Sansar डेली करंट अफेयर्स, 06 April 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 06 April 2020


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Welfare schemes for vulnerable sections of the population by the Centre and States and the performance of these schemes; mechanisms, laws, institutions and bodies constituted for the protection and betterment of these vulnerable sections.

Topic : Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act (MGNREGA)

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायाने में हाल ही में मनरेगा कामगारों के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई. इसमें केंद्र और अधिकारियों से देशव्यापी लॉकडाउन की पूरी अवधि के लिए मनरेगा मजदूरों को पूरा वेतन देने का निर्देश देने की मांग की गई है.

पृष्ठभूमि

कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च से 21 दिनों के लिए लॉकडाउन का आदेश लागू किया है जो 14 अप्रैल को समाप्त होगा. मजदूर किसान शक्‍ति संगठन के निखिल डे व अरुणा राय ने यह जनहित याचिका दायर की है. यह याचिका वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दर्ज कराई गई है.

याचिका में क्या है?

  • इसमें कहा गया है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के अंतर्गत 7 करोड़ से अधिक मजदूर पंजीकृत हैं.
  • इसमें ग्रामीण विकास मंत्रालय से निर्देश देने की बात कही गई है कि लॉकडाउन के दौरान जहां संभव हो मनरेगा कामगारों को कार्य करने की अनुमति दी जाए.
  • इसमें रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत 7.6 करोड़ से अधिक मजदूरों के लिए संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत स्वास्थ्य व जीविका के मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग की गई है.

मनरेगा क्या है?

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA- नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था. वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) के नाम में बदलाव किया गया और मनरेगा (MGNREGA) रख दिया गया.
  • ग्रामीण भारत को ‘श्रम की गरिमा’ से परिचित कराने वाला मनरेगा रोज़गार की कानूनी स्तर पर गारंटी देने वाला विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रम है.
  • मनरेगा कार्यक्रम के अंतर्गत हर भारतीय परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता एवं परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान किया गया है. विदित हो कि सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों में मनरेगा के अंतर्गत 150 दिवसों के रोज़गार का प्रावधान है.
  • मनरेगा एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम है. आज की तिथि में इस कार्यक्रम में पूर्णरूप से शहरों की श्रेणी में आने वाले कुछ जिलों को छोड़कर देश के सभी जिलें सम्मिलित हैं. मनरेगा के अंतर्गत मिलने वाले वेतन के निर्धारण का अधिकार केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास निहित है.
  • जनवरी 2009 से केंद्र सरकार सभी राज्यों हेतु अधिसूचित की गई मनरेगा मजदूरी दरों को हर वर्ष संशोधित करती है.

मनरेगा की प्रमुख विशेषताएँ

  • पूर्व की रोज़गार गारंटी योजनाओं के ठीक उलट मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण परिवारों के वयस्क युवाओं को रोज़गार का कानूनी अधिकार दिया जाता है.
  • प्रावधान के अनुसार, मनरेगा लाभार्थियों में 1/3 महिलाओं का होना अनिवार्य है. साथ ही विकलांग एवं अकेली महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहन देने का प्रावधान किया गया है.
  • मनरेगा के अंतर्गत मजदूरी का भुगतान न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अंतर्गत राज्य में खेतिहर मज़दूरों हेतु निर्दिष्ट मजदूरी के अनुसार ही किया जाता है, जब तक कि केंद्र सरकार मजदूरी दर को अधिसूचित नहीं करती और यह 60 रुपए प्रतिदिन से कम नहीं हो सकती.
  • इसके प्रावधान के अनुसार, आवेदन जमा करने के 15 दिनों के अंदर या जिस दिन से कार्य की मांग की जाती है, आवेदक को रोज़गार दिया किया जाएगा.
  • पंचायती राज संस्थानों को मनरेगा के अंतर्गत किये जा रहे कार्यों के नियोजन, कार्यान्वयन और निगरानी के लिए उत्तरदायी बनाया गया है.
  • मनरेगा में सभी कर्मचारियों हेतु बुनियादी सुविधाओं जैसे- पेय जल और प्राथमिक चिकित्सा आदि के प्रावधान भी किये गए हैं.
  • मनरेगा के अतर्गत आर्थिक बोझ केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा साझा किया जाता है.
  • मनरेगा कार्यक्रम के अंतर्गत कुल तीन क्षेत्रों पर धन व्यय किया जाता है, वे क्षेत्र हैं – (1) अकुशल, अर्द्ध-कुशल और कुशल श्रमिकों की मजदूरी (2) आवश्यक सामग्री (3) प्रशासनिक लागत.
  • केंद्र सरकार अकुशल श्रम की लागत का 100%, अर्द्ध-कुशल और कुशल श्रम की लागत का 75%, सामग्री की लागत का 75% तथा प्रशासनिक लागत का 6% वहन करती है, वहीं शेष लागत का वहन राज्य सरकार करती है.

मनरेगा की उपलब्धियाँ

  • मनरेगा विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याण कार्यक्रम है जिसने ग्रामीण श्रम में एक सकारात्मक परिवर्तन को प्रेरित किया है. आँकड़ों की मानें तो कार्यक्रम के प्रारम्भिक 10 सालों में कुल 3.14 लाख करोड़ रुपए खर्च किये गए.
  • मनरेगा कार्यक्रम ने ग्रामीण गरीबी को घटाने हेतु अपने उद्देश्य की पूर्ति करते हुए ग्रामीण क्षेत्र के लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की है.
  • आजीविका और सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से मनरेगा ने ग्रामीण गरीब महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए एक सशक्त साधन के रूप में कार्य किया है. आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 में मनरेगा के जरिये उत्पन्न कुल रोज़गार में से 56 प्रतिशत महिलाओं के लिये था.
  • आँकड़ों को देखा जाए तो वर्ष 2013-14 में मनरेगा के अंतर्गत कार्यरत व्यक्तियों की संख्या 7.95 करोड़ थी जो कि वर्ष 2014-15 में घटकर 6.71 करोड़ रह गई परन्तु उसके पश्चात् यह बढ़कर क्रमशः वर्ष 2015-16 में 7.21 करोड़, वर्ष 2016-17 में 7.65 करोड़ तथा वर्ष 2018-19 में 7.76 करोड़ हो गई.
  • इस कार्यक्रम में कार्यरत व्यक्तियों के आयु-वार आँकड़ों के विश्लेषण से हमें ज्ञात होता है कि वित्त वर्ष 2017-18 के पश्चात् 18-30 वर्ष के आयु वर्ग के श्रमिकों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है.
  • मनरेगा ने आजीविका के अवसरों के सृजन के जरिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान में भी सहायता की है.
  • विदित हो कि मनरेगा को 2015 में वर्ल्ड बैंक ने विश्व के सबसे बड़े लोकनिर्माण कार्यक्रम के रूप में मान्यता दी थी.
  • नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) के एक प्रतिवेदन के अनुसार, गरीब व सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों, जैसे – मज़दूर, आदिवासी, दलित एवं छोटे सीमांत कृषकों के मध्य गरीबी कम करने में मनरेगा की बहुत ही सराहनीय भूमिका रही है.

मनरेगा से संबंधित चुनौतियाँ

  • पिछले कुछ वर्षों में मनरेगा के अंतर्गत आवंटित बजट काफी कम रहा है, जिसका प्रभाव मनरेगा में काम कर रहे कर्मचारियों के वेतन पर पड़ता है. वेतन में कमी के चलते इसका प्रत्यक्ष प्रभाव ग्रामीणों की शक्ति पर पड़ता है और वे अपनी मांग में कमी कर देते हैं.
  • एक आँकड़े से पता चलता है कि मनरेगा के अतर्गत किये जाने वाले 78% भुगतान समय पर नहीं किये जाते और 45% भुगतानों में विलंबित भुगतानों के लिये दिशा-निर्देशों के अनुसार मुआवज़ा सम्मिलित नहीं था, जो अर्जित मजदूरी का 0.05% प्रतिदिन है. आँकड़ों की मानें तो वित्त वर्ष 2017-18 में अदत्त मजदूरी 11,000 करोड़ रुपए थी.
  • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के आधार पर मनरेगा की मजदूरी दर निर्धारित न करने के चलते मजदूरी दर बहुत ही स्थिर हो गई है. आज की तिथि में अधिकांश राज्यों में मनरेगा के अतर्गत मिलने वाली मजदूरी न्यूनतम मजदूरी से बहुत ही कम है. यह स्थिति कमज़ोर वर्गों को वैकल्पिक रोज़गार खोजने को मजबूर कर देता है.
  • वर्ष 2012 में कर्नाटक में मनरेगा से सम्बंधित एक घोटाला चर्चा में आया था जिसमें करीब 10 लाख फर्ज़ी मनरेगा कार्ड निर्मित किये गए थे. इसके चलते सरकार को तकरीबन 600 करोड़ रुपए की हानि हुई थी. भ्रष्टाचार मनरेगा की एक बड़ी चुनौती है जिससे निपटना जरूरी है. ज्यादातर यह देखा जाता है कि इसके अंतर्गत आवंटित धन का अधिकतर भाग मध्यस्थों के पास चला जाता है.

GS Paper 2 Source: Indian Express

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UPSC Syllabus : Issues related to health.

Topic : What is cytokine storm?

संदर्भ

कोविड-19 एक नए प्रकार के कोरोना वायरस से उत्पन्न एक रोग है. इस रोग के कई संभव दुष्प्रभाव हो सकते हैं जिनमें एक साईटकिन स्टॉर्म (cytoine storm) है जिसकी चिंता वैज्ञानिकों को सता रही है.

साईटकिन स्टॉर्म क्या है?

  • साईटकिन स्टॉर्म का अर्थ है प्रतिरोधक कोषों और उनके सक्रिय यौगिकों (cytoine) का आवश्यकता से अधिक उत्पादन.
  • जब किसी फ्लू का संक्रमण होता है तो फेफड़ों में सक्रिय प्रतिरोधक कोषों की बाढ़-सी आ जाती है. इसका परिणाम यह होता है कि फेफड़े में जलन होती है और साथ ही वहाँ तरल पदार्थ जमा होने लगते हैं जिससे साँस लेने में कष्ट होने लगता है. ऐसी परिस्थिति में जीवाणु-जन्य निमोनिया होने का खतरा होता है जोकि रोगी की मृत्यु का कारण बन सकता है.

साईटकिन स्टॉर्म कब होता है?

साईटकिन स्टॉर्म संक्रमण, स्वतः उत्पन्न प्रतिरोध की दशा अथवा अन्य रोगों के कारण अस्तित्व में आता है. इसमें रोगी को तेज बुखार, जलन (ललाई और सूजन), अतिशय थकान एवं उल्टी जैसे लक्षण होते हैं.

यह आवश्यक नहीं है कि साईटकिन स्टॉर्म केवल कोरोना वायरस के रोगियों को ही हो. वास्तव में यह एक प्रतिरोध प्रतिक्रिया है जो किसी भी संक्रामक एवं असंक्रामक रोग में भी होती है.

COVID-19 के रोगी पर साईटकिन स्टॉर्म का प्रभाव

जब किसी को फ्लू के संक्रमण के दौरान साईटकिन स्टॉर्म होता है तो उस समय फेंफडों में सक्रिय प्रतिरोधक कोषों में वृद्धि हो जाती है. परन्तु ये कोष एंटीजेन से लड़ने के स्थान पर फेंफडों में जलन पैदा कर देते हैं और उसके अन्दर तरल पदार्थ बढ़ा कर स्वास की समस्या उत्पन्न कर देते हैं. ज्ञातव्य है कि 1918-20 के स्पेनिश फ्लू में 5 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई थी. इसके पीछे साईटकिन स्टॉर्म का ही हाथ था. H1N1 स्वाइन फ्लू और H5N1 बर्ड फ्लू में भी साईटकिन स्टॉर्म के कारण प्रबल प्रतिरोध क्षमता वाले युवा भी मृत्यु को प्राप्त हुए थे. यद्यपि मौसम-मौसम पर होने वाली फ्लू महामारी अधिकतर कम उम्र और ज्यादा उम्र के लोगों को शिकार बनाती है.


GS Paper 2 Source: Indian Express 

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UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora. What is 1930s Great Depression?

Topic : What is 1930s Great Depression?

संदर्भ

कोरोनो वायरस महामारी के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है. कुछ विशेषज्ञों ने वर्तमान संकट की तुलना 1930 के दशक के महामंदी (Great Depression of 1930s) के साथ करना शुरू कर दिया है

1930 दशक की महामंदी

  • वर्ष 1923 में अमरीका का शेयर बाज़ार चढ़ना शुरू हुआ तो यह चढ़ता ही चला गया. परन्तु 1929 तक आते-आते अस्थिरता के संकेत आने लगे.
  • अंततः वह बुलबुला फुटा और 24 अक्टूबर 1929 को एक दिन मे क़रीब पाँच अरब डॉलर की क्षति पहुँची. अगले दिन भी बाज़ार का गिरना जारी रहा.
  • 29 अक्टूबर 1929 को अमरीकी शेयर बाज़ार और बुरी तरह गिर गया और 14 अरब डॉलर का नुकसान दर्ज किया गया. बाज़ार बंद होने तक 12% की गिरावट देखने को मिली.
  • लाखों लोगों की बचत हवा हो गई. इसे “काले मंगलवार” (Black Tuesday) के नाम से भी जाना जाता है.
  • जुलाई 1932 तक यही सिलसिला चलता रहा जब शेयर बाज़ार 1929 के चरम से 89% नीचे आ चुका था. शेयर बाज़ार को संभलने में सालों लग गये.

महामंदी के कारण

  • 1930 की महामंदी का कोई एक कारण नहीं गिनाया जा सकता, परन्तु बैंको का विफल होना और शेयर बाज़ार की भारी गिरावट को प्रमुख कारण माना जाता है जिसमें शेयरधारकों के 40 अरब डॉलरों का सफ़ाया हो गया.
  • इसके अतिरिक्त 9000 बैंकों का दिवाला निकल गया. बैंक में जमा राशि का बीमा न होने से लोगों की पूंजी का सफाया हो गया. जो बैंक बचे रहे उन्होने पैसे का लेन-देन समाप्त कर दिया. लोगों ने ख़रीदारी बंद कर दी जिससे कंपनियाँ बंद होने लगीं, नौकरियों से लोगों को हाथ धोना पड़ा.
  • आर्थिक मंदी के इस वातावरण में अमरीकी सरकार ने अपनी कंपनियों के संरक्षण के लिए हॉली स्मूट टैरिफ़ लागू किया जिससे आयात-कर बहुत बढ़ गया. अन्य देशों ने भी जवाबी कार्रवाई की.

महामंदी का दुनिया पर प्रभाव

  • 1930 की महामंदी का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा. ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था कृषि और औद्योगिक उत्पादों के निर्यात पर निर्भर थी अतः उस पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा.
  • कनाडा में औद्योगिक उत्पादन 58 प्रतिशत कम हो गया और राष्ट्रीय आय 55 प्रतिशत गिर गई.
  • फ़्रांस भी बहुत हद तक आत्मनिर्भर था इसलिए उस पर महामंदी का असर कम हुआ परन्तु फिर भी बेरोज़गारी बढ़ने से दंगे हुए और समाजवादी पॉपुलर फ़्रंट का उदय हुआ.
  • जर्मनी पर गहरा असर पड़ा क्योंकि जिस अमरीकी ऋण से अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण हो रहा था वह मिलना बंद हो गया.
  • चिली, बोलिविया और पेरू जैसे लातीनी अमरीकी देशों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. एक असर ये हुआ कि वहां फ़ासीवादी आंदोलन शुरु हो गए.
  • पूंजीवादी शक्तियों से स्वयं को दूर रखने की कोशिश में सोवियत संघ पर इस महामंदी का असर बहुत कम हुआ और उसे मार्क्सवाद के सिद्धांत को सही साबित करने का मौक़ा मिल गया.
  • उधर पूर्वी एशिया में भी इसका असर कम हुआ.

GS Paper 3 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Achievements of Indians in science & technology; indigenization of technology and developing new technology, indigenization of technology and developing new technology.

Topic : National Innovation Foundation

संदर्भ

ऐसे समय में जब देश कोरोना महामारी के कारण बहुत बड़े संकट का सामना कर रहा है, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत एक स्‍वायत्‍त संस्‍थान राष्‍ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्‍ठान (NIF) ने नवाचारी नागरिकों को अपने चैलेंज कोविड-19 कॉम्‍पीटिशन (सी3) में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है.

राष्‍ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्‍ठान (NIF) क्या है?

  • राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग का स्वायत्तशासी संस्थान है.
  • इसका मुख्यालय भारत के गुजरात राज्य के गांधीनगर शहर में स्थित है.
  • हनी बी नेटवर्क के दर्शन पर आधारित व संस्थापित राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान (रानप्र) ने मार्च, 2000 में तृणमूल प्रौद्योगिकीय नवप्रवर्तनों एवं विशिष्ठ पारंपरिक ज्ञान को सशक्त करने की राष्ट्रीय पहल के रूप में कार्य करना आरंभ किया.
  • एनआईएफ एक अनूठा संस्थान है,जो नागरिकों द्वारा संचालित समावेशी और मूलभूत नवाचारों की जांच करने और उन्‍हें सुगम बनाने पर प्रबल रूप से ध्‍यान देता और अनुभव रखता है.
  • इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकीय नवप्रवर्तकों के लिए नीतियों के विस्तार और सांस्थानिक फैलाव के माध्यम से एक सृजनात्मक एवं ज्ञान-आधारित समाज का सृजन करना है.
  • NIF जमीन से जुड़े नवप्रवर्तकों एवं विशिष्ठ पारम्परिक ज्ञानधारकों को पहचान दिलाने के साथ उन्हें सम्मानित और पुरस्कृत करता है.
  • दस्तावेजीकरण, मूल्य परिवर्धन, बौद्धिक संपदा प्रबंधन के साथ नवप्रवर्तनों के व्यवसायिक व गैर-व्यवसायिक प्रसार के जरिए राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान भारत को नवप्रवर्तनशील राष्ट्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है.

आगे की राह

विशेषकर लॉकडाउन के दौरान घरों में मौजूद लोगों की उपयोगी भागीदारी, पोषण और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु स्‍वस्‍थ भोजन के लिए भी विचार आमंत्रित किए गए इस पहल से केवल जागरूकता ही उत्‍पन्‍न नहीं होगी, अपितु समाधान उपलब्‍ध और कार्यान्वित कराने में समाज के भिन्‍न-भिन्‍न पृष्‍ठभूमिवाले विविध वर्गों की निकट भागीदारी भी संभव होगी. 


GS Paper 3 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Awareness in space.

Topic : Artemis Program

संदर्भ

हाल ही में नासा ने चांद पर अपने बेस कैंप (Base Camp) के लिए मानव भेजने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है.

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नासा का प्रस्ताव

  • नासा अपने आर्टेमिस (Artemis) कार्यक्रम पर काम कर रहा है जिसका लक्ष्य मनुष्य को 2024 तक चांद पर पहुंचाना है. नासा ने हाल ही में अमेरिका के नेशनल स्पेस काउंसिल को दो अप्रैल को एक रिपोर्ट जमा की है. विदित हो कि यह परिषद राष्ट्रपति के लिए सलाहकार समूह की तरह काम करती है जिसकी अध्यक्षता उप राष्ट्रपति करते हैं.
  • शुरुआती योजना में वैज्ञानिकों को वहां एक-दो महीने तक ठहराने की योजना है जिस दौरान वे चांद और ब्रह्माण्ड के बारे में अध्ययन करेंगे. नासा के मुताबिक दीर्घावधि में लैंडिंग पैड और रेडिएशन से बचाव की व्यवस्था के अतिरिक्त ऊर्जा, वेस्ट प्रबंधन, कम्यूनिकेशन जैसी जरूरतों पर काम होगा.

आर्टेमिस अभियान क्या है?

  • ARTEMIS का पूरा नाम है – Acceleration, Reconnection, Turbulence and Electrodynamics of the Moon’s Interaction with the Sun.
  • इस अभियान में दो अन्तरिक्षयान छोड़े गये थे – P1 और शुरू-शुरू में ये दोनों अन्तरिक्षयान पृथ्वी के प्रकाशपुंज (aurora) का अध्ययन करने के लिए पृथ्वी की कक्षा में छोड़े गये थे. उस समय इस अभियान का नाम थेमिस था. बाद में इन दोनों अन्तरिक्षयानों को चंद्रमा की ओर मोड़ दिया गया जिससे कि ये अपनी शक्ति खोने से बच सकें.
  • नए अभियान से वैज्ञानिक यह आशा करते हैं कि वे इन विषयों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे – चंद्रमा और पृथ्वी के लेग्रेंज बिंदु, सौर पवन, चंद्रमा का प्लाज्मा वेक और पृथ्वी के चुम्बकीय पुच्छ तथा चंद्रमा की अपनी दुर्बल चुम्बकीयता पर सौर पवन का प्रभाव.

Prelims Vishesh

Sections 269 and 270 of the IPC :-

  • कोरोना वायरस रोग के संदर्भ में आजकल भारतीय दंड संहिता की धारा 269 एवं 270 की चर्चा हो रही है.
  • ज्ञातव्य है कि ये दो धाराएं भारतीय दंड संहिता के अध्याय XIV में वर्णित हैं.
  • इनमें धारा 269 जानलेवा रोग के संक्रमन को फैलाने विषयक लापारवाही से सम्बंधित है.
  • वहीं धारा 270 ऐसे रोग के प्रसार के लिए किये गये दुष्टतापूर्ण कार्य से सम्बंधित है.
  • इन धाराओं के लिए क्रमशः छह महीने की जेल/जुर्माने तथा दो वर्ष की जेल/जुर्माने का प्रावधान है.

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