Sansar डेली करंट अफेयर्स, 11 November 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 11 November 2020


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.

Topic : Right to Recall

संदर्भ

हरियाणा सरकार ने पंचायत के सदस्य को वापस बुलाने या प्रत्यावर्तन के अधिकार (right to recall) से संबंधित विधेयक पारित किया है.

विधेयक से सम्बंधित मुख्य बिंदु

  • यह विधेयक, लोगों को निर्वाचित पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों को वापस बुलाने या प्रत्यावर्तन (अर्थात कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व पद से हटाने) का अधिकार (राइट टू रिकॉल) प्रदान करता है.
  • इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार किसी प्रतिनिधि के प्रत्यावर्तन के लिए, वार्ड या ग्राम सभा के 50% सदस्यों को लिखित रूप में यह प्रस्तुत करना होगा कि वे कार्यवाही आरम्भ करना चाहते हैं.
  • इसके पश्चात्‌ एक गुप्त मतदान किया जाएगा, जिसमें प्रत्यावर्तन हेतु प्रत्याशी के विरुद्ध दो-तिहाई सदस्यों का मत डाला जाना आवश्यक है.

प्रत्यावर्तन का अधिकार क्या है?

  • यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत मतदाता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनके निर्धारित कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व ही हटाया जा सकता है.
  • यह मतदाता को प्रत्यक्ष मत के माध्यम से विधायिका से अपने प्रतिनिधियों को ‘डी-इलेक्ट’ (वापस बुलाने) करने की शक्ति प्रदान करता है.
  • यह उन राजनेताओं की जवाबदेही में वृद्धि करता है, जिनके कार्य संतोषप्रद नहीं हैं या जो अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं.
  • यह देश में प्रत्यक्ष लोकतंत्र को बढ़ावा देता है. यह चुनाव अभियान के दौरान किए जाने वाले व्यय को सीमित भी करता है, क्योंकि अनैतिक उम्मीदवारों को प्रत्यावर्तन का भय रहता है.

भारत में सांसदों और विधायकों को वापस बुलाने या प्रत्यावर्तन के अधिकार के संबंध में कोई कानून मौजूद नहीं है. हालांकि मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ के स्थानीय स्तर के निकायों के निर्वाचन में मतदाताओं को यह अधिकार प्रदान किया गया है. ज्ञातव्य है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, वेनेजुएला, स्विट्जरलैंड आदि जैसे विश्व भर के अनेक देशों में राइट दू रिकॉल की व्यवस्था विद्यमान है.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Functions and responsibilities of the Union and the States, issues and challenges pertaining to the federal structure, devolution of powers and finances up to local levels and challenges therein.

Topic : Fifteenth Finance Commission

संदर्भ

हाल ही में, पंद्रहवे वित्त आयोग के अध्यक्ष एन के सिंह के द्वारा भारत के राष्ट्रपति को आयोग की रिपोर्ट सौंप दी गयी है.

केंद्र सरकार द्वारा संसद में इस रिपोर्ट को प्रस्तुत किया जाएगा, इसके पश्चात यह रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होगी.

पृष्ठभूमि:

विचारणीय विषयों (ToR) की शर्तों के अनुसार, आयोग को 2021-22 से 2025-26 तक अर्थात पांच साल की अवधि के लिए 30 अक्टूबर, 2020 तक अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करना अनिवार्य था.

पिछले वर्ष आयोग द्वारा  वर्ष 2020-21 के लिए सिफारिशों सहित पहली रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी थी. जिसे केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर लिया था और यह रिपोर्ट 30 जनवरी, 2020 को संसद के पटल पर रखी गई थी.

15वाँ वित्त आयोग

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर, 2017 को 15वें वित्त आयोग के गठन को मंज़ूरी प्रदान की थी.
  • गौरतलब है कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2020-25 तक पाँच साल की अवधि में लागू की जाएंगी.
  • अब तक 14 वित्त आयोगों का गठन किया जा चुका है. 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2019-20 तक के लिये वैध हैं.
  • ध्यातव्य है कि 27 नवंबर, 2017 को श्री एन.के. सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. श्री एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं वर्ष 2008-2014 तक बिहार से राज्य सभा के सदस्य भी रह चुके हैं.

विचारणीय विषय (Terms of reference– ToR)

  1. वित्त आयोग को इसके विचारणीय विषयों(ToR) में कई अद्वितीय और व्यापक मुद्दों पर सिफारिशें देने के लिए कहा गया था.
  2. ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज कर वितरण, स्थानीय स्तर पर सरकारी अनुदान, आपदा प्रबंधन अनुदान के अतिरिक्त आयोग को विभिन्न क्षेत्रों जैसे बिजली क्षेत्र, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) को लागू करने, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आदि की जांच करने और राज्यों के लिए प्रदर्शन प्रोत्साहन हेतु सिफारिश करने का भी अधिदेश दिया गया था.
  3. आयोग से रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के वित्तीयन हेतु एक पृथक तंत्र स्थापित किए जाने की आवश्यकता संबंधी जांच करने के लिए कहा गया था. इसके साथ ही, यदि ऐसे तंत्र की आवश्यकता होने पर, इसके परिचालन हेतु सुझाव देने को भी कहा गया था.

वित्त आयोग

  • संविधान के अनुच्छेद 280 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक पाँच वर्ष की समाप्ति पर या पहले उस समय पर, जिसे राष्ट्रपति द्वारा आवश्यक समझा जाता है, एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा.
  • इस व्यवस्था को देखते हुए पिछले वित्त आयोग के गठन की तारीख के पाँच वर्षों के भीतर अगले वित्त आयोग का गठन हो जाता है, जो एक अर्द्धन्यायिक एवं सलाहकारी निकाय है.

मेंस के लिए

वित्त आयोग केंद्र और राज्य के मध्य वित्तीय संतुलन बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है, और इसीलिये इसे संघीय व्यवस्था का अभिन्न अंग माना जाता है. परंतु कुछ लोग मानते हैं कि वित्त आयोग सदैव ही अपने विचारार्थ विषयों की चुनौतियों के बोझ से दबा रहा है. 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों में होने वाले उपरोक्त संशोधन वित्त आयोग के बोझ को और अधिक बढ़ाने का कार्य करेंगे. परंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वित्त आयोग का गठन ही इस कार्य हेतु किया जाता है, साथ ही यह देश के संघीय ढाँचे के लिये भी आवश्यक है.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : OPEC +

संदर्भ

कोविड-19 के खिलाफ एक अत्यधिक प्रभावी फाइजर वैक्सीन (Pfizer vaccine) के आने की खबर तथा सऊदी अरब द्वारा ‘बाजार को संतुलित करने हेतु ओपेक प्लस (OPEC+) तेल निकासी समझौतों को समायोजित’ किए जाने के आश्वासन के बाद, तेल की कीमतों में उछाल आया है.

OPEC

  • OPEC का फुल फॉर्म है –Organization of the Petroleum Exporting Countries. इस प्रकार यह तेल उत्पादक देशों का एक समूह है जिसकी स्थापना 1960 में ईराक के बग़दाद में हुई थी और यह 1961 से प्रभावी हो गया.
  • ओपेक का मुख्यालय इसके गठन के पहले पाँच वर्षों तक जिनेवा, स्विट्जरलैंड में था पर कालांतर में 1 सितंबर, 1965 में इसके मुख्यालय कोऑस्ट्रिया के विएना में स्थानांतरित कर दिया गया.
  • ओपेक का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना है जिससे पेट्रोलियम उत्पादकों के लिए उचित और स्थिर कीमत सुनिश्चित की जा सके.
  • ओपेक देश दुनिया की तेल निर्यात का 40 फीसदी से ज्यादा का हिस्सा नियंत्रित करता है. यह 82 फीसदी तेल भंडार के मालिक भी है.

OPEC की सदस्यता

  • OPEC के सदस्य तीन प्रकार के होते हैं – संस्थापक सदस्य, पूर्ण सदस्य और सहयोगी सदस्य.
  • पूर्ण सदस्य वे देश होते हैं जहाँ से अच्छा-ख़ासा कच्चा तेल निर्यात होता है.
  • इस समूह में नए सदस्य तभी शामिल हो सकते हैं जब उनके इस विषय में दिए गये आवेदन पर OPEC के सदस्य 3/4 बहुमत से अपना अनुमोदन दे देते हैं.
  • OPEC के कानून में यह प्रावधान है कि उस देश को भी ओपेक में सहयोगी सदस्य बनाया जा सकता है जो पूर्ण सदस्यता की अर्हता नहीं रखता है, पंरतु किसी विशेष परिस्थिति में उसे सदस्य बना लिया जाता है.
  • वर्तमान में OPEC संगठन में 13 सदस्य देश हैं, जिनके नाम हैं – अल्जीरिया, अंगोला, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कांगो गणराज्य, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेज़ुएला.
  • क़तर 2018 में ओपेक से अलग हो गया.
  • इक्वाडोर ने दिसंबर 1992 में अपनी सदस्यता स्थगित कर दी. अक्टूबर 2007 को वह ओपेक में फिर से शामिल हो गया. लेकिन उसने पुनः 1 जनवरी, 2020 को ओपेक की सदस्यता त्याग दी.

ओपेक प्लस’ क्या है?

ओपेक प्लस (OPEC+) कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों का एक गठबंधन है. यह गठबंधन वर्ष 2017 से तेल बाजारों में की जाने वाली आपूर्ति में सुधार कर रहा है.

ओपेक प्लस देशों में अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कजाकिस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं.


GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Growth & Development. Inclusive Growth.

Topic : Technical Recession

संदर्भ

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा नवंबर माह के लिये जारी हालिया मासिक बुलेटिन के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 8.6 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया जा सकता है.

इस आधार पर रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन में कहा है कि भारत मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में तकनीकी मंदी (Technical Recession) में प्रवेश कर सकता है.

तकनीकी मंदी क्या है?

भारत अब आधिकारिक तौर पर ‘तकनीकी मंदी’ की स्थिति में प्रवेश करने वाला है. अर्थशास्त्र में तकनीकी मंदी एक प्रकार की स्थिति है. इस शब्द का प्रयोग तब करते हैं जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाही तक संकुचन हो रहा हो. अर्थशास्त्र के जानकार बताते हैं कि यदि दो तिमाहियों में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट आए तो इसे तकनीकी मंदी कहा जाता है. इसमें कुछ विशेषज्ञों की राय है कि मंदी का निर्धारण करते समय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के समग्र उत्पादन के साथ बेरोजगारी, निजी खपत आदि को भी शामिल किया जाना चाहिए. दरअसल, अर्थव्यवस्था में जब वस्तुओं और पूरी तरह से सेवाओं का उत्पादन एक तिमाही से दूसरी तिमाही में बढ़ जाए तो इसे विस्तार की अवधि कहा जाता है, और यदि यह घट जाए तो इसे मंदी की अवधि कहा जाता है. ये दोनों ही मिलकर अर्थव्यवस्था में व्यापार चक्र को पूरा करती हैं.

देश की जीडीपी में वस्तुओं और सेवाओं का समग्र उत्पादन शामिल होता है और इसे अर्थव्यवस्था में सबसे अहम माना जाता है. जब अर्थव्यवस्था में जीडीपी लंबे समय तक संकुचित रहती है तो इसे मंदी माना जाता है. यह निश्चित नहीं है कि कितने समय तक मंदी की अवधि बनी रहेगी और जीडीपी को मंदी का निधार्रण करने का एकमात्र कारक मानने पर भी मतभेद है. मंदी, कुछ तिमाहियों तक रह सकती है. यदि यह एक साल या उससे अधिक समय तक बनी रहती है तो इसे अवसाद या महामंदी कहते हैं. किसी भी देश या अर्थव्यवस्था में महामंदी की परिस्थिति कम ही देखने में आती है. इसे रोकने और निर्मित न होने के मजबूत प्रयास होते हैं. दुनिया की महाशक्ति अमेरिका में 1930 के दशक में महामंदी की स्थिति देखी गई थी.

तकनीकी मंदी क्यों आई?

कोरोना वायरस (Corona Virus) महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत आर्थिक मोर्चे पर काफी प्रभावित हुआ है. इससे पहले भी देश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. भारत में अभी भी नौकरियां जा रही हैं, सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं में नई भर्ती बेहद कम है. जो लोग नौकरियों में हैं, उन्हें अपनी सेवाएं बचाए रखने की चिंता है. कई निजी संस्थाओं में वेतन में जोरदार कटौती कर दी है, इसके बावजूद लोग नौकरियां बचाए रखना चाहते हैं. लोगों की आय कम हुई है तो उसी क्रम में लोगों ने अपने खर्च घटा लिए हैं. पैसे नहीं हैं तो निवेश भी नहीं हो रहा है. इस तरह की स्थिति में उत्पादक को अपना मुनाफा भी नहीं दिख रहा है. इन तमाम कारणों से तकनीकी मंदी है.

कितनी लंबी होती है मंदी की अवधि

  • आमतौर पर मंदी कुछ तिमाहियों तक ही रहती है और यदि इसकी अवधि एक वर्ष या उससे अधिक हो जाती है तो इसे अवसाद अथवा महामंदी (Depression) कहा जाता है.
  • हालाँकि अवसाद अथवा महामंदी की स्थिति किसी भी अर्थव्यवस्था में काफी दुर्लभ होती है और कम ही देखी जाती है. ज्ञात हो कि आखिरी बार अमेरिका में 1930 के दशक में महामंदी (Depression) की स्थिति देखी गई.
  • वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि यदि भारतीय अर्थव्यवस्था को अवसाद अथवा महामंदी (Depression) की स्थिति में जाने से बचना है और मंदी की स्थिति से बाहर निकलना है तो जल्द-से-जल्द महामारी के प्रयास को रोकना होगा.

Prelims Vishesh

Tristan da Cunha Island :-

  • यह ब्रिटेन के अधिकार क्षेत्र में आता है, इस क्षेत्र में चार मुख्य द्वीप शामिल हैं, जिनमें से सबसे बड़ा ट्रिस्टन दा कुन्हा है जो दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन से 2,810 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है.
  • इसे सर्वप्रथम डचों द्वारा 1643 में खोजा गया था.
  • ब्रिटेन ने ट्रिस्टन दा कुन्हा पर 1816 में अधिकार कर लिया था और इस क्षेत्र में पहली स्थायी बस्तियाँ स्थापना की थी.

Earth observation satellite EOS 01 :-

  • इसरो ने श्रीहरिकोटा क॑ सतीश घवन अंतरिक्ष कंद्र से PSLV-C49 (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) से अपने भू-प्रेक्षण उपग्रह EOS 01 तथा अन्य 9 विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है.
  • EOS-01 एक नवीन रडार इमेजिंग सैटेलाइट (RISAT) है, जो विगत वर्ष प्रक्षेपिेत किए गए RISAT-2B और RISAT-2BR1 के साथ मिलकर कार्य करेगा.
  • इसका उद्देश्य कृषि, वानिकी और आपदा प्रबंधन सहायता में उपयोगी हाई-रिजॉल्यूशन छवियों की सभी मौसम में दिन-रात उपलब्धता सुनिश्चित करना है.
  • भू-प्रेक्षण उपग्रहों का उपयोग वस्तुत: कृषि, जल संसाधन, नगर नियोजन, ग्रामीण विकास, खनिज पूर्वेक्षण आदि जैसे विभिनन क्षेत्रों में अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है.

FASTags :-

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा फास्टैग हेतु अधिसूचना जारी की गई है, जिसके तहत 1 जनवरी, 2020 से सभी चार पहिया वाहनों (जिसमें पुराने वाहन भी शामिल हैं) के लिए फास्टैग को अनिवार्य कर दिया गया है.
  • फास्टैग वस्तुतः भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा संचालित एक इलेक्ट्रॉनिक टोल (पथकर) संग्रह प्रणाली है.
  • फास्टैग के तहत संबद्ध प्रीपेड या बचत खाते से प्रत्यक्ष भुगतान हेतु इसमें रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (10) तकनीक का उपयोग किया जाता है.
  • इसे वाहन की विंडस्क्रीन पर लगाया जाता है, जो टोल संग्रहण बूथ को पार करते समय (वाहन के बिना रुके) इलेक्ट्रॉनिक भुगतान को सक्षम बनाता है.

Ministry of Shipping to be renamed as Ministry of Ports, Shipping and Waterways :-

  • भारत में पोत परिवहन और बंदरगाह क्षेत्रक को पोत परिवहन मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र के अधीन रखा गया है, जिसमें पोत-निर्माण एवं पोतों की मरम्मत, प्रमुख बंदरगाह तथा अंतर्देशीय जल परिवहन भी शामिल हैं.
  • विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले अनेक देशों में, शिपिंग मिनिस्ट्री को ही बंदरगाहों एवं जलमार्गों के प्रबंधन का उत्तरदायित्व प्रदान किया गया है.
  • भारत में, पोत परिवहन मंत्रालय बंदरगाहों और जलमार्गों से संबंधित अनेक दायित्वों का निर्वहन करता है. अत: इसके नाम में स्पष्टता, इस मंत्रालय को विकसित अर्थव्यवस्थाओं के समकक्षों के समतुल्य बनाने में सहायता करेगी.

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