Sansar Daily Current Affairs, 02 June 2022
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic India’s nuclear policy reflects its past ideology: NHRC chief
संदर्भ
हाल ही में, ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग’ (National Human Rights Commission – NHRC) के अध्यक्ष ने कहा है, कि परमाणु हथियारों पर भारत की नीति उसकी पिछली विचारधारा की अभिव्यक्ति है.
- उन्होंने कहा, कि भारतीय सभ्यतागत लोकाचार “विचारों और विश्वासों की विभिन्न धाराओं को आत्मसात करने की शक्ति से समृद्ध है, क्योंकि हम अपनी संस्कृति को सुधारना चाहते हैं और दूसरों पर नहीं थोपना चाहते हैं, जोकि मानव अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है.
- भारत की परमाणु नीति का सिद्धांत उसकी पिछली विचारधारा का प्रकटीकरण है, जिसमे मानवता को नुकसान पहुचाने वाले सामूहिक विनाश के हथियारों के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है.
- यह सिद्धांत रामायण और महाभारत दोनों में परिलक्षित हुआ है, जिनमे सामूहिक विनाश के हथियारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.
भारत का परमाणु कार्यक्रम
1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई. 1957 में भारत ने मुंबई के नजदीक ट्राम्बे में पहला परमाणु अनुसंधान केंद्र स्थापित किया. 1967 में इसका नाम बदलकर भाभा परमाणु अनुसंधान कर दिया गया. 18 मई, 1974 को पोखरण में पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया. यह भारत की परमाणु शक्ति का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था.
भारत ने पोखरण 2 योजना के अंतर्गत 1998 में आणविक परीक्षण किये थे. आगे चलकर 2003 में भारत ने अपना आणविक सिद्धांत (nuclear doctrine) घोषित किया गया जिसमें कहा गया कि भारत अपनी रक्षा के लिए न्यूनतम आणविक हथियार रखेगा और किसी युद्ध में इन हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा, अपितु किसी दूसरे देश द्वारा आणविक आक्रमण के प्रतिकार में ही करेगा.
इस सिद्धांत में यह भी अंकित किया गया कि आणविक अस्त्र के प्रयोग का निर्णय प्रधानमंत्री अथवा उसके द्वारा नामित उत्तराधिकारी ही करेगा.
NO FIRST USE की आज की तिथि में क्या प्रासंगिकता है?
- भारत के दो प्रमुख पड़ोसी पाकिस्तान और चीन परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं.
- इसके अलावा परमाणु संपन्न उत्तर कोरिया और रूस भी भारत से अधिक दूर नहीं हैं.
- No First Use नीति हमारे परमाणु कार्यक्रम के आत्मरक्षात्मक होने की बड़ी दलील है.
- ये बताता है कि भारत एक जवाबदेह परमाणुशक्ति है.
- इस नीति से न सिर्फ हमारे परमाणु कार्यक्रम की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता बढ़ी है बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय परमाणु संघठन हमें सिर्फ इसलिए अपना रहे हैं.
क्या भारत को NO FIRST USE POLICY बदल देनी चाहिए?
भारत की अमेरिका से नजदीकी, रूस के साथ ऐतिहासिक रिश्ते और दक्षिण-पश्चिम एशिया में देशों के साथ सकारात्मक रूप से बदल रहे भारत के रिश्ते को देखकर तो ऐसा लगता है कि शायद ही भारत के द्वारा उसकी परमाणु नीति के बदलाव के बाद ये देश किसी भी तरह का ऐतराज जताएंगे. लेकिन सच कहा जाए तो लम्बी अवधि में भारत को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. हम परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में दाखिल होने के लिए इतना प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में नीति में अचानक बदलाव तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है. यानी कूटनीतिक दृष्टि से यह सही नहीं माना जा सकता. हाँ यह सही है कि हर नीति की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए और अगर जरुरत पड़े तो बदलाव भी होना चाहिए. लेकिन यह बदलाव हम अंतर्राष्ट्रीय दबाव में न आकर अपनी जरूरतों के हिसाब से तय करें तो हमारे लिए अच्छा होगा.
भारत के पड़ोस में दो ऐसे देश हैं जिनके पास आणविक अस्त्र हैं. चीन पहले ही यह नीति चला रहा है कि वह केवल प्रतिकार में ही आणविक अस्त्रों का प्रयोग करेगा. संभावना है कि वह अपनी इस नीति को बदलेगा नहीं. इसलिए यदि भारत अपनी नीति बदल देता है तो संभव है कि चीन इसका लाभ उठाकर पहले आक्रमण करने की नीति अपना ले और इसके लिए भारत पर आरोप मढ़ दे. इसका लाभ उठाकर चीन अमेरिका और रूस के प्रति भी अपना सिद्धांत बदल ले.
भारत सदा अपने-आप को एक उत्तरदायी आणविक शक्ति-सम्पन्न देश के रूप में विश्व के समक्ष रखता आया है. अतः यदि वह पहले आक्रमण की नीति अपनाएगा तो उसकी इस छवि को आघात पहुंचेगा. भारत की वर्तमान नीति के कारण ही पाकिस्तान और भारत अपने-अपने आणविक अस्त्रों को युद्ध स्तर पर सुसज्जित नहीं रखते हैं और अर्थात् ये अस्त्र डिलीवरी प्रणाली से जुड़े हुए नहीं हैं. इस कारण पाकिस्तान में आणविक आतंकवाद की सम्भावना कम रहती है और इस बात का भी खतरा कम होता है कि संयोगवश कोई आणविक हथियार चल नहीं जाए.
यदि भारत यह नीति (first-strike policy) अपनाता है कि वह पहले भी आणविक हथियार चला सकता है तो पाकिस्तान भारत के आणविक आक्रमण को रोकने के लिए मिसाइल छोड़ सकता है.
भारत पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव
1974 से लेकर 1998 तक भारत की परमाणु नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया. लेकिन इस दौरान अमेरिका समेत दुनिया के अन्य परमाणु सशक्त देश NPT यानी परमाणु अप्रसार संधि और CTBT यानी व्यापक आणविक परीक्षण प्रतिबन्ध संधि 1993 पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत पर दबाव बनाते रहे. पर भारत ने इस भेदभावपूर्ण नीति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. दरअसल यह संधि सिर्फ गैर परमाणु राष्ट्रों पर ही रोक लगाती है. इसलिए भारत ने NPT और CTBT पर हस्ताक्षर नहीं किए.
1998 में अटल बिहार वाजपेयी भारत के प्रधानमन्त्री बने और राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए उन्होंने भारत को बड़ी परमाणु शक्ति बनाने का नारा दिया. प्रधानमन्त्री बनने के दो महीने के भीतर ही वाजपयी ने दूसरे परमाणु परीक्षण करने के लिए निर्देश दिए.
2003 में भारत ने परमाणु नीति में बदलाव की घोषणा की और इसमें कहा गया है कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए न्यूनतम परमाणु क्षमता विकसित करेगा. पहले प्रयोग नहीं करने की यानी NFU (No First Use) को लेकर भारत अब भी अडिग है. लेकिन परमाणु हमला होने की सूरत में भारत जवाब जरुर देगा, यह भी तय है.
NSG की सदस्यता भारत के लिए महत्त्वपूर्ण क्यों?
- यदि भारत NSG का सदस्य बन जाता है तो उसे इस समूह के अन्य सदस्यों से नवीनतम तकनीक उपलब्ध हो जाएँगे. ऐसा होने से Make in India कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा और फलस्वरूप देश की आर्थिक वृद्धि होगी.
- पेरिस जलवायु समझौते में भारत ने यह वचन दे रखा है कि वह जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाएगा और इसकी ऊर्जा का 40% नवीकरणीय एवं स्वच्छ स्रोतों से आने लगेगा.
- इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें आणविक ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना होगा. यह तभी संभव होगा जब भारत की पहुँच NSG तक हो जाए.
- विश्व में यूरेनियम के चौथे बड़े उत्पादक देश नामीबिया ने भारत को 2009 में ही आणविक ईंधन देने का वचन दिया था पर वह वचन फलीभूत नहीं हुआ क्योंकि नामीबिया ने पेलिनदाबा संधि पर हस्ताक्षर कर रखे थे जिसमें अफ्रीका के बाहर यूरेनियम की आपूर्ति पर रोक लगाई गयी है.
- यदि भारत में NSG में आ जाता है तो नामीबिया भारत को यूरेनियम देना शुरू कर देगा.
- NSG का सदस्य बन जाने के बाद वह NSG के मार्गनिर्देशों से सम्बन्धित प्रावधानों के बदलाव पर अपना मन्तव्य रख सकेगा. ज्ञातव्य है कि इस समूह में सारे निर्णय सहमति से होते हैं और इसलिए किसी भी बदलाव के लिए भारत की सहमति आवश्यक हो जायेगी.
- NSG का सदस्य बन जाने के बाद भारत को आणविक मामलों में समय पर सूचना उपलब्ध हो जायेगी.
पाँच परमाणु अनुसंधान केंद्र
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई
- इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम
- उन्नत तकनीकी केंद,र इंदौर
- वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रान केंद्र, कलकत्ता
- परमाणु पदार्थ अन्वेषण अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद
देश में 21 नाभकीय ऊर्जा रिएक्टर काम कर रह हैं. इनके जरिये सात हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन संभव होता है. इसके अलावा 11 और परमाणु रियेक्टरों पर काम चल रहा है. इनके पूरा होते ही भारत 8000 MW अतिरिक्त बिजली उत्पादन क्षमता हासिल कर लेगा.
परमाणु क्षमता युक्त भारत की मिसाइलें
- सतह से सतह >> Prithvi 1, Prithvi 2, Prithvi 3, प्रहार, शौर्य, Agni 1, Agni 2, Agni 3, Agni 4, Agni 5, Agni 6 (under development)
- समुद्र से सतह >> धनुष
- सतह से हवा>> आकाश, त्रिशूल
- हवा से हवा>> अस्त्र
- जहाज से हवा/सतह>> बराक 1 और बराक 8 (इजराइल+भारत), धनुष
- जमीन, पानी, हवा या युद्ध पोत >> ब्रह्मोस, निर्भय
- सबमरीन >> K4, सागरिका (K15)
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार.
Topic Achievements of the G7 Summit
संदर्भ
अपनी 12,000 शब्दों की आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, G7 समूह ने अतिथि देशों के साथ चार अन्य विषयों – लोकतंत्र, यूक्रेन, वैश्विक खाद्य सुरक्षा और एक जलवायु क्लब के निर्माण पर – भी बयान जारी किए हैं.
- समग्र रूप से, इस शिखर सम्मेलन के परिणाम वजनदार और प्रभावशाली प्रतीत होते हैं.
- G7 समूह द्वारा वैश्विक दक्षिण (Global South) पर सुविचारित सहमति के बाद पांच मेहमान देशों – अर्जेंटीना, भारत, इंडोनेशिया, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका – के शीर्ष नेताओं को शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था.
- G7 समूह के विरोधी और प्रतिस्पर्धी देश – रूस और चीन – इस सम्मलेन में मौजूद नहीं थे.
G7 नेताओं की आधिकारिक विज्ञप्ति: प्रमुख बिंदु
- यूक्रेन के खिलाफ रूस का आक्रामक युद्ध: बयान में यूक्रेन के खिलाफ रूस के अवैध और अनुचित युद्ध की निंदा की गई.
- समूह ने, यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की साहसी प्रतिरक्षक अभियान में आवश्यक वित्तीय, मानवीय, सैन्य और राजनयिक सहयोग प्रदान करते हुए, यूक्रेन के साथ ‘जब तक जरूरी होगा’ खड़े रहने का संकल्प लिया.
- रूस पर कठोर और स्थायी मौद्रिक प्रतिबंध: G7 सदस्य इस युद्ध को समाप्त करने में मदद करने के लिए रूस पर कठोर और स्थायी प्रतिबंध लगाना जारी रखेंगे.
- इस संबंध में, आधिकारिक विज्ञप्ति में रूसी तेल पर मूल्य-सीमा निर्धारित करने की मांग करने वाली महत्वाकांक्षी और अब तक बिना अजमायी हुई अवधारणा का समर्थन किया गया.
- समूह के नेता रूसी सोने के आयात पर प्रतिबंध लगाए जाने पर भी सहमत हुए.
- विश्व-भर में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: भाग लेने वाले नेताओं ने दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करने हेतु इस वर्ष $4.5 बिलियन खर्च करने का वचन दिया.
- लोगों को भूख और कुपोषण से बचाने के लिए, और रूस द्वारा अपने अनाज के हथियारीकरण के प्रत्युत्तर में, G7 नेताओं ने ‘खाद्य सुरक्षा पर वैश्विक गठबंधन’ के माध्यम से वैश्विक खाद्य और पोषण सुरक्षा बढ़ाने का फैसला किया.
- चीन की ‘बाजार-विरूपण’ पद्धतियों के संदर्भ में: G7 नेताओं ने चीन की गैर-पारदर्शी और बाजार- विरूपण करने वाली अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पद्धतियों की निंदा की.
- G7 नेताओं ने संकेत दिया कि वे चीन पर आर्थिक निर्भरता से खुद को मुक्त करने का प्रयास करेंगे.
- वैश्विक बुनियादी ढांचे और निवेश के लिए साझेदारी: ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर और निवेश के लिए अपनी साझेदारी के माध्यम से, G7 देशों का लक्ष्य वैश्विक निवेश अंतर को कम करने के लिए अगले पांच वर्षों में 600 बिलियन अमरीकी डालर जुटाना है.
- वैश्विक सहयोग: G7 के सदस्यों ने विश्व स्तर पर अपने सहयोग को बढ़ाने का फैसला किया, जिसमें इंडोनेशिया, भारत, सेनेगल और वियतनाम के साथ नई ‘जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप’ की दिशा में काम करना, दक्षिण अफ्रीका के साथ मौजूदा साझेदारी पर निर्माण करना शामिल है.
- कोविड–19: वर्तमान कोविड -19 महामारी पर काबू पाने के लिए, G7 समूह द्वारा 2021 में पिछली बैठक के बाद से 1.175 बिलियन से अधिक वैक्सीन खुराक के अपने प्रावधान पर कार्य करेगा.
- जी7 देशों ने भी भविष्य की महामारियों और स्वास्थ्य चुनौतियों को रोकने, तैयार करने और प्रतिक्रिया देने का फैसला किया, जिसमें महामारी की तैयारी के लिए जी7 पैक्ट भी शामिल है.
G7 शिखर सम्मेलन में भारत
- हालांकि भारत G7 समूह का सदस्य नहीं है, फिर भी इसे शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अतिथि के रूप में बुलाया गया था.
- जर्मनी में आयोजित जी -7 शिखर सम्मेलन में, प्रधान मंत्री मोदी ने दो सत्रों- बेहतर भविष्य में निवेश: जलवायु, ऊर्जा, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा – में भाग लिया था.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय.
Topic Xi Jinping’s rare Hong Kong visit
संदर्भ
चीनी राष्ट्रपति ने ‘विशेष प्रशासनिक क्षेत्र’ (Special Administrative Region – SAR) की दुर्लभ यात्रा पर कहा कि हांगकांग “अराजकता से सुव्यवस्था में संक्रमण के एक नए चरण में” है.
- 1 जुलाई, 2022 को इस पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश के चीन को सौंपे जाने तथा मुख्य कार्यकारी जॉन ली और उनकी सरकार के शपथ ग्रहण की 25वीं वर्षगांठ के रूप में मनाया गया.
- 2020 में लगाए गए ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’ के तहत कड़े नियंत्रण ने हांगकांग वासियों को ताइवान, ब्रिटेन और अन्य देशों के लिए पलायन करने के लिए प्रेरित किया है.
पृष्ठभूमि
हांगकांग, एशिया के सबसे अमीर शहरों में से एक और संपन्न फिल्म, प्रकाशन और अन्य रचनात्मक उद्योगों के लिय विख्यात और एक वैश्विक व्यापार केंद्र है. 1 जुलाई, 1997 को एक समझौते के तहत इस पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश को वापस चीन को सौप दिया गया. इस समझौते में हांगकांग को 50 वर्षों के लिए “उच्च स्तर की स्वायत्तता” दिए जाने का वादा किया गया था.
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 2020: बीजिंग ने प्रस्तावित प्रत्यर्पण कानून और अधिक लोकतंत्र की मांगों को शामिल करने के लिए भड़के विरोध प्रदर्शनों के बाद 2020 में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’ लागू किया.
- लोकतंत्र-समर्थक आंदोलनों पर प्रतिबंध: इस क्षेत्र ने ‘तियानमेन स्क्वायर लोकतंत्र समर्थक आंदोलन’ (Tiananmen Square pro-democracy movement) पर सत्ताधारी पार्टी द्वारा वर्ष 1989 की हिंसक कार्रवाई की सालगिरह मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.
- विशेष प्रशासनिक क्षेत्रों (SARs) की क्षमता का लाभ उठाना: चीन की रणनीति मुख्य भूमि के विकास को बढ़ाने के लिए दो ‘विशेष प्रशासनिक क्षेत्रों’ – हांगकांग और मकाऊ – की अंतर्निहित आर्थिक, व्यापार और तकनीकी क्षमता का लाभ उठाने की है.
- सहयोग का विस्तार: बीजिंग ने इन क्षेत्रों के बीच सहयोग का विस्तार करने के लिए एक उच्च गुणवत्ता वाला ‘गुआंगडोंग-हांगकांग-मकाऊ ग्रेटर बे एरिया’ (Guangdong-Hong Kong-Macau Greater Bay Area) बनाने की योजना बनाई है.
- बिल्डिंग प्लेटफॉर्म: इसमें शेनझेन में कियानहाई, झुहाई में हेंगकिन, ग्वांगझू में नांशा और शेनझेन-हांगकांग ‘साइंस एंड टेक्नोलॉजी इनोवेशन कोऑपरेशन जोन’ जैसे बिल्डिंग प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं.
- राष्ट्रीय जागरूकता और देशभक्ति बढ़ाना: कम्युनिस्ट नेतृत्व हांगकांग के नागरिकों के बीच राष्ट्रीय जागरूकता और देशभक्ति बढ़ाने के लिए सीमा पार आदान-प्रदान और सहयोग को व्यवस्थित रूप से बढ़ाने का प्रयास करता है.
- राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करना: चीनी नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता की रक्षा के लिए हांगकांग को नियंत्रित करने के लिए आर्थिक साधनों, कानूनी प्रणाली प्रवर्तन तंत्र और जबरदस्ती पुलिस उपायों सहित उपकरणों के संयोजन को प्रभावी ढंग से नियोजित करेगा.
- पार्लियामेंट केवल वफादारों के लिए: चीन ने ‘देशभक्त’ राजनीतिक सुधार पेश किए हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि केवल वफादार ही संसद और शीर्ष कार्यकारी पदों के लिए चुनाव में भाग ले सकते हैं.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
Topic National Achievement Survey (NAS)
संदर्भ
हाल ही में, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय द्वारा नवीनतम ‘राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण’ (National Achievement Survey – NAS) के परिणाम जारी किए गए. ज्ञातव्य है कि 12 नवंबर 2021 को देशभर में कक्षा 3, 5, 8 और 10 के लिए नमूना आधारित राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण परीक्षा का आयोजन किया गया था. इसका उद्देश्य देश के विद्यालयों में शिक्षा के स्तर का आँकलन करना है.
NAS 2021 के प्रमुख बिंदु
- NAS 2021 में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 733 जिलों के लगभग 23 लाख स्कूलों के 38 लाख छात्र/छात्राएँ शामिल हुए.
- एनसीआरटी द्वारा तीन साल में एक बार राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण करवाया जाता है. वर्ष 2017 में ये सर्वेक्षण हुआ था. अगला सर्वेक्षण वर्ष 2020 में होना था लेकिन कोविड 19 महामारी के चलते नहीं हुआ.
- पिछला राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) 13 नवंबर, 2017 को कक्षा 3, 5, 8 के बच्चों द्वारा विकसित दक्षताओं का आकलन करने के लिए आयोजित किया गया था.
- सर्वे परीक्षा, स्कूलों की सैंपलिंग के मानकों का निर्धारण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीइआरटी) द्वारा किया गया था, जबकि परीक्षा का आयोजन CBSE द्वारा राज्यकिंद्र शासित राज्यों की सरकारों के साथ मिलकर किया गया.
- इस सर्वेक्षण में चयनित विद्यालयों के कक्षा तीसरी और पांचर्वी के विद्यार्थियों की हिंदी, गणिठ और ईवीएस, कक्षा आठवीं के विद्यार्थियों की सामाजिक और विज्ञान, हिंदी और गणित तथा दसवीं के विद्यार्थियों कीं सामाजिक, विज्ञान, हिंदी, गणित तथा अग्रेजी विषय की परीक्षा ली गई थी.
- परीक्षा 22 माध्यमों में आयोजित की गई.
- यह सर्वेक्षण कोविड 19 महामारी के दौरान सीखने में उकावट और नई सीख का आकलन करने में मदद करेगा, इससे उपचारात्मक उपाय करने में मदद मिलेगी.
सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष
- वर्ष 2017 की तुलना में, सभी विषयों में छात्रों के राष्ट्रीय औसत अंकों में 47 अंकों तक की गिरावट आई है.
- पंजाब और राजस्थान को छोड़कर, लगभग सभी राज्यों के प्रदर्शन में 2017 के स्तर की तुलना में गिरावट आई है.
- छात्रों और छात्राओं के स्कोर के बीच कोई उल्लेखनीय अंतर नहीं रहा. हालाँकि, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणियों के छात्रों का प्रदर्शन सामान्य श्रेणी के छात्रों की तुलना में कम रहा.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय.
Topic: RBI decides to transfer ₹30,307 crore income surplus to the government
संदर्भ
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में लेखा वर्ष 2021-22 के लिए ₹30,307 करोड़ का आय अधिशेष (surplus) सरकार को हस्तांतरित करने का निर्णय लिया है. अधिशेष हस्तांतरण का निर्णय बिमल जालान समिति की सिफारिशों के आधार पर 5.5% के आपातकालीन रिस्क बफ़र को बनाये रखते हुए लिया गया है.
बिमल जालान समिति के बारे में
वर्ष 2016 में नोटबंदी के बाद भारतीय रिजर्व बैंक की आय का बड़ा भाग नये नोटों की प्रिंटिंग में खर्च करना पड़ा था. इसके कारण RBI ने सरकार को कम लाभांश दिया. लेकिन सरकार चाहती थी कि RBI न केवल लाभांश बल्कि contingency fund का भी कुछ भाग सरकार को सौंप दे, तत्कालीन RBI गवर्नर उर्जित पटेल ने इसकी स्वीकृति नहीं दी और मतभेद की स्थिति में इस्तीफा दे दिया. उसके बाद RBI के “आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क” के प्रबंधन के तरीके के निर्धारण के लिए वर्ष 2018 में बिमल जालान समिति गठित की गई. इस समिति ने सिफारिश की आगामी 3 से 5 वर्षों में २७ द्वारा 5.5-6.5% का contingency fund बनाये रखते हुए, शेष अधिशेष सरकार को हस्तांतरित कर दिया जाना चाहिए. इसके बाद वर्ष 2019 में RBI द्वारा सरकार को 1 लाख 76 हजार करोड़ का अधिशेष सौंपा गया था.
भारतीय रिजर्व बैंक की आय के स्रोत
- RBI के पास रखी हुई विदेशी मुद्राओं की कीमतों में उछाल से प्राप्त आय
- बैंकों को दिए गये ऋण पर ब्याज से आय
- मुद्रा आपूर्ति नियंत्रित करने के लिए ख़रीदे गये सरकारी बांड पर प्राप्त ब्याज
- सरकार के वित्त के प्रबन्धन पर प्राप्त कमीशन
- विदेशी बांड में निवेश एवं स्वर्ण भंडार की कीमत में वृद्धि से हुई आय
आय अधिशेष सरकार को हस्तांतरित करने की बाध्यता
आय अधिशेष से तात्पर्य खर्च और आय के बीच के अंतर से है. भारत सरकार के स्वामित्व के अधीन होने के कारण भारतीय रिजर्व बैंक, 1934 के सेक्शन 47 के तहत RBI को सरकार को इसका आय अधिशेष हस्तांतरित करना होता है.
अधिक अधिशेष सरकार को सौंपने से जुड़े मुद्दे
भारतीय रिजर्व बैंक का प्राथमिक कार्य महंगाई को नियंत्रित रखते हुए रूपये की कीमत को संरक्षित बनाये रखना है. लेकिन सरकार के दबाव में अधिक अधिशेष सौंपने से RBI अपने कार्य को करने में स्वतंत्र नहीं रह जाता है.
Prelims Vishesh
World Summit on the Information Society – WSIS :-
हाल ही में, स्विट्जरलैंड के जिनेवा में ‘सूचना समाज विश्व शिखर सम्मेलन’ (World Summit on the Information Society – WSIS) फोरम आयोजित किया गया था.
- सूचना समाज विश्व शिखर सम्मेलन (WSIS) फोरम 2022, ‘डेवलपमेंट समुदाय’ के लिए ‘संचार प्रौद्योगिकी संबंधी संयुक्त राष्ट्र की पहली और सबसे बड़ी वार्षिक सभा’ का प्रतिनिधित्व करता है.
- इस शिखर सम्मेलन का आयोजन, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू), यूनेस्को, यूएनडीपी और अंकटाड द्वारा सह-संगठित सभी WSIS एक्शन लाइन फैसिलिटेटर्स के निकट सहयोग से किया गया था.
- WSIS 2022 के लिए थीम: “लोक-कल्याण, समावेशन और अनुकूलन के लिए आईसीटी: एसडीजी पर प्रगति को गति देने के लिए डब्ल्यूएसआईएस सहयोग” (ICTs for Well-Being, Inclusion and Resilience: WSIS Cooperation for Accelerating Progress on the SDGs).
उद्देश्य: यह दो-चरण में आयोजित किया जाने वाला संयुक्त राष्ट्र (यूएन) का एक अद्वितीय शिखर सम्मेलन है जिसे राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक संरचित और समावेशी दृष्टिकोण के माध्यम से सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (आईसीटी) द्वारा उठाए गए मुद्दों को संबोधित करने के उद्देश्य से एक विकसित बहु-हितधारक मंच बनाने के लिए शुरू किया गया है.
Valley of Flowers :-
फूलों की घाटी (Valley of Flowers), हाल ही में पर्यटकों के लिए खोल दी गयी है.
- यह उत्तराखंड में स्थित है.
- 1982 में एक ‘राष्ट्रीय उद्यान’ के रूप में घोषित ‘फूलों की घाटी’ 87.50 वर्ग किमी के विस्तार में फैली हुई है.
- इसे 2005 में यूनेस्को की ‘विश्व धरोहर स्थल’ घोषित किया गया था.
- इस घाटी की खोज एक उत्साही ब्रिटिश पर्वतारोही और वनस्पतिशास्त्री, ‘फ्रैंक एस स्माइथ’ द्वारा 1931 में की गई थी.
- ‘फूलों की घाटी’ में आज 600 से अधिक फूलों की प्रजातियां पायी जाती है, जिसमें ब्रह्मकमल (Brahmkamal) जैसी कुछ विदेशज किस्में भी शामिल हैं. ‘ब्रह्मकमल’ उत्तराखंड का राजकीय पुष्प भी है.
- फूलों की रानी के रूप में वर्णित ‘ब्लू पोस्ता’ भी इस घाटी में पाया जा सकता है.
- यह क्षेत्र तेंदुआ, कस्तूरी मृग और नीली भेड़ जैसी प्रजातियों सहित जीव विविधता से समृद्ध है.
- यह घाटी ज़ांस्कर श्रेणी और महान हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच एक अद्वितीय ‘संक्रमण क्षेत्र’ में स्थित है.
- यह राष्ट्रीय उद्यान पूरी तरह से ‘समशीतोष्ण अल्पाइन क्षेत्र’ में स्थित है.
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