राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन (NMNF)

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हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन’ (National Mission on Natural Farming – NMNF) के तहत राष्ट्रीय संचालन समिति (NSC) की पहली बैठक नई दिल्ली में आयोजित की गई केंद्रीय कृषि मंत्री ने इस बैठक के दौरान प्राकृतिक कृषि को समर्पित एक पोर्टल की शुरुआत की।

पोर्टल में मिशन, कार्यान्वयन रूपरेखा, संसाधन, कार्यान्वयन प्रगति, किसान पंजीकरण, ब्लॉग आदि के बारे में सभी जानकारी शामिल है, जो किसानों के लिए उपयोगी होगी। साथ ही, यह वेबसाइट देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में मदद करेगी।

UPSC Syllabus GS Paper 3 : मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी।

प्राकृतिक खेती के बारे में

  • प्राकृतिक खेती एक रसायन मुक्त कृषि प्रणाली है जो पारिस्थितिकी, संसाधन रीसाइक्लिंग और ऑन-फार्म संसाधन अनुकूलन की आधुनिक समझ से समृद्ध है।
  • इसे कृषि पारिस्थितिकी आधारित विविध कृषि प्रणाली के रूप में माना जाता है जो कार्यात्मक जैव विविधता के साथ फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है।
  • यह ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंग पर आधारित है, जिसमें बायोमास मल्चिंग, ऑन-फार्म गाय के गोबर-मूत्र फॉर्म्लेशन के उपयोग पर प्रमुख जोर दिया जाता है।

प्राकृतिक कृषि के लाभ

  1. मृदा के स्वास्थ्य को बहाल करने में मदद मिलती है.
  2. यह लागत प्रभावी कृषि पद्धति है जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है.
  3. प्राकृतिक / स्थानीय संसाधनों का कुशल उपयोग संभव होता है. (जल संरक्षण)
  4. मृदा की जैविक गतिविधि को प्रोत्साहित करती है.

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि क्या है?

जैसा कि इसका नाम बताता है कि शून्य बजट प्राकृतिक कृषि वैसी खेती है जिसमें फसल को उगाने और कटाई में आने वाला खर्च शून्य होता है. ऐसा इसलिए होता है कि इस कृषि में किसान को कोई खाद अथवा कीटनाशक खरीदना नहीं पड़ता है. वह रसायनिक खाद के बदले जैविक खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग करता है. इसे मूल रूप से महाराष्ट्र के एक कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर द्वारा प्रचारित किया गया था.

इसमें जो खाद का प्रयोग होता है वह केंचुओं, गोबर, गोमूत्र, सड़े हुए पौधों और मलमूत्र और ऐसे अन्य जैविक खाद डालते हैं. इससे न केवल किसान का खर्च बचता है अपितु मिट्टी भी खराब होने से बच जाती है.

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