इस वर्ष अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार तीन अमेरिकी अर्थशास्त्रियों: बेन एस बर्नान्के (अमेरिकी फेडरल रिजर्व के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में वाशिंगटन डीसी में ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन से जुड़े), डगलस डब्ल्यू डायमंड (शिकागो विश्वविद्यालय) और फिलिप एच डायबविग (सेंट लुइस में वाशिंगटन विश्वविद्यालय) को प्रदान किया गया है।
नोबेल समिति के अनुसार इस वर्ष के पुरस्कार विजेताओं ने “अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से वित्तीय संकट के दौरान बैंकों की भूमिका के बारे में हमारी समझ में उल्लेखनीय सुधार किया है। उनके शोध में एक महत्त्वपूर्ण खोज यह है कि बैंक के पतन से बचना क्यों महत्त्वपूर्ण है।”
अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार विजेताओं के योगदान के बारे में
बेन एस बर्नान्के को उनके द्वारा वर्ष 1983 में लिखे गये एक लेख के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है, जिसमें 1930 के दशक की महामंदी का विश्लेषण किया गया था।
बर्नान्के के लेख के प्रकाशित होने तक, बैंक विफलताओं को वित्तीय संकट के परिणाम के रूप में देखा जाता रहा था। लेकिन ऐतिहासिक स्रोतों एवं सांख्यिकीय तरीकों पर आधारित बर्नान्के के 1983 के लेख ने साबित कर दिया कि यह बिल्कुल विपरीत था- बैंकों की विफलता वित्तीय संकट का कारण थी।
बैंक रन
बर्नान्के के अनुसार बैंक रन की स्थिति के कारण एक सामान्य मंदी आधनिक इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक संकट में बदल गई। ज्ञातव्य है कि बैंक रन (Bank Run) एक ऐसी स्थिति होती है, जब बैंक के बड़ी संख्या में ग्राहक एक साथ अपनी जमा राशि निकाल लेते हैं।
जमा बीमा प्रावधान
जहां किसी बैंक में जमा राशि की एक निश्चित राशि का बीमा किया जाता है – विश्वास बनाने और बैंक रन की स्थिति को रोकने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से, बैंकों को अक्सर पैसा हथियाने वाले संस्थानों के रूप में देखा जाता है, जो उधार लेने वालों के साथ-साथ जमाकर्ताओं से लाभ कमाने के लिए होते हैं। लेकिन इस वर्ष के अन्य दो नोबेल विजेताओं- डगलस डब्ल्यू डायमंड एवं डायबविग ने अपने पेपर्स के माध्यम से बताया कि बैंकों के बिना दुनिया में कोई भी दीर्घकालिक निवेश करना असंभव होगा।
डगलस डब्ल्यू डायमंड एवं डायबविग के अनुसार बचतकर्ताओं एवं उधार लेने वालों के बीच एक मिसमैच होता है. बचतकर्ता जरूरत के वक्त अपनी जमा राशि वापस चाहता है, जबकि उधार लेने वाले अपनी जरूरत के लिए दीर्घावधि के लिए धन चाहते हैं। इसी मिसमैच को दूर करने के लिए बैंक जैसे संस्थानों की आवश्यकता होती है।
वर्ष 1983 के एक लेख में, डायमंड और डायबविग ने एक सैद्धांतिक मॉडल विकसित किया, जो बताता है कि बैंक बचतकर्ताओं के लिए तरलता कैसे बनाते हैं, जबकि उधार लेने वालों को दीर्घावधि के लिए वित्तपोषण उपलब्ध कराते हैं।
“बैंक की संपत्ति (Assets) की दीर्घावधि परिपक्वता होती है, क्योंकि यह ऋण लेने वालों से वादा करता है कि उन्हें अपने ऋणों को जल्दी चुकाने की आवश्यकता नहीं होगी। दूसरी ओर, बैंक की देनदारियों की परिपक्वता अवधि कम होती है; जमाकर्ता जब चाहें अपने पैसे का उपयोग कर सकते हैं। इस प्रकार बैंक एक मध्यस्थ की तरह कार्य करता है जो दीर्घावधि परिपक्वता वाली संपत्तियों को कम परिपक्वता वाले बैंक खातों में बदल देता है। इसे आमतौर पर “परिपक्वता परिवर्तन” (Maturity transformation) कहा जाता है।”
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Tags: इकोनॉमिक्स में नोबेल प्राइज 2022
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