हाल ही में आर्थिक सलाहकार परिषद् द्वारा निर्गत एक रिपोर्ट (EAC-PM report) में कहा गया है कि “भारत को अपने पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र में तत्काल निवेश की आवश्यकता है.”
भारत को पेटेंट में निवेश कराने से सम्बंधित रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- इस रिपोर्ट में तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत पेटेंट प्रणाली के महत्व को रेखांकित किया गया है.
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दायर पेटेंट आवेदनों की कुल संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है. पिछले दशक की तुलना में पेटेंट आवेदनों की कुल संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है। ज्ञातव्य है कि आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 ने भी पेटेंट आवेदनों में भारतीय निवासियों की बढ़ती हिस्सेदारी पर प्रकाश डाला गया था।
- ऐसा पहली बार हुआ है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 की अंतिम तिमाही के दौरान भारतीयों द्वारा पेटेंट आवेदनों की संख्या विदेशी आवेदनों की संख्या से भी अधिक हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि इस अवधि के दौरान छोड़ दिए गए पेटेंट आवेदनों की संख्या में भी आश्चर्यजनक दर से वृद्धि हुई ।
पेटेंट आवेदन को लेकर चिंता
ईएसी-पीएम रिपोर्ट में यह चिंता व्यक्त की गई कि भारत में आज भी पेटेंट आवेदनों को निपटाने देरी होती है.
EAC-PM की सिफारिशें
- रिपोर्ट में लंबित मामलों को कम करने के लिए कई उपायों की सिफारिश की गई है।
- पेटेंट आवेदनों को शीघ्रतर निपटाने से निश्चित रूप से देश में पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार होगा।
- साथ ही, हमें पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र की कमियों की अधिक बारीकी से जाँच करनी चाहिए जिससे कि पेटेंट प्रणाली में सुधार लाने के लिए उचित उपाय अपनाए जा सकें.
पेटेंट कराने में भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र की भूमिका
हिस्सेदारी में बढ़ोतरी
- अनुसंधान और विकास में भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र की पेटेंटिंग परिदृश्य में प्रमुखता से भूमिका बढ़ती जा रही है
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार से सम्बंधित निर्गत यूनेस्को के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में अनुसंधान एवं विकास (जीईआरडी) पर सकल घरेलू व्यय में भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र की हिस्सेदारी 2013 के 5% से बढ़कर 2018 में 7% हो गई है.
उद्योग जगत और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सामंजस्य का अभाव
पेटेंट गतिविधि में शिक्षा क्षेत्र की बढ़ती भूमिका से यह पता चलता है कि व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण तकनीकी नवाचारों के प्रति अधिक रुझान है।
क्योंकि उच्च शिक्षा क्षेत्र अनुसंधान एवं विकास पर अधिक से अधिक ध्यान दे रहा है, तो यह भी आशा की जाती है कि अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र में उद्योग जगत और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग भी बढ़ना चाहिए। मगर भारत में इसके ठीक उलट परिस्थिति है.
वैश्विक नवाचार सूचकांक (ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स – GII)
- ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (GII) के अंतर्गत 80 संकेतकों का प्रयोग (जैसे – अनुसंधान और विकास में निवेश, अंतर्राष्ट्रीय पेटेंटों की संख्या, ट्रेडमार्क के लिए दी गये आदेवन आदि आदि) कर के देशों को स्थान (rank) दिया जाता है जिनमें एक उद्योग जगत और शैक्षणिक संस्थान के बीच सहयोग भी है.
- इस सूचकांक में भारत के अंक (स्कोर) में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है. भारत वर्ष 2015 में 47.8 अंक लाया था जो गिरकर वर्ष2021 में 42.7 हो गया है। परिणामस्वरूप, इस अवधि के दौरान भारत की रैंकिंग 48 से घटकर 65 हो गई। हालांकि, कुछ अन्य संकेतकों में सुधार के परिणामस्वरूप जीआईआई में भारत की समग्र रैंकिंग 2015 में 81 से बढ़कर 2021 में 46 हो गई है।
भारत में पेटेंटिंग को लेकर मुद्दे
परित्यक्त पेटेंट आवेदन
पेटेंट, डिजाइन, ट्रेडमार्क और भौगोलिक संकेत महानियंत्रक (सीजीपीडीटीएम) के कार्यालय की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट (2019-20) से पता चलता है कि छोड़े गए (परित्यक्त) पेटेंट आवेदनों की संख्या बढ़ रही है ।
पेटेंट आवेदनों की कुल संख्या में ऐसे छोड़े गए पेटेंटों की हिस्सेदारी 2010-11 में 13.6 फीसदी से बढ़कर 2019-20 में 48 फीसदी हो गई ।
संभावित कारण : आवेदक इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं होते हैं कि उनका आवेदनों की स्वीकार कर लिया जाएगा और इसलिए बीच में ही वे उम्मीद छोड़कर अपने आवेदन को आगे नहीं बढ़ाते हैं।
यह भी संभव हो सकता है कि जो लघु-जीवन अवधि वाले नवाचार के आवेदक हैं वे लंबे समय तक पड़े आवेदनों से हतोत्साहित हो जाते हैं।
पेटेंट आवेदन दाखिल करना
राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति 2016 को अपनाने के बाद से पेटेंट आवेदनों को दाखिल करने पर बहुत जोर दिया गया है।
यह जांचने योग्य है कि क्या प्रक्रिया में विकृत प्रोत्साहन बनाए गए हैं, जो पेटेंट आवेदन दाखिल करने को प्रोत्साहित करते हैं, तब भी जब नवप्रवर्तनक जानता है कि उनके दावे जांच में पास नहीं होंगे।
यदि ऐसा है, तो इस तरह के विकृत प्रोत्साहनों को समाप्त करने से भारत के पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार होगा।
नवाचार को प्रोत्साहित करने हेतु सरकार द्वारा हाल ही में किए गए उपाय
- पेटेंट के लिए आवेदन करने वाले सभी मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों (सरकारी/सहायता प्राप्त/निजी) को शुल्क में 80% तक की छूट प्रदान की गई है, चाहे वे भारत में स्थित हों अथवा विदेशों में.
- पूर्व में, यह छूट केवल सरकार के स्वामित्वाधीन मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों के लिए ही उपलब्ध थी. किसी संस्थान के लिए कुल देय शुल्क (फाइलिंग + प्रकाशन + नवीनीकरण शुल्क) वर्तमान के 4,24,500/- रुपये से घटाकर 84,900/- रुपये कर दिया गया है.
- महानियंत्रक एकस्व, अभिकल्प एवं व्यापार चिन्ह (Controller General of Patents, Designs and TradeMarks: CGPDTM) कार्यालय द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव (15 अगस्त, 2021 से 15 अगस्त, 2022) के दौरान 10 लाख छात्रों को पेटेंट संबंधी मामलों में प्रशिक्षित तथा जागरूक किया जाएगा.
अन्य पहलें
- सरलीकृत और सुव्यवस्थित बौद्धिक संपदा (Intellectual Property: IP) प्रक्रिया: पंजीकरण प्रक्रिया को पुनर्संचित किया गया है. साथ ही, पेटेंट आवेदन दाखिल करने की सुगमता तथा अन्य सेवाएं प्राप्त करने के लिए डिजिटल विकल्पों को अंगीकृत किया गया है.
- पेटेंट की परीक्षण प्रणाली को भी तेज किया गया है.
- IP आवेदनों की वास्तविक समय (रियल टाइम) आधारित स्थिति, भारतीय पेटेंट उन्नत खोज प्रणाली (Indian Patent Advanced Search System: InPASS), एस.एम.एस अलर्ट आदि के माध्यम से सूचना तक बेहतर पहुँच और उसका पारदर्शी प्रसार सुनिश्चित किया गया है.
भारतीय पेटेंट व्यवस्था
अर्थ: आविष्कार के दिए गए विशेष अधिकारों पेटेंट को कहते हैं. यह आविष्कार कोई उत्पाद हो सकता है अथवा कोई ऐसी प्रक्रिया हो सकती है जिससे कुछ करने की नयी रीति संभव होती हो अथवा जो किसी समस्या के लिए एक नया तकनीकी समाधान प्रस्तुत करता हो.
भारत में पेटेंट भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970 के द्वारा शाषित होता है.
इस अधिनियम के अनुसार उसी आविष्कार हो पेटेंट दिया जाता है जो निम्नलिखित मापदंडों को पूरा करता है –
- यह नया-नवेला होना चाहिए.
- इसमें आविष्कारपूर्ण चरण होने चाहिएँ.
- यह औद्योगिक अनुप्रयोग के लिए योग्य होना चाहिए
- यह पेटेंट अधिनियम 1970 की धारा 3 और 4 का उल्लंघन नहीं करता हो.
समय के साथ भारत बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं से ओने-आप को जोड़ता रहा है. 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनने के पश्चात् भारत बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार से जुड़े पहलुओं से सम्बंधित समझौते (TRIPS) का एक पक्षकार बन चुका है.
इस समझौते के अनुपालान के लिए भारत ने अपने आंतरिक पेटेंट कानूनों में संशोधन किया है. सबसे उल्लेखनीय संशोधन वर्ष 2005 में हुआ जिसके द्वारा औषधि उत्पादों के पेटेंटों को 1970 के पेटेंट अधिनियम में सम्मिलित किया गया. ज्ञातव्य है कि इससे पहले दवाएँ पेटेंट के अन्दर नहीं आती थीं क्योंकि सरकार चाहती थीं कि दवाएँ जनसाधारण को कम दाम में उपलब्ध हो सकें.
पेटेंट से सम्बंधित कई अन्य समझौतों पर भी भारत ने हस्ताक्षर किए हैं जैसे –
- बर्न संधि / Berne Convention (स्वत्वाधिकार/copyright से सबंधित)
- बुडापेस्ट समझौता
- पेरिस समझौता (औद्योगिक संपदा की सुरक्षा से सम्बंधित)
- पेटेंट सहयोग समझौता
मूल भारतीय पेटेंट अधिनियम ने दवा उत्पादों को पेटेंट संरक्षण प्रदान नहीं किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दवाएं कम कीमत पर जनता के लिए उपलब्ध हों।भारत सहित कई आईपीआर से संबंधित सम्मेलनों के लिए एक हस्ताक्षरकर्ता भी है:
- बर्न कन्वेंशन जो कॉपीराइट को नियंत्रित करता है,
- बुडापेस्ट संधि,
- औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिए पेरिस कन्वेंशन
पेटेंट सहयोग संधि (पीसीटी) जो सभी पेटेंट से संबंधित विभिन्न मामलों को नियंत्रित करती है।
इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
👉‘स्टार्टअप सीड फंड’ के बारे में
- इस फंड का उद्देश्य स्टार्टअपों की अवधारणा, प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षणों, बाजार में प्रवेश और व्यावसायीकरण के प्रमाणीकरण को वित्तीय सहायता प्रदान करना है.
- पूरे भारतवर्ष में पात्र इनक्यूबेटरों के माध्यम से पात्र स्टार्टअप्स को बीज का वित्तपोषण प्रदान करने के लिए 945 करोड़ की राशि का विभाजन अगले 4 वर्षों में किया जाएगा.
- इस योजना में 300 इनक्यूबेटर (incubators) के माध्यम से अनुमानित रूप से 3,600 स्टार्टअप्स को सहायता प्रदान करने की संभावना है.
- नोडल विभाग: उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT).
👉भौगोलिक संकेतक पंजीयक
- भौगोलिक वस्तु संकेतक (पंजीकरण एवं सुरक्षा) अधिनयम, 1999 के अनुभाग 3 के उप-अनुभाग (1) के अंतर्गत पेटेंट, रूपांकन एवं व्यापार चिन्ह महानिदेशक की नियुक्ति GI पंजीयक के रूप में की जाती है.
- पंजीयक को उसके काम में सहयोग करने के लिए केंद्र सरकार समय-समय पर अधिकारियों को उपयुक्त पदनाम के साथ नियुक्त करती है.
आगे की राह
चूंकि पेटेंट प्रणाली राष्ट्रीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है इसलिए पेटेंट पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश से भारत की नवाचार क्षमता को मजबूत करने में मदद मिलेगी। पेटेंट आवेदनों की गुणवत्ता को बढ़ावा देने और शैक्षणिक संस्थानों और उद्योग के बीच सहयोग को प्रोत्साहन देने के लिए हरसंभव कदम उठाने चाहिएँ।
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