Sansar डेली करंट अफेयर्स, 19 June 2021

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Sansar Daily Current Affairs, 19 June 2021


GS Paper 1 Source : PIB

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UPSC Syllabus : The Freedom Struggle – its various stages and important contributors /contributions from different parts of the country.

Topic : Flag Satyagraha

संदर्भ

संस्कृति मंत्रालय द्वारा 18 जून को मध्य प्रदेश के जबलपुर में ‘ध्वज सत्याग्रह’ / ‘झंडा सत्याग्रह’ मानने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था.

ध्वज सत्याग्रह

  • झंडा सत्याग्रह अथवा ध्वज सत्याग्रह भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय का एक शान्तिपूर्ण नागरिक अवज्ञा आन्दोलन था जिसमें लोग राष्ट्रीय झंडा फहराने के अपने अधिकार के तहत जगह-जगह झंडे फहरा रहे थे.
  • जबलपुर से झंडा सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी. 18 मार्च 1923 को देश में पहली बार झंडा फहराया गया था.
  • वर्ष 1922 में कांग्रेस की एक समिति का गठन किया गया था जिसका उद्देश्य था अब तक चलाए गए असहयोग आंदोलन की सफलता का आंकलन करके अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करना था. इस समिति के अध्यक्ष हकीम अजमल खां थे. सदस्यों में मोतीलाल नेहरू, विटठ्लभाई पटेल, डॉ. अंसारी, चक्रवती राजगोपालाचारी और कस्तूरी रंगा आयंगर प्रमुख थे. यह समिति 1922 अक्टूबर में जबलपुर आई और गोविंद भवन में ठहरी थी. जनता की ओर से इन नेताओं को विक्टोरिया टाउन हॉल में आयोजित एक समारोह में अभिनंदन पत्र भेंट किया गया.
  • इस अवसर पर टाउन हॉल के ऊपर तिरंगा झंडा भी फहराया गया था. इस खबर से लंदन की पार्लियामेंट में तहलका मच गया. भारतीय मामलों के सचिव लार्ड विंटरटन को इस बात की सफाई देने में बड़ा समय लगा. उन्‍होंने आश्वासन दिया कि अब कभी ऐसा नहीं होगा. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
  • मार्च 1923 में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की दूसरी समिति आई जिसमें बाबू राजेंद्र प्रसाद, राजगोपालाचारी, जमनालाल बजाज और देवदास गांधी प्रमुख थे. म्युनसिपल कमेटी ने मानपत्र देने का विचार बनाया. कंछेदीलाल जैन कमेटी के म्युनसिपालिटी के अध्यक्ष थे. उन्होंने टाउन हॉल पर झंडा फहराने की अनुमति डिप्टी कमिश्नर हेमिल्टन से मांगी. अनुमति न मिलने से आंदोलन शुरू हुआ जिसे झंडा सत्याग्रह का नाम दिया गया.
  • इस आंदोलन की शुरुआत के बाद वर्ष 1923 में पंडित सुंदरलाल नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने जिन्होंने जनता को आंदोलित किया गया कि टाउन हॉल पर झंडा अवश्य फहरेगा.
  • 18 मार्च 1923 को पंडित सुंदरलाल ने अपने साब बालमुकुंद त्रिपाठी, बद्रीनाथ दुबे, सुभद्रा कुमारी चौहान, ताजुद्दीन अब्दलु रहीम व माखन लाल चतुर्वेदी को साथ लेकर टाउन हॉल पर झंडा फहरा दिया. इस मसय सीताराम यादव, परमानंद जैन, उस्ताद प्रेमचंद, खुशहाल चंद्र जैन साथ थे. जबलपुर की सफलता से आंदोलित होकर झंडा सत्याग्रह नागपुर पहुंचा जिसका नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया.
  • 18 जून 1923 को झंडा सत्याग्रह ने झंडा दिवस के रूप में देशव्यापी आंदोलन का रूप ले लिया.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.

Topic : RECUSAL OF JUDGES

संदर्भ

हाल ही में, न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई कथित हिंसा में मारे गए दो भाजपा कार्यकर्ताओं के परिवारों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई से स्वयं को पृथक् कर लिया है.

पृष्ठभूमि

याचिका में आरोप लगाया गया है, कि राज्य में चुनाव परिणाम आने के बाद “प्रतिशोधी” सत्तारूढ़ दल द्वारा पश्चिम बंगाल में निर्दोष लोगों की हत्याएं की गई थी.

सुनवाई से स्वयं को अलग करने से सम्बंधित प्रावधान

  • भारतीय संविधान के अंतर्गत न्यायाधीशों के लिये न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई से स्वयं को अलग करने को लेकर किसी प्रकार का कोई लिखित नियम नहीं है. यह पूर्ण रूप से न्यायाधीश के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है.
  • साथ ही न्यायाधीशों को इस संबंध में कारणों का खुलासा करने की ज़रूरत भी नहीं होती है.
  • अधिकत: न्यायाधीशों के हितों का टकराव मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग करने का सबसे मुख्य कारण होता है. उदाहरणार्थ यदि कोई मामला उस कंपनी से संबंधित है जिसमें न्यायाधीश का भाग भी है तो उस न्यायाधीश की निष्पक्षता पर आशंका ज़ाहिर की जा सकती है.
  • इस प्रकार यदि न्यायाधीश ने पूर्व में मामले से संबंधित किसी एक पक्ष का वकील के तौर पर प्रतिनिधित्व किया हो तो भी न्यायाधीश की निष्पक्षता पर शंका उत्पन्न हो सकती है.
  • यदि मामले के किसी एक पक्ष के साथ न्यायाधीश का व्यक्तिगत हित जुड़ा हो तब भी न्यायाधीश अपने विवेकाधिकार का उपयोग मामले की सुनवाई से अलग होने का निर्णय कर सकते हैं.
  • हालाँकि उक्त सभी स्थितियों में मामले से अलग होने अथवा न होने का निर्णय न्यायाधीश के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है.

इस संबंध में अन्य मामले

  • इस संबंध में सबसे पहला मामला वर्ष 1852 में सामने आया था, जहाँ लॉर्ड कॉटनहैम ने स्वयं को डिम्स बनाम ग्रैंड जंक्शन कैनाल (Dimes vs Grand Junction Canal) वाद की सुनवाई से अलग कर लिया था, क्योंकि लॉर्ड कॉटनहैम के पास मामले में शामिल कंपनी के कुछ शेयर थे.
  • वर्ष 2018 में जज लोया मामले में याचिकाकर्त्ताओं ने मामले की सुनवाई कर रहे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, जस्टिस ए.एम. खानविल्कर और डी. वाई. चंद्रचूड़ को सुनवाई से अलग करने का आग्रह किया था, क्योंकि वे दोनों ही बंबई उच्च न्यायालय से थे. हालाँकि न्यायालय ने ऐसा करने इनकार करते हुए स्पष्ट किया था कि यदि ऐसा किया जाता है तो इसका अर्थ होगा कि न्यायालय अपने कर्तव्यों का त्याग कर रहा है.
  • 2019 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) के अंतरिम निदेशक के रूप में एम. नागेश्वर राव की नियुक्ति को चुनौती देना वाली याचिका की सुनवाई करते हुए मामले से संबंधित तीन न्यायाधीशों ने स्वयं को मामले से अलग कर लिया था.
  • सर्वप्रथम तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने यह कहते हुए स्वयं को मामले से अलग कर लिया कि वे नए CBI निदेशक को चुनने हेतु गठित समिति का हिस्सा थे.
  • रंजन गोगोई के स्थान पर मामले की सुनवाई करने के लिये जस्टिस ए.के. सीकरी को नियुक्त किया गया. किंतु जस्टिस ए.के. सीकरी ने भी यह कहते हुए स्वयं को मामले से अलग कर लिया कि वे उस पैनल का हिस्सा थे जिसने पिछले CBI निदेशक आलोक वर्मा को उनके पद से हटाने का निर्णय लिया था.
  • इसके पश्चात् मामले से संबंधित एक अन्य न्यायाधीश जस्टिस एन. वी. रमाना ने भी व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए स्वयं को मामले से अलग कर लिया.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

वरिष्ठ वकीलों और विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायाधीशों को किसी भी मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग करने के कारणों का लिखित स्पष्टीकरण देना चाहिये, चाहे वे व्यक्तिगत कारण हों या सार्वजानिक कारण. वर्ष 1999 में दक्षिण अफ्रीका की संवैधानिक न्यायलय ने कहा था कि “न्यायिक कार्य की प्रकृति में कई बार कठिन और अप्रिय कार्यों का प्रदर्शन भी शामिल होता है और इन्हें पूरा करने के लिये न्यायिक अधिकारी को दबाव के सभी तरीकों का विरोध करना चाहिये.” बिना किसी डर और पक्षपात के न्याय प्रदान करना सभी न्यायिक अधिकारियों का कर्तव्य है. यदि वे विचलित होते हैं तो इससे न्यायपालिका और संविधान की स्वतंत्रता प्रभावित होती है.


GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : RPA related issues.

Topic : How are poll results challenged, and when courts have set them aside?

संदर्भ

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र के विधानसभा चुनाव परिणाम को चुनौती देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक चुनाव याचिका दायर की है. ज्ञातव्य है, कि ममता बनर्जी ने नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और वे इसमें पराजित हो गयी थीं.

संबंधित प्रकरण

ममता बनर्जी ने याचिका मांग की है, कि निर्वाचन अधिकारी द्वारा संचालित मतगणना प्रक्रिया में भ्रष्ट आचरण और विसंगतियों के आधार पर, सुवेंधु अधिकारी के चुनाव को अमान्य घोषित किया जाए.

चुनाव याचिका

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 80 में चुनाव याचिका के विषय में उल्लेख है.
  • चुनाव परिणामों की घोषणा के पश्चात् चुनाव आयोग की भूमिका समाप्त हो जाती है, इसके पश्चात् यदि कोई उम्मीदवार मानता है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान भ्रष्टाचार अथवा कदाचार हुआ था तो चुनाव अथवा निर्वाचन याचिका उस मतदाता या उम्मीदवार के लिये उपलब्ध एकमात्र कानूनी उपाय है.
  • ऐसा उम्मीदवार संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय में निर्वाचन याचिका के माध्यम से परिणामों को चुनौती दे सकता है.
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत चुनाव याचिका पर उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय दिया जाता है. चुनाव परिणाम की घोषणा के 45 दिनों के अन्दर चुनाव याचिका किसी भी उम्मीदवार या किसी भी निर्वाचक द्वारा एक या एक से अधिक आधार पर प्रस्तुत की जा सकती है.
  • यद्यपि वर्ष 1951 के जनप्रतिनिधि अधिनियम (RPA) के मुताबिक, उच्च न्यायालय को छह माह के भीतर मुकदमे को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिये, हालाँकि इस प्रकार के मुकदमे प्रायः वर्षों तक चलते रहते हैं.

याचिका की सामग्री

याचिका में क्या-क्या सामग्री होनी चाहिए यह अधिनियम की धारा 83 में वर्णित है.

  1. मुख्य तथ्यों का संक्षिप्त विवरण
  2. याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए भ्रष्ट आचरण के आरोप का पूर्ण विवरण
  3. याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर

चुनाव को शून्य घोषित करने का आधार (अधिनियम की धारा 100)

1. एक चुनावी उम्मीदवार योग्य नहीं था.

2. किसी भी भ्रष्ट आचरण को उपयोग में लिया गया है

3. किसी भी नामांकन को अनुचित रूप से अस्वीकार कर दिया गया है.

4. चुनाव का परिणाम मुख्य रूप से प्रभावित हुआ है –

  1. किसी भी नामांकन की अनुचित स्वीकृति द्वारा
  2. किसी भी भ्रष्ट आचरण के उपयोग द्वारा
  3. अनुचित रूप से पड़े वोट, किसी भी वोट की अनुचित अस्वीकृति, या अग्रहण द्वारा

5. संविधान या इस अधिनियम या इस अधिनियम के तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश के प्रावधानों का पालन न करने पर

“भ्रष्ट आचरण” क्या हैं?

“भ्रष्ट आचरण” को अधिनियम की धारा 123 के तहत परिभाषित किया गया है. भ्रष्ट आचरण के बारे में चर्चा करने से पहले, यह ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि लोकप्रतिनिधित्व कानून के तहत किसी रिटर्निंग उम्मीदवार के चुनाव पर सवाल उठाने के लिए, उम्मीदवार द्वारा स्वयं ‘भ्रष्ट आचरण’ को उपयोग में लिए जाने की आवश्यकता नहीं है.


GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Related to health.

Topic : Foodborne disease

संदर्भ

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस (7 जून) पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र की इकाई ने खाद्य जनित रोगों (foodborne diseases: FBDs) के जोखिम की रोकथाम, पता लगाने और प्रबंधित करने के लिए संपूर्ण समाज द्वारा गहन प्रयास करने का आह्वान किया है. ज्ञातव्य है कि विश्व स्तर पर 600 मिलियन लोगों को प्रमावित करते हैं.

  • दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र FBDs रुग्णता के वैश्विक बोझ का 1/4 और FBD मृत्यु दर का लगभग 42% वहन करता है.
  • FBDs पर भारत को वार्षिक लगभग 15 बिलियन अमरीकी डॉलर की लागत आ रही है.

खाद्य जनित रोग

  • खाद्य जनित रोग भोजन के संदूषित होने के कारण होते हैं तथा खाद्य उत्पादन, वितरण और उपभोग शृंखला के किसी भी चरण में हो सकते हैं.
  • खाद्य जनित रोगों के उत्तरदायी कारकों में पर्यावरण प्रदूषण, असुरक्षित खाद्य भंडारण और प्रसंस्करण, जटिल खाद्य शृंखला आदि शामिल हैं.
  • FBD में डायरिया से लेकर कैंसर तक विभिन्‍न प्रकार की बीमारियां सम्मिलित हैं.

खाद्य सुरक्षा के लिए भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा उठाए गए कदम

  • नकारात्मक पोषण प्रवृत्तियों को कम करने के लिए ईट राइट मूवमेंट संचालित किया गया है.
  • पूजा स्थलों पर खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता को प्रोत्साहित करने के लिए ब्लिसफुल हाइजीनिक ऑफरिंग टू गॉड: भोग (BHOG) पहल शुरू की गई है.
  • स्वच्छता रेटिंग योजना उपभोक्ताओं को उन बाह्य स्थानों के बारे में सूचित विकल्प के चयन में सक्षम बनाती है, जहां पर वे भोजनादि ग्रहण करते हैं.
  • खाद्य सुरक्षा अनुपालन प्रणाली (Food Safety Compliance System: FoSCoS), FSSAI के सभी विनियामक और अनुपालन कार्यों के लिए वन-स्टॉप पॉइंट है.

Prelims Vishesh

Software Technology Parks of India: STPI :-

  • हाल ही में, STPI ने स्वास्थ्य सेवा, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और स्मार्ट कृषि आदि क्षेत्रों में 12 उतकृष्टता केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया.
  • STPI की स्थापना वर्ष 1991 में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अन्तर्गत की गई थी.
  • इसका उद्देश्य एक प्रमुख विज्ञान व प्रौद्योगिकी संगठन के रूप में सूचना प्रौद्योगिकी (IT) सक्षम सेवाओं / बायो-आईटी सहित सॉफ्टवेयर और सॉफ्टवेयर सेवाओं के विकास एवं निर्यात को प्रोत्साहन देना है.
  • यह सॉफ्टवेयर उत्पादों पर राष्ट्रीय नीति (NPSP) 2019 में परिकल्पित देश को एक सॉफ्टवेयर उत्पाद राष्ट्र में परिवर्तित करने के लिए एक सहयोगी मॉडल पर कार्य करता है.

Voyage Data Recorder (VDR) :-

  • हाल ही में, श्रीलंका ने एमवी एक्स प्रेस पर्ल शिप (MV X Press Pearl Ship) dk VDR बरामद किया है.
  • हवाई जहाजों में ब्लैक बॉक्स के समान, VDR एक पोत पर विभिन्‍न डेटा रिकॉर्ड करता है.
  • इससे जलयात्रा विवरण के पुनर्निर्माण में मदद मिलती है और दुर्घटना की जांच में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है.

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