Sansar डेली करंट अफेयर्स, 20 March 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 20 March 2020


GS Paper 2 Source: PIB

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Table of Contents

Topic : TRIFED Launches transformational “Tech For Tribals” program to develop Tribal entrepreneurship

संदर्भ

ट्राइफेड ने 5 करोड़ आदिवासी उद्यमियों के जीवन में बदलाव के उद्देश्य से एक विशेष परियोजना का शुभारम्भ किया है जिसका नाम “आदिवासियों के लिए तकनीक” (Tech For Tribals) दिया गया है.

ट्राइफेड और आईआईटी-कानपुर ने आदिवासी उद्यमिता और कौशल विकास कार्यक्रम के आयोजन के पहले चरण में आईआईटी-रुड़की, आईआईएम इंदौर, कलिंगा सामाजिक विज्ञान संस्थान, भुवनेश्वर और सृजन, जयपुर के साथ मिलकर इसकी पेशकश की है.

“आदिवासियों के लिए तकनीक” परियोजना के उद्देश्य

  • आदिवासियों के लिए तकनीक का उद्देश्य प्रधानमंत्री वन धन योजना के अंतर्गत नामांक वन्य फसल बीनने वाले आदिवासियों में क्षमता विकास और उनमें उद्यमशीलता कौशल विकसित करना है.
  • इसके तहत प्रशिक्षुओं को छह हफ्ते तक चलने वाले 30 दिन के कार्यक्रम से गुजरना होगा, जिसमें 120 सत्र होंगे.
  • ऐसा माना जा रहा है कि इस पहल से तीन लाख आदिवासी प्रभावित होंगे क्योंकिट्राइफेड ने आदिवासियों के विकास पर 10 गुना असर वाली पंच वर्षीय रणनीति तैयार की है.
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य वीडीवीके के प्रमुख सदस्यों को कौशल सुधार और क्षमता निर्माण में सहयोग प्रदान करना है.

वन धन विकास केंद्र

  • जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत ट्राइफेड 28 राज्यों के 6 लाख जनजातीय वन्य उपज बीनने वालों के लिए 1,200 “वन धन विकास केंद्र (वीडीवीके)”की स्थापना कर रहा है.
  • एक सामान्य वीडीवीके में 15 स्व-सहायता समूह (एसएचजी) होते हैं और एक एसएचजी में 20 आदिवासी होते हैं.

परियोजना के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी

  • आदिवासियों के लिए तकनीक कार्यक्रम के अंतर्गत भागीदार वन्य उपज के मूल्य वर्धन और प्रसंस्करण में उद्यमशीलता से जुड़ी पाठ्यक्रम सामग्री का विकास करेंगे.
  • इस पाठ्यक्रम में उपलब्धि की प्रेरणा और सकारात्मक मनोविज्ञान, उद्यमशीलता क्षमताएं, कारोबार के अवसरों के आधार पर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध एनटीएफपी की पहचान, साल भर क्षमता का इस्तेमाल, उत्पाद की स्थिति- ग्रेडिंग स्टोरिंग, ब्रांडिंग, पैकेजिंग, उत्पाद प्रमाणन, बैंकेबल परियोजना रिपोर्ट तैयार करने, बाजार सर्वेक्षण, कारोबारी योजना तैयार करने, वितरण चैनल- खुदरा बिक्री, विनिर्माताओं के साथ आपूर्ति अनुबंध, अच्छी विनिर्माण प्रक्रिया (जीएमपी), पूर्ण गुणवत्ता नियंत्रण (टीक्यूसी), स्वच्छ परिचालन प्रबंधन, परिचालन और वित्तीय विवरण, कारोबार रणनीति एवं विकास, डिजिटल साक्षरता और आईटी स्वीकार्यता आदि शामिल हैं.
  • वन धन उत्पादों का विपणन सभी वितरण चैनलो के माध्यम से किया जाएगा.

ट्राइफेड के द्वारा किये गये सराहनीय कार्य

  • ट्राइफेड ने बीते तीन साल के दौरान देश भर में अपने 120 आउटलेट के नेटवर्क में व्यापक बदलाव किया है, जिनमें 72 उसके अपने हैं और ट्राइफेड द्वारा ही उनका परिचालन किया जाता है.
  • ट्राइबल्सइंडिया के आउटलेट चेन्नई, जयपुर, अहमदाबाद, उदयपुर, कोयम्बटूर, त्रिवेंद्रम, पुणे, गोवा, कोलकाता के हवाई अड्डों पर परिचालन में हैं. ट्राईफेड अपनी वेबसाइट (tribesindia.com) के माध्यम से अपनी ई-कॉमर्स रणनीति पर तेजी से काम कर रही है और फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, पेटीएम, अमेजन इंडिया, अमेजन ग्लोबल जैसे बड़े ई-कॉमर्स पोर्टलों पर पहले से उपलब्ध हैं.
  • सरकार की संस्थागत खरीद को प्रोत्साहित देने के लिए ट्राइबल्स इंडाय सरकारी ई-मार्केट प्लेस (जीईएम) पर भी मौजूद है. देश के विभिन्न शहरों में राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी महोत्सव आदि महोत्सव के साथ ही अन्य प्रदर्शनियों का आयोजन किया जा रहा है. इसके अलावा ट्राइबल्स इंडिया के उत्पादों के लिए विपणन के अवसरों के विस्तार की दिशा में प्रयास भी किए जा रहे हैं.

वन धन योजना क्या है?

  • सरकार ने पूरे देश में 3000 वन धन विकास केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है जिनमें 30,000 स्वयं सहायता समूह (SHGs) की सहभागिता होगी.
  • इस पहल का उद्देश्य जनजातीय संग्राहक और कारीगरों (tribal gatherers and artisans) के लिए लघु वन उपज केन्द्रित आजीविका को बढ़ावा देना है.
  • वन धन विकास केंद्र कौशल उन्नयन, क्षमता निर्माण प्रशिक्षण, प्राथमिक प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्द्धन सुविधा की स्थापना इत्यादि प्रदान करने हेतु बहुउद्देशीय प्रतिष्ठान होते हैं.
  • अभी लकड़ी से इतर वन उत्पादों के व्यवसाय में जनजातियों का हिस्सा 20% है.
  • आशा है कि इस नई पहल से यह हिस्सा बढ़कर 60% हो जायेगा.
  • वन धन योजना केन्द्रीय स्तर पर नोडल विभाग के रुप में जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा तथा राष्ट्रीय स्तर पर नोडल एजेंसी के रूप में ट्राइफेड (TRIFED) के माध्यम से क्रियान्वित की जायेगी.
  • इस कार्यक्रम के न्यूनतम स्तर पर कार्यान्वयन में राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी और जिला अधिकारी की प्रधान भूमिका होगी.
  • वन धन विकास केन्द्रों के प्रबंधन के लिए स्थानीय स्तर पर एक प्रबंधन समिति होगी जिसमें सम्बंधित क्लस्टर के वन धन स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधि होंगे. इन वन धन विकास केन्द्रों की स्थापना में TRIFED का सहयोग लिया जायेगा.
  • पहला मॉडल वन धन विकास केंद्र छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में स्थापित किया जा रहा है, जो 300 लाभार्थियों को प्रशिक्षित करेगा.

लघु वन उपज का महत्त्व

  • लघु वन उपज (Minor Forest Produce : MFP) वन क्षेत्र में निवास करने वाली जनजातियों के लिए आजीविका का प्रमुख स्रोत है.
  • वन में निवास करने वाले लगभग 100 मिलियन लोग भोजन, आश्रय, औषधि एवं नकदी आय के लिए MFP पर निर्भर करते हैं.
  • जनजातीय लोग अपनी वार्षिक आय का लगभग 20-40% MFP एवं सम्बद्ध गतिविधियों द्वारा प्राप्त करते हैं तथा इसका महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण से भी सुदृढ़ संबंध है क्योंकि अधिकांश MFP का संग्रहण, उपयोग और बिक्री महिलाओं द्वारा ही की जाती है.
  • MFP क्षेत्र में देश में वार्षिक रूप से लगभग 10 मिलियन कार्य दिवस के सृजन की क्षमता है.
  • अनुसूचित जनजाति एवं परम्परागत निवासी (वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम), 2006, लघु वन उपज (MFP) को पादपों से उत्पन्न होने वाले सभी गैर-लकड़ी वन उत्पादों के रूप में परिभाषित करता है. इसके अंतर्गत बाँस, ब्रशवुड, स्टम्प, केन, ट्यूसर, कोकून, शहद, मोम, लाख, तेंदु/केंडू पत्तियाँ, औषधीय पौधे, जड़ी-बूटी, जड़ें, कंद इत्यादि सम्मिलित हैं.
  • सरकार ने पहले भी आदिवासी जनसंख्या की आय की सुरक्षा हेतु “लघु वन उपज (MFP) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)“नामक योजना आरम्भ की थी.”

GS Paper 2 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Issues related to women.

Topic : Recent Initiatives of the Department of Pension & Pensioners’ Welfare (DoPPW) to promote Ease of Living

संदर्भ

जीवन को सुगम बनाने में पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग के द्वारा कई नई पहलें की गई हैं जो नीचे दे जा रही हैं –

सीपेंग्राम्स (केंद्रीयकृत पेंशन शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली)

विभाग सीपेंग्राम्स (केंद्रीयकृत पेंशन शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली) नामक एक बहुत ही प्रभावी ऑनलाइन शिकायत निवारण पोर्टल का संचालन कर रहा है, जिसमें केंद्र सरकार का कोई भी पेंशनभोगी अपनी शिकायत दर्ज कर सकता है और जिसे पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग द्वारा 60 दिनों की समय सीमा के भीतर उसके अंतिम समाधान और पेंशन निपटान विभाग/मंत्रालय द्वारा बंद करने तक मानीटर किया जाता है.

टोल-फ्री कॉल सेंटर

  • हालांकि, प्रति वर्ष प्राप्त होने वाली लगभग40,000 शिकायतों का औसत निपटान समय 31 दिनों तक कम किया गया है. यद्यपि, इस तरह की शिकायतों को डाक के साथ-साथ, विभाग के मोबाइल ऐप के माध्यम से पंजीकृत किया जा सकता है, पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग ने एक कदम और आगे बढ़ाया तथा अपने 1800-11-1960 नंबर पर एक टोल-फ्री कॉल सेंटर शुरू किया, जो जून 2019 में लॉन्च होने के बाद से ही अत्यंत लोकप्रिय हुआ है और इस मोड के माध्यम से अब तक 4800 से अधिक शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं.
  • यह विभाग इस नंबर पर वरिष्ठ नागरिकों को उनकी पेंशन संबंधी समस्याओं के बारे में परामर्श भी देता है. यह विशेष रूप से उन बुजुर्गों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में है जो अकेले रहते हैं और जिन्‍हें डिजिटल व्‍यवहारिक ज्ञान नहीं हैं. वर्ष 2017 से, शिकायतों का वार्षिक रूप से निपटान दर 90% से अधिक है.

पेंशन अदालत

  • इस विभाग ने शिकायतों के ऑन-द-स्पॉट समाधान प्रदान करने वाले पेंशन अदालत नामक एक मॉडल को विकसित किया. सीपेंग्राम्स प्रणाली से पुराने मामलों को चुना गया साथ ही अखबारों में विज्ञापन देकर भी शिकायतों का चयन किया गया. पेंशन अदालत की संकल्‍पना में पेंशनभोगियों की शिकायतों का मौके पर ही समाधान करने पर बल दिया जाता है.
  • इन शिकायतों को पेंशन अदालत में पेश करने के लिए पहले से शॉर्ट लिस्ट किया जाता है. यह मॉडल पेंशनभोगी को शीघ्र न्याय देने और पेंशनभोगी को अदालती मामलों और अनुचित उत्पीड़न से बचाने के लिए विकसित किया गया है, जो अपने विभाग या/और मामले से संबंधित अन्य विभिन्‍न हितधारकों से संपर्क करने के बाद भी शिकायत का समाधान करवाने में विफल रहा है.

‘क्‍या करें’ और ‘क्‍या न करें’ पहल

  • एनपीएस(राष्‍ट्रीय पेंशन प्रणाली) जो वित्तीय सेवा विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है, के संबंध में पेंशन और पेंशनभोगी कल्‍याण विभाग ने केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए जागरूकता कार्यशालाएं शुरू करने का फैसला किया है. इसलिए, इसने एनपीएस के प्रावधानों के बारे में अंशदाताओं को प्रशिक्षित करने के लिए जम्मू में अपना पहला जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया और साथ ही इस प्रणाली के संबंध में ‘क्‍या करें’ और ‘क्‍या न करें’ पर विभिन्न विभागों को प्रशिक्षित किया.
  • इस कार्यक्रम में एक ब्‍योरेवार प्रश्नोत्तर सत्र आयोजित किया गया जिसमें कर्मचारियों के साथ-साथ विभिन्न विभागों के एनपीएस पर कार्य करने वाले कर्मचारियों के कई संदेहों का स्‍पष्‍टीकरण किया गया. वित्‍तीय सेवाएं विभाग के तहत कार्यरत पीएफआरडीए(पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण) के तहत कार्य कर रही सेंट्रल रिकॉर्ड कीपिंग एजेंसी एनएसडीएल की टीम के द्वारा प्रस्‍तुति दी गई.

डिजिटल जीवन प्रमाणपत्र का संवर्धन

विभाग द्वारा की गई सबसे उल्लेखनीय पहलों में से एक डिजिटल जीवन प्रमाणपत्र का संवर्धन था. सेवानिवृत्ति के बाद अपने बच्चों के साथ विदेश में बसने वाले वयोवृद्धों के सामने आने वाली कठिनाई को ध्यान में रखते हुए, विभाग ने दिनांक 20.02.2020 को विदेश में रहने वालों के लिए जीवन प्रमाणपत्र और कुटुंब पेंशन के प्रारंभ पर समेकित निर्देशों पर एक परिपत्र जारी किया, जिसमें भारतीय दूतावासों/वाणिज्य दूतावासों/उच्च आयोगों के साथ-साथ विदेशी बैंक शाखाओं को जीवन प्रमाण पत्र जमा करने और कुटुंब पेंशन शुरू करने की सुविधा देने का निर्देश दिया गया है.

भविष्य (पूर्व-प्रदत्त पेंशन नियम और कैलकुलेटर के साथ ऑनलाइन पेंशन निपटान प्रणाली)

  • पेंशनर्स पोर्टल को, ऑनलाइन पेंशन मंजूरी प्रक्रिया–‘भविष्य’ की सुविधा को जोड़कर काफी मजबूत किया गया, जो कि एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिसमें पेंशन निपटान के लिए एंड टू एंड डिजीटल समाधान है.
  • भविष्य को दिनांक 01-01-2017 से सभी सिविल मंत्रालयों/विभागों के लिए अनिवार्य किया गया है इसका अर्थ यह है कि इस प्लेटफ़ॉर्म पर सभी पुराने मामलों का निपटारा किया जाना है. सेवानिवृत्त होने वाला कर्मचारी ऑनलाइन फॉर्म भरता है और सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी को पेंशन स्‍वीकृति की प्रक्रिया की हर मूवमेंट के बारे में एसएमएस के माध्यम से सूचित किया जाता है. 

संकल्‍प

  • पेंशनभोगियों को सेवानिवृत्ति के बाद एक सक्रिय जीवन की ओर नई दिशा देने के लिए और राष्ट्र निर्माण की गतिविधियों तथा सामाजिक कार्यों के प्रति उनके कौशल और अनुभव का लाभप्रद उपयोग करने के उद्देश्‍य से एक नई पहल अर्थात् संकल्प की शुरूआत की गयी.
  • संकल्‍प के तहत सेवानिवृति पूर्व परामर्श(पीआरसी) उन कर्मचारियों के लिए आयोजित किया जाता है जो एक वर्ष की अवधि के भीतर सेवानिवृत होने वाले हैं. सेवानिवृति पूर्व परामर्श में उनके पेंशन देयों के अलावा सेवानिवृत्ति के बाद एक सक्रिय जीवन जीने के बारे में भी जानकारी साझा की जाती है.

GS Paper 2 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Issues related to health.

Topic : A major cellular structure revealed in Huntington disease

संदर्भ

हाल ही में वैज्ञानिकों ने हंटिंगटिन रोग को लेकर एक प्रमुख कोशिकीय ढ़ांचे का खुलासा किया है.

हंटिंगटिन रोग क्या है?

हंटिंगटन रोग (एचडी) मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला एक प्रगतिशील आनुवंशिक विकार है जिसके कारण अनियंत्रित गतिविधियां, संतुलन एवं गतिविधियों समन्वय न होना, संज्ञानात्मक क्षमताओं में गिरावट, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई और स्मृति ह्रास, मनोभाव में बदलाव और व्यक्तित्व परिवर्तन जैसी समस्‍याएं पैदा होती हैं.

यह रोग कैसे होता है?

  • एचटीटी नामक जीन में उत्परिवर्तन के कारण यह बीमारी होती है. एचटीटी जीन हंटिंगटिन नामक प्रोटीन के उत्पादन में शामिल होते हैं. वे प्रोटीन बनाने के लिए निर्देश देते हैं.
  • जब जीन उत्परिवर्तित होते हैं तो वे असामान्य हंटिंगटिन प्रोटीन के उत्पादन के लिए असामान्‍य निर्देश देते हैं और इससे क्‍लंप्‍स यानी गुच्‍छ बन जाते हैं. ये क्‍लंप्‍स मस्तिष्क की कोशिकाओं के सामान्य कामकाज को बाधित करते हैं. इससे अंततः मस्तिष्क में न्यूरॉन्स की मृत्यु हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप हंटिंगटन रोग होता है.

क्या खुलासा हुआ है?

  • हालांकि यह ज्ञात है कि असामान्य हंटिंगटिन प्रोटीन द्वारा तैयार क्‍लंप्‍स कई कोशिकीय प्रक्रियाओं को बाधित करते हैं लेकिन अभी यह ज्ञात नहीं है कि क्या वे कोशिका में अन्य प्रोटीन के निर्माण की महत्वपूर्ण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं.
  • डॉ. अमिताभ मजूमदार के नेतृत्व में पुणे में नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंस (एनसीसीएस) के वैज्ञानिकों की एक टीम फलों पर लगने वाली मक्खियों में एचटीटी जीन का अध्ययन करके इस संबंध में जानकारी हासिल करने में लगी है. उन्होंने देखा कि रोगजनक हंटिंगिन प्रोटीन कोशिकाओं में समग्र प्रोटीन उत्पादन में कमी का कारण बनता है.हंटिंगटिन क्लंप्‍स ओआरबी2 नामक एक अन्य प्रोटीन के एक साथ अणुओं को इकट्ठा (सिक्‍वेस्टर) करते हैं जो प्रोटीन बनाने की प्रक्रिया में शामिल है.
  • उन्होंने अनुमान लगाया किहंटिंगटिन क्लंप्‍स संभवतः ओआरबी2 अणुओं का निर्माण करते हैं और वे प्रोटीन बनाने से जुड़े अपने सामान्य कार्य को पूरा करने के लिए अनुपलब्ध थे. इससे कोशिका में प्रोटीन में कमी देखी गई. इसे स्‍पष्‍ट करने के लिए उन्होंने कोशिकाओं को अधिक मात्रा में ओआरबी2 उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया और पाया कि इससे वास्तव में दोषपूर्ण हंटिंगटिन प्रोटीन के प्रतिकूल प्रभाव को कम किया गया. इस प्रकार यह उनके अनुमानों के मुताबिक रहा.
  • मनुष्यों मेंसीपीईबी नामक प्रोटीन का परिवार फल मक्खियों में ओआरबी2 प्रोटीन जैसा ही होता है. वैज्ञानिकों ने अध्ययन को आगे बढ़ाया और पाया कि सीपीईबी प्रोटीन भी ओआरबी2 प्रोटीन अणुओं के समान रोगजनक हंटिंगटिन क्‍लंप्‍स द्वारा अलग किया जाता है. इससे पता चलता है कि फल मक्खियों में इस समूह द्वारा किए गए अध्ययन से मिली जानकारी मानव में एचडी को समझने के लिए प्रासंगिक और मूल्यवान हैं.
  • ओआरबी2 प्रोटीन फल मक्खियों में स्मृति के रखरखाव के लिए भी महत्वपूर्ण है. इसलिएहंटिंगटिन क्‍लंप्‍स द्वारा ओआरबी2 का प्रच्‍छादन एचडी से संबंधित स्मृति रोगों के लिए प्रासंगिक हो सकता है. डॉ. मजूमदार के इन खुलासों से उम्मीद की जा रही है कि इस बीमारी को बेहतर ढंग से समझने के लिए आगे की खोज का मार्ग प्रशस्त होगा.

GS Paper 3 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Environment.

Topic : Glaciers in Sikkim are losing mass faster than other parts of the Himalaya

संदर्भ

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत हिमालय के भू-विज्ञान के अध्ययन से संबंधित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्‍ल्यूआईएचजी), देहरादून के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि अन्य हिमालयी क्षेत्रों की तुलना में सिक्किम के ग्लेशियर बड़े पैमाने पर पिघल रहे हैं.

अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • अध्ययन में 1991-2015 की अवधि के दौरान सिक्किम के 23 ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन किया गया और इससे यह पता चला कि 1991 से 2015 तक की अवधि में सिक्किम के ग्लेशियर काफी पीछे खिसक गए हैं और उनकी बर्फ पिघलती जा रही है.
  • इस अध्‍ययन में पहली बार ग्‍लेशियर के विविध मानकों यथा लम्‍बाई, क्षेत्र, मलबे के आवरण, हिम-रेखा की ऊंचाई (एसएलए), ग्‍लेशियर झीलों, वेग और बर्फ पिघलने का अध्‍ययन किया गया और सिक्किम में ग्‍लेशियरों की स्थिति और व्‍यवहार की स्‍पष्‍ट तस्‍वीर प्रस्‍तुत करने के लिए उनके अंतर-संबंध का पता लगाया गया.
  • जलवायु परिवर्तन के कारण सिक्किम के छोटे आकार के ग्लेशियर पीछे खिसक रहे हैं और बड़े ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं.
  • अन्य हिमालयी क्षेत्रों की तुलना में आयामी परिवर्तन का पैमाना और मलबे की वृद्धि की मात्रा सिक्किम में अधिक है. ग्लेशियर के व्यवहार में प्रमुख बदलाव 2000 के आसपास हुआ.
  • पश्चिमी और मध्य हिमालय के विपरीत, जहां हाल के दशकों में ग्लेशियरों के पिघलने की गति धीमी हुई है, वहीं सिक्किम के ग्लेशियरों में 2000 के बाद इसमें नाममात्र का धीमापन देखा गया है.
  • ग्लेशियर में हो रहे बदलावों का प्रमुख कारण गर्मियों के तापमान में वृद्धि है.  
  • ग्‍लेशियरों के आकार साथ ही साथ उनमें हो रहे परिवर्तनों की दिशा की सटीक जानकारी, जिसे मौजूदा अध्‍ययन में उजागर किया गया है, वह जलापूर्ति और ग्‍लेशियर के संभावित खतरों के बारे में आम जनता, विशेषकर उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच जागरूकता उत्‍पन्‍न कर सकता है.

Prelims Vishesh

Navroz :-

देश के विभिन्न हिस्सों में पारंपरिक उत्सव और समारोहों के साथ हिंदू नववर्ष का स्वागत किया गया. उगादि, गुड़ी पड़वा, नवरेह, नवरोज़ और चैती चाँद सभी अलग-अलग नाम के नववर्ष के उत्सव हैं.

  • आंध्र प्रदेश और तेलंगाना :- उगादि.
  • कर्नाटक: युगादि / उगादि
  • महाराष्ट्र: गुड़ी पड़वा
  • सिंधी: चैती चाँद
  • पारसी : नवरोज़
  • मणिपुर : साजिबू चीराओबा
  • बाली और इंडोनेशिया : नैपी
  • कश्मीर: नवरेह

What is Quorum? :-

  • कोरम(Quorum) किसी सभा, संसद, सीमित या कार्यकारिणी की बैठक में लिये आगत न्यूनतम आवश्यक सदस्यों की संख्या को कोरम कहते हैं. इस न्यूनतम आवश्यक संख्या की उपस्थिति के बिना सभा या समिति या विधायिनी के कार्य को वैधानिकता प्राप्त नहीं हो सकती. अत: इस न्यूनतमक संख्या में सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य है.
  • “कोरम” लोकसभा सदस्यों की वह न्यूनतम संख्या है, जिनकी उपस्थिति में सदन का कार्य संपादित होता है. यह प्रत्येक सदन में पीठासीन अधिकारी समेत कुल सदस्यों का दसवां हिस्सा होता है.
  • इसका अर्थ यह है कि यदि लोकसभा में कोई कार्य करना है तो कम-से-कम 55 सदस्य अवश्य उपस्थित होने चाहिए. लोकसभा के लिए कोरम से संबंधित नियमों का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 100 (3) के तहत किया गया है.

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