Sansar डेली करंट अफेयर्स, 10 July 2021

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Sansar Daily Current Affairs, 10 July 2021


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic :  Delimitation in J&K

संदर्भ

‘जम्मू एवं कश्मीर परिसीमन आयोग’ के अनुसार, इसकी अंतिम रिपोर्ट 2011 की जनगणना के आधार पर तैयार की जाएगी और रिपोर्ट में भौगोलिक स्थिति, दुर्गम इलाकों तथा वर्तमान में जारी ‘परिसीमन प्रक्रिया’ (Delimitation Exercise) के लिए संचार के साधनों और उपलब्ध सुविधाओं को भी ध्यान में रखा जाएगा.

परिसीमन क्या है?

परिसीमन का शाब्दिक अर्थ विधान सभा से युक्त किसी राज्य के अन्दर चुनाव क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निधारण होता है.

परिसीमन का कार्य कौन करता है?

  • परिसीमन का काम एक अति सशक्त आयोग करता है जिसका औपचारिक नाम परिसीमन आयोग है.
  • यह आयोग इतना सशक्त होता है कि इसके आदेशों को कानून माना जाता है और उन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
  • आयोग के आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित तिथि से लागू हो जाते हैं. इन आदेशों की प्रतियाँ लोक सभा में अथवा सम्बंधित विधान सभा में उपस्थापित होती हैं. इनमें किसी संशोधन की अनुमति नहीं होती.

परिसीमन आयोग और उसके कार्य

  • संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार संसद प्रत्येक जनगणना के पश्चात् एक सीमाकंन अधिनियम पारित करता है और उसके आधार पर केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन करती है.
  • इस आयोग में सर्वोच्च न्यायालय का एक सेवा-निवृत्त न्यायाधीश, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और राज्यों के राज्य निर्वाचन आयुक्त सदस्य होते हैं.
  • इस आयोग का काम चुनाव क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का इस प्रकार निर्धारण करना है कि यथासम्भव सभी चुनाव क्षेत्रों की जनसंख्या एक जैसी हो.
  • आयोग का यह भी काम है कि वह उन सीटों की पहचान करे जो अजा/अजजा के लिए आरक्षित होंगे. विदित हो कि अजा/अजजा के लिए आरक्षण तब होता है जब सम्बंधित चुनाव-क्षेत्र में उनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है.
  • सीटों की संख्या और आकार के बारे में निर्णय नवीनतम जनगणना के आधार पर किया जाता है.
  • यदि आयोग के सदस्यों में किसी बात को लेकर मतभेद हो तो बहुत के मत को स्वीकार किया जाता है.
  • संविधान के अनुसार, परिसीमन आयोग का कोई भी आदेश अंतिम होता है और इसको किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
  • प्रारम्भ में आयोग भारतीय राज्य पत्र में अपने प्रस्तावों का प्रारूप प्रकाशित करता है और पुनः उसके विषय में जनता के बीच जाकर सुनवाई करते हुए आपत्ति, सुझाव आदि लेता है. तत्पश्चात् अंतिम आदेश भारतीय राजपत्र और राज्यों के राजपत्र में प्रकाशित कर दिया जाता है.

परिसीमन आवश्यक क्यों?

जनसंख्या में परिवर्तन को देखते हुए समय-समय पर लोक सभा और विधान सभा की सीटों के लिए चुनाव क्षेत्र का परिसीमन नए सिरे से करने का प्रावधान है. इस प्रक्रिया के फलस्वरूप इन सदनों की सदस्य संख्या में भी बदलाव होता है.

परिसीमन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के अलग-अलग भागों को समान प्रतिनिधित्व उपलब्ध कराना होता है. इसका एक उद्देश्य यह भी होता है कि चुनाव क्षेत्रों के लिए भौगोलिक क्षेत्रों को इस प्रकार न्यायपूर्ण ढंग से बाँटा जाए जिससे किसी एक राजनीतिक दल को अन्य दलों पर बढ़त न प्राप्त हो.

चुनाव क्षेत्र परिसीमन का काम कब-कब हुआ है?

  • चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन का काम सबसे पहले 1950-51 में हुआ था. संविधान में उस समय यह निर्दिष्ट नहीं हुआ था कि यह काम कौन करेगा. इसलिए उस समय यह काम राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग के सहयोग से किया था.
  • संविधान के निर्देशानुसार चुनाव क्षेत्रों का मानचित्र प्रत्येक जनगणना के उपरान्त फिर से बनाना आवश्यक है. अतः 1951 की जनगणना के पश्चात् 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम पारित हुआ. तब से लेकर 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन का काम हुआ. उल्लेखनीय है कि 1976 में आपातकाल के समय इंदिरा गाँधी ने संविधान में संशोधन करते हुए परिसीमन का कार्य 2001 तक रोक दिया था. इसके पीछे यह तर्क दिया था गया कि दक्षिण के राज्यों को शिकायत थी कि वे परिवार नियोजन के मोर्चे पर अच्छा काम कर रहे हैं और जनसंख्या को नियंत्रण करने में सहयोग कर रहे हैं जिसका फल उन्हें यह मिल रहा है कि उनके चुनाव क्षेत्रों की संख्या उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में कम होती है. अतः 1981 और 1991 की जनगणनाओं के बाद परिसीमन का काम नहीं हुआ.
  • 2001 की जनगणना के पश्चात् परिसीमन पर लगी हुई इस रोक को हट जाना चाहिए था. परन्तु फिर से एक संशोधन लाया गया और इस रोक को इस आधार पर 2026 तक बढ़ा दिया कि तब तक पूरे भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर एक जैसी हो जायेगी. इसी कारण 2001 की जनगणना के आधार पर किये गये परिसीमन कार्य (जुलाई 2002 – मई 31, 2018) में कोई ख़ास काम नहीं हुआ था. केवल लोकसभा और विधान सभाओं की वर्तमान चुनाव क्षेत्रों की सीमाओं को थोड़ा-बहुत इधर-उधर किया गया था और आरक्षित सीटों की संख्या में बदलाव लाया गया था.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : Sedition

संदर्भ

हाल ही में, एक वरिष्ठ पत्रकार शशि कुमार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करते हुए कहा है कि सरकार द्वारा पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, फिल्म निर्माताओं और ‘नागरिक समाज’ के विरुद्ध ‘राजद्रोह कानून’ (Sedition Law) का एक ‘राजनीतिक रंग देते हुए’ प्रयोग किया जा रहा है.

चिंता का विषय

सरकार पर आरोप है कि सरकार द्वारा कोविड-19 प्रबंधन के विषय में, महामारी की दूसरी लहर के दौरान, अपनी शिकायतों को व्यक्त करने और चिकित्सा सेवाओं तक पहुँच, उपकरण, दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए सहायता मांगने पर, आलोचकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं, कार्यकर्ताओं और नागरिकों के खिलाफ, राजद्रोह कानून का अंधाधुंध प्रयोग किया गया है.

राजद्रोह का कानून कब लाया गया?

यह कानून अंग्रेजों का बनाया कानून है. देश द्रोह का ये वो कानून है जो 151 साल पहले भारतीय दंड संहिता में जोड़ा गया. 151 साल यानी 1870 में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था. अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया ताकि वो भारत के देशभक्तों को देशद्रोही करार देकर सजा दे सके. 

रोमेश थापर वाद, केदार नाथ सिंह वाद, कन्हैया कुमार वाद आदि में राजद्रोह कानून की परिधि को सीमित और पुन: परिभाषित किया गया है तथा सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान, विधिसम्मत सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने का प्रयास तथा राज्य या जनता की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करने जैसे कृत्य को इस कानून के अंतर्गत अपराध माना जाएगा.

राजद्रोह की धारा 124ए है?

  • देश के खिलाफ बोलना, लिखना या ऐसी कोई भी हरकत जो देश के प्रति नफरत का भाव रखती हो वो राजद्रोह कहलाएगी.
  • अगर कोई संगठन देश विरोधी है और उससे अंजाने में भी कोई संबंध रखता है या ऐसे लोगों का सहयोग करता है तो उस व्यक्ति पर भी राजद्रोह का मामला बन सकता है.
  • अगर कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक तौर पर मौलिक या लिखित शब्दों, किसी तरह के संकेतों या अन्य किसी भी माध्यम से ऐसा कुछ करता है.
  • जो भारत सरकार के खिलाफ हो, जिससे देश के सामने एकता, अखंडता और सुरक्षा का संकट पैदा हो तो उसे तो उसे उम्र कैद तक की सजा दी जा सकती है.

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

राजद्रोह के आरोपी भारत के नायक 

  • बाल गंगाधर तिलक
  • भगत सिंह
  • लाला लाजपत राय
  • अरविंदो घोष
  • महात्मा गांधी (साल 1922 में यंग इंडिया में राजनीतिक रूप से ‘संवेदनशील’ 3 आर्टिकल लिखने के लिए राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया.)

इसकी प्रासंगिकता

अंग्रेजों की इस नीति का विरोध पूरे भारत ने किया था. क्योंकि तब भारत अंग्रेजों का गुलाम था. महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने उस दौर में राजद्रोह के इस कानून को आपत्तिजनक और अप्रिय कानून बताया था. लेकिन वो आजादी के पहले की स्थिति थी और पूरा देश स्वतंत्रता कि लड़ाई लड़ रहा था. उस परिस्थितियों की तुलना वर्तमान के दौर से नहीं की जा सकती है.

स्वतंत्रता के सात दशक बाद इस कानून को लेकर अकसर सियासत भी खूब होती रही है. कांग्रेस ने तो बकायदा अपने मेनिफेस्टो में लिख दिया था कि… IPC की धारा 124ए जो राजद्रोह अपराध को परिभाषित करती है. जिसका दुरुपयोग हुआ, उसे खत्म किया जाएगा.

इन देशों ने राजद्रोह का कानून खत्म किया

  • ब्रिटेन ने 2009 में राजद्रोह का कानून खत्म किया और कहा कि दुनिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में है.
  • आस्ट्रेलिया ने 2010 में
  • स्काटलैंड ने भी 2010 में
  • दक्षिण कोरिया ने 1988 में
  • इंडोनेशिया ने 2007 में राजद्रोह के कानून को खत्म कर दिया.

भारत में राजद्रोह के कानून का प्रयोग

  • 2014 से 2016  के दौरान राजद्रोह के कुल 112 मामले दर्ज हुए.
  • करीब 179 लोगों को इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया.
  • राजद्रोह के आरोप के 80% मामलों में चार्जशीट भी दाखिल नहीं हो पाई.
  • सिर्फ 2 लोगों को ही सजा मिल पाई.

स्वतंत्र भारत के चर्चित राजद्रोह केस

  • 26 मई 1953 को फॉरवर्ड कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य केदारनाथ सिंह ने बिहार के बेगूसराय में एक भाषण दिया था. राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ दिए गए उनके इस भाषण के लिए उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया.
  • पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या वाले दिन (31 अक्टूबर 1984) को चंडीगढ़ में बलवंत सिंह नाम के एक शख्स ने अपने साथी के साथ मिलकर ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए थे.
  • साल 2012 में कानपुर के कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को संविधान का मजाक उड़ाने के आरोप में गिरफ्तार किया था. इस मामले में त्रिवेदी के खिलाफ राजद्रोह सहित और भी आरोप लगाए गए. त्रिवेदी के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा था.
  • गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ भी राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था. जेएनयू में भी छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उनके साथी उमर खालिद पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ था.
  • दिवंगत पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ साल 2015 में उत्तर प्रदेश की एक न्यायालय ने राजद्रोह के आरोप लगाए थे. इन आरोपों का आधार नेशनल ज्यूडिशियल कमिशन एक्ट (NJAC) को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना बताया गया.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

शासन चाहे किसी भी प्रवृत्ति का हो, हर प्रकार की व्यवस्था में शासन के खिलाफ आवाज़ उठाना दंडनीय अपराध माना जाता रहा है. भारत में भी प्राचीन और मध्यकाल में यह किसी-न-किसी रूप में विद्यमान था. आधुनिक काल में, जब 1860 में भारतीय दंड संहिता बनाई गई तो उसके बाद राजद्रोह संबंधी प्रावधानों को धारा 124 (A) के अंतर्गत स्थान दिया गया. बहरहाल, वह दौर औपनिवेशिक शासन का था और उस समय ब्रिटिश भारत सरकार का विरोध करना देशभक्ति का पर्याय माना जाता था.

दरअसल, हमें यह समझना होगा कि न तो सरकार और राज्य एक हैं, और न ही सरकार तथा देश. सरकारें आती-जाती रहती हैं, जबकि राज्य बना रहता है. राज्य संविधान, कानून और सेना से चलता है, जबकि राष्ट्र अथवा देश एक भावना है, जिसके मूल में राष्ट्रीयता का भाव होता है. इसलिये कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि राजद्रोह राष्ट्रभक्ति के लिये आवश्यक हो जाए. ऐसी परिस्थिति में सरकार की आलोचना नागरिकों का पुनीत कर्त्तव्य होता है. अतः सत्तापक्ष को धारा 124 (A) दुरुपयोग नहीं करना चाहिये.

सच कहें तो देशद्रोह शब्द एक सूक्ष्म अर्थों वाला शब्द है, जिससे संबंधित कानूनों का सावधानी पूर्वक इस्तेमाल किया जाना चाहिये. यह एक तोप के समान है, जिसका प्रयोग राष्ट्रहित में किया जाना चाहिये न कि चूहे मारने के लिये, अन्यथा हम अपना ही घर तोड़ बैठेंगे.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Issues related to Health.

Topic : Zika Virus

संदर्भ

अपने पड़ोसी राज्य केरल में ‘जीका वायरस’ (Zika Virus) संक्रमण के मामले पाए जाने से चिंतित, कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य में इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए दिशा-निर्देश निर्गत किए गए हैं.

जीका वायरस क्या है?

जीका वायरस एक ऐसा वायरस है जो डेंगी ज्वर के वायरस, येलो ज्वर के वायरस और वेस्ट नाइल वायरस के समान होता है. इस रोग के वाहक मच्छर का नाम Aedes aegypti है. जब यह मच्छर किसी को काटता है तो उसे यह रोग हो जाता है परन्तु गर्भाशय संक्रमण से भी यह किसी को हो सकता है.

  • इस वायरस का नामा जीका इसलिए पड़ा क्योंकि इसकी पहचान सबसे पहले 1947 में यूगांडा के जीका जंगल में हुई थी.
  • यदि कोई संक्रमित मच्छर किसी औरत को काट लेता तो जीका वायरस धीरे-धीरे यह गर्भनाल तक पहुँच जाता है और भ्रूण पर असर करता है.
  • ऐसा देखा गया है कि इस वायरस से सबसे बड़ी हानि गर्भवती स्त्री को होती है क्योंकि तब भ्रूण के सिर के छोटा होने तथा अन्य स्नावयिक असमान्यताओं के होने का सबसे अधिक खतरा होता है.
  • जीका वायरस के मुख्य लक्षण हैं – ज्वर, सिर दर्द, लाल आँखें, त्वचा पर फफोले, थकान, माँसपेशियों में पीड़ा इत्यादि.

उपचार और रोकथाम

वर्तमान में जीका के उपचार के लिए न कोई विशेष तरीका है और न ही कोई टीका उपलब्ध है. इसके रोकथाम के लिए सबसे अच्छा उपाय मच्छरों से बचना और घर के आस-पास जमा जल को निकाल देना है क्योंकि मच्छर उसी में पनपते हैं.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : Emergency Use Listing – EUL

संदर्भ

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) चार से छह सप्ताह के भीतर भारत बायोटेक के COVID ​​​​-19 वैक्सीन कोवैक्सिन को आपातकालीन उपयोग सूची (Emergency Use Listing – EUL) में शामिल करने पर निर्णय लेने की संभावना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन कोवैक्सिन की समीक्षा कर रहा है क्योंकि इसके निर्माता भारत बायोटेक अब अपना संपूर्ण डेटा स्वास्थ्य निकाय के पोर्टल पर अपलोड कर रहे हैं.

आपातकालीन उपयोग सूची

डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार, आपातकालीन उपयोग सूची उस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान नए या बिना लाइसेंस वाले उत्पादों का उपयोग किया जा सकता है.

इसका प्रमुख उद्देश्य, किसी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान प्रभावित लोगों के लिए इन उत्पादों को उपलब्ध कराने संबंधी प्रकिया को तेज करना होता है. यह सूची, उपलब्ध गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता और प्रदर्शन आंकड़ों के आधार पर विशिष्ट उत्पादों का उपयोग करने संबंधी स्वीकार्यता निर्धारित करने में संयुक्त राष्ट्र की इच्छुक खरीद एजेंसियों और सदस्य देशों की सहायता करती है.

शर्तें

EUL और टीकों की पूर्व-योग्यता के लिए एक प्रक्रिया का पालन किया जाता है जिसके अंतर्गत एक कंपनी को चरण 3 परीक्षणों को पूरा करना होता है –

  1. आवेदक को उत्पाद के विकास (IVD के मामले में उत्पाद की पुष्टि और सत्यापन) को पूरा करने के लिए वचनबद्ध होना तथा लाइसेंस प्राप्त होने के बाद उत्पाद के लिए WHO से पूर्व-योग्यता (prequalification) प्राप्त करने हेतु आवेदन करना आवश्यक है.
  2. WHO के नियामक विभाग को पूरा डेटा जमा करना होता है, जिसकी जांच एक विशेषज्ञ सलाहकार समूह द्वारा की जाती है.
  3. डेटा की पूर्णता, जिसमें सुरक्षा और प्रभावकारिता और विनिर्माण गुणवत्ता भी शामिल है, मानक प्रदान किए जाते हैं.

GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Cybersecurity related issues.

Topic : Global Cyber Index 2021

संदर्भ

हाल ही में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी – अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा “वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक” (Global Cyber Security Index) 2020 निर्गत किया गया है.

भारत, सूचकांक में 37 स्थानों की बढ़त के साथ 10वें स्थान पर पहुँच गया है.

“वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक” के विषय में

  • यह सूचकांक वैश्विक स्तर पर साइबर सुरक्षा के लिए देशों की प्रतिबद्धता को मापता है.
  • इसमें 5 मानकों पर प्रदर्शन के आधार पर देशों को रैंकिंग दी जाती है, ये हैं- कानूनी उपाय, तकनीकी उपाय, संगठनात्मक उपाय, क्षमता विकास और सहयोग.

वैश्विक साइबर सुरक्षा सूचकांक (GCI) 2020 के प्रमुख बिन्दु

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने GCI 2020 में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है.
  • यूनाइटेड किंगडम और सऊदी अरब दूसरे स्थान पर रहे जबकि एस्टोनिया सूचकांक में तीसरे स्थान पर था.
  • चीन को 33वीं और पाकिस्तान को 79वीं रैंक हासिल हुई है.

Prelims Vishesh

International Olympic Day :-

  • यह प्रत्येक वर्ष 23 जून को मनाया जाता है.
  • इसी दिन वर्ष 1894 में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति का गठन किया गया था.
  • IOC एक गैर-सरकारी संगठन है, जो विश्व भर में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलों का प्रशासन देखता है.
  • इसका मुख्यालय लुसाने (स्विट्जरलैंड) में स्थित है.
  • ओलंपिक और भारत : भारत ने कभी भी ओलंपिक खेलों की मेजबानी नहीं की है.  युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय द्वारा टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना (2014) भारत के शीर्ष एथलीटों को सहायता प्रदान करती है, ताकि वे वर्ष 2020 और वर्ष 2024 ओलंपिक में पदक जीत सकें.

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