Sansar डेली करंट अफेयर्स, 05 August 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 05 August 2019


GS Paper  1 Source: PIB

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Syllabus : Salient features of Indian Society, Diversity of India.

Table of Contents

Topic : Commission to Examine Sub Categorization of other Backward Classes

संदर्भ

केन्द्रीय मन्त्रिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय विवाद निष्पादन समझौता संधि (United Nations Convention on International Settlement Agreements – UNISA) पर भारत के द्वारा हस्ताक्षर किये जाने का अनुमोदन कर दिया है. विदित हो कि यह संधि उन समझौतों के बारे में है जो मध्यस्थता के माध्यम से किए जाते हैं.

UNISA क्या है?

UNISA संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 20 दिसम्बर, 2018 को अंगीकृत की गई एक संधि है जो उन समझौतों से सम्बन्ध रखती है जिनका निष्पादन मध्यस्थता से हुआ है. इस संधि को “सिंगापुर मध्यस्थता संधि” भी कहते हैं.

संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय विवाद निष्पादन समझौता संधि के मुख्य तत्त्व

  • यह संधि मध्यस्थता के माध्यम से विवादों के निष्पादन के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय मंच का प्रावधान करती है जहाँ सम्बंधित पक्ष उसी प्रकार समझौता कर सकते हैं जिस प्रकार न्यू यॉर्क संधि में पंचाट के माध्यम से की जाती है. विदित हो कि न्यू यॉर्क संधि वह संधि है जो न्यू यॉर्क में 1958 में अपनाई गई थी और जिसका उद्देश्य विदेशी पंचाट निर्णयों को मान्यता देना और उन्हें लागू करवाना था.
  • संधि में ऐसे दो आधार बताये गये हैं जिन पर कोई न्यायालय स्वतः संज्ञान लेते हुए राहत देने से मना कर सकता है. यह आधार हैं – विवाद का मध्यस्थता द्वारा निष्पादन के योग्य नहीं होना और इसका सार्वजनिक नीति के विरुद्ध होना.

लाभ

भारत के द्वारा इस संधि पर हस्ताक्षर होने से निवेशकों के भरोसे में बढ़ोतरी होगी और विदेशी निवेशक आश्वस्त हो सकेंगे कि भारत वैकल्पिक विवाद निष्पादन (Alternative Dispute Resolution – ADR) से सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय पद्धतियों का अनुसरण करेगा.

ADR का महत्त्व

यह अनुभव किया जाता रहा है कि वैकल्पिक विवाद निष्पादन (ADR) का एक विश्वसनीय और सक्रिय प्रणाली होना  भारत जैसे तेजी से विकास करते हुए देश के लिए अत्यावश्यक है. व्यवसायिक विवादों को शीघ्र से शीघ्र निष्पादित करना आवश्यक है, परन्तु इसके लिए मुकदमेबाजी सबसे बुरा उपाय है. हम लोग जानते ही हैं कि भारतीय न्याय पद्धति न्याय में बहुत लम्बा समय लेती है और इसी बीच विवादों का सही समय पर निष्पादन नहीं होने से व्यवसाय को क्षति पहुँचती है. अतः बातचीत, मध्यस्थता, समझौता और पंचाट आदि वैकल्पिक विवाद निष्पादन की प्रक्रियाएँ आवश्यक हो जाती हैं.


GS Paper  2 Source: The Hindu

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Syllabus : Appointment to various Constitutional posts, powers, functions and responsibilities of various Constitutional Bodies.

Topic : Cabinet approves increasing strength of Supreme Court judges

संदर्भ

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.

आवश्यकता

सर्वोच्च न्यायालय में 59,331 वाद लम्बित चल रहे हैं. न्यायाधीशों के अभाव के कारण कानूनी विषयों से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण वादों में निर्णय करने के लिए संविधान बेंच गठित करने में भी बाधा खड़ी हो रही है.

पृष्ठभूमि

सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) अधिनियम, 1956 में मूलतः अधिकतम 10 न्यायाधीशों (मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर) के पदों का प्रावधान किया गया था. कालांतर में संशोधनों यह संख्या 1960 में 13 और 1977 में 17 कर दी गई थी. 1988 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 26 कर दी गई थी. तत्पश्चात् 2009 में यह संख्या बढ़ाकर 31 कर दी गई जो अभी तक चल रही थी.

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को कौन नियुक्त करता है?

भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है. इस अनुच्छेद के अनुसार “राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से, जिनसे परामर्श करना वह आवश्यक समझे, परामर्श करने के पश्चात् उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा.” इसी अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश से जरुर परामर्श किया जाएगा. संविधान में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के सम्बन्ध में अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है. पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किये जाने की परम्परा रही है. हालाँकि संविधान इस पर खामोश है. पर इसके दो अपवाद भी हैं अर्थात् तीन बार वरिष्ठता की परम्परा का पालन नहीं किया गया. एक बार स्वास्थ्यगत कारण व दो बार कुछ राजनीतिक घटनाक्रम के कारण ऐसा किया गया. 6 अक्टूबर, 1993 को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए एक निर्णय के अनुसार मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता के सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए.

नियुक्ति में कॉलेजियम की व्यवस्था

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को एक कॉलेजियम द्वारा अनुशंसा की जाती है. राष्ट्रपति चाहे तो अनुशंसा को स्वीकार भी कर सकता है अथवा अस्वीकार भी. ydiयदि वह अस्वीकार करता है तो अनुशंसा वापस कॉलेजियम को लौट जाती है. यदि कॉलेजियम द्वारा अपनी अनुशंसा राष्ट्रपति को भेजता है तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकार करना पड़ता है.

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएँ (Eligibility)

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की पात्रता का वर्णन संविधान की धारा 124 में किया गया है.

सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश वही व्यक्ति हो सकता है, जो –

  1. भारत का नागरिक हो
  2. कम-से-कम 5 वर्षों तक किसी उच्चन्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो
  3. कम-से-कम 10 वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय में वकालत कर चुका हो या
  4. राष्ट्रपति के विचार में सुविख्यात विधिवेत्ता (कानूनज्ञाता) हो.

GS Paper  2 Source: The Hindu

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Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.

Topic : Inter-state River Water Disputes (Amendment) Bill

संदर्भ

पिछले दिनों लोक सभा में अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित हो गया. इस विधेयक के द्वारा अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 को इस ध्येय से संशोधित किया जा रहा है कि राज्यों के बीच नदी जल को लेकर होने वाले विवादों से सम्बन्धित मुकदमों को एकरूप बनाया जाए और इस विषय में उपलब्ध वर्तमान संस्थागत ढाँचे को सुदृढ़ किया जाए.

विधेयक के मुख्य प्रावधान

  • विधेयक के अनुसार केंद्र सरकार अंतरराज्यीय नदी जल विवादों को प्रेमपूर्वक निष्पादित करने के लिए एक विवाद समाधान समिति (Disputes Resolution Committee – DRC) का गठन करेगी.
  • DRC केंद्र सरकार को एक वर्ष के अन्दर अपना प्रतिवेदन समर्पित करेगी. यह अवधि छह महीने तक बधाई जा सकती है.
  • केंद्र सरकार DRC के लिए संगत क्षेत्रों से सदस्यों का चुनाव करेगी.
  • विधेयक में एक अंतरराज्यीय नदी जल विवाद पंचाट (Inter-State River Water Disputes Tribunal) के गठन का प्रस्ताव है जो उन जल विवादों पर निर्णय सुनाएगा जिनका समाधान DRC से नहीं हो सका है. इस पंचाट के एक से अधिक बेंच हो सकते हैं. वर्तमान में जो पंचाट हैं उन सभी को भंग कर दिया जाएगा और उनके पास जल विवाद के जो लंबित मामले हैं, उन सभी को नव-गठित पंचाट को सौंप दिया जाएगा.
  • इस पंचाट में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम छह सदस्य होंगे. ये सदस्य भारत के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में से नामित किये जाएँगे.

मूल अधनियम में क्या कमी थी?

  • अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 में नदी जल विवादों में न्याय-निर्णय देने के लिए कोई नियत समय-सीमा नहीं दी गई थी. न्याय-निर्णय के लिए नियत समय-सीमा नहीं होने के कारण पंचाट के द्वारा वादों के निष्पादन की गति अत्यंत धीमी रह गई.
  • मूल अधिनियम में अध्यक्ष और सदस्यों के लिए अधिकतम आयु सीमा भी नहीं निर्धारित की गई थी.
  • पंचाट में कोई रिक्ति हो जाने पर काम रुक जाया करता था.
  • मूल अधिनियम में पंचाट द्वारा छापे जाने वाले प्रतिवेदन के लिए भी कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई थी.
  • नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 अब से पारित हुआ तब से प्रभावीन ही रह गया जबकि इसका काम जल संसाधन विकास में अंतर्राज्यीय सहयोग को सुगम बनाना था.
  • धरातल पर उपलब्ध जल का नियंत्रण केन्द्रीय जल आयोग (CWC) के पास है जबकि भूजल का नियंत्रण भारतीय केन्द्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) करता है. ये दोनों निकाय स्वतंत्र रूप से काम करते हैं और जल प्रबंधन को लेकर राज्य सरकारों के साथ विचार विमर्श के लिए कोई सामान्य मंच नहीं है.

अंतरराज्यीय नदी जल विवादों से सम्बंधित संवैधानिक प्रावधान

  1. राज्य सूची में क्रमांक 17 (Entry 17) पर जल का वर्णन है अर्थात् जल राज्य सूची में आता है. यहाँ “जल” का तात्पर्य है – जल आपूर्ति, सिंचाई, नहर, जल निकासी, बाँध, जल भंडारण एवं पनबिजली.
  2. संविधान की केन्द्रीय सूची के क्रमांक 56 (Entry 56) पर केंद्र सरकार को यह शक्ति दी गई है कि वह लोकहित में संसद द्वारा घोषित सीमा तक अंतरराज्यीय नदियों और नदी घाटियों का अधिनियमन और विकास के लिए कार्य करेगी.
  3. धारा 262 : संविधान की इस धारा के अंतर्गत किसी अंतरराज्यीय नदी अथवा नदी घाटी के जल के उपयोग, वितरण अथवा नियंत्रण के विषय में उसे विवाद अथवा शिकायत के लिए न्यायनिर्णय हेतु संसद कानून बनाकर प्रावधान करेगी. (उपवाक्य 1 – Clause 1)
  4. साथ ही संसद कानून बनाकर यह प्रावधान कर सकती है कि ऐसे विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय अथवा कोई अन्य न्यायालय का क्षेत्राधिकार नहीं होगा. (उपवाक्य 2 – Clause 2)

आगे की राह

अंतरराज्यीय नदी जल विवादों के न्याय-निर्णय हेतु एक अकेला और स्थायी पंचाट स्थापित करने का केंद्र द्वारा दिया गया प्रस्ताव नदी जल विवादों के निपटारे की प्रणाली में एकरूपता लाने की दिशा में एक बड़ा कदम है. परन्तु इस एकमात्र कदम से पूर्ण समाधान नहीं होगा क्योंकि समस्याएँ कई प्रकार की हैं, जैसे – विधिगत, प्रशासनिक, संवैधानिक और राजनीतिक. सहकारी संघवाद के ढाँचे को सशक्त बनाने के लिए यह आवश्यक है कि विवाद संवाद के माध्यम से सुलझाए जाएँ और इसमें राजनीतिक अवसरवादिता से बचा जाए. सहयोग की भावना से कार्य करने वाले एक सशक्त एवं पारदर्शी सांस्थिक ढाँचा होना आज समय की आवश्यकता है.


GS Paper  2 Source: PIB

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Syllabus : Issues related to health.

Topic : National Digital Health Blueprint

संदर्भ

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सार्वजनिक रूप से उपलभ्य राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी (National Digital Health Eco-System) की रचना के उद्देश्य से पिछले दिनों राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य कार्ययोजना (National Digital Health Blueprint – NDHB) निर्गत की है. विदित हो कि इस मंत्रालय ने इस विषय में विभिन्न हितधारकों से मन्तव्य माँगे थे.

NDHB के मुख्य तत्त्व

  • स्वास्थ्य अभिलेखों में कृत्रिम बुद्धि के प्रयोग के निमित्त गठित राष्ट्रीय स्वास्थ्य संग्रह (National Health Stack NHS) के कार्यान्वयन के लिए क्या-क्या कार्य करने होंगे इस विषय में यह कार्ययोजना खाका प्रस्तुत करती है.
  • इसमें प्रस्ताव दिया गया है कि सरकार के “डाटा – सर्वजन हिताय” के वृहत्तर एजेंडे के अनुरूप अनेक डाटाबेसों को एक दूसरे से जोड़ा जाए और एक अधिक बड़ा और विस्तृत डाटा तैयार किया जाए जिसका सदुपयोग सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के अस्पतालों, बीमा कम्पनियों, ऐपों और शोधकार्यों में हो सके.
  • कार्ययोजना में एक ऐसे राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन का प्रस्ताव है जो विशुद्ध रूप से एक सरकारी संगठन होगा. यह पूर्ण रूप से स्वायत्त होगा और इसमें UIDAI और GSTN जैसे राष्ट्रीय सूचना उपयोगी प्रतिष्ठानों की कुछ विशेषताएँ समाहित होंगी.

राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य कार्ययोजना के उद्देश्य

  1. अस्पताल आदि चिकित्सा केन्द्रों, चिकित्सा-कर्मियों, स्वास्थ्य-कर्मियों और दवा निर्माताओं के विषय में राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय स्तरों पर पंजियाँ तैयार करना जो चिकित्सा से सम्बंधित जानकारी के एकल स्रोत के रूप में कार्य करें.
  2. लोगों के व्यक्तिगत स्वास्थ्य से सम्बंधित अभिलेखों को संरक्षित करने के लिए ऐसी प्रणाली बनाना जो जनसाधारण एवं सेवा प्रदाताओं के लिए खुली हो. इसके लिए सम्बंधित नागरिक की सहमति ली जायेगी.
  3. इस कार्ययोजना का उद्देश्य इस बात को बढ़ावा देना है कि राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी के अंतर्गत कार्यरत सभी लोग ऐसे मानकों को अपनाएँ जिसका पता सब को हो.
  4. स्वास्थ्य से सम्बंधित डाटा विश्लेषण और चिकित्सा अनुसंधान को प्रोत्साहन देना.

NHS क्या है?

  1. नीति आयोग ने पिछले वर्ष राष्ट्रीय स्वास्थ्य संग्रह (National Health Stack) बनाने का निर्णय लिया है जिसमें देश के सभी नागरिकों के स्वास्थ्य के विषय में सूचनाएँ संगृहीत होंगी.
  2. इस संग्रह में वर्णित सूचनाओं लोगों के स्वास्थ्य के प्रबंधन में सुविधा होगी.
  3. हाल ही में ऐसा देखा गया है कि भारत में असंक्रामक रोग बढ़ रहे हैं और साथ ही उपचार का खर्च सामान्य लोगों के बस के बाहर होता जा रहा है.
  4. NHS में वर्णित सूचनाओं के फलस्वरूप रोगियों कोविभिन्न स्तरों, यथा – प्राथमिक,माध्यमिक और तृतीयक – पर उपचार कराने में सुविधा होगी.
  5. इस कार्यक्रम से गरीब से अमीर सभी प्रकार के लोगों के स्वास्थ्य पर आने वाला खर्च बहुत ही घट जायेगा तथा नकद-रहित उपचार प्रणाली सुदृढ़ होगी.

GS Paper  3 Source: The Hindu

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Syllabus : Awareness in space.

Topic : India’s Anti-Satellite (ASAT) missile

संदर्भ

विशेषज्ञों ने बताया है कि 27 मार्च, 2019 को भारत द्वारा मिशन शक्ति के अंतर्गत अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित उपग्रह-नाशक ASAT नामक मिसाइल के द्वारा एक उपग्रह को नष्ट करने के उपरान्त उत्पादित मलबे का 40% भाग अभी तक क्षरित नहीं हुआ है. विदित हो कि भारत का दावा था कि नष्ट किए गये उपग्रह का मलबा 45 दिनों के भीतर क्षरित हो जाएगा.

मिशन शक्ति क्या है?

  • मिशन शक्ति एक संयुक्त कार्यक्रम है जिसका संचालन रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मिलकर चलाया है.
  • इस अभियान के अंतर्गत एक उपग्रह नाशक (anti-satellite – A-SAT) अस्त्र छोड़ा गया जिसका लक्ष्य भारत का ही एक ऐसा उपग्रह था जो अब काम में नहीं आने वाला था.
  • मिशन शक्ति का संचालन ओडिशा के बालासोर में स्थित DRDO के अधीक्षण स्थल से हुआ.

माहात्म्य

ऐसी विशेषज्ञ और आधुनिक क्षमता प्राप्त करने वाला भारत विश्व का मात्र चौथा देश है और इसका यह प्रयास पूर्णतः स्वदेशी है. अभी तक केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही अन्तरिक्ष में स्थित किसी जीवंत लक्ष्य को भेदने की शक्ति थी.

आवश्यकता

  • समय के साथ-साथ अन्तरिक्ष भी एक युद्ध क्षेत्र में रूपांतरित हो रहा है. अतः अन्तरिक्ष में स्थित शत्रु उपग्रहों के संहार की क्षमता अत्यावश्यक हो गयी है. ऐसे में एक उपग्रह नाशक (A-SAT) हथियार से अन्तरिक्ष तक भेदने में भारत की सफलता का बड़ा माहात्म्य है.
  • ध्यान देने योग्य बात है कि अभी तक किसी देश ने किसी अन्य देश के उपग्रह पर A-SAT नहीं चलाया है. सभी देशों ने अपने ही बेकार पड़े उपग्रहों को लक्ष्य बनाकर A-SAT का सञ्चालन किया है जिससे विश्व को पता लग सके कि उनके पास अन्तरिक्ष में युद्ध करने की क्षमता है.
  • आगामी कुछ दशकों में सेनाओं के लिए A-SAT मिसाइल सबसे शक्तिशाली सैन्य अस्त्र बनने वाला है.

अन्तरिक्ष मलबा क्या होता है?

विदित हो कि अन्तरिक्षीय मलबा की समस्या बढ़ती ही जा रही है और आज की तिथि में हमारी पृथ्वी के परिक्रमा-पथ में 7,500 टन फ़ालतू हार्डवेयर घूम रहे हैं. ये फ़ालतू हार्डवेयर हैं – पुराने राकेट, निष्क्रीय अंतरिक्षयान, पेंचें, पेंट के चकत्ते आदि. ये मलबे बुलेट से अधिक तेजी के साथ पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं. आज की स्थिति यह है कि जब कोई उपग्रह छोड़ा जाता है तो उसको छह लाख मलबे के टुकड़ों से बचना होता है. जैसे-जैसे मलबा बढ़ रहा है, वैसे-वैसे अन्तरिक्ष यानों पर होने वाला खतरा भी बढ़ता जा रहा है, विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष केन्द्रों, अन्तरिक्ष शटलों, उपग्रहों, अन्तरिक्षयानों आदि के लिए.

अन्तरिक्ष के मलबे के निपटारे के लिए तकनीकें

अन्तरिक्ष में घूमते हुए मलबों के लिए विभिन्न देश कुछ उपाय कर रहे हैं. इन उपायों में प्रमुख हैं – नासा का अन्तरिक्ष मलबा सेंसर (Nasa’s Space Debris Sensor), रिमूव डेबरी उपग्रह, डी-ऑर्बिट मिशन (Deorbit mission) आदि.

नासा का अन्तरिक्ष मलबा सेंसर (Nasa’s Space Debris Sensor) :- NASA का अन्तरिक्ष मलबा सेंटर एक अंतर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष केंद्र पर लगाया गया है. यह सेन्सर मिलीमीटर के आकार के भी टुकड़ों का पता लगा लेता है और यह बता देता है कि मलबे के किसी टुकड़े का आकार, घनत्व, वेग और परिक्रमा पथ क्या है. साथ ही यह बता देता है कि यह टुकड़ा अन्तरिक्ष से आया है या मनुष्य द्वारा निर्मित उपग्रह का अंश है.

रिमूव डेबरी उपग्रह :- RemoveDebris नाम की परियोजना यूरोपियन यूनियन द्वारा चलाई जा रही है. इस परियोजना का उद्देश्य अन्तरिक्ष मलबे को निबटाने से सम्बंधित तकनीकों का परीक्षण करना है जिससे कि आगे चलकर अन्तरिक्ष को ऐसे मलबों से कुशलतापूर्वक मुक्त किया जा सके. योजना के अंतर्गत RemoveSAT नामक एक अति-लघु उपग्रह छोड़ा जायेगा जो अन्तरिक्ष में जाकर वहाँ के मलबों को पकड़ेगा और परिक्रमा पथ से अलग कर देगा.

डी-ऑर्बिट मिशन (Deorbit mission) :- डी-ऑर्बिट मिशन का कार्य पथभ्रष्ट अन्तरिक्षीय मलबे को पकड़ना है. इनके अतिरिक्त और तकनीकें भी अपनाई जा रही हैं जिनमें एक तकनीक ऐसी भी है जिससे शक्तिशाली लेजर किरण छोड़कर मलबे के पिंड को नष्ट किया जा सकता है.

पृथ्वी की निम्न कक्षा (LOW EARTH ORBIT) क्या है?

पृथ्वी की जो कक्षा 2,000 किमी. की ऊँचाई तक होती है उसे निम्न कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) कहा जाता है. यहाँ से कोई उपग्रह धरातल और समुद्री सतह में चल रही गतिविधियों पर नज़र रख सकता है. ऐसे उपग्रह का प्रयोग जासूसी के लिए हो सकता है. अतः उससे युद्ध के समय देश की सुरक्षा पर गंभीर खतरा हो सकता है.

भारत को ऐसी क्षमता की आवश्यकता क्यों?

  • भारत एक ऐसा देश है जिसके पास बहुत दिनों से और बहुत तेजी से बढ़ते हुए अन्तरिक्ष कार्यक्रम हैं. पिछले पाँच वर्षों में इसमें देखने योग्य बढ़ोतरी हुई है. स्मरणीय है कि भारत ने मंगल ग्रह परमंगलयान नामक अन्तरिक्षयान सफलतापूर्वक भेजा था. इसके पश्चात् सरकार ने गगनयान अभियान को भी स्वीकृति दे दी है, जो भारतीयों को बाह्य अन्तरिक्ष में ले जाएगा.
  • भारत ने 102 अन्तरिक्षयान अभियान हाथ में लिए हैं जिनके अंतर्गत अग्रलिखित प्रकार के उपग्रह आते हैं – संचार उपग्रह, पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह, प्रायोगिक उपग्रह, नौसैनिक उपग्रह, वैज्ञानिक शोध और खोज के उपग्रह, शैक्षणिक उपग्रह और अन्य छोटे-छोटे उपग्रह.
  • भारत का अन्तरिक्ष कार्यक्रम देश की सुरक्षा, आर्थिक प्रगति एवं सामाजिक अवसरंचना की रीढ़ है.
  • मिशन शक्ति यह सत्यापित करने के लिए संचालित हुई कि भारत के पास अपनी अन्तरिक्षीय सम्पदाओं को सुरक्षित रखने की क्षमता है. विदित हो कि देश के जो हित बाह्य अन्तरिक्ष में हैं उनकी रक्षा का दायित्व भारत सरकार पर ही है.

निहितार्थ

  • मिशन शक्ति का MTCR (Missile Technology Control Regime) अथवा अन्य ऐसी संधियों में भारत की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
  • A-SAT तकनीक प्राप्त हो जाने से आशा की जाती है कि भविष्य में भारत इसका प्रयोग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिए भी कर सकेगा.

आगे की राह

बाह्य अन्तरिक्ष में हथियारों की होड़ ऐसी वस्तु है जिसको प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए. भारत की यह नीति रही है कि अन्तरिक्ष का उपयोग मात्र शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होना चाहिए. भारत बाह्य अन्तरिक्ष (outer space) को रणभूमि बनाने के विरुद्ध रहा है तथा अन्तरिक्ष में स्थित संपदाओं की रक्षा और सुरक्षा के लिए जो भी अंतर्राष्ट्रीय प्रयास होते हैं उसका वह पक्षधर रहा है.

भारत इस बात पर विश्वास रखता है कि बाह्य अन्तरिक्ष मानव मात्र के लिए एक विरासत है जिसपर सभी का अधिकार है. जो देश अन्तरिक्ष में उपग्रह छोड़ते हैं, उनका यह कर्तव्य है कि वे अन्तरिक्ष तकनीक एवं उसके अनुप्रयोगों का लाभ पूरी मानवता तक पहुँचाने में सहायता करेंगी.

बाह्य अन्तरिक्ष में हथियारों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कानून क्या है?

  • अमेरिका, रूस और चीन समेत सभी देशों ने 1967 की आउटर अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) पर हस्ताक्षर किए थे.
  • भारत ने इस संधि पर1982 में हस्ताक्षर किये थे.
  • समझौते के अनुसार कोई भी देश अंतरिक्ष में क्षेत्राधिकार नहीं दिखा सकता.
  • यह समझौता किसी भी देश को पृथ्वी की कक्षा या उससे बाहर परमाणु हथियार या हथियार रखने से रोकता है.
  • चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों, जहाँ मानव की पहुँच हो सकती है, के संदर्भ में यह संधि और भी कठोर है. इन ग्रहों में कोई भी देश सैन्य अड्डों का निर्माण नहीं कर सकता है या किसी भी प्रकार का सैन्य संचालन नहीं कर सकता है या किसी अन्य प्रकार के पारंपरिक हथियारों का परीक्षण नहीं कर सकता है.
  • पर साथ ही साथ यह संधि बैलिस्टिक मिसाइलों के अंतर-महाद्वीपीय प्रयोग को प्रतिबंधित नहीं करती है जो लक्ष्य को भेदने के लिए पृथ्वी की कक्षा से बाहर भी चले जाते हैं.
  • इस संधि की इस चूक का लाभ उठाकर कोई देश अन्तरिक्ष का युद्ध के लिए उपयोग कर सकता है.

Prelims Vishesh

Shiwala Teja Singh Temple :-

  • पिछले दिनों विगत 72 वर्षों से बंद पाकिस्तान के सियालकोट में स्थित 1,000 वर्ष पुराने शिवाला तेजा सिंह मंदिर भक्तों के लिए खोल दिया गया है.
  • भगवान् शिव को समर्पित शिवाला तेजा सिंह मंदिर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जिसे सरदार तेजा सिंह ने बनवाया था.

Infosys opens cyber defence centre in Romania :-

भारतीय सॉफ्टवेर कम्पनी इनफ़ोसिस ने पिछले दिनों घोषणा की है कि वह रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में एक आधुनिकतम साइबर सुरक्षा केंद्र खोलेगी.

What is Non-pneumatic Anti-Shock Garment (NASG)? :-

वैज्ञानिकों ने एक ऐसा अ-वायव्य सदमा-विरोधी वस्त्र तैयार किया है जिसका प्रयोग प्राथमिक उपचार के रूप में उन स्त्रियों को स्थिर करने में हो सकता है जिन्हें प्रसूति से सम्बंधित रक्तस्राव हुआ है और जो सदमे की अवस्था में हैं.


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