Sansar डेली करंट अफेयर्स, 18 June 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 18 June 2019


GS Paper  2 Source: Indian Express

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Topic : The One Health concept

संदर्भ

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) ने एक स्वास्थ्य की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि मानव स्वास्थ्य एवं पशु स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और जिस पारिस्थितिकी में वे दोनों रहते हैं, उसके स्वास्थ्य से वे बंधे हुए रहते हैं.

मुख्य तथ्य

  • OIE का कहना है कि मानव वर्तमान में जिन संक्रामक रोगों को झेलता है, उनमें 60% जीवजन्य हैं अर्थात् वे सभी पशुओं से मनुष्यों में संक्रमित होते हैं. अब जो नये-नये संक्रामक रोग मनुष्यों में उभर रहे हैं, उनमें 75% के मूल में पशु ही हैं.
  • प्रत्येक वर्ष पाँच ऐसे नए-नए रोग सामने आ रहे हैं जो पशुओं से संक्रमित हो कर मनुष्यों पीड़ित कर रहे हैं.
  • 80% जैव एजेंट जीवजन्य एथोजेनों से आते हैं जिनका प्रयोग जैव आतंकवाद में हो सकता है.
  • अनुमान है कि प्रत्येक वर्ष जीवजन्य रोगों के दो बिलियन मामले होते हैं और उनके कारण दो मिलियन से अधिक मौतें होती हैं जो कि HIV एड्स और अतिसार से होने वाली मौतों से अधिक हैं.
  • निर्धन देशों में अकाल मृत्यु का पाँचवाँ भाग उन रोगों से होता है जो पशु से मनुष्य में संक्रमित होते हैं.

भारत के लिए चुनौतियाँ

  • भारत जैसे विकासशील देशों के लिए “एक स्वास्थ्य” प्रणाली अत्यंत हितकर होगा क्योंकि वहाँ खेती-बाड़ी के काम में मनुष्य और पशु एक साथ जुड़े होते हैं.
  • भारत में पशु लगभग उतने ही हैं जितने कि मनुष्य. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 121 करोड़ जन हैं. दूसरी ओर, यहाँ मवेशियों और मुर्गियों आदि पंछियों की संख्या 5 करोड़ है.
  • भारत में सरकारी क्षेत्र में 90 लाख स्वास्थ्य संस्थान हैं जो यहाँ के स्वास्थ्य प्रबंध के लिए मेरुदंड हैं. इनके अतिरिक्त कई निजी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं.
  • परन्तु जहाँ तक पशुओं का प्रश्न है, देश में केवल 65,000 पशु चिकित्सालय हैं जो 5 करोड़ पशुओं की देखभाल करते हैं. पशु चिकित्सालयों की इस संख्या में वे 28,000 चलंत डिस्पेंसरियाँ और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र भी सम्मिलित हैं, जहाँ सुविधाएँ न्यूनतम स्तर पर होती हैं.
  • पशु चिकित्सा सेवा के मामले में निजी क्षेत्र की उपस्थिति लगभग शून्य है.

GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Pariyojana (PMBJP)

संदर्भ

भारतीय फार्मा सार्वजनिक लोक उपक्रम ब्यूरो (The Bureau of Pharma PSUs of India – BPPI) ने पिछले दिनों पाया कि गुण के मामले मे 18 दवा कम्पनियों की 25 दवाओं के बैच मानक से नीचे थे. विदित हो कि BPPI ही वह निकाय है जो केंद्र सरकार की सस्ती दवाई से सम्बंधित मूर्धन्य योजना प्रधान मंत्री जन औषधि परियोजना (PMBJP) का कार्यान्वयन करता है.

PMBJP क्या है?

  • प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (PMBJP) भारत सरकार के फार्मास्यूटिकल विभाग द्वारा आरम्भ की गई एक योजना है जिसका उद्देश्य PMBJP केन्द्रों के माध्यम से जन-सामान्य को सस्ती किन्तु गुणवत्ता युक्त औषधियाँ मुहैया करना है.
  • ज्ञातव्य है कि जेनेरिक दवाओं को उपलब्ध कराने के लिए इस योजना के अन्दर कई वितरण केंद्र बनाए गए हैं जिन्हें प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र कहते हैं. विदित हो कि जेनेरिक दवाएँ उतनी ही गुणवत्तायुक्त और कारगर हैं जितनी ब्रांड की गई महँगी दवाइयाँ. साथ ही इनके दाम इन महँगी दवाइयों की तुलना में बहुत कम होते हैं.
  • भारतीय फार्मा लोक सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम ब्यूरो (Bureau of Pharma PSUs of India – BPPI) इस योजना के लिए कार्यान्वयन एजेंसी बनाई गई है. इसकी स्थापना केंद्र सरकार के फार्मास्यूटिकल विभाग ने की है.

जन औषधि केन्द्रों की भूमिका

  • देश में अधिक से अधिक चिकित्सक जेनरिक दवाएँ लिखने लगे हैं. उधर 652 जिलों में 5,050 जन औषधि बाजार खुल गये हैं, इसलिए उच्च गुणों वाली सस्ती जेनेरिक दवाओं को उपलब्ध कराना और उनके बारे में जागरूकता उत्पन्न करना आवश्यक हो गया है. इन केन्द्रों से प्रतिदिन 10-15 लाख लाभान्वित हो रहे हैं. पिछले तीन वर्षों में जेनरिक दवाओं की बाजार में खपत 2% से बढ़कर 7% अर्थात् तिगुनी हो गई है.
  • जन औषधि दवाओं के चलते जानलेवा बीमारियों से ग्रस्त रोगियों का खर्च अच्छा-ख़ासा घट गया है. ये दवाइयाँ बाजार मूल्य की तुलना में 50 से 90 प्रतिशत तक सस्ती होती है. बताया जाता है कि PMBJP योजना के कारण जनसाधारण को 1,000 करोड़ रू. की बचत हुई.
  • इस योजना के कारण नियमित आय से युक्त स्वरोजगार के अवसर बढ़ गये हैं.

GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : ONE NATION ONE ELECTION

संदर्भ

प्रधानमंत्री मोदी ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” विषय पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है. इसमें लोकसभा, विधान सभाओं, पंचायतों और नगर निकायों में प्रत्येक पाँच वर्ष पर एक साथ ही चुनाव करने पर विचार किया जा रहा है.

एक साथ चुनाव के लाभ

  • ऐसा होने पर सत्तासीन दल कानून निर्माण एवं प्रशासन पर ध्यान केन्द्रित कर सकेंगे. अभी इन्हें बार-बार चुनाव अभियान में व्यस्त होना पड़ता है.
  • अभी के प्रचलन के अनुसार, पाँच वर्ष के भीतर दो बार चुनाव होते हैं जिसमें राज्य एवं जिला-स्तर की सम्पूर्ण प्रशासनिक एवं सुरक्षा प्रणाली लगी रहती है जिसका असर प्रशासन पर पड़ता है तथा नीतियों और कार्यक्रमों की निरंतरता दुष्प्रभावित हो जाती है.
  • यदि दो बार न होकर लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक बार हों तो एक ही खर्चे से काम चल जाएगा.
  • एक ही बार चुनाव होने से इसके संचालन में कुशलता आएगी तथा साथ ही सरकारों द्वारा किये जाने वाले लोक लुभावन वादों में कमी आएगी.
  • ऐसे चुनाव से भ्रष्टाचार में भी कमी आ सकती है और एक अधिक अनुकूल सामाजिक-आर्थिक पारिस्थितिकी का निर्माण हो सकता है.
  • एक बार चुनाव होने से मतदान प्रक्रिया में काले धन की भूमिका घट जायेगी.

एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए अपेक्षित संवैधानिक संशोधन

इस नीति को लागू करने के लिए संविधान की निम्नलिखित अनुच्छेदों में संशोधन आवश्यक होगा –

  1. अनुच्छेद 83 (लोक सभा की अवधि)
  2. अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोक सभा को भंग किया जाना)
  3. अनुच्छेद 172 (विधान सभाओं की कार्यावधि)
  4. अनुच्छेद 174 (विधान सभाओं का भंग किया जाना)
  5. अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन)

 जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में भी कुछ संशोधन करने होंगे, जैसे कि भारतीय निर्वाचन आयोग की शक्तियों और कार्यों को नया रूप देना तथा अधिनियम के अनुभाग 2 में एककालिक चुनाव की परिभाषा जोड़ना.


GS Paper  3 Source: The Hindu

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Topic : World Day to Combat Desertification and Drought: 17 June

संदर्भ

प्रत्येक वर्ष की भाँति जून 17 को विश्व मरूस्थलीकरण एवं सूखा प्रतिषेध दिवस मनाया जा रहा है. इस दिवस की इस बार की थीम है – “आयें, हम लोग साथ-साथ भविष्य को सँवारे / Let’s Grow the Future Together”.

सतत विकास लक्ष्यों में मरूस्थलीकरण की चर्चा

सतत विकास से सम्बंधित 2030 के एजेंडे में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि “हम लोग का संकल्प है कि हम इस धरती का क्षय होने से बचाएँ और इसके लिए सतत खपत और उत्पादन पर बल देते हुए प्राकृतिक संसाधनों का टिकाऊ ढंग से प्रबंधन करें और जलवायु परिवर्तन के मामले में तत्काल कार्रवाई करें, जिससे कि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके.” 2030 के एजेंडे में लक्ष्य 15 (Goal 15) विशेष रूप से कहता है कि हम भूमि के क्षय को रोकें और उसे फिर से पुरानी दशा में ले चलें.

मरूस्थलीकरण क्या है?

  • जब कोई भूमि शुष्क, अर्ध-शुष्क तथा शुष्क अल्पार्द्र भूमि में बदल जाती है तो उसे मरूस्थलीकरण कहते हैं. ऐसा अधिकतर मानवीय गतिविधियों एवं जलवायु परिवर्तन से होता है. मरूस्थलीकरण का अभिप्राय वर्तमान मरूस्थलों के विस्तार से नहीं है.
  • विश्व के सम्पूर्ण भूभाग का 1/3 से अधिक क्षेत्र शुष्क भूमि पारिस्थितिकी के अन्दर आता है. यह क्षत्र विकट रूप से अति-दोहन एवं अनुचित उपयोग का शिकार हो सकता है. भूमि की उत्पाकता पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के अन्य कारण कारण हैं – निर्धनता, राजनीतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, आवश्यकता से अधिक चराई और सिंचाई के गलत तरीके.

भारत में मरूस्थलीकरण के मुख्य कारक

  • जल क्षरण (10.98%)
  • वायु क्षरण (5.55%)
  • मानव बस्तियां (0.69%)
  • वनस्पति क्षय (8.91%)
  • लवणीयता (1.12%)
  • अन्य (07%)

भारत के लिए चिंता का विषय

  • भारतीय पर्यावरण की दशा नामक संस्था (SoE) के द्वारा इस वर्ष जारी किये गये आँकड़ों से पता चलता है कि 2003-05 और 2011-13 के बीच भारत के 29 राज्यों में से 26 में मरूस्थलीकरण का स्तर बढ़ गया है.
  • देश के क्षयग्रस्त भूभाग का 80% केवल इन 9 राज्यों में ही है – राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना.
  • देश के तीन जिले ऐसे हैं जहाँ मरूस्थलीयकरण सबसे अधिक हो रहा है, ये जिले हैं – राजस्थान का जैसलमेर, हिमाचल प्रदेश का लाहौल-स्पीति तथा जम्मू-कश्मीर का करगिल.

GS Paper  3 Source: The Hindu

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Topic : ‘Dead zone’ in the Gulf of Mexico

संदर्भ

राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन तथा लूजियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि इस वसंत ऋतु में अभूतपूर्व वर्षा होने से मेक्सिको की खाड़ी में अब तक का सबसे बड़ा मृत क्षेत्र बनने वाला है.

मृत्य क्षत्र क्या है?

  • मृत क्षेत्र (dead zone) उस समुद्री क्षेत्र को कहते हैं जहाँ अधिकांश समुद्री जीव या तो मर जाते हैं या उस समुद्री क्षेत्र को छोड़कर दूसरी जगह पलायन कर जाते हैं.
  • समुद्री मृत क्षेत्र के निर्माण के पीछे असली कारण है उस क्षेत्र का हाइपोक्सिक जोन या ऑक्सीजन न्यूनतम जोन (OMZ) बन जाना.
  • हाइपोक्सिक जोन का मतलब है – वे समुद्री क्षेत्र जहाँ ऑक्सीजन की मात्रा में इतनी कमी हो जाती है कि समुद्री जीव घुटन से मर जाते हैं.
  • ऑक्सीजन की कमी का कारण शहरीकरण एवं खेती जैसी मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले खाद आदि पोषक तत्त्वों को खा-खा कर समुद्री काई का समृद्ध हो जाना है. इस प्रक्रिया को यूट्रोफिकेशन कहते हैं.
  • समुद्र में सेप्टिक प्रणालियों से बहकर कई तत्त्व समुद्र में प्रवेश करते हैं जो काई के अनियंत्रित वृद्धि का कारण बनते हैं. जीवाश्म ईंधन को जलाने से भी कई तत्त्व समुद्री आदि जलाशयों में जा मिलते हैं और काई की मात्रा बढ़ाने में योगदान करते हैं. परिणामतः वहाँ की जल की गुणवत्ता घाट जाती है और मुहानों तथा तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का क्षय होता है. वहीं दूसरी ओर, कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ जाने से मछलियों की वृद्धि घट जाती है तथा मोलस्कों (mollusks) में कवच बनना रुक जाता है.
  • मैक्सिको की खाड़ी का एक भाग हर वसंत के मौसम में विश्व के सबसे बड़े मृत क्षेत्र (dead zone) के रूप में उभरता है. अरब सागर में मृत क्षेत्र या ऑक्सीजन न्यूनतम ज़ोन (OMZ) का आकार लगातार बढ़ रहा है.

Prelims Vishesh

World’s highest weather station at Mount Everest :-

  • जलवायु वैज्ञानिकों ने माउंट एवेरेस्ट के मृत्यु जोन में विश्व का सबसे ऊँचा मौसम केंद्र स्थापित करके इतिहास रच दिया है.
  • इस पर्वत के आस-पास पाँच अन्य स्वचालित केंद्र भी बनाए गये हैं.
  • यह मौसम केंद्र तापमान, सापेक्ष आर्द्रता, वायुदाब एवं वायु दिशा के विषय में बालसम जुटाएगा. साथ ही इसका लाभ उठाकर वैज्ञानिक जेट स्ट्रीम को बेहतर ढंग समझ पायेंगे और यह जान पायेंगे कि जलवायु परिवर्तन का हिमालय पर क्या प्रभाव पड़ रहा है.

Balsams or jewel-weeds :-

  • पूर्वी हिमालय में बालसम (Balsam) की 20 नई प्रजातियों का पता चला है.
  • विदित हो कि अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम बालसम के गढ़ हैं.
  • इनमें चमकीले सुन्दर फूल होते हैं और इसलिए सजावटी बागवानी में ये बहुत लोकप्रिय हैं.


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