बनारस के एक पूर्व शाही परिवार के एक प्रतिनिधि ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सर्वोच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ 11 अक्टूबर, 2022 को संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की पर सुनवाई करेगी।
पूजा स्थल अधिनियम, 1991
- पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने 1991 में इसे अधिनियमित किया था।
- पूजा स्थल अधिनियम, 1991 यह कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक पूजा स्थल की पहचान को नहीं बदला जाना चाहिए.
- कानून ने अयोध्या में विवादित ढांचे को इसके दायरे से बाहर रखा क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन था.
प्रमुख प्रावधान
- अधिनियम की धारा 3 : इसके अन्दर यह प्रावधान है कि किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल के स्वरूप में पूर्ण या आंशिक रूप से परिवर्तन नहीं किया जा सकता.
- धारा 4(1): इसमें यह प्रावधान है कि पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप वही रहेगा जो 15 अगस्त, 1947 को था।
- धारा 4(2): 15 अगस्त 1947 को विद्यमान किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप के परिवर्तन के संबंध में किसी भी अदालत के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी – और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी .
- धारा 5: यह अधिनियम रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।
- धारा 6: जो कोई भी पूजा स्थल की स्थिति के परिवर्तन पर रोक की अवहेलना करता है, उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है। इस धारा के अंतर्गत अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ-साथ अधिकतम तीन साल के कारावास की सजा का प्रावधान है.
उद्देश्य
- यह आशा की गई थी कि यह कानून सांप्रदायिक सद्भाव के संरक्षण में मदद करेगा।
- इस तरह के नए दावे फिर से नहीं किये जा सकें.
- 15 अगस्त, 1947 में जैसा भी पूजा स्थल का स्वरूप था, उसे बनाए रखना.
कानून को चुनौती
कानून को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि:
- न्यायिक समीक्षा संविधान की बुनियादी विशेषता है जिसको यह कानून बाधित करता है.
- यह कानून जो कटऑफ तिथि का प्रावधान करता है वह तर्कहीन, पिछली तिथि से लागू होने वाला तथा निरंकुश है.
- यह हिंदुओं, जैनों, बौद्धों और सिखों के धर्म के अधिकार को संकुचित करता है।
पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की आलोचना
इस कानून को सबसे अलोकतांत्रिक तरीके से पारित किया गया था. इस कानून में प्रभावित पक्षों के मौलिक अधिकारों की परवाह नहीं की गई.
यथावत स्थिति (status freeze) पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?
- अयोध्या विवाद पर अपने अंतिम निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अधिनियम “धर्मनिरपेक्षता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता” पर चोट पहुँचाता है।
- न्यायालय ने कानून की सराहना की और बताया है इस कानून ने स्वतंत्रता के बाद पूजा स्थल की स्थिति को बदलने की अनुमति नहीं देकर धर्मनिरपेक्षता को संरक्षित किया।
- पूजा स्थल के स्वरूप को बदलने के आगे के प्रयासों के विरुद्ध पाँच-न्यायाधीशों की बेंच ने कहा, “भूतकाल में हुई गलतियों को लोगों द्वारा कानून को अपने हाथ में लेकर नहीं सुधारा जा सकता है।”
- सार्वजनिक पूजा स्थलों के स्वरूप को संरक्षित करने में, संसद ने बिना किसी अनिश्चित शब्दों के यह अनिवार्य कर दिया है कि भूतकाल में हुई गलतियों को वर्तमान और भविष्य पर अत्याचार करने के लिए उपकरणों के रूप में प्रयोग नहीं किया जाएगा। ”
आगे की राह
प्रत्येक धार्मिक समुदाय को विश्वास में लाया जाना चाहिए कि उनके पूजा स्थलों को संरक्षित किया जाएगा और उनके चरित्र में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। साथ ही, इस कानून को न्यायिक समीक्षा पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी क्योंकि न्यायिक समीक्षा की शक्ति हमारी संवैधानिक व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है.
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