Sansar डेली करंट अफेयर्स, 07 November 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 07 November 2020


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Important aspects of governance, transparency and accountability.

Topic : International Academic Freedom Index 2020

संदर्भ

अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक’ (International Academic Freedom Index) में भारत ने 0.352 स्कोर के साथ बहुत खराब प्रदर्शन किया है.

प्रमुख बिंदु

  • ‘शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक‘ ग्लोबल टाइम-सीरीज़ डेटासेट (वर्ष 1900 से वर्ष 2019 तक) के एक भाग के रूप में यह ‘ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट’(Global Public Policy Institute) द्वारा जारी किया गया है.
  • फ्रेडरिक-अलेक्जेंडर यूनिवर्सिटी एर्लांगेन-नार्नबर्ग, स्कॉलर्स एट रिस्क और वी-डेम इंस्टीट्यूट भी इस कार्य में निकट सहयोगी रहे हैं.

शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक

  • शैक्षणिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि संकाय के सदस्यों और छात्रों द्वारा आधिकारिक हस्तक्षेप या प्रतिशोध के डर के बिना बौद्धिक विचार व्यक्त किये जाते हों.
  • यह सूचकांक दुनिया भर मेंशैक्षणिक स्वतंत्रता के स्तर की तुलना करता है और साथ ही  शैक्षणिक स्वतंत्रता में की गई कमी की समझ को बढ़ाता है.
  • शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांकका मूल्यांकन निम्नलिखित आठ घटकों के आधार पर किया जाता है.
    • शोध और शिक्षा की स्वतंत्रता; 
    • अकादमिक विनिमय और प्रसार की स्वतंत्रता;
    • संस्थागत स्वायत्तता, परिसर अखंडता; 
    • शैक्षणिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता; 
    • शैक्षणिक स्वतंत्रता की संवैधानिक सुरक्षा; 
    • शैक्षणिक स्वतंत्रता के तहत अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रतिबद्धता; 
    • आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते;
    • विश्वविद्यालयों का अस्तित्व.
  • सूचकांक में 0-1 के बीच स्कोर दिया गया है और 1 सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को बताता है.

शीर्ष प्रदर्शक

  • 0.971 के स्कोर के साथ उरुग्वे और पुर्तगाल शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक (एएफआई) में शीर्ष पर हैं, इसके बाद लातविया (0.964) और जर्मनी (0.960)  हैं.
  • सूचकांक में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित 35 देशों के डेटा की रिपोर्ट नहीं थी.

सूचकांक पर भारत का प्रदर्शन

  • 0.352 के स्कोर के साथ भारत, सऊदी अरब (0.278) और लीबिया (0.238) के निकट है. पिछले पाँच वर्षों में भारत के एएफआई स्कोर में 0.1 अंक की गिरावट दर्ज की गई है.
  • मलेशिया (0.582), पाकिस्तान (0.554), ब्राज़ील (0.466), सोमालिया (0.436) और यूक्रेन (0.422) जैसे देशों ने भारत से बेहतर स्कोर किया है.

भारत के खराब प्रदर्शन का कारण

  • भारत ने संस्थागत स्वायत्तता, परिसर की अखंडता, शैक्षणिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा शैक्षणिक स्वतंत्रता कीसंवैधानिक सुरक्षा जैसे घटकों में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है.
  • एएफआई ने ‘फ्री टू थिंक (Free to Think): स्कॉलर्स एट रिस्क अकादमिक फ्रीडम मॉनीटरिंग प्रोजेक्ट’का हवाला देते हुए सुझाव दिया है कि भारत में राजनीतिक तनाव के कारण ‘शैक्षणिक स्वतंत्रता’ में गिरावट हो सकती है.
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में राजनीतिक तनाव के कारण छात्रों, सुरक्षा बलों और शैक्षणिक परिसर के छात्र समूहों के बीच हिंसक टकराव हुए हैं तथा शैक्षिक संस्थानों में मौजूद विद्यार्थियों (scholars) के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और अनुशासनात्मक उपाय किये गए हैं.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests

Topic : Shanghai Cooperation Organisation – SCO

संदर्भ

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के राष्ट्रप्रमुखों की परिषद का 20वाँ सम्मेलन 10 नवंबर, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयोजित किया गया.

शंघाई सहयोग संगठन के 20वें सम्मेलन के प्रमुख बिन्दु

  • शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) परिषद के सदस्य देशों के प्रमुखों के 20वें सम्मेलन की अध्यक्षता रूसी संघ के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा की गयी.
  • इस वर्चुअल बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया.
  • राष्ट्रप्रमुखों के अलावा एससीओ सचिवालय के महासचिव, एससीओ क्षेत्रीय आतंक रोधी तंत्र के कार्यकारी निदेशक के साथ-साथ 4 पर्यवेक्षक देशों अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया के राष्ट्रपति भी इस बैठक में शामिल हुए.
  • प्रधानमंत्री ने एससीओ सदस्य देशों वाले क्षेत्र में भारत के मजबूत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों का रेखांकन किया और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कोरिडोर, चाबहार बंदरगाह और अश्गाबात समझौते जैसे क्षेत्र में बेहतर संपर्क के प्रति भारत की मजबूत प्रतिबद्धता दोहराई.

शंघाई सहयोग संगठन

शंघाई सहयोग संगठन एक राजनैतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग संगठन है जिसकी शुरुआत चीन और रूस के नेतृत्व में यूरेशियाई देशों ने की थी. दरअसल इसकी शुरुआत चीन के अतिरिक्त उन चार देशों से हुई थी जिनकी सीमाएँ चीन से मिलती थीं अर्थात् रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान. इसलिए इस संघठन का प्राथमिक उद्देश्य था कि चीन के अपने इन पड़ोसी देशों के साथ चल रहे सीमा-विवाद का हल निकालना. इन्होंने अप्रैल 1996 में शंघाई में एक बैठक की. इस बैठक में ये सभी देश एक-दूसरे के बीच नस्ली और धार्मिक तनावों को दूर करने के लिए आपस में सहयोग करने पर राजी हुए. इस सम्मेलन को शंघाई कहा गया.

इसके बाद 2001 में शंघाई 5 में उज्बेकिस्तान भी शामिल हो गया. 15 जून 2001 को शंघाई सहयोग संगठन की औपचारिक स्थापना हुई.

शंघाई सहयोग संगठन के मुख्य उद्देश्य

शंघाई सहयोग संगठन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. सदस्यों के बीच राजनैतिक, आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को बढ़ाना.
  2. तकनीकी और विज्ञान क्षेत्र, शिक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्र, ऊर्जा, यातायात और पर्यटन के क्षेत्र में आपसी सहयोग करना.
  3. पर्यावरण का संरक्षण करना.
  4. मध्य एशिया में सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए एक-दूसरे को सहयोग करना.
  5. आंतकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी और साइबर सुरक्षा के खतरों से निपटना.

SCO का विकास कैसे हुआ?

  1. 2005 में कजाकिस्तान के अस्ताना में हुए SCO के सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने पहली बार इसमें हिस्सा लिया.
  2. 2016 तक भारत SCO में एक पर्यवेक्षक देश के रूप में सम्मिलित था.
  3. भारत ने सितम्बर 2014 में शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता के लिए आवेदन किया.
  4. जून 2017 में अस्ताना में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को भी औपचारिक तौर पर पूर्ण सदस्यता प्रदान की गई.
  5. वर्तमान में SCO की स्थाई सदस्य देशों की संख्या 8 है – चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान.
  6. जबकि चार देश इसके पर्यवेक्षक (observer countries) हैं – अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया.
  7. इसके अलावा SCO में छह देश डायलॉग पार्टनर (dialogue partners) हैं – अजरबैजान, आर्मेनिया, कम्बोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका.

GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.

Topic : Western Ghats Ecologically Sensitive Area

संदर्भ

किसानों से जुड़े केरल के एक गैर-सरकारी संगठन ने पश्चिमी घाट के 56,825 वर्ग किमी क्षेत्र को पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने वाली अधिसूचना के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की है एवं इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है.

प्रमुख बिंदु

  • इसने केंद्र सरकार से पश्चिमी घाट के संरक्षण पर माधव गाडगिल और कस्तूरीरंगन समितियों की रिपोर्टों को लागू नहीं करने के लिये दिशा-निर्देश मांगा है.

पृष्ठभूमि

  • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (Western Ghats Ecology Expert Panel), जिन्हें गाडगिल समिति और उच्च-स्तरीय कार्य समूह भी कहा जाता है. जिसको कस्तूरीरंगन समिति भी कहा जाता है. जिन्हें क्षेत्र के सतत् और समावेशी विकास की अनुमति देते हुए पश्चिमी घाटों की जैव विविधता के संरक्षण तथा सुरक्षा के लिये गठित किया गया था.
  • उन्होंने सिफारिश की कि छह राज्यों केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में पड़ने वाले भौगोलिक क्षेत्रों को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Area) घोषित किया जाना चाहिये.
  • ESA में अधिसूचित क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए वर्ष 2018 में एक मसौदा अधिसूचना जारी की गई थी.

याचिका के मुख्य बिंदु

  • मसौदा अधिसूचना केरल में 123 कृषि क्षेत्रों को ESA घोषित करेगा. यह 22 लाख लोगों को प्रभावित करेगा और केरल की अर्थव्यवस्था को पंगु बना देगा.
  • केंद्र ने पश्चिमी घाट क्षेत्र में रहने वाले लोगों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया था, जो जैव विविधता के विध्वंसक और पारिस्थितिक क्षति के एजेंटों” के रूप में था.
  • इसके अलावा, यह सुझाव दिया कि केरल में ESA को आरक्षित वनों और संरक्षित क्षेत्रों तक सीमित रखा जाना चाहिये.

पश्चिम घाट

  • पश्चिमी घाट पर्वतीय क्षेत्र भारत के पश्चिमी तट के सहारे लगभग 1600 किमी. की लंबाई में महाराष्ट्र व गुजरात की सीमा से लेकर कुमारी अंतरीप तक विस्तृत है. यह दो भागों में बांटी जाती है – उत्तरी सहयाद्रि व दक्षिणी सहयाद्रि.
  • इसे महाराष्ट्र व कर्नाटक में “सहयाद्रि” और केरल में ‘सहय पर्वतम’ कहा जाता है.
  • पश्चिमी घाट पर्वत श्रेणी को यूनेस्को ने अपनीविश्व विरासत स्थल’ सूची में शामिल किया है और यह विश्व के ‘जैवविविधता हॉटस्पॉट’ में से एक है.

पश्चिमी घाट से संबंधित मुद्दे

  • इन क्षेत्रों में भू-संचालन, भूमि उप-विभाजन, पार्श्व प्रसार (दरार) और मिट्टी की कटाई से भूस्खलन का अनवरत खतरा बना रहता है. इस प्रकार की स्थितियाँ केरल के त्रिशूर और कन्नूर ज़िलों में ज्यादा पाई जाती हैं.
  • अत्यधिक वर्षा, अवैज्ञानिक कृषि एवं निर्माण गतिविधियाँ भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार हैं.
  • पश्चिमी घाट के अधिकांश ढलानों का प्रयोग फसलों को उगाने के लिए किया जाता है जिससे कृषि के दौरान प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियांँ अवरुद्ध हो जाती हैं जो भूस्खलन की प्रायिकता में वृद्धि लाते हैं.
  • पश्चिमी घाट की प्रमुख पारिस्थितिकीय समस्याओं में जनसंख्या और उद्योगों का दबाव सम्मिलित है.
  • पश्चिमी घाट में होने वाली पर्यटन गतिविधियों के चलते भी इस क्षेत्र पर और यहाँ की वनस्पति पर दबाव पड़ा है.
  • नदी घाटी परियोजनाओं के अंतर्गत वन भूमि का डूबना और वन भूमि पर अतिक्रमण भी एक नवीन समस्या है.
  • पश्चिमी घाट की जैव विविधता के ह्रास की बड़ी वजह खनन कार्य है.
  • चाय, कॉफी, रबड़, यूकेलिप्टस की एक फसलीय कृषि व्यवस्था इस क्षेत्र की जैव विविधता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है.
  • रेल और सड़क जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ भी इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर दबाव बना रही हैं.
  • भू-क्षरण और भू-स्खलन जैसे प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों से भी पश्चिमी घाट की जैव विविधता प्रभावित हुई है.
  • तापीय ऊर्जा संयंत्रों के प्रदूषण के चलते भी जैव विविधता प्रभावित हो रही है.
  • पश्चिमी घाट की अधिकांश नदियाँ खड़े ढलानों से उतरकर तेज गति से बहती हैं जिसके फलस्वरूप वे पुराने बांधों को सरलता से तोड़ देती हैं साथ ही वनों की कटाई के पश्चात् कमज़ोर हुई ज़मीन को आसानी से काट भी देती हैं.
  • पुराने बांधों की समय पर मरम्मत न होना सदैव बाढ़ को आमंत्रित करता है.

गाडगिल समिति की अनुशंसाएँ

  • गाडगिल समिति ने पश्चिमी घाटों की परिभाषा दी और यह अनुशंसा की कि इस पूरे क्षेत्र को पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (ecologically sensitive area – ESA) घोषित किया जाए. इस क्षेत्र के अन्दर भी तीन पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील जोन (ecologically sensitive zones – ESZ) I, II अथवा III बनाए जाएँ जो और यह वर्गीकरण वहाँ की वर्तमान दशा और खतरे की प्रकृति को देखते हुए किया जाए.
  • समिति का प्रस्ताव था कि पश्चिमी घाट को 2,200 ग्रिडों में बाँटा जाए, जिनमें 75% ESZ I अथवा II के अन्दर आएँ अथवा पहले से विद्यमान सुरक्षित क्षेत्रों, जैसे – वन्य-जीवन आश्रयणियों अथवा प्राकृतिक उद्यानों के अन्दर हों.
  • समिति ने पश्चिमी घाटों की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए एक पश्चिमी घाट पर्यावरण प्राधिकरण (Western Ghats Ecology Authority) स्थापित करने का प्रस्ताव भी दिया था.

फिर कस्तूरीरंगन समिति की आवश्यकता क्यों?

गाडगिल समिति का रिपोर्ट अगस्त, 2011 में आया परन्तु उसे किसी भी पश्चिम घाट के राज्य ने स्वीकार नहीं किया. इसलिए अगस्त, 2012 में पर्यावरण मंत्रालय ने एक नई समिति बनाई जिसके अध्यक्ष कस्तूरीरंगन नियुक्त हुए थे. इस समिति को कहा गया कि वह गाडगिल समिति के रिपोर्ट का अध्ययन कर एक नए ढंग का रिपोर्ट दें जो सबके लिए मान्य हो.

कस्तूरीरंगन समिति की अनुशंसाएँ

  • पश्चिमी घाट में कोयले का नया बिजली घर नहीं बनाया जाए, अपितु पनबिजली की परियोजनाएँ लगाई जाएँ.
  • प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग यहाँ प्रतिबंधित हों.
  • 20,000 वर्गमीटर तक के भवन और निर्माण परियोजनाओं को अनुमति मिले पर टाउनशिप पूरी तरह मना हो.
  • जंगल को हटाने की अनुमति मिले परन्तु बहुत अधिक सुरक्षात्मक निर्देशों के साथ.
  • इस समिति ने सुझाव दिया था कि खनन के जो काम चल रहे हैं, उनको धीरे-धीरे पाँच वर्षों में बंद कर देना चाहिए.
  • समिति की यह भी अनुशंसा थी कि यहाँ जो भी निर्माण कार्य हों, उनके लिए पर्यावरण विषयक अनुमति अनिवार्य होनी चाहिए.
  • समिति का यह भी कहना था कि भविष्य में यहाँ जो भी परियोजनाएँ लागू की जाएँ उनके बारे में निर्णय लेते समय क्षेत्र के गाँवों की राय भी ली जाए.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

पूर्वी घाट

  • पूर्वी घाट भारत के पूर्वी तट पर स्थित पर्वत श्रेणी है. पूर्वी घाट बंगाल की खाड़ी के सहारे अनियमित पर्वतश्रेणी है.
  • यह उत्तरी उड़ीसा से लेकर तमिलनाडु तक लगभग 3000 किमी तक विस्तृत है.
  • सिरूमलाई और कोल्ली हिल्स यहाँ के हिल स्टेशन हैं.
  • पूर्वी घाट के दक्षिण पश्चिम में शेवरायजावेडी एंव बिलिगिरी रंगन की पहाडियाँ अवस्थित हैं.
  • कृष्णा और चेन्नई के मध्य इसे कोडाविंडु हिल्स के नाम से जाना जाता है.
  • आँध्रप्रदेश में स्थित अरोयाकोंडा पूर्वी घाट का सबसे ऊँचा शिखर है जिसकी ऊँचाई सागर तल से 16 मीटर है.
  • दूसरा सबसे ऊँचा शिखर देवड़ीमुण्डा समुद्र तल से 1598 मीटर है. इसके अतिरिक्त सिंधूराजू (1516मीटर) और निमालगिरी (1515मीटर) कोरापुट में स्थित हैं, जबकि महेन्द्रगिरी (1501 मीटर) गंजम जिले में स्थित है.
  • पूर्वी घाट का उद्भव कैलीडोनियन युगीन कुडप्पा भूसन्नति (Geosyncline) से हुआ है जो विभिन्न नदियों जैसे – महानदी , गोदावरी , कृष्णा , कावेरी इत्यादि द्वारा काट दिया गया है.

GS Paper 3 Source : Down to Earth

down to earth

UPSC Syllabus : Pollution related issues.

Topic : Brown carbon ‘tarballs’ found in Himalayan atmosphere

संदर्भ

एक हालिया अध्ययन के दौरान हिमालय-तिब्बत के पठार में टारबॉल्स (काले और भूरे रंग के कार्बन कण) की मौजूदगी देखी गयी है.

उच्च प्रदूषण के दिनों में टारबॉल (Tarballs) की प्रतिशत-मात्रा में वृद्धि हो जाती है, और इससे ग्लेशियर्स के पिघलने की गति और वैश्विक उष्मन में वृद्धि हो सकती है.

टारबॉल’ और इनका निर्माण

टारबॉल, छोटे आकार के, प्रकाश-अवशोषित करने वालेकार्बन कण होते हैं जो बॉयोमास या जीवाश्म ईंधन के जलाए जाने से निर्मित होते हैं, तथा जमी हुई बर्फ पर बैठ जाते हैं.

  1. टारबॉल्स बेहद छोटे और खतरनाक कण होते हैं जो अपने साथ कॉर्बन, ऑक्सीजन और कम मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर व पोटेशियम को भी लिए रहते हैं.
  2. इन कणों से ग्लेशियर्स के पिघलने की गति बढ़ सकती है.
  3. जीवाश्म ईंधन के जलने के दौरान उत्सर्जित होते होने वाले भूरे कार्बन से निर्मित होते हैं.

इनकी उत्पत्ति का स्रोत

टारबॉल्स की उत्पत्ति, गंगा के मैदानी भागों में बॉयोमास या जीवाश्म ईंधन के जलाए जाने से प्रकाश अवशोषित करने वाले यह कार्बन कणों से होती है.

संबंधित चिंताएँ

टारबॉल्स, हवा के साथ लंबी दूरी तय कर सकते हैं और जलवायु प्रभाव के बड़े कारक हो सकते हैं साथ ही हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर्स के पिघलने का वाहक भी बन सकते हैं.


Prelims Vishesh

Brown carbon tarballs found in Himalayan atmosphere :-

  • हाल ही के एक अध्ययन के अनुसार, हिमालय-तिब्बत पठार पर स्थित एक अनुसंधान स्टेशन से संग्रह किए गए वायु के नमूनों में लगभग 28% कण टारबॉल के थे.
  • टारबॉल लघु प्रकाश अवशोषित करने की क्षमता वाले, कार्बनयुक्त कण हैं जो भूरे रंग के कार्बन (जीवाश्म ईंघन के दहन के दौरान उत्सर्जित) से बनते हैं.
  • ये हिमनद के पिघलने और ग्लोबल वार्मिंग की गति को बढ़ाने में योगदान कर सकते हैं।

Micro-plastic Pollution in Hot Liquid Consumed from Disposable Paper Cups :-

  • खड़गपुर के एक हालिया शोध में, डिस्पोजेबल कप की परत से सूक्षम-प्लास्टिक और अन्य खतरनाक घटकों के क्षरण के कारण, पेपर कप में परोसे जाने वाले गर्म तरल में, संदूषक कणों के अस्तित्व की पुष्टि की गई है.
  • पेपर कप सामान्यतया हाइड्रोफोबिक फिल्‍म (जल में अविलय) की एक पतली परत द्वारा आस्तरित (lined) होते हैं, जो पेपर कप मत तरल को रखने के लिए अधिकतर प्लास्टिक (पॉलीइथिलीन) से बना होता है और कभी-कभी इसमें सह-बहुलक का भी प्रयोग होता है.
  • 15 मिनट के भीतर यह सूक्ष्म प्लास्टिक की परत गर्म जल के विरूद्ध प्रतिक्रिया कर निम्नीकृत हो जाती है.
  • माइक्रो प्लास्टिक आयन व विषाक्त भारी धातुओं जैसे कि पैलेडियम, क्रोमियम और कैडमियम जैसे संदूषकों के वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं.

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