Sansar डेली करंट अफेयर्स, 1 May 2019

Sansar LochanSansar DCA

Sansar Daily Current Affairs, 01 May 2019


GS Paper  2 Source: The Hindu

Topic : Lieutenant-Governor (L-G) of Puducherry

संदर्भ

मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि उपराज्यपाल को सरकार के दैनिक कामकाज में हस्तक्षेप देने का अधिकार नहीं है.

पृष्ठभूमि

पुदुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी और मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी के बीच अधिकारों को लेकर लंबे समय से टकराव चल रहा है. इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी और कहा गया था कि सरकार के दैनिक कामकाज में उपराज्यपाल का हस्तक्षेप केंद्र शासित प्रदेश प्रतिनिधित्व अधिकार के विरुद्ध है.

न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ

  • केंद्र सरकार तथा उपराज्यपाल दोनों को चाहिए कि वे लोकतांत्रिक सिद्धांतों की अवधारणा पर खरे उतरें.
  • सरकारी सचिवों का यह दायित्व है कि वे मंत्रियों और मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद् से निर्देश प्राप्त करें. सभी सरकारी मामलों में सरकार के सचिव मंत्रिपरिषद् के प्रति ही जिम्मेवार होते हैं.
  • संविधान की धारा 239A के विधायिका किसी संघीय क्षेत्र के प्रशासक से ऊपर होती है.
  • यदि प्रशासक कोई निर्देश दे तो सचिव को यह अधिकार नहीं है कि वह उस निर्देश के अनुसार आदेश निर्गत करे.
  • पुदुचेरी में यह हो रहा था कि सरकारी अधिकारियों ने सोशल मीडिया समूह बना रखे थे जिनके माध्यम से उपराज्यपाल उनको लोक शिकायतों के समाधान के लिए निर्देश दे रहे थे. न्यायालय का मंतव्य है कि ऐसे कामों के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग सरासर गलत है. केवल प्राधिकृत माध्यम से ही सरकार में संवाद होना चाहिए.

पुदुचेरी के उपराज्यपाल की शक्तियाँ

  • संघीय क्षेत्र प्रशासन अधिनियम, 1963 यह स्पष्ट करता है कि पुदुचेरी का प्रशासन भारत के राष्ट्रपति के द्वारा प्रशासक (उपराज्यपाल) के माध्यम से किया जाएगा.
  • इसी अधिनियम के धारा 44 में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद् प्रशासक को उन विषयों में सहयोग और परामर्श देगी जिनपर संघीय क्षेत्र की विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति है.
  • अधिनियम में उपराज्यपाल को अपने विवेकानुसार कार्य करने के लिए अधिकृत किया गया है. यदि उपराज्यपाल और उसके मंत्रियों में किसी विषय को लेकर मतभेद है तो वैसी स्थिति में उपराज्यपाल विषय को राष्ट्रपति के समक्ष निर्णय हेतु भेज देगा और राष्ट्रपति जो भी आदेश करेंगे उसके अनुसार कार्रवाई करेगा.
  • अधिनियम की धारा 22 के अनुसार विधानसभा में जब कुछ ख़ास विधाई प्रस्ताव आता है तो उसपर राज्यपाल की पूर्वानुमति आवश्यक होगी. यह प्रस्ताव विधेयक अथवा संशोधन से सम्बंधित हो सकते हैं.
  • अधिनियम की धारा 23 के अनुसार यदि किसी कर के विषय में परिवर्तन करना हो अथवा समेकित निधि से सम्बंधित कोई भी वित्तीय विषय हो तो इसके लिए सबसे पहले उपराज्यपाल की सहमति आवश्यक है.
  • यदि विधानसभा कोई विधेयक पारित कर देती है तो उसे उपराज्यपाल के पास अनुमोदन के लिए भेजना अनिवार्य है. उपराज्यपाल चाहे तो अनुमोदन दे सकता है अथवा अपना अनुमोदन रोक सकता है. यही नहीं वह उसे राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज सकता है. उपराज्यपाल चाहे तो विधेयक फिर से विचारने के लिए विधानसभा को लौटा सकता है.
  • उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद् किस ढंग से कार्य करेगी इसके लिए 1963 में एक नियम भी निर्गत हुआ था जो पौंडीचेरी सरकार कारोबार नियम कहलाता है.

GS Paper  2 Source: The Hindu

Topic : India’s Anti-Satellite (ASAT) missile

संदर्भ

भारत में फ्रांसीसी दूत एलेक्जेंडर ज़ीग्लर ने इन बढ़ते खतरों के जवाब के रूप में भारत के एंटी-सैटेलाइट (ASAT) मिसाइल परीक्षण का समर्थन किया है.

Mission-Shakti-A-SAT-Low-Orbit

मिशन शक्ति क्या है?

  • मिशन शक्ति एक संयुक्त कार्यक्रम है जिसका संचालन रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मिलकर चलाया है.
  • इस अभियान के अंतर्गत एक उपग्रह नाशक (anti-satellite – A-SAT) अस्त्र छोड़ा गया जिसका लक्ष्य भारत का ही एक ऐसा उपग्रह था जो अब काम में नहीं आने वाला था.
  • मिशन शक्ति का संचालन ओडिशा के बालासोर में स्थित DRDO के अधीक्षण स्थल से हुआ.

माहात्म्य

ऐसी विशेषज्ञ और आधुनिक क्षमता प्राप्त करने वाला भारत विश्व का मात्र चौथा देश है और इसका यह प्रयास पूर्णतः स्वदेशी है. अभी तक केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही अन्तरिक्ष में स्थित किसी जीवंत लक्ष्य को भेदने की शक्ति थी.

क्या परीक्षण से अन्तरिक्ष में मलबा पैदा हुआ?

यह परीक्षण जान-बूझकर पृथ्वी की निम्न कक्षा (lower earth orbit – LEO) में किया गया जिससे कि अन्तरिक्ष में कोई मलबा न रहे. जो कुछ भी मलबा बना वह क्षयग्रस्त हो जाएगा और  कुछ सप्ताह में पृथ्वी पर आ गिरेगा.

पृथ्वी की निम्न कक्षा (LOW EARTH ORBIT) क्या है?

पृथ्वी की जो कक्षा 2,000 किमी. की ऊँचाई तक होती है उसे निम्न कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) कहा जाता है. यहाँ से कोई उपग्रह धरातल और समुद्री सतह में चल रही गतिविधियों पर नज़र रख सकता है. ऐसे उपग्रह का प्रयोग जासूसी के लिए हो सकता है. अतः उससे युद्ध के समय देश की सुरक्षा पर गंभीर खतरा हो सकता है.

पृष्ठभूमि

  • समय के साथ-साथ अन्तरिक्ष भी एक युद्ध क्षेत्र में रूपांतरित हो रहा है. अतः अन्तरिक्ष में स्थित शत्रु उपग्रहों के संहार की क्षमता अत्यावश्यक हो गयी है. ऐसे में एक उपग्रह नाशक (A-SAT) हथियार से अन्तरिक्ष तक भेदने में भारत की सफलता का बड़ा माहात्म्य है.
  • ध्यान देने योग्य बात है कि अभी तक किसी देश ने किसी अन्य देश के उपग्रह पर A-SAT नहीं चलाया है. सभी देशों ने अपने ही बेकार पड़े उपग्रहों को लक्ष्य बनाकर A-SAT का सञ्चालन किया है जिससे विश्व को पता लग सके कि उनके पास अन्तरिक्ष में युद्ध करने की क्षमता है.
  • आगामी कुछ दशकों में सेनाओं के लिए A-SAT मिसाइल सबसे शक्तिशाली सैन्य अस्त्र बनने वाला है.

भारत को ऐसी क्षमता की आवश्यकता क्यों?

  • भारत एक ऐसा देश है जिसके पास बहुत दिनों से और बहुत तेजी से बढ़ते हुए अन्तरिक्ष कार्यक्रम हैं. पिछले पाँच वर्षों में इसमें देखने योग्य बढ़ोतरी हुई है. स्मरणीय है कि भारत ने मंगल ग्रह पर मंगलयान नामक अन्तरिक्षयान सफलतापूर्वक भेजा था. इसके पश्चात् सरकार ने गगनयान अभियान को भी स्वीकृति दे दी है, जो भारतीयों को बाह्य अन्तरिक्ष में ले जाएगा.
  • भारत ने 102 अन्तरिक्षयान अभियान हाथ में लिए हैं जिनके अंतर्गत अग्रलिखित प्रकार के उपग्रह आते हैं – संचार उपग्रह, पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह, प्रायोगिक उपग्रह, नौसैनिक उपग्रह, वैज्ञानिक शोध और खोज के उपग्रह, शैक्षणिक उपग्रह और अन्य छोटे-छोटे उपग्रह.
  • भारत का अन्तरिक्ष कार्यक्रम देश की सुरक्षा, आर्थिक प्रगति एवं सामाजिक अवसरंचना की रीढ़ है.
  • मिशन शक्ति यह सत्यापित करने के लिए संचालित हुई कि भारत के पास अपनी अन्तरिक्षीय सम्पदाओं को सुरक्षित रखने की क्षमता है. विदित हो कि देश के जो हित बाह्य अन्तरिक्ष में हैं उनकी रक्षा का दायित्व भारत सरकार पर ही है.

निहितार्थ

  • मिशन शक्ति का MTCR (Missile Technology Control Regime) अथवा अन्य ऐसी संधियों में भारत की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
  • A-SAT तकनीक प्राप्त हो जाने से आशा की जाती है कि भविष्य में भारत इसका प्रयोग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिए भी कर सकेगा.

आगे की राह

बाह्य अन्तरिक्ष में हथियारों की होड़ ऐसी वस्तु है जिसको प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए. भारत की यह नीति रही है कि अन्तरिक्ष का उपयोग मात्र शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होना चाहिए. भारत बाह्य अन्तरिक्ष (outer space) को रणभूमि बनाने के विरुद्ध रहा है तथा अन्तरिक्ष में स्थित संपदाओं की रक्षा और सुरक्षा के लिए जो भी अंतर्राष्ट्रीय प्रयास होते हैं उसका वह पक्षधर रहा है.

भारत इस बात पर विश्वास रखता है कि बाह्य अन्तरिक्ष मानव मात्र के लिए एक विरासत है जिसपर सभी का अधिकार है. जो देश अन्तरिक्ष में उपग्रह छोड़ते हैं, उनका यह कर्तव्य है कि वे अन्तरिक्ष तकनीक एवं उसके अनुप्रयोगों का लाभ पूरी मानवता तक पहुँचाने में सहायता करेंगी.

बाह्य अन्तरिक्ष में हथियारों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कानून क्या है?

  • अमेरिका, रूस और चीन समेत सभी देशों ने 1967 की आउटर अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) पर हस्ताक्षर किए थे.
  • भारत ने इस संधि पर 1982 में हस्ताक्षर किये थे.
  • समझौते के अनुसार कोई भी देश अंतरिक्ष में क्षेत्राधिकार नहीं दिखा सकता.
  • यह समझौता किसी भी देश को पृथ्वी की कक्षा या उससे बाहर परमाणु हथियार या हथियार रखने से रोकता है.
  • चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों, जहाँ मानव की पहुँच हो सकती है, के संदर्भ में यह संधि और भी कठोर है. इन ग्रहों में कोई भी देश सैन्य अड्डों का निर्माण नहीं कर सकता है या किसी भी प्रकार का सैन्य संचालन नहीं कर सकता है या किसी अन्य प्रकार के पारंपरिक हथियारों का परीक्षण नहीं कर सकता है.
  • पर साथ ही साथ यह संधि बैलिस्टिक मिसाइलों के अंतर-महाद्वीपीय प्रयोग को प्रतिबंधित नहीं करती है जो लक्ष्य को भेदने के लिए पृथ्वी की कक्षा से बाहर भी चले जाते हैं.
  • इस संधि की इस चूक का लाभ उठाकर कोई देश अन्तरिक्ष का युद्ध के लिए उपयोग कर सकता है.

GS Paper  3 Source: PIB

Topic : State Disaster Response Fund (SDRF)

संदर्भ

राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (National Crisis Management Committee – NCMC) के निर्णय के आधार पर गृह मंत्रालय ने चार राज्यों के लिए 1086 करोड़ रुपये की अग्रिम वित्तीय सहायता जारी करने का आदेश दिया है. (आंध्र प्रदेश – 200.25 करोड़ रुपये, ओडिशा – 340.875 करोड़ रुपये, तमिलनाडु – 309.375 करोड़ रुपये, पश्चिम बंगाल – 235.50 करोड़ रुपये) यह धनराशि राज्यों के राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) को दी जाएगी, ताकि उन्हें चक्रवाती तूफान ‘फानी’ के मद्देनज़र सुरक्षात्मक और राहत उपाय करने में सहायता मिले.

राष्‍ट्रीय आपदा मोचन बल और तट रक्षक को हाई अलर्ट पर रख दिया गया है.

सरकार आपदाओं को कैसे वर्गीकृत करती है?

  • 10वें वित्त आयोग (1995-2000) ने एक प्रस्ताव की जाँच के आधार पर पाया गया कि एक आपदा की “दुर्लभ गंभीरता को राष्ट्रीय आपदा” तब कहा जाता है, जब यह राज्य की एक-तिहाई आबादी को प्रभावित करती है.
  • पैनल ने “दुर्लभ गंभीरता की आपदा” को परिभाषित नहीं किया था, किंतु यह कहा कि दुर्लभ गंभीरता की आपदा को केस-टू-केस आधार पर अन्य बातों के साथ-साथ आपदा की तीव्रता और परिमाण को भी ध्यान में रखना होगा.
  • इसमें समस्या से निपटने के लिये राज्य की क्षमता, सहायता और राहत प्रदान करने की योजनाओं के भीतर विकल्प और लचीलेपन की उपलब्धता शामिल है.
  • गौरतलब है कि उत्तराखंड और चक्रवात हुदहुद फ्लैश बाढ़ को बाद में “गंभीर प्रकृति” की आपदाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया.

आपदा घोषणा के लाभ

  • जब एक आपदा “दुर्लभ गंभीरता”/”गंभीर प्रकृति” के रूप में घोषित की जाती है, तो राज्य सरकार को समर्थन राष्ट्रीय स्तर पर प्रदान किया जाता है.
  • इसके अतिरिक्त केंद्र एनडीआरएफ की सहायता भी प्रदान कर सकता है.
  • आपदा राहत निधि (सीआरएफ) को स्थापित किया जा सकता है, यह कोष केंद्र और राज्य के बीच 3:1 के साझा योगदान पर आधारित होता है.
  • इसके अलावा सीआरएफ में संसाधन अपर्याप्त होने की अवस्था में राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि (एनसीसीएफ) से अतिरिक्त सहायता पर भी विचार किया जाता है, जो केंद्र द्वारा 100% वित्तपोषित होती है

राष्ट्रीय आपदा मोचन बल

  • यह एक विशेषज्ञ दल है, जिसका गठन वर्ष 2006 में किया गया था.
  • इसके गठन का उद्देश्य प्राकृतिक और मानवकृत आपदा या खतरे की स्थिति का सामना करने के लिये विशेष प्रयास करना है.

राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति क्या है?

  • भारत सरकार ने राष्ट्रीय आपदा आने पर राहत उपायों और कार्रवाइयों के समन्वयन और क्रियान्वयन के लिए एक अस्थाई समिति गठित की है जिसे राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति का नाम दिया गया है.
  • इस समिति के अध्यक्ष कैबिनेट सचिव होंगे.
  • इस समिति में और कौन-कौन होंगे इसके लिए कृषि सचिव आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध करायेंगे और निर्देश प्राप्त करेंगे.

राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) क्या है?

  • SDRF हर राज्य में गठित हुआ है. इसका गठन 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के अनुसार हुआ है. ज्ञातव्य है कि इसके गठन के लिए 13वें वित्त आयोग ने अनुशंसा की थी.
  • इस कोष से राहत कार्य के लिए व्यय से सम्बंधित सभी मामलों में अंतिम निर्णय एक राज्य कार्यकारिणी समिति करती है जिसके प्रमुख मुख्य सचिव होते हैं.
  • SDRF के अन्दर आने वाली आपदाएँ हैं – च्रकवात, सूखा, भूकम्प, आगजनी, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, टिड्डी आक्रमण, बर्फीली और ठंडी हवाएँ.
  • भारत सरकार SDRF कोष में 75% और 90% योगदान करती है. 75% योगदान सामान्य राज्यों को दिया जाता है और 90% उन राज्यों के लिए जिनको विशेष श्रेणी का दर्जा मिला हुआ है.
  • इसके वित्तीय वितरण से संबंधित नोडल एजेंसी वित्त आयोग है, जिसकी सिफारिश से राहत कोष की धनराशि आवंटित की जाती है.
  • जब किसी आपदा को “गंभीर प्रकृति की आपदा” के रूप में घोषित किया जाता है जैसा की केरल के मामले में किया गया, तो राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया निधि (National Disaster Response Force – NDRF) कोष से अतिरिक्त सहायता प्रदान की जाती है, अन्यथा SDRF कोष का उपयोग किया जाता है.

Prelims Vishesh

1 May – Labour Day :-

  • एक मई को दुनिया के कई देशों में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस (International Labour Day 2019) मनाया जाता है.
  • भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई. भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी.
  • इन दिन को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस और मजदूर दिवस भी कहा जाता है.
  • अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 4 मई 1886 को अमेरिका के शिकागो शहर में चल रहे मजदूर आन्दोलन के बीच पुलिस द्वारा की गई गोलबारी में कुछ मजदूरों के देहांत के याद में मनाया जाता है.
  • इस दिवस को 1 मई को मनाने की परम्परा 1891 को जाकर शुरू हुई.

Goldman Environmental Prize :-

  • लाइबेरिया के पर्यावरण कार्यकर्त्ता और वकील, अल्फ्रेड ब्राउनेल (Alfred Brownell ) उन छह कार्यकर्त्ताओं में से हैं जिन्हें गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
  • विदित हो कि अल्फ्रेड ब्राउनेल ने एक कंपनी को उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को ताड़ के बागानों में बदलने से रोका था.
  • यह पुरस्कार सैनफ्रांसिस्को के गोल्डमैन पर्यावरण फाउंडेशन द्वारा हर वर्ष जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ताओं को प्रदान किया जाता है. इस पुरस्कार को “ग्रीन नोबल पुरस्कार” नाम से ही जाना जाता है.

Sanauli :-

  • आर्कोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) द्वारा उत्तर प्रदेश स्थित बागपत के सनौली में की जा रही खुदाई से 4000 वर्ष से भी अधिक पुरानी ताबूत, रथ, कंकाल और मुकुट जैसी वस्तुएँ मिली हैं.
  • सोनौली यमुना नदी के बाएँ किनारे पर स्थित है. यह दिल्ली से 68 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में बसा हुआ है. वहाँ हुई खुदाई से यह पता चला है कि यहाँ हड़प्पा के समकालीन समय का सबसे बड़ा श्मसान था.

Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA

April, 2019 Sansar DCA is available Now, Click to Downloadnew_gif_blinking

Spread the love
Read them too :
[related_posts_by_tax]