Sansar डेली करंट अफेयर्स, 01 December 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 01 December 2020


GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic : ONE NATION ONE ELECTION

संदर्भ

हाल ही में प्रधान मंत्री ने एक राष्ट्र, एक चुनाव (One Nation One Election) का समर्थन किया है.

क्या है एक राष्ट्र, एक चुनाव की परिकल्पना?

  • यह विचार एक ऐसी प्रणाली की परिकल्पना करता है, जिसके अंतर्गत सभी राज्यों और लोकसभा के चुनाव एक साथ संपन्न किए जाएंगे.
  • वर्ष 1987 तक यह व्यवस्था एक नियम क॑ रूप में स्थापित थी. हालांकि, वर्ष 1967 के उपरांत, कुछ राज्य विधान सभाओं के समयपूर्व विघटन के कारण राज्य विधान सभाओं और लोकसभा के एक साथ निर्वाचन की परिस्थितियों में असमानता उत्पन्न हो गई. इस कारण, केंद्र एवं राज्यों के निर्वाचन पृथक रूप से संपन्न होते
  • वर्ष 2015 में संसदीय स्थायी समिति और निर्वाचन आयोग ने इस विचार का समर्थन किया था. इसके अतिरिक्त, विधि आयोग, 2018 ने इसे लागू करने के लिए संरचनात्मक परिवर्तन उपलब्ध करवाए थे.

एक साथ चुनाव के लाभ

  • ऐसा होने पर सत्तासीन दल कानून निर्माण एवं प्रशासन पर ध्यान केन्द्रित कर सकेंगे. अभी इन्हें बार-बार चुनाव अभियान में व्यस्त होना पड़ता है.
  • अभी के प्रचलन के अनुसार, पाँच वर्ष के भीतर दो बार चुनाव होते हैं जिसमें राज्य एवं जिला-स्तर की सम्पूर्ण प्रशासनिक एवं सुरक्षा प्रणाली लगी रहती है जिसका असर प्रशासन पर पड़ता है तथा नीतियों और कार्यक्रमों की निरंतरता दुष्प्रभावित हो जाती है.
  • यदि दो बार न होकर लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक बार हों तो एक ही खर्चे से काम चल जाएगा.
  • एक ही बार चुनाव होने से इसके संचालन में कुशलता आएगी तथा साथ ही सरकारों द्वारा किये जाने वाले लोक लुभावन वादों में कमी आएगी.
  • ऐसे चुनाव से भ्रष्टाचार में भी कमी आ सकती है और एक अधिक अनुकूल सामाजिक-आर्थिक पारिस्थितिकी का निर्माण हो सकता है.
  • एक बार चुनाव होने से मतदान प्रक्रिया में काले धन की भूमिका घट जायेगी.

एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए अपेक्षित संवैधानिक संशोधन

इस नीति को लागू करने के लिए संविधान की निम्नलिखित अनुच्छेदों में संशोधन आवश्यक होगा –

  1. अनुच्छेद 83 (लोक सभा की अवधि)
  2. अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोक सभा को भंग किया जाना)
  3. अनुच्छेद 172 (विधान सभाओं की कार्यावधि)
  4. अनुच्छेद 174 (विधान सभाओं का भंग किया जाना)
  5. अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन)

 जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में भी कुछ संशोधन करने होंगे, जैसे कि भारतीय निर्वाचन आयोग की शक्तियों और कार्यों को नया रूप देना तथा अधिनियम के अनुभाग 2 में एककालिक चुनाव की परिभाषा जोड़ना.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

पक्ष में तर्क

  • आदर्श आचार संहिता (MCC) के उल्लंघन संबंधी विवाद कम होंगे, जिससे नवीन नीतियों की घोषणा बाधित होती है.
  • चुनाव अभियान और संचालन दोनों पर व्यय की लागत न्यूनतम होगी.
  • मतदाता की उपस्थिति को प्रोत्साहन मिलेगा और दीर्घतकालीन समय तक सुरक्षा बलों की व्यस्तता कम होगी.

विपक्ष में तर्क

  • यह प्रणाली लोगों के प्रति सरकार की जवाबदेही को कम करती है. जबकि बार-बार होने वाले चुनाव विधायकों को निरंतर सक्रिय बनाए रखते हैं, जिसके कारण उनकी जवाबदेही में वृद्धि होती है.
  • चूँकि राष्ट्रीय और राज्य चुनावों से संबंधित मुद्दे विभिन्‍न विषयों पर आधारित होते हैं, ऐसे में एक साथ चुनाव कराने से मतदाताओं के निर्णय प्रभावित होने की संभावना होती है.
  • परिचालन-संबंधी व्ववहार्यता, उदाहरण के लिए प्रथम बार साथ-साथ निर्वाचन कैसे संपन्‍न करवाए जाएं, सत्तारूढ़ दल,/ गठबंधन के पांच वर्ष पूर्व बहुमत के लोप होने पर कया प्रक्रिया होगी आदि.

GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : India and its neighborhood- relations

Topic : One China Policy

संदर्भ

हाल ही में चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगे ने दृढ़तापूर्वक ‘एकल चीन‘ की नीति को समर्थन देने के लिए नेपाल के नेतृत्व की प्रशंसा की है. 

प्रमुख बिंदु

  • हाल ही में चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगे नेपाल के एक दिवसीय दौरे पर आए थे.
  • चीन के रक्षा मंत्री ने नेपाल के प्रधानमंत्री से मुलाकात की और साझा हित के मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया.
  • जब भारत-नेपाल संबंध फिर से पटरी पर लौट रहे हैं , तो ऐसे में चीनी रक्षा मंत्री का नेपाल के दौरे पर आना काफी महत्वपूर्ण है. इस समय चीन नेपाल को लेकर काफी सक्रियता बढ़ा रहा है .
  • चीनी रक्षा मंत्री ने अपने नेपाल दौरे पर कहा कि चीन, नेपाल की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा हेतु हर प्रकार की सहायता देने हेतु प्रतिबद्ध है. चीन,इस हिमालयी राष्ट्र की सुरक्षा का समर्थन करता है.
  • इसके अतिरिक्त, चीन नेपाल से नजदीकी संपर्क जारी रखेगा और नेपाल की सैन्य जरूरतों के लिए सहायता उपलब्ध कराता रहेगा.

वन चाइना पॉलिसी

  • चीनी गृह युद्ध के पश्चात् साम्यवादी शक्तियों ने वहाँ के राष्ट्रीय दल Kuomintang को पराजित कर दिया था और 1949 में उसके नेताओं को फार्मोसा (ताइवान का पुराना नाम) भागने के लिए मजबूर कर दिया था. तब से चीन का प्रण रहा है कि आज न कल वह ताइवान को मुख्य चीन में मिला लेगा.
  • चीन वन चाइना नीति (One China policy) का अनुसरण करता है और ताइवान को नकारता है.
  • यदि कोई देश चीन के साथ कूटनीतिक सम्बद्ध स्थापित करता है तो उसको ताइवान से औपचारिक रिश्ता तोड़ देना पड़ता है.
  • अनौपचारिक ढंग से ताइवान से रिश्ता बनाये हुए हैं. अमेरिका और ताइवान का अनौपचारिक रिश्ता अत्यंत सुदृढ़ है और अमेरिका ताइवान को हथियार भी बेचता है. भारत भी ताइवान के साथ कई क्षेत्रों में सहयोग करता है.
  • 2010 से भारत एक चीन की नीति की पुष्टि करने से मना करता आया है.

GS Paper 2 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Related to health.

Topic : World Malaria Report

संदर्भ

हाल ही में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने विश्‍व मलेरिया रिपोर्ट -2020 जारी की है.इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने मलेरिया के मामलों में कमी लाने के काम में प्रभावी प्रगति की है.

विश्‍व मलेरिया रिपोर्ट 2020 से जुड़े प्रमुख बिन्दु

  • विश्‍व मलेरिया रिपोर्ट गणितीय अनुमानों के आधार पर दुनियां भर में मलेरिया के अनुमानित मामलों के बारे में आंकडे जारी करती है.
  • विश्‍व मलेरिया रिपोर्ट, 2020 के अनुसार भारत इस बीमारी से प्रभावित ऐसा अकेला देश है जहां 2018 के मुकाबले 2019 में इस बीमारी के मामलों में 17.6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.
  • रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वर्ष 2020 में अक्‍टूबर महीने तक मलेरिया के कुल 1,57,284 मामले दर्ज हुए हैं जो कि 2019 की इसी अवधि में दर्ज 2,86,091 मामलों की तुलना में 45.02 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है.
  • भारत ने मलेरिया के क्षेत्रवार मामलों में सबसे बडी गिरावट लाने में भी योगदान किया है यह 20 मिलियन से घटकर करीब 6 मिलियन पर आ गई है. साल 2000 से 2019 के बीच मलेरिया के मामलों में 8 प्रतिशत की गिरावट और मौत के मामलों में 73.9 प्रतिशत की गिरावट आई है.
  • भारत ने वर्ष 2000 (20,31,790 मामले और 932 मौतें) और 2019(3,38,494 मामले और 77 मौतें) के बीच मलेरिया के रोगियों की संख्‍या में 83.34 प्रतिशत की कमी और इस रोग से होने वाली मौतों के मामलों में 92 प्रतिशत की गिरावट लाने में सफलता हासिल की है और इस तरह सहस्राब्दि विकास लक्ष्‍यों में से छठे लक्ष्‍य (वर्ष 2000से 2019 के बीच मलेरिया के मामलों में 50-75 प्रतिशत की गिरावट लाना)को हासिल कर लिया है.
  • वर्ष 2019 में ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मेघालय और मध्‍य प्रदेश राज्यों में मलेरिया के कुल मामलों के करीब 45.47 प्रतिशत मामले दर्ज हुए. (भारत के कुल 3,38,494 मामलों में से 1,53,909 मामले) इसके अलावा, फेलसिपेरम मलेरिया के भारत भर में दर्ज कुल 1,56,940 मामलों में से 1,10,708 मामले इन राज्‍यों में दर्ज हुए जो कि कुल मामलों का 70.54 प्रतिशत है. इन्‍हीं राज्यों से हर 77 में से 49 (63.64 प्रतिशत) मौतें भी दर्ज हुईं.

मलेरिया के बारे में मुख्य तथ्य

  • मलेरिया प्लास्मोडियम गण के प्रोटोज़ोआ परजीवियों से फैलता है. इस गण के चार सदस्य मनुष्यों को संक्रमित करते हैं- प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, प्लास्मोडियम विवैक्स, प्लास्मोडियम ओवेल तथा प्लास्मोडियम मलेरिये.
  • इनमें से सर्वाधिक खतरनाक पी. फैल्सीपैरम माना जाता है. यह मलेरिया के 80 प्रतिशत मामलों और 90 प्रतिशत मृत्युओं के लिए जिम्मेदार होता है.
  • यह मुख्य रूप से अमेरिका, एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के उष्ण तथा उपोष्णकटिबंधी क्षेत्रों में फैला हुआ है.

भारत में मलेरिया उन्मूलन के लिए किये गये प्रयास

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित 2018 के विश्व मलेरिया प्रतिवेदन के अनुसार मलेरिया से सर्वाधिक ग्रस्त 11 देशों में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ मलेरिया के मामलों में अच्छी-खासी कमी आई है.
  • 2016 की तुलना में 2017 में मलेरिया के मामले 24% कम हुए. इसका अभिप्राय यह है कि मलेरिया को समाप्त करने के वैश्विक प्रयासों का नेतृत्व अब भारत के हाथ में आ गया है. भारत से प्रेरणा लेकर अन्य देश मलेरिया से निपटने की प्रेरणा ले सकते हैं.
  • भारत को मलेरिया हटाने में सफलता इसलिए मिल रही है कि एक ओर जहाँ वह विश्व-भर में अपनाई गई रणनीतियों के अनुरूप चल रहा है तो दूसरी ओर अपना स्वदेशी मलेरिया-विरोधी कार्यक्रम भी चला रहा है.
  • 2015 में पूर्व एशिया शिखर सम्मलेन में 2030 तक मलेरिया समाप्त करने का वचन देने के उपरान्त भारत ने इसके लिए एक पंचवर्षीय राष्ट्रीय रणनीतिक योजना का अनावरण किया था. इसमें मलेरिया को नियंत्रित करने के स्थान पर उसे समाप्त करने पर बल दिया गया था. इस योजना का उद्देश्य है कि भारत के 678 जिलों में से 571 जिलों में 2022 तक मलेरिया का उन्मूलन कर दिया जाए.
  • इस योजना में 10,000 करोड़ रू. का खर्च है. इस खर्च को पूरा करने के लिए पर्याप्त निवेश तो चाहिए ही, साथ ही इसके लिए सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और परोपकारी दाताओं का सहयोग भी अपेक्षित होगा क्योंकिस्वास्थ्य राज्य का विषय होता हैइसलिए मलेरिया से निटपने में राज्य सरकारों को विशेष दायित्व निभाना होगा.
  • विदित हो कि ओडिशा राज्य एक मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम चला रहा है जिसका नाम दुर्गम अंचलेर मलेरिया निराकरण (DAMaN) रखा गया है.

मलेरिया से सम्बंधित चिंतायें

  • मलेरिया से निपटने के लिए समय समय पर टेक्निकल, फाइनेंसशियल, ऑपरेशन और प्रशासनिक समस्याओं में उतार चढ़ाव देखे गए हैं.
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO) के मुताबिक विश्व मलेरिया रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 के दौरान भारत में साल 2016 के मुकाबले साल 2017 में मलेरिया के मामलों में 24 फीसद की कमी पाई गई है.
  • मलेरिया पर नियंत्रण पाने के लिए भारत का खर्च दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे कम है.
  • WHO के अनुसार, मलेरिया को खत्म करने के लिए व्यापक तरीका अपनाना होगा. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में मलेरिया को लेकर लोगों में जागरुकता फैलाने की अधिक आवश्यकता है.
  • दक्षिण-पूर्व एशिया में कुल मलेरिया के 70 प्रतिशत मामले और मलेरिया से होने वाली 69 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं.
  • मलेरिया सबसे प्रचलित संक्रामक रोगों में से है. यह रोग प्लाज्मोडियम गण के प्रोटोजोआ परजीवी के माध्यम से फैलता है.
  • केवल चार प्रकार के प्लाज्मोडियम परजीवी मनुष्य को प्रभावित करते हैं, जिनमें से सर्वाधिक खतरनाक प्लाज्मोडियम फैल्सीपैरम तथा प्लाज्मोडियम विवैक्स माने जाते हैं.
  • साथ ही प्लाज्मोडियम ओवेल तथा प्लाज्मोडियम मलेरिया भी मानव को प्रभावित करते हैं. इन सभी समूहों को ‘मलेरिया परजीवी’ कहते हैं.

आगे की राह

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पिछले 15 वर्षों में मलेरिया को रोकने के लिए कई प्रयास किए गए. मच्छरदानी और दूसरे उपायों के बाद भी इस पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है. ऐसे में समाधान के तौर पर वैक्सीन ही बेहतर विकल्प है. इसकी सहायता से हजारों बच्चों को मृत्यु के मुँह में जाने से  बचाया जा सकता है.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : India and its neighborhood- relations

Topic : China’s hydropower ambitions on the Brahmaputra could trigger a dam-building race with India

संदर्भ

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control– LAC) पर भारत के साथ जारी सीमा विवाद के मध्य, चीन तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक प्रमुख जल विद्युत परियोजना का निर्माण करने की योजना बना रहा है और इसके लिए अगले वर्ष से शुरू होने वाली 14 वीं पंचवर्षीय योजना एक प्रस्ताव को सम्मिलित किया जा चुका है.

भारत एवं बांग्लादेश की प्रतिक्रिया

ब्रह्मपुत्र नदी, भारत और बांग्लादेश से होकर गुजरती है तथा ऐसे में बांध निर्माण के प्रस्ताव से इन देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं. हालांकि चीन ने इन चिंताओं को खारिज करते हुए कहा है कि वह उनके हितों को भी ध्यान में रखेगा.

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद

भारत की 3,488 किलोमीटर की सीमा रेखा चीन के साथ लगती है. चीन-भारत सीमा को सामान्यतः तीन क्षेत्रों में बांटा गया है:

  • पश्चिमी क्षेत्र, (2) मध्य क्षेत्र, और (3) पूर्वी क्षेत्र.

पश्चिमी क्षेत्र

पश्चिमी क्षेत्र में चीन के साथ 2152 किमी लंबी भारतीय सीमा है. यह सीमा जम्मू और कश्मीर तथा चीन के भझिंजियांग (सिक्‍यांग) प्रांत के बीच है.

अक्साई चीन

  • अक्साई चीन पर क्षेत्रीय विवाद की जड़ें ब्रिटिश साम्राज्य की अपने भारतीय उपनिवेश और चीन के बीच कानूनी सीमा की स्पष्ट व्याख्या न करने की विफलता में निहित हैं.
  • ब्रिटिश राज के दौरान भारत और चीन के बीच दो सीमाएं प्रस्तावित की गई थीं – जॉनसन लाइन (Johnson’s Line) और मैकडॉनाल्ड लाइन (McDonald Line)
  • जॉनसन लाइन, अक्साई चिन को भारतीय नियंत्रण में प्रदर्शित करती है जबकि मैकडॉनाल्ड लाइन इसे चीन के नियंत्रण में प्रदर्शित करती है.
  • भारत चीन के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में जॉनसन लाइन को सही मानता है जबकि दूसरी ओर, चीन मैकडॉनल्ड लाइन को भारत-चीन के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा मानता है.
  • भारतीय-प्रशासित क्षेत्रों को अक्साई चीन से पृथक करने वाली रेखा को वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल: LAC) के रूप में जाना जाता है और यह रेखा चीन द्वारा दावा की जाने वाली अक्साई चिन सीमा रेखा के साथ समवर्ती है.
  • भारत और चीन के बीच 1962 में विवादित अक्साई चिन क्षेत्र को लेकर युद्ध हुआ था. भारत का दावा है कि यह कश्मीर का भाग है, जबकि चीन ने दावा किया कि यह चीन के भिंजियांग का भाग है.

मध्य क्षेत्र

मध्य क्षेत्र में लगभग 625 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा लद्दाख से नेपाल तक जलविभाजक (वाटरशेड) के साथ-साथ चलती है. इस सीमा रेखा पर भारत के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्य, तिब्बत (चीन) के साथ लगते हैं.

पूर्वी क्षेत्र

  • पूर्वी क्षेत्र में सीमा रेखा 1,140 किमी लंबी है तथा यह भूटान की पूर्वी सीमा से लेकर भारत, तिब्बत और म्यांमार के मिलन बिंदु, तालू दर्रा के पास तक विस्तृत है. इस सीमा रेखा को मैकमोहन रेखा (हेनरी मैकमोहन के नाम पर) कहते हैं. हेनरी मैकमोहन एक ब्रिटिश प्रतिनिधि थे जिन्होंने 1913-14 के शिमला कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए थे.
  • यह सीमा रेखा हिमालय पर्वत के उत्तरी भाग में स्थित ब्रह्मपुत्र नदी के जलविभाजक से लगी हुई है, जहां लोहित, दिहांग, सुबनसिरी और केमांग नदियाँ उस जल विभाजक से होकर निकलती हैं.
  • चीन मैकमोहन रेखा को गैरकानूनी और अस्वीकार्य मानता है. उसके अनुसार, तिब्बत को मैकमोहन रेखा का निर्धारण करने वाले 1914 के शिमला समझौते पर हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं था.

सीमा विवाद को सुलझाने के प्रयास

  1. सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी चीन गये थे जिसके पश्चात् एक संयुक्त कार्य समूह (Joint Working Group – JWG) की स्थापना हुई थी.
  2. 1993 में इस समूह को सहायता पहुँचाने के लिए भारत-चीन कूटनीतिज्ञ एवं सैन्य अधिकारी विशेषज्ञ समूह (Expert Group of Diplomatic and Military Officers) गठित हुआ. साथ ही एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए जिसके अनुसार, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनाये रखने का निर्णय हुआ.
  3. 1996 में आपसी भरोसा बढ़ाने के लिए (Agreement on Confidence Building Measures – CBMs) एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए.
  4. 2003 में भारत और चीन का एक-एक विशेष प्रतिनिधि नियुक्त हुआ जिसे सीमा विवाद का राजनैतिक समाधान निकालने का दायित्व दिया गया.
  5. 2009 तक इन विशेष प्रतिनिधियों के बीच 17 बार वार्ता हो चुकी है, परन्तु समाधान की ओर कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया है. पिछले दिनों वार्ता के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परामर्शी अजित डोभाल को विशेष दूत के रूप में नियुक्त किया गया है.

भारत की चिंताएं

  1. चीन की बांध निर्माण अतिसक्रिय गतिविधियाँ, भारत के लिए एक चिंता का विषय है क्योंकि, चीन के साथ भारत का कोई द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौता नहीं हैं.
  2. चीन का मानना ​​है कि ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से उसका अरुणाचल प्रदेश पर दावा मजबूत होगा.
  3. भारत का मानना ​​है कि तिब्बती पठार में चीन की परियोजनाएँ भारत में नदी के प्रवाह को कम करने की धमकी है.
  4. बांध, नहरें, सिंचाई प्रणालियाँ, युद्ध के समय अथवा शांति काल में सह-तटवर्ती देश को खिन्नता का सन्देश देने हेतु, जल को एक राजनैतिक हथियार में बदल सकती हैं.
  5. नदी में प्रवाह बहुत अधिक होने पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करने से मना करने पर संकटमय हो जाता है.
  6. चीन, यारलंग जोंगबो (Yarlung Zangbo– ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम) की धारा, उत्तर की ओर मोड़ने पर भी विचार कर रहा है.
  7. ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह में परिवर्तन करने संबंधी विचार पर चीन सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं करता है, क्योंकि इससे भारत के उत्तरपूर्वी मैदानी इलाकों और बांग्लादेश में या तो बाढ़ से, या फिर पानी की कमी से तबाही हो सकती है.

ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़ी मुख्य बातें

  • भारत की ब्रह्मपुत्र नदी को ही तिब्बत में यारलुंग जांग्बो के नाम से जाना जाता है. चीन में इसका एक अन्य नाम यारलुंग त्संग्पो (Yarlung Tsangpo) भी है.
  • ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत की मानसरोवर झील के पूर्व तथा सिंधु एवं सतलुज के स्रोतों के काफी नज़दीक से निकलती है. इसकी लंबाई सिंधु से कुछ अधिक है, परंतु इसका अधिकतर मार्ग भारत से बाहर स्थित है. यह हिमालय के समानांतर पूर्व की ओर बहती है. नामचा बारवा शिखर (7,757 मीटर) के पास पहुँचकर यह अंग्रेजी के यू (U) अक्षर जैसा मोड़ बनाकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में गॉर्ज के माध्यम से प्रवेश करती है.
  • यहाँ इसे दिहाँग के नाम से जाना जाता है तथा दिबांग, लोहित, केनुला एवं दूसरी सहायक नदियाँ इससे मिलकर असम में ब्रह्मपुत्र का निर्माण करती हैं.
  • तिब्बत के रागोंसांग्पो इसके दाहिने तट पर एक प्रमुख सहायक नदी है.
  • हिमालय के गिरिपद में यह सिशंग या दिशंग के नाम से निकलती है. अरुणाचल प्रदेश में सादिया कस्बे के पश्चिम में यह नदी भारत में प्रवेश करती है. दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहते हुए इसके बाएँ तट पर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ दिबांग या सिकांग और लोहित मिलती हैं और इसके बाद यह नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का प्रारम्भ 17 मार्च, 1890 से माना जा सकता है जब ब्रिटिश भारत और चीन ने एक संधि कर तिब्‍बत और सिक्किम के मध्य की सीमा तय की थी. हालांकि इस मौके पर तिब्‍बत या भूटान का कोई भी प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था. ‘ग्रेट ब्रिटेन एवं चीन के मध्य सिक्किम और तिब्बत से संबंधित सम्मेलन’ नामक इस संधि के कारण कॉलोनी ताकत को सिक्किम हड़पने का अवसर मिल गया. पाकिस्तान जहाँ अपने कब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) का भारत के विरुद्ध आतंकवाद के लॉन्च पैड के रूप में प्रयोग कर रहा है, वहीं चीन ने सीपीईसी के अंतर्गत तिब्बत को प्रवेश द्वार मानते हुए वहाँ आधारभूत संरचनाएँ खड़ी की हैं. भारत को चीन को बता देना चाहिए कि उसकी ये परियोजनाएँ अवैध हैं और भारत को उपयुक्त समय पर उचित कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है. तिब्बत में बांधों के निर्माण और जलधारा को मोड़े जाने से जल संसाधन संबंधी अतीव पर्यावरणीय क्षति से निचले प्रवाह के देशों – भारत से लेकर हिंद-प्रशांत के विभिन्न तटीय देशों तक – को गंभीर चिंता सता रही है. एक नई हिंद-प्रशांत संरचना में इन देशों तथा हांगकांग और ताइवान जैसे वित्तीय केंद्रों के साथ सम्मिलित किया जा सकता है, जो अनिवार्यत: ‘एक चीन’ नीति की समीक्षा पर बल दे.


Prelims Vishesh

Elephant Corridors :-

  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने ओडिशा सरकार को राज्य में हथियों के एक आवास से दूसरे दूसरे आवास तक मुक्त प्रवास प्रदान करने के लिए 14 चिह्नित हाथी गलियारों पर तीन महीने के अन्दर एक कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया है.
  • विदित हो कि देश में हाथियों की आवाजाही के लिए 110 गलियारे हैं. इनमें से लगभग 70 फीसदी का नियमित रूप से हाथियों द्वारा इस्तेमाल होता है.

7th Meeting of India-Mongolia Joint Committee on Cooperation :-

  • भारत-मंगोलिया संयुक्त सहयोग समिति की 7वीं बैठक आयोजित की गई.
  • भारतीय पक्ष ने मंगोलिया द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने के निर्णय का स्वागत किया. दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि इस पहल से भारत, मंगोलिया और दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा.

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