हाल ही में शिक्षक और महिला अधिकार कार्यकर्ता मैरी रॉय का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका एवं कार्यकर्ता अरुंधति रॉय की माँ भी थीं। मैरी रॉय को “मैरी रॉय केस” (Mary Roy Case) के लिए सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है। इस केस को भारत में लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने में एक “मील के पत्थर” के रूप में देखा जाता है।
मैरी रॉय केस
- मैरी रॉय ने इस केस में, लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी, जिसने केरल के सीरियाई ईसाई परिवारों की महिलाओं के लिए समान संपत्ति अधिकार सुनिश्चित किया।
- अपने पति से तलाक होने के बाद, जब मैरी रॉय अपने दो बच्चों के साथ ‘ऊटी’ में स्थित अपने पिता के कॉटेज में लौटी, तो उन्हें ‘त्रावणकोर इसाई उत्तराधिकार कानून, 1917’ के तहत उस घर से निकल जाने को कहा गया था।
- इसके बाद अपने मृत पिता की संपत्ति में समान अधिकारों से वंचित, मैरी रॉय ने अपने भाई जॉर्ज इसाक पर मुकदमा दायर कर दिया।
- उन्होंने वर्ष 1983 में ‘त्रावणकोर इसाई उत्तराधिकार कानून, 1917’ को याचिका दायर कर चुनौती दी, उसमें कहा गया कि उक्त कानून अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों से लैंगिक आधार पर वंचित करता है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
- अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सवाल यह था कि क्या इस मामले में त्रावणकोर उत्तराधिकार ऐक्ट (1917) लागू होगा या भारतीय उत्तराधिकार ऐक्ट (1925)?
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1986 के फैसले में “भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925″ की सर्वोच्चता को बरकरार रखा.
- भारत के मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती और न्यायमूर्ति आरएस पाठक की एक पीठ ने फैसला सुनाया कि यदि मृत माता-पिता ने वसीयत नहीं छोड़ी है, तो उत्तराधिकार का फैसला भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 ( Indian Succession Act, 1925) के अनुसार किया जाएगा और यह फैसला पूर्ववर्ती त्रावणकोर राज्य में रहने वाले भारतीय ईसाई समुदाय पर लागू होगा।
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