सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम – Public Safety Act Explained in Hindi

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Public Safety Act Explained in Hindi

जम्मू कश्मीर प्रशासन ने पूर्व मुख्यमंत्रिगण महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला के साथ-साथ नेशनल कांफ्रेंस एवं पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के दो बड़े राजनेताओं पर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act – PSA) लगा दिया है.

सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम लगाये जाने का निहितार्थ

  • PSA लगाये जाने के अंतर्गत गिरफ्तारी के आदेश पारित होने के चार सप्ताह के भीतर सरकार को मामले को एक परामर्शी बोर्ड में भेजना पड़ता है. यह बोर्ड आदेश पारित होने के आठ सप्ताह के भीतर अपनी अनुशंसा देता है. यदि बोर्ड समझता है कि बंदीकरण के पीछे ठोस कारण है तो सरकार गिरफ्तारी की अवधि दो वर्ष तक बढ़ा सकती है.
  • PSA में गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के विरुद्ध कोर्ट में चुनौती देने का अधिकार होता है, परन्तु परामर्शी बोर्ड के समक्ष उसे ऐसा अधिकार नहीं मिला हुआ है. यदि उसके पास ऐसे पर्याप्त आधार हैं जिससे गिरफ्तारी को अवैध सिद्ध किया जा सकता है, तभी वह इस बोर्ड के समक्ष जा सकता है.
  • PSA के कुछ ऐसे भी मामले हुए हैं जिनमें उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया है और गिरफ्तारी को निरस्त कर दिया है.
  • PSA के अनुभाग 13(2) के अनुसार, गिरफ्तार करते समय व्यक्ति को इसका कारण बताना आवश्यक नहीं होता यदि यह निर्णय हो कि ऐसा करना लोकहित के विरुद्ध है.

 जम्मू-कश्मी जन सुरक्षा अधिनियम क्या है?

  • जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम अप्रैल 8, 1978 से लागू है.
  • यह अधिनियम विशेषकर इसलिए पारित किया गया था कि इमारती लकड़ियों की तस्करी को रोका जा सके.
  • इस अधिनियम के अनुसार सरकार चाहे तो 16 वर्ष से ऊपर की आयु वाले किसी भी व्यक्ति को बिना मुक़दमे के दो वर्ष तक बंदी बना सकती है.
  • अधिनियम के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति राज्य की सुरक्षा के विरुद्ध कार्य कर रहा है तो उसे दो वर्ष तक प्रशासनिक बंदी के रूप से बंदी बनाया जा सकता है. साथ ही यदि कोई व्यक्ति विधि-व्यवस्था के लिए खतरा हो तो उसे एक वर्ष के लिए बंदी बनाया जा सकता है.
  • अधिनियम के अंतर्गत किसी को बंदी बनाने के लिए आदेश प्रमंडल आयुक्त अथवा जिला मजिस्ट्रेट द्वारा निर्गत किया जा सकता है.
  • अधिनियम के अनुभाग 22 के अनुसार बंदी बनाए गये व्यक्ति के विरुद्ध न्यायालय में कोई वाद नहीं चलाया जा सकता.
  • अधिनियम के अनुभाग 23 में सरकार को यह शक्ति दी गई है कि वह अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नियमावली बना सकती है.

इस कानून को “निर्मम” (DRACONIAN) क्यों कहा जाता है?

जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम का प्रारम्भ से दुरूपयोग होता रहा है. अलग-अलग सरकारों ने अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध इस कानून का बार-बार दुरूपयोग किया है. अगस्त, 2018 में इस कानून को और भी कठोर करते हुए यह व्यवस्था की गई कि राज्य के बाहर का कोई भी व्यक्ति बंदी बनाया जा सकता है. बंदी बनाते समय अधिकारी चाहे तो अपनी कार्रवाई का कारण नहीं बता सकता है और कह सकता है कि ऐसा करना जनहित में नहीं है.

अधिनियम में बंदी बनाने के लिए जो आधार दिए गये हैं, वह अस्पष्ट हैं. इस कारण अधिकारियों की शक्ति बेलगाम हो जाती है. अधिनियम किसी बंदीकरण की न्यायिक समीक्षा का प्रावधान भी नहीं करता है. यदि उच्च न्यायालय किसी बंदी को छोड़ने का आदेश देता है तो सरकार उसे दुबारा बंदी बना कर के उसे कारावास में डाल देती है. इस अधिनियम का प्रयोग मानवाधिकार कर्मियों, पत्रकारों आदि के विरुद्ध होता रहा है.

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