Sansar डेली करंट अफेयर्स, 04 June 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 04 June 2020


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Table of Contents

Topic : Petition on nation’s name

संदर्भ

देश के अंग्रेजी नाम इंडिया को “भारत” में बदलने की माँग वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने विचार करने से इनकार कर दिया.

याचिका में क्या कहा गया है?

  • यह याचिका नमह (Namah) नामक दिल्ली के किसान की ओर से न्यायालय में डाली गई है और संविधान के अनुच्छेद 1 में बदलाव की माँग की गई है. याचिकाकर्ता का कहना है कि ‘इंडिया’ को हटाकर ‘भारत’ नाम किया जाना चाहिए क्योंकि इंडिया नाम अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक है.
  • देश का नाम भारत करने से लोगों में राष्ट्रीय भावना बढ़ेगी और देश को अलग पहचान मिलेगी.
  • याचिकाकर्ता का मानना है कि प्राचीन काल में देश को भारत के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद अंग्रेजी में देश का नाम ‘इंडिया’ कर दिया गया इसलिए देश के असली नाम ‘भारत’ को ही मान्यता दी जानी चाहिए.

संविधान में है क्या?

Article 1(1) says, “India, that is Bharat, shall be a Union of States.”

अनुच्छेद 1(1) कहता है कि “भारत, अर्थात्‌ इंडिया, राज्यों का संघ होगा.”

क्या पहले भी इस तरह का मुद्दा उठाया गया है?

  • हाँ. 15 नवंबर 1948 को संविधान के अनुच्छेद-1 के मसौदे पर बहस करते हुए एम. अनंतशयनम अय्यंगर और सेठ गोविंद दास ने देश का नाम अंग्रेजी में इंडिया रखने का जोरदार विरोध किया था. उन्होंने इंडिया की जगह अंग्रेजी में भारत, भारतवर्ष और हिंदुस्तान नामों का सुझाव दिया था. लेकिन इस बात पर उस समय ध्यान नहीं दिया गया.
  • वर्ष 2016 में सर्वोच्च न्यायालय में ऐसी ही याचिका आई थी. तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा था कि प्रत्येक भारतीय को देश का नाम अपने अनुसार, लेने का अधिकार है चाहे तो वे ‘इंडिया’  बोले या  ‘भारत’  बोले. इसके लिए फैसला लेने का सुप्रीम कोर्ट को कोई अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा था, ‘यदि कोई भारत कहना चाहे तो भारत कहे और यदि इंडिया कहना चाहे तो देश का नाम इंडिया कहे. हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे.’

मेरी राय – मेंस के लिए

 

जब हम मद्रास का नाम बदल कर चेन्नई कर सकते हैं, गुड़गांव का नाम बदलकर गुरुग्राम कर सकते हैं तो इंडिया को हटाकर भारत करने में क्या दिक्कत है? श्रीलंका जैसा छोटा सा देश पहले सीलोन के नाम से जाना जाता था, अब श्रीलंका के नाम से जाना जाता है, तो हम क्यों गुलामी के प्रतीक इंडिया को थामे हुए हैं. हमें भी अपने गौरवशाली भारत नाम को अपनाना चाहिए.

यद्यपि यह अंग्रेजी नाम बदलना सांकेतिक लगता हो लेकिन इसे भारत शब्द से बदलना हमारे पूर्वजों के स्वतंत्रता संग्राम को न्यायोचित ठहरायेगा. यह उचित समय है कि देश को उसके मूल और प्रमाणिक नाम भारत से जाना जाए.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

भारतीय संविधान अनुच्छेद 1 (Article 1) – संघ का नाम और राज्यक्षेत्र

विवरण

  • भारत, अर्थात्‌ इंडिया, राज्यों का संघ होगा.
  • राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं.
  • भारत के राज्यक्षेत्र में,
  • राज्यों के राज्यक्षेत्र,
  • पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्र, और
  • ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किए जाएँ, समाविष्ट होंगे.

GS Paper 2 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic :  Amendments to the Essential Commodities Act

संदर्भ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में साढ़े छह दशक पुराने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन को स्वीकृति दे दी ताकि अनाज, दलहन और प्याज सहित खाद्य वस्तुओं को नियमन के दायरे से बाहर किया जा सके.

संशोधन के मुख्य तथ्य

  • संशोधन के माध्यम से राष्ट्रीय आपदाओं, अकाल के फलस्वरूप दामों में बेलगाम वृद्धि जैसी असाधारण परिस्थितियों में ही खाद्य पदार्थों के नियमन की बात कही गई है.
  • इसके अतिरिक्त, प्रोसेसर और मूल्य श्रृंखला प्रतिभागियों को स्टॉक सीमा से छूट दी गई है.

संशोधन के लाभ

  • उत्पादन, भंडारण, कहीं ले जाने, वितरण और आपूर्ति करने की स्वतंत्रता से आर्थिक लाभ का दोहन संभव होगा और निजी क्षेत्र एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षण होगा.
  • यह शीतभंडार गृहों में निवेश को प्रोत्साहन देगा और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला का आधुनिकीकरण करने में सहायता करेगा.
  • किसान, किसी प्रकार के शोषण के भय के बिना, प्रोसेसर, एग्रीगेटर, बड़े खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों आदि से समान स्तर पर जुड़ने के लिए सशक्त होंगे.

आवश्यक वस्‍तु अधिनियम, 1955 

  • आवश्यक वस्‍तु अधिनियम, 1955 को उपभोक्‍ताओं को अनिवार्य वस्‍तुओं की सरलता से उपलब्‍धता सुनिश्चित कराने तथा कपटी व्‍यापारियों के शोषण से उनकी रक्षा के लिए बनाया गया है.
  • इस अधिनियम में उन वस्‍तुओं के उत्‍पादन वितरण और मूल्‍य निर्धारण को विनियमित एवं नियंत्रित करने की व्‍यवस्‍था की गई है, जिनकी आपूर्ति बनाए रखने या बढ़ाने तथा उनका समान वितरण प्राप्‍त करने और उचित मूल्‍य पर उनकी उपलब्‍धता के लिए अनिवार्य घोषित किया गया है. अधिनियम के अंतर्गत अधिकांश शक्तियाँ राज्‍य सरकारों को प्रदत्त हैं.
  • अनिवार्य घोषित की गई वस्‍तुओं की सूची की आर्थिक परिस्थितियों में, परिवर्तनों विशेषतया उनके उत्‍पादन मांग और आपूर्ति के संबंध में, के आलोक में समय-समय पर समीक्षा की जाती है.
  • आवश्यक वस्तुओं में दवाएँ, उर्वरक, दलहन और खाद्य तेल, पेट्रोलियम इत्यादि सम्मिलित हैं.

इस अधिनियम में समस्याएँ

  1. भण्डारण सीमाएं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और फ़ूड रिटेल चेन, जो अपने संचालन के लिए बड़े भण्डार बनाए रखने की आवश्यकता का अनुभव करती हैं, में भेद नहीं करती हैं. अत: आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत ये उत्पीड़न की भागी बन सकती हैं.
  2. वास्तविक जमाखोरों की पहचान करना आसान कार्य नहीं है. इस अधिनियम के अंतर्गत दोषसिद्धि की दर भी बेहद कम है. इसलिए जमाखोर बच निकलते हैं एवं खाद्य अर्थव्यवस्था के वास्तविक प्रतिभागियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.
  3. यह अधिनियम वर्तमान समय के अनुरूप नहीं है. सशक्त परिवहन अवसंरचना के कारण यदि एक भाग में पर्याप्त आपूर्ति है तो भी देश के दूसरे भाग में कमी का सामना करना पड़ सकता है.

भण्डारण प्रतिबन्ध हटाने के बाद के संभावित प्रभाव

  1. कृषि वस्तुओं पर से भण्डारण प्रतिबंध हटाने से सुसंगठित व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, बड़े पैमाने पर होने वाले व्यापार से प्राप्त होने वाले लाभ में सुधार होगा एवं बड़े व्यापारियों द्वारा एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने से व्यापार में और अधिक पूँजी का अंतर्वाह होगा. यहहैंडलिंग लागतों को कम करेगा, अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करेगा, कीमतों को कम करेगा तथा किसानों के लाभ में वृद्धि करेगा.
  2. इस अधिनियम के अंतर्गत नियमों और भण्डारण सीमा में बारंबार परिवर्तन व्यापारियों को बेहतर भण्डारण अवसंरचना में निवेश करने से निरुत्साहित करते हैं. साथ ही, भण्डारण सीमाएं खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के कामकाज को कम कर देती हैं जिन्हें अपने कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए अंतर्निदठित वस्तुओं के बड़े भंडार बनाए रखने की आवश्यकता होती है. इन प्रतिबंधों की समाप्ति और अधिक निवेश को आकर्षित करेगी.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

केन्द्र और राज्यों द्वारा जमाखोरों को नियंत्रित करने के लिए कालाबाजारी की रोकथाम और अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति का रख-रखाव (PBMSEC) अधिनियम, 1980 को लागू करके किया जा सकता है. लेकिन PBMSEC अधिनियम द्वारा लागू की जाने वाली वस्तुओं की सूची आवश्यक वस्तु अधिनियम से ली जाती है. अतः इस विसंगति का समाधान किए जाने की आवश्यकता है. आवश्यक वस्तु अधिनियम वर्तमान वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं है. युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं एवं कानून और व्यवस्था भंग होने के कारण आपूर्ति बाधित होने जैसी संकटकालीन स्थितियों से निपटने के लिए इसका कायाकल्प करने की या इसे समाप्त करने की आवश्यकता है.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

Prelims Booster

E-Rakam : सरकार द्वारा कृषि उपज की  बिक्री करने के लिए ई-नीलामी पोर्टल ई-रकम का अनावरण किया गया है. यह पोर्टल किसानों को उपज हेतु उचित मूल्य पाने एवं बिचौलियों के जाल में न फँसने देने एवं उपज को मंडी तक पहुँचाने की समस्याओं से बचाने में सहायता करने के लिए अनावरण किया गया है.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.

Topic : Visiting Forces Agreement – VFA

संदर्भ

मई 27, 1999 से फिलीपींस और अमेरिका के बीच एक समझौता लागू है जिसे विजिटिंग फोर्सेज अग्रीमेंट (Visiting Forces Agreement – VFA) कहते है. इस समझौते का सार तत्त्व यह है कि अमेरिकी सरकार फिलीपींस में तैनात अपने सैन्यकर्मियों के ऊपर न्यायाधिकार रखेगी और कुछ ही मामलों में उन पर स्थानीय न्यायालयों में मुकदमा चल सकता है. साथ ही इस समझौते के अनुसार, अमेरिकी सैन्यकर्मियों पर फिलीपीन्स के वीजा और पासपोर्ट नियम नहीं चलेंगे.

फ़रवरी 11, 2020 को फिलीपींस सरकार ने अमेरिका को सूचित कर दिया था कि वह इस समझौते को वापस ले लेगी. परन्तु दक्षिणी चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीति को देखते हुए फिलीपींस ने समझौते को वापस लेने का काम टाल दिया है.

पृष्ठभूमि

विजिटिंग फोर्सेज एग्रीमेंट (VFA) को निरस्त करने के विषय में फ़रवरी 11, 2020 को फिलीपींस ने अमेरिका को मनीला स्थित उसके दूतावास के माध्यम से सूचना भी औपचारिक रूप से भेज दी थी. परन्तु अब VFA को रद्द करने की कार्रवाई स्थगित कर दी गई है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि फिलीपींस द्वारा VFA को निरस्त नहीं करने का जो नया निर्णय लिया गया है वह इस बात का द्योतक है कि चीन के अन्य क्षेत्रीय पड़ोसियों, जैसे वियेतनाम और मलेशिया की भाँति फिलीपींस भी इस बात को लेकर चिंतित हो गया है कि चीन भौगोलिक दावों के मामलों में बहुत ही आक्रामक हो गया है. विदित हो कि फिलीपींस के अतिरिक्त चीन को इस क्षेत्र में वियतनाम और मलेशिया से भी जमीन को लेकर विवाद है.  

विजिटिंग फोर्सेज एग्रीमेंट (VFA) क्या है?

विजिटिंग फोर्सेज एग्रीमेंट (VFA) एक ऐसा सैनिक समझौता होता है जिसके अनुसार समझौता करने वाले देश एक-दूसरे देश में सैनिक भेज सकते हैं.

अमेरिका के साथ हुए फिलीपींस के VFA समझौते में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि अमेरिका की सेना फिलीपींस में आई तो उसका वैधानिक दर्जा क्या होगा और इसके लिए नियम और मार्गनिर्देश कौन-से होंगे.

अमेरिका और फिलीपींस में 1951 में एक पारस्परिक रक्षा संधि तथा 2014 में रक्षा सहयोग समझौता हो चुका है. VFA इन दोनों संधि/समझौते की पुष्टि करता है. 1999 में फिलीपींस सेनेट ने VFA को मान्यता दी दी थी.

विजिटिंग फोर्सेज एग्रीमेंट (VFA) निरस्त होने का अमेरिका पर क्या प्रभाव होगा?

VFA रद्द होने से अमेरिका की सेना का फिलीपींस में कोई कार्रवाई करना अवैधानिक हो जाएगा. अतः अमेरिका की सेना किसी रक्षा समझौते के तहत फिलीपींस में कुछ नहीं कर पाएगी.

फिलीपींस के लिए निहितार्थ

फिलीपींस की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अमेरिका से उसके गठबंधन और VFA का बड़ा महत्त्व है. एक और फिलीपींस के निवासी अमेरिका पर अत्यधिक विश्वास करते हैं, वहीं दूसरी ओर दक्षिणी चीन सागर में चीन की गतिविधियों से आशंकित रहते हैं. चीन के द्वारा किये विदेशी निवेश को फिलीपींस की जनता पसंद नहीं करती है, इसलिए अमेरिका और फिलीपींस का सैन्य गठजोड़ तथा VFA चीनी खतरों के विरुद्ध एक बीमा के जैसा काम करेगा.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

दक्षिणी-चीन सागर में खनिज तेल का बहुत बड़ा भंडार है ऐसा शोधकर्ताओं का मानना है. वियतनाम इस सागर में खनिज तेल निकालने की गतिविधियाँ चला रहा है जिसमें भारत की तेल कम्पनियाँ भी सहायता कर रही हैं. चीन को यह अखर रहा है और वह चाहता है कि यहाँ के खनिज तेल के भंडार पर उसका आधिपत्य हो जाए. इसके लिए वह इस क्षेत्र पर अपना दावा करता है. चीन की विस्तारवादी नीति से दक्षिणी चीन सागर के निकटस्थ देशों में खलबली मची हुई है. इन देशों में फिलीपींस भी एक देश है. वह अमेरिका के साथ एक सैन्य गठबंधन किये हुए है. इस गठबंधन के तहत अमेरिकी सैनिकों का वहां आना-जाना है. VFA वह प्रलेख है यह निर्धारित करता है कि अमेरिकी सैनिक जब फिलीपींस में तैनात होंगे तो उनपर कहाँ का कानून चलेगा जैसा कि ऊपर बताया गया है.

फिलीपींस पिछले कुछ दिनों से अमेरिका से दूरी बना रहा था और इसलिए उसने VFA को समाप्त का  निर्णय भी लिया था परन्तु चीन के खतरे को देखते हुए उसने अपना विचार बदल दिया है और VFA को निरस्त करने का अपना निर्णय टाल दिया है.

भारत इस क्षेत्र की गतिविधियों से अछूता नहीं रहेगा. एक तो उसकी तेल कम्पनियाँ अनुसंधान का काम कर रही हैं जिस पर चीन रोड़े अटकाता रहा है. दूसरा, यदि उस क्षेत्र में चीन का वर्चस्व हो जाता है तो उसका सीधा प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा. सर्वविदित है कि अमेरिका चीन को भारत की सहायता से घेरने की नीति अपनाए हुए है. इस नीति की सफलता बहुत कुछ दक्षिणी चीन सागर पर चीन के क़दमों को रोकने पर निर्भर है.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

मेकांग नदी : यह नदी दक्षिण-पूर्वी एशिया की सबसे बड़ी नदी है. यह कुल छह देशों से होकर गुजरती है. यह तिब्बत के पठार से अवतरित होते हुए चीन, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कम्बोडिया और वियतनाम से होकर बहती हुई दक्षिण चीन सागर में गिरती है. इसी नदी को दक्षिण-पूर्व एशिया की डेन्यूब एवं गंगा कहा जाता है.


GS Paper 2 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : OTT (over-the-top) क्या है?

संदर्भ

COVID-19 के प्रकोप के कारण सिनेमाघर बंद होने की स्थिति में मलयालम फिल्मों को ऑनलाइन (over-the-top – OTT) दिखलाने की चर्चा इन दिनों हो रही है, परन्तु अधिकांश फिल्म निर्माता इस प्रस्ताव को पसंद नहीं कर रहे हैं.

ज्ञातव्य है कि कई फ़िल्में सिनेमाघरों में आने वाली थीं, परन्तु तीन महीनों से कोई नई फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई है. इस ऑनलाइन प्रदर्शन के प्रस्ताव न केवल अधिकांश निर्माता, अपितु सिनेमाघरों के मालिक भी नाराज हैं. सिनेमाघर के मालिक यहाँ तक कह रहे हैं कि यदि ऑनलाइन रिलीज़ हुई तो वे ऐसा करने वाले निर्माता और अभिनेता दोनों की फिल्मों का बहिष्कार करेंगे.

OTT (over-the-top) क्या है?

ओटीटी अर्थात् over-the-top एक मिडिया सर्विस है जो फिल्म, विडियो आदि को इन्टरनेट पर ऑनलाइन उपलब्ध करता है. इसके अन्दर ऑडियो प्रसारण, सन्देश सेवा अथवा इन्टरनेट पर आधारित वौइस् कॉलिंग भी आते हैं. OTT सेवा को दूरसंचार नेटवर्क या केबल टेलीविज़न प्रदाताओं की आवश्यकता नहीं पड़ती. यदि आपके पास मोबाइल या किसी स्थानीय नेटवर्क के माध्यम से इन्टरनेट सम्पर्क है तो आप आराम से OTT प्रसारण का आनंद ले सकते हैं. आजकल OTT लोकप्रिय है क्योंकि इसमें कम दाम पर अच्छी-अच्छी सामग्रियाँ उपलब्ध हो जाती हैं. इसमें नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम जैसी मौलिक सामग्रियाँ भी मिल जाती हैं.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

लॉकडाउन की वजह से दूसरे कारोबार की तरह ही सिनेमा उद्योग भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है. दूसरी ओर, टीवी और सिनेमा जैसे पारंपरिक मीडिया के अतिरिक्त इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध होने वाली सामग्री (ओटीटी) सेवाओं जैसे नए पीढ़ी के मंच, मनोरंजन उद्योग को प्रोत्साहन देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. वास्तविकता तो यह है कि देश के वीडियो ओटीटी बाजार का आकार बढ़कर 82.3 करोड़ डॉलर (5,363 करोड़ रुपये) का होने जा रहा है और भारत का वीडियो ओटीटी बाजार विश्व के शीर्ष दस बाजार में सम्मिलित होने के बेहद निकट है.

यह भी सच है कि कोरोना वायरस और लॉकडाउन के पूर्व से ही ओटीटी यानी over-the-top सेवा का विस्तार बहुत हो चुका था, परन्तु तालेबंदी के दौरान तो यह मनोरंजन के लिहाज से अपरिहार्य ही हो गया है. अब एक बड़ा समूह इस पर आश्रित है.

इंटरनेट जैसे-जैसे अपनी गति बढ़ाता जा रहा है, वैसे-वैसे अपने मोबाइल के माध्यम से कहीं भी वीडियो, कंटेंट देखने की सुविधा ने इसके प्रयोग को जबरदस्त उछाल दिया है. विद्यालयों, कॉलेजों के छात्रों को जितना अपनी परीक्षा को लेकर चिंता नहीं होती है उससे कहीं अधिक उनको इन्तजार इस बात का होता है कि वेब सीरीज का अगला एपिसोड कब रिलीज हो रहा है. OTT के जरिये आसानी से उपलब्ध वेब सीरीज को देखने की लत छात्रों पर कुछ इस कदर भारी है कि अपने खाने-पीने, खेलकूद पर लगने वाले अनिवार्य समय को वे वेब सीरीज का सस्पेंस समाप्त करने में लगा देते हैं. छात्र जीवन जीवन का बड़ा अनमोल समय होता है एवं इसी काल में कच्ची मिट्टी से अच्छे मटके बनने की शुरुआत होती है. इस समय हमें सही दिशा-निर्देश की आवश्यकता होती है.

अगर ऊर्जा को सही दिशा नहीं दी जाए तो इसका दुष्परिणाम घातक हो सकता हैं, उदाहरण के तौर पर हम परमाणु शक्ति से बिजली भी बनना सकते हैं जो कि समाज के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, वहीं दूसरी ओर इस शक्ति का प्रयोग परमाणु बम बनाने में भी कर सकते हैं जो कि समाज की आने वाली पीढ़ियों को भी विनाश की कगार पर खड़ा कर देती है.

OTT पर उपलब्ध कई सामग्रियाँ कम उम्र के बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं. इसमें उपलब्ध कई विडियो महिलाओं को गलत अर्थों में दिखाते हैं और बच्चों के साथ-साथ युवाओं के दिमाग को भी दूषित करते हैं. NETFLIX, ULLU app, Jio Cinema, Amazon Prime जैसी कंपनियां भारतीय दंड संहिता, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, महिलाओं का प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम और भारतीय संविधान के कई प्रावधानों का भी उल्लंघन कर रही हैं. सच कहा जाए तो OTT पर प्रसारित सामग्रियों ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीवन के अधिकार को प्रभावित किया है.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

आईपीसी की धारा 153A : यह धारा उनके विरुद्ध लगाई जाती है, जो धर्म, नस्ल, भाषा, निवास स्थान या फिर जन्म स्थान के आधार पर अलग-अलग समुदायों के मध्य नफरत फैलाने और सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास करते हैं. इस धारा के अंतर्गत तीन साल की जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.

इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी यानी आईटी एक्ट 2000 की धारा 67 : इसमें प्रावधान किया गया है कि अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आपत्तिजनक पोस्ट करता है या फिर शेयर करता है, तो उसके विरुध्द मामला दर्ज किया जा सकता है. अगर कोई प्रथम बार सोशल मीडिया पर ऐसा करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे 3 साल की जेल हो सकती है. साथ ही 5 लाख रुपये का जुर्माना भी देना पड़ सकता है. इतना ही नहीं, अगर ऐसा अपराध पुनः दोहराया जाता है, तो मामले के दोषी को 5 वर्ष की जेल हो सकती है और 10 लाख रु. तक का जुर्माना भी देना पड़ सकता है.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : Electronics incentive schemes launched

संदर्भ

देश में इलेक्ट्रॉनिक्स बनाने के काम को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने 48,000 करोड़ की राशि की तीन उत्प्रेणन योजनाएँ आरम्भ की हैं.

ये योजनाएँ हैं –

  1. उत्पादन से जुड़ा हुआ उत्प्रेणन (Production Linked Incentive)
  2. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं सेमी-कंडक्टरों के निर्माण हेतु प्रोत्साहन योजना (Scheme for Promotion of Manufacturing of Electronic Components and Semiconductors – SPECS)
  3. परिमार्जित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण संकुल योजना – (Modified Electronics Manufacturing Clusters (EMC 0) Scheme

उत्पादन से जुड़ा हुआ उत्प्रेणन (Production Linked Incentive)

यह योजना मोबाइल फ़ोन और विशेष इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण को लक्षित करके बनाई गई है. इसके अंतर्गत पाँच वैश्विक और पाँच देशीय प्रतिष्ठानों को उत्प्रेरण दिया जाएगा.

इसमें अर्हता प्राप्त कम्पनियों को पाँच वर्षों के लिए निर्मित वस्तुओं के विक्रय के आधार पर 4% से लेकर 6% तक उत्प्रेरण दिया जाएगा.

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं सेमी-कंडक्टरों के निर्माण हेतु प्रोत्साहन योजना (Scheme for Promotion of Manufacturing of Electronic Components and Semiconductors – SPECS)

इस योजना के अंतर्गत पहले से निर्धारित कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर किये गये पूँजी व्यय पर 25% वित्तीय उत्प्रेरण दिया जाएगा.

इनमें से कुछ सामान ये हैं – इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, सेमी-कंडक्टर, डिस्प्ले, असेम्बली, परीक्षण, मार्किंग और डिब्बाबंदी (ATMP) इकाइयाँ आदि.

परिमार्जित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण संकुल योजना – (Modified Electronics Manufacturing Clusters (EMC 2.0) Scheme

इस योजना के अंतर्गत विश्व-स्तरीय अवसंरचना बनाने के साथ-साथ सामान्य सुविधाओं के निर्माण के लिए सहायता दी जायेगी. इस योजना के अन्दर विश्व के बड़े-बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को आकर्षित करने के लिए पहले से बने हुए कारखाना शेड तथा प्लग एवं प्ले सुविधाएँ तैयार की जा सकती हैं और आपूर्ति शृंखला का प्रबंध किया जा सकता है.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

सरकार को आशा है कि इन तीन योजनाओं को लागू करने से देश में 8 लाख करोड़ के इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनेंगे और साथ ही अगले पाँच वर्षों तक 10 लाख लोगों को आजीविका मिल सकेगी.

उल्लेखनीय है कि भारत अभी ही विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बन चुका है. 2014-15 में यहाँ छह करोड़ बने जिनका मूल्य 18,992 करोड़ रु. होता है. 2018-19 यहाँ बनने वाली मोबाइलों की संख्या में तीस करोड़ हो गई जिनका मूल्य 1.7 लाख करोड़ था.

भारत सरकार की इन तीन योजनाओं से भारत आत्म निर्भरता की दिशा में आगे बढ़ सकता है. भारत अगर आत्म निर्भर हुआ तो वह ऐसी इको-सिस्टम तैयार करेगा जो वैश्विक अर्थव्यस्था के लिए एक सम्पदा सिद्ध होगी. कहने की आवश्यकता नहीं है कि इससे देश की निर्माण क्षमता में भी चार चाँद लग जायेंगे.

इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग से जुड़े कम्पनियों की भी जिम्मेदारी है कि वे अपने साथ-साथ अपनी सहायक या उनके लिए पुर्जे बनाने वाले छोटे उद्योगों को भी साथ लेकर आए. इससे एक ओर जहाँ इलेक्ट्रानिक उद्योग को सरलता होगी वहीं अधिक संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ़ इंडिया (एसटीपीआई) : यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त सोसाइटी है जिसको भारत सरकार ने 1991 में देश से सॉफ़्टवेयर निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित किया था. इसके देश भर में 60 केन्‍द्र हैं.


Prelims Vishesh

Band-tail Scorpionfish :-

  • मन्नार की खाड़ी में Sethukarai तट पर शोधकर्ताओं को एक विरल मछली मिली है जिसका नाम बैंड तेल स्कोर्पियन फिश है.
  • इसका वैज्ञानिक नाम Scorpaenospsis neglecta है.
  • इसको यह नाम इसलिए मिला है कि यह मछली बिच्छू की तरह जहरीला डंक मारती है.

National Career Service (NCS) project :-

  • श्रम एवं नियोजन मंत्रालय द्वारा संचालित राष्ट्रीय वृत्ति सेवा (NCS) परियोजना के अंतर्गत अब पंजीकृत नौकरी खोजने वालों को ऑनलाइन वृत्ति कौशल्य प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके लिए उनके व्यक्तित्व का विकास किया जाएगा और उन्हें बताया जाएगा कि अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से कैसे रखा जाए और साथ ही उनको निगम प्रतिष्ठानों के शिष्टाचार के विषय में अवगत कराया जाएगा.
  • आजकल उद्योग जगत जिन मृदुल कौशल्यों को आवश्यक मानता है इसकी भी जानकारी उन्हें दी जायेगी.

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