Sansar डेली करंट अफेयर्स, 11 August 2020

Sansar LochanSansar DCA

Sansar Daily Current Affairs, 11 August 2020


GS Paper 1 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Important Geophysical phenomena such as earthquakes, Tsunami, Volcanic activity, cyclone etc.

Topic : Mount Sinabung

संदर्भ

इंडोनेशिया के माउंट सिनाबुंग में हाल में ही विस्फोट हो गया, जिसमें राख का एक विशाल स्तंभ और हवा में 5,000 मीटर (16,400 फीट) धुआँ उठा और स्थानीय समुदायों को मलबे की एक मोटी परत के साथ अंधेरे में डुबो दिया.

सुमात्रा द्वीप पर ज्वालामुखी 2010 से उखड़ रहा है और 2016 में एक घातक विस्फोट देखा गया था.

पृष्ठभूमि

  1. सिनाबंग ने 400 वर्षों में पहली बार 2010 में जीवन में वापसी की थी.
  2. निष्क्रियता की एक और अवधि के बाद, यह 2013 में एक बार फिर प्रस्फुटित हुआ, और तब से अत्यधिक सक्रिय बना हुआ है.
  3. 2014 में एक और 16 की मौत हो गई
  4. 2016 में, विस्फोटों में से एक में सात लोगों की मौत हो गई.
  5. 2018 के अंत में, जावा और सुमात्रा द्वीपों के बीच जलडमरूमध्य में एक ज्वालामुखी फटा, जिससे एक पानी के नीचे भूस्खलन और सुनामी आई, जिससे 400 से अधिक लोग मारे गए.
  6. इंडोनेशिया “रिंग ऑफ फायर” पर अपनी स्थिति के कारण लगभग 130 सक्रिय ज्वालामुखियों का घर है, प्रशांत महासागर के चक्कर में टेक्टोनिक प्लेट सीमाओं का एक बेल्ट जहां अक्सर भूकंपीय गतिविधि होती है.

ज्वालामुखी विस्फोट के कारण

एक भूवेत्ता के शब्दों में “ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उगे हुए फोड़े हैं. ये वहीं फूटते हैं जहाँ की पपड़ी कमजोर होती है, जहाँ इन्हें कोई रास्ता मिल जाता है.” हम पृथ्वी की पपड़ी को भेद कर तो नहीं देख पाते, मगर अनुमान लगाते हैं कि वहाँ की स्थिति क्या हो सकती है. हम अभी तक चार मील की गहराई तक खुदाई कर सके हैं और हम लोगों ने पाया कि गहराई के साथ-साथ तापक्रम बढ़ता जाता है. हमें सबसे गहरी खानों को इसी कारण वातानुकूलित (Air-conditioned) करना पड़ता है. नीचे की ओर बढ़ते हुए तापक्रम को देखकर ही अभी हाल-हाल तक लोगों का विश्वास था कि पृथ्वी का भीतरी भाग ठोस नहीं हो सकता, वहाँ की चट्टानें ठोस रूप में नहीं हैं बल्कि द्रव अवस्था में हैं. मगर भूकंप-लेखक यंत्रों की सहायता से भूकंप की लहरों का अध्ययन कर वैज्ञानिक इस परिणाम पर पहुँचे हैं कि 1800 मील की गहराई तक पृथ्वी की पपड़ी द्रव अवस्था में नहीं है. सच बात यह है कि पिघलने के लिए उन चट्टानों के पास जगह भी नहीं है. पृथ्वी अपने अधिक भार से उन्हें वहाँ दबाये रहती है. पिघलने में चट्टानों को फैलना पड़ता है और ऊपर की अपेक्षाकृत ठंडी परतें उन्हें इतने जोर से दबाये रहती हैं कि वे फैल नहीं पातीं, अतः पिघलने की सीमा तक गर्म होकर भी पिघलने में असमर्थ बनी रहती है.

मगर लावा तो पृथ्वी के अन्दर से निकली हुई पिघली चट्टानें हैं. यह कहाँ से और कैसे ऊपर आ जाता है? संभव है, कहीं-कहीं किन्हीं कारणों से पृथ्वी की पपड़ी का दबाव कम हो गया हो. हो सकता है, पपड़ी खिंचकर ऊपर उठ गई हो, इसलिए कि पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी हो रही है, सिकुड़ रही है और पपड़ी में झुर्रियाँ पड़ रही हैं. ऐसा होने से दबाव कम होगा और कुछ नीचे (50-60 मील नीचे) की चट्टानों को फैलकर द्रव बन्ने की जगह मिल जाएगी. यह भी संभव है कि पपड़ी के स्थान-विशेष की चट्टानें विशेष रूप से गर्म हो उठी हों.  कुछ सालों पहले हमने चट्टानों में रेडियो-सक्रिय तत्त्वों का पता लगाया है. ये तत्त्व टूटकर दूसरे पदार्थों में बदल जाते हैं. इस परिवर्तन के चलते ताप उत्पन्न होता है. लगातार तेजी से निकलते इस ताप से स्थान-विशेष की चट्टानें बहुत गर्म होकर पिघल जा सकती हैं और ऊपर की ठोस पपड़ी को फाड़कर निकल जा सकती हैं.

मैग्मा

इतना कहकर भी हम यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि इन शक्तियों के कारण ज्वालामुखी विस्फोट हुआ करता है. पृथ्वी के भीतर पिघली हुई चट्टानों के कोष को “मैग्मा (Magma)” कहा गया है. इसकी तुलना बोतल में भरे सोडावाटर से की जा सकती है. काग खुलते ही सोडावाटर मुँह की ओर दौड़ता है, उसी तरह कमजोर भूपटल पाकर गैसयुक्त लावा ऊपर आने के लिए दौड़ पड़ता है और जहाँ-तहाँ अपना रास्ता बना ही लेता है. तेजी से आने के कारण जोरों का विस्फोट होता है और धरती को कंपा देता है. वहाँ की चट्टानें टूट-टूट कर चारों ओर बिखर जाती है; धूल, वाष्प और अन्य गैसों के बादल छा जाते हैं और फिर लावा बह निकलता है. लावा के बहने और जमने से उलटे funnel के आकार का पर्वत बन जाता है और उसके मुँह पर गड्ढा हो जाता है जिसे क्रेटर (Crater) या ज्वालामुखी कहते हैं.

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न
 

ज्वालामुखी उद्गार की प्रवृत्ति तथा विकसित आकृतियों के आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिये.

Classify volcanoes on the basis of the pattern of volcanic eruptions and the shapes evolved.


GS Paper 1 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Issues related to women.

Topic : Law Giving Daughters Equal Right In Paternal Property Retrospective : SC

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायायलय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू होने से पहले हिस्सेदार की मौत होने पर भी बेटी का पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा. न्यायालय ने कहा “बेटों की तरह बेटियों को भी बराबर के अधिकार दिए जाने चाहिए. बेटियां जीवन-भर प्यारी बेटियां रहती हैं. बेटी अपने पिता की संपत्ति में बराबर हकदार बनी रहती है, भले ही उसके पिता जीवित हों या नहीं.”

सर्वोच्च न्यायालय की तीन जजों के पीठ ने ‘विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा’ मामले में अपना ऐतिहासिक निर्णय दिया है.

पृष्ठभूमि

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के माध्यम से पिता की संपत्ति में बेटी को बराबर का हिस्सा देने का अधिकार दिया गया था. लेकिन इसे लेकर एक विवाद यह था कि यदि पिता का निधन साल 2005 के पहले हो गया है तो यह क़ानून बेटियों पर लागू होगा या नहीं. इसे लेकर कई याचिकाएं दायर की गई थीं.

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत बेटी तभी अपने पिता की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर सकती है जब पिता 9 सितंबर, 2005 तक जिंदा रहे हों. अगर पिता की मृत्यु इस तारीख से पहले हो गई हो तो बेटी का पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं था. पर अब उच्चतम न्यायालय ने इसे बदलते हुए कहा कि पिता की मृत्यु से इसका कोई लेना-देना नहीं है.

सर्वोच्च न्यायालय का तात्कालिक निर्णय क्या है ?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू पैतृक संपत्ति के बंटवारे में पुरुषों की प्राथमिकता को जड़ से खत्म करते हुए अविभाजित हिन्दू परिवार के लिए एक बड़ा निर्णय दिया है.
  • सर्वोच्च न्यायालय की तीन जजों की पीठ ने 2005 में संशोधित हिंदू उत्तराधिकार कानून की धारा 6 की पहले की व्याख्या बदल दी है.
  • सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने साफ कहा कि जिस तरह पैतृक संपत्ति में बेटों का अधिकार होता है, उसी तरह बेटियों का भी जन्मजात अधिकार है.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

हमारे समाज में आये दिन कन्या भूर्ण हत्या और दहेज़ हत्या बलात्कार के मामले सामने आते हैं लेकिन पुरुष प्रधान समाज में आज भी हम बेटे बेटी में अंतर करते आ रहे हैं. पुत्र आज भी हमारे समाज में परिवार का महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है और कन्या परायी धन मानी जाती है. पुत्र चाहे माँ बाप की सेवा करे या नहीं लेकिन माँ बाप की सम्पत्ति का अधिकारी पुत्र ही माना जाता है इसी कारण  जन्म से ही कन्या को पराया समझा जाता है. कई परिवारों में आज भी बचपन से ही बेटे और बेटी में भेदभाव किया जाता है. कहीं परिवारों में कन्या के जन्म लेते ही उसे मार डालते है तो कहीं गर्भपात द्वारा कन्या हत्या के मामले समाचार पत्रों में आये दिन नजर आते हैं. न्यायालय के इस निर्णय से लैंगिक समानता के संवैधानिक लक्ष्य को प्राप्त करने में काफी सहूलियत मिलेगी.

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न
 

“देश के सामाजिक-आर्थिक परिवेश को बदलने की दिशा में घरेलू श्रम को आर्थिक उत्पादकता की श्रेणी में लाकर कार्यबल में महिलाओं की संख्या बढ़ाई जा सकती है.” कथन की विवेचना कीजिये.

“For the purpose of changing the socio-economic environment of the country, the number of women in the workforce can be increased by putting domestic labour in the category of economic productivity.” Discuss the statement.


GS Paper 1 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Modern Indian history from about the middle of the eighteenth century until the present- significant events, personalities, issues. The Freedom Struggle — its various stages and important contributors/contributions from different parts of the country.

Topic : All 9 museums for tribal freedom fighters will be ready by 2022-end: Govt

संदर्भ

जनजातीय लोगों द्वारा देश के स्‍वतंत्रता संग्राम में दिए गए बलिदान और योगदान को उचित मान्‍यता देने के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय ‘जनजातीय स्‍वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालय’ स्‍थापित कर रहा है.

पृष्ठभूमि

  • जनजातीय स्‍वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालय की स्थापना की घोषणा 15 अगस्‍त 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा स्‍वतंत्रता दिवस के अवसर पर की गयी थी.
  • प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा था कि सरकार उन राज्‍यों में स्‍थायी संग्रहालय स्‍थापित करना चाहती है जहां जनजातीय लोग रहते थे और जिन्‍होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया और उनके सामने झुकने से मना कर दिया था.
  • सरकार विभिन्‍न राज्‍यों में इस तरह के संग्रहालयों के निर्माण का काम करेगी ताकि आने वाली पीढि़यों को यह पता चल सके कि बलिदान देने में हमारे आदिवासी कितने आगे थे.
  • अभी तक स्‍वीकृति 9 स्वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालयों में से 2 संग्रहालयों का निर्माण कार्य पूरा होने वाला है और शेष बचे 7 संग्रहालय कार्य प्रगति के विभिन्‍न चरणों में है. अनुमान है कि 2022 के अंत तक सभी संग्रहालय अस्तित्‍व में आ जाएंगे.

जनजातीय स्‍वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालय की विशेषताएँ

  • सभी जनजातीय स्‍वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों में वर्चुअल रिय‍ल्‍टी (वीआर), ऑगमेंटेड रियल्‍टी (एआर), 3डी / 7डी होलोग्राफिक प्रोजेक्शनों जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाएगा.
  • इन संग्रहालयों में आदिवासी लोगों की जैविक और सांस्‍कृतिक विविधता के संरक्षण से सम्बंधित चिंताओं की रक्षा के लिए किए गए संघर्ष के तरीकों को प्रदर्शित किया जाएगा.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

भारत में स्‍वतंत्रता सेनानियों ने असमान लड़ाइयों के अनेक उदाहरणों को दर्ज किया है क्‍योंकि ये उस समय अपरिहार्य हो गए थे जब साम्राज्‍यवादी शक्तियाँ अत्‍याचारी ताकत के बल पर विभिन्‍न इलाकों पर कब्‍जा करने के लिए बाहर निकल पड़ी थीं. इन ताकतों ने स्‍वतंत्र लोगों की स्‍वतंत्रता और संप्रभुता को नष्‍ट करके असंख्‍य पुरुषों, महिलाओं और बच्‍चों के जीवन का सर्वनाश करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया. जनजातीय लोगों ने ब्रिटिश प्राधिकारियों और अन्‍य शोषकों का पुरजोर विरोध किया. अनेक शताब्दियों तक जनजातीय लोगों को वनों में अलग-थलग कर दिया गया और उधर-उधर बिखेर दिया गया, परन्तु प्रत्‍येक जनजाति‍ ने अपनी सामाजिक, सांस्‍कृतिक विविधता को कायम रखा. उन्‍होंने अपने-अपने संबंधित क्षेत्रों में ब्रिटिश प्राधिकारियों के विरुद्ध आंदोलन चलाए. बाहरी लोगों के विरुद्ध उनके आंदोलनों को उपनिवेशवाद का विरोधी कहा जा सकता है. अपनी भूमि पर अतिक्रमण, जमीन की बेदखली, पारंपरिक कानूनी और सामाजिक अधिकार और रीति-रिवाजों का उन्‍मूलन, भूमि के हस्‍तांतरण के लिए किराये में बढ़ोतरी, सामंती और अर्द्ध सामंती मालिकाना हक की समाप्ति के खिलाफ उन्‍होंने बगावत की. कुल मिलाकर यह आंदोलन सामाजिक और धार्मिक परिवर्तन थे लेकिन इन्‍हें इनके अस्तित्‍व से संबंधित मुद्दों के विरूद्ध काम करने के लिए कहा गया. जनजातीय प्रतिरोध आंदोलन भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक अभिन्न अंग था. इस ऐतिहासिक आंदोलन में बिरसा मुंडा, रानी गैदिन्‍लयू, लक्ष्मणनायक और वीर सुरेंद्रसाई जैसे प्रतिष्ठित आदिवासी नेताओं तथा अन्य लोगों ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई. जनजातीय प्रतिरोध आंदोलन की सबसे बड़ी और प्रमुख विशेषता यह थी कि यह विदेशी शासकों के विरूद्ध अनिवार्य रूप से एक विद्रोह था और इस नजरिये से इससे राष्‍ट्रीय मुक्ति आंदोलन के अग्रदूत का निर्माण किया जा सकता था. जिसने एक निश्‍चि‍त आकार लिया और महात्‍मा गांधी के प्रेरक नेतृत्‍व में तेज गति प्राप्‍त की. यह सारहीन है कि उनके प्रतिरोध आंदोलन के पीछे क्‍या विवशता या प्रेरणाएं थीं, यह भी सारहीन है कि इन  जनजातीय क्रांतिकारियों के पास सशस्त्र विद्रोह करने के लिए कोई औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण भी नहीं था और न ही उनके पास कार्रवाई करने के लिए मार्गदर्शन और उन्हें प्रेरित करने के लिए कोई आम नेतृत्व भी नहीं था लेकिन इस तथ्‍य में कोई गलती नहीं है कि उन्‍होंने विदेशी शासकों को अपने निवास स्‍थान, सदियों पुराने रीति-रिवाजों, सांस्‍कृतिक, रस्‍मों में कोई हस्‍तक्षेप करने के लिए दब्‍बूपन दिखाकर समर्पण नहीं किया. उन्‍होंने शाही शक्ति के धुरंधरों के रूप में काम किया और उनके सभी कार्य और आचरण विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए निर्देशित थे.

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न
 

औपनिवेशिक अर्थतंत्र ने किस प्रकार आदिवासी विद्रोहों के प्रस्फुटन की पृष्ठभूमि का निर्माण किया? पूर्वी भारत के आदिवासी विद्रोहों का उदाहरण देते हुए उत्तर दीजिये.

How did the colonial economy create the background for the eruption of tribal revolts? Answer by giving the examples of tribal revolts of eastern India.


GS Paper 2 Source : India Today

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UPSC Syllabus : Related to Health.

Topic : Sputnik 5

संदर्भ

हाल ही में रूस ने दावा किया है कि उनके वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली कोरोना वायरस की ऐसी वैक्सीन तैयार कर ली है जो कोरोना वायरस के विरुद्ध कारगर है. रूस ने इस वैक्सीन का नाम स्पुतनिक-5 (Sputnik V) रखा है. 

कोविड-19 की रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-5

  • स्पुतनिक दुनिया की पहली सैटेलाइट का नाम था, जिसे सोवियत संघ ने 1957 में अनावरण किया था.
  • रूस ने दावा है कि इस टीके से कोविड-19 महामारी के विरुद्ध स्थाय़ी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) विकसित की जा सकती है.
  • इस रूसी वैक्सीन को रूस के गामालेया इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित किया गया है.
  • रूसी कोरोना वैक्सीन परियोजना के लिए निधि उपलब्ध कराने वाली संस्था ने कहा है कि इस वैक्सीन का उत्पादन भारत, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, सऊदी अरब, तुर्की और क्यूबा में किया जाएगा. इसके अतिरिक्त, वैक्सीन के तीसरे फेज का ट्रायल सऊदी अरब, यूएई, ब्राजील, भारत और फिलीपींस सहित कई देशों में किए जाने की योजना है.
  • रूस का कहना है कि वैक्सीन का विशाल स्तर पर उत्पादन सितंबर 2020 में प्रारम्भ होने की आशा है. भविष्य की योजनाओं में 2020 के अंत तक इस वैक्सीन के 20 करोड़ डोज बनाने का लक्ष्य रखा गया है. इसमें से 3 करोड़ वैक्सीन मात्र रूसी लोगों के लिए होगी.

रूसी वैक्सीन से जुड़ी विशेषज्ञों की चिंताएँ

  • कुछ देशों ने रूस द्वारा विकसित वैक्सीन को लेकर संदेह जताया है. उनका कहना है कि रूस ने वैक्सीन के निर्माण में आवश्यक पारदर्शिता नहीं बरती है और ना ही इससे सबंधित डाटा उपलब्ध कराया है; जैसे- जर्मनी व अमेरिका ने रूस की कोरोना वायरस वैक्सीन की गुणवत्ता और सुरक्षा को लेकर संदेह जताया है.
  • जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि यूरोपीय संघ में क्लिनिकल ट्रायल के पश्चात् ही दवा को स्वीकृति दी जाती है और यहाँ रोगी की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है. परन्तु रूसी वैक्सीन की गुणवत्ता, प्रभावकारिता और सुरक्षा पर कोई ज्ञात डेटा नहीं है.
  • इसी प्रकार अमेरिका का कहना है कि कोविड-19 का पहला टीका बनाने के स्थान पर कोरोना वायरस के विरुद्ध एक प्रभावी और सुरक्षित टीका बनाना अधिक आवश्यक है. इसके अतिरिक्त, टीके की सुरक्षा और इसके प्रभाव को सिद्ध करने के लिए पारदर्शी डेटा का होना महत्वपूर्ण है.

कोरोना वायरस वैक्सीन के विकास में अन्य देश

  • यूनाइटेड किंगडम के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) के वैज्ञानिक भी कोरोनावायरस वैक्सीन को बनाने में लगे हुए हैं. इस संबंध में उन्होने काफी प्रगति भी प्राप्त की है.
  • हाल ही में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा संचालित एक प्रायोगिक कोरोनावायरस वैक्सीन के शुरूआती परीक्षण के दौरान सैकड़ों लोगों में सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (Protective Immune Response) में वृद्धि देखने को मिली है.
  • ऑक्सफोर्ड द्वारा विकसित कोरोनावायरस वैक्सीन के दूसरे एवं तीसरे चरण का परीक्षण अभी ब्रिटेन में चल रहा है और तीसरे चरण का परीक्षण ब्राजील में तथा पहले व दूसरे चरण का परीक्षण दक्षिण अफ्रीका में चल रहा है.
  • कोरोनावायरस वैक्सीन को बनाने की दिशा में भारत में भी दो वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल चल रहा है जिसमे एक वैक्सीन भारत बायोटेक की है और दूसरी वैक्सीन जायडस कैडिला की है. भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित कोविड-19 (COVID-19) के टीके के देश में दूसरे व तीसरे चरण के मानव परीक्षण के लिये सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) को स्वीकृति दे दी है.
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न
 

यदि कोरोना वैक्सीन सफलतापूर्वक बन जाता है तो टीका प्राथमिकता के आधार पर पहले किस वर्ग को मिलना चाहिए? अपना मत प्रस्तुत करें.

If the corona vaccine is successfully developed, which class in your opinion should be given priority while administering the same? 


GS Paper 3 Source : PIB

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UPSC Syllabus : e-technology in the aid of farmers.

Topic : Krishi Megh

संदर्भ

हाल ही में केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि मेघ का शुभारम्भ किया है.

कृषि मेघ क्या है?

यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) का डेटा रिकवरी सेंटर है.

विवरण

  1. कृषि मेघ की स्थापना राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (National Agricultural Higher Education Project– NAHEP) के अधीन की गई है.
  2. यह डेटा रिकवरी सेंटर, राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी (National Academy of Agricultural Research Management- NAARM), हैदराबाद में स्थापित किया गया है.

कृषि मेघ का महत्व और लाभ

  1. कृषि मेघ का निर्माण भारत में कृषि के क्षेत्र में जोखिम कम करने, गुणवत्ता बढ़ाने, ई-प्रशासन की उपलब्धता और पहुंच, शोध, विस्तार एवं शिक्षा के लिए किया गया है.
  2. इन नए केन्द्र में छवि विश्लेषण के माध्यम से बीमारी और विनाशकारी कीट की पहचान, फलों की परिपक्वता और उनके पकने का पता लगाने, पशुओं आदि में बीमारी की पहचान आदि से जुड़े डीप लर्निंग बेस्ड एप्लीकेशंस के विकास और उपयोग के लिए नवीनतम कृत्रिम बुद्धिमत्ता (artificial intelligence)/ डीप लर्निंग सॉफ्टवेयर/ टूल किट विद्यमान हैं.
  3. यह किसानों, शोधकर्ताओं, छात्रों और नीति निर्माताओं को कृषि और अनुसंधान के बारे में अद्यतन और नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराता है.

राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना

  1. पिछले वर्ष भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-ICAR) ने 1100 करोड़ रुपए की लागत से महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना (National Agricultural Higher Education Project-NAHEP) की शुरुआत की गई थी.
  2. इस परियोजना का उद्देश्य प्रतिभाओं को आ‍कर्षित करने के साथ ही देश में उच्चतर कृषि शिक्षा को दृढ़ बनाना है.
  3. राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना (NAHEP) को विश्व बैंक और भारत सरकार द्वारा 50:50 की साझा लागत के आधार पर वित्तपोषित किया जाएगा. इसके अतिरिक्त कृषि, बागवानी, मछली पालन और वानिकी में चार वर्षीय डिग्री को व्यावसायिक डिग्री घोषित किया गया है.
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न
 

कृषि क्षेत्र में कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा क्या-क्या कदम उठाये गये हैं? चर्चा करें.

What are the steps taken by the government to promote skill development in the agriculture sector? Discuss.


Prelims Vishesh

World Biofuel Day :-

  • 10 अगस्त को प्रतिवर्ष विश्व जैव इंधन दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसका उद्देश गैर-जीवाश्म इंधन के बारे में जागरूकता फैलाना है.
  • जैव इंधन नवीकरणीय, प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाले (बायो-डिग्रेडेबल) तथा पर्यावरण के अनुकूल होते हैं.

Manitombi Singh :-

  • भारत के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी और मोहन बागान के कप्तान मनितोम्बी सिंह का 39 वर्ष की आयु में 9 अगस्त, 2020 को मणिपुर के इम्फाल के पास उनके पैतृक गाँव में निधन हो गया.
  • उन्होंने 2002 के बुसान एशियाई खेलों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था.

India’s deepest Metro ventilation shaft nears completion :-

  • देश में सबसे गहरे भूमिगत रेल वेंटिलेशन शाफ्ट (सुरंग से हवा की आवाजाही के लिए झरोखा) का निर्माण कार्य हाल ही में पूरा हो गया.
  • कोलकाता मेट्रो के ईस्ट-वेस्ट मेट्रो परियोजना पर स्थित इस वेंटिलेशन शाफ्ट की गहराई 15 मंजिल इमारत के बराबर है.
  • वेंटिलेशन शाफ्ट, जो 43.5 मीटर गहरा है, कोलकाता मेट्रो द्वारा संयुक्त रूप से रेल कॉर्पोरेशन (KMRC) और एक निजी इंजीनियरिंग कंपनी Afcons के पूरा किया गया.

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