नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति | सहकारिता क्या है?

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केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने हाल ही में राष्ट्रीय सहकारिता नीति (National Cooperative Policy) दस्तावेज का प्रारूप तैयार करने के लिए एक राष्ट्रीय समिति के गठन की घोषणा की है। ज्ञातव्य है कि केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री जी ने पिछले दिनों घोषणा की थी कि प्राथमिक कृषि क्रेडिट समितियों (PACS) से ऊपर की सहकारी संस्थाओं के लिए एक समग्र दृष्टिकोण बनाने के लिए जल्द ही एक राष्ट्रीय सहकारिता नीति तैयार की जाएगी.

पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु की अध्यक्षता में गठित इस समिति में देश के सभी हिस्सों से 47 सदस्यों को शामिल किया गया है।

समिति में सहकारी क्षेत्र के विशेषज्ञ; राष्ट्रीय/राज्य/जिला व प्राथमिक सहकारी समितियों के प्रतिनिधि; राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सचिव (सहकारिता) और सहकारी समितियों के पंजीयक तथा केन्द्रीय मंत्रालयों/विभागों के अधिकारी शामिल हैं।

UPSC Syllabus : यह विषय GS Paper 2 के टॉपिक सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप के अंतर्गत आयेगा.

वर्तमान राष्ट्रीय सहकारिता नीति

वर्तमान राष्ट्रीय सहकारिता नीति, सहकारी समितियों के चहुँमुखी विकास और उन्हें आवश्यक सहयोग देने, प्रोत्साहित करने और सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2002 में लागू की गई थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सहकारी समितियां एक स्वायत्त, आत्मनिर्भर और लोकतांत्रिक रूप से प्रबंधित संस्थाओं के तौर पर कार्य कर सकें जो अपने सदस्यों के प्रति उत्तरदायी हों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकें।

सहकारिता की परिभाषा

अनेक व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा किसी समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिये मिलकर किया जाने वाला सहकारिता (co-operative) कहलाता है। भारत के संविधान के भाग 9 (ख) के अनुच्छेद 243 में सहकारी समितियों के क्रियान्वयन हेतु शर्तों को प्रावधान किया गया है।

सहकारी समितियाँ ऐसे व्यक्तियों की स्वयंसेवी संस्थायें हैं, जो अपने आर्थिक हितों के लिये कार्य करते हैं। इसके सभी सदस्य अपने-अपने संसाधनों को एकत्र कर उनका अधिकतम उपयोग कर कुछ लाभ प्राप्त करते हैं, जिसे वह आपस में बांट लेते हैं। सहकारी समिति का नियंत्रण लोकतांत्रिक तरीके से होता है तथा इनमे मध्यस्थों की कोई भूमिका नहीं होती है

सहकारी समितियों के प्रकार

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सहकारी समितियाँ कई प्रकार की होती हैं जैसे- उपभोक्ता सहकारी समिति (Consumer Cooperative Society), उत्पादक सहकारी समिति (Producer Cooperative Society), ऋण सहकारी समिति (Credit Cooperative Society), आवास सहकारी समिति (Housing Cooperative Society) और विपणन सहकारी समिति (Marketing Cooperative Society)।

सहकारिता के क्षेत्र का महत्त्व

  1. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों तक सरकारी योजनाओ का लाभ पहुँचाने में सहकारी संस्थाओं ने बहुत ही महत्त्वपूर्णभूमिका निभाई है.
  2. भारत में करीब 8,55,000 सहकारी समितियाँ हैं और लगभग 13 करोड़ लोग सीधे इनसे जुड़े हैं।
  3. देश के 91% गाँव ऐसे हैं जिनमें कोई ना कोई सहकारी समिति है।
  4. देश में 86% छोटे किसान हैं, जो स्वयं खेती में निवेश नहीं कर सकते है, उनके लिए कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाएं विकसित करने में सहकारिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
  5. केंद्र सरकार द्वारा 6,850 करोड़ के कोष के साथ किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) योजना का भी प्रारंभ किया गया है। इसमें एफपीओ 2 करोड़ तक का लोन ले सकते हैं, जिस पर उन्हें ब्याज सब्सिडी भी दी जाएगी। इसे लागू करने में भी सहकारी संस्थाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी।
  6. केंद्र सरकार ने देश की 65,000 प्राथमिक कृषि क्रेडिट समितियों (PACS) के कम्प्यूटरीकरण का निर्णय किया है जिससे PACS ज़िला सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक और NABARD ऑनलाइन हो जाएंगे जिससे व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी
  7. केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में बदलावों के तहत एक नये मंत्रालय का गठन किया गया है जिसका नाम है – “सहकारिता मंत्रालय’
  8. यह मंत्रालय देश में सहकारिता आंदोलन को दृढ़ बनाने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा।
  9. केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इस नये मंत्रालय का प्रभार भी सौंपा गया है। आज भारत में लगभग 8.5 लाख सहकारी समितियाँ (Cooperative committees) हैं जो लगभग 29 करोड़ सदस्यों के साथ पूरे भारत-भर में फैली हुई हैं। ये सहकारी समितियाँ कृषि प्रसंस्करण, डेयरी, मत्स्यपालन, आवासन, बुनाई, ऋण और विपणन समेत विभिन्न एवं विविध कार्यकलापों में सक्रिय हैं।

मेरी राय – मेंस के लिए

 

सहकारी समितियों को भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ा  योगदानकर्ता माना जाता है। नए राष्ट्रीय सहकारिता नीति दस्तावेज को सहकारिता मंत्रालय को दिए गए जनादेश को पूरा करने की दृष्टि से तैयार किया जा रहा है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ, ‘सहकार से समृद्धि’ के दृष्टिकोण को साकार करना; देश में सहकारी आंदोलन को मजबूत करना और जमीनी स्तर तक इसकी पहुंच को गहरा करना; सहकारी आधारित आर्थिक विकास मॉडल को बढ़ावा देना; सहकारी समितियों को उनकी क्षमता का एहसास करने में मदद करने के लिए एक उपयुक्त नीति, कानूनी और संस्थागत ढांचा तैयार करना शामिल है. नई नीति से देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूती मिलेगी.

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