Sansar डेली करंट अफेयर्स, 01 March 2021

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Sansar Daily Current Affairs, 01 March 2021


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms, Literature and Architecture from ancient to modern times.

Topic : CLASSICAL LANGUAGE

संदर्भ

मराठी को शास्त्रीय भाषा (classical language) घोषित करने की माँग की जा रही है जो वर्ष 2013 से केंद्र के पास लंबित है.

विदित हो कि भारत में अभी फिलहाल छह शास्त्रीय भाषाएँ हैं जिनके नाम और शास्त्रीय भाषा की पदवी मिलने का वर्ष निम्न प्रकार से हैं –

  1. तमिल (2004)
  2. संस्कृत (2005)
  3. तेलुगु (2008)
  4. कन्नड़ (2008)
  5. मलयालम (2013)
  6. ओड़िया (2014)

शास्त्रीय भाषा (CLASSICAL LANGUAGE) का दर्जा पाने के लिए निम्नलिखित मानदंड हैं –

  • उस भाषा के प्रारम्भिक साहित्य का अति-प्राचीन होना.
  • उस भाषा का अभिलिखित इतिहास 1500-2000 साल पुराना होना चाहिए.
  • उस भाषा को बोलने वाली कई पीढियाँ उस भाषा के प्राचीन साहित्य को मूल्यवान मानती हों.
  • उस भाषा की साहित्यिक परम्परा स्वयं उसी भाषा की हो न कि किसी अन्य भाषा से उधार ली गई हो.
  • किसी शास्त्रीय भाषा और साहित्य का रूप उस भाषा के आधुनिक रूप से अलग होते हैं, इसलिए शास्त्रीय भाषा और उसके परवर्ती रूप और प्रशाखाओं के बीच में अंतराल हो सकता है.

शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने के फायदे –

  • भाषा के अनुसंधान और विकास के लिए 100 करोड़ रुपये का अनुदान जो एक ही बार मिलेगा.
  • सम्बंधित भाषा के उद्भट विद्वानों को प्रतिवर्ष दो अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जा सकेंगे.
  • शास्त्रीय भाषा के अध्ययन लिए एक उत्कृष्ट केंद्र की स्थापना की जा सकेगी.
  • UGC को राज्य सरकार यह अनुरोध कर सकती है कि वह केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में एक निश्चित संख्या में chair स्थापित करे जिसपर उस भाषा के उद्भट विद्वानों की नियुक्ति हो सके.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Important international institutions and groupings.

Topic : G20

संदर्भ

26 फरवरी, 2021 को भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतार्मण,  G20 सेंट्रल बैंक गवर्नर्स की बैठक में शामिल हुईं. यह बैठक इटली की अध्यक्षता में हुई.

बैठक के प्रमुख बिंदु

  • वित्तमंत्री ने G20 देशों के अपने समकक्षों को भारत में कोविड-19 टीकाकरण अभियान के बारे में बताया.
  • उन्होंने वित्तीय क्षेत्र के मुद्दों, वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण, वित्तीय समावेशन और सतत वित्त जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की.

G20 क्या है?

  • G 20 1999 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है जिसमें 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सरकारें और केन्द्रीय बैंक गवर्नर प्रतिभागिता करते हैं.
  • G 20 की अर्थव्यवस्थाएँ सकल विश्व उत्पादन (Gross World Product – GWP) में 85% तथा वैश्विक व्यापार में 80% योगदान करती है.
  • G20 शिखर बैठक का औपचारिक नाम है – वित्तीय बाजारों एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था विषयक शिकार सम्मलेन.
  • G 20 सम्मेलन में विश्व के द्वारा सामना की जा रही समस्याओं पर विचार किया जाता है जिसमें इन सरकारों के प्रमुख शामिल होते हैं. साथ ही उन देशों के वित्त और विदेश मंत्री भी अलग से बैठक करते हैं.
  • G 20 के पास अपना कोई स्थायी कर्मचारी-वृन्द (permanent staff) नहीं होता और इसकी अध्यक्षता प्रतिवर्ष विभिन्न देशों के प्रमुख बदल-बदल कर करते हैं.
  • जिस देश को अध्यक्षता मिलती है वह देश अगले शिखर बैठक के साथ-साथ अन्य छोटी-छोटी बैठकों को आयोजित करने का उत्तरदाई होता है.
  • वे चाहें तो उन देशों को भी उन देशों को भी बैठक में अतिथि के रूप में आमंत्रित कर सकते हैं, जो G20 के सदस्य नहीं हैं.
  • पहला G 20 सम्मेलन बर्लिन में दिसम्बर 1999 को हुआ था जिसके आतिथेय जर्मनी और कनाडा के वित्त मंत्री थे.
  • G-20 के अन्दर ये देश आते हैं –अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका.
  • इसमें यूरोपीय संघ की ओर से यूरोपीय आयोग तथा यूरोपीय केन्द्रीय बैंक प्रतिनिधित्व करते हैं.

G-20 व्युत्पत्ति

1999 में सात देशों के समूह G-7 के वित्त मंत्रियों तथा केन्द्रीय बैंक गवर्नरों की एक बैठक हुई थी. उस बैठक में अनुभव किया गया था कि विश्व की वित्तीय चुनौतियों का सामना करने के लिए एक बड़ा मंच होना चाहिए जिसमें विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देशों के मंत्रियों का प्रतिनिधित्व हो. इस प्रकार G-20 का निर्माण हुआ.

इसकी प्रासंगिकता क्या है?

बढ़ते हुए वैश्वीकरण और कई अन्य विषयों के उभरने के साथ-साथ हाल में हुई G20 बैठकों में अब न केवल मैक्रो इकॉनमी और व्यापार पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है, अपितु ऐसे कई वैश्विक विषयों पर भी विचार होता है जिनका विश्व की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जैसे – विकास, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आतंकवाद की रोकथाम, प्रव्रजन एवं शरणार्थी समस्या.

G-20 के कार्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –

  • वित्तीय भाग (Finance Track)– वित्तीय भाग के अन्दर G 20 देश समूहों के वित्तीय मंत्री, केंद्रीय बैंक गवर्नर तथा उनके प्रतिनिधि शामिल होते हैं. यह बैठकें वर्ष भर में कई बार होती हैं.
  • शेरपा भाग (Sherpa Track)– शेरपा भाग में G-20 के सम्बंधित मंत्रियों के अतिरिक्त एक शेरपा अथवा दूत भी सम्मिलित होता है. शेरपा का काम है G20 की प्रगति के अनुसार अपने मंत्री और देश प्रमुख अथवा सरकार को कार्योन्मुख करना.

G-20 का विश्व पर प्रभाव

  • G-20 में शामिल देश विश्व के उन सभी महादेशों से आते हैं जहाँ मनुष्य रहते हैं.
  • विश्व के आर्थिक उत्पादन का 85% इन्हीं देशों में होता है.
  • इन देशों में विश्व की जनसंख्या का 2/3 भाग रहता है.
  • यूरोपीय संघ तथा 19 अन्य देशों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 75% हिस्सा है.
  • G 20 कि बैठक में नीति निर्माण के लिए मुख्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को भी बुलाया जाता है. साथ ही अध्यक्ष के विवेकानुसार कुछ G-20 के बाहर के देश भी आमंत्रित किये जाते हैं.
  • इसके अतिरिक्त सिविल सोसाइटी के अलग-अलग क्षेत्रों के समूहों को नीति-निर्धारण की प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाता है.

निष्कर्ष

G-20 एक महत्त्वपूर्ण मंच है जिसमें ज्वलंत विषयों पर चर्चा की जा सकती है. मात्र एक अथवा दो सदस्यों पर अधिक ध्यान देकर इसके मूल उद्देश्य को खंडित करना उचित नहीं होगा. विदित हो कि इस बैठक का उद्देश्य सतत विकास वित्तीय स्थायित्व को बढ़ावा देना है.  आज विश्व में कई ऐसी चुनौतियाँ उभर रही हैं जिनपर अधिक से अधिक ध्यान देना होगा और सरकारों को इनके विषय में अपना पक्ष रखना होगा. ये चुनौतियाँ हैं – जलवायु परिवर्तन और इसका दुष्प्रभाव, 5-G नेटवर्क के आ जाने से गति और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के बीच संतुलन निर्माण और तकनीक से संचालित आतंकवाद.


GS Paper 3 Source : The Economic Times

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UPSC Syllabus : Indian Economy and issues relating to planning, mobilization, of resources, growth, development and employment.

Topic : India out of recession as GDP expands 0.4% in Q3

संदर्भ

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical office- NSO) के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था मंदी से बाहर निकल चुकी है, किंतु अभी भी महामारी से पहले जारी विकास दर की वापसी के लिए एक लंबा रास्ता तय करना शेष है.

एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत में, वर्ष 2020 की अंतिम तिमाही में, पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 0.4% की वृद्धि दर्ज की गई है.

वर्ष 2019 में, लगभग पिछले पच्चीस वर्षो के दौरान, देश ने पहली बार मंदी के दौर में प्रवेश किया था, इसके लिए अर्थशास्त्रियों द्वारा चेतावनी भी दी गई थी, कि देश को मंदी से उबरने के लिए संघर्ष करना पद सकता है.

आर्थिक मंदी क्या है?

जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बजाय कमी या नकारात्मक वृद्धि होने लगती है तो इसे ही आर्थिक मंदी या इकोनामिक रिसेशन कहते हैं. दूसरे शब्दों में, जब किसी देश की जीडीपी में लगातार 6 महीने यानी दो तिमाही तक कमी होती है तो इसे ही आर्थिक मंदी कहते हैं.

आर्थिक मंदी को कैसे मापा जाता है?

आर्थिक मंदी को मापने के दौरान आमतौर पर 5 कारक निम्नवत् हैं –

(i) वास्तविक जीडीपी,

(ii) आय,

(iii) रोज़गार,

(iv) विनिर्माण और

(v) खुदरा बिक्री को शामिल किया जाता है.

आर्थिक मंदी के प्रमुख लक्षण क्या हैं?

आर्थिक मंदी के प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं –

* आर्थिक गतिविधियों के कमजोर होने के चलते मांग में सामान्य कमी

* मुद्रास्फीति का कम रहना और आने वाले समय में और नीचे जाने का संकेत

* रोजगार की दर का घटना और बेरोजगारी दर का बढ़ना

* कारोबार जारी रखने के लिए उत्पादकों द्वारा कामगारों की छटनी

आर्थिक मंदी से कैसे निकला जा सकता है?

  • प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में कटौती करना, ताकि उपभोगताओं के पास खर्च करने के लिए अधिक धन हो.
  • ब्याज दरों में कटौती किया जा सकता है जिससे लोगो को सस्ते लोन/ऋण उपलब्ध होंगें और वे अधिक निवेश करेंगे.
  • उत्पादन के क्षेत्र में छूट/प्रोत्साहन से भी अधिक निवेश को प्रोत्साहित किया जा सकता है.
  • उपभोक्ताओं के उपभोग खर्च को बढ़ाने के लिए सरकार वेतन में संशोधन का सहारा भी ले सकती है.

कितनी लंबी होती है मंदी की अवधि

  • आमतौर पर मंदी कुछ तिमाहियों तक ही रहती है और यदि इसकी अवधि एक वर्ष या उससे अधिक हो जाती है तो इसे अवसाद अथवा महामंदी (Depression) कहा जाता है.
  • हालाँकि अवसाद अथवा महामंदी की स्थिति किसी भी अर्थव्यवस्था में काफी दुर्लभ होती है और कम ही देखी जाती है. ज्ञात हो कि आखिरी बार अमेरिका में 1930 के दशक में महामंदी (Depression) की स्थिति देखी गई.
  • वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि यदि भारतीय अर्थव्यवस्था को अवसाद अथवा महामंदी (Depression) की स्थिति में जाने से बचना है और मंदी की स्थिति से बाहर निकलना है तो जल्द-से-जल्द महामारी के प्रयास को रोकना होगा.

GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Science and Technology- developments and their applications and effects in everyday life Achievements of Indians in science & technology; indigenization of technology and developing new technology.

Topic : National Science Day

संदर्भ

प्रतिवर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है. इस दिन का उद्देश्य मानव जीवन में विज्ञान के महत्व और इसके अनुप्रयोग का संदेश फैलाना है. राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2021 की थीम ‘फ्यूचर ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन: इम्पैक्ट ऑन एजकेशन स्किल्स एंड वर्क’ है.

28 फरवरी, 1928 को भौतिक विज्ञानी सी.वी. रमन द्वारा रमन प्रभाव की खोज को चिह्नित करने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है. पहला राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 1987 में मनाया गया था.

सी.वी. रमन कौन थे?

चन्द्रशेखर वेंकट रमन जो सी वी रमन के नाम से प्रसिद्ध हैं, न केवल एक महान् वैज्ञानिक थे बल्कि मानव कल्याण और मानवीय सम्मान की वृद्धि में विश्वास करते थे. उन्हें 1930 में भौतिकी में नोबल पुरस्कार मिला और चन्द्रशेखर रमन पुरस्कार प्राप्त करने वाले वह पहले एशियाई थे. श्री सी.वी. रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 ई. में तमिलनाडु में तिरूचिरापल्ली नगर में हुआ था. सी वी रमन के पिता भौतिकी और गणित के प्रोफेसर थे. वह संस्कृत साहित्य, संगीत और विज्ञान के वातावरण में पले बड़े हुए. प्रकृति ने उन्हें तीव्र एकाग्रता, प्रखर बुद्धि और अन्वेषण की प्रवृत्ति प्रदान की थी.

रमन प्रभाव क्या है?

जब एक रंग का प्रकाश पुंज एक पारदर्शी पदार्थ से होकर गुजरता है, तो वह बिखर जाता है. रमन ने इस बिखरे हुए प्रकाश का अध्ययन किया. उन्होंने देखा कि पानी में डाली गई एक प्रमुख प्रकाश की रेखा के समानान्तर दो बहुत कम चमक वाली रेखाएँ दृष्टिगोचर होती हैं. इससे यह ज्ञात होता है यद्यपि पानी में डुबोया गया प्रकाश एकवर्णी था परंतु बिखरा हुआ प्रकाश एकवर्णी नहीं था. इस प्रकार प्रकृति का एक बहुत बड़ा रहस्य उनके समक्ष उद्घाटित हो गया. यह परिवर्तन रमन प्रभाव के नाम से ही प्रसिद्ध हो गया और बिखरे हुए प्रकाश की विशेष रेखाएँ भी ‘रमन रेखाएँ’ के नाम से प्रसिद्ध हो गईं. यद्यपि वैज्ञानिक इस प्रश्न पर विवाद करते रहे हैं कि क्या प्रकाश लहरों के समान हैं अथवा कणों के? लेकिन रमन प्रभाव ने यह सिद्ध कर दिया कि प्रकाश छोटे-छोटे कणों से मिल कर बनता है जिन्हें फोटोन कहा जाता है. चन्द्रशेखर वी रमन एक महान् शिक्षक और एक महान् पथ-प्रदर्शक भी थे. वह अपने छात्रों में अत्यधिक आत्मविश्वास भर देते थे. उनका एक विद्यार्थी बहुत ही निराश था क्योंकि उसके पास केवल एक किलो वॉट की शक्ति वाला एक्सरे यंत्रा था जबकि उस समय इंग्लैण्ड में वैज्ञानिक 5 किलोवाट की शक्ति वाले एक्सरे यंत्र से कार्य कर रहे थे. डा. रमन ने उसे प्रोत्साहित करते हुए, बदले में 10 किलोवाट की शक्ति वाला मस्तिष्क प्रयोग करने का सुझाव दिया. डा. रमन का जीवन हम सबके लिए अनुकरणीय है. जब भारत अंग्रेजों के वर्चस्व से पीड़ित था और शोध कार्य के लिए भौतिक संसाधन बहुत अल्प थे, उन्होंने अपनी प्रतिभाशाली मस्तिष्क रूपी प्रयोगशाला का ही प्रयोग किया. उन्होंने अपने जीवन का उदाहरण देते हुए सिद्ध कर दिखाया कि किस प्रकार हमारे पूर्वजों ने मस्तिष्क के बल पर बड़े-बड़े सिद्धांतों की खोज कर डाली.


Prelims Vishesh

Pagari Sambhaal Andolan :-

  • यह आंदोलन भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह द्वारा वर्ष 1907 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध कृषि से संबंधित तीन कानूनों को निरस्त करने के लिए आरंभ किया गया था.
  • कृषि से संबंधित तीन अधिनियम थे: पंजाब लैंड एलिएनेशन एक्ट 1900, पंजाब लैंड कोलोनाइजेशन एक्ट 1906 और दोआब बारी अधिनियम.
  • इन अधिनियमों ने किसानों के भू-स्वामी के दर्जे को हटाकर उन्हें केवल भूमि का ठेकेदार बना दिया था.
  • इन कानूनों के तहत किसान द्वारा बिना अनुमति के अपने खेत में फसल या किसी वृक्ष को स्पर्श कर लेने मात्र से ही ब्रिटिश सरकार आवंटित भूमि वापस लेने का अधिकार रखती थी.
  • कालांतर में ब्रिटिश सरकार ने मई 1907 में तीनों विवादास्पद कानूनों को निरस्त कर दिया था.

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