Sansar डेली करंट अफेयर्स, 17 August 2018

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Sansar Daily Current Affairs, 17 August 2018


GS Paper 1 Source: The Hindu

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Topic : Global Liveability Index

संदर्भ

The Economist Intelligence Unit (EIU)

The Economist Intelligence Unit (EIU) ने हाल ही में वैश्विक निवास योग्यता सूचकांक, 2018 (Global Liveability Index) निर्गत किया है . इस सूचकांक में निवास योग्य दशाओं के आधार पर विश्व के 140 नगरों को रैंक प्रदान किया गया है.

वैश्विक निवास योग्यता सूचकांक के मुख्य मापदंड

सूचकांक में निम्नलिखित मुख्य कारकों पर विचार किया गया है –

  • राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिरता
  • अपराध
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता
  • संस्कृति एवं पर्यावरण
  • आधारभूत संरचना

इस सूचकांक के अनुसार विश्व के सबसे अधिक निवास-योग्य 10 नगर निम्नलिखित हैं –

  • वियना (ऑस्ट्रिया)
  • मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया)
  • ओसाका (जापान)
  • कैलगरी (कनाडा)
  • सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)
  • वैंकूवर (कनाडा)
  • टोकियो (जापान)
  • टोरंटो (कनाडा)
  • कोपेनहेगन (डेनमार्क)
  • एडिलेड (ऑस्ट्रेलिया)

वैश्विक निवास योग्यता सूचकांक 2018 में सबसे नीचे आने वाले 10 शहर निम्नलिखित हैं – 

  • डकार (सेनेगल) – 131
  • अल्जीयर्स (अल्जीरिया) – 132
  • दुआला (कैमरून) – 133
  • त्रिपोली (लीबिया) – 134
  • हरारे (जिम्बाब्वे) – 135
  • पोर्ट मोर्सबी (पापुआ न्यू गिनी) – 136
  • कराची (पाकिस्तान) – 137
  • लागोस (नाइजीरिया) – 138
  • ढाका (बांग्लादेश) – 139
  • दमिश्क (सीरिया) – 140

विशेष तथ्य

  • पिछले वर्ष की भाँति इस बार भी अमेरिका का कोई नगर शीर्षस्थ 10 नगरों में नहीं आ पाया.
  • पहली बार ऐसा हुआ कि यूरोप के किसी शहर ने सूची में पहला स्थान पाया. (वियना)
  • सूची से पता चलता है कि यूरोप के कई नगरों में स्थिरता बढ़ी है.
  • भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देश का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. नई दिल्ली को 112वाँ और मुंबई को 117वाँ स्थान मिला.
  • पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराँची और बांग्लादेश की राजधानी ढाका विश्व के सबसे कम निवास योग्य देशों में से हैं.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : NPCI launches UPI 2.0

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संदर्भ

हाल ही में भारत के राष्ट्रीय भुगतान निगम ने (National Payments Corporation of India – NPCI) UPI 2.0 को आरम्भ किया है जो UPI अर्थात् समेकित भुगतान इंटरफ़ेस का एक उत्क्रमित एवं नवीकृत संस्करण है.

नई विशेषताएँ

UPI के इस नवीनतम संस्करण में 4 नई विशेषताएँ हैं जिनसे यह उपभोक्ताओं के लिए अधिक आकर्षक एवं सुरक्षित बन गया है. अब उपभोक्ता अपने ओवरड्राफ्ट खाते को UPI से जोड़ सकेंगे. साथ ही इसमें एककालिक मेनडेट की सुविधा होगी तथा बाद की तिथि में भुगतान करने के लिए पहले ही प्राधिकृत करने की सुविधा भी होगी. इस UPI की चौथी विशेषता यह है कि उपभोक्ता व्यवसायी के द्वारा भेजे गये invoice को भुगतान करने के पहले जाँच सकेंगे.

UPI क्या है?

समेकित भुगतान इंटरफ़ेस  (UPI) NPCI और RBI द्वारा निर्मित एक प्रणाली है जो एक नकद रहित प्रणाली का उपयोग करते हुए धन का तत्काल स्थानान्तरण करने में सहायक होती है.

UPI का उपयोग करने के लिए एक स्मार्टफ़ोन और एक बैंकिंग एप की आवश्यकता होती है जिसके माध्यम से धन को तत्काल भेजा या पाया जा सकता है अथवा व्यवसायी खुदरा खरीद के लिए भुगतान कर सकता है. आगे चलकर, UPI संभवतः आज के NEFT, RTGS और IMPS का स्थान ग्रहण कर लेगी.

यह कैसे काम करता है?

IMPS पर आधारित UPI के माध्यम से बैंक खाते से तुरंत और प्रत्यक्ष रूप से भुगतान हो जाता है. इसके लिए वॉलेट में पहले से पैसा भरना आवश्यक नहीं होता है. इसके माध्यम से एक से अधिक व्यवसाइयों को कार्ड का ब्यौरा टाइप किये बिना अथवा नेट बैंकिंग का पासवर्ड लिखे बिना भुगतान किया जाता है.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : International Nitrogen Initiative

संदर्भ

भारतीय वैज्ञानिक नंदुला रघुराम को वैश्विक नाइट्रोजन नीति बनाने वाले अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन कार्यक्रम (INI) का अध्यक्ष चुना गया है. वे एशिया और भारत के ऐसे पहले व्यक्ति हैं जो अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन कार्यक्रम के मुखिया होंगे.

अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन कार्यक्रम क्या है?

अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन कार्यक्रम (INI) एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम है जो 2003 में पर्यावरण की समस्या से सम्बंधित वैज्ञानिक समिति (Scientific Committee on Problems of the Environment – SCOPE) तथा अंतर्राष्ट्रीय भूमंडल-जीवमंडल कार्यक्रम (Geosphere-Biosphere Program – IGBP) के द्वारा संपोषित है.

  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य सतत खाद्य उत्पादन में नाइट्रोजन की लाभकारी भूमिका को सुदृढ़ करना तथा इस गैस के मानव स्वास्थ पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को कम से कम करना है.
  • इस कार्यक्रम का समन्वय एक सञ्चालन समिति (Steering Committee) करती है जिसमें एक अध्यक्ष और छ: क्षेत्रीय केंद्र निदेशक होते हैं को अफ्रीका, यूरोप, द.अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी एशिया और पूर्वी एशिया का प्रतिनिधित्व करते हैं.
  • INI हर तीसरे वर्ष एक सम्मलेन करता है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन समुदाय के सदस्य आमंत्रित होते हैं.
  • ये सदस्य नाइट्रोजन से सम्बंधित विषयों पर चर्चा करते हैं और विचारों और ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं.
  • यह कार्यक्रम फ्यूचर अर्थ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन से जुड़ा हुआ है जो अनुसन्धान एवं नवाचार के माध्यम से वैश्विक सततता की प्रगति को तेज करने का काम करता है.

नाइट्रोजन

नाइट्रोजन 5 मुख्य तत्त्वों में से एक है जो जीवन के लिए आवश्यक होता है. यह सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, परन्तु अधिकांश जीव मात्र इसके अपरूपों का ही उपयोग कर पाते हैं. यह अपरूप हैं – अमोनिया, अमोनियम, नाइट्रोजन ऑक्साइड, नाइट्रिक एसिड, नाइट्रस ऑक्साइड, नाइट्रेट, यूरिया, अमाइन, प्रोटीन और न्यूक्लिक एसिड.

नाइट्रोजन चिंता का विषय क्यों है?

प्राचीन काल में नाइट्रोजन का कोई विशेष प्रतिक्रियात्मक अपरूप विश्व में उपलब्ध नहीं होता था परन्तु मनुष्य की कुछ गतिविधियों से ऐसे अपरूपों की मात्रा बहुत ही बढ़ गयी है. हमलोग दलहन, धान और ऐसी फसलें उगाते हैं जिनसे नाइट्रोजन का फिक्शेशन बढ़ जाता है. इसके अलावे जीवाश्म-ईंधन को जलाने और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं के चलते भी नाइट्रोजन के अपरूप पैदा होते हैं. इसका मानव स्वास्थ्य पर और पारिस्थितिकी पर बुरा प्रभाव पड़ता है. यद्यपि विश्व की जनसंख्या का 40% इसी प्रकार के नाइट्रोजन पर आधारित फसलों पर अपने भोजन के लिए निर्भर होती है. प्रतिक्रियात्मक नाइट्रोजन के द्वारा पर्यावरण पर जो दुष्प्रभाव होते हैं, उनमें से मुख्य हैं –

  • निचले वायुमंडल में ओजोन का जमा होना
  • तटीय पारिस्थितिकी में पोषक तत्त्वों का अत्यधिक जमाव (eutrophication).
  • जंगलों, मिट्टियों और मीठे जल वाले सोतों (streams) और झीलों में अम्ल का बढ़ना.
  • जैव-विविधता में कमी.
  • नाइट्रोजन का अपरूप नाइट्रस ऑक्साइड एक ग्रीनहाउस गैस है जिसके कारण तापमान में वृद्धि (global warming) तो होती ही है और साथ में क्षोभ मंडल में ओजोन की मात्रा भी घट जाती है.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic : International year of millets

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संदर्भ

हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation – FAO) को यह अनुरोध किया है कि आगामी वर्ष 2019 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (International Year of Millets) के रूप में मनाया जाए.

यदि खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) इस प्रस्ताव को अपने सदस्य देशों के समर्थन से अंगीकार कर लेता है तो इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly – UNGA) में 2019 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में घोषित करने के लिए भेज दिया जायेगा.

इस पहल का उद्देश्य

  • मोटे अनाजों के लिए किसी वर्ष को समर्पित करने का यह लाभ होगा कि लोगों में इसके स्वास्थ्यगत लाभों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी. इससे इन सूखा-प्रतिरोधी अनाजों की माँग बढ़ेगी तथा परिणामस्वरूप गरीब और सीमान्त किसान कमाई कर सकेंगे.
  • सरकार द्वारा मोटे अनाजों को प्रोत्साहन
  • मोटे अनाजों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए भारत ने इन्हें पोषक अनाज (Nutri-Cereals) घोषित कर रखा है और अप्रैल 2018 में ही इन्हें जन-वितरण प्रणाली (Public Distribution System – PDS) में बाँटे जाने वाले अनाज की सूची में डाल दिया है.
  • सरकार की अधिसूचना में मोटे अनाजों को मधुमेह-निरोधी गुणों वाला अनाज बताया गया है और उन्हें पोषक तत्त्वों का बिजलीघर (powerhouse of nutrients) कहा गया है.
  • सरकार जिन मोटे अनाजों को बढ़ावा दे रही है, वे हैं – ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी/काकुन, कुटू आदि.
  • पिछली जुलाई में सरकार ने मोटे अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में अच्छी-खासी वृद्धि कर दी थी जिससे कि अधिक-से-अधिक किसान इन अनाजों का उत्पादन कर सकें. विदित हो कि इन अनाजों के लिए बहुत कम पानी की आवश्यकता पड़ती है.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic : Laser Interferometer Gravitational Wave Observatory (LIGO) project

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संदर्भ

पर्यावरण मंत्रालय ने हाल ही में महत्त्वाकांक्षी परियोजना Laser Interferometer Gravitational Wave Observatory (LIGO) के भारतीय हिस्से को स्थापित करने के लिए वैज्ञानिकों को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में भूमि की उपयुक्तता की जाँच करने के लिए अनुमति दी है.

पृष्ठभूमि

LIGO एक बृहद वेधशाला (observatory) है जो ब्रह्मांडीय गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाएगी और उनपर प्रयोग करेगी. इससे अन्तरिक्षीय अध्ययनों में सहायता मिलेगी. इस परियोजना के अंतर्गत तीन गुरुत्वाकर्षण-तरंग डिटेक्टर स्थापित किये जायेंगे. ऐसे दो डिटेक्टर अमेरिका के वाशिंगटन राज्य के हेनफर्ड में और लुजियाना राज्य के लिविंगस्टन में हैं.

LIGO – भारत परियोजना

LIGO – भारत परियोजना आणविक ऊर्जा विभाग एवं विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की परियोजना है. इस परियोजना से जुड़े हुए तीन अनुसंधान संस्थान हैं –

  • पुणे का अन्तरिक्ष विज्ञान खगोल विज्ञान एवं खगोल भौतिकी विश्वविद्यालय केंद्र (IUCAA)
  • गांधीनगर का प्लाज्मा अनुसंधान विभाग (IPR)
  • इंदौर का राजा रमन्ना उन्नत प्रौद्योगिकी केंद्र (RRCAT)
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भारत को होने वाले लाभ

  • LIGO परियोजना से भारतीय वैज्ञानिकों और इंजिनियरों को गुरुत्वीय तरंगों के बारे में गहन अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होगा.
  • भारतीय उद्योग इसके लिए 8 km. लम्बी बीम ट्यूब (beam tube) का निर्माण करेंगे जो समतल भूमि पर अति-उच्च निर्वात में स्थित होगा. इससे भारतीय उद्योग को भी नवीनतम तकनीक जानने और उसका प्रयोग करने का अवसर मिलेगा.
  • LIGO परियोजना की स्थापना से भारत गुरुत्वाकर्षण तरंगों के detectors के वैश्विक नेटवर्क का एक हिस्सा बन जायेगा.
  • भारत में वेधशाला बनने पर गुरुत्वकर्षण तरंगों का सटीक रूप से पता लगाया जा सकेगा क्योंकि दो वेधशालाओं के बीच जितनी दूरी होती है, उतनी ही इस काम में सटीकता आती है.

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