Sansar डेली करंट अफेयर्स, 11 February 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 11 February 2020


GS Paper 1 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms, Literature and Architecture from ancient to modern times.

Topic : Kumbhabhishekam

संदर्भ

1,010 वर्ष पुराने तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर में कुंभाभिषेकम आयोजित हो रहा है. यह आयोजन 23 वर्षों से रुका हुआ था क्योंकि शुद्धीकरण की प्रक्रिया के विषय में महाराष्ट्र उच्च न्यायालय में मामला अटका हुआ था और इस पर जनवरी 31 को ही निर्णय आया है.

विवाद क्या था?

विवाद इस बात को लेकर था कि कुंभाभिषेकम में पढ़े जाने वाले श्लोक किस भाषा में पढ़े जाएँ – संस्कृत अथवा तमिल. Periya Koil Urimai Meetpu Kuzhu (Thanjavur Big Temple Rights Retrieval Committee) नामक संगठन की माँग थी कि कुंभाभिषेकम तमिल में हो. किन्तु सरकार ने कहा कि यह आयोजन तमिल और संस्कृत दोनों में होगा.

बृहदेश्वर मंदिर

  • यह मंदिर सम्राट राजराज चोल I (985 ई. – 1015 ई.) ने बनाया था.
  • कावेरी नदी के तट पर स्थित यह मन्दिर द्राविड़ स्थापत्य का एक सम्पूर्ण प्रतिरूप है.
  • इसे दक्षिण मेरु भी कहा जाता है.
  • राजराज प्रथम के पश्चात् राज करने वाले पांड्य राजाओं, विजयनगर शासकों और मराठों ने इस मंदिर में कई पूजा-स्थल जोड़े थे.
  • बृहदेश्वर मंदिर विश्व का पहला पूर्ण रूप से ग्रेनाइट का बना हुआ मंदिर है.
  • हिन्दू पद्धति के अनुसार प्रत्येक 12 वर्ष पर कुंभाभिषेकम होना चाहिए किन्तु हिन्दू धार्मिक एवं धर्मादा संपदा विभाग के अनुसार इस मंदिर का कुंभाभिषेकम मात्र पाँच बार ही हुआ है – 1010, 1729, 1843, 1980 और 1997 में.
  • UNESCO ने ग्रेट लिविंग चोला टेम्पल्स नामक एक धरोहर स्थल घोषित कर रखा है जिसके अंतर्गत बृहदेश्वर मंदिर के साथ-साथ चोल काल के ये दो मंदिर भी आते हैं – गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर तथा ऐरावतेश्वर मंदिर.

GS Paper 2 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure. Parliament and State Legislatures – structure, functioning, conduct of business, powers & privileges and issues arising out of these.

Topic : Motion of thanks to President’s Address

संदर्भ

पिछले दिनों बजट सत्र के आरम्भ राष्ट्रपति ने संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में सरकार द्वारा तैयार अभिभाषण पढ़ा जिसमें सरकार की उपब्धियों को दर्शाया गया था.

अभिभाषण के उपरान्त धन्यवाद ज्ञापन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया और उस पर चर्चा हुई.

धन्यवाद ज्ञापन में संशोधन

धन्यवाद ज्ञापन में संशोधन के लिए सांसद सूचना दे सकते हैं. ये संशोधन अभिभाषण में कथित विषयों के बारे में हो सकते हैं. इसके अतिरिक्त कोई सांसद उस समय भी संशोधन प्रस्तुत कर सकता है यदि उसे लगे की अभिभाषण में कोई विषय छूट गया है.

धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा और उसकी विषय-वस्तु

  • धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा सदन द्वारा स्वयं या कार्यमंत्रणा समिति की सिफारिश पर आवंटित 3 या 4 दिन होती है.
  • आबंटित समय का बंटवारा विभिन्न दलों तथा गुटों के लिए सदन में उनकी संख्या के अनुपात में किया जाता है.
  • चर्चा के लिए नियत दिनों में सदन अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों पर सुविधानुसार चर्चा कर सकती है.
  • अभिभाषण पर चर्चा बहुत व्यापक होती है और सदस्य राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सभी प्रकार की समस्याओं पर बोल सकते हैं.
  • जिन मामलों का उल्लेख अभिभाषण में विशिष्ट रूप से नहीं होता है, उन पर भी धन्यवाद प्रस्ताव में संशोधनों के माध्यम से चर्चा की जाती है.
  • धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा प्रधानमंत्री या किसी अन्य मंत्री द्वारा उत्तर दिए जाने पर समाप्त हो जाती है. इसके बाद उसके संशोधनों को निपटाया जाता है और धन्यवाद प्रस्ताव मतदान के लिए रखा जाता है तथा स्वीकृत किया जाता है.
  • धन्यवाद प्रस्ताव स्वीकृत किये जाने के बाद उसकी सूचना अध्यक्ष द्वारा एक पत्र के जरिये सीधे राष्ट्रपति को दी जाती है.

धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा की सीमा

  • इसके सम्बन्ध में एकमात्र प्रतिबन्ध यह है कि एक तो सदस्य उन मामलों का उल्लेख नहीं कर सकते जिनके लिए केंद्र सरकार प्रत्यक्षत: उत्तरदायी नहीं है
  • दूसरा यह कि वे वाद-विवाद के दौरान राष्ट्रपति का नाम नहीं ले सकते क्योंकि अभिभाषण की विषय-वस्तु के लिए सरकार उत्तरदायी होती है, न कि राष्ट्रपति.

राष्‍ट्रपति का अभिभाषण

भारत के संविधान में राष्ट्रपति द्वारा संसद के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करने का प्रावधान है. राष्ट्रपति द्वारा संसद में अभिभाषण का यह प्रावधान भारत शासन अधिनियम, 1919 के अंतर्गत वर्ष 1921 में पहली बार स्थापित किये गए केन्द्रीय विधानमंडल के समय से चला आ रहा है.

 संवैधानिक प्रावधान

 राष्ट्रपति निम्नलिखित दो स्थितियों में संसद के सदनों में अलग-अलग या एक साथ समवेत दोनों सदनों के समक्ष अभिभाषण कर सकते हैं –

  • अनुच्छेद 86(1)के अनुसार राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकते हैं.
  • अनुच्छेद 87(1)के अनुसार राष्ट्रपति, लोक सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के बाद प्रथम सत्र के आरम्भ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेंगे और संसद को सत्र के आह्वान के कारण बताएंगे.

अभिभाषण की विषय-वस्तु

अभिभाषण में सरकार की नीति का विवरण होता है. इसलिए अभिभाषण का प्रारूप भी सरकार द्वारा ही तैयार किया जाता है. इसमें पिछले वर्ष के सरकार के कार्य-कलापों और उपलब्धियों की समीक्षा होती है और महत्वपूर्ण आन्तरिक और उपस्थित अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के सम्बन्ध में सरकार द्वारा अपनायी जाने वाली नीतियों का निरूपण होता है. इसमें उन विधायी कार्यों की मुख्य मदों का भी उल्लेख होता है जिन्हें उस वर्ष के दौरान होने वाले सत्रों में संसद में लाने का विचार होता है.

अभिभाषण की प्रति का संसद के सदनों के समक्ष रखा जाना

राष्ट्रपति द्वारा दिए गए अभिभाषण को सदन की कार्यवाही का अंग बनाने तथा उसमे शामिल करने के लिए दोनों सदन अभिभाषण की समाप्ति के बाद अपनी-अपनी बैठकें करती हैं और राष्ट्रपति के द्वारा दिए गए अभिभाषण की सत्यापित प्रतियों को सभा के पटल पर रखा जाता है. उसके बाद धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है और राष्ट्रपति के अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों पर चर्चा की जाती है.

क्‍या सदस्‍य राष्‍ट्रपति‍ के अभि‍भाषण पर प्रश्‍न उठा सकते हैं ?

कोई भी सदस्‍य राष्‍ट्रपति‍ के अभि‍भाषण पर प्रश्‍न नहीं उठा सकता है. कि‍सी सदस्‍य का कोई भी कार्य, जि‍ससे अवसर की शालीनता भंग होती है अथवा जि‍ससे कोई बाधा उत्‍पन्‍न हो, उस सभा द्वारा दंडनीय होता है जि‍सका वह सदस्‍य है. कि‍सी सदस्‍य द्वारा प्रस्‍तुत तथा अन्‍य सदस्‍य द्वारा अनुमोदि‍त धन्‍यवाद-प्रस्‍ताव पर राष्‍ट्रपति‍ के अभि‍भाषण में नि‍र्दिष्‍ट वि‍षयों पर चर्चा की जाती है. राष्‍ट्रपति‍ के अभि‍भाषण पर चर्चा की वि‍स्‍तृति‍ बहुत व्‍यापक होती है और संपूर्ण प्रशासन के कार्यकरण पर चर्चा की जा सकती है. इस संबंध में अन्‍य बातों के साथ-साथ सीमाएँ यह है कि‍ सदस्‍यों को एक तो उन मामलों का उल्‍लेख नहीं करना चाहि‍ए जिनके लि‍ए भारत सरकार प्रत्‍यक्षत: उत्तरदायी नहीं है और दूसरा यह कि‍ वह वाद-वि‍वाद के दौरान राष्‍ट्रपति‍ का नाम नहीं ले सकते क्‍योंकि‍ अभि‍भाषण की वि‍षय-वस्‍तु के लि‍ए सरकार उत्तरदायी होती है, न कि‍ राष्‍ट्रपति‍.


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Statutory, regulatory and various quasi-judicial bodies.

Topic : Ram Temple trust

संदर्भ

अभी पिछले दिनों अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का काम देखने के लिए 15 सदस्यों वाले एक न्यास का गठन किया गया है जिसका नाम श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास रखा गया है.

न्यास की बनावट

इस न्यास में पूर्णतः 15 सदस्य होंगे जिनमें 9 स्थायी और 6  नामित सदस्य होंगे.

न्यास के कार्य के लिए 9 नियम

  1. न्यास की पहली बैठक में यह चर्चा होगी कि इसका स्थायी कार्यालय कहाँ होगा.
  2. राम मंदिर के निर्माण से सम्बंधित प्रत्येक निर्णय लेने के लिए यह न्यास पूर्णतः स्वतंत्र होगा. न्यास ही भक्तों के लिए सारी सुविधाएँ जुटाएगा जसी रसोई, गौशाला, संग्रहालय और सराय.
  3. मंदिर बनाने और सुविधाएँ देने के लिए न्यास वैधानिक रूप से किसी भी व्यक्ति अथवा संस्थान से दान, अनुदान, अचल सम्पत्ति और सहायता स्वीकार कर सकता है. साथ ही वह ऋण भी ले सकता है.
  4. न्यासियों (trustees) का एक बोर्ड किसी एक न्यासी को अध्यक्षता और प्रबंधन का काम देगा और वही बैठकों की अध्यक्षता करेगा. न्यासियों में से महासचिव और कोषाध्यक्ष की नियुक्ति होगी.
  5. राम मंदिर के निर्माण के लिए उपलब्ध कोष हेतु निवेश के बारे में न्यास निर्णय करेगा. मंदिर के लिए जो भी निवेश होगा वह न्यास के नाम पर होगा.
  6. राम मंदिर के लिए मिले हुए दान का उपयोग केवल न्यास के काम के लिए ही होगा, किसी अन्य काम के लिए नहीं.
  7. राम मंदिर न्यास से सम्बद्ध अचल सम्पत्ति को बेचने का न्यासियों के पास अधिकार नहीं होगा.
  8. राम मंदिर के लिए प्राप्त दान और व्यय का न्यास द्वारा हिसाब रखा जाएगा. इसके लिए बैलेंस शीट बनाई जायेगी और न्यास के लेखा का अंकेक्षण भी किया जाएगा.
  9. राम मंदिर न्यास सदस्यों को वेतन नहीं मिलेगा, परन्तु यात्रा के समय होने वाले व्यय का भुगतान न्यास के द्वारा किया जाएगा.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : Uniform Code of Pharmaceuticals Marketing Practices (“UCPMP Code”)

संदर्भ

फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने एक बार फिर कम्पनियों से अनुरोध किया है कि वे समान औषधि विपणन प्रथा संहिता (Uniform Code of Pharmaceutical Marketing Practices – UCPMP) का अनुपालन करे.

पृष्ठभूमि

फार्मा कम्पनियाँ बहुधा UCPMP का उल्लंघन करते हुए पाई गई हैं क्योंकि यह संहिता स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं. भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) और चिकित्सक ये माँग करते रहे हैं कि UCPMP को अनिवार्य बना दिया जाए.

UCPMP संहिता (UCPMP Code) क्या है?

यह एक स्वैच्छिक संहिता है जो फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने निर्गत किया है. यह संहिता भारत की औषधि कम्पनियों के साथ-साथ चिकित्सा उपकरणों को बनाने वाले उद्योग के द्वारा अपनाई गईं विपणन प्रथाओं से सम्बंधित है. यह संहिता वर्तमान में इन पर लागू है – दवा कम्पनियाँ, चिकित्सा प्रतिनिधि, वितरक, थोक विक्रेता, खुदरा विक्रेता आदि औषधि कम्पनियों के एजेंट तथा औषधि निर्माता संघ.

UCPMP संहिता के मुख्य तत्त्व और प्रावधान

  1. कोई दवा कम्पनी अथवा उसका एजेंट दवा लिखने या आपूर्ति करने के लिए योग्यता प्राप्त व्यक्तियों को किसी भी प्रकार का उपहार, पैसे का लाभ अथवा अन्य प्रकार के लाभ मुहैया नहीं करेगा.
  2. जहाँ तक यात्रा सुविधा का प्रश्न है, UCPMP संहिता मना करती है कि देश के अन्दर या बाहर स्वास्थ्य कर्म से जुड़े पेशेवरों और उनके परिजनों को छुट्टी पर या किसी सम्मेलन, सेमिनार, कार्यशाला, CME कार्यक्रम आदि डेलिगेट के रूप में जाने के लिए रेल, विमान, जलयान, क्रूज के टिकट अथवा छुट्टी के लिए अन्य भुगतान नहीं किया जाए. यह संहिता यह भी मना करती है कि किसी ऐसे व्यक्ति को दवाओं के निःशुल्क नमूने नहीं दिए जाएँ जो इन दवाओं को रोगियों के लिए लिखने हेतु योग्यता नहीं रखते हैं. कहने का आशय यह है कि दवाओं के नि:शुल्क नमूने केवल उन्हीं व्यक्तियों को मुहैया किये जाएँ जो ऐसे उत्पाद को देने के लिए योग्यता रखते हैं.
  3. संहिता में कुछ ऐसी शर्तें भी वर्णित हैं जिनका पालन ऐसे नमूने देते समय अवश्य करना चाहिए.
  4. इस संहिता में यह प्रावधान किया गया है कि जब किसी चिकित्साकर्मी/HCPs को एफ्लीएट के रूप में नियुक्त किया जाए तो एक लिखित संविदा होनी चाहिए जिसमें यह बताया गया हो कि यह नियुक्ति आवश्यक क्यों थी और एफ्लीएट के चयन का मानदंड आवश्यकतानुसार हुआ है अथवा नहीं.
  5. UCPMP संहिता में यह भी लिखा हुआ है कि एफ्लीएट के रूप में रखे गये व्यक्तियों की संख्या आवश्यकता से अधिक नहीं हो और उनको दिया गया मुआवजा बेतुका नहीं हो और वह दी जा रही सेवा के न्यायोचित बाजार मूल्य को दर्शाता हो.

समय की माँग

चिकित्सा क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों की यह पुरानी माँग है कि अनैतिक विपणन और प्रोत्साहन को देखते हुए फार्मास्यूटिकल्स विभाग को चाहिए कि वह एक ऐसा तंत्र तत्काल लागू करे जिसके अंतर्गत डॉक्टरों और पेशेवर निकायों (तृतीय पक्ष समेत) को होने वाले भुगतान को सम्बंधित कम्पनी अवश्य प्रकट करे. यह प्रकटन निश्चित अंतराल पर हो और इसे सार्वजनिक डोमेन पर डाला जाए. इसमें व्यय की गई राशि, भुगतान प्राप्त करने वाले व्यक्ति अथवा प्रतिष्ठान का नाम आदि, भुगतान का कारण तथा प्रदान की गई सेवाओं का विवरण हो.


Prelims Vishesh

Kerala’s ban on CFL and filament bulbs from November 2020 :-

  • केरल सरकार ने नवम्बर 2020 से राज्य में कॉम्पैक्ट फ्लूरेसेंट लैंप (CFL) और फिलामेंट वाले बल्बों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है.
  • यह निर्णय राज्य की सतत ऊर्जा नीति के तहत किया गया है.
  • विदित हो कि फिलामेंट वाले बल्ब अधिक ऊर्जा सोखते हैं और CFL में पारे की भाप का प्रयोग होता है जो पर्यावरण और प्राणी मात्र के लिए खतरनाक होता है.

Sham Singh Atariwala :-

  • फ़रवरी 10 को सिख जनरल सरदार शाम सिंह अटारीवाला की 174वीं पुण्यतिथि मनाई गई.
  • ज्ञातव्य है कि अटारीवाला सिख साम्राज्य के एक जनरल थे जिन्होंने मुल्तान, कश्मीर और सीमान्त प्रांत में कई लड़ाइयाँ वीरतापूर्वक लड़ी थीं.
  • जब महाराजा दलीप सिंह अवयस्क थे तो अटारीवाला को महारानी जीन्द कौर ने संरक्षक परिषद् में रखा था.

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