Sansar डेली करंट अफेयर्स, 10 May 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 10 May 2019


GS Paper  2 Source: The Hindu

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Topic : World Customs Organization

संदर्भ

भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीनस्थ केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Indirect Taxes and Customs – CBIC) विश्व सीमा शुल्क संगठन (WCO) के एशिया प्रशांत प्रक्षेत्र के सीमा शुल्क प्रशासन के क्षेत्रीय प्रमुखों की एक बैठक कोची (केरल) में आयोजित करने जा रहा है. विदित हो कि वर्तमान में भारत एशिया प्रशांत प्रक्षेत्र का उपाध्यक्ष है.

WCO क्या है?

विश्व सीमा शुल्क संगठन (WCO) 1952 में सीमा शुल्क सहयोग संगठन के रूप में गठित हुआ था. यह एक अंतर-सरकारी निकाय है जिसका उद्देश्य सीमा शुल्क प्रशासन को कारगर और सक्षम बनाना है.

  • सीमा शुल्क से सम्बंधित विशेषज्ञता का एक वैश्विक केंद्र होने के नाते WCO एक ऐसा एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसके पास सीमा शुल्क के मामलों में सक्षमता है और जो सही मायने में अंतर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क समुदाय की आवाज़ कहला सकता है.
  • WCO ने अपनी सदस्यता को 6 क्षेत्रों में बाँट रखा है. इन छह क्षेत्रों हेतु प्रत्येक के लिए WCO परिषद् में एक उपाध्यक्ष का चुनाव होता है.

भूमिका एवं  कार्यकलाप

  • विभिन्न राष्ट्रों से आने वाले सीमा शुल्क प्रतिनिधियों के बीच सम्वाद एवं अनुभवों को बाँटने के लिए एक मंच होने के नाते WCO अपने सदस्यों को कई प्रकार की संधियों एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेजों के साथ-साथ तकनीकी सहायता एवं प्रशिक्षण सुविधा भी प्रदान करता है.
  • यह वैध अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि को उत्प्रेरित करने में मुख्य भूमिका निभाता ही है, साथ ही साथ धोखाधड़ी के मामलों से लड़ने के इसके प्रयासों को पूरा विश्व मान्यता देता है.
  • विश्व व्यापार संगठन के सीमा शुल्क निर्धारण से सम्बन्धित समझौतों को लागू करने में WCO की एक उत्तरदायी भूमिका रही है क्योंकि यह ऐसी प्रणाली मुहैया कराता है जिससे आयातित वस्तुओं का मूल्य तय होता है एवं किसी वस्तु विशेष के उद्गम को निर्धारित करने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले उद्गम नियमों (Rules of Origin) का भी प्रावधान करता है.

GS Paper  2 Source: Times of India

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Topic : Monkeypox virus: Singapore reports first case of rare virus

संदर्भ

सिंगापुर में मंकीपॉक्स का अब तक का पहला मामला सामने आया है. बताया जा रहा है कि एक नाइजीरियाई व्यक्ति इस बीमारी को लेकर आया जो एक शादी में बुशमीट खाकर इस दुर्लभ वायरस के संपर्क में आया.

  • विदित हो कि उष्णकटिबंधीय जंगलों में भोजन के तौर पर खाए जाने वाले गैर पालतू स्तनधारियों, सरीसृपों, उभयचरों और पक्षियों के मांस को बुशमीट कहते हैं.

लक्षण

  • मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में महामारी का रूप ले चुके मंकीपॉक्स के मनुष्यों में मिलने वाले लक्षणों में आघात, बुखार, मांसपेशियों में दर्द और ठंड लगना शामिल है.
  • आमतौर पर यह बीमारी जानलेवा नहीं होती लेकिन दुर्लभ मामलों में इसने कई लोगों की जान भी ली है.

मंकीपॉक्स

  • मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है, जिसका खतरा दुनिया के कई देशों में मंडरा रहा है. चूँकि मंकीपॉक्स एक संक्रामक बीमारी है इसलिए ये आसानी से विश्व के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पहुँच सकती है.
  • मंकी पॉक्स के बारे में सबसे पहले 1950 के दशक में पता चला था.
  • आमतौर पर इसका संक्रमण संक्रमित जानवरों के संपर्क में आने से होता है. मनुष्य इससे कम ही संक्रमित होते हैं किंतु मध्य और पश्चिम अफ्रीका के गाँवों में इससे जुड़े काफी मामले पाए जाते हैं.
  • इस वायरल के अधिकतर मामले उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के करीब पाए जाते है जहाँ लोग संक्रमित जानवरों के अक्सर संपर्क में आते हैं.
  • इस संक्रमण के लिये कोई विशिष्ट उपचार या टीका उपलब्ध नहीं हैं लेकिन इसके प्रकोप को नियंत्रित किया जा सकता है.

GS Paper  3 Source: The Hindu

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Topic : MODIS (or Moderate Resolution Imaging Spectroradiometer)

संदर्भ

नासा के MODIS (Moderate Resolution Imaging Spectroradiometer) के द्वारा जुटाए गये आँकड़ों से पता चलता है कि “हरित प्रयासों/greening efforts” के विषय में चीन और भारत विश्व में अग्रणी चल रहे हैं.

मुख्य निष्कर्ष

  • 2000 ई. से लेकर 2017 तक की अवधि में विश्व-भर में हरे पत्तों का क्षेत्र 5% बढ़ गया है. इसका अर्थ यह हुआ कि प्रत्येक दशक में हरित पत्तों के क्षेत्र में 3% की शुद्ध वृद्धि हुई. इसको इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि पिछले 18 वर्षों में 5.4 x 106 वर्ग किलोमीटर के बराबर नया हरित क्षेत्र जुड़ा. यह क्षेत्र अमेज़न घाटी के क्षेत्र के समतुल्य है.
  • हरित क्षेत्र में हुई वैश्विक शुद्ध वृद्धि का 25% अकेले चीन में हुई.
  • हरित क्षेत्र के विस्तार में भारत का योगदान 8% है.
  • चीन में जो हरियाली आई है वह 42% जंगलों से और 32% खेती से आई है. परन्तु भारत में हरियाली में हुई वृद्धि का 82% खेती से और 4% जगंलो से है.
  • विश्व के वनस्पति क्षेत्र का मात्र 2.7% भारत में है. इस क्षेत्र में भी मुख्य रूप से फसलों का योगदान है. ज्ञातव्य है कि 2000 से 2017 की अवधि में भारत में कृषि उत्पादन 26% बढ़ गया है.
  • भारत में जंगल बहुत कम हैं, इसलिए इस क्षेत्र में भारत का योगदान कम है. आँकड़े बताते हैं कि 1947 से लेकर अभी तक भारत के 20% भूभाग में लागातार जंगल रहे हैं.
  • भारत के जंगलो की स्थिति से सम्बंधित 2017 के रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015 से इस देश में 6,000 वर्ग किलोमीटर अर्थात् 21% क्षेत्र में जंगलों का विस्तार हुआ है.

MODIS क्या है?

  • यह एक स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर है जो NASA के Terra और Aqua नामक उपग्रहों पर लगा हुआ है. विदित हो कि Terra को पहले EOS AM-1 तथा Aqua को EOS PM-1 के नाम से जाना जाता था.
  • Terra उपग्रह पृथ्वी का चक्कर इस प्रकार लगाता है कि यह प्रातः काल में भूमध्य रेखा पर उत्तर से दक्षिण हो कर गुजरता है जबकि Aqua अपराह्ण में भूमध्य रेखा से दक्षिण से उत्तर की ओर गुजरता है. इन दोनों उपग्रहों के स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर समूची पृथ्वी की सतह को एक-दो दिन पर देखते हैं तथा 36 स्पेक्ट्रल पट्टियों अथवा तरंगदैर्घ्य-समूहों में डाटा का ग्रहण करते हैं.
  • माहात्म्य : इन आँकड़ों से हमें धरातल, समुद्र तथा निम्न वायुमंडल में हो रहे परिवर्तनों और घट रही प्रक्रियाओं के विषय को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिलेगी. इन आँकड़ों से जलवायु परिवर्तनों का सही-सही पूर्वानुमान लगाने में भी सहायता मिलेगी. इनके आधार पर नीति-निर्माता वातावरण की सुरक्षा की दिशा में सही निर्णय लेने में सक्षम होंगे.

GS Paper  3 Source: The Hindu

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Topic : UNEP report on Sand and Sustainability

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने हाल ही में बालू से सम्बंधित विश्व-भर के संसाधनों के पर्यावरण की दृष्टि से प्रशासन के लिए नए-नए समाधान खोजने के विषय में एक प्रतिवेदन निर्गत किया है.

प्रतिवेदन के मुख्य निष्कर्ष

  • विश्व-भर में बालू की खपत बढ़ती जा रही है. जितनी तेजी से हम बालू निकाल रहे हैं, उतनी तेजी से प्रकृति उसकी कमी की भरपाई नहीं कर पाती है.
  • पानी के बाद मात्रा की दृष्टि से बालू और बजरी प्रकृति के दूसरे ऐसे सबसे बड़े संसाधन हैं जिनका दोहन और व्यापार होता है. किन्तु इसके लिए नियम सबसे कम हैं.
  • संसार-भर में बालू की माँग का 85% से 90% अंश घाटों और खाइयों से पूरा होता है. नदियों और समुद्र तटों से 10%-15% बालू निकाला जाता है. पर्यावरण और सामाजिक गतिविधियों से इन दोनों स्रोतों पर खतरा बना हुआ है.
  • जहाँ तक प्रत्येक वर्ष घाटों, खाइयों, नदियों और समुद्र तटों से 40-50 बिलियन टन पिसा हुआ पत्थर, बालू और बजरी निकाले जाते हैं. इसका आधा भाग भवन निर्माण उद्योग में चला जाता है. निर्माण कार्य में इसकी खपत भविष्य में बढ़ेगी ही.

चिंता का विषय

  • बालू, बजरी आदि को निकालने से बहुत कर के नदियों और तटीय क्षेत्र में अपरदन होता है और मीठे जल तथा समुद्री मछलियों के अतिरिक्त पूरे जलीय पारिस्थितिकी को खतरा हो जाता है. इसके कारण नदी-तट स्थाई नहीं रह पाते हैं जिस कारण बाढ़ की घटनाएँ बढ़ जाती हैं और भूमिजल का स्तर भी नीचे चला जाता है.
  • प्रतिवेदन के अनुसार विश्व की अधिकांश नदियाँ समुद्र में जितना प्राकृतिक बालू और बजरी डाला करती थीं उसमें 50% से 95% तक की गिरावट आ चुकी है.
  • पनबिजली उत्पन्न करने के लिए अथवा सिंचाई के लिए नदियों पर बाँध बनाने से उनमें बहती हुई गाद की मात्रा भी घट जाती है.
  • बालू की प्राकृतिक भरपाई नहीं होने से समुद्र तट दुष्प्रभावित हो जाता है. विदित हो कि समुद्र के स्तर में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आंधी के साथ-साथ उत्पन्न लहरों की तीव्रता और साथ ही तटीय क्षेत्र में विकास कार्य से समुद्री बीचों पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
  • बालू की निकासी का एक अप्रत्यक्ष परिणाम स्थानीय लोगों की आजीविका में कमी के रूप में सामने आता है. यह विडंबना ही है कि तटीय पर्यटक स्थलों पर निर्माण कार्य से वहाँ की प्राकृतिक बालू में कमी आती है और फलस्वरूप वे स्थल अनाकर्षक हो जाते हैं और श्रमिकों की सुरक्षा पर खतरा भी हो जाता है क्योंकि बालू उद्योग से सम्बंधित नियम नहीं बने हुए हैं.

क्या किया जाए?

  • अनावश्यक और मात्र प्रतिष्ठा के लिए निर्माण कार्य नहीं किया जाना चाहिए.
  • किसी भवन को तोड़कर और उसे फिर से बनाने के स्थान पर उसके संधारण पर पैसा खर्च होना चाहिए.
  • निर्माण कार्य में यथासंभव सीमेंट और कंक्रीट के उपयोग से बचा जाए और हरित अवसंरचना का प्रयोग किया जाए.
  • बालू के खनन को कम करने के लिए आज वैश्विक स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक कार्रवाई करने की आवश्यकता है. इसमें सार्वजनिक, निजी और सिविल सोसाइटी संगठनों को भी संग्लन किया जाए.
  • सरकार को भी चाहिए कि वह इस विषय में सर्वसहमति बनाए और अपनी नीतियों को बालू की उपलब्धता के अनुसार फिर से गढ़े.

UNEP क्या है?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो पर्यावरण से सम्बंधित गतिविधियों का समन्वय करती है. यह पर्यावरण की दृष्टि से उचित नीतियों एवं पद्धतियों का कार्यान्वयन करने में विकासशील देशों को सहायता प्रदान करती है.

UNEP पर संयुक्त राष्ट्र विभिन्न एजेंसीयों की पर्यावरण विषयक समस्याओं को देखने का दायित्व है. जहाँ तक वैश्विक तापवृद्धि (global warming) की समस्या पर चर्चा का प्रश्न है, इसको देखने का काम जर्मनी के Bonn में स्थित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (United Nations Framework Convention on Climate Change) का है.

UNEP जिन समस्याओं को देखता है उनमें प्रमुख हैं – वायुमंडल, समुद्री एवं धरातलीय पारिस्थितिकी तंत्र, पर्यावरणिक प्रशासन एवं हरित अर्थव्यवस्था.

UNEP पर्यावरण से सम्बंधित विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन एवं उन्हें धन देने का काम भी करता है.

Fast Facts

  • UNEP का full-form है – United Nations Environment Programme
  • मानवीय पर्यावरण पर हुएस्टॉकहोम सम्मलेन के परिणामस्वरूप UNEP का गठन जून 1972 में हुआ था.
  • इसका मुख्यालयनैरोबी, केन्या में है.
  • इसके संस्थापक और पहले निदेशकMaurice Strong थे.
  • विश्व ऋतु विज्ञान संगठन और UNEP ने संयुक्त रूप से 1988 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change –IPCC) की स्थापना की थी.
  • वैश्विक पर्यावरण सुविधा ( Global Environment Facility – GEF)  तथा मोंट्रियल संधि (Montreal Protocol) के कार्यान्वयन के लिए बहुपक्षीय निधि के लिए कार्यरत कई एजेंसियों में से UNEP भी एक एजेंसी है.
  • UNEP UNDP का एक सदस्य निकाय भी है.
  • यह UNEP ही है जिसके तत्त्वाधान में अंतर्राष्ट्रीय सायनाइड प्रबन्धन संहिता (The International Cyanide Management Code) बनी थी जिसमें सोना निकालने के समय सायनाइड के सही प्रयोग के बारे में निर्देश दिए गये थे.

GS Paper  3 Source: The Hindu

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Topic : Bengal tigers may not survive climate change

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र के एक प्रतिवेदन के अनुसार विश्व में लगभग पाँच लाख स्थलीय प्रजातियों के प्राकृतिक आवास पर खतरा होने के कारण उनका बच पाना प्रश्न के घेरे में आ गया है.

प्रतिवेदन के मुख्य निष्कर्ष

प्रमुख कारण : जलवायु परिवर्तन और समुद्र का उठता हुआ स्तर कई प्रजातियों के जीवन पर खतरा होने जा रह है.

सुंदरबन पर खतरा : सुंदरबन का 70% भाग अभी समुद्र-स्तर से कुछ एक फुट ही ऊपर है. अतः भविष्य में इस क्षेत्र के लिए संकट होने वाला है.

बाघों पर दुष्प्रभाव : अभी 100-200 ही बंगाल टाइगर बचे हैं. पृथ्वी का तापमान बढ़ने पर जो खतरा उत्पन्न होगा वह सरलता से इन बाघों का अस्तित्व समाप्त कर देगा. 2070 तक बांग्लादेश के सुंदरबन में भी बाघों के रहने के लिए कोई सुरक्षित क्षेत्र नहीं बचेगा. वैसे भी 20वीं शताब्दी के आरम्भ से ही विश्व में बाघों की संख्या एक लाख से घटकर 4,000 रह गयी है. बाघों की संख्या में इस कमी का कारण उनके निवास स्थल का नाश, शिकार और उनके अंगों का व्यापार  रहा है.

बांग्लादेश का सुंदरबन : यदि जलवायु की विकट आपदा उपस्थित होती है और वनस्पति में परिवर्तन आता है तो बांग्लादेश के सुंदरबन में रहने वाले बाघों की संख्या और भी घट जायेगी. यदि सुंदरबन में बाढ़ आती है तो वहाँ के बाघ शरण लेना चाहेंगे जहाँ आदमी रहते हैं. इसका परिणाम यह होगा कि दोनों प्राणियों में आपसी संघर्ष होगा जिसके परिणामस्वरूप या तो बाघ मरेंगे या मनुष्य.

सुंदरबन क्या है?

  • सुंदरबन 10,000 हजार वर्ग किलोमीटर की वह दलदली भूमि है जो बांग्लादेश और भारत दोनों में स्थित है. यहाँ विश्व का सबसे बड़ा मैन्ग्रोव जंगल है जहाँ के समृद्ध जैव तंत्र में सैंकड़ों पशु प्रजातियाँ फलती-फूलती हैं. बंगाल टाइगर भी इन प्रजातियों में से एक है.
  • सुंदरबन में सैंकड़ों द्वीप हैं. साथ ही यहाँ गंगा के डेल्टा और ब्रह्मपुत्र के मुहाने पर नदियों, सहायक नदियों और नालों का एक जाल बिछा हुआ है.
  • भारत के दक्षिण-पश्चिम डेल्टा क्षेत्र में अवस्थित भारतीय सुंदरबन देश में पाए जाने वाले सम्पूर्ण मैन्ग्रोव जंगल क्षेत्र का 60% है.
  • सुंदरबन भारत का 27वाँ रामसर साईट है जो अपने 4 लाख 23 हजार हेक्टर क्षेत्र के कारण देश की सर्वाधिक बड़ी सुरक्षित आर्द्र भूमि है.
  • भारतीय सुंदरबन UNESCO का एक वैश्विक धरोहल स्थल भी है जो रॉयल बंगाल टाइगर की निवास भूमि है. इसके अतिरिक्त यहाँ अनेक विरले और वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त प्राणी भी रहते हैं, जैसे – विकट रूप से संकटग्रस्त बाटागुर बस्का (northern river terrapin), संकटग्रस्त इरावदी सूँस (Orcaella brevirostris), संकटप्रवण मछलीमार बिल्ली (Prionailurus viverrinus).
  • विश्व में पाए जाने वाले घोड़े के नाल के आकार वाले केंकड़ों की दो प्रजातियाँ और भारत में पाए जाने वाले 12 प्रकार के किंगफिशरों में आठ यहाँ पाए जाते हैं. हाल के अध्ययनों में दावा किया गया है कि भारतीय सुंदरबन में 2,626 प्रकार की पशुप्रजातियाँ रहती हैं.

रामसर क्या है?

  • रामसर आर्द्रभूमि समझौते (Ramsar Convention on Wetlands) को 1971 में इरान के शहर रामसर में अंगीकार किया गया.
  • यह एक अंतर-सरकारी संधि है जो आर्द्रभूमि के संरक्षण और समुचित उपयोग के सम्बन्ध में मार्गदर्शन प्रदान करती है.
  • भारत ने 1982 में इस संधि पर हस्ताक्षर किए.
  • भारत में आर्द्रभूमि के संरक्षण के मामलों के लिए केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु-परवर्तन मंत्रालय नोडल मंत्रालय घोषित है.
  • विदित हो कि भारत में सम्पूर्ण भूमि के 4.7% पर आर्द्रभूमि फैली हुई है.

Prelims Vishesh

Group Sail :-

  • अमेरिका, भारत, जापान और फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में चीन के दावे वाले जलमार्ग क्षेत्र में संयुक्त नौसेना अभ्यास कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है.
  • इस सैन्य अभ्यास में अमेरिका का विध्वंसक पोत, भारत के दो युद्धपोत, जापान का विमानवाहक पोत और फिलीपींस का गश्ती पोत शामिल हुए.

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