Sansar डेली करंट अफेयर्स, 08 December 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 08 December 2020


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Appointment to various Constitutional posts, powers, functions and responsibilities of various Constitutional Bodies. Statutory, regulatory and various quasi-judicial bodies.

Topic : Cyclone Burevi

संदर्भ

चक्रवात निवार के कराइकल तट से टकराने के सात दिन बाद, चक्रवात, बुरेवी (Burevi), इस सप्ताह के अंत तक तमिलनाडु के दक्षिणी जिले कन्याकुमारी के तट पर दस्तक देने वाला है. चक्रवात बुरेवी का नामकरण मालदीव द्वारा किया गया है.

पिछले 10 दिनों के दौरान, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाला तीसरा चक्रवात है.

क्या चक्रवात बुरेवी भी चक्रवात निवार की भांति तीव्र होगा?

चक्रवात निवार द्वारा निर्मित समुद्रीय उद्दवेलन के कारण चक्रवात बुरेवी की तीव्रता सीमित होगी.

  1. जब समुद्र के एक ही क्षेत्र में इस प्रकार की प्रणालियां क्रमिक रूप से विकसित होती हैं, तो पहली प्रणाली के द्वारा उद्दवेलन (Upwelling) शुरू हो जाता है. उद्दवेलन वह प्रक्रिया होती है, जिसके अंतर्गत महासागर की निचली सतह से ठंडा पानी ऊपरी महासागरीय सतह की ओर धकेल दिया जाता है.
  2. उष्ण महासागरीय सतह के अभाव में, किसी भी चक्रवात, जैसे बुरेवी, को समुद्री क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए पर्याप्त ईंधन नहीं मिलेगा, परिणामस्वरूप इसकी तीव्रता में कमी होगी.

चक्रवात क्या होते हैं?

चक्रवात निम्न वायुदाब के केंद्र होते हैं, जिनके चारों तरफ केन्द्र की ओर जाने वाली समवायुदाब रेखाएँ विस्तृत होती हैं. केंद्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है. फलतः परिधि से केंद्र की ओर हवाएँ चलने लगती है. चक्रवात (Cyclone) में हवाओं की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के विपरीत तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अनुकूल होती है. इनका आकर प्रायः अंडाकार या U अक्षर के समान होता है. आज हम चक्रवात के विषय में जानकारी आपसे साझा करेंगे और इसके कारण,  प्रकार और प्रभाव की भी चर्चा करेंगे. स्थिति के आधार पर चक्रवातों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है –

  1. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
  2. शीतोष्ण चक्रवात (Temperate Cyclones)

तूफानों के नाम कौन रखता है?

  • यह जानना भी दिलचस्प है कि तबाही मचाने के लिए कुख्यात इन तूफानों का नाम कैसे रखा जाता है. बीबीसी के मुताबिक 1953 से अमेरिका के मायामी स्थित नेशनल हरीकेन सेंटर और वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (डब्लूएमओ) की अगुवाई वाला एक पैनल तूफ़ानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखता था. डब्लूएमओ संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी है. हालांकि पहले उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा जाता था. जानकारों के मुताबिक इसकी वजह यह थी कि सांस्कृतिक विविधता वाले इस क्षेत्र में ऐसा करते हुए बेहद सावधानी की जरूरत थी ताकि लोगों की भावनाएं आहत होने से कोई विवाद खड़ा न हो जाए.
  • 2004 में डब्लूएमओ की अगुवाई वाले अंतर्राष्ट्रीय पैनल को भंग कर दिया गया. इसके बाद संबंधित देशों से अपने-अपने क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों का नाम ख़ुद रखने के लिए कहा गया. कुछ साल तक ऐसा किये जाने के बाद इसी साल हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर चक्रवाती तूफानों को नाम देने की एक औपचारिक व्यवस्था शुरू की है. इन देशों में भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान और थाईलैंड शामिल हैं. इन सभी देशों ने मिलकर तूफानों के लिए 64 नामों की एक सूची बनाई है. इनमें हर देश की तरफ से आठ नाम दिये गये हैं. इस नई व्यवस्था में चक्रवात विशेषज्ञों के एक पैनल को हर साल मिलना है और जरूरत पड़ने पर सूची में और नाम जोड़े जाने हैं.

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें > चक्रवात


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : IMPORTANT INTERNATIONAL INSTITUTIONS, AGENCIES AND FORA, THEIR STRUCTURE, MANDATE.

Topic : UNCTAD

संदर्भ

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) द्वारा अल्प विकसित देश रिपोर्ट (Least Developed Countries Report) 2020 जारी की गयी है. संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोविड महामारी के हालत नहीं सुधरे तो 3 करोड़ से अधि‍क लोग गरीबी रेखा से नीचे जा सकते है.

अल्प विकसित देश रिपोर्ट प्रतिवेदन 2020 के प्रमुख निष्कर्ष

  • UNCTAD की रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 महामारी से जूझ रहे विकासशील और अल्पविकसित देशों के लिए मौजूदा वर्ष सबसे खुराब गुजरने वाला है. ये देश इस महामारी के दौरान तीन दशक में सबसे खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर सकते हैं.
  • महामारी के बाद इन देशों में बेरोजगारी में अत्यधिक वृद्धि हुई है और आय के स्‍तर में भी लगातार कमी हो रही है. जिसके कारण आने वाले समय में दुनिया के करीब 47 देशों के 3 करोड़ से अधिक लोग गरीबी के और निचले स्‍तर पर जा सकते हैं.
  • UNCTAD की इस रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में कोरोना महामारी का शुरुआती असर बहुत अधिक नहीं है, लेकिन इसका आर्थिक असर काफी व्‍यापक है. अक्‍टूबर 2019 – अक्‍टूबर 2020 के बीच इन देशों की आर्थिक विकास दर का अनुमान 5%से कम कर 4% कर दिया गया है. जिसके कारण इन देशों लोगों की प्रति व्‍यक्ति आय में भी लगभग 2.5% की कमी आने की आशंका है.
  • आर्थिक स्थिति के साथ-साथ यहां के लोगों को पोषण, स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा का स्‍तर पर भी लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. इस रिपोर्ट में इन देशों में कोविड-19 महामारी का असर ज्‍यादा न होने कारण यहाँ कम जन घनत्‍व और युवाओं की अधिक आबादी को बताया गया है.
  • हालांकि इसके भविष्‍य को लेकर UNCTAD ने आशंका जरूर व्‍यक्‍त की है. इसमें कहा गया है इस वायरस का फैलाव यहां के स्वास्थ्य क्षेत्र में बुरा असर डाल सकता है जो यहां के गरीब लोगों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है.

संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (UNCTAD) क्या है?

  • 30 दिसम्बर, 1964 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित एक प्रस्ताव के अंतर्गत एक स्थायी अंतर-सरकारी संस्था के रूप में UNCTAD की स्थापना की गई थी.
  • इसका मुख्यालय जेनेवा में है.
  • यह संयुक्त राष्ट्र सचिवालय UN Secretariat का एक भाग है. इसके अतिरिक्त यह संयुक्त राष्ट्र विकास समूह (United Nations Development Group) का भी भाग है.

UNCTAD के प्रमुख उद्देश्य क्या-क्या हैं?

  • अल्पविकसित देशों के त्वरित आर्थिक विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करना.
  • व्यापार एवं विकास नीतियों का निर्माण तथा उनका क्रियान्वयन करना.
  • व्यापार एवं विकास के संबंध में संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न संस्थाओं के मध्य समन्वय स्थापित करते हुए समीक्षा व संवर्द्धन संबंधी कार्य करना.
  • विभिन्न सरकारों एवं क्षेत्रीय आर्थिक समूहों के मध्य व्यापार व विकास से सम्बंधित नीतियों के विषय में सामंजस्य स्थापित करना.

UNCTAD के द्वारा निर्गत किये जाने वाले रिपोर्ट

  1. व्यापार एवं विकास प्रतिवेदन (Trade and Development Report)
  2. वैश्विक निवेश प्रतिवेदन (World Investment Report)
  3. प्रौद्योगिकी एवं नवाचार प्रतिवेदन (Technology and Innovation Report)
  4. डिजिटल अर्थव्यवस्था प्रतिवेदन (Digital Economy Report)

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Appointment to various Constitutional posts, powers, functions and responsibilities of various Constitutional Bodies. Statutory, regulatory and various quasi-judicial bodies.

Topic : World Wide Fund for Nature-WWF

संदर्भ

हाल ही में विश्वव्यापी प्रकृति कोष (World Wide Fund for Nature-WWF) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि लगभग एक वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग (bushfires) के कारण लगभग 60,000 से अधिक कोआला (koala) जानवर प्रभावित हुए हैं.

पृष्ठभूमि

इसी वर्ष जनवरी में ऑस्ट्रेलिया में दावानल का एक ऐसा प्रकोप देखने को मिला जिससे देश के एक बहुत बड़े भाग में विनाश का तांडव देखा गया. वहाँ इस समय सूखा चल रहा है और गर्मी पड़ रही. कुछ लोग इस प्राकृतिक आपदा को जलवायु परिवर्तन से जोड़ रहे हैं. जंगल की आग झाड़ियों से आगे बढ़कर जंगली क्षेत्रों और ब्लू माउंटेन्स जैसे राष्ट्रीय उद्यानों तक फ़ैल गई. यहाँ तक कि मेलबर्न और सिडनी जैसे शहर भी इससे अछूते नहीं रहे और वहाँ के बाहरी उपनगरीय क्षेत्रों में स्थित घरों को क्षति पहुँची.

कोआला (Koala) के बारे में

  • कोआला (Koala) ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में वृक्षों पर रहने वाला दुर्लभ प्रजाति का जानवर है.यह फैसकोलार्कटिडाए (Phascolarctidae) प्रजाति का कोआला आखिरी दुर्लभ जानवर है.
  • यह एक शाकाहारी धानीप्राणी (Marsupial) स्तनधारी है जो अपने शिशुओं को अपने पेट के पास बनी हुई एक धानी (थैली) में रखते हैं .उल्लेखनीय है कि धानीप्राणी के नवजात शिशु अन्य स्तनधारियों के नवजात बच्चों की तुलना में बहुत अविकसित होते हैं और पैदा होने के बाद यह काफ़ी समय (कई हफ़्तों या महीनों तक) अपनी माता की धानी में ही रहकर विकसित होते हैं.
  • मुख्य तौर पर यह पूर्वी और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के तटवर्ती क्षेत्रों में मिलता है.
  • ICUN द्वारा कोआला को जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक असुरक्षित 10 जानवरों की प्रजातियों में शामिल एक सुभेद्य प्रजाति (vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
  • ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग से बड़ी संख्या में कोआला मारे गए और उनके रहने के 30 फीसद स्थान पूरी तरह नष्ट हो गए हैं.

विश्वव्यापी प्रकृति कोष क्या होता है?

  • WWF का full-form है – World-Wide Fund for Nature यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है.
  • इसकी स्थापना 1961 में हुई थी.
  • इसका मुख्यालय ग्लैंड, स्विट्ज़रलैंड में है.
  • लक्ष्य– वन संरक्षण एवं पर्यावरण पर मनुष्य के प्रभाव को कम करना.

वन्यजीवों की संख्या घटने के कारक तत्त्व

  • वनों की कटाई (Deforestation)
  • पशुओं के निवास स्थलों में कमी (Habitat loss and habitat)
  • जंगल का शोषण (Exploitation)
  • जलवायु परिवर्तन (Climate Change)

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट क्या है?

  1. लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (Living Planet Report), वर्ल्ड वाइड फंड (WWF) द्वारा प्रति दो वर्ष में प्रकाशित की जाती है.
  2. यह वैश्विक जैव विविधता तथा पृथ्वी ग्रह के स्वास्थ्य संबंधी प्रवृत्तियों का एक व्यापक अध्ययन है.
  3. रिपोर्ट, लिविंग प्लैनेट इंडेक्स(Living Planet Index– LPI) के माध्यम से प्राकृतिक जगत की स्थिति का व्यापक अवलोकन प्रस्तुत करती है.

पृथ्वी क्षमता-अतिक्रमण दिवस क्या है?

  • यह वह तिथि है जब प्रकृति पर मानव की वार्षिक माँग पृथ्वी की उस क्षमता से बढ़ जाती है जिससे वह वर्ष भर में खर्च किये गए प्राकृतिक संसाधन को फिर से उत्पन्न कर सकती है.
  • क्षमता के इस अतिक्रमण की गणनावैश्विक पदचिन्ह नेटवर्क तथा वर्ल्ड वाइड फण्ड फॉर नेचर (Global Footprint Network and World Wide Fund for Nature – WWF) द्वारा की जाती है.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Appointment to various Constitutional posts, powers, functions and responsibilities of various Constitutional Bodies. Statutory, regulatory and various quasi-judicial bodies.

Topic : Ken-Betwa Interlink Project

संदर्भ

भारत के पर्यावरण मंत्रालय के एक विशेषज्ञ पैनल ने केन-बेतवा नदी इंटरलिंकिंग परियोजना के अंतर्गत ओर नदी (Orr river) में बनाए जाने वाले बांध के लिए पर्यावरण स्वीकृति को स्थगित कर दिया है.

ओर नदी (Orr river) में बनाए जाने वाले बांध से संबन्धित जानकारी

  • ओर नदी (Orr river) में बनने वाला बांध राष्ट्रीय परियोजना के रूप में पहचानी जाने वाली केन-बेतवा इंटरलिंकिंग परियोजना का हिस्सा है.
  • मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले के डिडौनी गाँव के पास ओर नदी के पर 45 मीटर ऊँचे और 2,218 मीटर लंबे इस बांध का निर्माण किया जाना है, जिससे 90,000 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई की सुविधा मिलने का अनुमान है.
  • इस परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 30.65 अरब रुपये है और इसके लिए 3,730 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है, जिसमें 968.24 हेक्टेयर वन भूमि है. इससे सात गाँव पूर्ण रूप से प्रभावित हो रहे हैं और पाँच गाँव आंशिक रूप से. इसके अलावा लगभग 2,723.70 हेक्टेयर क्षेत्र के जलमग्न होने की उम्मीद है.
  • चूंकि इसमें वन भूमि शामिल थी, इसलिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने मध्य प्रदेश सरकार और राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी से विशेषज्ञ पैनल की सिफारिश के आधार पर इसके लिए वन स्वीकृति प्राप्त करने के लिए कहा था.
  • इसके बाद, फरवरी 2019 में MoEFCC की वन सलाहकार समिति (FAC) द्वारा 968.24 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन की अनुमति भी दे दी गई थी.
  • विदित हो कि पर्यावरण प्रभाव आंकलन के नियमों के अनुसार किसी भी परियोजना के निर्माण में पर्यावरण स्वीकृति प्रदान करने के लिए जिस डाटा का उपयोग किया जाता है वह 18 माह के अधिक पुराना नहीं होना चाहिए.
  • ओर बांध के मामले में जिन आंकड़ों के आधार पर पर्यावरण स्वीकृति दी गयी है वे आंकड़े 18 माह से अधिक पुराने थे. इसलिए विशेषज्ञ पैनल ने केन-बेतवा नदी इंटरलिंकिंग परियोजना के अंतर्गत ओर नदी (Orr river) में बनाए जाने वाले बांध के लिए पर्यावरण स्वीकृति को स्थगित कर दिया है.

पृष्ठभूमि

केन-बेतवा नदी संयोजन परियोजना शुरू से ही विवादों के घेरे में रही है. पर्यावरण और अन्य जीव प्रेमी तथा कई समाजसेवी संस्थाएं इसे पर्यावरण के विरुद्ध बताते हुए लगातार विरोध कर रही हैं. इस परियोजना में बुंदेलखंड के कई जनपद शामिल हैं. मध्य प्रदेश में स्थित बुंदेलखंड क्षेत्र के ही टाइगर पापुलेश (पन्ना टाइगर रिजर्व) भी परियोजना में शामिल कर लिया गया है. परियोजना को लेकर कुछ समाजसेवियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. कहा था कि परियोजना से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचेगा, इसका सही आकलन नहीं किया गया है.

विरोध में दिए गये तर्क

  • केन-बेतवा गठजोड़ बुंदेलखंड और खासकर बांदा, हमीरपुर, महोबा आदि के लिए घाटे का सौदा और खतरनाक है. पहले से ही पानी की कमी से जूझ रही केन नदी में इस योजना के बाद पानी का अकाल और बढ़ेगा.
  • सरकार की मंशा जब खेत का पानी खेत में रखने की है तो ऐसे में नदियों को जोड़ने और केन का पानी बेतवा में डालने का क्या मतलब? बुंदेलखंड में अक्सर सूखा पड़ता है. केन-बेतवा गठजोड़ से इसके और बढ़ने के आसार है.
  • यह परियोजना प्रकृति विरोधी है. किसी भी दृष्टि से बुंदेलखंड के लिए हितकारी नहीं है. जितना पैसा इसमें खर्च हो रहा है. उतने पैसे से बुंदेलखंड में बड़ी संख्या में किसानों को छोटे सिंचाई के संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं.
  • 10 से ज्यादा गांवों के लोग बेघर हो जाएंगे. उनकी जमीन परियोजना में अधिग्रहीत कर ली जाएगी. उनकी खेती और आजीविका के साधन छिन जाएंगे. मुआवजे के नाम पर जो मिलेगा उससे कोई भी परिवार नई जगह नहीं बस सकेगा. पन्ना नेशनल पार्क इसका उदाहरण है.
  • लगभग 8500 आदिवासी किसान उजड़ जाएंगे. 6499 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि योजना में चली जाएगी. पानी को बांधने से या तो बाढ़ आएगी या सूखा पड़ेगा.

केन-बेतवा नदी संयोजन परियोजना

  • इसका शुभारम्भ 2005 को प्रायद्वीपीय नदी विकास योजना के अंतर्गत किया गया.
  • इस परिजना का नाम “अमृत क्रांति परियोजना” भी है.
  • इसे उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में चलाया जा रहा है.
  • इसकी क्षमता लगभग 9 लाख हेक्टयेर की सिंचाई की है.
  • इस पर 72 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.
  • “दौधन बाँध” केन-बेतवा लिंक को जोड़ने हेतु बनाया गया है.
  • बनवा बाँध जलाशय बेतवा नदी पर मिलाया जायेगा.

लाभ

  1. उत्तर प्रदेश में केन नदी कमान क्षेत्र के 2 लाख 52 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में वार्षिक सिंचाई का बंदोबस्त.
    2. मध्य प्रदेश के केन नदी कमान क्षेत्र में 3 लाख 23 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की उपलब्धता.
    3. दो पावर हाउस बनाकर 72-78 मेगावाट बिजली का उत्पादन.
    4. परियोजना के लिंक मार्ग वाले गांवों और कस्बों तथा जिला मुख्यालयों में पेयजल सुविधा.
    5. जलाशय (बांध) में मत्स्य पालन से रोजगार का सृजन.
    6. केन नदी में बाढ़ के पानी को बेतवा में डालकर बाढ़ की बर्बादी से बचाव.

नदी संयोजन के लाभ

  • इससे सुखाड़-उन्मुख तथा जल की कमी वाले क्षेत्रों को पानी मिलेगा और फसल की पैदावार बढ़ेगी.
  • नदी संयोजन परियोजनाओं को लागू करने से हिमालय से निकलने वाली नदियों में उपलब्ध अतिरिक्त पानी प्रायद्वीपीय भारत की ओर स्थानांतरित किया जायेगा, जहाँ पानी की कमी रहती है. प्रायद्वीपीय नदियों का भी बहुत सारा पानी समुद्र में चला जाता है और उसका कोई उपयोग नहीं होता है. ऐसे पानी को प्रायद्वीप के कम पानी वाले क्षेत्रों की ओर नदी संयोजन परियोजनाओं के माध्यम से ले जाया जायेगा.
  • विदित हो कि गंगा घाटी और ब्रह्मपुत्र घाटी में लगभग हर वर्ष बाढ़ आती है. नदी संयोजन परियोजनाओं के माध्यम से इन घाटियों में बह रही नदियों के जल की दिशा दूसरे कम पानी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करने से बाढ़ की समस्या का समाधान सम्भव है.
  • नदियों को जोड़ने से घरेलू जलमार्ग के रूप में इनका उपयोग हो सकता है. ऐसा करने से सार्वजनिक यातायात और माल ढुलाई पहले से तीव्र हो जायेगी.
  • नदी संयोजन से यह लाभ होगा बनाई गई नई नहरों के आस-पास रहने वाले लोगों को रोजगार मिलेगा और मछली पालन का काम भी बड़े पैमाने पर हो सकेगा.

नदी संयोजन के संभावित दुष्प्रभाव

  • नदियों को जोड़ने से वर्तमान पर्यावरण में बहुत बड़ी उथल-पुथल होगी. इसके लिए नहरें और जलाशय बनाए जायेंगे जिनके चलते बहुत बड़े पैमाने पर जंगलों की सफाई की जायेगी. इसका प्रभाव वर्षा पर पड़ेगा और अंततः सम्पूर्ण जीवन चक्र प्रभावित हो जायेगा.
  • नदियों को जोड़ा भी जाए तो ऐसा अनुमान है कि 100 वर्ष के अन्दर ये अपना रास्ता और दिशा फिर से बदल सकते हैं.
  • नदियों के संयोजन से एक हानि यह है कि समुद्र में प्रवेश करने वाले मीठे जल की मात्रा घट जाएगी जिसके कारण सामुद्रिक जीवन तंत्र पर गंभीर संकट उत्पन्न हो जाएगा और यह एक महान् पर्यावरणिक आपदा सिद्ध होंगे.
  • बहुत सारी नहरों और जलाशयों के निर्माण से लोगों को विस्थापित करना आवश्यक हो जायेगा और इनका पुनर्वास करना एक समस्या हो जाएगी.
  • नदी संयोजन के परियोजनाओं पर संभावित खर्च बहुत विशाल होगा और इसके लिए सरकार को विदेशी स्रोतों से ऋण लेना होगा. फलतः देश ऋण के जाल में फँस सकता है.

ये जरुर पढ़ें > भारत में बहुद्देशीय सिंचाई परियोजनाएँ


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