Sansar Daily Current Affairs, 03 June 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic: BIMSTEC
संदर्भ
बंगाल की खाड़ी बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल अर्थात् “बिम्सटेक” ने 6 जून 2022 को अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर लिए हैं.
BIMSTEC की स्थापना एवं स्वरूप
BIMSTEC का full form है – Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation.
यह एक क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना Bangkok Declaration के अंतर्गत जून 6, 1997 में हुई थी.
इसका मुख्यालय बांग्लादेश की राजधानी ढाका में है.
वर्तमान में इसमें 7 देश हैं (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका) जिनमें 5 दक्षिणी-एशियाई देश हैं और 2 दक्षिण-पूर्व एशिया के देश (म्यांमार और थाईलैंड) हैं.
इस प्रकार के BIMSTEC के अन्दर दक्षिण ऐसा के सभी देश आ जाते हैं, सिवाय मालदीव, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के.
BIMSTEC के उद्देश्य
BIMSTEC का मुख्य उद्देश्य दक्षिण-एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों (बंगाल की खाड़ी से संलग्न) के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है.
आज यह संगठन 15 प्रक्षेत्रों में सहयोग का काम कर रहा है, ये प्रक्षेत्र हैं –व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, मत्स्य पालन, कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद निरोध, पर्यावरण, संस्कृति, लोगों का लोगों से सम्पर्क, जलवायु परिवर्तन.
BIMSTEC क्षेत्र का महत्त्व
बंगाल की खाड़ी विश्व की सबसे बड़ी खाड़ी है. इसके आस-पास स्थित 7 देशों में विश्व की 22% आबादी निवास करती है और इनका संयुक्त GDP 2.7 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है.
यद्यपि इन देशों के समक्ष आर्थिक चुनौतियाँ रही हैं तथापि 2012-16 के बीच ये देश अपनी-अपनी आर्थिक वृद्धि की वार्षिक दर को 4% और 7.5% के बीच बनाए रखा है.
खाड़ी में विशाल संसाधन भी विद्यमान हैं जिनका अभी तक दोहन नहीं हुआ है.
विश्व व्यापार का एक चौथाई सामान प्रत्येक वर्ष खाड़ी से होकर गुजरता है.
भारतीय हित
इस क्षेत्र में भारत की अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी है, अतः इससे भारत के हित भी जुड़े हुए हैं. BIMSTEC न केवल दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ता है, अपितु इसके अन्दर हिमालय और बंगाल की खाड़ी जैसी पर्यावरण व्यवस्था विद्यमान है.
“पड़ोस पहले” और “एक्ट ईस्ट” जैसी नीतिगत पहलुओं को लागू करने में BIMSTEC एक सर्वथा उपयुक्त मंच है.
भारत के लगभग 300 मिलियन लोग अर्थात् यहाँ की आबादी का एक चौथाई भाग देश के उन चार तटीय राज्यों में रहते हैं जो बंगाल की खाड़ी के समीपस्थ हैं. ये राज्य हैं – आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल. इसके अतिरिक्त 45 मिलियन की आबादी वाले पूर्वोत्तर राज्य चारों ओर भूभागों से घिरे हुए हैं और इनकी समुद्र तक पहुँच नहीं है. BIMSTEC के माध्यम से इन राज्यों को बांग्लादेश, म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों से सम्पर्क करना सरल हो जाएगा और विकास की अनेक संभावनाएँ फलीभूत होंगी.
बंगाल की खाड़ी का सामरिक महत्त्व भी है. इससे होकर मनक्का जलडमरूमध्य पहुंचना आसान होगा. उधर देखने में आता है कि चीन हिन्द महासागर में पहुँचने के लिए बहुत जोर लगा रहा है. इस क्षेत्र में उसकी पनडुब्बियाँ और जहाज बार-बार आते हैं, जो भारत के हित में नहीं हैं. चीन की आक्रमकता को रोकने में BIMSTEC देशों की सक्रियता काम आएगी.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध.
Topic: India finally holds talks with Afghanistan’s Taliban govt
संदर्भ
अफगानिस्तान पर तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद पहली बार, भारत ने विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव ‘जेपी सिंह’ के नेतृत्व में एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल अफगानिस्तान भेजा है.
चर्चा के क्षेत्र
- रुकी हुई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को फिर से शुरू करना,
- राजनयिक संबंधों को सक्रिय करना, और
- अफगान छात्रों और मरीजों के लिए वीजा के मुद्दे को फिर से शुरू करना.
भारत द्वारा अफगानिस्तान के लिए अब तक दी गयी सहायता
मानवीय सहायता के संदर्भ में, भारत द्वारा अब तक अफगान लोगों के लिए 20,000 मीट्रिक टन (MT) गेहूं, 13 टन दवाएं, कोविड टीकों की 500,000 खुराक और सर्दियों के कपड़े भेजे जा चुके हैं.
इस सहायता को संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व खाद्य कार्यक्रम और यूनिसेफ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से वितरित किया गया है, क्योंकि इस सहायता सामग्री को वितरित करने के लिए अफगानिस्तान में भारत के पास लोग मौजूद नहीं थे.
अफगानिस्तान भारत के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- अफगानिस्तान एशिया के चौराहे पर स्थित होने के कारण रणनीतिक महत्त्व रखता है क्योंकि यह दक्षिण एशिया को मध्य एशिया और मध्य एशिया को पश्चिम एशिया से जोड़ता है.
- भारत का संपर्क ईरान, अज़रबैजान, तुर्कमेनिस्तान तथा उज़्बेकिस्तान के साथ अफगानिस्तान के माध्यम से होता है. इसलिये अफगानिस्तान भारत के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है.
- अफगानिस्तान भू-रणनीतिक दृष्टि से भी भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत और मध्य एशिया के मध्य स्थित है जो व्यापार की सुविधा भी प्रदान करता है.
- यह देश रणनीतिक रूप से तेल और गैस से समृद्ध मध्य-पूर्व और मध्य एशिया में स्थित है जो इसे एक महत्त्वपूर्ण भू-स्थानिक स्थिति प्रदान करता है.
- अफगानिस्तान पाइपलाइन मार्गों के लिये महत्त्वपूर्ण स्थान बन जाता है. साथ ही अफगानिस्तान कीमती धातुओं और खनिजों जैसे प्राकृतिक संसाधनों से भी समृद्ध है.
तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान पर भारत का रुख
भारत की अध्यक्षता में ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) द्वारा ‘संकल्प 2593’ को अपनाया गया था. इस संकल्प में कहा गया है, कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का उपयोग किसी भी देश को धमकी देने या आतंकवादियों को शरण देने के लिए नहीं किया जाएगा.
भारत ने, सितंबर में आयोजित ‘अफगानिस्तान में मानवीय स्थिति’ पर संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय बैठक में भाग लिया. इस बैठक में, भारत ने ‘काबुल हवाई अड्डे’ के नियमित वाणिज्यिक संचालन को सामान्य बनाने की मांग की, जिससे अफगानों को राहत सामग्री के प्रवाह में मदद मिल सके.
भारत ने नवंबर 2021 में आयोजित अफगानिस्तान पर ‘दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता’ की मेजबानी की.
संबंधित प्रकरण
तालिबान का अफगानिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो चुका है. इस बाद से देश में लोगों के पास नौकरियां और आय का कोई साधन नहीं है. इस वर्ष सर्दी के मौसम में 22 मिलियन से अधिक अफगानों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा, और जलवायु परिवर्तन से प्रेरित सूखा ने उनके संकट को और बढ़ा दिया. यह सब स्थितियां अफगानों के लिए देश से बाहर पलायन करने या भुखमरी के बीच चयन करने के लिए मजबूर कर रही हैं.
अफ़गानिस्तान में स्थिरता का महत्त्व (Significance of Afghan stability)
अफ़गानिस्तान में तालिबान की बहाली का असर इसके पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान आदि में फैल सकता है.
तालिबान के पुनरुत्थान से इस क्षेत्र में ‘उग्रवाद’ फिर से जिंदा हो जाएगा और यह क्षेत्र ‘लश्कर-ए-तैयबा’, आईएसआईएस आदि के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बन सकता है.
अफगानिस्तान में गृहयुद्ध होने से मध्य एशिया और उसके बाहर के देशों में शरणार्थी संकट उत्पन्न हो जाएगा.
अफगानिस्तान की स्थिरता से मध्य एशियाई देशों को हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित बंदरगाहों तक – सबसे कम-दूरी वाले मार्ग से – पहुंचने में मदद मिलेगी.
अफगानिस्तान, मध्य-एशिया और शेष विश्व के बीच एक पुल की भूमिका निभाने वाली, क्षेत्रीय व्यापार हेतु और सांस्कृतिक रूप से, एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है.
भारत के लिए तालिबान के साथ संपर्क स्थापित करना क्यों आवश्यक है?
- अफ़ग़ानिस्तान में अब तालिबान की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है.
- भारत पहले से ही अफगानिस्तान में भारी निवेश कर चुका है. अपनी 3 अरब डॉलर की परिसंपत्तियों की सुरक्षा हेतु, भारत को अफगानिस्तान में सभी पक्षों के साथ संपर्क स्थापित करने चाहिए.
- तालिबान का पाकिस्तान के साथ गहन राज्य संबंध बनाना, भारत के हित में नहीं होगा.
- यदि भारत ने अभी संपर्क स्थापित नहीं किए, तो रूस, ईरान, पाकिस्तान और चीन, अफगानिस्तान के राजनीतिक और भू-राजनीतिक भाग्य-निर्माता के रूप में उभरेंगे, जो निश्चित रूप से भारतीय हितों के लिए हानिकारक होगा.
- अमेरिका ने क्षेत्रीय-संपर्को पर सबको चौंकाते हुए ‘अमेरिका-उजबेकिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान’ के रूप में एक “क्वाड” (Quad) का गठन करने की घोषणा की है – जिसमें भारत को शामिल नहीं किया गया है.
- अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए, चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ व्यापार करने संबधी भारत का प्रयास संकट में पड़ा हुआ है.
समय की मांग
- तालिबान द्वारा की जा रही हिंसा पर रोक लगाकर, अफ़ग़ान नागरिकों की सुरक्षा हेतु सामूहिक रूप से कार्य करने की तत्काल आवश्यकता है.
- अफगानिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मध्य एशियाई संगठन में पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए.
- अमरीका, ईरान, चीन और रूस को अफगानिस्तान में स्थिरता बनाए रखने के लिए भारत को सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए.
- शरणार्थी संकट उत्पन्न होने पर उसके लिए समेकित कार्रवाई की जानी चाहिए.
- निकटस्थ पड़ोसियों के साथ शांति बनाए रखने हेतु तालिबान के साथ भारत द्वारा संपर्क स्थापित किए जाने चाहिए.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश.
Topic: Leadership for Industry Transition – LeadIT
संदर्भ
हाल ही में, भारत और स्वीडन ने अपनी संयुक्त पहल अर्थात ‘लीडरशिप फॉर इंडस्ट्री ट्रांजिशन’ (Leadership for Industry Transition – LeadIT) के एक हिस्से के रूप में ‘स्टॉकहोम’ में ‘उद्योग अवस्थांतर वार्ता’ (इंडस्ट्री ट्रांजिशन डायलॉग) की मेजबानी की.
लीडआईटी (LeadIT) के बारे में:
‘लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांज़िशन’ (LeadIT) निजी क्षेत्र की कंपनियों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से विशेष रूप से आयरन एंड स्टील, एल्युमिनियम, सीमेंट और कंक्रीट, पेट्रोकेमिकल्स, उर्वरक, ईंटों, भारी शुल्क परिवहन आदि जैसे कठिन क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने को प्रोत्साहन देने के लिए एक स्वैच्छिक पहल है.
यह पहल, ‘पेरिस समझौते’ को पूरा करने एवं कार्रवाई करने के लिये प्रतिबद्ध देशों और कंपनियों को एकत्रित करती है.
इसे वर्ष 2019 के ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन’ में स्वीडन और भारत की सरकारों द्वारा लॉन्च किया गया था और इसे ‘विश्व आर्थिक मंच’ का समर्थन प्राप्त है.
उद्देश्य: लीडआईटी के सदस्य इस विचार को बढ़ावा देते हैं कि वर्ष 2050 तक ऊर्जा-गहन उद्योगों में निम्न-कार्बन उत्सर्जन के उपायों को अपनाकर ‘शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन’ प्राप्त करने के लक्ष्यों की पूर्ति की जा सकती है.
इसके प्रबंधन बोर्ड में, स्वीडन, भारत और विश्व आर्थिक मंच के प्रतिनिधि शामिल होते हैं.
लीड आईटी का सचिवालय, लीडरशिप ग्रुप के काम के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है और स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान (Stockholm Environment Institute) द्वारा इसकी मेजबानी की जाती है.
सदस्य:
वर्तमान में, इस समूह में भारत से डालमिया सीमेंट, महिंद्रा समूह और स्पाइसजेट सहित कुल 16 देश और 19 कंपनियां शामिल हैं.
लीडआईटी पहल का महत्त्व
उद्योग क्षेत्र मिलकर कुल CO2 उत्सर्जन में लगभग 30% का योगदान करते हैं. इसलिए, पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उद्योग क्षेत्र को ‘निम्न कार्बन’ विकास मार्ग पर चलाने के लिए लीडआईटी जैसी पहल महत्त्वपूर्ण हैं.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता.
Topic: International Liquid Mirror Telescope – ILMT
संदर्भ
भारत का पहला तरल-दर्पण दूरबीन (लिक्विड-मिरर टेलीस्कोप)- ‘इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप’ (International Liquid Mirror Telescope – ILMT) अब अपनी शुरुआत के चरण में प्रवेश कर चुका है और यह इस साल अक्टूबर में किसी भी समय ‘वैज्ञानिक अवलोकन’ करना शुरू कर देगा.
इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप (ILMT) के बारे में
- यह एशिया का सबसे बड़ा इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप (ILMT) है, जिसे समुद्र तल से 2,450 मीटर की ऊँचाई पर स्थापित किया गया है.
- इस टेलीस्कोप को नैनीताल के आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (ARIES) के स्वामित्व वाले देवस्थल वेधशाला परिसर में स्थापित किया गया है.
- खगोल विज्ञान अनुसंधान के लिये विकसित किया गया यह दुनिया का पहला लिक्विड-मिरर टेलीस्कोप है. यह दुनिया में कहीं भी चालू होने वाला अपनी तरह का अकेला टेलीस्कोप है.
- इस टेलीस्कोप का उपयोग दुनिया के किनारे पर मौज़ूद आकाशगंगाओं और अन्य खगोलीय तत्त्वों का निरीक्षण करने के लिये किया जाएगा.
- इस टेलीस्कोप को बेल्जियम, कनाडा, पोलैंड और उज्बेकिस्तान के सहयोग से भारत द्वारा स्थापित किया गया है. इसे बेल्जियम में एडवांस्ड मेकैनिकल एंड ऑप्टिकल सिस्टम्स कॉर्पोरेशन और सेंटर स्पैटियल डी लीज में डिजाइन किया गया और बनाया गया था.
- पारंपरिक दूरबीनों में एकल या घुमावदार सतहों के संयोजन के साथ पॉलिश किये गए काँच के दर्पण होते हैं और विशिष्ट रातों में विशेष खगोलीय पिंडों का निरीक्षण करने के लिये उपयोग किये जाते हैं, जबकि तरल दर्पण दूरबीन (लिक्विड मिरर टेलीस्कोप) परावर्तक तरल पदार्थों, जैसे- मरकरी से बनी होती हैं और सितारों, आकाशगंगाओं, सुपरनोवा विस्फोटों, क्षुद्रग्रहों से लेकर अंतरिक्ष मलबे तक सभी संभावित खगोलीय पिंडों को कैप्चर करते हुए आकाश की एक पट्टी का अवलोकन करता है.
इस टेलीस्कोप की विशेषताएं
परंपरागत दूरबीनों को विशिष्ट तारकीय स्रोत पिंडो को ट्रैक करने के लिए परिचालित किया जा सकता है अर्थात घुमाया जा सकता है, जबकि ‘इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप’ (ILMT) एक ही स्थान पर स्थिर (Stationary) रहेगा.
यह टेलीस्कोप, मूल रूप से ऊर्ध्व दिशा अपने ठीक ऊपर अंतरिक्ष में अवलोकन और इमेजिंग करेगा.
यह नए पिंडों की खोज करने की उच्च क्षमता-युक्त एक ‘सर्वेक्षण दूरबीन’ है
Sansar Daily Current Affairs, 04 June 2022
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय.
Topic: National Achievement Survey – NAS
संदर्भ
हाल ही में, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय द्वारा नवीनतम ‘राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण’ (National Achievement Survey – NAS) के परिणाम जारी किए गए.
राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) का पहला संस्करण 2001 में किया गया था.
‘राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण’ के बारे में (National Achievement Survey – NAS)
- यह देश की स्कूली शिक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य की निगरानी करने के लिए मोटे तौर पर हर दूसरे वर्ष किया जाने वाला एक आवधिक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण है.
- ‘राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण’, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के सहयोग से शिक्षा मंत्रालय द्वारा डिजाइन किया गया है.
- उद्देश्य: कक्षा 3, 5, 8 और 10 के अंत में प्रमुख विषयों में सीखने के परिणामों का एक तात्कालिक चित्र प्रदान करना. इन कक्षाओं को आम तौर पर एक बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमताओं के विकास में महत्वपूर्ण चरणों को चिह्नित करने के रूप में देखा जाता है.
राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण, 2021 (NAS 2021) के प्रमुख निष्कर्ष
- वर्ष 2017 की तुलना में, सभी विषयों में छात्रों के राष्ट्रीय औसत अंकों में 47 अंकों तक की गिरावट आई है.
- कक्षा 3 में, भाषा, गणित और पर्यावरण विज्ञान में छात्रों के औसत अंकों में गिरावट आई है.
- कक्षा 5 में, भाषा, गणित और पर्यावरणीय अध्ययन के अंकों में गिरावट आई है.
- कक्षा 8 में भाषा, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के राष्ट्रीय औसत अंकों में गिरावट देखी गई है.
- कक्षा 10 में, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और आधुनिक भारतीय भाषा के अंकों में गिरावट आई है.
क्षेत्रीय, लैंगिक या समुदाय-वार भिन्नताएं
- पंजाब और राजस्थान को छोड़कर, लगभग सभी राज्यों के प्रदर्शन में 2017 के स्तर की तुलना में गिरावट आई है.
- लड़कों और लड़कियों के स्कोर के बीच कोई उल्लेखनीय अंतर नहीं रहा.
- हालाँकि, अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति /अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणियों के छात्रों का प्रदर्शन सामान्य श्रेणी के छात्रों की तुलना में कम रहा.
इन निष्कर्षों के निहितार्थ
- राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण के निष्कर्ष एक बार फिर बुनियादी शिक्षण के स्तर में सुधार के लिए तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता को स्पष्ट करते हैं.
- यह सर्वेक्षण, सीखने के अंतराल की समस्या को सुलझाने में मदद करेगा और सीखने के स्तर में सुधार करने हेतु दीर्घकालिक, मध्यावधि और अल्पकालिक हस्तक्षेप विकसित करने में राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों का समर्थन करेगा.
- NAS के निष्कर्ष शिक्षकों, शिक्षा के प्रसार में शामिल अधिकारियों के लिये क्षमता निर्माण में मदद करेंगे.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन.
Topic: World No Tobacco Day
संदर्भ
तंबाकू सेवन के घातक प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष 31 मई को ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ (World No Tobacco Day) के रूप में मनाया जाता है.
‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ की घोषणा वर्ष 1987 में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO) के सदस्य राष्ट्रों द्वारा ‘तंबाकू महामारी’ और इससे होने वाली निवारण-योग्य मृत्यों और बीमारी पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लिए की गयी थी.
1988 में, विश्व स्वास्थ्य महासभा द्वारा WHA 42.19 प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें हर साल 31 मई को ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ मनाने की मांग की गयी थी.
‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ 2022 के लिए थीम: “तंबाकू: हमारे पर्यावरण के लिए खतरा.” (Tobacco: Threat to our environment). इस अभियान का उद्देश्य तंबाकू के पर्यावरणीय प्रभाव – खेती, उत्पादन, वितरण और कचरे के प्रति जनता के बीच जागरूकता बढ़ाना है.
‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ द्वारा ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ (WNTD) पुरस्कार-2022 के लिए ‘झारखंड’ को चुना गया है.
पर्यावरण पर तंबाकू का प्रभाव:
हर साल तंबाकू उगाने में लगभग 35 लाख हेक्टेयर भूमि बर्बाद हो जाती है.
तंबाकू उगाने के लिए, खासकर विकासशील देशों में जंगल काटे जाते हैं.
तंबाकू की खेती के परिणामस्वरूप मिट्टी का क्षरण होता है, जिससे यह अन्य फसलों या वनस्पतियों के विकास में सहायता करने के लिए अनुर्वर हो जाती है.
तंबाकू के चलते वैश्विक तापमान बढ़ाने वाले 84 मेगाटन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन वातावरण में छोड़ा जाता है.
सिगरेट के उत्पादन में हर साल लगभग बाईस अरब लीटर पानी की खपत होती है.
तंबाकू की फसल के लिए अत्यधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है और यह मिट्टी के पोषक तत्वों को और अधिक तेजी से नष्ट कर देती है.
भारत में तंबाकू की खेती
तंबाकू, महत्त्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है.
वर्तमान में, भारत, चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू फसल उत्पादक देश है.
भारत में लगभग 40 लाख हेक्टेयर भूमि पर लगभग 760 मिलियन किलोग्राम तम्बाकू उगाया जाता है.
यह क्षेत्र लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है और उत्पाद शुल्क के रूप में 22,737 करोड़ रुपये और राष्ट्रीय खजाने में विदेशी मुद्रा में 5,969 करोड़ रुपये का योगदान देता है.
स्वास्थ्य पर तंबाकू का प्रभाव
यह अनुमान लगाया गया है, कि लगभग 29% वयस्क भारतीय जनसंख्या तम्बाकू का सेवन करती है. आमतौर पर इसका सेवन धूम्रपान रहित तंबाकू उत्पादों जैसे खैनी, गुटखा और जर्दा के रूप में किया जाता है.
तम्बाकू के धुंआ रहित प्रारूप, मुहं और ग्रासिकनाल (Oesophageal) में कैंसर का उच्च जोखिम पैदा करते हैं.
गर्भवती महिलाओं द्वारा तम्बाकू का सेवन, ‘मृत जन्म’ (stillbirth) और जन्म के समय शिशुओं में कम वजन का कारण भी हो सकता है.
धूम्रपान के आदी लोगों को गर्भाशय ग्रीवा, और अस्थि मज्जा कैंसर का खतरा बहुत अधिक होता है.
तंबाकू की वजह से, दुनिया भर में टीबी, एचआईवी/एड्स और मलेरिया से ज्यादा लोगों की मौत होती है.
तम्बाकू किसानों में “ग्रीन टोबैको सिकनेस” (Green Tobacco Sickness) नामक एक कार्य-संबंधी बीमारी होने की संभावना होती है, यह बीमारी मुख्य रूप से त्वचा के माध्यम से निकोटीन के अवशोषण से होती है.
इस संबंध में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास
सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003 या ‘कोटपा 2003’ (The Cigarettes and Other Tobacco Products Act 2003, Or COTPA 2003): इस अधिनियम के तहत, सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध, सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों का विज्ञापन पर रोक, 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को और स्कूलों, कॉलेजों, आदि जैसे क्षेत्रों में सिगरेट या अन्य तंबाकू उत्पादों की बिक्री करना निषेध किया गया है.
भारत को, व्यसन मुक्त बनाने के लिए सरकार ने ‘राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम’ और ‘नशा मुक्त भारत अभियान’ जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं.
फसल विविधीकरण कार्यक्रम: किसानों को पानी और मिट्टी के संरक्षण के लिए तंबाकू फसलों के स्थान पर कम पानी की खपत वाले विकल्पों का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता
Topic: Antimicrobial Resistance – AMR
सन्दर्भ
हाल ही में, अत्यधिक औद्योगीकृत देशों के ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ (G7) के स्वास्थ्य मंत्रियों द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि, ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध’ (Antimicrobial Resistance – AMR) निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (low- and middle-income countries – LMIC) के लिए एक बड़ा खतरा था, और इससे लड़ना एक साझा जिम्मेदारी थी.
संबंधित चिंताएं
पूरे विश्व में हर साल लगभग 700,000 लोग ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध’ (AMR) की वजह से मरते हैं.
2050 तक यह संख्या बढ़कर 10 मिलियन तक हो सकती है और इससे वार्षिक वैश्विक ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (जीडीपी) के 3.8 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है.
G7 द्वारा प्रस्तावित योजना
- एक नई अंतरराष्ट्रीय समन्वित निगरानी प्रणाली स्थापित करना.
- ‘सूक्ष्माणुरोधी प्रतिरोधक क्षमता’ या ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध’ (AMR) और एंटीबायोटिक दवाओं के मनुष्यों, जानवरों और पौधों और पर्यावरण पर प्रभाव की निगरानी के लिए मौजूदा प्रणालियों में सुधार करना.
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध’ के जोखिम आंकलन की सूचना देने और इसके शमन के अवसरों की पहचान करने के लिए वैज्ञानिक आधार को बढ़ाना.
- स्थानीय अधिकारियों के दिशानिर्देशों के अनुरूप AMR पर राष्ट्रीय मापनीय लक्ष्यों को परिभाषित करके, वर्ष 2023 तक, मानव स्वास्थ्य में एंटीबायोटिक के उपयोग सहित रोगाणुरोधी दवाओं के विवेकपूर्ण और उचित उपयोग को बढ़ावा देना.
- आगामी संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण पर रिपोर्ट तैयार करना और अक्टूबर में बर्लिन में आयोजित होने वाले ‘विश्व स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन’ में प्रस्तुत करना.
‘एंटीबायोटिक प्रतिरोध’ के बारे में:
- ‘एंटीबायोटिक प्रतिरोध’ (Antibiotic resistance), सूक्ष्मजीवों (जैसे बैक्टीरिया, वायरस और कुछ परजीवियों) द्वारा विकसित की गयी दवा प्रतिरोधी क्षमता होती है, जिसके द्वारा ये सूक्ष्मजीव अपने खिलाफ काम करने वाले रोगाणुरोधियों (जैसे एंटीबायोटिक, एंटीवायरल और एंटी-मलेरिया) आदि को अप्रभावी कर देते है. परिणामस्वरूप, मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं तथा संक्रमण जारी रहता है.
सूक्ष्माणुरोधी प्रतिरोधक क्षमता (Antimicrobial Resistance- AMR) भविष्य के लिए एक मूक खतरा
‘एंटीबायोटिक्स’ दवाओं से अब तक लाखों लोगों की जान बचाई जा चुकी है. किंतु दुर्भाग्य से, अब ये दवाईयां अप्रभावी हो रही हैं क्योंकि कई संक्रामक रोगों ने एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिक्रिया दिखाना बंद कर दिया है.
यद्यपि सूक्ष्माणुरोधी प्रतिरोध (AMR), एक प्राकृतिक प्रक्रिया होती है, किंतु मनुष्यों और जानवरों में एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग इस प्रक्रिया को तेज करता जा रहा है.
जिसकी वजह से, तपेदिक, निमोनिया और सूजाक जैसे बड़ी संख्या में संक्रमणों का इलाज करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि उनके इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक्स कम प्रभावी होती जा रही हैं.
विश्व स्तर पर, जानवरों में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में 2030 तक वर्ष 2010 के स्तर से 67 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है. रोगाणुओं में ‘एंटीबायोटिक प्रतिरोध’ एक मानव निर्मित आपदा है.
मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, मत्स्य पालन और कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं का गैर-जिम्मेदाराना तरीके से बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है.
अंग प्रत्यारोपण और कार्डियक बाईपास जैसी जटिल सर्जरी करना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि सर्जरी के बाद ऐसी संक्रामक जटिलतायें हो सकती है, जिनका उपचार करना कठिन हो जाएगा.
भारत में AMR से निपटने हेतु किए गए उपाय
राष्ट्रीय रोगाणुरोधी प्रतिरोध नियंत्रण कार्यक्रम: 2012 में शुरू किया गया.
राष्ट्रीय रोगाणुरोधी प्रतिरोध कार्य योजना: अप्रैल 2017 में शुरू की गई थी.
रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी और अनुसंधान नेटवर्क (AMRSN): 2013 में शुरू किया गया था.
Prelims Vishesh
Zakhiku :-
- अत्यधिक सूखे के कारण ईराक के सबसे बड़े जलाशय में पानी का स्तर गंभीर रूप से नीचे चले जाने के बाद, देश में 3,400 साल पुराने खोए हुए शहर के खंडहरों का पता चला है.
- इन खंडहरों को प्राचीन शहर ‘ज़खीकू’ (Zakhiku) का अवशेष माना जा रहा है, जो कभी इस क्षेत्र का राजनीतिक केंद्र हुआ करता था.
- कांस्य युगीन यह नगर, लंबे समय से टाइग्रिस नदी से घिरा हुआ था, और इस साल की शुरुआत में ‘मोसुल बांध’ में दिखाई दिया था.
- यह नगर, कुर्दिस्तान क्षेत्र में ‘केमुने’ (Kemune) नामक स्थान पर स्थित है.
- 1550 से 1350 ई.पू. तक ‘मितानी साम्राज्य’ के दौरान यह नगर संभवतः एक प्रमुख केंद्र था.
- लगभग 1350 ई.पू. में एक भूकंप ने शहर के अधिकांश हिस्से को नष्ट कर दिया था, लेकिन इसके कुछ अवशेष ढह चुकी दीवारों के नीचे संरक्षित हैं.
Eublepharis pictus :-
- वैज्ञानिक नाम: यूबलफेरिस पिक्टस (Eublepharis pictus).
- 2017 में विशाखापत्तनम में खोजा गया था.
- शुरुआत में, ‘चित्रित तेंदुआ छिपकली’ (Painted Leopard Gecko) को एक ज्ञात प्रजाति से संबंधित माना जाता था. किंतु अब इसे एक नई प्रजाति के सदस्य के रूप में पहचाना गया है.
- नई प्रजाति, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के जंगलों में आम तौर पर पायी जाती है.
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