मुग़ल काल में चित्रकला का स्थान

Dr. SajivaCulture

मुगल सम्राट चित्रकला प्रेमी थे. अकबर के काल में इसकी उन्नति आरम्भ हुई और जहाँगीर के काल में यह चर्मोत्कर्ष पर पहुंच गई . इस युग की चित्रकला में भारतीय और ईरानी कला का सुन्दर एवं सुखद समन्वय है. इस काल के सम्राटों ने चित्रकला की ऐसी परम्परा की नींव डाली जो मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भी देश के विभिन्‍न भागों में जीवित रही.

यह भी पढ़ें > भारतीय चित्रकला

मुग़लकाल के राजाओं के कार्यकाल में चित्रकला को कितनी महत्ता दी जाती थी?

बाबर

बाबर कला प्रेमी था. वह बेहजाद कला (एक मध्य एशियाई कला) से भली-भांति परिचित था तथा भारत में उसके शासन के साथ-साथ इस कला ने भी प्रवेश किया. उसके काल में अनेक हस्तलिखित पुस्तकों को इस कला से सजाया गया. बाबर ईरान के प्रसिद्ध चित्रकार बेहजाद का समकालीन था. बाबर ने अपनी आत्मकथा तुज्क-ए-बाबरी में उसे एक तत्कालीन महान् चित्रकार बताया है. बाबर के इस उल्लेख से यह स्पष्ट है कि उसने उस समय के चित्रकारों के चित्रों का अध्ययन बड़ी सूक्ष्मता से किया था .

हुमायूँ

बाबर के समान हुमायूँ भी चित्रकला प्रेमी था. जब हुमायूँ ईरान के शाह के दरबार से पुनः भारत के लिए लौटा तो वह ‘सैयद अली तबरौजी’ और ‘ख्वाजा अब्दुल समद’ नामक दो चित्रकारों को अपने साथ ले आया जो बेहजाद द्वारा स्थापित चित्रकार सम्प्रदाय के अनुयायी थे. हुमायूँ न केवल चित्रकारों का संरक्षक था, बल्कि वह स्वयं भी चित्रकार था. उसने अपने पुत्र अकबर को भी इस कला की शिक्षा दी. बाबर और हुमायूँ के काल के चित्रों में चमकदार रगों का प्रयोग किया गया. चित्रों में बारीकी अधिक ओर सजावट का काम बहुत सुन्दर दिखाया गया है. इनमें भाव तथा जीवन दिखाने की कोशिश की गई है.

अकबर

अकबर को चित्रकारी से अत्यन्त प्रेम था. उसके अनुसार चित्रकला ईश्वर भक्ति की ओर प्रेरित करती है. उसने ईरानी कलाकारों को बुलाकर आश्रय प्रदान किया. उसके दरबार में अनेक भारतीय कलाकारों को भी आश्रय प्राप्त था. वस्तुतः हुमायूंकालीन ईरानी चित्रकारों के नेतृत्व में अकबर के काल में चित्रकला को एक राजसी कारखाने के रूप में संगठित किया गया. देश के विभिन्न भागों से बढ़ी संख्या में चित्रकारों को आमंत्रित किया गया. उसके दरबार में जसवन्त और दसावन तथा अब्दुलसमद जैसे अनेक उच्चकोटि के 100 चित्रकारों को आश्रय मिलता था.

उसने अपने महलों में उत्तम तथा आकर्षक चित्र अंकित कराए. उसके काल में धीरे-धीरे चित्रकला पूर्ण रूप से भारतीय हो गई. अकबर के काल में हिन्दू और मुसलमान दोनों चित्रकार थे. जो 17 अग्रणी चित्रकार थे उनमें 13 हिन्दू थे. हिन्दू चित्रकारों में ऊपर दो बताए चित्रकारों के अतिरिक्त केसूलाल, मुकन्न माधव, जगन्नाथ, महेश, तारा, खेमकरण, हरिवंश और राम का नाम उल्लेखनीय है. इन हिन्दू कलाकारों के अतिरिक्त फारखबेग, मीर सैयद अली और मिसकीन के नाम उल्लेखनीय हैं. अकबर ने अब्दुलसमद के नेतृत्व में चित्रकारी का एक अलग विभाग खोल दिया. उसके नेतृत्व में अनेक चित्रकारों ने विभिन्‍न पुस्तकों, महल की दीवारों, विभिन्‍न वस्तुओं ओर कागज पर चित्र बनाए. अकबर के समय में जिन चित्रों को तैयार किया गया उनमें विभिन्‍न वर्गों और जातियों का योगदान था. उसके काल में पुस्तकों को चित्रित करने की पुरानी परम्परा को जारी रखा गया. उसने हम्जा नामा, पंचतन्त्र, महाभारत, अकबरनामा, बाबरनामा आदि पुस्तकों को चित्रित कराया.

अकबर के काल में भित्तिचित्र शैली सबसे पहली बार मुगल काल में विकसित हुई. उसके काल में फतेहपुर सीकरी के विभिन्‍न महलों की दीवारों और छतों पर पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आकृतियां बनाई गईं. कहा जाता है कि अकबर को चित्रकला से इतना प्रेम था कि वह हर सप्ताह चित्रकारों के काम का निरीक्षण करता और उन्हें उचित इनाम देता था. उसके काल में धीरे-धीरे भारतीय विषयों और दृश्यों पर चित्रकारी करने की परम्परा लोकप्रिय होने लगी. इससे चित्रकला पर ईरानी प्रभाव को कम करने में मदद मिली. अब फिरोजी और लाल रंग जैसे भारतीय रंगों का प्रयोग अधिक होने लगा

जहाँगीर

मुगलकालीन भारतीय इतिहास में अगर वास्तुकला की दृष्टि से शाहजहाँ का काल सर्वश्रेष्ठ था तो चित्रकला की दृष्टि में जहाँगीर का काल. मुगल सम्राट अकबर ने चित्रकला शैली की जिस आधारशिला को रखा वह उसके पुत्र जहाँगीर के काल में प्रौढ़ता को प्राप्त हुई. उसने इस काल के विकास में विशेष रुचि ली और इस कला तथा कलाकारों को राजाश्रय प्रदान किया. वह चित्र रचना की शैली को देखकर उसके कलाकार को नाम बता सकता था. मुगल शैली में मनुष्यों का चित्र बनाते समय एक ही चित्र में विभिन्‍न चित्रकारों द्वारा मुख, शरीर और पैरों को चित्रित करने का रिवाज था. जहाँगीर का दावा था कि वह किसी चित्र में विभिन्‍न चित्रकारों के अलग-अलग योगदान को पहुचान सकता है. वह बहुत गर्व के साथ कहता था, “जब कोई चिंत्र मेरे आगे प्रस्तुत किया जाता है – चाहे मृत चित्रकार का हो या जीवित का मैं देखकर तुरन्त बता सकता हूं कि वह किसकी तूलिका का फल है तथा यदि एक चित्रपट पर अनेक व्यक्तियों की आकृतियाँ हों, जिन्हें भिन्‍न-भिन्‍न चित्रकारों ने तैयार किया हो तो मैं यह बता सकता हूं कि कौन-कौन-सी आकृतियाँ किन-किन चित्रकारों की कृति हैं. यदि एक मुख की भुकुटि और आँख को कई व्यक्तियों ने चित्रित किया है तो मैं बता सकता हूं कि मुख, आँख तथा भृकुटियों के निर्माता कौन-कौन चित्रकार हैं.”

हो सकता है जहाँगीर के इस कथन में कुछ अतिश्योक्ति हो लेकिन यह मानना पड़ेगा कि उसके दरबार में अनेक चित्रकारों ने उसी के संरक्षण और सहयोग से इस कला की प्रगति में योगदान दिया. सर टामस रो जो एक प्रसिद्ध अंग्रज यात्री था, ने जहाँगीर के चित्रकला प्रेम की अत्यधिक प्रशंसा की है. उसके काल में चित्रकला विदेशी प्रभावों से मुक्त होकर स्वालम्बी बन गई. वह देशी और विदेशी चित्रकारों से सुन्दर चित्रों को लेकर संग्रह करता था. उसने समय-समय पर चित्रकारों को पुरस्कार दिए और अपनी समझ के अनुसार उन्हें सुधार के लिए सुझाव भी दिए. पर्सी ब्राउन ने जहाँगीर को मुगल चित्रकला की आत्मा कहा है .

जहाँगीर के काल में चित्रकारों में हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों मौजूद थे. मुसलमान चित्रकारों में हिरात के आगा रजा तथा उसका पुत्र अब्दुल हसन, समरकन्द के मुहम्मद नादिर, मुहम्मद मुराद तथा उस्ताद मनसूर अधिक प्रसिद्ध थे. विभिन्‍न चित्रकारों ने विभिन्‍न विषयों से सम्बन्धित चित्र बनाए. शिकार, युद्ध और दरबारी जीवन से सम्बन्धित दृश्यों को चित्रित करने की कला जहाँगीर के काल में विशेष प्रगति हुई. इस क्षेत्र में मंसूर का नाम उल्लेखनीय है. इस काल में चित्रकारों ने वक्ष, पुष्प या पशु-पक्षी के वास्तविक चित्र बनाए.

इस काल के चित्रकारों ने चित्रों को जिस प्राकृतिक पृष्ठभूमि में बनाया वह पृष्ठभूमि भी वास्तविकता पर आधारित है. उन्होंने सवंसाधारण के जीवन और उनसे सम्बन्धित समस्याओं को अपनी तूलिका द्वारा व्यक्त करने का प्रयास नहीं किया. जो भी हो इस काल के चित्र बड़े प्रभावशाली और सुन्दर हैं. चित्रकारों ने जिन रंगों का प्रयोग चित्रों को बनाने में किया है उनका चुनाव बड़े ध्यान के साथ किया गया है और उनका उपयोग सुन्दर ढंग से किया है. वास्तव में पर्सी ब्राउन ने ठीक ही कहा है – “उसके (जहाँगीर के) देहावसान के साथ ही मुगल चित्रकला की आत्मा विलीन हो गई.”

शाहजहाँ

शाहजहाँ ने चित्रकला को संरक्षण तो दिया लेकिन प्रोत्साहन नहीं. वस्तुत: चित्रकला की अपेक्षा वास्तुकला में वह अधिक रुचि रखता था. उसके दरबार में मुहम्मद फकीर उल्ला, मीर हासिम, अनूप तथा चिन्तामणि इत्यादि प्रसिद्ध चित्रकार थे. इस काल में मुख्यत: दरबार, “शाही महलों, सामंती जीवन का ही चित्रण किया गया. इस काल के चित्रों में सुनहरे रंग के साथ-साथ अनेक रंग प्रयोग में लाये गये. वस्तुतः शाहजहाँ के काल के चित्र उतने प्रभावशाली नहीं हैं जितने कि अकबर और जहाँगीरकालीन. उसके काल में चित्रकारों की संख्या घट गई और अनेक चित्रकार सामंतों के आश्रय में चले गए. प्रसिद्ध कला पारखी पर्सी ब्राउन के अनुसार, शाहजहाँ के काल में मुगल चित्र शेली की अवनति और पतन के लक्षण दिखाई देने लगे थे.

औरंगजेब

औरंगजेब धर्मान्ध और रूढ़िवादी था. उसे चित्रकला में बिल्कुल रुचि नहीं थी. इसीलिए मुगल दरबार के चित्रकार देश में दूर-दूर तक बिखर गये. कहा जाता है कि उसने गोलकुंडा और बीजापुर के महलों की दीवारों पर बने चित्रों पर सफेदी करा दी थी. मनूची के विवरण के आधार पर कहा जाता है कि उसकी आज्ञा से सिकन्दर में अकबर के मकबरे की दीवारों पर भी सफेदी कर दी गई. औरंगजेब की चित्रकला विरोधी नीतियों के कारण प्रान्तों में राजपूत चित्रशैली और कांगड़ा चित्रशैली को प्रोत्साहन मिला.

यह भी पढ़ें >

अकबर के समय वास्तुकला, चित्रकला और संगीत

Spread the love
Read them too :
[related_posts_by_tax]