[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Polity GS Paper 2/Part 6

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[no_toc] सामान्य अध्ययन पेपर – 2

“संविधान निर्माता चाहते थे कि भारत का राष्ट्रपति केवल एक वैधानिक प्रधान हो, वास्तविक प्रधान नहीं.” विवेचना करें. (250 words)

  • अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है  = Green
  • आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 2 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य.”

सवाल का मूलतत्त्व

42वें और 44वें संवैधानिक संशोधन के विषय में जानना पड़ेगा. यदि राष्ट्रपति को लेकर संशोधन में दिए गये कथन याद हो तो बहुत अच्छा होगा.

उत्तर

संविधान निर्माता चाहते थे कि भारत का राष्ट्रपति केवल एक वैधानिक प्रधान हो, वास्तविक प्रधान नहीं. लेकिन उन्होंने सोचा कि इस बात को कानून द्वारा निश्चित किये जाने के बजाय परम्परा द्वारा निश्चित होने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए.

परम्पराएँ राष्ट्रपति को एक वैधानिक प्रधान की भूमिका दे रही थीं, परन्तु इस सम्बन्ध में किसी प्रकार की अस्पष्टता को दूर करने के लिए 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा संविधान के पुराने अनुच्छेद 74 की धारा 1 के स्थान पर इन शब्दों को रखा गया है –

राष्ट्रपति को सहायता और परामर्श देने के लिए प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद् होगी और राष्ट्रपति अपने कार्यों के सम्पादन में मंत्रिपरिषद् से प्राप्त परामर्श के आधार पर कार्य करेगा.

42वें संवैधानिक संशोधन के उपर्युक्त शब्दों के स्थान पर 44वें संवैधानिक संशोधन (1979) में इन शब्दों को अपनाया गया है –

राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद् से जो परामर्श प्राप्त होगा, उसके सम्बन्ध में राष्ट्रपति को अधिकार होगा कि वह मंत्रिपरिषद् को इस परमर्श पर पुनर्विचार करने के लिए कहे, लेकिन पुनर्विचार के बाद मंत्रिपरिषद् से राष्ट्रपति को जो परामर्श प्राप्त होगा, राष्ट्रपति उस परामर्श के अनुसार कार्य करेगा.

वस्तुतः 44वें संवैधानिक संशोधन में अपनाए गए इन शब्दों का आशय भी लगभग वही है जो 42वें संवैधानिक संशोधन के शब्दों का था. इस प्रकार, अब राष्ट्रपति अपने सभी कार्य मंत्रिपरिषद् के परामर्श के अनुसार करने के लिए बाध्य है.

सामान्य अध्ययन पेपर – 2

“भारतीय राष्ट्रपति भारतीय राज्यव्यवस्था का पाँचवा पहिया नहीं है .” इस कथन की पुष्टि करें.  (250 words)

  • अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है  = Green
  • आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 2 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य.”

सवाल का मूलतत्त्व

पाँचवा पहिया का अर्थ पहले समझ लें. इसमें आपको कुछ उदाहरण देने पड़ेंगे, हमने तो कुछ उदाहरण दिए हैं, आपके पास अतिरिक्त उदाहरण हैं तो वे भी दें.

उत्तर

सामान्य परिस्थितियों में राष्ट्रपति नाम मात्र का का प्रधान ही है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में वह प्रधानमन्त्री और मंत्रिपरिषद् पर अंकुश रखने का कार्य कर सकता है. किन्हीं भी कारणों से जब सरकार को केवल एक “कामचलाऊ सरकार” की स्थिति प्राप्त हो, तब राष्ट्रपति उस सरकार को नीतिगत फैसले लेने से रोक सकता है या निर्देश दे सकता है. 1979 ई. में नीलम संजीव रेड्डी, 1991 में आर. वेंकटरमण और 1996 में राष्ट्रपति डॉ. शर्मा ऐसा कर चुके हैं. इस सम्बन्ध में 1997 और 1998 के उदाहरण तो बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. अक्टूबर, 1997 में जब केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने का परामर्श राष्ट्रपति को दिया और सितम्बर 1998 में जब बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करने का परामर्श राष्ट्रपति को दिया, तब इन दोनों ही अवसरों पर राष्ट्रपति ने 44वें संवैधनिक संशोधन को आधार बनाकर मंत्रिमंडल को इस परामर्श पर पुनर्विचार करने के लिए कहा और मंत्रिमंडल ने अपने पूर्व परामर्श पर पुनर्विचार करते हुए उसे वापस ले लिया. इस प्रकार राष्ट्रपति ने “असाधारण वस्तुनिष्ठता और परम ईमानदारी का परिचय” देकर संविधान के सच्चे संरक्षक की भूमिका का निर्वाह किया. राष्ट्रपति के.आर. नारायण ने एक वर्ष के भीतर दूसरी बार दो टूक अंदाज में बता दिया कि वे रबड़ स्टाम्प बनने को तैयार नहीं हैं.

इसके अतिरिक्त जब कभी प्रधानमन्त्री पद के लिए एक से अधिक दावेदार होते हैं, जैसा कि 1979 ई. में और 1996 ई. में हुआ, तब राष्ट्रपति को प्रधानमन्त्री के चयन में अपने विवेक का प्रयोग करना होता है. राष्ट्रपति की भूमिका, उसकी वास्तविक स्थिति और उसके पद के महत्त्व के सम्बन्ध में आर.वेंकटरमण का यह विचार नितांत उचित है, “राष्ट्रपति का महत्त्व आपातकालीन “आपातकालीन बत्ती/ ’emergency light” की भाँति है. संकट की स्थिति में इसकी भूमिका स्वतः प्रारम्भ हो जाती है और संकट समाप्त हो जाने पर इसकी भूमिका स्वतः समाप्त हो जाती है.”

उपर्युक्त विवेचना के आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय राष्ट्रपति भारतीय राज्यव्यवस्था का पाँचवा पहिया नहीं है अर्थात् राष्ट्रपति का पद व्यर्थ का पद नहीं है.

अभ्यास प्रश्न (उत्तर कमेंट में दे सकते हैं या स्वयं लिखकर मूल्यांकन करें)

राष्ट्रपति क्या कठपुतली मात्र है? राष्ट्रपति की शक्तियों और उसकी सीमाओं दोनों को रेखांकित करें. (250 words)

“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan

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