कोरोना महामारी को लेकर आपदा प्रबंधन अधिनियम की प्रासंगिकता

Sansar LochanGovernance

भारत में कोरोना महामारी के प्रकोप को रोकने हेतु देश में लॉकडाउन लगाया गया है. इस दौरान केंद्र सरकार ने अनेक आदेश और दिशानिर्देश निर्गत किए हैं. ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 68 दिनों के अबतक के लॉकडाउन में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रति दिन औसतन 1.3 आदेश निर्गत किए हैं. हाल ही में, एमएचए द्वारा राज्यों को लॉकडाउन से संबंधित 94 आदेश, दिशानिर्देश और पत्र निर्गत किए गए हैं.

ये सभी आदेश आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत निर्गत किए गए हैं. 2004 में सुनामी के बाद इस कानून का मसौदा तैयार किया गया था और 16 साल में यह प्रथम बार लागू हुआ है.

कोरोना महामारी को लेकर आपदा प्रबंधन अधिनियम की प्रासंगिकता

कोरोना महामारी देश की ऐसी पहली जैविक महामारी है जिसे पहली बार देश की कानूनी संस्थाएँ एवं संवैधानिक संस्थाएँ मिल कर नियंत्रण में लाने का प्रयास कर रही हैं.

संविधान में केंद्र और राज्य संबंध को लेकर तीन तरह की सूचियां हैं: संघ सूचीराज्य सूची और समवर्ती सूची.

सामाजिक सुरक्षा से संबंधित मामले राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में और विषय समवर्ती सूची में सूचीबद्ध हैं.

समवर्ती सूची की मद संख्या :-

  • मद सं. 23: सामाजिक सुरक्षा और बीमा, रोज़गार और बेरोज़गारी।
  • मद सं. 29 :मानव, जीव जंतुओं व पौधों को को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों का निवारण विषय वर्णित है.

इसके अतिरिक्त संविधान के अनुच्छेद 14,15 एवं 21 तथा अनुच्छेद 39  को एक साथ पढ़ने से यह निष्कर्ष निकलता है कि “लोक स्वास्थ्य” की संपूर्ण जिम्मेदारी प्रशासन पर है जिसमें केंद्र और प्रांतों की समान जवाबदेही है.

आपदा प्रबन्धन अधिनियम, 2005

  • भारत सरकार ने 23 दिसम्बर, 2005 को आपदा प्रबन्धन अधिनियम (Disaster Management Act) पारित किया था.
  • बाद में इस अधिनियम के अनुसार राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (NDMA) तथा राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (SDMAs) गठित किये गये जिनके अध्यक्ष क्रमशः प्रधानमन्त्री और सम्बंधित राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं. इसका प्रशासनिक नियंत्रण भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन होता है.

चुनौतियाँ

ज्ञातव्य है कि किसी भी आपदा से लड़ने के लिए और उससे होने वाले जोखिमों तथा जन-धन की हानि को कम करने के लिए समय पर उसका पूर्वानुमान करना एक महत्त्वपूर्ण कार्य होता है. समय पर चेतावनी मिल जाने से कई ऐसे काम किये जा सकते हैं जो देश के हित में हों.

समय पर चेतवानी के उपाय

  • समय पर चेतावनी की प्रणाली में उन समुदायों को शामिल करना चाहिए जो आपदा से प्रभावित होने वाले हैं.
  • जनता-जनार्दन में जागरूकता उत्पन्न करना.
  • चेतावनी का प्रसार कारगर ढंग से करना.
  • यह सुनिश्चित किया जाए कि आपदा के प्रति निरंतर चौकस तैयारी रहे.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

  • 21वीं शताब्दी के पूर्व के दशक में भारत को कई भीषण आपदाओं को झेलना पड़ा. इनमें 2001 का भुज का भूकम्प, 2004 की हिन्द महासागर की सुनामी, 2005 में कश्मीर का भूकम्प, 2008 में कोसी की बाढ़, 2009 में आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक में आई बाढ़, 2010 में लेह में बादल फटने और उत्तराखण्ड की बाढ़ तथा 2011 का सिक्किम का भूकम्प प्रमुख हैं.
  • भारत की विशाल जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग आपदाओं का शिकार बनता रहता है. भारत के पूर्वी हिस्से में भौगोलिक नदी और तटवर्ती क्षेत्रों की स्थलाकृतिक विशेषताओं के कारण बाढ़ और चक्रवात का जोखिम बना रहता है.
  • भारत में हर वर्ष करीब 20 करोड़ लोगों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है. भूगर्भीय, जल-मौसम विज्ञानी और मानव-जनित एवं प्रौद्योगिकीय आपदाओं की सम्भावना वाले क्षेत्रों में करोड़ों भारतीयों के प्रभावित होने की आशंका को देखते हुए यह स्वाभाविक हो जाता है कि आपदाओं के शमन, निवारण और उनसे निपटने की तैयारियों को सुदृढ़ बनाने के लिए मिशन की भाँति एक अभियान चलाया जाना चाहिए.
  • आपदाओं के विनाशकारी प्रभावों से खतरे में आए लोगों की समस्याओं और कठिनाइयों को दूर करने के लिए प्रशासन का चुस्त-दुरुस्त और संवेदनशील होना आवश्यक है और इसमें कोई ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए. इस कार्य से जुड़े सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को पूरी पारदर्शिता के साथ अपना उत्तरदायित्व निभाना होगा. उन्हें ‘सब चलता है’ की मनोवृत्ति त्याग कर पूरे दायित्व के साथ नयी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए अपने आचरण में आमूल परिवर्तन लाना होगा. अकस्मात् आई आपदा की स्थिति में छिन्न-भिन्न हुई सेवाओं की बहाली, आपदाग्रस्त लोगों को कुशलतापूर्वक सेवाएँ प्रदान करने और राहत सामग्री के सुचारू रूप से वितरण की पारदर्शी व्यवस्था होनी होगी.
  • महामारी जैसी आपातकालीन स्थितियों में कानूनी ढांचे की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि वह सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र, नागरिकों के कर्तव्य व अधिकारों की परिधि में सरकारी प्रक्रिया के दायरे को संवर्धित व व्यवस्थित करते हैं. इस दिशा में केंद्र सरकार द्वारा मॉडल पब्लिक हेल्थ एक्ट 1987 को विकसित करने का प्रयास किया गया था पर राज्यों की असहमति के चलते वह मूर्त रूप नहीं ले सका. इसके अतिरिक्त “द नेशनल हेल्थ बिल 2009″ का भी उल्लेख किया जा सकता है जिसे बाद की सरकारों द्वारा भुला दिया गया. यही उपयुक्त समय है, जब सरकारों द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर संजीदगी दिखाई जाए और पूरी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ लोक स्वास्थ्य पर, समयानुकूल एक मुकम्मल, प्रभावी कानूनी तंत्र विकसित किया जाए जिससे कि भारत आपदा से आने से पहले ही पूरी तरह से तैयार हो.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

NDRF

  • इसका गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ के तहत हुआ था. सन् 1980 से लेकर 2005 तक अलग-अलग समय पर (1) जम्मू-कश्मीर का भूकंप और उसकी वजह से हुआ हिमस्खलन(2) उत्तराखंड, गुजरात और महाराष्ट्र में आए भूकंप(3) असम, बिहार और महाराष्ट्र की बाढ़(4) पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में आए चक्रवात, (5) भोपाल गैस त्रासदी तथा (6) आंध्रप्रदेश, केरल, तमिलनाडु और अंडमान-निकोबार की सुनामी की वजह से बहुत अधिक संख्या में जानमाल की हानि हुई, इसके अलावा पीड़ित व्यक्तियों को अपनी संपत्ति, पशुधन और खाने-पीने के अभावों का सामना करना पड़ा. इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 बनाया और 2006 में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का गठन हुआ.
  • यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करता है.
  • इसका मुख्यालय अंत्योदय भवन, नई दिल्ली में है.

राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) 

  • SDRF हर राज्य में गठित हुआ है. इसका गठन 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के अनुसार हुआ है. ज्ञातव्य है कि इसके गठन के लिए 13वें वित्त आयोग ने अनुशंसा की थी.
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