रक्षेपण की तिथि: Sept. 25, 1992
मार्स पाथ-फाइंडर
प्रक्षेपण की तिथि: Dec. 4, 1996
मार्स क्लाइमेट ऑर्बिटर
प्रक्षेपण की तिथि: Dec. 11, 1998
मार्स पोलर लैंडर/डीप स्पेस 2
प्रक्षेपण की तिथि: Jan. 3, 1999
मार्स ग्लोबल सर्वेयर
प्रक्षेपण की तिथि: Nov. 7, 1996
Phoenix
प्रक्षेपण की तिथि: Aug. 4, 2007
GS Paper 3 Source: Times of India
Topic : World’s largest 3D-printed reef installed in Maldives to help save corals
संदर्भ
हाल ही में एक प्रयोग के तहत विश्व की सबसे बड़ी 3-D मुद्रित प्रवाल भित्ति को मालदीव के समर आइलैंड के “ब्लू लैगून” के पास पानी में डूबा दिया गया है. यह प्रयोग यह पता लगाने के लिए किया जा रहा है कि क्या प्रवाल भित्तियाँ निरंतर गर्म होती जलवायु से इस प्रकार बचाई जा सकती हैं?
यह कृत्रिम भित्ति सैंकड़ों चीनी मिट्टी तथा कंक्रीट के मोड्यूलों को जोड़कर बनाई गई हैं. इस कृत्रिम प्रवाल भित्ति की संरचना मालदीव में पाई जाने वाली प्रवाल भित्तियों से काफी मिलती-जुलती हैं. ज्ञातव्य है कि चीनी मिट्टी कैल्शियम कार्बोनेट की बनी होती और यही रसायन प्रवालों में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है.
यह प्रयोग क्यों?
प्रशांत महासागर में प्रचुरता से पाया जाने वाले प्रवालों के लिए सबसे बड़ा खतरा उनके रंग का उड़ जाना है. ऐसा जल के तापमान में वृद्धि और समुद्र में डाले जाने वाले रासायनिक मलबों के चलते होता है. यदि वैज्ञानिक इस प्रयोग में सफल हो जाते हैं तो भविष्य में कृत्रिम प्रवाल भित्तियाँ बनाकर प्राकृतिक भित्तियों को सुरक्षित किया जा सकेगा.
पृष्ठभूमि
मालदीव विश्व के उन देशों में है जहाँ की जलवायु सदैव संकट में रहती है. मालदीव के समर आइलैंड में ऐसे कई पर्यावरणिक प्रयोग किये गये हैं, जैसे – सौर ऊर्जा को अपनाना, प्लास्टिक की सींकों (plastic straws) को प्रतिबंधित करना, आयातित पेय जल को धीरे-धीरे ख़त्म करना और प्रवाल संरक्षण की परियोजनाएँ चलाना.
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