संसार मंथन मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास के सामान्य अध्ययन पेपर 1 का यह 20वाँ संकलन है. इस बार हम मौर्यकालीन कला के दो प्रश्नों के साथ आएँ हैं. यह मात्र मॉडल उत्तर है. यदि आप भी उत्तर लिखना चाहते हैं तो कमेंट कर के लिख सकते हैं.
मौर्यकालीन कला पर प्रश्न – UPSC GS Paper 1
Q1. मौर्यकालीन कला के विषय में संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए इस काल की राजकला और लोककला के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिए.
मौर्य साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने चौथी शताब्दी ई.पू. के उत्तरार्द्ध में की. उसने एक भव्य और विशाल राजप्रसाद तथा सभा-भवन का निर्माण करवाया था. उसका पौत्र अशोक बौद्ध धर्मावलम्बी राजा था. बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए उसने अपने समूचे साम्राज्य में कई स्तूपों और विहारों का निर्माण करवाया तथा सुन्दर-सुन्दर पशु आकृतियों के शीर्षों से सुशोभित पत्थर की लाटें (स्तम्भ) खड़ी करवाई थीं. इन स्तम्भों पर उसने अपने धर्मलेख (धम्मलिपि) अंकित करवाए थे ताकि उन मार्गों पर गुजरने वाले यात्री उन्हे पढ़ सकें और धर्म की शिक्षा ग्रहण कर सकें.
मौर्य राजाओं ने बिहार प्रदेश में बराबर तथा नागार्जुनी की पहाड़ियों में आजीविक सम्प्रदाय के भिक्षुओं के लिए कुछ गुफाओं का निर्माण भी करवाया था जिनमें लोमश ऋषि गुफा का प्रवेशद्वार तत्कालीन वास्तुकला तथा मूर्तिकला का एक उत्तम नमूना है. इसके अतिरिक्त देश भर से आदमकद यक्ष तथा यक्षिणियों की कुछ विशाल प्रतिमाएँ भी मिली हैं जो मौर्यकालीन लोककला के अन्यतम उदाहरण हैं.
इस प्रकार मोटे तौर पर मौर्यकालीन कला दो कोटियों में रखी जा सकती है –
- राजकला – इसके अन्तर्गत मौर्य नरेशों द्वारा बनवाए गए राजप्रासाद, स्तूप, चैत्य, विहार, गुफाएँ तथा स्तंभ मुख्य हैं.
- लोककला – इसके अन्तर्गत विशाल यक्ष-यक्षिणियों की प्रतिमाएं तथा देश-भर से प्राप्त असंख्य मृण्मूर्तियाँ हें जो तत्कालीन समाज के धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन के सबल साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं.
मौर्यकालीन कला के साक्ष्य जहाँ एक ओर कौटिल्य के अर्थशास्त्र और मौर्य राजदरबार में रहने वाले सीरियाई राजदूत मेगस्थनीज़ की इण्डिका में संकलित हैं, वहीं दूसरी ओर कुम्हरार, कौशाम्बी, साँची, सारनाथ आदि स्थानों पर उत्खननों के पुरावशेषों तथा अशोक के शिलास्तंभों, स्तूपों और गुफाओं से उपलब्ध होते हैं.
Q2. मौर्यकालीन कला की प्रमुख विशेषताओं के विषय में उल्लेख कीजिए.
मौर्यकालीन कला की प्रमुख विशेषताएँ –
- काष्ठ के स्थान पर पत्थर और ईंटों का अधिकाधिक प्रयोग वैदिक युग में भारतीय कला, विशेषकर वास्तुकला में काष्ठ और बाँस का प्रयोग अधिक होता था. शालाएं, भवन, गोष्ठ आदि में मिट्टी और लकड़ी का प्रयोग होने से थे अधिक टिकाऊ नहीं थे. संभवत: इसीलिए हमें उस युग के न तो भवन मिलते हैं और न अन्य कोई कलाकृतियाँ. किन्तु मौर्यकाल में आकर वास्तुकला तथा मूर्तिकला में पत्थर और ईटों का प्रयोग अधिकाधिक होने लगा. इससे कला के नमूने अधिक दिनों तक सुरक्षित रह सके और आज उनमें से अधिकतर हमें उलब्ध भी हैं.
- मोर्यकालीन कला की दूसरी विशेषता इस युग की एक विशेष प्रकार की चमकदार पॉलिश थी. इस युग की मूर्तियों पर यह ओपदार पॉलिश पाई गई है जिससे कलाकृतियाँ इतनी चमकदार लगती हैं कि वे धातु की बनी होने का भ्रम पैदा करती हैं. पाटलिपुत्र का राजप्रासाद, दौदारगंज (पटना) से पाई गई चामरधारिणी यक्षी और सारनाथ से मिले अशोक के शिलास्तंभ का सिंहशीर्ष इस प्रकार की पॉलिश के उत्तम नमूने हैं.
- मौर्यकालीन कला का व्यापक विकास धर्म के प्रचार के कारण संभव हुआ था. इस काल में बौद्ध तथा जैन धर्मों के चतुर्दिक प्रचार-प्रसार में कला ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार में राज्य-भर में अनेक स्थानों पर बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया गया तथा स्थाने-स्थान पर एक ही पत्थर से बने 30 से 50 फिट ऊँचे स्तंभ खड़े करवाए गए जिन पर अशोक के धर्म-लेख अंकित करवाए गए. इन स्तंभों के शीर्ष एक से बढ़कर एक पशु-आकृतियों के रूप में उकेरे गए थे.
- लोकधर्म की यक्ष-परम्परा ने भी इस युग-की कला को, विशेषकर मूर्तिकला को नए प्रतिमान दिए थे. इस युग में पत्थर की विशाल आदमकद यक्ष-यक्षिणी प्रतिमाएँ देश भर में तराशी गई थीं. पटना, दीदारगंज, पवाया, बेसनगर तथा मथुरा के निकट बारोदा, झींग का नगरा, नोह आदि स्थानों से अनेक यक्ष-यक्षी प्रतिमाएँ मिली हैं जो उस युग में प्रचलित यक्ष-पूजा पर अकाश वो डालती ही है, साथ ही भारतीय मूर्तिकला में मानव-आकृति के नए प्रतिमान प्रस्तुत करती है. वस्तुतः इन्हीं के आधार पर आगे चलकर तीर्थंकर प्रतिमाओं को आँका गया था.
One Comment on “मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Ancient History GS Paper 1/Part 20”
Sir jii,,itne notes kaise writing kre,, please pdf kaise milega bta dijiye,,ek sath sabhi notes nhi likh sakte please sir jii itna help kr dijiye🙏🙏🙏