Sansar डेली करंट अफेयर्स, 03 July 2020

Sansar LochanSansar DCA

Sansar Daily Current Affairs, 03 July 2020


GS Paper 2 Source : Indian Express

indian_express

UPSC Syllabus : Related to Health issues.

Topic : National Pharmaceutical Pricing Authority

संदर्भ 

सरकार कोविड-19 महामारी को दृष्टि में रखते हुए देश में कोविड-19 के नैदानिक प्रबंधन के लिए आवश्यकता चिकित्सा उपकरणों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है. इस संदर्भ में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएच एंड एफडब्ल्यू) ने आवश्यक चिकित्सा उपकरणों की सूची बनाई है और देश में इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority – NPPA) से अनुरोध किया है.

पृष्ठभूमि

हम देख सकते हैं कि सरकार उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर जीवन रक्षक दवाओं/उपकरणों की उपलब्धता के लिए प्रतिबद्ध है. सभी चिकित्सा उपकरणों को दवा के रूप में अधिसूचित किया गया है और इन्हें 1 अप्रैल, 2020 से ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम, 1940 और दवा (मूल्य नियंत्रण आदेश) के नियामक व्यवस्था के अधीन रखा गया है.

NPPA ने आवयश्क चिकित्सा उपकरणों की मूल्य वृद्धि पर नजर रखने के लिए डीपीसीओ, 2013 के अंतर्गत मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए (i) पल्स ऑक्सीमीटर और (ii) ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के निर्माताओं / आयातकों से मूल्य संबंधित आंकड़ें मंगवाएँ है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 1 अप्रैल, 2020 की वर्तमान कीमत में एक वर्ष में 10% से अधिक की वृद्धि नहीं हो सके.

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) क्या है?

यह एक स्वायत्त निकाय है तथा देश के लिये स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक दवाओं (National List of Essential Medicines-NLEM) एवं उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करता है.

NPPA के कार्य

  • विनियंत्रित थोक औषधियों व फॉर्मूलों का मूल्य निर्धारित व संशोधित करना.
  • निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप औषधियों के समावेशन व बहिर्वेशन के माध्यम से समय-समय पर मूल्य नियंत्रण सूची को अद्यतन करना.
  • दवा कंपनियों के उत्पादन, आयात-निर्यात और बाज़ार हिस्सेदारी से जुड़े डेटा का रख-रखाव.
  • दवाओं के मूल्य निर्धारण से संबंधित मुद्दों पर संसद को सूचनाएँ प्रेषित करने के साथ-साथ दवाओं की उपलब्धता का अनुपालन व निगरानी करना.

GS Paper 2 Source : PIB

pib_logo

UPSC Syllabus : Related to Health issues.

Topic : Drug Discovery Hackathon 2020

हाल ही में ‘केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ (Ministry of Human Resource Development- MHRD) द्वारा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से ड्रग डिस्कवरी हैकथॉन 2020 (Drug Discovery Hackathon) का प्रारम्भ किया गया है.

ddh

ड्रग डिस्कवरी हैकथॉन क्या है?

  • यह हैकथॉन दवा की खोज प्रक्रिया में मदद करने के लिए अपनी तरह की पहली राष्ट्रीय पहल है.
  • इसमें कंप्यूटर विज्ञान, रसायन विज्ञान, फार्मेसी, चिकित्सा विज्ञान, बुनियादी विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवरों,शिक्षकों,शोधकर्ताओं और छात्रों की भागीदारी होगी.

इस पहल में भागीदार

यह ड्रग डिस्कवरी हैकथॉन एक संयुक्त पहल है, तथा इसमें निम्नलिखित संस्थाएं भागीदार है:

  1. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नवाचार प्रकोष्ठ (MHRD’s Innovation Cell- MIC),
  2. अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (All India Council for Technical Education- AICTE)
  3. वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR)
  4. सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (CDAC),
  5. MyGov तथा अन्य निजी कंपनियां.
 
मुख्य तथ्य
  • यह हैकथॉन COVID-19 की दवा की खोज प्रक्रिया को प्रोत्‍साहित करने के लिये अपनी तरह की पहली राष्ट्रीय पहल है.
  • इस पहल के माध्यम से विश्व स्तर पर जो भी कंपनी कोरोना वैक्सीन को निर्मित करेगी उसे पुरस्कृत किया जायेगा.
  • यह हैकथॉन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिये दुनिया भर के कंप्यूटर विज्ञान, रसायन विज्ञान, फार्मेसी, चिकित्सा विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवरों, प्राध्‍यापकों, शोधकर्त्ताओं एवं छात्रों के लिये खुला रहेगा.
हैकथॉन की कार्यप्रणाली
  • हैकथॉन के माध्यम से MHRD तथा AICTE, सार्स–सीओवी-2 (SARS-CoV-2) की संभावित दवा के अणुओं की पहचान करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जबकि CSIR इन पहचाने गए अणुओं के प्रभाव, विषाक्तता, संवेदनशीलता एवं उनके संश्लेषण तथा प्रयोगशाला में परीक्षण का कार्य करेगा.
  • हैकथॉन के जरिये ‘इन-सिलिको ड्रग खोज’ (In-Silico Drug Discovery) द्वारा सार्स–सीओवी-2 (SARS-CoV-2) हेतु दवा का परीक्षण करने वालों की पहचान करना एवं रासायनिक संश्लेषण एवं जैविक परीक्षण करना भी इसमें सम्मिलित हैं.
    1. दवा की खोज में कम्प्यूटेशनल (सिलिको में) विधियों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है.
    2. इस विधि में उपयुक्त दवा की पहचान करना सर्वप्रथम एवं महत्त्वपूर्ण कार्य है.
  • यह हैकथॉन मुख्य रूप से दवा की खोज के कम्प्यूटेशनल पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेगा जिसमें तीन ट्रैक सम्मिलित किये गये हैं –
    1. ट्रैक -1 : यह ट्रैक ड्रग डिज़ाइन के लिये कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग या मौजूदा डेटाबेस से प्रमुख यौगिकों की पहचान करने से संबंधित होगा जिसमें (SARS-CoV-2) को रोकने की क्षमता हो.
    2. ट्रैक -2 : यह ट्रैक प्रतिभागियों को न्यूनतम विषाक्तता और अधिकतम विशिष्टता एवं चयनात्मकता के साथ दवा जैसे यौगिकों की भविष्यवाणी के लिये डेटा एनालिटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता/ मशीन लर्निंग का उपयोग करके नए टूल और एल्गोरिदम विकसित करने हेतु उत्साहित करेगा.
    3. ट्रैक- 3 : यह ट्रैक जिसे “मून शॉट” कहा जाता है, यह उन समस्याओं पर काम करने की अनुमति देता है जो सामान्य हटकर करने चलने वाली प्रवृत्ति के होंगे.
  • प्रत्येक चरण के अंत में सफल टीमों को पुरस्कृत किया जाएगा. चरण 3 के अंत में पहचाने गए प्रथम 3 प्रमुख यौगिकों को CSIR एवं अन्य इच्छुक संगठनों में प्रायोगिक स्तर के लिये आगे ले जाया जाएगा.

इन-सिलिको’ ड्रग डिजाइन (in silico drug design) क्या है?

  • ‘इन-सिलिको’ ड्रग डिज़ाइन एक शब्द है जिसका अर्थ है, ‘कंप्यूटर एडेड आणविक डिज़ाइन’.
  • इसमें आणविक मॉडलिंग, फॉर्माकोफोर ऑप्टिमाइज़ेशन, आणविक डॉकिंग, हिट/ लीड ऑप्टिमाइज़ेशन आदि जैसे टूल का प्रयोग करके किया जाता है.
  • सरल शब्दों में, यह कम्प्यूटेशनल विधियों की विस्तृत विविधता का उपयोग करके दवाओं का तर्कसंगत डिजाइन या खोज है.
  • इस प्रकार यह जैव सूचना विज्ञान उपकरणों का प्रयोग करके दवा लक्षित अणुओं की पहचान है.

GS Paper 2 Source : The Hindu

the_hindu_sansar

UPSC Syllabus : Effect of Policies & Politics of Countries on India’s Interests and Important International Institutions.

Topic : Italian Marines case

संदर्भ 

द हेग में स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’ (Permanent Court of Arbitration- PCA) ने भारत को झटका देते हुए इतालवी नौसैनिक केस के संदर्भ में अपना निर्णय सुनाया है. इसके अनुसार, केरल के मछुआरों के साथ गोलीबारी में पकड़े गए इतालवी नौसैनिकों पर मुकदमा चलाना भारत के अधिकार-क्षेत्र में नहीं है.

मामला क्या है?

वर्ष 2012 में, एक इतालवी पोत ‘एनरिका लेक्सी’ पर सवार दो इतालवी नौसैनिकों ने भारतीय पोत ‘सेंट एंथोनी’ पर सवार दो भारतीय मछुआरों की गोली मारकर हत्या कर दी. घटना के समय मछली पकड़ने का पोत भारतीय जल क्षेत्र की सीमा के भीतर था, अतः यह अपराध भारत के कानूनों के तहत गिरफ्तारी तथा अभियोजन के अंतर्गत आता है.

अंततः, नौसैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया. मगर बाद में नौसैनिकों को भारत से रिहा कर इटली भेज दिया गया.

उस समय, भारत ने उच्चत्तम न्यायालय के निर्देशानुसार, अधिकार क्षेत्र की प्रयोज्यता का निर्धारण करने के लिए एक विशेष अदालत गठित की थी.

  1. इसी बीच राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency-NIA) ने ‘नौ-परिवहन सुरक्षा विधिविरुद्ध कार्य दमन अधिनियम’ (Suppression of Unlawful against Safety of Maritime Navigation) तथा ‘फिक्स्ड प्लेटफॉर्म्स ऑन कॉन्टिनेंटल शेल्फ एक्ट’, 2002 को लागू कर दिया.
  2. इतालवी नौसैनिकों पर मुकदमा चलाने के अधिकार को लेकर भारत और इटली के बीच विवाद की सुनवाई अंतरार्ष्ट्रीय ‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’ (PCA) में चल रही है.

PCA का निर्णय

  1. नौसैनिक, राज्य की ओर से नियुक्त तथा कार्यरत थे, अतः उन्हेंप्रतिरक्षा की आधिकारिक छूट प्राप्त है.
  2. नौसनिकों के प्रतिरक्षा-अधिकार पर निर्णय करने का अधिकार इटली का होगा.
  3. अतः भारत उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चला सकता है.
  4. इटली ने ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के तहत भारत की नौवहन स्वतंत्रता का उल्लंघन किया.
  5. जबकि, UNCLOS के प्रावधानों के तहत भारतीय अधिकारियों ने समुद्री कानून का उल्लंघन नहीं किया है
  6. परिणास्वरूप, इटलीभारत को मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार है.

PCA ने इटली द्वारा एक प्रमुख तर्क, कि भारत ने इतालवी पोत को अपने क्षेत्र में ले जाकर नौसैनिकों को गिरफ्तार किया तथा यह UNCLOS के अनुच्छेद 100 के तहत समुद्री डकैती के दमन करने के लिए सहयोग करने के दायित्व का उल्लंघन है, को भी निरस्त कर दिया है.

अब क्या होगा?

दोनों देशों को, भारत को भुगतान की जाने वाले मुआवजे की राशि तय करने हेतु वार्ता आयोजित करने की जरूरत है.

अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण

  • यह स्वतंत्र और निष्पक्ष विशेषज्ञों का एक स्वतंत्र गैर-सरकारी पैनल है.
  • इसमें कानूनी और व्यावहारिक विशेषज्ञता एवं ज्ञान के आधार पर नामित (अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता संस्थान या एक राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा नियुक्त) तीन सदस्य शामिल होते हैं.

मध्यस्थता का स्थायी न्यायालय (Permanent Court of Arbitration- PCA)

  • स्थापना: वर्ष 1899
  • इसका मुख्यालय हेग, नीदरलैंड्स में है.
  • यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो विवाद समाधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सेवा प्रदान करने और राज्यों के बीच मध्यस्थता एवं विवाद समाधान के लिये समर्पित है.
  • PCA की संगठनात्मक संरचना तीन-स्तरीय होती है जिसमें –
    1. एक प्रशासनिक परिषद् होती है जो नीतियों और बजट का प्रबंधन करती है.
    2. एक स्वतंत्र संभावित मध्यस्थों का पैनल होता है जिसे न्यायालय के सदस्य के रूप में जाना जाता है.
    3. इसके सचिवालय को अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के रूप में जाना जाता है.
  • PCA का एक वित्तीय सहायता कोष होता है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता या PCA द्वारा विवाद निपटान में शामिल साधनों की लागत को पूरा करने में मदद करना है.

निष्कर्ष

PCA द्वारा दिया गया यह निर्णय अंतिम है, तथा इसे भारत द्वारा स्वीकार किया गया है. यह निर्णय, इतालवी नौसैनिकों पर भारत में आपराधिक मुकद्दमा चलाने की उम्मीदों पर झटका है.

अंत में, इटली इस मामले को भारत के हाथों से लेने में सफल रहा. इसे अब अपने घरेलू कानूनों के तहत नौसैनिकों पर कार्यवाही करने की प्रतिबद्धताओं को पूरा करना चाहिए. भारत के लिए इस मामले से वैधानिक तथा राजनयिक क्षेत्र में अनुभव मिला जिसका भविष्य में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने पर उपयोग किया जा सकता है.


GS Paper 2 Source : The Hindu

the_hindu_sansar

UPSC Syllabus : Statutory, regulatory and various quasi-judicial bodies.

Topic : Defence Acquisition Council 

संदर्भ 

रक्षा अधिग्रहण परिषद् ने भारतीय सैन्य बलों के लिए रक्षा सामान सहित मिग-29 और सुखोई लडाकू विमानों की अधिग्रहण को स्वीकृति दी है.इसके तहत आवश्यक उपकरणों की खरीद के लिए विभिन्न प्लेटफार्मों के अंतर्गत 38 हजार 900 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के प्रस्तावों को मंजूरी मिली है.

उनमें भारतीय उद्योगों से 31 हजार 130 करोड़ रुपये तक की खरीद शामिल है. भारतीय वायुसेना की लम्बे समय से महसूस की जा रही लड़ाकू दस्ते को बढ़ाने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए परिषद् ने 21 मिग-29 की खरीद के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है.

इसके अलावा मौजूदा 59 मिग-29 विमान के उन्नयन और 12 सुखोई-30 एमकेआई विमानों की खरीद को भी स्वीकृति दे दी गई है.

रक्षा अधिग्रहण परिषद्

  • 2001 में रक्षा अधिग्रहण परिषद् (DAC) की स्थापना सैनिक सामग्रियों के क्रय की गति को बढ़ाने और उसमें भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए भारत सरकार द्वारा की गई थी. इसके अध्यक्ष रक्षा मंत्री होते हैं.
  • DAC का उद्देश्य सेना के लिए आवश्यक उपकरणों के क्रय का समयसीमा के अंदर निष्पादन करना है. इसके लिए यह बजट में किये गये आवंटन का आदर्शतम उपयोग करती है. विदित हो कि सरकार सेना की शक्ति को बढ़ाने के लिए समय-समय पर धनराशि की व्यवस्था करती है.
  • DAC अधिग्रहण के लिए नीतिगत मार्गनिर्देश देती है. यह अधिग्रहण दीर्घकालिक क्रय योजना पर आधारित होता है. यह सभी प्रकार के अधिग्रहण का काम करती है. ये अधिग्रहण आयातित सामग्रियों एवं स्वदेशी दोनों प्रकार की रक्षा सामग्रियों से सम्बन्धित हो सकते हैं.

उद्देश्य

रक्षा खरीद परिषद् का उद्देश्य सशस्त्र बलों की अनुमोदित आवश्यकताओं की निर्धारित समय-सीमा के भीतर और आवंटित बजटीय संसाधनों का बेहतर उपयोग करके, शीघ्र खरीद सुनिश्चित करना है.

कार्य

यह दीर्घावधि अधिग्रहण योजनाओं के लिए नीतिगत दिशानिर्देश तैयार करता है. यह सभी प्रकार की रक्षा खरीद के लिए मंजूरी प्रदान करता जिसमें विदेशी आयात के साथ-साथ स्वदेश निर्मित रक्षा साजो-सामान भी शामिल है.


GS Paper 3 Source : The Hindu

the_hindu_sansar

UPSC Syllabus : Science and Technology.

Topic : International Thermonuclear Experimental Reactor (ITER)

संदर्भ 

हाल ही में भारत के परियोजना प्रमुख द्वारा जानकारी दी गई है कि फ्रांस के कराहाश में तैयार किए जा रहे दुनिया के सबसे बड़े परमाणु संलयन रियेक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor – ITER) में भारत ने अपने 50% योगदान को पूरा कर लिया है.

पृष्ठभूमि

  • भारत औपचारिक रूप से इस परियोजना में 2005 में सम्मिलित हुआ था. भारत को इस परियोजना में क्रायोस्टेट, इन-वॉल शील्डिंग, कूलिंग वाटर सिस्टम, क्रायोजेनिक सिस्टम, हीटिंग सिस्टम, डायग्नोस्टिक न्यूट्रल बीम सिस्टम, बिजली की आपूर्ति के साथ कुछ डायग्नोस्टिक्स सिस्टम का निर्माण करना था.
  • गत महीने भारत के लार्सन एंड टूब्रो द्वारा निर्मित क्रायोस्टैट को सफलतापूर्वक रियेक्टर भवन में स्थापित कर दिया गया है.
  • विदित हो कि निम्न तापस्थापी या क्रायोस्टैट एक ऐसी युक्ति है जो अपने अन्दर रखी वस्तुओं का तापमान अत्यन्त कम बनाये रखने के लिये प्रयुक्त होती है. एलएंडटी द्वारा निर्मित क्रायोस्टैट रियेक्टर के वैक्यूम वेसल के चारो ओर अभेद कंटेनर बनाकर एक बहुत बड़े रेफ्रिजरेटर की तरह कार्य करता है.

ITER परियोजना क्या है?

  • यह दुनिया की सबसे बड़ी शोध परियोजनाओं में एक है, जिसके अंतर्गत संलयन शक्ति के वैज्ञानिक और तकनीकी व्यवहार्यता पर कार्य किया जा रहा है. लिटिल सन के नाम से जाने वाले इस प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटरल रिएक्टर यानी ITER कहा जाता है.
  • ITER प्रोजेक्ट का प्रारम्भ साल 2013 में फ्रांस के कराहाश में किया गया था जिसके लिए सभी सदस्य देशों ने इसके निर्माण में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई थी.
  • इस परियोजना में भारत समेत सात सदस्य (अमेरिका, रूस, दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, और यूरोपीय संघ) शामिल है.

परमाणु ऊर्जा

  • किसी परमाणु के नाभिक की ऊर्जा को ‘परमाणु ऊर्जा’ कहा जाता है.
  • प्रत्येक परमाणु के केंद्र में दो प्रकार के कण होते हैं, जिन्हें प्रोटोन और न्यूट्रॉन कहा जाता है. प्रोटोनों और न्यूट्रॉनों को आपस में जोड़कर रखने वाली ऊर्जा को ही “परमाणु ऊर्जा” (nuclear energy) कहा जाता है.

परमाणु ऊर्जा का महत्त्व

  • इसका उपयोग बिजली उत्पादन में किया जा सकता है. यह ऊर्जा दो प्रक्रियाओं द्वारा प्राप्त की जा सकती है, जिन्हें ‘नाभिकीय विखंडन’ व  ‘नाभिकीय संलयन’ कहा जाता है. नाभिकीय संलयन में छोटे-छोटे परमाणुओं के जुड़ने से एक बड़े अणु का निर्माण होता है जिससे ऊर्जा मुक्त होती है, इस प्रकार की ऊर्जा का उदाहरण ‘सौर ऊर्जा’ है.
  • इसके विपरीत नाभिकीय विखंडन में विशाल अणु छोटे-छोटे परमाणुओं में टूट जाते हैं तथा ऊर्जा का उत्सर्जन होता है.
  • वास्तव में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र बिजली का उत्पादन करने के लिये केवल ‘नाभिकीय विखंडन’ प्रक्रिया का ही उपयोग कर सकते हैं.

विश्व में परमाणु ऊर्जा

  • विश्व के प्रथम वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा स्टेशन ने वर्ष 1950 से कार्य करना प्रारम्भ किया.
  • कुल 390,000 मेगा वाट ऊर्जा क्षमता से अधिक के 440 वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टर विश्व के 31 देशों में कार्य कर रहे हैं.
  • ये रिएक्टर विश्व की 11% से अधिक बिजली का उत्पादन करते हैं.
  • विश्व के 55 देश लगभग 250 अनुसंधान रिएक्टरों का संचालन करते हैं.
  • आज विश्व के केवल आठ देशों के पास ही ‘परमाणु हथियार’ (nuclear weapon) रखने की क्षमता है. इसके विपरीत 55 देश लगभग 250 सिविल अनुसंधान रिएक्टरों का संचालन कर रहे हैं. विदित हो कि इन 55 देशों में से एक-तिहाई देश विकासशील हैं.
  • आज 31 देश 390,000 मेगावाट क्षमता के कुल 447 वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों का संचालन कर रहे हैं.
  • वास्तव में विश्व के 16 देश एक चौथाई बिजली उत्पादन के लिये परमाणु ऊर्जा पर निर्भर हैं. उदाहरण के लिये, फ्राँस अपनी ऊर्जा का तीन चौथाई हिस्सा परमाणु ऊर्जा से प्राप्त करता है, जबकि बेल्जियम, फ़िनलैंड, हंगरी, स्वीडन, स्विट्ज़रलैंड, स्लोवेनिया और युक्रेन आदि देश अपने एक तिहाई से अधिक बिजली उत्पादन के लिये परमाणु ऊर्जा पर निर्भर हैं.

परियोजना के लाभ

  • दरअसल परमाणु ऊर्जा दो तरह से प्राप्त की जा सकती है. इनमें परमाणु के नाभिकों का विखंडन और परमाणु के नाभिकों के संलयन जैसे तरीके सम्मिलित हैं.परमाणु नाभिकों के संलयन द्वारा प्राप्त उर्जा के जरिये उर्जा सुरक्षा के साथ पूरी दुनिया को परमाणु ऊर्जा के दुष्प्रभावों से बचाने में मददगार होगा. आज दुनिया में जितने भी परमाणु रिएक्टर मौजूद हैं इनसे कभी भी परमाणु दुर्घटना का खतरा समेत रिएक्टरों से निकलने वाला परमाणु कचरा से सैकड़ों सालों तक जहरीला विकिरण निकलता रहता है. जिसके निपटारे के लिए अभी कोई व्यवस्था नहीं है. हालाँकि अब परमाणु संलयन तकनीक के आधार पर बन रहे ये परमाणु रिएक्टर सुरक्षित होंगे और उनसे कोई ऐसा परमाणु कचरा भी नहीं निकलेगा.
  • यह परियोजना साल 2025 से काम करना शुरू कर देगी जो प्रदूषण रहित ऊर्जा स्रोतों के विकास में मील का पत्थर साबित होगी. साथ ही इसके बाद 2040 तक एक डेमो रिएक्टर भी तैयार किया जाना प्रस्तावित है जो बिजली पैदा करने की बड़ी यूनिट होगी.
  • भारत के दृष्टिकोण से यह बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत इस परियोजना के माध्यम से 2050 तक परमाणु संलयन प्रक्रिया पर आधारित अपना रिएक्टर भी बना पाएगा.

GS Paper 3 Source : PIB

pib_logo

UPSC Syllabus : Conservation related issues.

Topic : Urban Forest

संदर्भ 

दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) वर्षों से चिंता का कारण बना हुआ है. इस तरह वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर और इस संबंध में सामुदायिक जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के बहादुर शाह ज़फर मार्ग स्थित भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कार्यालय ने कार्यालय पार्क में एक शहरी वन स्थापित करने के लिए कदम उठाया गया हैं.

पृष्ठभूमि

वर्ष 2020 के विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस वर्ष की थीम नगर वन (शहरी वन) पर ध्यान केंद्रित करते हुए अगले पांच वर्षों में देश भर में 200 शहरी वन विकसित करने के लिए नगर वन योजना को लागू करने की घोषणा की है. इसमें लोगों की भागीदारी और वन विभाग,नगर निकायों, गैर सरकारी संगठनों,कॉर्पोरेट और स्थानीय नागरिकों के बीच सहयोग परजोर दिया जाएगा.

शहरी वन क्या हैं?

  • शहरी वन नगरीय अवसंरचना के साथ वृक्षों के रोपण, रख-रखाव, देखभाल और संरक्षण के रूप में परिभाषित किया जाता है. इसमें शहरी नियोजन में नगरीय अवसंरचना के साथ पेड़ों की भूमिका पर विशेष ध्यान दिया जाता है.
  • शहरी वन के रूप में एक घने जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र को शहर के मध्य छोटे क्षेत्र में बनाया जाता है. बहु-स्तरीय वनों में झाड़ियाँ, छोटे से मध्यम आकार के पेड़ और लम्बे पेड़ होते हैं जिन्हें बड़ी सावधानी से परिधीय और कोर प्लांट समुदायों के रूप में लगाया जाता है.
  • शहरी वन एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र है जो पक्षियों, मधुमक्खियों, तितलियों और ऐसे ही अन्य सूक्ष्म जीव-जंतुओं के लिए निवास स्थान बन सकता है. यह फसलों और फलों के परागण के लिए और एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में आवश्यक है.
  • शहरी वन शहरों के फेफड़ों के रूप में कार्य करेंगे और मुख्य रूप से शहर की वन भूमि पर या स्थानीय शहरी निकायों द्वारा प्रस्तावित किसी अन्य खाली जगह इनको स्थापित किया जायेगा.

शहरी वन का माहात्म्य

  • भारत पशुओं और पौधों की कई प्रजातियों से समृद्ध जैव विविधता से संपन्न है और जैव-विविधता से युक्‍त 35 वैश्विक हॉटस्पॉट्स में से 4 का मेजबान है, जिनमें अनेक स्थानिक प्रजातियाँ विद्यमान है. हालांकि बढ़ती जनसंख्या, वनों की कटाई, शहरीकरण और औद्योगीकरण ने हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव डाल दिया है, जिससे जैव विविधता को क्षति पहुँच रही है. जैव विविधता इस ग्रह पर सभी जीवन रूपों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है और विभिन्न पारिस्थितिकीय सेवाएँ प्रदान करने की कुंजी है.
  • पारंपरिक रूप से जैव विविधता संरक्षण को दूरस्थ वन क्षेत्रों तक ही सीमित माना जाता रहा है, परन्तु बढ़ते शहरीकरण के साथ शहरी क्षेत्रों में भी जैव विविधता को सुरक्षित रखने और बचाने के लिए जरूरत उत्पन्न हो गई है. शहरी वन इस अंतर को मिटाने का सबसे अच्छी युक्ति है. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने शहरी परिदृश्य में जैव विविधता के प्रोत्‍साहन और संरक्षण के लिए नगर वन को डब्‍ल्‍यूईडी समारोह 2020 के थीम के रूप में अपनाया है.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

‘वारजे शहरी वन क्षेत्र’ (Warje Urban Forest): जैव विविधता की एक प्रयोगशाला

  • महाराष्ट्र के पुणे शहर में 40 एकड़ की वन भूमि पर एक जंगल (वारजे शहरी वन क्षेत्र) विकसित किया गया है. इस जंगल में 65000 से अधिक पेड़, 5 तालाब और 2 वॉच टॉवर बनाए गए हैं.
  • वर्तमान में यह जंगल 23 पौधों की प्रजातियों, 29 पक्षी प्रजातियों, 15 तितली प्रजातियों, 10 सरीसृप एवं 3 स्तनपायी प्रजातियों के साथ जैव विविधता से समृद्ध है. यहाँ कई पेड़ 25-30 फीट तक लंबे हैं.
  • यह शहरी वन परियोजना शहरी पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने में मदद कर रही है.
  • पुणे का यह ‘वारजे शहरी वन क्षेत्र’ (Warje Urban Forest) अब देश के बाकी हिस्सों के लिये एक रोल मॉडल है.

Prelims Vishesh

New butterfly species from Arunachal :-

अरुणाचल प्रदेश में तितलियों की दो प्रजातियों का पता चला है. इनमें से एक का नाम Striped Hairstreak अथवा Yamamotozephyrus kwangtugenesis है जो म्यांमार की सीमा के पास विजय नगर में मिली है. दूसरी तितली का नाम Elusive Prince  अथवा Rohana tonkiniana है जो नामदफा राष्ट्रीय उद्यान के निकट मियाओ (Miao) में मिली है.

World’s first ever online B.Sc. degree in Programming and Data Science :

  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास ने प्रोग्रामिंग और डाटा साइंस के लिए एक ऑनलाइन B.SC डिग्री पाठ्यक्रम तैयार किया है जिसके अन्दर विडियो के द्वारा पढ़ाई की जायगी.
  • इसमें प्रत्येक सप्ताह कार्य (assignment) दिया जाएगा और अन्य सामान्य पाठ्यक्रमों की भाँति इसकी परीक्षा ली जायेगी.
  • जिस बच्चे ने 12वीं उत्तीर्ण कर ली है और 10वीं के स्तर पर अंग्रेजी और गणित पढ़ चुका है, वह इस पाठ्यक्रम के लिए आवेदन दे सकता है.
  • इसके अतिरिक्त स्नातक और काम करने वाले पेशेवर भी इसमें सम्मिलित हो सकते हैं.

Hul Divas :-

  • प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी जून 30 को हूल दिवस मनाया गया. यह दिवस जून 30, 1855 में सिधो और कान्हू मुर्मू नामक दो संथालों के द्वारा झारखंड के साहबगंज जिले के भोगनाडीह में किये गये विद्रोह के स्मरण में मनाया जाता है.
  • कहा जाता है कि अंग्रेजों के प्रति यह सबसे पहला जन विद्रोह था.
  • विस्तार से पढ़ें – संथाल विद्रोह

 


Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA

June, 2020 Sansar DCA is available Now, Click to Download

Spread the love
Read them too :
[related_posts_by_tax]