Sansar डेली करंट अफेयर्स, 12 August 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 12 August 2019


GS Paper 2 Source: PIB

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Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : National Medical Commission Bill

संदर्भ

संसद के दोनों सदनों से पिछले दिनों राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 पारित हो गया.

राष्ट्रीय चिकत्सा आयोग विधेयक का उद्देश्य

राष्ट्रीय चिकत्सा आयोग विधेयक का उद्देश्य देश की चिकित्सा शिक्षा प्रणाली में सुधार लाना है. इसके लिए ये कार्य सुनिश्चित किए जाएँगे –

  1. पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सक उपलब्ध कराना
  2. चिकित्सा संस्थानों का समय-समय पर मूल्यांकन, चिकित्सा से जुड़े पेशेवरों को नवीनतम चिकित्सा अनुसंधान अपनाने के लिए प्रेरित करना तथा
  • शिकायत निवारण के लिए एक कारगर तंत्र स्थापित करना.

विधेयक के मुख्य तत्त्व

  • अधिनियम के बनने के तीन वर्षों के भीतर राष्ट्र और राज्य के स्तर पर चिकित्सा आयोग स्थापित किये जाएँगे.
  • केंद्र में एक चिकित्सा परामर्शदात्री परिषद् स्थापित की जायेगी जो राज्यों, संघीय क्षेत्रों को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग तक अपने विचारों और चिंताओं को पहुँचाने के लिए एक सम्पर्क सूत्र का काम करेगी.
  • विधेयक के अनुसार सभी चिकित्सा संस्थानों में (जो अधिनियम के अन्दर आएँगे) स्नातक की पढ़ाई के लिए प्रवेश हेतु एक ही परीक्षा होगी जिसका नाम होगा NEET अर्थात् राष्ट्रीय अर्हता-सह-प्रवेश परीक्षा.
  • जो विद्यार्थी चिकित्सा संस्थानों से पढ़ाई पूरी करके निकलेंगे उनके लिए एक राष्ट्रीय बहिर्गमन परीक्षा (National Exit Test) होगी जिसमें उत्तीर्ण होने पर उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस मिलेगा. इसी परीक्षा के आधार पर छात्रों को स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में भी प्रवेश मिल सकेगा.
  • विधेयक में यह प्रावधान है कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग चाहे तो आधुनिक चिकित्सा पेशे से जुड़े हुए कुछ मध्य-स्तरीय पेशेवरों को एक सीमित लाइसेंस दे सकता है.

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का स्वरूप

  • इस आयोग में 25 सदस्य होंगे जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार एक समिति के सुझाव पर करेगी.
  • उन सदस्यों में से एक अध्यक्ष होगा जो अवश्य रूप से एक वरिष्ठ चिकित्साकर्मी और न्यूनतम 20 वर्षों की अनुभव वाला शिक्षाविद होगा.
  • आयोग में 10 पदेन सदस्य होंगे. कुछ पदेन सदस्य स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा बोर्डों के अध्यक्षों से चुने जाएँगे. साथ ही भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के महानिदेशालय और AIMS का एक निदेशक भी इस आयोग का सदस्य होगा.
  • अंशकालिक सदस्यों का चयन प्रबंधन विधि, चिकित्सकीय नीतिशास्त्र इत्यादि के विशेषज्ञों में से होगा. कुछ अंशकालिक सदस्य राज्यों और संघीय क्षेत्रों द्वारा नामित होंगे.

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के कार्य

यह आयोग इन कार्यों के लिए नीतियाँ बनाएगा –

  1. चिकित्सा संस्थानों और चिकित्सा पेशेवरों का विनियमन, स्वास्थ्य की देखभाल से सम्बद्ध मानव संसाधनों और अवसंरचनाओं से सम्बंधित आवश्यकताओं का आकलन और अधिनियम के अंतर्गत बनाई गई नियमावली का राज्य चिकित्सा परिषदों द्वारा अनुपालन करवाना.
  2. राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक द्वारा विनियमित होने वाले निजी चिकित्सा संस्थानों एवं मानित विश्वविद्यालयों की 50% तक सीटों के लिए शुल्क का निर्धारण भी करेगा.

नए कानून की आवश्यकता क्यों?

  • भारतीय चिकित्सा परिषद् अपने दायित्वों को पूरा करने में बार-बार असमर्थ सिद्ध हो रही थी.
  • चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता आज न्यूनतम स्तर पर है. चिकित्सा शिक्षा और पाठ्यक्रमों को हमारी स्वास्थ्य प्रणाली की आवश्यकताओं के अनुसार एकात्म नहीं किया जा सका है जिस कारण सही प्रकार के स्वास्थ्यकर्मी चिकित्सा संस्थानों से नहीं निकल रहे हैं.
  • सामान्य प्रसव जैसे मूलभूत कार्य में भी आजकल के चिकित्सा स्नातक सक्षम नहीं हैं. अनैतिक व्यवहार के भी उदाहरण बढ़ते जा रहे हैं और इससे चिकित्सा के पेशे के प्रति जनसामान्य में सम्मान घट रहा है.
  • भारतीय चिकित्सा परिषद् में अयोग्य व्यक्ति पहुँच जाते हैं जिनको भ्रष्टाचारी सिद्ध होने पर भी हटाने की शक्ति स्वास्थ्य मंत्रालय के पास नहीं है.

GS Paper 2 Source: Down to Earth

down to earth

Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate. Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.

Topic : CITES — Washington Convention

संदर्भ

स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा नगर में होने वाली CITES सचिवालय की अगली बैठक में भारत सरकार कुछ वन्यजीव प्रजातियों की सूचियों में परिवर्तन का प्रस्ताव लेकर जा रही है.

  • भारत जिन प्रजातियों की सूची में बदलाव चाहता है, वे हैं – चिकने चमड़े वाला ऊदबिलाव (smooth-coated otter), छोटे पंजों वाला ऊदबिलाव (small-clawed otter), भारतीय स्टार कछुआ (Indian star tortoise), टोके गेको (Tokay gecko), वेजफिश (wedgefish) तथा भारतीय रोजवुड (Indian rosewood).
  • भारत का विचार है कि ये बदलाव इसलिए आवश्यक हैं क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के चलते इन प्रजातियों पर बड़ा खतरा है और इसलिए इनको सुरक्षित करना आवश्यक है.

CITES क्या है?

  • CITES का पूरा नाम है – Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora.
  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो वन्यजीवों और पौधों के वाणिज्यिक व्यापार को विश्व-भर में नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया था.
  • यह पौधों और पशुओं से बनने वाले उत्पादों के व्यापार पर भी प्रतिबंध लगाता है, जैसे – खाद्य पदार्थ, कपड़े, औषधि और स्मृति-चिन्ह आदि.
  • यह संधि मार्च 3, 1973 में हस्ताक्षरित हुई थी और यह 35,000 से अधिक वन्यजीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के ऊपर नियंत्रण रखती है. इसलिए मार्च 3 को विश्व वन्यजीव दिवस मनाया जाता है.
  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय नियामक संधि है जिसपर 183 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं.
  • इस संधि का ध्यान-बिंदु मात्र प्रजातियों की रक्षा ही नहीं है. यह नियंत्रित ढंग से व्यापार को उन प्रजातियों के व्यापार को बढ़ावा भी देता है जिससे वन्य प्रजातियों की सततता को आँच नहीं आती है.
  • इस संधि का प्रशासन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme – UNEP) के अधीन होता है.
  • इसका सचिवालयजेनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में है.
  • CITES पर हस्ताक्षर करने वाले देश संधि के नियमों से कानूनी रूप से बंधे होते हैं.

पशुओं और पौधों का वर्गीकरण

CITES विभिन्न पशुओं और पौधों पर विलुप्ति के खतरे के मात्रा के अनुसार उन्हें तीन अनुसूचियों में बाँटता है, ये हैं –

अनुसूची I : इस सूची में वे प्रजातियाँ आती हैं जिनपर विलुप्ति का संकट होता है. इस सूची के प्रजातियों के वाणिज्यिक व्यापार पर प्रतिबंध होता है. मात्र वैज्ञानिक अथवा शैक्षणिक कारणों से असाधारण स्थिति में इनका व्यापार हो सकता है.

अनुसूची II : इसमें वे प्रजातियाँ आती हैं जो विलुप्ति के कगार पर तो नहीं हैं, परन्तु यदि इनका व्यापार प्रतिबंधित नहीं हो तो इनकी संख्या में भारी गिरावट आ जायेगी. इनके व्यापार को परमिट के द्वारा नियंत्रित किया जाता है.

अनुसूची III : इसमें वह प्रजाति आती है जो CITES के सदस्य देशों में किसी एक देश में सुरक्षित घोषित है और उस देश ने अन्य देशों से उस प्रजाति में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने में सहायता मांगी हो.

व्यापार की छूट देने की प्रक्रिया

राष्ट्रीय स्तर CITES का प्रबंधन करने वाले अधिकारी किसी वन्य प्रजाति के व्यापार के लिए तभी छूट देते हैं जब वैज्ञानिक यह सिद्ध कर देते हैं कि इससे वन्यजीवन को कोई हानि नहीं होगी. दूसरे शब्दों में यह वैज्ञानिक साक्ष्य आवश्यक होता है जिससे पता चले कि सम्बन्धित प्रजाति का व्यापार करने से उसकी सततता पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा. जहाँ इस विषय में आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, वहाँ सावधानी के सिद्धांत का पालन किया जाता है.

CITES के प्रावधान उस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों के लिए वैधानिक रूप से बाध्यकारी होते हैं.


GS Paper 3 Source: Down to Earth

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Syllabus : Issues related to direct and indirect farm subsidies and minimum support prices; Public Distribution System objectives, functioning, limitations, revamping; issues of buffer stocks and food security; Technology missions; economics of animal-rearing.

Topic : Kisan Urja Suraksha evam Utthaan Mahabhiyan

संदर्भ

दिल्ली में स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र नामक एक लाभ-रहित संगठन ने एक प्रतिवेदन प्रकाशित किया है जिसके अनुसार सिंचाई, विद्युत वितरण कम्पनियों के ऊपर आपूर्ति तथा सब्सिडी का बोझ एवं किसानों को होने वाले कष्ट ऐसी चुनौतियाँ हैं जिनका भारत सरकार की नई योजना – प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) – से पूर्ण समाधान हो जाए यह नहीं कहा जा सकता है.

प्रतिवेदन में वर्णित चिंताएँ

  • प्रतिवेदन के अनुसार कुसुम योजना से भूजल के अत्यधिक शोषण का खतरा है.
  • विद्युत वितरण प्रणालियों पर सब्सिडी का जो बोझ है वह इस योजना से नहीं घटेगा क्योंकि पम्प लगाने को सब्सिडी युक्त कृषि ऊर्जा आपूर्ति में घटत के साथ नहीं जोड़ा गया है. सब्सिडी युक्त सौर पम्प लगाये तो जा रहे हैं परन्तु उनके साथ-साथ कृषि आपूर्ति अथवा सब्सिडी में कटौती नहीं की जा रही है. परिणामतः राज्यों के ऊपर आने वाले सब्सिडी का भार बढ़ सकता है.
  • यह ठीक है कि खेती के लिए फीडरों के सौरीकरण और ग्रिड से जुड़े सौर पम्पों को लगाना आर्थिक रूप से ग्रिड से नहीं जुड़े पम्पों को लगाने से अधिक अच्छे विकल्प हैं क्योंकि इनसे ग्रिड में अतिरिक्त बिजली आ सकती है. परन्तु योजना में पानी के प्रयोग को सीमित करने के उपाय नहीं बताये गये हैं.
  • खेतों में सौर संयंत्र लगाने की योजना धनी किसानों को ही लाभ पहुँचायेगा क्योंकि इसमें बहुत पैसा लगता है और लगाने वाले के पास भूमि को 25 वर्षों के लिए पट्टे पर देना सब के लिए संभव नहीं होता.

प्रतिवेदन में वर्णित सुझाव

  • सौर पम्प की योजना के साथ-साथ वैसे स्पष्ट एवं कठोर उपाय भी होने चाहिएँ जिनसे भूजल निष्कासन पर दृष्टि रखी जा सके और उसे नियंत्रित किया जा सके. जो राज्य ऐसे उपाय करने के लिए तैयार हों उन्हीं को सौर पम्प की योजनाओं के लिए निधि मुहैया करनी चाहिए.
  • फीडरों को सौर ऊर्जा से चलने वाला बनाना सबसे किफायती उपाय है, परन्तु इसके साथ-साथ कृषि शुल्क और ऊर्जा आपूर्ति की काल-सीमा भी धीरे-धीरे घटाई जानी चाहिए.
  • यह सच है कि जिन क्षेत्रों में पानी के कमी के चलते किसान दु:खी रहते हैं, वहाँ ग्रिड से जुड़े पम्प लगाना एक अच्छा विकल्प है. परन्तु नेट मीटर की जगह पर एकतरफ़ा ऊर्जा प्रवाह की व्यवस्था आवश्यक है क्योंकि इससे पानी की निकासी को सीमित किया जा सकता है.
  • ग्रिड से नहीं जुड़े पम्प केवल अपवाद स्वरूप उन क्षेत्रों में लगाने चाहिएँ जहाँ बिजली नहीं पहुँची है और भूजल का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा है.
  • छोटे ग्रिड के मॉडल अपनाकर बिना ग्रिड वाले पम्पों का प्रचालन बढ़ाया जा सकता है जिससे कि अधिकाई बिजली का प्रयोग घरों में अथवा अन्य आर्थिक कामों में लगाई जा सके.
  • छोटे और सीमान्त किसानों को सौर पम्प देने के विषय में स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित होने चाहिएँ. इसके लिए छोटे और सीमान्त किसानों को वित्त की सुविधा सुलभ बनानी चाहिए.
  • विद्युत वितरण को कारगर बनाने के लिए सम्बंधित कम्पनियों से पम्प के अधिष्ठापन, संचालन, विपत्र निर्माण और किसानों द्वारा हुए भुगतान के विषय में नियमित रूप से प्रतिवेदन लेना होगा.

KUSUM Yojana

  • यह भारत सरकार की 4 लाख करोड़ की एक योजना है जिसके अंतर्गत किसानों की सहायता के लिए 28,250 MW तक सौर ऊर्जा के विकेंद्रीकृत उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा.
  • KUSUM योजना के अनुसार बंजर भूमियों पर स्थापित सौर ऊर्जा परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली में से surplus अंश को किसान ग्रिडों को आपूर्ति कर सकेंगे जिससे उन्हें आर्थिक लाभ मिलेगा.
  • इसके लिए, बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) को किसानों से पाँच वर्षों तक बिजली खरीदने के लिए 50 पैसे प्रति इकाई की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन राशि दी जायेगी.
  • सरकार किसानों को खेतों के लिए 5 लाख ऑफ़-ग्रिड (ग्रिड रहित) सौर पम्प खरीदने के लिए सब्सिडी प्रदान करेगी. केंद्र और राज्य प्रत्येक सौर पम्प पर 30% सब्सिडी प्रदान करेंगे. अन्य 30% ऋण के माध्यम से प्राप्त होगा, जबकि 10% लागत किसान द्वारा वहन की जायेगी.
  • 7,250 MW क्षमता के ग्रिड से सम्बद्ध (ग्रिड-कनेक्टेड) खेतों के पम्पों का सौरीकरण (Solarisation) किया जाएगा.
  • सरकारी विभागों के ग्रिड से सम्बद्ध जल पम्पों का सौरीकरण किया जाएगा.

कुसुम योजना के कुछ अन्य प्रावधान

  • ग्रामीण क्षेत्र में 500KW से लेकर 2MW तक के नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्र लगाये जाएँगे जो ग्रिड से जुड़े हुए होंगे.
  • कुछ ऐसे सौर जलपम्प लगाये जाएँगे जो किसानों की सिंचाई की आवश्यकता को पूरी करेंगे परन्तु वे ग्रिड से सम्बद्ध नहीं होंगे.
  • वर्तमान में जो किसान ग्रिड से जुड़े सिंचाई पम्पों के स्वामी हैं उन्हें ग्रिड की आपूर्ति से मुक्त किया जाए और उन्हें अधिकाई सौर ऊर्जा को DISCOMs को देकर अतिरिक्त आय कमाने का अवसर दिया जाए.

योजना के अपेक्षित लाभ

  • यह कृषि क्षेत्र को डीजल-रहित बनाने में सहायता करेगी.
  • यह कृषि क्षेत्र में सब्सिडी का बोझ कम कर DISCOMs की वित्तीय स्थिति में सुधार करने में सहायता करेगी.
  • विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा.
  • ऑफ-ग्रिड और ग्रिड कनेक्टेड, दोनों प्रकार के सौर जल पम्पों द्वारा सुनिश्चित जल स्रोतों के प्रावधान के माध्यम से किसानों को जल-सुरक्षा.
  • नवीकरणीय खरीद दायित्व लक्ष्यों को पूरा करने के लिए राज्यों का समर्थन करना.
  • छतों के ऊपर और बड़े पार्कों के बीच इंटरमीडिइट रेंज में सौर ऊर्जा उत्पादन की रीक्तियों को भरना.
  • ऑफ-ग्रिड व्यवस्था के माध्यम से पारेषण क्षति (transmission loss) को कम करना.

GS Paper 3 Source: PIB

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Syllabus : Infrastructure

Topic : FAME-II Scheme

संदर्भ

भारी उद्योग विभाग ने फेम इंडिया योजना के चरण II के अंतर्गत शहर के अन्दर और एक शहर से दूसरे शहर तक चलाने के लिए 64 शहरों, राज्य सरकार के प्रतिष्ठानों और राज्य परिवहन उपक्रमों को 5595 बिजली की बसें देने के प्रस्ताव को अनुमोदित कर दिया है. इसका उद्देश्य सार्वजनिक परिवहन को स्वच्छतर बनाना है.

FAME 2 योजना के मुख्य तत्त्व

  • यह योजना FAME India I (1 अप्रैल, 2015 में अनावृत) का विस्तारित संस्करण है जिसका उद्देश्य सार्वजनिक परिवहन में बिजली से चलने वाली गाड़ियों का अधिक से अधिक प्रयोग सुनिश्चित करना.
  • इसका एक अन्य उद्देश्य बिजली वाले वाहनों की ग्राह्यता को प्रोत्साहित करने के लिए इनके लिए बाजार बनाना और माँग में वृद्धि करना है.
  • सरकार वाणिज्यिक उद्देश्य से चलाई जाने वाली बिजली की बसों, तिपहियों और चौपहियों के लिए उत्प्रेरण प्रदान करेगी.
  • इस योजना में ऐसे वाहनों को भी शामिल किया जा रहा है जो संकर ऊर्जा से एवं एक बड़ी लिथियम-आयन बैटरी तथा बिजली मोटर से चलते हैं. ऐसे वाहनों के लिए उनकी बैटरी के आकार के अनुसार वित्तीय सहायता देने का भी प्रस्ताव है.
  • FAME 2 योजना के लिए 2022 तक तीन वर्षों के लिए 10 हजार करोड़ रु. का बजटीय प्रावधान किया गया है.

FAME 2 योजना में चार्जिंग से सम्बंधित प्रावधान

  • भारत सरकार लोक क्षेत्र की इकाइयों और निजी प्रतिष्ठानों की सक्रिय भागीदारी से चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए पैसा लगाएगी.
  • प्रत्येक बिजली की बस के लिए धीमी गति से चार्ज होने वाला एक और बिजली से चलने वाली दस बसों के लिए तेजी से चार्ज देने वाला एक चार्जिंग केंद्र दिया जाएगा.
  • चार्जिंग केंद्र के साथ-साथ ऐसी अवसरंचनाएं भी बनाई जाएँगी जो वाहनों के विद्युतीकरण के लिए आवश्यक हैं, जैसे – पेंटोग्राफ चार्जिंग (pantograph charging) और फ्लैश चार्जिंग (flash charging).
  • FAME 2 योजना के अंतर्गत नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों को चार्जिंग केंद्र को जोड़ने को बढ़ावा दिया जाएगा.

पृष्ठभूमि

यह राष्ट्रीय बिजली गतिशीलता मिशन योजना का अंग है. पर्यावरण के अनुकूल वाहनों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने 2015 में भारत में (FAME – INDIA) योजना की शुरुआत की थी. फेम इंडिया योजना का लक्ष्य है कि दो पहिया, तीन पहिया, चार पहिया यात्री वाहन, हल्के वाणिज्यिक वाहन और बसों सहित सभी वाहन क्षेत्रों में बिजली के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए. इसके लिए यह योजना सब्सिडी का लाभ प्रदान करती है. इस योजना के तहत संकर एवं इलेक्ट्रिक तकनीकों, जैसे – सशक्त संकर तकनीक (strong hybrid), प्लग-इन शंकर तकनीक (plug-in hybrid) और बैटरी/बिजली तकनीक को प्रोत्साहित किया जाता है. इस योजना को भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा चालाया जा रहा है. FAME योजना इन चार क्षेत्रों पर अपना ध्यान केन्द्रित करती है – तकनीकी विकास, माँग का सृजन, प्रायोगिक परियोजनाएँ एवं चार्ज करने की सुविधा.


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