Sansar डेली करंट अफेयर्स, 15 May 2021

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Sansar Daily Current Affairs, 15 May 2021


GS Paper 1 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms, Literature and Architecture from ancient to modern times.

Topic : Basava Jayanti

संदर्भ

बसव जयंती, 12वीं सदी के कवि-दार्शनिक और लिंगायत धर्म के संस्थापक संत भगवान बसवन्ना (Basavanna) के जन्मदिवस पर मनाई जाती है. इस वर्ष, इसे 4 मई 2021 को मनाया गया.

भारतीय प्रधानमंत्री के द्वारा 26 अप्रैल, 2020 को बासव जयंती (Basava Jayanthi) के अवसर पर एक वीडियो संदेश में भगवान बसवेश्वरा को श्रद्धांजलि दी गई. विदित हो कि उन्हें उन्हें लिंगायत तबके का संस्थापक संत माना जाता है.

बासवन्ना

बासवन्ना का जन्म कर्नाटक के इंगलेश्वर, बागेवाड़ी शहर में 20 मार्च 1134 को हुआ था, जो वर्ष 1134 में आनंदमामा (संवत्सर) के वैशाख महीने का तीसरा दिन था. विश्वासियों के अनुसार, पैगंबर बासवन्ना के जन्म के साथ, एक नया युग शुरू हुआ. बासवन्ना 12वीं शताब्दी के एक समाज सुधारक थे. उन्होंने अपने समकालीन शरणों के साथ मिलकर ब्राह्मणों की वर्चस्वता के विरुद्ध एक बहुत प्रबल आध्यात्मिक, सामाजिक तथा धार्मिक विद्रोह चलाया था. बासवन्ना का कहना था कि कर्म ही पूजा है. उन्होंने अपने आन्दोलन में वचनों के माध्यम से महिलाओं को समान दर्जा दिया. बासवन्ना और अन्य शरण सरल कन्नड़ भाषा में वचन कहते थे जिससे कि साधारण से साधारण जन भी उनकी बातों को समझ सके.

लिंगायत

  • लिंगायतवाद की परंपरा की स्थापना 12वीं सदी में कर्नाटक के एक सामाजिक सुधारक और दार्शनिक बासव द्वारा की गई थी.
  • बासव/बासवन्ना ने सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मानव स्वतंत्रता, समानता, तर्कसंगतता और भाईचारे को आधार बनाने के लिए कहा.
  • लिंगायतों का कहना है कि उनके आदिगुरु बासवन्ना ने जिस शिव को अपना इष्ट बनाया था वे हिन्दू धर्म के शिव नहीं हैं अपितु इष्ट लिंग (निराकार भगवान्) हैं जिसे लिंगायत अपने गले में लटकाते हैं.

वीरशैव

  • वीरशैव शैव-पंथी हैं और मुख्यतः कर्नाटक में रहते हैं.
  • कर्नाटक के अतिरिक्त यह समुदाय केरल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पाया जाता है.
  • वीरशैव का दावा है कि बासवन्ना लिंगायत परंपरा के संस्थापक नहीं थे अपितु वे वीरशैव सम्प्रदाय के अंतर्गत ही एक सुधारक मात्र थे.
  • वीरशैव सम्प्रदाय की जड़ें वेद और आगमों में हैं और यह शिव के अतिरिक्त किसी अन्य भगवान् की पूजा नहीं करता.

बासवन्ना और शरण आन्दोलन

  • बासवन्ना ने शरण नामक एक आन्दोलन चलाया था जिसके प्रति सभी जाति के लोग आकर्षित हुए थे. इस आन्दोलन से सम्बंधित ढेर सारा साहित्य उसी प्रकार रचा गया था जैसे कि भक्ति आन्दोलन में हुआ था. इस साहित्य को वचन” कहते हैं. इनमें वीरशैव संतों के आध्यात्मिक अनुभवों को प्रस्तुत किया गया था.
  • बासवन्ना का शरण आन्दोलन एक समानतावादी आन्दोलन था जो अपने समय के हिसाब से एक क्रांतिकारी आन्दोलन था.
  • बासवन्ना ने अनुभव मंडप नामक स्थल स्थापित किया था जहाँ विभिन्न जातियों और समुदायों के शरण जमा होकर सीखने और विचारने का काम करते थे.
  • जाति प्रथा के अंतिम गढ़ अर्थात् विवाह को चुनौती देते हुए शरणों ने एक ऐसा वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें दूल्हा निम्न जाति का और दुल्हन ब्राह्मण होती थी.

GS Paper 1 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms, Literature and Architecture from ancient to modern times.

Topic : Mongolian Kanjur Manuscripts

संदर्भ

संस्कृति मंत्रालय ने सूचित करते हुए बताया है, कि अगले वर्ष तक, मंगोलिया के प्रमुख बौद्ध केन्‍द्रों में वितरण के लिए पवित्र मंगोलियाई कंजूर (Mongolian Kanjur) के लगभग 100 सेटों का पुन:मुद्रण कार्य पूरा करने की संभावना है.

मंगोलियाई कांजूर क्या है?

मंगोलियाई भाषा में ‘कंजूर’  (Kanjur) का अर्थ होता है; संक्षिप्त आदेश‘ जोकि मुख्यतः भगवान बुद्ध की शिक्षाएं हैं.

  1. मंगोलियाई बौद्धों में इनका काफी महत्व है और वे मंदिरों में कंजुर की पूजा करते हैं तथा एक धार्मिक रिवाज के रूप में अपने प्रतिदिन के जीवन में ‘कंजूर’ की पंक्तियों का पाठ करते हैं.
  2. मंगोलियाई ‘कंजूर’ को तिब्बती भाषा से अनुदित किया गया है. ‘कंजूर’ की भाषा शास्त्रीय मंगोलियाई है.

भारत-मंगोलिया संबंध

ऐतिहासिक संबंध

भारत और मंगोलिया अपनी साझा बौद्ध विरासत के कारण आध्यात्मिक रुप से जुड़े हुए हैं.

राजनयिक संबंध

  • भारत ने वर्ष 1955 में मंगोलिया के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये क्योंकि मंगोलिया ने भारत को ‘आध्यात्मिक पड़ोसी’ और रणनीतिक साझेदार घोषित किया था, इस तरह भारत, सोवियत ब्लॉक के बाहर उन शुरुआती देशों में से एक था, जिन्होंने मंगोलिया के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये थे.
  • भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के अंतर्गत वर्ष 2015 में पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री मंगोलिया गए थे.

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

  • मंगोलिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) की स्थायी सीट के लिये भारत की सदस्यता हेतु अपने समर्थन को एक बार फिर दोहराया है.
  • चीन के कड़े विरोध के बावजूद भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) समेत प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मंचों में मंगोलिया को सदस्यता दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) में मंगोलिया को शामिल करने का भी समर्थन किया.
  • मंगोलिया ने भारत और भूटान के साथ बांग्लादेश की मान्यता के लिये वर्ष 1972 के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया था.
  • अन्य फोरम जिनमें दोनों देश सदस्य हैं: एशिया-यूरोप मीटिंग (ASEM) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) आदि.
  • शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत एक सदस्य देश है, जबकि मंगोलिया एक पर्यवेक्षक देश है.

आर्थिक संबंध

भारत और मंगोलिया के बीच वर्ष 2019 में 38.3 मिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था, जबकि वर्ष 2018 में यह 52.6 मिलियन डॉलर था.

रक्षा सहयोग

  • दोनों देशों के बीच ‘नोमाडिक एलीफैंट’ नाम से संयुक्त अभ्यास का आयोजन किया जाता है. इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य आतंकवाद विरोधी और काउंटर टेररिज़्म ऑपरेशन हेतु सैनिकों को प्रशिक्षित करना है.
  • मंगोलिया द्वारा आयोजित ‘खान क्वेस्ट’ (Khaan Quest) नामक एक वार्षिक संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास में भारत भी सक्रिय रूप से हिस्सा लेता है.

पर्यावरणीय मुद्दों पर सहयोग

दोनों देश बिश्केक घोषणा (Bishkek Declaration) का हिस्सा हैं.

सांस्कृतिक संबंध

  • संस्कृति मंत्रालय (भारत) ने राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM) के अंतर्गत मंगोलियाई कंजूर के 108 संस्करणों को फिर से बनाने की परियोजना शुरू की है.
  • केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय मार्च 2022 तक ‘राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन’ (NMM) के अंतर्गत ‘मंगोलियाई कंजूर’ के 108 संस्करणों के पुनर्मुद्रण की परियोजना शुरू की है.

सहयोग के अन्य क्षेत्र

  • भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से सौर ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभरा है, ऐसे में दोनों देशों द्वारा सौर ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग किया जा सकता है.
  • मंगोलिया के खनन क्षेत्र विशेषकर कॉपर और यूरेनियम आदि में भी दोनों देशों के बीच सहयोग की काफी संभावनाएँ हैं.
  • भारत, मंगोलिया के असंगठित और व्यापक पैमाने पर बिखरे हुए किसानों एवं दूध विक्रेताओं के लिये सहकारी समितियों के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता साझा कर सकता है.

GS Paper 1 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Important Geophysical phenomena such as earthquakes, Tsunami, Volcanic activity, cyclone etc.

Topic : Cyclone Tauktae

संदर्भ

वर्तमान में लक्षद्वीप के ऊपर केंद्रित, चक्रवात ‘तौकते’ (Cyclone Tauktae), तीव्र होकर ‘चक्रवाती तूफान’ में बदल चुका है. आगामी 24 घंटों में इसके और भीषण चक्रवाती तूफान में परिवर्तित हो जाने की संभावना है. इस चक्रवात के उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ने और 18 मई तक गुजरात तट के निकट पहुंचने की संभावना है.

पृष्ठभूमि

‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन’ (World Meteorological Organisation- WMO) द्वारा चक्रवातों के नामों की क्रमिक सूची की देखरेख की जाती है.

  1. चक्रवात के लिए ‘तौकते’ (Tauktae) शब्द का सुझाव ‘म्यांमार’ द्वारा दिया गया था, जिसका अर्थ बर्मी भाषा में ‘गेको’ (Gecko), एक विशिष्ट मुखर छिपकली होता है.
  2. पिछले वर्ष ‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) द्वारा जारी की गई चक्रवातों के 169 नामों की नई सूची में यह चौथा नाम है.

चक्रवात की परिभाषा

चक्रवात निम्न वायुदाब के केंद्र होते हैं, जिनके चारों तरफ केन्द्र की ओर जाने वाली समवायुदाब रेखाएँ विस्तृत होती हैं. केंद्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है. फलतः परिधि से केंद्र की ओर हवाएँ चलने लगती है. चक्रवात (Cyclone) में हवाओं की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के विपरीत तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अनुकूल होती है. इनका आकर प्रायः अंडाकार या U अक्षर के समान होता है. आज हम चक्रवात के विषय में जानकारी आपसे साझा करेंगे और इसके कारण,  प्रकार और प्रभाव की भी चर्चा करेंगे. स्थिति के आधार पर चक्रवातों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है –

  1. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
  2. शीतोष्ण चक्रवात (Temperate Cyclones)

चक्रवात के विषय में अधिकारी के लिए क्लिक करें – चक्रवात

चक्रवातों का नाम कैसे पड़ता है?

सितम्बर 2004 में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से सम्बंधित एक अंतर्राष्ट्रीय पैनल ने निर्णय किया कि इस क्षेत्र के देश अपना-अपना नाम देंगे जिसके आधार पर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उठने वाली आँधियों का नाम रखा जाएगा.

  • 8 देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाईलैंड – ने 64 नाम सुझाए.
  • आँधी आने पर नई दिल्ली स्थित क्षेत्रीय विशेषज्ञ मौसम वैज्ञानिक केंद्र (Regional Specialized Meteorological Centre) नामों की सूची में से एक नाम चुनता है.

चक्रवातों का नाम देना आवश्यक क्यों है?

ज्ञातव्य है कि अटलांटिक आँधियों के लिए 1993 से ही नाम दिए जाते रहे हैं. परन्तु उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का नामकरण पहले नहीं होता था क्योंकि यह भय था कि बहुल राष्ट्रीयता वाले इस क्षेत्र का कोई न कोई देश नाम के मामले में संवेदनशील हो सकता है. अब उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का भी नामकरण होता है. इसका उद्देश्य यह है कि लोग किसी चक्रवात के बारे में आसानी से समझ सकें और याद रख सकें. ऐसा करने से आपदा के बारे में जागरूकता, तैयारी, प्रबंधन एवं उसके निवारण में सुविधा हो सके.

चक्रवातों के नामकरण विषयक मार्गनिर्देश

किसी चक्रवात के नामकरण के लिए सामान्य नागरिक भी अपना सुझाव मौसम विज्ञान महानिदेशक को दे सकता है. किन्तु इस निदेशालय ने नाम चुनने के लिए कठोर नियम बना रखे हैं –

  • उदाहरण के लिए नाम को छोटा और आसानी से समझ लेने लायक होना चाहिए.
  • नाम ऐसा हो जो सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील न हो और उसका कोई ऐसा अर्थ न हो जो आक्रोश पैदा कर सके.
  • व्यापक मृत्यु एवं विनाश लाने वाले चक्रवात का नाम दुबारा उपयोग में नहीं आता है. ज्ञातव्य है कि अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत महासागरीय आँधियों के नाम की सूची के नामों का कुछ-कुछ वर्षों के बाद दुबारा प्रयोग होता है.

चक्रवातों की श्रेणियाँ

  • श्रेणी 1 : 90 से 125 किमी. प्रति घंटे चलने वाली हवाएँ, घरों को नाममात्र की क्षति, पेड़ों और फसलों को कुछ क्षति.
  • श्रेणी 2 : 125 से 164 किमी. प्रति घंटे की विध्वंसक हवाएँ, घरों को छोटी-मोटी क्षति, पेड़ों, फसलों और कारवाँओं को अच्छी-खासी क्षति, बिजली जाने का जोखिम.
  • श्रेणी 3 : 165 से 224 किमी. प्रति घंटे की अति विध्वंसक हवाएँ, छतों और भवन-संरचना को कुछ क्षति, कुछ कारवाँओं का विनाश, बिजली जाने की संभावना.
  • श्रेणी 4 : 225-279 किमी. प्रति घंटे की अति विध्वंसक हवाएँ, छतों और भवन संरचनाओं को अच्छी-खासी क्षति, कारवाँओं का विनाश, उनका हवाओं में उड़ जाना, चारों ओर बिजली का जाना.
  • श्रेणी 5 : 280 किमी. प्रति घंटे से अधिक की गति की अत्यंत खतरनाक हवाएँ जो दूर-दूर तक विनाश लाती हैं.

छः छः वर्ष पर फिर से उपयोग किये गए नाम

अटलांटिक और प्रशांत महासागर की आँधियों के नाम हर छठे वर्ष फिर से उपयोग में लाये जाते हैं. पर यदि कोई आँधी अत्यंत जानलेवा और क्षतिकारक सिद्ध होती है तो भविष्य में उस आँधी के नाम को दुहराया नहीं जाता है क्योंकि म्यामी-स्थित US नेशनल हरीकेन सेंटर के पूर्वानुमानकर्ताओं का कहना है कि ऐसा करना असंवेदनशील तथा भ्रमोत्पादक होता है.

चक्रवातीय मौसम

देश में चक्रवात अप्रैल से दिसम्बर के बीच होते हैं. भीषण आँधियों से दर्जनों की मृत्यु हो जाती है और निचले क्षेत्रों से हजारों को खाली कराया जाता है. साथ ही फसल और सम्पत्ति को व्यापक क्षति पहुँचती है.

हरिकेनचक्रवात और तूफ़ान में अंतर

  • हरिकेन, चक्रवात और तूफान – ये सभी उष्णकटिबंधीय आँधियाँ हैं. ये सभी एक हैं, बस इनके नाम स्थान विशेष में बदल जाते हैं.
  • उत्तरी अटलांटिक महासागर और पूर्वोत्तर प्रशांत महासागर के ऊपर बनने वाली आँधी हरिकेन, हिन्द महासागर और दक्षिणी प्रशांत महासागर के ऊपर बनने आँधी चक्रवात तथा पश्चिमोत्तर प्रशांत महासागर के ऊपर बनने वाली आँधी तूफ़ान कहलाती है.

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

लैंडफॉल क्या है?

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात के केंद्र का समुद्र तट के साथ प्रतिच्छेदन या तट रेखा पर प्रवेश करना लैंडफॉल कहलाता है.
  • एक लैंडफॉल में सामान्यतः तेज हवाएँ, भारी वर्षा और उठती हुई समुद्री लहरें होती हैं.

भारत में चक्रवात

  • भारत अपने लम्बे समुद्र तट के चलते विश्व के लगभग 10% उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के प्रभाव क्षेत्र में आता है.
  • अधिकांश चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते हैं और इसलिए ज्यादातर भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी तट से टकराते हैं.
  • भारतीय तट रेखा पर 2016 में ऐसे अन्य चक्रवात भी आये जैसे रोआनु और नाडा.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Separation of powers.

Topic : Why not place convicts under house arrest, asks SC

संदर्भ

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने, विधायिका से जेलों में अत्याधिक भीड़भाड़ से बचने के लिए दोषियों को उनके घरों में नजरबंद करने पर विचार करने के लिए कहा है.

पृष्ठभूमि

कुछ समय पूर्व, कार्यकर्ता गौतम नवलखा द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में ‘वैधानिक जमानत’ / डिफॉल्ट जमानत (Default Bail) याचिका दायर की गई थी.

  1. याचिकाकर्ता ने तर्क देते हुए कहा था, कि वह कई दिनों से घर में नजरबंद है, और इस आधार पर उन्हें ‘वैधानिक जमानत’ दी जानी चाहिए.
  2. शीर्ष अदालत द्वारा सुनाया गया 206 पन्नों का फैसला इसी याचिका पर आधारित था.

नजरबंद मामले पर विचार करने की आवश्यकता

  1. जेलों में अत्याधिक भीड़भाड़- अर्थात, जेलों में कैदियों के रहने की दर, वर्ष 2019 में बढ़कर 5% हो गई.
  2. वर्ष 2019 में विचाराधीन कैदियों की संख्या 3,30,487 थी.
  3. बजट में एक बहुत बड़ी राशि (₹6818.1 करोड़) जेलों के लिए निर्धारित की गई थी.
  4. कोविड-19 का प्रसरण.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

  • कैदियों के भी मानवाधिकार होते हैं और उन्हें कारागार में “पशुओं” की तरह नहीं रखा जा सकता.
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आँकड़ें बताते हैं कि जेल में अपने परिवार और मित्रों से अलग रह रहे कैदी के द्वारा आत्महत्या करने की संभावना 50% अधिक होती है. सामान्य नागरिकों में आत्महत्या की घटनाएँ एक लाख में 11 के अनुपात से होती है जबकि यह अनुपात जेल में एक लाख में 16.9 होता है.
  • भारतीय कारगारों की 3 समस्याएँ हैं – i) कैदियों का कारागार की क्षमता से अधिक होना ii) जेल कर्मियों की कमी तथा iii) कम निधि की व्यवस्था. अधिक कैदी होने का एक बड़ा कारण जेलों में बहुत अधिक विचाराधीन (under trial) कैदियों का होना है.
  • जेलों में कर्मियों के जितने पद चाहियें उनमें 33% खाली रहते है. इसके अतिरिक्त निरीक्षक स्तर के अधिकारीयों के 36% पद खाली हैं.
  • अधिक कैदी होने के कारण जेल की परिस्थितियाँ मनुष्य के रहने लायक नहीं होती हैं. साथ ही साफ़-सफाई ठीक नहीं होती तथा कैदियों और जेल अधिकारियों के बीच हिंसक संघर्ष भी होते रहते हैं.

इनकी बहुत बुरी और अमानवीय हालत के कारण जेलों में अपराधियों का पनपना एक आम बात है. भारतीय जेलों को उभरते हुए अपराधियों का विश्वविद्यालय कहा जाता है. जब तक ऐसी परिस्थतियाँ रहती हैं तब तक ये जेल राजनीतिक पहुँच वाले अपराधियों के लिए स्वर्ग तथा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित विचाराधीन कैदियों के लिए नरक रहेगा.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Welfare schemes for vulnerable sections of the population by the Centre and States and the performance of these schemes; mechanisms, laws, institutions and bodies constituted for the protection and betterment of these vulnerable sections.

Topic : Special Window for Affordable & Mid-Income Housing

संदर्भ

भारत सरकार द्वारा शुरू की गई ‘किफायती एवं एवं मध्यम आय वर्गीय आवास हेतु विशेष विडों’ (Special Window for Affordable & Mid-Income Housing- SWAMIH) ने अपनी पहली आवासीय परियोजना पूरी कर ली है. उपनगरीय मुंबई में स्थित, रिवाली पार्क आवासीय परियोजना, SWAMIH फंड के अंतर्गत धन प्राप्त करने वाली भारत की पहली आवास परियोजना है.

स्वामी फंड क्या है?

  • यह सरकार समर्थित फंड है जिसे सेबी के साथ पंजीकृत श्रेणी- II AIF (वैकल्पिक निवेश कोष) ऋण फंड के रूप में स्थापित किया गया था, इसे वर्ष 2019 में अनावरण किया गया था.
  • स्वामी इन्वेस्टमेंट फंड (SWAMIH Investment Fund) का गठन RERA-पंजीकृत किफायती और मध्यम आय वर्ग की आवास परियोजनाओं के निर्माण को पूरा करने के लिये किया गया था, जो धन की कमी के कारण रुकी हुई है.
  • फंड का निवेश प्रबंधक SBICAP वेंचर्स (SBICAP Ventures) है जो कि SBI कैपिटल मार्केट्स के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है.
  • SBI कैपिटल मार्केट्स, भारतीय स्टेट बैंक के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है.
  • भारत सरकार की ओर से कोष का प्रायोजक वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग का सचिव है.

SWAMIH फंड में निवेशक

विशेष विंडो के अंतर्गत, गठित किए गए अथवा वित्त पोषित ‘वैकल्पिक निवेश कोष’ (AIF) द्वारा सरकार और अन्य निजी निवेशकों से SWAMIH फंड में निवेश करने का आग्रह किया जाएगा. अन्य निजी निवेशकों में नकदी-समृद्ध वित्तीय संस्थान, सॉवरेन वेल्थ फंड, सार्वजनिक और निजी बैंक, घरेलू पेंशन और भविष्य निधि, वैश्विक पेंशन फंड और अन्य संस्थागत निवेशक शामिल होंगे.


Prelims Vishesh

International Nurses and Midwives Day :-

  • प्रतिवर्ष 12 मई को मनाया जाता है.
  • इस वर्ष का विषय: नर्स: ए वॉयस टू लीड- ए विजन फॉर फ्यूचर हेल्थकेयर.
  • इसकी शुरुआत वर्ष 1965 में ‘इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स’ (ICN) द्वारा की गई थी.
  • यह दिवस, प्रसिद्ध नर्स ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ के जन्मदिन पर मनाया जाता है.
  • ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ एक अंग्रेजी नर्स, समाज सुधारक और सांख्यिकीविद् थीं. क्रीमिया युद्ध के दौरान, उन्होंने नर्सों के प्रबंधक और प्रशिक्षक के रूप में कार्य करते हुए प्रसिद्धि हासिल की, और वे आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक भी थीं.

Indicative Notes :-

  • यह सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर शुरू की गई एक नई सुविधा है.
  • इसका उद्देश्य, ‘समझने में आसान प्रारूप’ में ऐतिहासिक निर्णयों का संक्षिप्त सारांश उपलब्ध करना है.
  • यह अदालत के फैसलों के बारे में बेहतर जानकारी हासिल करने के इच्छुक मीडियाकर्मियों और आम जनता के लिए एक उपयोगी संसाधन के रूप में काम करेगा.

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