Sansar Daily Current Affairs, 08 June 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: संसद और राज्य विधानमंडल – संरचना, कामकाज, व्यवसाय का संचालन, शक्तियां और विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दे.
Topic: Public Financial Management System – PFMS
संदर्भ
10 जून को 4 राज्यों की विधानसभाओं द्वारा 16 सांसदों को राज्यसभा के लिए चुनाव किया जाएगा.
राज्यसभा – प्रमुख तथ्य
भारत में संघीय संसद की व्यवस्था (Federal Parliament System) की गई है. संसद के दो सदन हैं – लोक सभा (Lok Sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha). राज्यसभा संसद का उच्च और द्वितीय सदन है. भारत में संघात्मक शासन की व्यवस्था है, अतः संघों की इकाइयों के प्रतिनिधित्व के लिए संसद में एक सदन का होना आवश्यक है. इसी कारण, भारत में द्विसदनात्मक प्रणाली अपनाई गई है. जैसा कि राज्यसभा के नाम से ही स्पष्ट है कि यह संघ के राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है और इसके सदस्य विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं. यह एक स्थाई सदन है और कभी भंग नहीं होता, किन्तु इसके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष के बाद स्थान खाली कर देते हैं, जिनकी पूर्ति नए सदस्यों से होती है.
राज्यसभा में अधिक-से-अधिक 250 सदस्य हो सकते हैं. इनमें अधिक-से-अधिक 238 राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों की ओर से निर्वाचित और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं. ये 12 सदस्य ऐसे होते हैं जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला सामजिक सेवा इत्यादि का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रहता है. राज्यों के प्रतिनिधि-सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रीति से होता है. राज्यों के प्रतिनिधि अपने राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होते हैं. यह निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्दति (proportional representation procedure) से तथा एकल संक्रमणीय मत विधि (single transferable vote method) के अनुसार होता है. संघीय क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का निर्वाचन संसद द्वारा बानाए गए कानून के अनुसार होता है.
संयुक्त राज्य अमेरिका में सीनेट (Senate) के सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन होता है लेकिन भारत में राज्यसभा के गठन के विषय में संविधान-निर्माताओं ने एक ओर दक्षिण अफ्रीका की अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली और दूसरी ओर आयरलैंड की मनोनयन प्रणाली को अपनाया है. जहाँ अमेरिका की सीनेट में प्रत्येक राज्य बराबर संख्या में अपने प्रतिनिधियों को चुनकर भेजता है, वहां भारत के प्रत्येक राज्य को विभिन्न संख्या में राज्यसभा में अपने प्रतिनिधियों को भेजने का अधिकार है. विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों की संख्या उस राज्य की जनसंख्या के आधार पर निश्चित की गई है.
राज्यसभा की सदस्यता के लिए योग्यताएँ और अयोग्यताएँ
इस सभा के सदस्य के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ आवश्यक हैं –
i) उसे भारत का नागरिक होना चाहिए.
ii) उसकी आयु 30 वर्ष से कम न हो
iii) उसमें वे अन्य योग्यताएँ भी हों, जो संसद विधि द्वारा निश्चित करे
राज्यसभा की सदस्यता के लिए अभ्यर्थी को निम्नलिखित अयोग्यताओं से मुक्त होना जरुरी है –
- भारत सरकार या राज्य सरकार के अंतर्गत लाभ का पद न ग्रहण करे
- पागल या दिवालिया न हो
- विदेशी न हो
- संसद की किसी भी विधि द्वारा अयोग्य न ठहराया गया हो
राज्यसभा के सदस्यों के वेतन एवं भत्ते
संसद सदस्यों का Basic Pay 50,000 रु. है. इसके अलावा उन्हें दैनिक भत्ता, निर्वाचन सम्बन्धी भत्ता, कार्यकाल व्यय भत्ता, यात्रा भत्ता, टेलीफ़ोन भत्ता आदि के लिए पैसे अलग से मिलते हैं. वेतन का detail जानने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं>> Rajya Sabha Members Salary and Allowance
राज्यसभा के पदाधिकारी
भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है. राज्यसभा के सदस्य अपने में से किसी एक को उपसभापति नियुक्त करते हैं. इसका कार्यकाल 5 वर्ष है. वह इस अवधि के पूर्व भी त्यागपत्र देकर अलग हो सकता है अथवा पदच्युत किया जा सकता है. राज्यसभा प्रस्ताव पास कर उपसभापति को पदच्युत कर सकती है, परन्तु ऐसे प्रस्ताव पर लोक सभा की स्वीकृति भी आवश्यक है. उपसभापति राज्यसभा का सदस्य न रहने पर स्वयं त्यागपत्र देने अथवा पदच्युत किये जाने पर अपने पद पर नहीं रहेगा. सभा अयोग्यता अथवा अविश्वास का प्रस्ताव पास कर उपसभापति को पदच्युत कर सकती है. लेकिन इस प्रस्ताव की सूचना उसे 14 दिन पूर्व मिलनी चाहिए.
राज्यसभा के अधिकार और कार्य
राज्यसभा के अधिकारों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा जा सकता है –
1. विधान-सम्बन्धी अधिकार
धन विधेयक को छोड़कर अन्य कोई भी विधेयक संसद के दोनों सदनों में से किसी एक सदन में पहले उपस्थित किया जा सकता है. कोई विधेयक तभी कानून बन सकता है जब वह संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाए. यदि दोनों सदनों में मतभेद हो, तो राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुला सकता है. संयुक्त बैठक में दोनों सदनों के सदस्यों के बहुमत से जो भी निर्णय हो जाए, वही अंतिम निर्णय समझा जायेगा. इस तरह की संयुक्त बैठक सर्वप्रथम मई 1961 में दहेज़-निषेध विधेयक पर विचार करने के लिए हुई थी, क्योंकि इसपर दोनों सदनों में मतभेद हो गया था. उसी तरह मई 1978 में बैंक सेवा (निरसन) विधेयक भी संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में पारित हुआ था. राज्यसभा किसी भी सामान्य विधेयक को पारित करने में अधिक-से-अधिक 6 महीनों तक विलम्ब कर सकती है.
2. वित्त-सम्बन्धी अधिकार
वित्त-सम्बन्धी विषयों में राज्यसभा बिल्कुल शक्तिहीन है. धन विधेयक केवल लोक सभा में उपस्थित किया जा सकता है. लोक सभा द्वारा स्वीकृत होने पर वह राज्यसभा में भेज दिया जाता है. राज्यसभा उसपर 14 दिनों के भीतर अपना मत प्रकट करेगी. यदि वह ऐसा नहीं करे, तो लोक सभा द्वारा पारित विधेयक ही विधि बन जाता है. यदि राज्यसभा कुछ सिफारिशें करें, तो उन्हें मानना या न मानना लोक सभा की इच्छा पर निर्भर है. उदाहरण के लिए, अपने जीवन में पहली बार 28 जुलाई, 1977 को राज्यसभा ने वित्त विधेयक को संशोधनों के साथ लोक सभा को वापस कर दिया, परन्तु लोक सभा ने 2 अगस्त, 1977 को राज्यसभा के संशोधन को बहुमत से ठुकरा दिया. राज्यसभा धन अथवा वित्त विधेयक को पारित करने में अधिक से अधिक 14 दिनों तक विलम्ब कर सकती है.
3. संविधान में संशोधन का अधिकार
संविधान में संशोधन लाने के सम्बन्ध में दोनों सदनों को सामान अधिकार प्राप्त है. संशोधन का प्रस्ताव पास होने के लिए दोनों सदनों के सदस्यों का स्पष्ट बहुमत तथा उपस्थित और मत देनेवाले सदस्यों का 2/3 बहुमत होना आवश्यक है. चूँकि दोनों सदनों में मतभेद होने पर यह संयुक्त अधिवेशन (Joint Session) द्वारा निर्णित होगा, अतैव इस क्षेत्र में राज्य सभा का अधिकार नगण्य है.
4. प्रशासकीय अधिकार
जहाँ तक शासन-सम्बन्धी अधिकारों का सम्बन्ध है, हम देखते हैं कि मंत्रिमंडल, जो देश का वास्तविक शासक है, लोक सभा के प्रति उत्तरदाई है. हाँ, राज्यसभा के सदस्य भी मंत्री नियुक्त हो सकते हैं, फिर भी, राज्यसभा प्रश्नों, प्रस्तावों और वाद-विवादों द्वारा मंत्रिमंडल के कार्यों पर कुछ अंश में नियंत्रण रख सकती है.
5. विविध अधिकार
इसके अतिरिक्त, राज्यसभा को कुछ और भी अधिकार प्राप्त हैं. राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग (impeachment) लगाने का अधिकार लोक सभा के सामान ही इसे प्राप्त है. उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों के किसी भी न्यायाधीश को हटाने का अधिकार लोक सभा के साथ इस सभा को भी है. महाभियोग का प्रस्ताव दोनों सदनों में किसी एक के सामने रखा जा सकता है. यह सभा 2/3 बहुमत से एक पस्ताव पास कर राज्य सूची के किसी विषय पर विधायन का अधिकार संसद को दे सकती है. आपातकालीन समय में राष्ट्रपति द्वारा जो भी उद्घोश्नाएँ होंगी उनका अनुमोदन लोक सभा के साथ-ही-साथ राज्यसभा द्वारा भी होना आवश्यक है. राष्ट्रपति के निर्वाचन में इस सभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं. उपराष्ट्रपति का निर्वाचन तो दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में ही होता है. स्पष्ट है कि राज्यसभा को अनेक अधिकार प्राप्त हैं पर फिर भी लोक सभा की तुलना में इसके अधिकार बहुत कम हैं.
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UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic: Information Technology Rules, 2021 / IT Rules, 2021
संदर्भ
हाल ही में, ‘इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ (MeitY) द्वारा ‘सूचना प्रौद्योगिकी नियम’, 2021 (Information Technology Rules, 2021 / IT Rules, 2021) में संशोधन संबंधी एक नया मसौदा (ड्राफ्ट) प्रकाशित किया गया है.
आईटी नियम, 2021 के महत्त्वपूर्ण तथ्य
- महत्वपूर्ण सोशल मीडिया कंपनियों के लिए ‘एक मुख्य अनुपालन अधिकारी’ (Chief Compliance Officer) की नियुक्ति करना अनिवार्य होगा, इसके साथ ही ये कंपनियां एक नोडल संपर्क अधिकारी भी नियुक्त करेंगी, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियां कभी भी समय अर्थात 24/7 संपर्क कर सकेंगी.
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, एक शिकायत अधिकारी को भी नियुक्त करेंगे, जो 24 घंटे के भीतर कोई भी संबंधित शिकायत दर्ज करेगा और 15 दिनों में इसका निपटारा करेगा.
- सामग्री को हटाना (Removal of content): यदि किसी उपयोगकर्ता, विशेष रूप से महिलाओं की गरिमा के खिलाफ शिकायतें- व्यक्तियों के निजी अंगों या नग्नता या यौन कृत्य का प्रदर्शन अथवा किसी व्यक्ति का प्रतिरूपण आदि के बारे में- दर्ज कराई जाती हैं, तो ऐसी सामग्री को, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को शिकायत दर्ज करने के 24 घंटे के भीतर हटाना होगा.
- मासिक रिपोर्ट: इनके लिए, हर महीने प्राप्त होने वाली शिकायतों की संख्या और इनके निवारण की स्थिति के बारे में मासिक रिपोर्ट भी प्रकाशित करनी होगी.
- समाचार प्रकाशकों के लिए विनियमन के तीन स्तर होंगे – स्व-विनियमन, किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश या एक प्रतिष्ठित व्यक्ति की अध्यक्षता में एक स्व-नियामक निकाय, और ‘प्रक्रिया सहिंता एवं शिकायत समिति’ सहित सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा निगरानी.
‘महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ’ और इसके लाभ:
जिन सोशल मीडिया कंपनियों के 50 लाख से अधिक पंजीकृत उपयोगकर्ता होंगे, उनको नए मानदंडों के अनुसार ‘महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ’ (Significant Social Media Intermediary) माना जाएगा.
नवीनतम संशोधन:
• अपील समितियां: सरकार द्वारा नियुक्त की जाने वाली ‘अपील समितियां’ (Appeal committees) गठित की जाएंगी. ये समितियां फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा लिए गए ‘सामग्री-अनुशोधन निर्णयों’ (content-moderation decisions) को वीटो करने में सक्षम होंगी.
• अपील समितियों की संरचना: इन अपील समितियों में एक अध्यक्ष और ऐसे अन्य सदस्य शामिल होंगे. इनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से की जाएगी.
• सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा नियुक्त ‘शिकायत अधिकारियों’ पर अतिरिक्त जिम्मेदारी डाली जाएगी. शिकायत अधिकारियों को अब 72 घंटे के भीतर शिकायतों का शीघ्र निपटान करना होगा (पहले यह अवधि 15 दिन थी).
उपयोगकर्ताओं के लिए इसके निहितार्थ:
यदि कोई उपयोगकर्ता किसी कंपनी के शिकायत अधिकारी द्वारा लिए गए ‘सामग्री मॉडरेशन / अनुशोधन निर्णय’ से संतुष्ट नहीं है, तो वे उस निर्णय के विरुद्ध सरकार द्वारा नियुक्त ‘अपील समिति’ के समक्ष अपील कर सकते हैं.
संशोधनों की आवश्यकता:
• अब तक, कंपनियों के ‘सामग्री संबंधी निर्णयों’ के खिलाफ, उपयोगकर्ताओं के पास अदालतों का दरवाजा खटखटाने का एकमात्र सहारा था.
• इसके अलावा, ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं, कि मध्यस्थों के शिकायत अधिकारी द्वारा या तो शिकायतों का संतोषजनक, और/या निष्पक्ष रूप से समाधान नहीं किया जाता है.
ये संशोधन यह सुनिश्चित करेंगे, कि “नए जवाबदेही मानकों को लागू करने के बाद किसी भी बड़े तकनीकी मंच द्वारा भारतीय नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जाएगा”.
संबंधित चिंताएँ
सरकार द्वारा नियुक्त समितियों के गठन का प्रस्ताव, सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के ‘सामग्री निर्णयों’ को ओवरराइड किए जाने संबंधी चिंताओं को जन्म देता है.
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UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic: National Air Sports Policy
संदर्भ
हाल ही में, केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) द्वारा देश की पहली ‘राष्ट्रीय हवाई खेल नीति’ (National Air Sports Policy) अर्थात् NASP 2022 की घोषणा की गयी है.
• ‘राष्ट्रीय हवाई खेल नीति’ (NASP) का उद्देश्य, भारत को वर्ष 2030 तक दुनिया में हवाई खेलों का केंद्र बनाने के विजन के साथ भारत में ‘एयरो स्पोर्ट्स’ की स्थिति में सुधार करना है.
• इसका मुख्य उद्देश्य भारत में एक सुरक्षित, किफायती, सुलभ और टिकाऊ वायु खेल पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करना है.
नीति के प्रमुख बिंदु
- ‘चार-स्तरीय प्रशासनिक संरचना’ (Two-tier governance structure): ‘राष्ट्रीय हवाई खेल नीति’ के तहत, देश में एयर स्पोर्ट्स के लिए ‘फोर-टियर गवर्नेंस स्ट्रक्चर’ अर्थात ‘चार स्तरीय प्रशासनिक संरचना’ का प्रस्ताव किया गया है. इसमें शामिल हैं:
- 1) शीर्ष स्तर पर शासी निकाय के रूप में ‘एयर स्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (Air Sports Federation of India – ASFI),
- 2) व्यक्तिगत हवाई खेलों के लिए राष्ट्रीय संघ,
- 3) राष्ट्रीय हवाई खेल संघों की क्षेत्रीय या राज्य और केंद्र शासित प्रदेश स्तर पर इकाइयाँ और
- 4) जिला स्तरीय हवाई खेल संघ.
ASFI के बारे में
‘एयर स्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (ASFI), ‘नागरिक उड्डयन मंत्रालय’ के अधीन एक स्वायत्त निकाय होगा, और यह ‘फ़ेडरेशन एरोनॉटिक इंटरनेशनेल’ (Fédération Aéronaautique Internationale – FAI) तथा हवाई खेलों से संबंधित अन्य वैश्विक प्लेटफार्मों में भारत का प्रतिनिधित्व करेगा. ‘फ़ेडरेशन एरोनॉटिक इंटरनेशनेल’ (FAI) का मुख्यालय स्विट्जरलैण्ड के लॉज़ेन में है. इसकी अध्यक्षता नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सचिव करेंगे.
ASFI के कार्य
‘एयर स्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ द्वारा नियमन, प्रमाणन, प्रतियोगिताएं, पुरस्कार और दंड आदि समेत हवाई खेलों के विभिन्न पहलुओं को प्रशासित किया जाएगा.
प्रत्येक ‘एयर स्पोर्ट्स एसोसिएशन’ के नियम और कार्य: प्रत्येक ‘एयर स्पोर्ट्स’ के लिए गठित ‘एसोसिएशन’, संबंधित खेलों के लिए उपकरण, बुनियादी ढांचे, कर्मियों और प्रशिक्षण हेतु अपने सुरक्षा मानकों का निर्धारण तथा ‘गैर-अनुपालन’ के मामले में अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. ‘एसोसिएशन’ के द्वारा अपने इन दायित्वों को पूरा नहीं करने पर ASFI द्वारा दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है.
कवरेज: इसमें एरोबेटिक्स, एरोमॉडलिंग, शौकिया तौर पर निर्मित और प्रायोगिक विमान, बैलूनिंग (Ballooning), ड्रोन, ग्लाइडिंग, हैंग ग्लाइडिंग, पैराग्लाइडिंग, माइक्रोलाइटिंग, पैरामोटरिंग (Paramotoring), स्काईडाइविंग और विंटेज एयरक्राफ्ट जैसी गतिविधियों को शामिल किया गया है.
नीति का महत्त्व
• हवाई खेलों से संबंधित गतिविधियों से राजस्व अर्जित होने के अलावा, विशेष रूप से देश के पहाड़ी क्षेत्रों में, यात्रा, पर्यटन, बुनियादी ढांचे और स्थानीय रोजगार में वृद्धि के मामले में काफी अधिक लाभ होगा.
• देश भर में ‘एयर स्पोर्ट्स हब’ का निर्माण करने से, पूरे विश्व से ‘एयर स्पोर्ट्स पेशेवर’ और पर्यटक भारत आएंगे.
आवश्यकता
एरोस्पोर्ट्स उद्योग द्वारा इस बात पर नाराजगी व्यक्त की जा रही थी, कि देश में विविध प्राकृतिक स्थानों और जबरदस्त क्षमता होने के बावजूद सरकार, द्वारा देश में एयरो स्पोर्ट्स को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.
• एरोस्पोर्ट, पर्यटन के विकास, रोजगार सृजन और विमानन गतिविधियों में रुचि के लिए महत्वपूर्ण अवसर पैदा करते हैं.
• एक विकासोन्मुख ‘राष्ट्रीय हवाई खेल नीति’ (NASP), नवीनतम एरोस्पोर्ट्स प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे और सर्वोत्तम प्रथाओं में निवेश आकर्षित करने में सहायक हो सकती है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, एजेंसियां और मंच, उनकी संरचना, अधिदेश.
Topic: Nuclear Suppliers Group – NSG
संदर्भ
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में कहा था, कि भारत राजनीतिक बाधाओं को दूर करके ‘परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह’ (Nuclear Suppliers Group – NSG) में शामिल होने के लिए उत्सुक है.
NSG क्या है?
- आणविक आपूर्ति समूह (Nuclear Suppliers Group) एक बहुराष्ट्रीय निकाय है जिसका मुख्य उद्देश्य आणविक प्रसार को रोकना है.
- विदित हो कि इसकी स्थापना 1974 में भारत द्वारा आणविक विस्फोट (Smiling Buddha) करने पर की गई थी.
- NSG की पहली बैठक नवम्बर, 1975 में लन्दन में हुई थी. इसलिए इस समूह का एक प्रचलित नाम लन्दन क्लब भी है.
- यह कोई औपचारिक संगठन नहीं है और इसके द्वारा दिए गये मार्गनिर्देश बाध्यकारी नहीं हैं.
- यह समूह सदस्यता आदि विषयों में कोई भी निर्णय सर्वसहमति से लेता है.
- आज की तिथि में इस समूह में 48 सदस्य हैं.
- भारत 2008 से इस समूह का सदस्य बनने के लिए प्रयासरत है. पर हर बार उसके आवेदन को इस आधार पर रद्द कर दिया जाता है कि उसने आणविक अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए.
- ज्ञातव्य है कि इस समूह की सदस्यता के लिए आणविक अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करना आवश्यक है.
- परन्तु भारत को एक विशेष छूट दे दी गई है कि वह आणविक निर्यातक देशों से व्यापार कर सकता है.
- भारत इस आधार पर NSG का सदस्य बनने का दावा करता है कि उसका आणविक कार्यक्रम शुद्ध रूप से शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए है.
भारत का दावा इसलिए भी मजबूत दिखता है कि उसने आणविक परीक्षण पर स्वेच्छा से प्रतिबंध घोषित कर रखा है. उसका कहना है कि उसने आणविक हथियार शत्रुओं को युद्ध से रोकने के लिए निर्मित किये हैं और वह उनका प्रयोग तभी करेगा जब उसपर विनाशकारी हथियारों से आक्रमण किया जाएगा. इस प्रकार भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह एक जिम्मेवार आणविक शक्ति वाला देश है.
NSG की सदस्यता भारत के लिए महत्त्वपूर्ण क्यों?
- यदि भारत NSG का सदस्य बन जाता है तो उसे इस समूह के अन्य सदस्यों से नवीनतम तकनीक उपलब्ध हो जाएँगे. ऐसा होने से Make in India कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा और फलस्वरूप देश की आर्थिक वृद्धि होगी.
- पेरिस जलवायु समझौते में भारत ने यह वचन दे रखा है कि वह जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाएगा और इसकी ऊर्जा का 40% नवीकरणीय एवं स्वच्छ स्रोतों से आने लगेगा.
- इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें आणविक ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना होगा. यह तभी संभव होगा जब भारत की पहुँच NSG तक हो जाए.
- विश्व में यूरेनियम के चौथे बड़े उत्पादक देश नामीबिया ने भारत को 2009 में ही आणविक ईंधन देने का वचन दिया था पर वह वचन फलीभूत नहीं हुआ क्योंकि नामीबिया ने पेलिनदाबा संधि पर हस्ताक्षर कर रखे थे जिसमें अफ्रीका के बाहर यूरेनियम की आपूर्ति पर रोक लगाई गयी है.
- यदि भारत में NSG में आ जाता है तो नामीबिया भारत को यूरेनियम देना शुरू कर देगा.
- NSG का सदस्य बन जाने के बाद वह NSG के मार्गनिर्देशों से सम्बन्धित प्रावधानों के बदलाव पर अपना मन्तव्य रख सकेगा. ज्ञातव्य है कि इस समूह में सारे निर्णय सहमति से होते हैं और इसलिए किसी भी बदलाव के लिए भारत की सहमति आवश्यक हो जायेगी.
- NSG का सदस्य बन जाने के बाद भारत को आणविक मामलों में समय पर सूचना उपलब्ध हो जायेगी.
No First Use Policy के बारे में हमारा Sansar Editorial वाला यह आर्टिकल जरुर पढ़ें >> No First Use Policy
Sansar Daily Current Affairs, 09 June 2022
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
Topic: Green Jobs
संदर्भ
‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के अवसर पर अपने भाषण के दौरान पीएम मोदी ने ‘हरित रोजगार’ (Green Jobs) पैदा करने के भारत के प्रयासों पर प्रकाश डाला.
‘हरित रोजगार’ (Green Job) क्या है?
• ‘हरित रोजगार’, पृथ्वी ग्रह पर प्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक प्रभाव डालने और समग्र पर्यावरण कल्याण में योगदान करने वाली नौकरियों का एक वर्ग होता है.
• इनका उद्देश्य, आर्थिक क्षेत्रों के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना और कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है.
• इन रोजगारों में अक्षय ऊर्जा, संसाधनों का संरक्षण, ऊर्जा कुशल साधनों को सुनिश्चित करने वाली नौकरियों को शामिल किया जाता है.
महत्त्व
भारत के लिए ‘ग्रीन जॉब’ देश के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है, क्योंकि इनमे अक्षय ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन, हरित परिवहन और शहरी खेती जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित कार्यबल को रोजगार देने की काफी संभावनाएं हैं.
इस संबंध में भारत के प्रयास:
हरित रोजगार के लिए कौशल परिषद्-
• 1 अक्टूबर 2015 को ‘हरित रोजगार हेतु कौशल परिषद’ (Skill Council for Green Jobs) की शुरुआत की गयी.
• इस परिषद् को एक गैर-लाभकारी, स्वतंत्र, उद्योग के नेतृत्व वाली पहल के रूप में स्थापित किया गया था.
• इसे ‘राष्ट्रीय कौशल विकास’ मिशनों से जोड़ा गया.
• ‘हरित रोजगार हेतु कौशल परिषद’ को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) और भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) द्वारा प्रोत्साहन दिया जाता है.
उद्देश्य:
भारत के ‘हरित व्यवसाय’ क्षेत्र में निर्माताओं और अन्य सेवा प्रदाताओं की मदद करना.
ग्रीन जॉब्स पहल:
• अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ परिसंघ, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और अंतर्राष्ट्रीय नियोक्ता संगठन द्वारा सामूहिक रूप से 2008 में ‘ग्रीन जॉब्स पहल’ की शुरूआत की गयी थी.
• इसका उद्देश्य, प्लेसमेंट को बेहतर बनाना, प्रशिक्षण देना और व्यक्तियों के लिए ‘ग्रीन जॉब्स’ में काम करने के अवसर पैदा करना है.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
Topic: Carbon Bomb
संदर्भ
इस साल ‘द गार्जियन’ द्वारा शुरू की गयी एक ‘खोजी परियोजना’ (Investigative Project) के बाद ‘कार्बन बम’ (Carbon Bomb) शब्द का प्रचलित होने लगा है.
इस प्रोजेक्ट में, दुनिया भर के देशों और निजी कंपनियों के 195 ‘कार्बन बम’ परियोजनाओं में शामिल होने संबंधी योजनाओं की जानकारी दी गयी है.
‘कार्बन बम’ क्या है?
गार्जियन द्वारा दी गयी परिभाषा: कार्बन बम “एक तेल या गैस परियोजना होती है जिसके परिणामस्वरूप परियोजना के जीवनकाल में कम से कम एक अरब टन CO2 उत्सर्जन होगा.”
• कुल मिलाकर, अमेरिका, रूस, पश्चिम एशिया, ऑस्ट्रेलिया और भारत सहित दुनिया भर में लगभग 195 ऐसी परियोजनाओं की पहचान की गई है.
• रिपोर्ट के अनुसार, ये परियोजनाएं सामूहिक रूप से, 2015 के पेरिस समझौते में सहमत उत्सर्जन सीमा को पार कर लेंगी.
कार्बन बमों को ‘डिफ्यूज’ करने संबंधी योजनाएं:
• कार्बन बमों को ‘डिफ्यूज’ करने संबंधी लक्ष्य की दिशा में काम करने वाले नेटवर्क को ‘लीव इट इन द ग्राउंड इनिशिएटिव’ (LINGO) कहा जाता है.
• इस पहल का मिशन “जीवाश्म ईंधन को जमीन में रहने देना और इसके बगैर जीना सीखना” है.
• इस नेटवर्क का मानना है, कि जलवायु परिवर्तन की जड़ ‘जीवाश्म ईंधन’ का दहन है, और ‘नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों’ का 100% उपयोग ही इसका समाधान है.
• LINGO का उद्देश्य ऐसी परियोजनाओं का विरोध करने के लिए जमीनी समर्थन जुटाना, मुकदमेबाजी के माध्यम से उन्हें चुनौती देना और इसके लिए विश्लेषण और अध्ययन करना है.
Prelims Vishesh
Job Charnock :-
- कोलकाता शहर में हाल के पुरातात्विक उत्खनन में, ब्रिटिश प्रशासक जॉब चारनॉक (Job Charnock) द्वारा नगर की स्थापना के समय से सदियों पहले यहाँ मानव निवास के साक्ष्य मिले हैं.
- जॉब चारनॉक ने ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी थे.
- ऐतिहासिक रूप से, उनके लिए वर्ष 1690 में कोलकाता शहर की स्थापना का श्रेय दिया जाता है, इस समय ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल में अपने व्यापार व्यवसाय को मजबूती से स्थापित कर रही थी.
- 14वीं और 16वीं शताब्दी के बीच, यह क्षेत्र मुगलों के अंतर्गत ‘बंगाल सल्तनत’ के शासन के अधीन था.
संबंधित प्रकरण: - ‘जॉब चारनॉक’ द्वारा कोलकाता शहर की स्थापना किए जाने के विचार को चुनौती दी जाती रही है और 2003 में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने घोषणा की कि ‘चारनॉक’ को कोलकाता का संस्थापक नहीं माना जाना चाहिए.
- अदालत ने सरकार को सभी पाठ्यपुस्तकों और शहर की स्थापना के इतिहास संबंधी आधिकारिक दस्तावेजों से ‘जॉब चारनॉक’ का नाम हटाने का आदेश दिया था.
- अदालत के अनुसार, इस क्षेत्र में ‘चारनॉक’ द्वारा अपनी बस्ती स्थापित करने से बहुत पहले एक “अत्यधिक सभ्य समाज” और “एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र” मौजूद था.
- इस स्थान का उल्लेख ‘बिप्रदास पिपिलाई’ के ‘मनसा मंगला’ (1495) और अबुल फजल की ‘आईन-ए-अकबरी’ (1596) में भी मिलता है.
Mela Kheerbhawani :-
- हर साल होने वाली अमरनाथ यात्रा के बाद ‘खीरभवानी मेला’ (Mela Kheerbhawani) कश्मीर में हिंदुओं का सबसे बड़ा समारोह / त्यौहार है.
- कश्मीरी हिंदू, जिन्हें स्थानीय रूप से पंडित के नाम से जाना जाता है, इस त्योहार को कश्मीर के ‘माता खीरभवानी’ मंदिर में मनाते हैं.
- यह मंदिर देवी ‘राज्ञा देवी’ (Ragnya Devi) को समर्पित है.
Yankti Kuti Valley :-
- हाल ही में, मध्य हिमालय की ‘यांकती कुटी’ घाटी (Yankti Kuti Valley) में उत्तराखंड के सबसे पुराने ज्ञात हिमनदों का आगे बढ़ना देखा गया था.
- इसके भू-आकृति विज्ञान मानचित्रण के माध्यम से, वैज्ञानिक द्वारा पिछले 52,000 ‘समुद्री समस्थानिक चरण’ 3 (Marine isotope stages3 – MIS3) के दौरान हुई चार हिमनदीय घटनाओं की पहचान की गयी है.
- MIS3 शब्द का तात्पर्य, तापमान में उतार-चढ़ाव को दर्शाते हुए ‘ऑक्सीजन आइसोटोप डेटा’ के माध्यम से पाए जाने वाले पृथ्वी के ‘पुरा जलवायु’ (Palaeoclimate) काल के दौरान होने वाली बारी-बारी से गर्म और ठंडी अवधियों से है
- ‘यांकती कुटी घाटी’ के बारे में:
• उत्तराखंड में अवस्थित है.
• यह तिब्बत की सीमा से पहले भारतीय क्षेत्र की आखिरी घाटी है.
• यह घाटी ‘कुटी यांकटी नदी’ द्वारा निर्मित उत्तर से दक्षिण पूर्व अक्ष के साथ-साथ चलती है. कुटी यांकटी नदी, काली नदी के मुख्य जल स्रोतों में से एक है. काली नदी इस क्षेत्र में भारत और नेपाल के बीच की सीमा बनाती है.
• इस घाटी में मुख्य रूप से कुमाऊं के चार भोटिया समुदायों में से एक ‘ब्यांसी’ जनजाति का प्रभुत्व है. इस क्षेत्र के अन्य भोटिया समुदाय – जोहर, दरमिया और चौडांसी है.
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2 Comments on “SANSAR डेली करंट अफेयर्स, 08-09 June 2022”
thanks sir G
Thanx a lot 🙏🙏
Your way of explaining and narrating is very nice! Excellent👌💯👏🙏🙏
Once again Thank you so much🙏🙏