1857 से पूर्व के महत्त्वपूर्ण विद्रोह

Dr. SajivaHistory, Modern History

आपने 1857 के विद्रोह के विषय में लिखे हुए हमारे पोस्ट को पढ़ा ही होगा. आज हम 1857 ई. से पूर्व हुए महत्त्वपूर्ण विद्रोहों की चर्चा करेंगे –

संन्यासी विद्रोह 1770

इस संन्यासी विद्रोह का उल्लेख बंकिम चन्द्र चटर्जी ने अपने उपन्यास “आनंदमठ” में किया है. तीर्थ स्थानों पर लगे प्रतिबंधों से संन्यासी लोग बहुत क्षुब्ध हुए. संन्यासियों के बीच अन्याय के विरुद्ध लड़ने की परम्परा थी. उन्होंने जनता से मिलकर ईस्ट इंडिया कम्पनी की कोठियों और कोषों पर आक्रमण किया. काफी समय के बाद इस विद्रोह को वारेन हेस्टिंग्स दबा सका. यह विद्रोह बंगाल में हुआ था.

चुआर विद्रोह 1768

अकाल और बढ़े हुए भूमिकर और अन्य आर्थिक संकटों के कारण मिदनापुर जिले (प. बंगाल) की आदिम जाति के चुआर लोगों ने हथियार उठा लिए. यह प्रदेश 18वीं सदी के अंत तक उपद्रवग्रस्त रहा.

अहोम विद्रोह 1828

असम के अहोम अभिजात वर्ग के लोगों ने कम्पनी पर बर्मा युद्ध के पश्चात् लौटने का वचन पूरा न करने का दोष लगाया. इसके अतिरिक्त जब अंग्रेजों ने अहोम प्रदेश (असम) को अंग्रेज-शासित राज्य में मिलाने की कोशिश की तो यह विद्रोह उमड़ पड़ा. उन्होंने 1828 में गोमधर कुँवर को अपना राजा घोषित कर रंगपुर पर आक्रमण करने की योजना बनाई.

पागलपंथी और फरैजियों का विद्रोह

पागल पंथ एक अर्ध-धार्मिक सम्प्रदाय था जिसे उत्तरी बंगाल के करमशाह ने चलाया था. करमशाह के पुत्र टोपू ने धार्मिक और राजनैतिक कारणों से प्रेरित होकर जमींदारों के मुजारों (रैयतों) पर किए गए अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया. यह क्षेत्र 1840 से 1850 तक उपद्रवग्रस्त बना रहा.

फरैजी लोग बंगाल के फरीदपुर के वासी हाजी शरीयतुल्ला द्वारा चलाये गए सम्प्रदाय के अनुयायी थे. यह सम्प्रदाय भी जमींदारों द्वारा अपने मुजारों पर अत्याचारों के विरोध में था. फरैजी उपद्रव 1837 से 1857 तक चलता रहा. बाद में इस सम्प्रदाय के अनुयायी बहावी दल में सम्मिलित हो गए.

बघेरा विद्रोह

ओखा (गुजरात) मंडल के बघेरों ने अंग्रेजी सेना द्वारा अधिक कर प्राप्त करने के प्रयत्न के विरोध में 1818-19 के बीच अंग्रेज-शासित प्रदेश पर आक्रमण कर दिया था.

सूरत का नमक आन्दोलन

1844 में नमक कर 1/2 रूपया प्रति मन से बढ़ा एक रूपया प्रति मन कर दिया गया, जिसके कारण लोगों में विद्रोह की भावना भड़क उठी. अंत में इस कर को हटा लिया गया.

रमोसी विद्रोह

पश्चिमी घाट में रहने वाली एक आदिम जाति रमोसी थी. अंग्रेज़ी सरकार से अप्रसन्न होकर 1822 ई. में उनके सरदार चित्तरसिंह ने विद्रोह कर दिया और सतारा के आस-पास के प्रदेशों को लूट लिया.

दीवान वेलु टम्पी का विद्रोह

सन् 1805 में वेलेजली ने ट्रावनकोर के राजा को सहायक संधि करने पर विवश किया. अंग्रेजों के व्यवहार से अप्रसन्न होकर उसने विद्रोह कर दिया.

All History Notes Here >> History Notes in Hindi

Spread the love
Read them too :
[related_posts_by_tax]