Sansar डेली करंट अफेयर्स, 06 May 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 06 May 2020


GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.

Topic : Sources of revenue for the states

संदर्भ

कोविड-19 महामारी के चलते होने वाले नुक्सान के कारण दिल्ली और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शराब की खरीद पर 70-75% अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लगा रहे हैं.

ज्ञातव्य है कि शराब के निर्माण और विक्रय से राज्यों को बहुत सारा राजस्व मिलता है. परन्तु तालेबंदी के कारण शराब का विक्रय प्रतिबंधित कर दिया गया था जिससे राज्यों को राजस्व की हानि हो रही थी.

शराब पर उत्पाद शुल्क से राज्यों को क्या लाभ होता है?

देश में 29 राज्य और संघीय क्षेत्र हैं. इन्होंने 2019-20 में शराब पर लगने वाले उत्पाद शुल्क से कुल मिलाकर 1.76 ट्रिलियन की आय इकठ्ठा की थी जोकि 2018-19 की तुलना में 16.5% अधिक थी. भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष में प्रत्येक महीने औसतन 15 हजार करोड़ की आय हुई थी.

शराब GST के दायरे में आती है या नहीं?

शराब GST के दायरे में नहीं आती क्योंकि राज्य सरकारों ने शुरू में ही यह अनुरोध कर दिया था कि इस पर GST नहीं लगाई जाए. कुछ और वस्तुएँ भी GST के अन्दर नहीं आती हैं, जैसे – भूमि, बिजली, पेट्रोलियम पदार्थ (पट्रोल, डीजल और विमान ईंधन).

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राज्यों के पास राजस्व के लिए अन्य कौन स्रोत हैं?

राज्यों के राजस्व की दो श्रेणियाँ होती हैं –

  1. कर राजस्व
  2. गैर-कर राजस्व

कर राजस्व

इस राजस्व की भी दो श्रेणियाँ होती हैं – 1. राज्य का अपना कर राजस्व और 2. केन्द्रीय कर में राज्य का अंश

जहाँ तक राज्य के अपने कर राजस्व का प्रश्न है, इसके तीन प्रमुख स्रोत हैं –  

  1. आय पर लगने वाले कर (यह कर पेशों, व्यापारों, रोजगार आदि पर लगता है)
  2. सम्पत्ति और पूँजी लेन-देन पर कर (जैसे भूराजस्व, स्टाम्प और पंजीकरण शुल्क, शहरी अचल सम्पत्ति शुल्क).
  3. वस्तु और सेवा पर लगने वाले कर (विक्रय कर, VAT (मूल्य वर्धित कर), केन्द्रीय विक्रय कर, विक्रय कर पर अधिभार, टर्न ओवर कर की प्राप्ति, अन्य प्राप्तियां, राज्य उत्पाद शुल्क.

गैर-कर राजस्व

यह राजस्व सरकारें किसी वस्तु एवं सेवा की सुविधा प्रदान करने के लिए जमा करती हैं.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.

Topic : What is the Darbar Move in J&K all about?

संदर्भ

जम्मू-कश्मीर में दशकों से चली आ रही दरबार मूव परंपरा को गैर-आवश्यक, सरकारी खजाने के व्यर्थ खर्च और कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों का हनन करार देते हुए जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायलय के डिवीजन बेंच ने गृह मंत्रालय व प्रदेश के मुख्य सचिव को इस पर निर्णय लेने के निर्देश दिए है.

पृष्ठभूमि

कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के बीच दरबार मूव न करने की माँग को लेकर दायर जनहित याचिका में सुनवाई के दौरान बेंच ने उपर्युक्त निर्देश दिए. इस जनहित याचिका में हालांकि सरकार की ओर से पक्ष रखकर कहा गया था कि इस बार दरबार मूव नहीं किया जा रहा है और जो कर्मचारी जहां है, उसे वहीं से कार्य करने की अनुमति दी गई है.

सरकार के इस निर्णय पर गौर करने के साथ ही बेंच ने साल में दो बार होने वाले दरबार मूव पर होने वाले खर्च की जानकारी माँगी थी. सुनवाई के दौरान बेंच ने पाया कि साल में दो बार दरबार मूव होने से 200 करोड़ रुपये का भारी-भरकम खर्च होता है. इस खर्च के अतिरिक्त भी करोड़ों रुपये खर्च होते होंगे जिनका लेखाजोखा उपलब्ध नहीं है. आज के इस आधुनिक दौर में जब सब कुछ डिजीटल है, ऐसे में दरबार मूव पर करोड़ों रुपये खर्च करने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है.

दरबार मूव परंपरा क्या है?

  • जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक परीस्थितियों को देखते हुए हर वर्ष अक्टूबर और अप्रैल महीनों में यहाँ की राजधानी बदली जाती रही है. इस परंपरा का प्रारम्भ वर्ष 1872 में हुआ था.
  • जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राजा रणवीर सिंह ने इस व्यवस्था को लागू करते 6 महीने जम्मू और 6 महीने श्रीनगर से काम करने की व्यवस्था की थी.
  • इस परंपरा के अंतर्गत हर वर्ष अप्रैल महीने में करीब 800 वाहनों से जम्मू स्थित नागरिक सचिवालय से फाइलों और अन्य सामान को श्रीनगर भेजा जाता था.
  • वहीं अक्टूबर में बर्फबारी से पहले ये सारा सामान जम्मू में शिफ्ट किया जाता था. इस पूरी प्रक्रिया को दरबार मूव का नाम दिया गया था.
  • इस परंपरा पर हर वर्ष लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं.

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GS Paper 2 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Welfare schemes for vulnerable sections of the population by the Centre and States and the performance of these schemes; mechanisms, laws, institutions and bodies constituted for the protection and betterment of these vulnerable sections.

Topic : Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Pariyojana (PMBJP)

संदर्भ

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केन्द्रों (PMBJK) द्वारा जरूरतमंदों तक आवश्यक दवाएँ पहुंचाने के लिए आधुनिक संचार साधनों, जैसे – व्हाट्सएप और ईमेल के माध्यम से दवाओं के ऑर्डर स्वीकार किये जा रहे हैं.

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना

  • प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (PMBJP) भारत सरकार के फार्मास्यूटिकल विभाग द्वारा आरम्भ की गई एक योजना है जिसका उद्देश्य PMBJP केन्द्रों के माध्यम से जन-सामान्य को सस्ती किन्तु गुणवत्ता युक्त औषधियाँ मुहैया करना है.
  • ज्ञातव्य है कि जेनरिक दवाओं को उपलब्ध कराने के लिए इस योजना के अन्दर कई वितरण केंद्र बनाए गए हैं जिन्हें प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र कहते हैं. विदित हो कि जेनेरिक दवाएँ उतनी ही गुणवत्तायुक्त और कारगर हैं जितनी ब्रांड की गई महँगी दवाइयाँ. साथ ही इनके दाम इन महँगी दवाइयों की तुलना में बहुत कम होते हैं.
  • भारतीय फार्मा लोक सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम ब्यूरो (Bureau of Pharma PSUs of India – BPPI) इस योजना के लिए कार्यान्वयन एजेंसी बनाई गई है. इसकी स्थापना केंद्र सरकार के फार्मास्यूटिकल विभाग ने की है.

जन औषधि केन्द्रों की भूमिका

  • देश में अधिक से अधिक चिकित्सक जेनरिक दवाएँ लिखने लगे हैं. उधर 652 जिलों में 5,050 जन औषधि बाजार खुल गये हैं, इसलिए उच्च गुणों वाली सस्ती जेनेरिक दवाओं को उपलब्ध कराना और उनके बारे में जागरूकता उत्पन्न करना आवश्यक हो गया है. इन केन्द्रों से प्रतिदिन 10-15 लाख लाभान्वित हो रहे हैं. पिछले तीन वर्षों में जेनरिक दवाओं की बाजार में खपत 2% से बढ़कर 7% अर्थात् तिगुनी हो गई है.
  • जन औषधि दवाओं के चलते जानलेवा बीमारियों से ग्रस्त रोगियों का खर्च अच्छा-ख़ासा घट गया है. ये दवाइयाँ बाजार मूल्य की तुलना में 50 से 90 प्रतिशत तक सस्ती होती है. बताया जाता है कि PMBJP योजना के कारण जनसाधारण को 1,000 करोड़ रू. की बचत हुई.
  • इस योजना के कारण नियमित आय से युक्त स्वरोजगार के अवसर बढ़ गये हैं.

GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Issues related to health.

Topic : What is silent hypoxia?

संदर्भ

COVID-19 से संक्रमित लोगों के इलाज़ में प्रयासरत विश्व-भर के चिकित्सक एक विचित्र परिस्थिति का सामना कर रहे हैं. चिकित्सकों के अनुसार, COVID-19 से संक्रमित कुछ लोगों के खून में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के बाद भी साँस से सम्बंधित समस्याएँ परिलक्षित नहीं हो रही हैं.  

चिकित्सकों की राय

  • चिकित्सकों की राय है कि लोगों में साँस से सम्बंधित समस्याओं का परिलक्षित न होना ‘साइलेंट/हैप्पी हाइपोक्सिया’ (Silent/Happy Hypoxia) की ओर इंगित करता है.
  • चिकित्सक और अन्वेषक डॉ. रिचर्ड लेविटन (Dr Richard Levitan) के अनुसार, COVID-19 से संक्रमित रोगियों में ‘कोविड निमोनिया’ की स्थिति ‘साइलेंट/हैप्पी हाइपोक्सिया’ के कारण उत्पन्न हो रही है.
  • कई डॉक्टर अब ‘कोविड निमोनिया’ जैसी घातक परिस्थिति से बचने के साधन के रूप में इसकी प्रारम्भिक पहचान की वकालत कर रहे हैं.

साइलेंट हाइपोक्सिया (Silent Hypoxia)

  • ‘साइलेंट/हैप्पी हाइपोक्सिया’ खून में ऑक्सीजन की अल्पता का एक ऐसा स्वरूप है जिसकी पहचान नियमित हाइपोक्सिया की तुलना में मुश्किल है.
  • COVID-19 से संक्रमित लोगों के खून में ऑक्सीजन की मात्रा 80% से कम होने के बाद भी उनको साँस लेने में कोई दिक्कत नहीं आ रही.
  • चिकित्सकों के अनुसार, आपातकालीन वार्डों में अनेक रोगियों के खून में ऑक्सीजन की मात्रा 50% से भी कम है. ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के चलते लोग अत्यधिक बीमार दिखने चाहिये थे, परंतु साइलेंट हाइपोक्सिया के मामलों में ऐसा तब तक नहीं होता जब तक कितेज सांस से सम्बन्धित संकट जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं हो जाती है. 

ऐसी स्थिति क्यों?

  • ‘द गार्जियन’ के एक प्रतिवेदन के अनुसार, साइलेंट हाइपोक्सिया के बाद लोगों में श्वसन संबंधी समस्याएँ ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में बढ़ोतरी के चलते हो रही हैं. यह समस्या उस समय होती है जब फेफड़े कार्बन डाइऑक्साइड गैस को निष्कासित करने में असक्षम होते हैं.
  • डॉ. लेविटन के अनुसार, प्रारम्भिक चरण में फेफड़े CO2 निष्कासन तथा इसके निर्माण से बचाव में सक्षम प्रतीत होते हैं. इस प्रकार, रोगियों को श्वसन संबंधी समस्याओं का अनुभव नहीं होता.

हाइपोक्सिया (Hypoxia)

  • हाइपोक्सिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्त और शरीर के ऊतकों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होता है.
  • सामान्यतः हाइपोक्सिया पूरे शरीर या शरीर के कुछ हिस्से को प्रभावित कर सकता है.
  • अमेरिकी गैर-लाभकारी संगठन ‘मायो क्लिनीक’ के अनुसार, सामान्यतः धमनियों में ऑक्सीजन की मात्रा 75-100 (mm Hg) तथा पल्स-ऑक्सीमीटर (Pulse-Oximeter) की माप 90-100% होता है.
  • पल्स-ऑक्सीमीटर का 90% से कम होना चिंता का विषय होता है. ऐसी परिस्थिति में पीड़ित व्यक्ति सुस्ती, भ्रम, मानसिक तौर पर अस्वस्थ अनुभव करता है. पल्स-ऑक्सीमीटर की माप का स्तर 80% से कम होने से शरीर के जरूरी अंग प्रभावित होते हैं.

पल्स-ऑक्सीमीटर (Pulse-Oximeter)

  • यह एक ऐसा यंत्र है जिसके जरिये मानव के शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा का पता लगाया जा सकता है.
  • इसे उँगलियों, नाक, कान अथवा पैरों की उँगलियों में क्लिप की तरह लगाया जाता है. इसमें संलग्न सेंसर खून में ऑक्सीजन के प्रवाह तथा रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा का पता आसानी से लगा लेते हैं.
  • डॉ. रिचर्ड लेविटन के अनुसार, साइलेंट हाइपोक्सिया की प्रारंभिक जाँच के लिए पल्स-ऑक्सीमीटर उपयोगी सिद्ध हो सकता है.

कोविड निमोनिया (Covid Pneumonia)

  • यह COVID-19 से संक्रमित लोगों के लिये एक घातक बिमारी है. कोविड निमोनिया के चलते फेफड़ों में ऑक्सीजन स्थानांतरित करने तथा सांस लेने की क्षमता में क्षति पहुँचती है.
  • जब कोई व्यक्ति पर्याप्त ऑक्सीजन लेने में असमर्थ हो जाता है तथा पर्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर नहीं निकाल पाता है, तो निमोनिया से मृत्यु भी हो सकती है.
  • कोविड निमोनिया के गंभीर मामलों में ऑक्सीजन का पर्याप्त संचालन सुनिश्चित करने के लिए वेंटिलेटर की भी जरूरत पड़ती है.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Important international institutions.

Topic : UNICEF “Lost at Home” report

संदर्भ

यूनिसेफ ने हाल ही में ‘लॉस्ट एट होम’ शीर्षक नाम से एक प्रतिवेदन जारी किया.

प्रतिवेदन से सम्बंधित मुख्य तथ्य

  • वर्ष 2019 के दौरान भारत में प्राकृतिक आपदा, आपसी संघर्ष और हिंसा की वजह से करीब 50 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए.  इन विस्थापितों में अबोध बच्चे भी शामिल हैं.
  • भारत के बाद फिलीपींस, बांग्लादेश और चीन का स्थान है.
  • 2019 में करीब 3.3 करोड़ नये विस्थापन रिकॉर्ड किये गये, जिनमें से 2.5 करोड़ विस्थापन प्राकृतिक आपदा के कारण और 85 लाख विस्थापन संघर्ष एवं हिंसा का परिणाम थे.
  • इनमें से 1.2 करोड़ नये विस्थापनों में बच्चे थे, जिनमें से 38 लाख बच्चे संघर्ष एवं हिंसा के कारण विस्थापित हुए और 82 लाख बच्चे मौसम संबंधी आपदाओं के चलते विस्थापित हुए.
  • संघर्ष एवं हिंसा की तुलना में प्राकृतिक आपदाओं के कारण ज्यादा विस्थापन हुए. 2019 में करीब एक करोड़ नये विस्थापन पूर्वी एशिया और प्रशांत (39 प्रतिशत) में हुए, जबकि इतनी ही संख्या (95 लाख) में विस्थापन दक्षिण एशिया में भी हुए.
  • दुनिया भर में आपदा के कारण हुए करीब 82 लाख विस्थापन बच्चों से जुड़े हुए हैं. भारत में 2019 के दौरान नये आंतरिक विस्थापनों की कुल संख्या 50,37,000 रही, जिसमें 50,18,000 प्राकृतिक आपदाओं के कारण और 19,000 लोगों का विस्थापन संघर्ष एवं हिंसा के चलते हुआ.
  • वहीं, फिलीपीन में प्राकृतिक आपदाओं, संघर्ष एवं हिंसा के चलते 42.7 लाख लोग भीतरी रूप से विस्थापित हुए, जबकि बांग्लादेश में यह संख्या 40.8 लाख और चीन में 40.3 लाख थी.

यूनिसेफ

  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund-UNICEF) संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 11 दिसंबर, 1946 को स्थापित गया था.
  • पूर्व में इसे संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (United Nations International Children’s Emergency Fund) कहा जाता था.
  • पोलैंड के चिकित्सक लुडविक रॉश्मन ने यूनिसेफ का गठन करने में प्रमुख भूमिका निभाई.
  • इसे बनाने का प्रमुख उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध में तबाह हुए देशों में बच्चों और माताओं को आपातकालीन स्थिति में भोजन और स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना था.
  • 1950 में यूनिसेफ के दायरे को विकासशील देशों में बच्चों और महिलाओं की दीर्घकालिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विस्तारित किया गया था.
  • 1953 में यह संयुक्त राष्ट्र का एक स्थायी हिस्सा बन गया और इस संगठन के नाम में से ‘अंतर्राष्ट्रीय’ एवं ‘आपातकालीन’ शब्दों को हटा दिया गया.
  • अब इसका नाम संयुक्त राष्ट्र बाल कोष है किंतु मूल संक्षिप्त नाम ‘यूनिसेफ’ को बरकरार रखा गया.
  • हैनेरीटा एच फोरे इसकी वर्तमान प्रमुख हैं.

चिंता का विषय

संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी नाजुक स्थिति को और बुरी बना रही है. इसने कहा कि अपने घरों एवं समुदायों से बाहर हुए ये बच्चे विश्व में सर्वाधिक संवेदनशील लोगों में से एक हैं. कोविड-19 वैश्विक महामारी उनके जीवन के लिए और ज्यादा नुकसान एवं अनिश्चितता लेकर आयी है. शिविर या अनौपचारिक बसावटें अक्सर भीड़-भाड़ वाली होती हैं और उनमें पर्याप्त साफ-सफाई एवं स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव रहता है. सामाजिक दूरी अमूमन संभव नहीं हो पाती, जिससे ऐसी स्थितियां उत्पन्न होती हैं, जो बीमारी के प्रसार के अत्यंत अनुकूल हैं.

आगे की राह

यह आवश्यक है कि सरकारें और मानवीय कार्यों के साझेदारी के साथ काम कर उन्हें सुरक्षित एवं सेहतमंद रखे. रिपोर्ट में आंतरिक रूप से विस्थापित बच्चों के सामने आने वाले खतरों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इनमें बाल श्रम, बाल विवाह, बाल तस्करी आदि शामिल हैं और बच्चों को संरक्षित करने के लिए तत्काल कदम उठाया जाना जरूरी है.


Prelims Vishesh

GI tag for Kashmir Saffron :-

  • कश्मीर घाटी में उपजाए जाने वाले केसर को भौगोलिक संकेतक टैग (GI Tag) मिल गया है.
  • कश्मीरी केसर की विशेषता है कि यह लम्बा और मोटा होता है तथा इसका रंग प्राकृतिक रूप से गहरा और लाल होता है.
  • इसमें अतिशय गंध होती है और इसका प्रसंस्करण बिना रसायन के होता है.
  • कश्मीरी केसर विश्व का एकमात्र ऐसा केसर है जो 1600 मीटर की ऊँचाई पर उगाया जाता है.
  • इसके तीन प्रकार होते हैं – लच्छा, मोगरा और गुच्छी.

KISAN SABHA APP :-

आपूर्ति शृंखला और माल-ढुलाई प्रबंधन तंत्र से किसानों को जोड़ने के लिए CSIR-केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CSIR-CRRI) ने एक पोर्टल निकाला है जिसमें कृषि से जुड़ी हर सूचना दी गई है, चाहे वह फसलों के दाम की बात हो, मंडी व्यापारी की बात हो या चाहे ट्रक चालकों की बात हो जो कभी-कभी मंडियों से खाली लौटते हैं.

Thikri pehra :-

  • कुछ वर्षों पहले काला कच्छा गिरोह के कारण पंजाब और हरियाणा में गाँव-गाँव में सामुदायिक पहरे का प्रचलन हुआ था. ऐसे पहरे को ठिकरी पहरा कहा जाता है.
  • ठिकरी पहरा को इन राज्यों में दो दशकों के बाद दुबारा आरम्भ किया गया है.

Thrissur Pooram :-

  • 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में कोच्चि राज के महाराजा सकदन दम्पूरण के द्वारा आरम्भ किया गया त्रिशूर पूरम उत्सव केरल के सभी उत्सवों की माता कहलाता है.
  • परन्तु COVID-19 के कारण पहली बार यह उत्सव मंदिर के परिसर के भीतर कुछ ही प्रतिभागियों के साथ सम्पन्न हुआ.

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