Sansar डेली करंट अफेयर्स, 09 August 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 09 August 2019


GS Paper  2 Source: PIB

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Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : Consumer Protection Bill

संदर्भ

उपभोक्ता संरक्षण विधयेक, 2019 को पिछले दिनों संसद का अनुमोदन प्राप्त हुआ.

उपभोक्ता संरक्षण विधयेक, 2019 के मुख्य तथ्य

  • विधेयक में उपभोक्ता की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो मूल्य देकर कोई वस्तु अथवा सेवा खरीदता है. तात्पर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति फिर से बेचने के लिए अथवा वाणिज्यिक उद्देश्य से कोई वस्तु अथवा सेवा हस्तगत करता है तो वह व्यक्ति उपभोक्ता नहीं कहलायेगा.
  • विधेयक में सब प्रकार के लेन-देन को शामिल किया गया है, जैसे – ऑफलाइन, ऑनलाइन, टेली शौपिंग, बहु-स्तरीय विपणन अथवा प्रत्यक्ष विक्रय.
  • विधेयक में उपभोक्ताओं के कुछ मुख्य अधिकार बताये गये हैं : i) जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक वस्तुओं एवं सेवाओं के विपणन से संरक्षण पाना ii) वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, कार्य क्षमता, शुद्धता, मानक तथा मूल्य से सम्बंधित सूचना पाना iii)  प्रतिस्पर्धात्मक दामों पर कई प्रकार की वस्तुओं अथवा सेवाओं तक पहुँचना iv) अन्यायपूर्ण अथवा बंधनकारी व्यापार प्रचलनों का समाधान माँगना.
  • विधेयक के अनुसार केंद्र सरकार एक केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) गठित करेगी जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देना, सुरक्षित करना और लागू करना होगा. यह प्राधिकरण उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अन्यायपूर्ण व्यापारिक प्रचलनों तथा भ्रामक विज्ञापनों से सम्बंधित विषयों के लिए नियामक निकाय होगा. इस प्राधिकरण में एक अन्वेषण शाखा भी होगी जिसका प्रमुख एक महानिदेशक होगा जो इन उल्लंघनों के विषय में जाँच अथवा विवेचना कर सकेगा.
  • असत्य अथवा भ्रामक विज्ञापन के लिए CCPA निर्माता अथवा प्रचारकर्ता को 10 लाख रु. तक का आर्थिक दंड एवं दो वर्षों के कारावास का दंड लगा सकता है. यदि कोई निर्माता अथवा प्रचारकर्ता ऐसा अपराध दुबारा करता है तो उसपर 50 लाख रु. तक का आर्थिक दंड एवं पाँच वर्षों के कारावास का दंड लगाया जा सकता है.

उपभोक्ता विवाद समाधान आयोग (CDRC)

विधेयक में एक उपभोक्ता विवाद समाधान आयोगों (Consumer Disputes Redressal Commission – CDRCs) की अभिकल्पना भी है. ये आयोग राष्ट्रीय, राज्यीय तथा जिले के स्तर पर गठित होंगे. इन आयोगों के समक्ष कोई भी उपभोक्ता इन वस्तुओं के लिए शिकायत दायर कर सकता है – अन्यायपूर्ण अथवा बंधनकारी व्यापारिक प्रचलन, दोषयुक्त वस्तु अथवा सेवा, अधिक अथवा छुपा हुआ दाम लगाना, जीवन एवं सम्पत्ति के लिए हानिकारक वस्तुओं अथवा सेवाओं के विक्रय का प्रस्ताव.   

विधेयक में विभिन्न CDRCs के लिए अधिकार क्षेत्रों का वर्णन किया गया है. जिला-स्तरीय CDRC उन शिकायतों को देखेगा जिनमें सम्बंधित वस्तु एवं सेवा का मूल्य एक करोड़ रु. के अन्दर है. राज्य-स्तरीय CDRC उन शिकायतों को देखेगा जिनमें वस्तुओं अथवा सेवाओं का मूल्य एक करोड़ रु. से दस करोड़ रु. के बीच होगा. दस करोड़ रु. से अधिक मूल्य वाली वस्तु एवं सेवा की शिकायतें राष्ट्रीय CDRC द्वारा देखी जाएँगी.

CCPA के कार्य

  1. उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में जाँच एवं विवेचना करना तथा समुचित मंच पर मुकदमा दायर करना.
  2. हानिकारक वस्तुओं या सेवाओं को वापस करने और चुकाए गये मूल्य को लौटाने के विषय में आदेश निर्गत करना एवं विधेयक में परिभाषित अन्यायपूर्ण व्यापरिक प्रथाओं को बंद करना.
  3. झूठा अथवा भ्रामक विज्ञापन बंद करने अथवा उसमें सुधार करने के लिए सम्बंधित व्यापारी/निर्माता/प्रचारकर्ता/विज्ञापनकर्ता/प्रकाशक को निर्देश निर्गत करना.
  4. दंड लगाना, एवं
  5. उपभोक्ताओं को असुरक्षित वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रति सतर्क करने के लिए सूचनाएँ निर्गत करना.

माहात्म्य

  1. वर्तमान व्यवस्था में उपभोक्ताओं को न्याय के लिए एक ही स्थान पर जाना होता है जिसके कारण निपटारे में बहुत अधिक समय लग जाता है. CCPA हो जाने से काम बँट जाएगा और निपटारे में तेजी आएगी.
  2. प्रस्तावित विधेयक में ऐसे दंडात्मक प्रावधान किए गये हैं जो भ्रामक विज्ञापनों और वस्तुओं में मिलावट की रोकथाम करने में सहायक होंगे.
  3. इसमें उत्पाद का उत्तरदायित्व स्पष्ट किया गया है. अतः अब निर्माता और सेवा प्रदाता दोषयुक्त उत्पादों अथवा सेवाओं को बेचने से बचेंगे.
  4. विधेयक में उपभोक्ता आयोग तक पहुँचने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है और साथ ही मुकदमा चलने की प्रक्रिया को भी सरल रखा गया है.
  5. विधेयक में आपसी समझौते से भी निपटारे का प्रावधान किया गया है जिस कारण कुछ मामलों का निस्तारण बहुत शीघ्र हो सकता है.

विधेयक पर लगाये जा रहे आक्षेप

  • विधेयक में निपटारे में होने वाली देरी और जटिलता की समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया है जबकि उपभोक्ताओं के लिए सबसे बड़ी समस्या यही है.
  • विधेयक में नियामक का प्रावधान तो है पर उसके कर्तव्यों पर सम्यक प्रकाश नहीं डाला गया है.
  • विधेयक में उपभोक्ता अधिकारों की जो परिभाषा दी गई है वह न तो सरल है और न ही स्पष्ट. इस कारण उपभोक्ता अपने अधिकारों के विषय में भ्रांति का शिकार हो सकते हैं.

GS Paper  2 Source: PIB

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Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : Surrogacy (Regulation) Bill, 2019

संदर्भ

पिछले दिनों सरोगेसी (नियंत्रण) विधेयक, 2019 लोक सभा ध्वनिमत से पारित हो गया है.

विधेयक के मुख्य तत्त्व

  • विधेयक में प्रस्ताव है कि सरोगेसी को विनियमित करने के लिए केन्द्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड और राज्यों के स्तर पर राज्य सरोगेसी बोर्ड गठित किये जाएँ.
  • विधेयक का लक्ष्य सरोगेसी को प्रभावशाली ढंग से विनियमित करना, वाणिज्यिक सरोगेसी का प्रतिषेध करना और नैतिकतापूर्ण सरोगेसी की अनुमति देना है. कहने का अभिप्राय है कि एक ओर जहाँ मानव भ्रूण और जननकोशों के क्रय-विक्रय को निषिद्ध किया जाएगा, वहीं दूसरी ओर पहले से तय की गई शर्तों पर उन जोड़ों को सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी जिनको इसकी आवश्यकता है.
  • विधेयक के अनुसार सरोगेट माताओं और सरोगेसी से उत्पन्न बच्चों को शोषण से बचाया जाएगा.
  • विधेयक के प्रस्ताव का कोई वित्तीय निहितार्थ नहीं है क्योंकि राष्ट्रीय और राज्य सरोगेसी बोर्ड की बैठकों में होने वाले खर्च का वहन सम्बंधित विभागों के प्रशासनिक बजट से ही होगा.
  • विधेयक में यह प्रावधान भी है कि यदि किसी सामान्य यौन व्यवहार वाले (हेट्रोसेक्सुअल) विवाहित जोड़े को विवाह के पश्चात् पाँच वर्ष तक बच्चा नहीं हुआ है तो वह अपने किसी निकट के रिश्तेदार को सरोगेट बना सकता है.

जिन उद्देश्यों से सरोगेसी की अनुमति होगी, वे हैं –

  • बाँझ जोड़ों के लिए
  • परोपकार के लिए
  • उन जोड़ों के लिए जो नियमावली में वर्णित किसी रोग से पीड़ित हैं

जिन उद्देश्यों से सरोगेसी की अनुमति नहीं होगी, वे हैं –

  • वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए
  • बिक्री और वेश्यागमन अथवा किसी भी प्रकार के शोषण हेतु बच्चे उत्पन्न करने के लिए

सरोगेसी चाहने वाले जोड़े के लिए निर्धारित योग्यता

जो जोड़ा सरोगेसी चाहता है उसके पास सक्षम अधिकारी द्वारा निर्गत ये दो प्रमाणपत्र होने चाहिएँ –

  1. अत्यावश्यकता प्रमाणपत्र (certificate of essentiality)
  2. अर्हता प्रमाणपत्र (certificate of eligibility)

अत्यावश्यकता प्रमाणपत्र इन शर्तों पर निर्गत होगा –

  1. सरोगेसी चाहने वाले जोड़े में से एक अथवा दोनों के बाँझ होने का प्रमाणपत्र जो जिला चिकित्सा बोर्ड निर्गत करेगा.
  2. किसी मजिस्ट्रेट के न्यायालय से पारित अभिभावकत्व एवं सरोगेसी से उत्पन्न बच्चे की संरक्षा से सम्बंधित आदेश.
  • सरोगेसी से उत्पन्न बच्चे के लिए प्रसूति से सम्बंधित जटिलताओं सहित 16 महीने की बीमा.

अर्हता प्रमाणपत्र इन शर्तों पर निर्गत होगा –

  1. सरोगेसी चाहने वाले जोड़े जो भारतीय नागरिक और कम से कम पाँच वर्ष विवाहित होना चाहिए.
  2. पति की उम्र 26 से 55 और पत्नी की उम्र 23 से 50 होनी चाहिए.
  • उनके कोई जीवित बच्चा (अपना, अथवा अथवा सरोगेसी उत्पन्न) नहीं होना चाहिए.
  1. यदि जोड़े का कोई जीवित बच्चा मानसिक अथवा शारीरिक रूप से विकलांग है या जीवन घातक रोग से पीड़ित है तो उस जोड़े को सरोगेसी की अनुमति मिल सकती है.
  2. ऐसी शर्तें जो नियमावली में वर्णित की जाएँ.

सरोगेसी के लिए चुनी हुई माँ के लिए अर्हता

  1. उसे सरोगेसी चाहने वाले जोड़े का नजदीकी रिश्तेदार होना चाहिए.
  2. वह ऐसी विवाहित महिला हो जिसके अपने बच्चे हैं.
  • उसकी उम्र 25 से 35 के बीच होनी चाहिए.
  1. उसने सरोगेसी जीवन में पहले कभी नहीं की हो.
  2. उसके पास सरोगेसी के लिए आवश्यक चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक रूप से सक्षम होने का प्रमाणपत्र होना चाहिए.
  3. सरोगेसी के लिए चुनी हुई महिला अपने ही प्रजनन कोष (gametes) को सरोगेसी के लिए नहीं दे सकती है.

सक्षम अधिकारी

विधेयक के अधिनियम बनने के 90 दिन के भीतर केंद्र और राज्य सरकारें एक अथवा अधिक सक्षम अधिकारियों की नियुक्ति करेंगी.

सरोगेसी चिकित्सालयों का पंजीकरण

सरोगेसी का काम वही चिकित्सालय कर पायेंगे जो किसी सक्षम अधिकारी द्वारा पंजीकृत हों. सक्षम पदाधिकारी की नियुक्ति की तिथि से 60 दिनों के भीतर चिकित्सालय को पंजीकरण के लिए आवेदन देना होगा.

राष्ट्रीय और राज्य सरोगेसी बोर्ड

विधेयक के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारें क्रमशः राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड और राज्य सरोगेसी बोर्ड गठित करेंगी.

राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड का कार्य होगा –

  1. सरोगेसी से सम्बंधित नीतिगत मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देना
  2. सरोगेसी चिकित्सालयों के लिए आचार संहिता बनाना
  • राज्य सरोगेसी बोर्ड के कार्यकलाप का पर्यवेक्षण करना.

सरोगेसी से उत्पन्न बच्चे के लिए किये गये प्रावधान

  • सरोगेसी से उत्पन्न बच्चे को सम्बंधित जोड़े का अपना बच्चा माना जाएगा.
  • यदि किसी कारणवश ऐसे बच्चे का गर्भपात कराना पड़े तो इसके लिए सरोगेसी देने वाली महिला की सहमति के साथ-साथ इसके लिए सक्षम अधिकारी की अनुमति आवश्यक होगी.
  • इसके लिए निर्गत प्रमाणपत्र चिकित्सकीय गर्भपात अधिनयम, 1971 (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) के अनुरूप होना चाहिए.
  • सरोगेसी देने वाली महिला के पास यह विकल्प होगा कि वह उसकी कोख में भ्रूण (embryo) स्थापित होने के पहले सरोगेसी से मना कर दे.

विधेयक के अंतर्गत अपराध और दंड का प्रावधान

  • वाणिज्यिक सरोगेसी के लिए विज्ञापन देना
  • सरोगेसी देने वाली माँ का शोषण
  • सरोगेसी से उत्पन्न बच्चे को छोड़ देना, उसका शोषण करना अथवा उसे अपना नहीं मानना
  • सरोगेसी के लिए भ्रूण अथवा प्रजनन कोष को बेचना या उसका आयात करना.

इन अपराधों के लिए 10 वर्ष तक कारावास और 10 लाख रु. तक का अर्थदंड होगा.

विधेयक की आवश्यकता क्यों?

दूसरे देशों के जोड़ों के लिए भारत एक सरोगेसी बाजार के रूप में उभर रहा है. इस प्रसंग में ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं जिनमें अनैतिक प्रचलन अपनाए जा रहे हैं, सरोगेट माताओं का शोषण हो रहा है, सरोगेसी से उत्पन्न बच्चों को त्याग दिया जा रहा है तथा बिचौलिए मानव भ्रूणों और जननकोशों के आयात का धंधा चला रहे हैं. भारतीय विधि आयोग ने अपने 228वें प्रतिवेदन में यह सुझाव दिया है कि सरोगेसी के वाणिज्यिक प्रयोग पर रोक लगाया जाए और उपयुक्त कानून बनाकर नैतिकतापूर्ण सरोगेसी को अनुमति दी जाए.      


GS Paper  2 Source: Indian Express

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Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic : Article 371 of the Constitution

संदर्भ

संविधान के अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर के सन्दर्भ में भारत सरकार द्वारा निरस्त कर दिए जाने के उपरान्त पूर्वोत्तर राज्यों में कुछ आलोचक यह शंका व्यक्त कर रहे हैं कि केंद्र सरकार इसी तर्ज पर एकपक्षीय रूप से अनुच्छेद 371 (Article 371) को भी समाप्त अथवा संशोधित कर सकती है. यद्यपि भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि उसका ऐसा कोई विचार नहीं है.

अनुच्छेद 371 क्या है?

  • संविधान के भाग 21 में अनुच्छेद 369 से लेकर 392 तक कुछ अस्थायी संक्रमणात्मक एवं विशेष प्रावधान किये गये हैं.
  • इनमें से अनुच्छेद 371 पूर्वोत्तर के छह राज्यों समेत कुल 11 राज्यों के लिए विशेष प्रावधान करता है.
  • ये समस्त प्रावधान प्रकृति से सुरक्षात्मक हैं और अलग-अलग राज्यों की विशेष परिस्थिति को देखते हुए किये गये हैं.

अनुच्छेद 371 के द्वारा किये गये विभिन्न राज्यों के लिए विशेष प्रावधान

महाराष्ट्र और गुजरात के लिए अनुच्छेद 371

अनुच्छेद 371 के अंतर्गत इन दो राज्यों के राज्यपाल को यह विशेष दायित्व सौंपा गया है कि वे अपने-अपने राज्य में कुछ विशेष भूभागों के लिए अलग विकास बोर्ड स्थापित करें, उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में विदर्भ और मराठवाड़ा में. इसी प्रकार गुजरात के अन्दर “सौराष्ट्र” और “कच्छ” में.

नागालैंड के लिए अनुच्छेद 371A

केंद्र सरकार और नागा पीपल्स कन्वेंशन के बीच 1960 में हुए सोलह सूत्री समझौते के पश्चात् 13वें संशोधन अधिनियम, 1962 के द्वारा संविधान में प्रविष्ट इस अनुच्छेद के अनुसार संसद को इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा – नागा धर्म अथवा सामाजिक प्रथाएँ, नागा पारम्परिक कानून और प्रक्रिया और नागा पारम्परिक कानून के अनुसार किये गये दीवानी एवं फौजदारी न्याय-निर्णय. इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार बिना राज्य विधान सभा की सहमति के भूमि के स्वामित्व और हस्तांतरण के बारे में कार्रवाई नहीं कर सकती है.

असम के लिए अनुच्छेद 371B

1969 के 22वें संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान में जोड़े गये इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति असम के जनजातीय क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों वाली एक समिति का गठन कर सकता है और उसे कार्य सौंप सकता है.

मणिपुर के लिए अनुच्छेद 371C

27वें संशोधन अधिनियम, 1971 द्वारा संविधान में प्रविष्ट इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति मणिपुर विधान सभा में पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों की एक समिति का गठन कर सकता है और राज्यपाल को इसके सुचारू रूप से संचालन का विशेष उत्तरदायित्व सौंप सकता है.

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए अनुच्छेद 371D

आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के द्वारा प्रविष्ट इस अनुच्छेद में राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गई है कि वह नवगठित राज्यों में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में  नियुक्ति अथवा नामांकन के संदर्भ में यह सुनिश्चित करे कि राज्य के सभी भागों के लोगों को समान अवसर और सुविधा मिले.

आंध्र प्रदेश लिए अनुच्छेद 371E

यह अनुच्छेद किसी विशेष प्रावधान से सम्बंधित नहीं है, अपितु यह संसद के कानून के द्वारा आंध्र प्रदेश में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की अनुमति देता है.

सिक्किम के लिए अनुच्छेद 371F

36वें संशोधन अधिनियम, 1975 के द्वारा संविधान में प्रविष्ट इस अनुच्छेद के द्वारा 1974 में निर्वाचित सिक्किम की विधान सभा को मान्यता दी गई है और उसे भारतीय संविधान के तहत निर्वाचित विधान सभा के समकक्ष घोषित किया गया है.

मिजोरम के लिए अनुच्छेद 371G

1986 के 53वें संशोधन अधिनियम के द्वारा प्रविष्ट यह अनुच्छेद संसद को इन विषयों पर कानून बनाने से रोकता है – मिजो लोगों का धर्म अथवा सामाजिक प्रथाएँ, मिजो पारम्परिक कानून और प्रक्रिया और मिजो पारम्परिक कानून के अनुसार किये गये दीवानी एवं फौजदारी न्याय-निर्णय. इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार बिना राज्य विधान सभा की सहमति के भूमि के स्वामित्व और हस्तांतरण के बारे में कार्रवाई नहीं कर सकती है.

अरुणाचल प्रदेश के लिए अनुच्छेद 371H

1986 के 55वें संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान में प्रविष्ट यह अनुच्छेद राज्यपाल को राज्य की विधि-व्वयस्था के विषय में विशेष दायित्व सौंपते हुए प्रावधान करता है कि वह मंत्रिपरिषद् के परामर्श से स्वविवेकानुसार आवश्यक कदम उठाएगा.

कर्नाटक के लिए अनुच्छेद 371J

2012 के 98वें संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान में प्रविष्ट इस अनुच्छेद के द्वारा हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में एक अलग विकास बोर्ड का प्रावधान किया गया है.

गोवा के लिए अनुच्छेद 371I

इस अनुच्छेद में यह व्यवस्था की गई है कि गोवा राज्य में विधान सभा सदस्यों की संख्या 30 से कम नहीं होनी चाहिए. इसमें ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं है जिसे ‘विशेष’ माना जा सकता है.


GS Paper  3 Source: The Hindu

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Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.

Topic : Canine distemper virus (CDV)

संदर्भ

पिछले दिनों थ्रेटेंड टैक्सा (Threatened Taxa) में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि राजस्थान के रणथम्बौर राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास के कुत्तों की जाँच करने पर पता चला है कि 86% कुत्तों के रक्त में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (CDV) विद्यमान है. इस उद्यान में बाघ और तेंदुए रहते हैं. अतः संभव है कि यह वायरस उन पशुओं में संक्रमित हो जाए और वे रोगग्रस्त हो जाएँ. उल्लेखनीय है कि गिर जंगल में 20 सिंह इस वायरस से संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त हो गये थे.

क्या करना चाहिए?

बचाव सबसे उपचार होता है. जंगल में किसी भी रोग को नियंत्रित करना अत्यंत कठिन होता है. अधिकांश कुत्ते आवारा होते हैं और गाँव में कुछ ही लोग कुत्तों को पालते हैं.

सरकार को चाहिए कि वह देश के वन्यजीव आश्रयणियों के आस-पास विचरने वाले कुत्तों को टीका लगा दे जिससे न केवल कैनाइन डिस्टेंपर वायरस अपितु रैबिज की भी रोकथाम हो सके.

कैनाइन डिस्टेंपर वायरस क्या है?

कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (CDV) एक विषाणुजनित रोग है जो पशुओं की आँत, श्वसन तंत्र और केन्द्रीय स्नायु तन्त्र को संक्रमित करता है.

CDV का प्रसार

जिन कुत्तों को इस वायरस के लिए टीका नहीं पड़ा है उन्हें यह रोग होने का सबसे अधिक खतरा होता है. यदि किसी कुत्ते को ठीक से टीका नहीं पड़ा है तो भी यह विषाणु संक्रमित हो सकता है. कभी-कभी किसी कुत्ते को जीवाणु संक्रमण अधिक होता है. ये कुत्ते भी कैनाइन डिस्टेंपर वायरस से आसानी से संक्रमित हो जाते हैं. यद्यपि ऐसे मामले विरले ही होते हैं.

यह विषाणु प्रत्यक्ष सम्पर्क से, जैसे – चाटना, साँस लेना आदि के माध्यम से फ़ैल सकते हैं. इसके अतिरिक्त अप्रत्यक्ष सम्पर्क से भी इनका प्रसार होता है, जैसे – एक ही बिछावन में सोना, खिलौने, खाने के बर्तन आदि. यह विषाणु देर तक जीवित नहीं रहता पर यह सबसे अधिक साँस के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाता है. CDV का अभी तक कोई उपचार नहीं निकला है.


GS Paper  3 Source: PIB

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Syllabus : Conservation related issues.

Topic : Kosi-Mechi Interlinking project

संदर्भ

भारत सरकार ने बिहार की कोसी और मेची नदियों को जोड़ने के लिए बनाई गई कोसी-मेची संयोजन परियोजना को अनुमोदित कर दिया है. इसके लिए 4,900 करोड़ रु. का प्रावधान किया जा रहा है. ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश की केन-बेतवा संयोजन परियोजना के पश्चात् केंद्र सरकार की स्वीकृति पाने वाली यह दूसरी बड़ी नदी संयोजन परियोजना होगी.

कोसी-मेची संयोजन परियोजना – आवश्यकता और महत्त्व

  • कोसी नदी का उद्गम तिब्बत में होता है जहाँ से बहते हुए यह नेपाल होकर बिहार के मैदानी क्षेत्र में पहुँच जाती है.
  • कोसी नदी अपना पाट बहुधा बदलती रहती है जिस कारण जनसाधारण को अपार कष्ट होता है. इसमें भारी मात्रा में गाद जमा होने के कारण आये दिन बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है. इसलिए कोसी नदी को बिहार का अभिशाप भी कहा जाता है. इस तथ्य को देखते हुए 25 अप्रैल, 1954 को नेपाल और भारत की सरकारों ने मिलकर कोसी परियोजना चलाई थी जिसके तहत पूर्वी कोसी मुख्य नहर प्रणाली [Eastern Kosi Main Canal (EKMC) system] का निर्माण हो चुका है. कोसी-मेची संयोजन परियोजना इसी प्रणाली को आगे बढ़ाते हुए महानंदा नदी की सहायक नदी मेची तक ले जायेगी.
  • पूर्वी कोसी मुख्य नहर को मेची तक बढ़ाने का मुख्य उद्देश्य महानंदा घाटी कमांड के जलाभाव वाले क्षेत्र में सिंचाई का लाभ उपलब्ध कराना है. इस क्षेत्र में बिहार के अररिया, किसनगंज, पूर्णिया और कटिहार जिले आते हैं जिनको खरीफ मौसम में सिंचाई के लिए हनुमाननगर बाँध के जलाशय पर निर्भर होना पड़ता है.
  • कोसी-मेची संयोजन परियोजना एक अंतर्राज्यीय परियोजना है जिसके अंतर्गत कोसी घाटी के अधिकाई जल को महानंदा घाटी में स्थानांतरित कर दिया जाएगा. इस प्रकार यह परियोना सिंचाई की दृष्टि से अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी.

Prelims Vishesh

Which country has most number of languages? :-

  • संयुक्त राष्ट्र ने 2019 को अंतर्राष्ट्रीय देशज भाषा वर्ष घोषित किया है.
  • इस संदर्भ में कराए गये एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है कि किस-किस देश में कितनी जीवंत देशज भाषाएं व्यवहार में हैं.
  • इस अध्ययन के अनुसार 840 जीवंत देशज भाषाओं के साथ पूरे विश्व में पापुआ न्यू गिनी शीर्षस्थ स्थान पर है.
  • भारत 453 जीवंत देशज भाषाओं के साथ चौथे स्थान पर है.
  • प्रतिवेदन में यह भी बताया गया है कि पूरे विश्व में 7,111 भाषाएँ बोली जाती हैं.

Bharat Ratna :-

  • पिछले दिनों राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भारत रत्न वितरित किये.
  • भारत रत्न पाने वाले व्यक्ति थे – श्री नानाजी देशमुख, भूपेन्द्र हजारिका और प्रणब मुखर्जी.
  • भारत रत्न भारतीय गणराज्य का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है जिसे सबसे पहली बार 1954 में सी.राजगोपालाचारी, सर्वपल्ली राधाकृष्णन और सी.वी. रमण को दिया गया था.

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