Sansar Daily Current Affairs, 13 August 2021
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Mid-Day Meal Scheme
संदर्भ
हाल ही में ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)‘ द्वारा “खाद्य और पोषण का अधिकार” सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न नीतियों पर चर्चा करने के लिए आयोजित बैठक में मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) योजना को बारहवीं कक्षा तक विस्तारित करने का सुझाव दिया गया.
अनुशंसाएँ
इसके अतिरिक्त, बैठक में कई अन्य सुझाव दिए गए जो निम्न प्रकार हैं:
- ब्रेस्टफीडिंग के लाभों के बारे मे लोगों को जागरूक करना.
- शुगर एवं साल्ट कंटेंट को लेबल करके जंक फ़ूड का नियमन करना.
- शहरी रोजगार गारंटी योजना शुरू करना तथा
- एक सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) शुरू करने का सुझाव भी बैठक में दिया गया जो “आधार” से लिंक न हो, क्योंकि आधार की अनिवार्यता इन योजनाओं को सीमित बनाती है.
मध्याह्न भोजन योजना क्या है?
- इस योजना के अंतर्गत सभी स्कूली बच्चों को दिन में भोजन खिलाया जाता है जिससे न केवल उनके पोषण स्तर में सुधार हो, अपितु वे अपने-अपने स्कूल में नाम लिखायें और उपस्थित रहें.
- भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त, 1995 को मध्याह् भोजन योजना प्रारम्भ की गई थी.
- पहले इसके तहत खाद्यान्न दिए जाते थे, लेकिन वर्ष 2000 से पका पकाया भोजन प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराने की योजना आरम्भ किया गया.
- इस योजना के तहत न्यूनतम 200 दिनों के लिए निम्न प्राथमिक स्तर के लिये प्रतिदिन न्यूनतम 450 कैलोरी ऊर्जा एवं 8-12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिये न्यूनतम 700 कैलोरी ऊर्जा एवं 20 ग्राम प्रोटीन देने का प्रावधान है.
- इस योजना का प्रमुख उद्देश्य प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन और उपस्थिति बढ़ाना था.
- कुछ राज्यों में इसके तहत दूध और नाश्ता भी दिया जाने लगा है.
कुपोषण की रोकथाम के लिए भारत सरकार की योजनाएँ
- प्रधान मंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) : इसके अंतर्गत गर्भवती स्त्रियों के बैंक खातों में 6,000 रु. सीधे भेज दिए जाते हैं जिससे कि वे प्रसव की बेहतर सुविधाएँ पा सकें. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना एक मातृत्व लाभ की योजना है जिसका आरम्भ 2010 में इंदिरा गाँधी मातृत्व सहयोग योजना के नाम से (IGMSY) हुआ था. इस योजना के अंतर्गत पहले बच्चे के जन्म के लिए 19 वर्ष अथवा उससे अधिक उम्र की गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को नकद राशि दी जाती है. इस राशि से बच्चा होने और उसकी देखभाल करने के कारण दिहाड़ी की क्षति का सामना करने वाली महिला को आंशिक क्षतिपूर्ति दी जाती है और साथ ही इससे सुरक्षित प्रसव और उत्तम पोषण का प्रबंध किया जाता है. अपवाद : जो महिलाएँ केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में काम करती हैं अथवा जिन्हें इसी प्रकार का लाभ पहले से मिल रहा है, उनको इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा. वित्त पोषण : यह एक केंद्र संपोषित योजना है जिसमें केंद्र और राज्य की लागत 60:40 होती है. पूर्वोत्तर राज्यों में और तीन हिमालयवर्ती राज्यों में यह अनुपात 90:10 है. जिन केंद्र शाषित क्षेत्रों में विधान सभा नहीं है वहाँ इस योजना के लिए केन्द्रीय योगदान 100% होता है.
- पोषण अभियान : POSHAN अभियान (National Nutrition Mission) का आरम्भ प्रधानमन्त्री द्वारा राजस्थान के झुंझुनू में 8 मार्च, 2018 में किया गया था. इस अभियान का लक्ष्य है छोटे-छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोरियों के बीच कुंठित विकास, कुपोषण, रक्ताल्पता और साथ ही जन्म के समय शिशु के भार की अल्पता की दर को क्रमशः 2%, 2%, 3 % और 2% प्रतिवर्ष घटाना. मिशन का एक लक्ष्य यह भी है कि 0 से 6 साल के बच्चों में शारीरिक विकास में कमी की दर को वर्तमान के 38.4% से घटाकर 2022 तक 25% कर दिया जाए. सरकार पोषण अभियान को 2020 तक विभिन्न चरणों में देश के सभी 36 राज्यों/केंद्र शाषित क्षेत्रों तथा 718 जिलों तक ले जाना चाहती है.
- नेशनल खाद्य सुरक्षा अधिनियम(NFSA), 2013 : इस अधिनियम के द्वारा भोजन को एक कानूनी अधिकार बना दिया गया है जिससे सरकार की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से वंचित वर्गों को भोजन और पोषाहार की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Representation of the People Act (RPA) related issues.
Topic : Criminalisation Of Politics
संदर्भ
राजनीति के अपराधीकरण पर न्यायपालिका सख्त सर्वोच्च न्यायालय ने, पिछले वर्ष हुए बिहार विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में मतदाताओं से जानकारी छिपाने के लिए प्रमुख राजनीतिक दलों पर जुर्माना लगाया है.
पृष्ठभूमि
ज्ञातव्य है कि न्यायालय ने फरवरी 2020 में सभी राजनीतिक दलों को, उनके द्वारा अपने चुनावी उम्मीदवारों का चयन करने के 48 घंटों के भीतर अपनी वेबसाइट के होमपेज पर “आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार” शीर्षक के तहत आपराधिक अतीत, यदि कोई हो, को प्रकाशित करने का निर्देश दिया था. लगभग सभी राजनीतिक दलों ने बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान अपने उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में या तो गलत सूचना दी या आधी-अधूरी सूचना को ऐसे अख़बारों में प्रकाशित करवाया न के बराबर लोग पढ़ते हों.
न्यायालय के हालिया दिशा-निर्देश
न्यायालय ने चुनाव आयोग से भी उम्मीदवारों का ब्यौरा रखने वाले मोबाइल एप्लीकेशन बनाने तथा न्यायालय के निर्णय की अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एक अलग सेल बनाने का निर्देश दिया है. न्यायालय ने विधायिका (संसद) से भी राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की मांग की है.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम क्या कहता है?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार कोई व्यक्ति तभी चुनाव में खड़ा नहीं हो सकता है जब किसी आपराधिक मामलों में उसे सजा दी जा चुकी हो. 1951 के अधिनियम के अनुभाग 8 में यह कहा गया है कि जिस व्यक्ति को दो वर्ष या अधिक की सजा मिली है वह चुनाव नहीं लड़ सकता. परन्तु जिस पर अभी मुकदमा चल ही रहा है वह चुनाव में खड़ा हो सकता है.
वर्तमान स्थिति
चुनाव आयोग के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान लोकसभा के 187 सांसदों पर आपराधिक आरोप हैं. इस प्रकार कह सकते हैं कि 34.4% दागी हैं. इनमें भी 113 ऐसे सांसद हैं जिनपर लगाये गए आरोप से सम्बंधित अपराध गंभीर प्रकृति के हैं. दागी सांसदों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. 2004 में यह संख्या 128 (58 गंभीर) और 2009 में 162 (76 गंभीर) थी.
दागी विधान निर्माताओं को रोकने के उपाय
इसके लिए तीन संभव विकल्प हैं –
- राजनीतिक दल को चाहिए कि वे स्वयं दागी लोगों को टिकट देने से मन कर दें.
- जनप्रतिनिधित्व अधिनयम में संशोधन कर यह नियम बना दिया जाए को कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध गंभीर प्रकृति के आपराधिक मामले चल रहे हैं वे भी चुनाव भी नहीं खड़े हो सकेंगे.
- दागी विधान निर्माताओं के मामलों को तेजी से निपटारा करने के लिए द्रुतगति (fast-track) न्यायालयों का गठन.
राजनीति के अपराधीकरण के संदर्भ में वर्तमान प्रावधान
अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) का अनुभाग 29A : संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को चुनाव कराने का अधिकार देता है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुभाग 29A में चुनाव आयोग को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी दल को पंजीकृत/अपंजीकृत करे.
चुनाव चिन्ह (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 : इसमें यह प्रावधान है कि प्रत्येक दल को समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, प्रजातंत्र, सार्वभौमता, एकता और भारत की अखंडता के सिद्धांतों के पालन का शपथ लेना होगा.
विधायकों के आपराधिक रिकॉर्ड की स्थिति
- निर्वाचन आयोग के द्वारा संकलित डाटा के अनुसार वर्तमान लोकसभा के 187 सांसदों (34.4%) पर आपराधिक आरोप हैं.
- इनमें से 113 के विरुद्ध दायर मामले गंभीर प्रकृति के हैं.
- विदित हो कि 2009 में ऐसे 76 सांसद थे जिनपर गंभीर आरोप थे और 2004 में ऐसे 58 मामले थे.
- इस प्रकार स्पष्ट है कि गंभीर अपराधों के आरोप सांसदों की संख्या बढ़ती जा रही है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : : Effects of liberalization on the economy, changes in industrial policy and their effects on industrial growth.
Topic : Special Economic Zone
संदर्भ
केंद्र सरकार ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones: SEZs) के भीतर लगभग 30,000 करोड़ की कीमत का करीब 10 करोड़ वर्ग फुट व्यर्थ पड़े भूमि एवं निर्मित क्षेत्र/भवन (built-up area) को अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए देने का निर्णय किया है.
इसके अतिरिक्त अगले कुछ दिनों में सरकार द्वारा RoDTEP (निर्यात उत्पादों पर शुल्कों तथा करों में छूट) योजना के तहत लंबित निर्यात संवर्धन की 50,000 करोड़ की राशि भी घरेलू निर्यातकों को जारी की जाएगी.
RoDTEP के बारे में
- RoDTEP ने 1 जनवरी, 2020 से ‘मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट फ्रॉम इंडिया स्कीम’ (Merchandise Export from India Scheme- MEIS) योजना का स्थान लिया.
- यह योजना GST में इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के लिए स्वचालित मार्ग का निर्माण करके भारत के निर्यात को बढ़ाने में सहायता करती है.
- यह योजना निर्यात पर लगने वाले शुल्क को कम करके निर्यातकों को प्रोत्साहित करती है.
- साथ ही इसके तहत निर्यातकों के लिये उत्पादन के बाद की लागत को कम करने के लिए विश्व व्यापार संगठन (WTO) के साथ समन्वय किया जाता है.
विशेष आर्थिक जोन (SEZs) क्या हैं?
विशेष आर्थिक जोन (SEZs) वे भौगोलिक क्षेत्र हैं जहाँ व्यवसाय और व्यापार से सम्बन्धित नियम और प्रथाएँ देश के अन्य भागों से अलग हैं. दूसरे शब्दों में, इस भौगोलिक क्षेत्र में स्थित व्यवसायों को विशेष अधिकार होते हैं. SEZs स्थापित करने के पीछे मूल विचार यह है कि व्यवसाय के लिए संरचना और परिवेश का निर्माण करना रातों-रात संभव नहीं होता, अतः इसके लिए ऐसे विशेष क्षेत्र बनाए जाएँ जो कम अवधि में तैयार हो सकें और जहाँ व्यवसाय और व्यापार से सम्बंधित समस्याओं के हल अधिक कुशलता से किया जा सके.
SEZ Act, 2005 में SEZs और इसके अन्दर संचालित इकाइयों की स्थापना के लिए कानूनी ढाँचे का प्रावधान किया गया है.
ज्ञातव्य है कि विशेष आर्थिक क्षेत्र की शुरूआत 1965 में गुजरात के कांडला से हुई थी. कांडला में एशिया का सबसे पहला मुक्त व्यापार क्षेत्र (Free Trade Zone) बनाया गया था.
विशेष आर्थिक जोन के विषय में विस्तार से पढ़ें :- विशेष आर्थिक ज़ोन
Akshaya Patra :– GS Paper 3 Source : The Hindu UPSC Syllabus : Population and associated issues, poverty and developmental issues, urbanization, their problems and their remedies / Social empowerment. संदर्भ सरकार ने निजी कम्पनियाँ बन चुकी पुरानी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में अपनी बची हुई हिस्सेदारी को भी बेचने का निर्णय लिया है. इनमें शामिल है- पारादीप फॉस्फेट, हिंदुस्तान जिंक एवं BALCO, जिनका निजीकरण वर्ष 2002 तक हो गया था. इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार, बजट 2021 में की गई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण पर नीति की घोषणा के तहत अन्य कई PSUs के रणनीतिक विनिवेश के भी तैयार है, इनमें कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (CONCOR), IDBI बैंक, एयर इंडिया, BPCL, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया, पवन हंस एवं नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड जैसी PSUs शामिल हैं. उक्त नीति की घोषणा आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में मई 2020 में की गई थी. यह नीति रणनीतिक और गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं की उपस्थिति के लिए एक रोड मैप प्रस्तुत करती है. विनिवेश से तात्पर्य, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया से है. हालाँकि विनिवेश के बाद भी सरकार उस उपक्रम पर अपना स्वामित्व अथवा मालिकाना हक बनाए रखती है. यदि सरकार किसी PSU में अपने 50% से अधिक भागीदारी निजी कंपनियों को बेच दे तो उसे निजीकरण कहा जाता है. बढ़ती हुई प्रतिस्पर्द्धा के इस नए माहौल में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के कर्मचारियों को अपने अधिकारों की (कल्याणकारी राज्य के अंतर्गत) हिफाज़त करते हुए देखा जा सकता है. ऐसी स्थिति में कर्मचारियों को मिलने वाले संरक्षण तथा किसी भी रणनीतिक सहयोगी को कंपनी चलाने के लिये मिलने वाली संभावित छूट के बीच एक समझौते की आवश्यकता है. रणनीतिक सहभागियों द्वारा परिसंपत्तियों को अलग करना (जैसे कि कंपनियों की परिसंपत्तियों का निपटान), उससे लाभ कमाना और अंततः संबंधित उद्योग का दोहन करने के पश्चात् उसे छोड़ देना सरकार के लिये चिंता का विषय है. इसलिये सरकार के पास ऐसी स्थितियों से निपटने के लिये कानून होना चाहिये. विशेषज्ञों का मानना है कि विनिवेश को मात्र राजकोषीय अंतर को कम करने के उपकरण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये. सरकार को नियामक ढांचे को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिये जो बाजार की कुशल परिस्थितियों को सुनिश्चित करता है. आज आवश्यकता है कि सरकार विनिवेश को राजकोषीय अंतराल कम करने के एक उपकरण के रूप में प्रयोग न करे, बल्कि इस महत्त्वपूर्ण बजटीय व्यवस्था का प्रयोग भारत में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सुधार के लिए एक रणनीतिक योजना के हिस्से के रूप में किया जाना चाहिये. Kaziranga National Park :- Field Marshal Cariappa :- International Youth Day :- Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Current Affairs Hindi July,2021 Sansar DCA is available Now, Click to Downloadइस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
Topic : Disinvestment
विनिवेश
मेरी राय – मेंस के लिए
Prelims Vishesh